पवित्र आत्मा में बपतिस्मा

द्वारा लिखित :   Sandeep Poonen श्रेणियाँ :   जवानी
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यहां एक सवाल है जो कुछ मसीहियों के लिए एक पहेली हो सकता है। यदि यीशु का जन्म पवित्र आत्मा के सामर्थ से हुआ था तो जब उन्हें बपतिस्मा दिया गया था तब पवित्र आत्मा को उनके ऊपर क्यों आना पड़ा? क्या मसीहियों के लिए भी पवित्र आत्मा के साथ दो प्रकार के पारस्परिक संपर्क होते हैं?

यह महत्वपूर्ण है कि अधिक से अधिक पवित्रता का जीवन जीने के लिए हम पवित्र आत्मा में बपतिस्मा पाने (डुबकी लगाने) की जरूरत को समझें। यही एकमात्र तरीका है, कि हम तेजी से यीशु को उनकी पवित्रता में प्रतिबिंबित कर सकते हैं। साथ ही परमेश्वर की सेवा के लिए भी पवित्र आत्मा के बपतिस्में की उतनी ही अधिक जरूरत है जिसे बहुत से लोग समझ नहीं पाते। यदि हमें मसीह की देह के अंग रुप में अपनी बुलाहट को पूरा करना है तो पवित्र आत्मा को हमें उनके दिव्य वरदान देने होंगे।

कुछ कलीसियाएं इन अपने सदस्यों की मसीही व्यक्तित्व की परीक्षा (Christianized personality test) के द्वारा उनके आध्यात्मिक वरदानों की पहचान करती हैं। ऐसे टेस्ट मनुष्य के विभिन्न प्रकार के व्यक्तित्व के गुणों आधार पर आध्यात्मिक वरदानों की पहचान करते हैं। अब व्यक्तित्व के ये testटेस्ट मनुष्य के गुणों और कमजोरियों को जानने में मदद तो कर सकते हैं, परंतु परमेश्वर के कार्य के लिए जरूरी पवित्र आत्मा का सामर्थ यह नहीं हैं। पवित्र आत्मा का आलौकिक सामर्थ परमेश्वर के कार्य के लिए एक वरदान है, और इसे हमारे व्यक्तित्व में निहित कमजोरियों के बावजूद भी दिया जाता है। तो ऐसा व्यक्ति जो मसीही के बारे में बात करने से डरता हो, उसे ऐसा करने के लिए दिव्य रूप से सक्षम किया जा सकता है, पवित्र आत्मा के अधिकार के साथ जो दूसरों के मन में सच्चे मन फिराव को उत्पन्न कर सके (पतरस प्रेरितों के काम 2 में)।

तो जब हम परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं और यीशु के जीवन की ओर देखते हैं, हम पवित्र आत्मा में बपतिस्में के सत्यों को सीख सकते हैं क्योंकि वह यहां पृथ्वी पर हमारे जीवन और हमारी बुलाहट दोनों से संबंधित है।

1 . सिर्फ यीशु ही हमें पवित्र आत्मा में बपतिस्मा दे सकते हैं। और यह परमेश्वर के वचन में विश्वास के द्वारा प्रमाणित होता है।

यीशु से हमें लोगों को पानी में बपतिस्मा देने की आज्ञा मिली है (मत्ती 28:19) परंतु यीशु ही केवल एक हैं जो हमें पवित्र आत्मा में बपतिस्मा दे सकते हैं (मत्ती 3:11)। यहां तक कि जब प्रेरितों ने लोगों पर पवित्र आत्मा को प्राप्त करने के लिए अपने हाथों को रखा तब भी यीशु ही बपतिस्मा दे रहे थे।

