नमक से भरा एक नया प्याला

द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   मूलभूत सत्य चेले
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(यह संदेश ज़ैक पूनन द्वारा अक्टूबर सन 1963 में हैदराबाद में हुए भाई बख्त सिंह के "पवित्र दीक्षांत समारोह" में दिया गया था। तब ज़ैक मात्र 23 वर्ष के थे और उस समय एक नौसेना अधिकारी थे।)

वचन सन्दर्भ: मत्ती 5:13; 2 राजा 2:1-22; प्रेरितों के काम 1:1-9

इस संसार के लिए परमेश्वर का प्रावधान

ऊपर सूचीबद्ध पदों के कुछ भागों में, हम उन दिनों के बारे में पढ़ते हैं जब महान नबी एलिय्याह स्वर्ग में उठा लिए जाने वाले थे। परमेश्वर ने एलिय्याह को उस समय भेजा जब इस्राएल अपने परमेश्वर से दूर और अधिक दूर हो रहा था। वह एक अति महान नबी थे। एक समय था जब वह स्वर्ग से आग को नीचे बुला लाए थे। अब वह ऊपर उठा लिए जाने वाले थे। इस्राएल के लोगों का क्या होगा?

परमेश्वर ने पहले ही 1 राजा 19:16 में एलिय्याह से कह दिया था, "अपने स्थान पर नबी होने के लिए आबेल महोला के शापात के पुत्र एलीशा का अभिषेक करो"। "यह परमेश्वर का प्रावधान था। ठीक ऐसा ही तब हुआ जब प्रभु यीशु मसीह ऊपर उठा लिए गए थे। उन्होंने इस दुनिया में अपने काम को आगे बढाने के लिए अपने चेलों को पीछे छोड़ दिया था।

यह जानते हुए कि एलीशा के सामने एक कठिन कार्य की चेतावनी आने वाली थी, एलिय्याह ने उससे कहा, "उस से पहिले कि मैं तेरे पास से उठा लिये जाऊं जो कुछ तू चाहे कि मैं तेरे लिये करूं वह मांग;" (2 राजा 2:9)।" ठीक ऐसा ही प्रभु यीशु ने भी अपने चेलों से कहा: "तुम इनसे भी बड़े काम करोगे, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूँ" (यूहन्ना 14:12)। एलिय्याह ने एलीशा से कहा, "यदि तू मुझे उठा लिए जाने के बाद देखने पाए तो तेरे लिए ऐसा ही हो जाएगा; नहीं तो न होगा" (2 राजा 2:10)। एलीशा ने उन्हें ऊपर जाते देखा, और वह अंगरखा जो एलिय्याह पर से गिर गया था अपने ऊपर ले लिया। इसी प्रकार स्वर्ग में उठा लिए जाने के बाद प्रभु यीशु ने पिन्तेकुस्त के दिन अपने शिष्यों के दिलों में अपना पवित्र आत्मा भेजा था।

प्रभु यीशु का ब्राह्मांड के राजा के रूप में उठाया जाना

इस के बाद भविष्यद्वक्ताओं के चेले एलीशा के पास आकर कहने लगे " क्या तुझे मालूम है कि आज यहोवा तेरे स्वामी को ऊपर उठा लेने पर है?"(2 राजा 2:3, 5)। बाद में, जब एलिय्याह वास्तव में उठा लिए गए, तब भविष्यद्वक्ताओं के कुछ चेलों ने उनकी खोज करने के लिए पचास पुरुषों को भेजने का एलीशा पर दबाव डाला। उन लोगों ने अपने मुंह से कहा था कि एलिय्याह जल्द ही उठा लिए जाएँगें। उसके बाद उन्होंने एलिय्याह का ऊपर उठा लिया जाना भी देखा था। तो भी उन्होंने कभी विश्वास नहीं किया कि वह स्वर्ग में जा रहे थे। उन्होंने सोचा कि पवित्र आत्मा ने एलिय्याह को कहीं नीचे फेंक दिया होगा। इसीलिए वे लोग एलिय्याह के सामर्थ को प्राप्त न कर सके।

उसी तरह आज भी ऐसे कई लोग हैं जो बातों को बौद्धिक रूप से जानते हैं। वे अपने मुख से तो कई अद्भुत बातें कहते हैं, लेकिन अपने दिलों में वे प्रभु यीशु मसीह के ब्राह्मांड के राजा के रूप में उठाए जाने की बात को नहीं समझ पाते हैं। पौलुस को यहाँ तक कि इफिसुस के विश्वासियों के लिए भी प्रभु यीशु मसीह के ब्राह्मांड के राजा के रूप में उठाए जाने की बात के बारे में लिखना पड़ा था (इफ 1:18-23)।

एलिय्याह ने एलीशा से कहा था, "यदि तू मुझे उठा लिए जाने के बाद देखने पाए तो तेरे लिए मेरी आत्मा का दूना भाग प्राप्त करना संभव होगा, यदि नहीं तो ना होगा"। केवल जब हम विश्वास की आँखों से, अपने हृदयों में देखते हैं कि प्रभु यीशु मसीह ब्राह्मांड के राजा के रूप में उठाए गए हैं, तब ही हम आत्मा की परिपूर्णता प्राप्त कर पाते हैं। परमेश्वर हम पर मसीह के इस स्वरूप को तभी प्रकट करेंगे जब हम उनसे ऐसा करने की प्रार्थना करेंगे।

यदि आप प्रकाशितवाक्य की पुस्तक के माध्यम से पढ़ते हैं, तो आप देखेंगे कि मेमना सिंहासन के मध्य में है। इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि दुनिया के लोग क्या सोचते हैं। परमेश्वर ने प्रभु यीशु मसीह को ब्राह्मांड पर राजा के रूप में ऊंचा किया है। प्रभु यीशु ने इसीलिए अपने चेलों को बताया था कि स्वर्ग और पृथ्वी का सब अधिकार उनके हाथों में सौंप दिया गया है। वही प्रभु आज हमारे बीच में है। भले ही हम उसे अपनी आँखों से देखने में सक्षम ना हों, लेकिन वह यहीं है। क्योंकि हम यह जानते हैं कि स्वर्ग और पृथ्वी का सब अधिकार हमारे प्रभु के हाथों में है, तो हमें छोटी-छोटी बातों के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, जैसे हमारी सभा के बीच में कहीं बारिश के कारण परेशानी न हो। अमेरिकी राष्ट्रपति या रूसी प्रधानमंत्री क्या बात कहने वाले हैं। हमें ऐसी बातों के लिए चिंतित नहीं होना चाहिए क्योंकि समस्त अधिकार हमारे प्रभु यीशु मसीह के हाथों में ही है, आज भी है, और सदा के लिए रहेगा। परमेश्वर की अनुमति के बिना पृथ्वी पर कोई मनुष्य परमेश्वर के एक भी बच्चे को स्पर्श नहीं कर सकता। लेकिन भविष्यद्वक्ताओं के चेलों ने इस पर विश्वास नहीं किया। इस तरह के लोग परमेश्वर के सामर्थ को नहीं प्राप्त कर सकते।

बंजर भूमि और परमेश्वर के उपाय

एलीशा परमेश्वर का एक गवाह था। स्वर्गारोहण से ठीक पहले प्रभु यीशु मसीह ने अपने चेलों से कहा, "तुम जगत के छोर तक मेरे गवाह ठहरोगे"। जब आप 2 राजा 2:19-22 पढ़ेंगें, तो आप देखेंगे कि परमेश्वर कैसे हमें जगत के छोर तक अपना गवाह बनाना चाहते हैं। एलीशा यरीहो को चला गया, और उस शहर के पुरुषों ने एलीशा को बताया कि उस शहर की स्थिति तो सुखद थी, लेकिन पानी को खराब और भूमि को बंजर बताया। यह एक अद्भुत शहर था। वहाँ कई सुंदर उद्यान, उल्लेखनीय इमारतें, कॉलेजों और स्कूलों के अलावा और अन्य कई अद्भुत बातें थीं। लेकिन एक बात जो जीवन के लिए आवश्यक थी, वह वहाँ नहीं थी: पानी खराब था।

पानी हमारे जीवन के लिए एक जरूरी बात है। आप अच्छी इमारतों के बिना जीवित रह सकते हैं। आप एक साथ कई दिनों तक बिना भोजन के भी जी सकते हैं। लेकिन आप पानी के बिना लंबे समय तक नहीं जीवित रह सकते। खराब पानी, बंजर जमीन और बिना किसी फल के, यह खूबसूरत नगर आज के मानव को उपयुक्त रूप से चित्रित करता है! आकार और रूप-रंग तो मनोहर है परन्तु दिल खराब है। बाहर से तो वे बहुत सुंदर हैं, वे अच्छे कपड़े पहनते हैं, अच्छा शिष्टाचार रखते हैं, उनके पास अनेक डिग्रियां हैं, और उनके मकान अच्छे हैं। लेकिन एक बात जो आवश्यक है - अनन्त काल का जीवन - वह नहीं है। आज हम यही अपने आसपास के समस्त संसार में देखते हैं - और केवल संसार में ही नहीं, बल्कि कलिसियाओं में भी।

एलीशा ने जो शब्द सुने, वह उन से कहाँ कहे गए थे? यरीहो में! यरीहो वह स्थान था जहाँ एक समय परमेश्वर का सामर्थ प्रकट हुआ था। यरीहो चारों ओर दीवारों से घिरा एक बहुत मजबूत शहर था। जब यहोशू इस्राएल के बच्चों के साथ इस शहर में आया था, तब इसकी दीवारें सपाट होकर गिर गईं थीं। उस समय परमेश्वर का सामर्थ यरीहो में प्रकट हुआ था। लेकिन 500 साल बाद, अब उस शहर में परमेश्वर का कोई सामर्थ मौजूद नहीं था। अब भूमि बंजर और निरर्थक बन चुकी थी।

2000 वर्ष पूर्व इसी प्रकार परमेश्वर का सामर्थ उनकी कलीसिया में प्रकट हुआ था। तब से लेकर कई बार हुआ है जब परमेश्वर ने अपना सामर्थ दोबारा प्रकट किया है। परन्तु हम आज की कलीसियाओं में और तथाकथित नए नियम-पैटर्न की कलीसियाओं में क्या देख रहे हैं? कि स्थिति तो मनोहर है, लेकिन जीवन का जल खराब है। और प्रभु ने वास्तव में यही बात (प्रकाशितवाक्य 3:17) में कही थी कि अंत के दिनों में संसार की स्थिति क्या होगी।

इस खराब पानी के लिए परमेश्वर का क्या उपाय है? इस बंजर भूमि के लिए परमेश्वर का क्या उपाय है? आपके और मेरे जीवन में बाँझपन के लिए परमेश्वर का क्या उपाय है? ऐसा कौन सा तरीका है जिससे हम में से शुद्ध जीवन के जल के सोते बाहर प्रवाह कर पाएंगें? 20 पद में आपको इसका जवाब मिलेगा: "एक नए प्याले में नमक डाल कर मेरे पास ले आओ"।

इन दिनों हमारे ध्यान का यही विषय रहा है: "तुम पृथ्वी के नमक हो"।

एक बंजर दुनिया के लिए और कलीसिया की निष्फलता के लिए परमेश्वर का उपाय यह है, "एक नए प्याले में नमक डाल कर मेरे पास ले आओ"। परमेश्वर नए प्यालों की चाह रखते हैं जो पूरे नमक से भरे हैं। नमक पानी में डाला गया और यहोवा ने यों कहा कि, "मैं यह जल चंगा कर देता हूँ जिससे वो फिर कभी गर्भ गिरने क या मृत्यु का कारण ना होगा"(21 पद)।

रोगग्रस्त, निरर्थक भूमि चंगी हो गई। आज हमें अपने आसपास जिस चीज की जरूरत है वह है भूमि की चंगाई। वह कैसे चंगा हो गया? वह नए प्याले से उसमें डाले गए नमक के द्वारा चंगा हुआ। पर मैं आपको बताना चाहता हूँ कि वह अच्छा नमक था। यदि यह एक ऐसा नमक होता जिसने अपना स्वाद खो दिया हो, तो वह उस भूमि को कभी चंगा नहीं करता।

परमेश्वर की प्रतिज्ञा

क्या खराब नमक अपने स्वाद को दोबारा हासिल कर सकता है? एक तरीका है।

2 इतिहास 7.14, में हम पढ़ते हैं, "तब यदि मेरी प्रजा के लोग, जो मेरे कहलाते हैं, दीन होकर प्रार्थना करें और मेरे दर्शन के खोजी होकर अपनी बुरी चाल से फिरें, तो मैं स्वर्ग से सुन कर उनका पाप क्षमा करूंगा, और उनके देश को ज्यों का त्यों कर दूंगा"।