प्रेरितों के काम की पुस्तक में प्रारंभिक कलीसिया के विवरण को जब हम पढ़ते हैं, तो हम देखते हैं कि कई बार पवित्र आत्मा लोगों पर बिना उन पर हाथों के रखे ही उतर आया था (प्रेरितों के काम 2:1-4 ; प्रेरितों के काम 10:44-46)। परंतु प्रारंभिक प्रेरितों को भी पवित्र आत्मा प्रदान करने के लिए दूसरों पर हाथ रखने का निश्चित अधिकार मिला था (प्रेरितों के काम 8:17;प्रेरितों के काम 19: 6)। मैं देखता हूँ कि परमेश्वर ने अपने सच्चे प्रेरितों में अपने अधिकार को मान्य करने के लिए ऐसा किया, और उन ढोंगियों को बेनकाब करने के लिए जो लालची थे और पाप के दास थे। एक उदाहरण हम जादूगर शमौन में देखते हैं (प्रेरितों के काम 8:17-24)।

हम प्रेरितों के काम में यह भी देखते हैं, कि अन्य भाषा का वरदान लगभग हमेशा पवित्र आत्मा की प्राप्ति के साथ आया। हम जानते हैं अन्य भाषा का वरदान पवित्र आत्मा के वरदानों में से कम से कम है (1 कुरिन्थियों 12:28)। तो अन्य भाषा में बात करना पवित्र आत्मा का सबसे बुनियादी वरदान है, और जिसका प्रयोजन था कि नया जन्म पाए विश्वासी इस आकस्मिक और भौतिक अनुभव द्वारा यह जान सकें कि पवित्र आत्मा के लिए उनकी प्रार्थना का उत्तर मिल गया है। परंतु उम्मीद यह की जाती थी कि इस प्रकार यह उनके विश्वास को बढ़ाने में और बेहतर वरदानों की धुन में रहने में उनकी मदद करेगा (1 कुरिन्थियों 12:31)।

तो क्या यह आज भी लागू होता है? क्या हमें भी हाथों के रखे जाने द्वारा पवित्र आत्मा का बपतिस्मा प्राप्त होता है? और अन्य भाषा का वरदान आमतौर पर पवित्र आत्मा के बपतिस्में के साथ मिल जाता है?

हमारे लिए आज पवित्र आत्मा हाथ रखे जाने द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। मैंने पिछली कई सदियों में से किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में नहीं सुना है जो लोगों पर हाथ रखे और इससे निश्चित रूप से उन्हें पवित्र आत्मा का बपतिस्मा प्राप्त हुआ हो। मेरा मानना है कि केवल प्रारंभिक कलीसिया में परमेश्वर के भेजे-गए-संतों (प्रेरितों) को यह विशेष सामर्थ प्राप्त था। हनन्याह प्रेरित नहीं था लेकिन वह भेजा हुआ था (प्रेरितों के काम 9:10-18) ।

इसके अतिरिक्त अन्यभाषा के वरदान से आज पवित्र आत्मा के वरदान के होने की पुष्टि नहीं होती। यह वरदान निश्चित रुप से सक्रिय है और आज कलीसिया में सहायक है। परंतु, जॉन वेस्ले, डी.एल. मूडी और चार्ल्स फिन्नी जैसे परमेश्वर के संत जो आज के किसी भी मसीही की तुलना में स्पष्ट रूप से पवित्र आत्मा से कहीं अधिक भरे हुए थे। अपनी पीढ़ी में उन में से हर एक की पवित्र आत्मा के सामर्थ से भरी सेवकाई थी। फिर भी इनमें से एक भी अन्य भाषा में बात नहीं करता था।

पवित्र आत्मा के प्राप्त करने और इसके प्रमाण के होने के बीच में अंतर क्यों है, इसका एक कारण है, कि अब हमारे पास परमेश्वर का पूरा वचन लिखित रूप में उपलब्ध है। बाइबल हमें वह सब बता देती है जो पवित्र आत्मा के बारे में और परमेश्वर के साथ जीवन जीने के बारे में हमें जानने की जरूरत है। पहली सदी के मसीहियों के पास यह उपलब्ध नहीं थी। तो हम जिन्हें आज बाइबल मिली है परमेश्वर के वचन पर, अपने भीतर पवित्र आत्मा के होने के आश्वासन के लिए (पूरे विश्वास के साथ), भरोसा कर सकते हैं ।