यहाँ परमेश्वर हमें बताते हैं कि भूमि कैसे चंगी हो सकती है। अगर हमने नमक की तरह अपना स्वाद खो दिया है, तब इस पद में दी गई चार शर्तों को हमें पूरा करना होगा। उसके बाद हम उस स्वाद को दोबारा हासिल कर लेंगें और भूमि चंगी हो जाएगी।

खुद को विनम्र करना

पहली शर्त है, कि हमें अपने आप को विनम्र करना होगा। ऐसा करना न केवल अविश्वासियों के लिए वरन विश्वासियों के लिए भी बहुत कठिन है।

फिलिप्पियों 2:5-8, में परमेश्वर का वचन कहता है "जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा तुम्हारा भी स्वभाव हो। जिसने परमेश्वर के स्वरूप में हो कर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु ना समझा: वरन अपने आपको ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण कर लिया"। आप पूछ सकते हैं, "मुझे अपने आप को कितना विनम्र करना है?" वचन का यह भाग हमें बताता है कि हमें अपने आप को उतना ही विनम्र करना है जितना प्रभु यीशु मसीह ने स्वयं को विनम्र किया था। क्या आपने अपने आप को उस के समान दीन कर लिया है? नमक के स्वाद को दोबारा हासिल करने की पहली शर्त यही है, जैसा कि आप मत्ती 5:3 में देख सकते हैं, "धन्य हैं वे जो मन के दीन हैं"।

ऐसी अनेक बातें हैं जिनका हमें गर्व हो सकता है। यह हमारी प्रतिष्ठा या हमारी लोकप्रियता का गर्व हो सकता है - दूसरों की हमारे बारे में उच्च धारणा के कारण। लेकिन प्रभु यीशु मसीह के बारे में क्या? क्या वह लोकप्रिय थे? यशायाह 53: 3 में, हम पढ़ते हैं, "वह तुच्छ जाना जाता और मनुष्यों का त्यागा हुआ था"। प्रभु यीशु एक लोकप्रिय व्यक्ति नहीं थे। लूका 6:26 में वह स्वयं कहते हैं, "हाय है तुम पर जब सब मनुष्य तुम्हें भला कहें"। शिष्य अपने गुरु से ऊपर नहीं है। हमारे प्रभु को तुच्छ जाना गया और मनुष्यों द्वारा त्यागा गया था। इस संसार ने यीशु को बहिष्कृत किया था। तो अपनी लोकप्रियता पर गर्व करने का हमें कोई अधिकार नहीं है।

शायद हमें अपनी विद्या और अपनी शिक्षा पर गर्व होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यूहन्ना 7:15 में यहूदियों ने प्रभु यीशु के बारे में यह कहा था कि, "इसे बिन पढ़े विद्या कैसे आई"? गर्व करने लायक प्रभु यीशु के पास विद्या या शिक्षा नहीं थी। परमेश्वर का वचन कहता है, "जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा तुम्हारा भी स्वभाव हो"।

शायद हम हमारी सुंदरता पर गर्व कर रहे हों: "मेरा चेहरा कितना सुन्दर है, मेरा शरीर कितना अच्छा है", और इसी तरह की अन्य बातें। लेकिन प्रभु यीशु मसीह के बारे क्या? वह धरती पर रहने वाले मनुष्यों में सबसे सुन्दर व्यक्ति थे, फिर भी जब वह क्रूस पर लटके तो जैसे हम यशायाह 52:14 में पढ़ते हैं, "उसका चेहरा इतना बिगड़ा हुआ था कि मनुष्य सा नहीं जान पड़ता था और उसकी सुन्दरता भी आदमियों सी नहीं रह गई थी"। इसका अर्थ है कि उसका चेहरा मनुष्य के चेहरे की तरह नहीं लग रहा था। ऐसा कैसे हुआ? लोगों ने उस सुंदर चेहरे के साथ क्या किया - वो चेहरा जो मनुष्य के बेटों से भी रूपवान था? उन लोगों ने उसके चेहरे की दाड़ी को नोचा। उन लोगों ने उसके चेहरे पर मुक्के मारे और उस पर थूका। उन लोगों ने उसके गाल पर थप्पड़ मारे। उन लोगों ने उसके सिर पर कांटों का ताज रखा। उन लोगों ने छड़ी से उसके सिर पर वार किया। उन लोगों ने उसके साथ इतना सब किया कि आखिर में उसका चेहरा एक मनुष्य के चेहरे की तरह नहीं लग रहा था। अपनी सुंदरता पर गर्व करने का हमें कोई अधिकार नहीं है।

शायद हमें अपनी क्षमताओं का गर्व होगा। हो सकता है हम सोचें कि, "मैं प्रचार कर सकता हूँ। मैं अच्छी तरह से प्रार्थना कर सकता हूँ। मैं बाइबल सिखाने का कार्य कर सकता हूँ। मैं परमेश्वर के बच्चों को संभाल सकता हूँ। मैं कई अन्य बातें कर सकता हूँ"। भले ही हम यह सब होठों से नहीं कह रहे हों पर इस तरह के विचार अपने दिल में रखते हों। प्रभु यीशु मसीह के बारे में क्या? उन्होंने कहा, "पुत्र अपने आप से कुछ नहीं कर सकता है, केवल वह जो पिता को करते देखता है", "मैं अपने आप से कुछ भी नहीं कर सकता हूँ" (यूहन्ना 5:19 और 30)। प्रभु यीशु ने कहा कि वे अपने सामर्थ से यहां तक कि छोटी से छोटी बात भी नहीं कर सकते थे। वो सब कुछ जो उन्होंने किया, पवित्र आत्मा के सामर्थ से किया। हम क्या यही बात कहते हैं? यदि हमें लगता है कि हम कुछ कर पाने में सक्षम हैं, तो इसका मतलब है कि हम अपने आप पर गर्व कर रहे हैं। इसीलिए नमक ने अपना स्वाद खो दिया है।

कभी कभी हम अपने पुरखों या अपने वंश पर गर्व करते हैं। हम कहते हैं, "मेरे पिता परमेश्वर के सेवक थे। मेरे सभी बच्चे सेवक हैं।"

लूका अध्याय 3 और मत्ती अध्याय 1 के माध्यम से यदि आप प्रभु यीशु की वंशावली के बारे में पढ़ेंगें, तो आपको वहाँ पुराने नियम में से कुछ ऐसे पुरुषों और महिलाओं के नाम मिल जाएँगे जो पापियों में सबसे बड़े पापी थे। हमारे प्रभु यीशु ने खुद को इतना दीन किया कि मानवता की सबसे पापी वंशावलियों में से एक को इस संसार में जन्म लेने का माध्यम चुना। तो हम देखते हैं कि हमारे प्रभु के पास गर्व करने के लिए कुछ भी नहीं था।

हो सकता है कि हमें अपने सुंदर घरों पर गर्व हो। आपको लगता हो कि, "मेरे पास चार कमरों का घर है", या "छह कमरों का घर मुझे मिल गया है"। मैं फिर से पूछता हूँ, प्रभु यीशु के साथ क्या? हम पढ़ते हैं कि उनके पास सिर धरने की भी कोई जगह नहीं थी। "जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा तुम्हारा भी स्वभाव हो, जिसने परमेश्वर के स्वरूप में हो कर भी अपने आपको ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण कर लिया"। ऐसा कोई कारण नहीं था जिसके लिए उन्हें इस धरती पर आने की जरूरत थी, सिवाय हमें छोड़कर। तो भी "उसने अपने आपको ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण कर लिया"।

कभी कभी एक दास बनना बहुत मुश्किल होता है। कौन बड़ा है? वह जो सभा में बोलता है या वह जो सेवा करता है? क्या बोलने वाला अधिक बड़ा नहीं है? लेकिन प्रभु यीशु कहते हैं, "मैं तुम्हारे बीच में एक सेवक की नाई हूँ"। "जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा तुम्हारा भी स्वभाव हो", आप को प्रभु की ऊपरी कमरे में बिताई वह रात याद होगी जब प्रभु यीशु ने एक अंगोछा लिया और अपने चेलों के पाँव धोए और पोंछे। चेलों में से कोई भी इतना नीच काम करने को तैयार ना हुआ होता। कल्पना करें, कि महिमा के परमेश्वर ने उन पापी मनुष्यों के पैर धोए जिनमें यहूदा इस्करियोती भी शामिल था? बहुत बार हम नीच कार्य करने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं। लेकिन परमेश्वर का वचन कहता है, "जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा तुम्हारा भी स्वभाव हो"। क्योंकि हमें गर्व है कि हम नमक के समान हो गए हैं पर वास्तव में हम अपना स्वाद खो चुके हैं।

भजन सहिंता 22 में हमें क्रूस की एक तस्वीर मिलती है। 6 पद मसीह के उस अनुभव को वर्णित करता है जो प्रभु यीशु को क्रूस पर लटने के समय हुआ था: "मैं एक कीड़ा हूँ, मनुष्य नहीं"।

आप जानते हैं एक कीड़ा क्या होता है। वह जमीन पर रेंगता है, और लोगों का पाँव उस पर पड़ सकता है, और हो सकता है इसका उन्हें पता भी ना चले। एक कीड़े की कोई परवाह नहीं करता। प्रभु यीशु के साथ ऐसा ही व्यवहार किया गया।

आपको और मुझे परमेश्वर के सामने एक कीड़े से ज्यादा कुछ होने का कोई अधिकार नहीं है। तो भी, कितनी बार हम कई बातों के बारे में शिकायत करते हैं। हम कहते हैं, "मैं सोने के लिए एक अच्छी जगह चाहता हूँ। मैं खाने के लिए पर्याप्त भोजन चाहता हूँ। ऐसा करने का मेरा हक़ बनता है"। लेकिन याद रखें कि सेवक अपने प्रभु से अधिक, और शिष्य अपने गुरु से ऊपर, नहीं है। यदि प्रभु यीशु एक कीड़े के स्तर तक आ सकते थे, तो आपको और मुझे इससे कुछ भी अधिक होने का कोई अधिकार नहीं है। क्या आपने कभी एक कीड़े को शिकायत करते सुना है? लोग उसे लात मर सकते हैं, मसल सकते हैं, रौंद सकते हैं या यहां तक कि उसे मार सकते हैं, लेकिन वह कभी अपना मुंह नहीं खोलेगा।

एक सांप के साथ काफी अलग है। यदि आप एक साँप को लात मारे, तो वह सीधा काटेगा। दुनिया के लोगों के साथ ऐसा ही है। यदि कोई उन्हें जरा सी चोट पहुंचाए, तो वे सीधे क्रोधित हो जाते हैं। जब विश्वासी उस तरह का व्यवहार करते हैं, वे उस नमक के समान हो जाते हैं जिसने अपने स्वाद को खो दिया है। यही कारण है कि भूमि चंगी नहीं होती, और वहाँ कोई फल नहीं है। बहुत बार हम जागृति के लिए और अधिक फल पाने के लिए प्रार्थना करते हैं। लेकिन फिर से ऐसा करने से पहले, आईए हम खुद से पूछें, कि क्या हमने इस पहली शर्त को पूरा कर लिया है। क्या हमने खुद को उतना दीन कर लिया है जितना हमारे प्रभु थे? हो सकता है हमने 2 इतिहास 7:14 का यह पद कई बार सुना होगा। परन्तु हमारी प्रर्थना है कि इन शब्दों को पवित्र आत्मा आज हमारे दिल में एक नए सामर्थ के साथ भर दे।

प्रार्थना करना

इस पद में हम दूसरी शर्त यह देखते हैं कि हमें प्रार्थना करनी चहिए।

हम प्रार्थना के बारे में बात तो बहुत करते है, लेकिन हम वास्तव में बहुत कम प्रार्थना करते हैं। मेरा मानना है कि कई बार हम इसलिए प्रार्थना नहीं करते क्योंकि हम यह विश्वास नहीं करते कि यहोवा उनका उत्तर दे देंगें। अगर हम सच में विश्वास करते कि परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर दे देंगें तो, हमारा प्रार्थना का जीवन पूरी तरह से बदल जाता। प्रभु यीशु मसीह ने कहा, "सो जब तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपने मांगने वालों को पवित्र आत्मा क्यों ना देगा?" (लूका 11:13)

मैं आप को एक व्यक्तिगत गवाही बताता हूँ।

मैं यह उल्लेख परमेश्वर की महिमा के लिए और एक गवाही देने के लिए कर रहा हूँ, कि जब उनके बच्चे प्रार्थना करते हैं तो परमेश्वर क्या करते हैं। मैं इस 1963 के पवित्र दीक्षांत समारोह में आने के लिए बहुत उत्सुक था। मैं पिछले साल भी आया था, और बहुत आशीषित हुआ था। इसलिए मैं इस साल भी आने के लिए उत्सुक था। मैं वर्तमान में नौसेना बेस में, कोचीन में काम कर रहा हूँ। इस महीने की पहली तारीख को मुझे बताया गया था कि मुझे इस पवित्र दीक्षांत समारोह की अवधि के लिए छुट्टी मिल जाएगी। हालांकि, एक सप्ताह बाद नई दिल्ली से जानकारी प्राप्त हुई कि, मैसूर में एक अखिल भारतीय प्रदर्शनी होने वाली थी, और इसमें सेना, नौसेना और वायु सेना को भाग लेना था। मेरे कार्यालय से अन्य अधिकारियों में से एक को इस प्रदर्शनी के लिए 9 अक्टूबर को जाना पड़ा। इसलिए मेरी छुट्टी रद्द कर दी गई थी। मैंने यहाँ इस दीक्षांत समारोह में आने की सभी उम्मीदें छोड़ दीं थी।