हमें देखना होगा कि मसीही जीवन में सब बातें हमारे मन के विश्वास पर टिकीं हैं।और हमारा विश्वास और आश्वासन मूल रूप से परमेश्वर के वचन को सुनने से आना चाहिए (रोमियों 10:17)। इसे किसी बाहरी प्रमाण के ऊपर आधारित नहीं होना चाहिए। वास्तव में हमारे भीतर की विकृत और दूषित प्रवृत्ति ऐसे प्रमाण की मांग करती है (मत्ती 12:39) और परमेश्वर का वचन एक अति तीव्र धार वाली तलवार के समान कार्य करता है जो गहरे में प्रवेश कर हमारे भीतरी भागों को छेदता है और हमारे मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है (इब्रानियों 4:12)। जैसे यह हमारे भीतर गहरे में प्रवेश करता है यह मन और आत्मा को अलग-अलग कर देता है और हमें यह दिखाता है कि क्या हम वास्तव में (अपनी आत्मा में) पवित्र आत्मा के बपतिस्में को धारण किए हुए हैं या यह (हमारे मन का) केवल एक भावनात्मक अनुभव था जिससे हम उत्साहित हो गए थे।

2. यीशु के बपप्तिस्में के बाद पवित्र आत्मा उन पर उतरा और सार्वजनिक सेवकाई के लिए दिव्य वरदानों से उन्हें अभिषिक्त किया।

जब उनका पानी में बपतिस्मा हुआ और पवित्र आत्मा उनके ऊपर आया उसके बाद यीशु ने 30 वर्ष की आयु में अपनी सार्वजनिक सेवकाई आरम्भ की। यीशु ने पहले से ही 30 वर्ष तक एक परिपूर्ण और निष्पाप जीवन जिया था - पवित्र आत्मा के सामर्थ द्वारा जो जन्म से ही उनके भीतर थी। परंतु पवित्र आत्मा अब "उनके ऊपर उतर आया" था, उन्हें अपने वरदानों के साथ सक्षम बनाने के लिए, जिन वरदानों की लोगों की मदद करने की उनकी सार्वजनिक सेवकाई के लिए उन्हें जरूरत पड़ने वाली थी। तो महत्वपूर्ण है कि इस बात को समझें कि परमेश्वर के परिपूर्ण और निष्पाप पुत्र को उनकी सार्वजनिक सेवकाई के लिए पवित्र आत्मा द्वारा विशेष रूप से अभिशिक्त किया गया। यह पिता का तरीका था और यीशु इसके प्रति समर्पित हुए। उस समय तक यीशु अपने माता पिता की आधीनता में रहने की बात से संतुष्ट थे बिना किसी सार्वजनिक सेवकाई के (लूका 2:51-52)।

हम सभी के साथ भी ऐसा ही है जो यहां पृथ्वी पर मसीह की देह के अंग हैं। अपने निजी जीवन में चाहे हम पवित्र आत्मा के सामर्थ द्वारा जीवन जी रहे हों, तो भी परमेश्वर की सेवा करने के लिए और दूसरों की मदद करने के लिए हमें पवित्र आत्मा के वरदानों से अभिषिक्त होने की जरूरत है। और हमें निरंतर पवित्र आत्मा के साथ बपतिस्मा पाने/ भरे जाने/ और परिपूर्ण होने की लालसा रखनी चाहिए। जिससे हम आत्मा से परिपूर्ण मसीह की कलीसिया के रूप में दूसरों की मदद कर सकें और ना कि - एक सामाजिक सेवा संगठन के रूप में।