12 अक्तूबर को, प्रभु के साथ अपने शांत समय में, मैं दैनिक बाइबिल अध्ययन में 2 शमूएल का अध्याय 2 पढ़ रहा था। पहले पद में लिखा था, "दाऊद ने यहोवा से पूछा, कि क्या मैं यहूदा के किसी नगर में जाऊं? और यहोवा ने उस से कहा, हाँ, जा"। तो मुझे लगा कि प्रभु मुझे इस दीक्षांत समारोह में जाने को कह रहे हैं। तो मैंने फिर से, प्रार्थना की, कि "हे प्रभु, क्या आप चाहते हैं कि मैं इस दीक्षांत समारोह में जाऊं?" मैंने जब पहले पद में आगे लिखे शब्दों को पढ़ा, तो लिखा था "और दाऊद ने फिर पूछा, किस नगर में जाऊं? और प्रभु ने कहा, हेब्रोन में"। मैंने तुरंत महसूस किया कि यहोवा ने निश्चित रूप से मुझे हेब्रोन पवित्र दीक्षांत समारोह में जाने का निर्देश दिया है। तो मैंने कहा, "हे प्रभु, यदि तेरी इच्छा के अनुसार मेरी छुट्टी रद्द कर दी जाए, तो मैं इसे खुशी से स्वीकार करता हूँ। परन्तु यदि मुझे हेब्रोन में जाने से रोकने के लिए यह शैतान का प्रयास है तो मैं तेरे नाम में इसका विरोध करता हूं"। परमेश्वर ने कहा है, "यदि तुम में से दो जन पृथ्वी पर किसी बात के लिए जिसे वे मांगें, एक मन के हों, तो वह मेरे पिता की ओर से, जो स्वर्ग में है उन के लिए हो जाएगी" (मत्ती 18:19)। तो मैंने कुछ अन्य भाइयों और बहनों के साथ मिल कर इस प्रतिज्ञा का दावा किया।

दो दिन बाद, अक्टूबर 14 को, नई दिल्ली से एक आदेश मिला कि प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए नौसेना नहीं जाएगी, और केवल सेना और वायु सेना इसमें भाग लेगी। इस प्रकार मुझे छुट्टी मिल गई और मैं समय से यहाँ आने में सक्षम हो गया। मैंने यह उल्लेख आपको यह बताने के लिए किया है कि परमेश्वर प्रार्थना का उत्तर अवश्य देते हैं। ऐसा मेरे सामर्थ या मेरी शक्ति द्वारा नहीं हुआ था। यह परमेश्वर के बच्चों की प्रार्थना के कारण संभव हुआ था। मुझे पता है कि यहाँ हेब्रोन में आप में से कई मेरे लिए प्रार्थना कर रहे थे। और यही कारण है कि यहोवा ने उस प्रदर्शनी में नौसेना के भाग को रद्द कर दिया। यदि केवल हम उस से प्रार्थना करें तो अपने बच्चों की खातिर परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को हिला देंगें।

इस पद में यहाँ ऐसा लिखा है "यदि मेरी प्रजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं दीन होकर प्रार्थना करें"। अगर हमारे दिलों में गर्व है तो प्रार्थना में आने का कोई फायदा नहीं है। कभी कभी हम विश्वासी अपनी पदवी पर गर्व करने लगते हैं। यदि कुछ धनी और समृद्ध भाई हमारे साथ बात करने के लिए आते हैं, तो हम एक लंबे समय के लिए अच्छी तरह से उनके साथ बात करेंगे। लेकिन, अगर एक गरीब, विनम्र भाई एक फटी कमीज में हमारे साथ बात करने के लिए आता है, तो हम उसकी उपेक्षा करेंगें और यहां तक कि उसकी परवाह भी नहीं करेंगे। हमारा यही व्यवहार है। इसीलिए नमक ने अपना स्वाद खो दिया है। मैं आपको सावधान कर देना चाहता हूं कि मसीह के न्याय के आसन पर हमें बड़े आश्चर्य मिलने वाले हैं। हो सकता है यही गरीब, विनम्र भाई, जिनसे हम आज घृणा कर रहे हैं, उस दिन लाइन में हमारे सामने आगे खड़े होंगे। तो अजीजों, याद रखो, यदि हमने पहले खुद को दीन नहीं किया है तो प्रार्थना करने का कोई लाभ नहीं होगा।

परमेश्वर के दर्शन के खोजी

इस पद में तीसरी शर्त यह है कि हमें परमेश्वर के दर्शन का खोजी होना होगा।

मुझे संदेह होता है कि क्या हम ऐसा करते हैं। अक्सर हम अन्य बातों, जैसे बेहतर नौकरी, बेहतर घरों, अच्छे पति या पत्नियों (बहुत पैसे वाले), की कामना रखते हैं। लेकिन हम परमेश्वर के दर्शन के खोजी नहीं बनते। भजन संहिता 27:4 में दाऊद कहते हैं, "एक वर मैं ने यहोवा से मांगा है, उसी के यत्न में लगा रहूंगा; कि मैं जीवन भर यहोवा के भवन में रहने पाऊं, जिस से यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रहूं, और उसके मन्दिर में ध्यान किया करूं"।

दाऊद एक महान राजा था। वह धनी था, वह कई लड़ाइयों को जीत चुका था और उसकी एक महान प्रतिष्ठा थी। तो भी उसने कहा, "मैं संतुष्ट नहीं हूँ। एक वर मैं ने यहोवा से मांगा है"। यह ऐसा नहीं है कि मैं दुनिया का राजा बन जाऊं या मैं एक महान उपदेशक बन जाऊं, या कि मैं बहुत प्रसिद्ध हो जाऊं। परन्तु एक वर मैं ने यहोवा से मांगा है, कि जीवन भर उसी के यत्न में लगा रहूंगा और जिससे मैं यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रखूं"। क्या हमारे जीवन की भी एक यही इच्छा है?

यूहन्ना अध्याय 20 में, हम किसी अन्य व्यक्ति के विषय में पढ़ते हैं जिसकी भी केवल एक ऐसी ही इच्छा थी। वह मरियम मगदलीनी थी। रविवार की सुबह वह बहुत जल्दी कब्र में जाने के लिए उठ गई। क्यों वह इतनी जल्दी उठ गई और कब्र के लिए निकल गई जब कि वहां अभी भी अंधेरा था? क्योंकि उसके जीवन में एक ही इच्छा थी, और वह प्रभु को निहारने की इच्छा थी। हम पढ़ते हैं कि जब वह कब्र में पहुंची, तो उसने उसे खाली पाया। तो वह भागी और कुछ अन्य शिष्यों को बताया। वे भी आ गए और कब्र में देखा, और उसके बाद अपने घरों को लौट आए, शायद वापस सोने के लिए।

लेकिन मरियम मगदलीनी कब्र के बाहर खड़ी रोती रही। आप देखोगे कि, चेलों को प्रभु से उतना प्यार नहीं था जितना मरियम मगदलीनी को था। जब चेलों ने, खाली कब्र को देखा तो वे सोने के लिए वापस चले आए। लेकिन मरियम ऐसा नहीं कर सकी क्योंकि यीशु ही उसके लिए सब कुछ थे। परमेश्वर को आज कलीसिया में इस तरह के लोगों की जरूरत है। जब प्रभु यीशु मरियम मगदलीनी के सामने आए, तो उसने सोचा कि वह माली था, और वह उस से कहने लगी, "हे महाराज, यदि तू ने उसे उठा लिया है तो मुझ से कह कि उसे कहां रखा है और मैं उसे ले जाऊंगी"। वह उसके शरीर को ले जाने के लिए भी तैयार थी। अब आप जानते हैं, कि एक औरत के लिए एक मृत शरीर को ले जाना लगभग असंभव होगा। लेकिन प्रभु के लिए उसका प्यार इतना बड़ा था कि वह उसकी खातिर किसी भी कठिनाई से गुजरने के लिए तैयार थी। "परमेश्वर के दर्शन के खोजी" होने का यही अर्थ है। केवल एक ही इच्छा का होना - यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रखने की और किसी ओर बात की नहीं। इस दुनिया में एक अमीर आदमी बनना या एक महान आदमी बनना मेरे लिए नहीं है परन्तु दिन प्रतिदिन बस यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रखूं।

मुझे एक ऐसे आदमी की कहानी याद है जो एक बार एक विधवा के घर गया। वह एक बहुत ही गरीब औरत थी, लेकिन वह प्रभु से प्यार करती थी। उसके चार या पांच बच्चे थे, और वो एक बहुत छोटी मिट्टी की झोपड़ी में रहते थे। आदमी ने उससे, पूछा आपका घर इतनी खुशी और शांति से कैसे भरा हुआ है? तुम्हारे पास इतना पैसा नहीं है। तुम्हारे बच्चे आधे-भूखे हैं, और फिर भी वो सब मुस्कुरा रहे हैं। तुम्हारे घर में इतनी सारी कठिनाइयां और बीमारियां हैं और फिर भी तुम आनन्दित हो। तुम्हारे जीवन का रहस्य क्या है? उसने कहा, "मेरे लिए यीशु मसीह ही सब कुछ हैं। मुझे इस दुनिया में किसी और चीज की जरूरत नहीं है"।

अजीजों, अगर प्रभु यीशु मसीह ही हमारे लिए सब कुछ बन जाएँ तो हम भी उनकी तरह हो जाएँगे। दूसरी ओर, ऐसा क्यों है कि हम अक्सर कुड़कुड़ाते और विवाद करते रहते हैं? हम खुद को परमेश्वर के बच्चे कहते हैं, और फिर भी एक छोटी सी असुविधा से ग्रस्त होने पर कुड़कुड़ाते हैं और शिकायत करने लग जाते हैं। ऐसा क्यों है? यह इसलिए है क्योंकि, प्रभु यीशु हमारे सब कुछ नहीं हैं। ओह, काश आज शाम से, प्रभु यीशु ही हमारे लिए सब कुछ हो जाएँ, और हम भजन लिखने वाले के साथ यह कह सकें, प्रभु यीशु, "स्वर्ग में मेरा और कौन है? तेरे संग रहते हुए मैं पृथ्वी पर और कुछ नहीं चाहता (भजन 73:25)"। हमारे खोए स्वाद को पाने के लिए इस तीसरी शर्त को हमें पूरा करना होगा।

अपनी बुरी चालों से फिरना

अब 2 इतिहास 7:14 में लिखी चौथी शर्त यह है कि हमें अपनी बुरी चालों से फिरना होगा।

हमारे जीवन में अनेकों बुरी चालें हो सकती हैं। हो सकता है हम बहुत घमंडी हों और शायद यही वजह है कि अक्सर हम अन्य लोगों को गलत समझते हैं, और उनकी आलोचना में इतना समय व्यर्थ कर देते हैं। जीभ हमें परमेश्वर ने उसके नाम की महिमा करने के लिए दी है, लेकिन अक्सर हम निर्दयी आलोचना में इसका दुरुपयोग करते हैं। हमारे दिलों में शायद कुछ भाइयों और बहनों के खिलाफ कड़वाहट भरी हो। हम चाहे उस कड़वाहट को बाहर न भी दिखाएँ तो भी यह हमारे दिलों में भरी रहती है। या शायद हम ईर्ष्या को अपने दिलों में स्थान दे रहे हों। ये सभी तरीके बुराई की चाल वाले व्यक्ति से संबंधित हैं।

कभी कभी हम झूठ बोलते हैं। झूठ क्या है? अपने मुँह से शायद आप कुछ ना भी कहें, लेकिन फिर भी अगर आप दूसरों पर अपनी एक गलत छाप छोड़ रहे हैं तो यह भी एक झूठ है। यदि आप दूसरों के सामने अपने वास्तविक आचरण से अधिक पवित्र होने का दिखावा करते हैं, तो वह भी झूठ है, और प्रभु की दृष्टि में यह एक घृणित बात है। इस प्रकार ऐसी अनेक बुरी चालें हैं, जिनकी पहचान करने में हम चूक जाते हैं। उदाहरण के लिए, हम परमेश्वर के वचन पर ध्यान देने की, या सभाओं में भाग लेने की उपेक्षा कर सकते हैं (इब्रानियों 10:25)। आम तौर पर, हम इन्हें पापों की श्रेणी में वर्गीकृत नहीं करते।

कभी-कभी हमारे घर की जिम्मेदारियों की उपेक्षा करते हैं। बाइबल कहती हैं, "हे पतियों, अपनी पत्नियों से वैसा प्रेम रखो जैसा प्रेम मसीह कलीसिया से करता है"। कलीसिया के लिए मसीह के प्रेम की कोई सीमा नहीं है। उसी तरह, अपनी पत्नियों के लिए पति के प्रेम की भी कोई सीमा नहीं होनी चाहिए। लेकिन, बहुत बार ऐसा नहीं होता। इसीलिए नमक ने अपने स्वाद खो दिया है। फिर से परमेश्वर का वचन कहता है, "हे पत्नियों, अपने पतियों के अधीन रहो जैसे कलीसिया मसीह के आधीन है"। इसका अर्थ है जैसे कलीसिया पूरी तरह से मसीह के अधीन है, पत्नियों को इसी समान अपने पतियों के आधीन होना चाहिए। यह दासत्व की भावना से नहीं, लेकिन प्रेम में किया जाना चाहिए। लेकिन कभी कभी, पत्नियों को ऐसा करने की इच्छा नहीं होती। इस प्रकार नमक ने अपने स्वाद खो दिया है।

परमेश्वर का वचन कहता हैं "पिताओं, अपने बच्चों को परमेश्वर का भय मानना सिखाओ"। फिर भी विश्वासियों के ऐसे कितने बच्चे हैं, जो आज दुनिया के तरीके के अनुसार चल रहे हैं! तो ऐसा क्यों है? क्योंकि माता-पिता ने उन्हें यहोवा का भय मानना कभी नहीं सिखाया है। उन्होंने अपने बच्चों को अच्छा शिष्टाचार तो सिखाया है और उन्हें अच्छी शिक्षा और पहनने के लिए अच्छे कपड़े तो दिए हैं, लेकिन उन्हें परमेश्वर का भय मानना कभी नहीं सिखाया है। यही कारण है कि आगे चल कर जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, तब माता पिता पछतावे से भर जाते हैं। तब तक उनके बच्चों को अनुशासित करने के लिए ¬- बहुत देर हो चुकी होती है।

परमेश्वर का वचन आगे कहता है, "हे बालकों, अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करो"। कुछ बच्चों को लगता है कि वे अपने माता पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए बहुत बड़े हो गए हैं। लेकिन हम लूका 2:51 में पढ़ते हैं, कि प्रभु यीशु मसीह तीस वर्ष की आयु तक मरियम और यूसुफ के आधीन थे।

इस प्रकार आप देख सकते हैं कि हमारे भीतर कितनी बुरी चालें हो सकती हैं। यही कारण है हम उस नमक की तरह हो गए हैं जिसने अपने स्वाद को खो दिया है, और भूमि चंगी नहीं हो पाती। यही कारण है कि पानी खराब है और जमीन बंजर रह जाती है।

परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ

परमेश्वर के वचन में यहाँ एक प्रतिज्ञा है, "तब यदि मेरी प्रजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं, दीन हो कर प्रार्थना करें और मेरे दर्शन के खोजी हो कर अपनी बुरी चाल से फिरें, तो मैं स्वर्ग में से सुन कर उनका पाप क्षमा करूंगा और उनके देश को ज्यों का त्यों कर दूंगा"।

यह उन सभी के लिए कितनी अद्भुत प्रतिज्ञा है जो उन चार शर्तों को पूरा कर लेते हैं!

मैं सुनूंगा

स्वर्ग से सुनने के लिए परमेश्वर ने वादा किया है। आप जानते हैं कि जब परमेश्वर स्वर्ग से सुनते हैं तो क्या होता है? जब एक बार एलिय्याह रोया और यहोवा ने सुना और परमेश्वर की आग पृथ्वी पर गिर गयी। और सब लोग मुंह के बल गिरकर बोल उठे, "यहोवा ही परमेश्वर है"। फिर आपको यह भी याद होगा कि प्रेरितों के काम अध्याय 4, में कैसे चेलों ने प्रार्थना की और परमेश्वर ने स्वर्ग से सुना। परिणाम क्या हुआ? सारा घर जहां वे बैठे थे, गूंज गया। प्रेरितों के काम 16:25 में हम पढ़ते हैं कि जब पौलुस और सीलास प्रार्थना करते हुए परमेश्वर के भजन गा रहे थे, परमेश्वर ने स्वर्ग से सुना और पूरा बन्दीगृह भूकंप से हिल गया था। आपको यह भी याद होगा कि कैसे यहोशू 10:12 में, यहोशू ने प्रार्थना की और परमेश्वर ने स्वर्ग से सुना। उस दिन सूर्य और चंद्रमा 24 घंटे के लिए थम गए थे। यह एक अद्भुत प्रतिज्ञा है, "मैं स्वर्ग से सुनूंगा"!

मैं क्षमा करूंगा

2 इतिहास 7:14 में आगे परमेश्वर कहते हैं, "मैं उनके पाप क्षमा करूंगा"।

ओह, कितने अद्भुत परमेश्वर हैं! इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने दुष्ट रहे हों। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि अपने जीवन में आपने कितने पाप किए हैं। यदि आप अपने आप को अभी विनम्र कर लें और विश्वास करें कि प्रभु यीशु मसीह ने आपके पापों के कारण क्रूस पर अपनी जान दी - कि उन्होंने अपना दिल तोड़ दिए जाने के लिए दे दिया और आपके पापों के लिए अपने कीमती खून की आखिरी बूँद तक बहा दी - तो इसी क्षण परमेश्वर आपके हर एक पाप को माफ कर देंगे। कितनी अद्भुत प्रतिज्ञा है! परमेश्वर कहते हैं, ""तुम्हारे पाप चाहे लाल रंग के क्यों ना हों, तौभी वे हिम की नाईं उजले हो जाएंगे; और चाहे अर्गवानी रंग के हों, तौभी वे ऊन के समान श्वेत हो जाएंगे"" (यशाया 1:18)। स्वर्ग से परमेश्वर अब भी सुनते है और हमारे पाप क्षमा कर देते हैं।

कृपया मीका 7:18, 19 पढ़ें , और जैसे आप परमेश्वर की इस अद्भुत प्रतिज्ञा को पढ़ते हैं उस पर दावा करें: "तेरे समान ऐसा परमेश्वर कहां है जो अधर्म को क्षमा करे और अपने निज भाग के बचे हुओं के अपराध को ढांप दे? वह अपने क्रोध को सदा बनाए नहीं रहता, क्योंकि वह करूणा से प्रीति रखता है। वह फिर हम पर दया करेगा, और हमारे अधर्म के कामों को लताड़ डालेगा। तू उनके सब पापों को गहरे समुद्र में डाल देगा"।

2 कुरिन्थियों 1:20 के अनुसार, इसी क्षण हम इन प्रतिज्ञाओं पर अपने प्रभु यीशु मसीह के नाम से दावा करते हैं।

वह एक ऐसे परमेश्वर है जो क्षमा करने के लिए तैयार है (नहेमायाह 9:17) । और केवल इतना ही नहीं, परमेश्वर यह भी कहते हैं, कि वो हमारे अधर्म के पापों को याद भी नहीं रखेंगे (इब्रानियों 8:12)। वो आपके पिछले जीवन को फिर कभी नहीं याद करेंगे। यदि आप विनम्रतापूर्वक क्रूस के पास आते हैं, और कहते हैं कि, "हे परमेश्वर, मुझ पापी पर कृपा कर", तो वो ठीक इसी समय आपको क्षमा कर देंगे क्योंकि प्रभु यीशु ने आपके पापों के लिए आपके स्थान पर पहले से ही अपनी जान दे दी हैं।

"मैं चंगा करूंगा"

इसके बाद इस पद में हम आगे पढ़ते हैं कि परमेश्वर इसके बाद कहते हैं, "मैं उनके देश को चंगा कर ज्यों का त्यों कर दूंगा।"

आपका जीवन पाप कहे जाने वाले रोग से पूरी तरह से ग्रसित है। यह आप को बर्बाद कर रहा है और आप का घात कर रहा है। बाहरी रंग-रूप से आप भले ही मनोहर हों, लेकिन क्या लाभ होगा यदि आपका दिल बुरा है। परमेश्वर कहते हैं, कि अगर तुम एक विनम्र, टूटे दिल के साथ आओगे, तो वे उस रोग को चंगा कर देंगे। शायद आपका जीवन बंजर और निरर्थक हो गया हो। शायद आप में से बाहर आने वाला जीवन का जल खराब हो गया है। लेकिन परमेश्वर कहते हैं, कि यदि तुम इस पद में वर्णित चार बातों को करते हो, तो वे भूमि को चंगा कर देंगे।

मैं चाहता हूँ कि इस पद में दिए गए आदेश पर आप ध्यान दें: "मैं स्वर्ग से सुनूंगा, मैं उनके पाप क्षमा कर दूंगा, मैं उनके देश को चंगा कर दूंगा"। हमारे पापों की क्षमा से पहले भूमि चंगी नहीं हो सकती। इस प्रकार हम देखते हैं यदि हम खुद को, विनम्र करें और प्रार्थना करें और परमेश्वर के दर्शन के खोजी हों और बुरी चालों से फिरें, तो फिर जिस नमक का स्वाद हमने खो दिया था वह वापस आ जाएगा। प्रभु यीशु ने कहा, "तुम पृथ्वी के नमक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा"? इन चार शर्तों को पूरा करने में और इस प्रकार खोए हुए नमक के स्वाद को दोबारा हासिल करने में परमेश्वर हमारी मदद करें।

नमक से भरा एक नया प्याला

एक पल के लिए 2 राजा 2:20 देखें, और आप देखेंगे कि परमेश्वर किस चीज की खोज कर रहे हैं। एलीशा ने एक नया प्याला लिया।

परमेश्वर नए तरीकों की खोज नहीं कर रहे हैं, और ना ही इस दुनिया में सुसमाचार का प्रचार करने के लिए वह नए संगठनों की खोज कर रहें हैं। प्रभु नमक से भरे नए प्यालों को खोज रहे हैं, जिनके माध्यम से वह अपने कार्यों को आगे ले जा सकें। इस दुनिया में सुसमाचार का प्रचार करने के लिए परमेश्वर स्वयं नहीं आने वाले हैं। यदि परमेश्वर चाहते, तो वे इस दुनिया में सुसमाचार प्रचार करने के लिए स्वर्ग से गर्जन कर सकते थे। लेकिन उनका यह तरीका नहीं है। वह एक मानव पात्र के अंदर नमक भर देना चाहते हैं और उसके बाद इसे भूमि पर उंडेल देना चाहते हैं।

एलीशा नमक अपने हाथों में ले कर भी उसे उंडेल सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने एक नया प्याला लिया, जो नमक से भरा था, और उसके बाद नमक को पानी पर उंडेल दिया। भूमि और पानी तुरंत चंगे हो गए। यह परमेश्वर का अनुदान है, कि हम स्वामी के काम आने के लिए इस दुनिया की सब बातों से खाली हो कर और मसीह से भरे एक उपयुक्त पात्र बनने को तैयार किए जाएँ।

यहाँ सिर्फ एक और बात है जिसपर मैं आपका ध्यान खींचना चाहूँगा। प्याले को नमक से भरने के पश्चात, एलीशा ने नमक बर्तन में ही रहने नहीं दिया - उन्होंने इसे बाहर उंडेल दिया।

परमेश्वर आपके और मेरे जीवन को इसलिए भरते हैं कि, हम दूसरों की सेवा में इसे उण्डेल सकें। हो सकता कि हम परमेश्वर से एक लंबे समय से प्रार्थना कर रहे हों कि वे हमें पवित्र आत्मा से भरें, और हमें कोई आध्यात्मिक आशीष प्रदान करें। पर शायद, हम इन आशीषों को अपने स्वार्थ के कारण मांग रहे थे। परमेश्वर हमें अपने स्वर्गीय नमक के साथ इसलिए नहीं भर देंगें कि हम दूसरों के सामने इसका यह दिखावा कर सकें कि हम कितने आध्यात्मिक हैं।

यशाया 53:12 में हमने प्रभु यीशु के बारे में पढ़ा, कि उसने अपना प्राण मृत्यु के लिये उण्डेल दिया। यही कारण है कि आज आपके और मेरे पापों को क्षमा किया जा सकता है। हमें भी दूसरों की सेवा में उण्डेले जाने के लिए तैयार होना चाहिए। अन्यथा भूमि कभी भी चंगी न होगी। प्रभु हमें पानी से भरे टैंक नहीं बनना चाहते। वह हमें एक ऐसा चैनल बनाना चाहते हैं जिसके माध्यम से जीवन के जल की नदियों बाहर दूसरों पर उंडेली जा सकें। परमेश्वर इस प्रकार के प्यालों को खोज रहे हैं - जो स्वेच्छा से दूसरों पर उण्डेले जाने के लिए तैयार हों।

यहोवा की निगाहें पृथ्वी भर में ऐसे प्या