3. प्रेरितों के काम 2 में चेलों के पवित्र आत्मा के साथ बपतिस्में / भरे जाने, ने उन्हें मसीह के लिए एकजुट खड़े होने में और निडर गवाह बनने में सक्षम किया। इसने चेलों को पाप पर जय उसी समय नहीं दे दी थी।

ऐसा कोई सबूत नहीं है कि पिन्तेकुस के दिन चेलों को उनके पापों पर फ़ौरन जय मिल गई थी। पवित्र आत्मा के बपतिस्में ने उन्हें जो दिया था वह था सुसमाचार संदेश का प्रचार करने के लिए एक अधिकार और एकता । इसके बाद, हम पौलुस को पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर एकजुटता में बरनबास के साथ खड़े होकर पापी लोगों के विरुद्ध अधिकार के साथ बोलते हुए देखते हैं (प्रेरितों के काम 13 :9-11)।

मैं इस अंतर को पवित्र आत्मा की परिपूर्णता से समझाता हूं जिसकी हमें परमेश्वर से अपनी निजी संबंध में जरूरत होती है। हमारे अपने जीवन में पाप पर जय पाने के लिए हमें अपने उद्धार के कार्य को डरते हुए और कांपते हुए पूरा करना चाहिए, अपने आप को पाप के लिए मरा हुआ समझना चाहिए, अपने मन को शरीर की बातों पर लगने से रोकना चाहिए और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होना चाहिए जो इस शरीर की स्वार्थी अभिलाषाओं को मारने में हमारी मदद कर सके। हम में से प्रत्येक पाप पर विजय में रह सकता है यदि हम अपने व्यक्तिगत दैनिक जीवन में पवित्र आत्मा को सर्वदा सुनते रहें।

लेकिन मसीह की देह के अन्य सदस्यों के साथ अपनी स्थानीय कलीसिया की सहायता करने के लिए, हमें पवित्र आत्मा में बपतिस्मा लेने की जरूरत है खुद को आशीषित करने की बजाय दूसरों को आशीषित करने के लिए।

परमेश्वर के सुसमाचार का प्रचार करने के लिए हमें दिव्य अधिकार की जरूरत है इस तरह कि वह दूसरों में मन फिराव और विश्वास को लेकर आए। इस के लिए, हमें जरूरत है कि पवित्र आत्मा हम पर उतर आए, ठीक वैसे जैसे यीशु पर पवित्र आत्मा आया था जब उन्हें पानी में बपतिस्मा दिया गया था। पवित्र आत्मा का अधिकार यह नहीं है कि निडर हो कर सरगर्मी पैदा करने वाले उपदेशों का प्रचार करें। और ना ही यह बहिर्मुखी बनना या मंच के भय पर काबू पाना है। बल्कि यह वह अधिकार है जिसकी हमें दूसरों को पाप के बंधन से मुक्त कराने के लिए जरूरत है, और इसे केवल पवित्र आत्मा के दिए अभिषेक से और उनके दिव्य वरदानों से प्राप्त किया जाता है जिस के साथ हम सेवकाई कर सकते हैं और दूसरों की सेवा कर सकते हैं।

अन्य विश्वासियों के साथ मसीह की देह के रूप में एकजुट होने के लिए और एकता की भावना के साथ सेवा करने के लिए भी हमें दिव्य सामर्थ की आवश्यकता है। एक स्थानीय कलीसिया में मसीहियों के समूह पर केवल पवित्र आत्मा का बपतिस्मा ही उन्हें एकता में संरक्षित होने में सक्षम बना सकता है, जब अंधकार की शक्तियां उन पर हमला करने और उन्हें विभाजित करने की कोशिश करती हैं। कोई और मानव तर्क या एक साथ सभाओं में समय बिता कर और यहां तक कि सबसे अधिक अभिषेक से भरे प्रचार भी यह नहीं कर सकते। याद करें चेलों ने क्या किया था जब यीशु को पकड़ लिया गया था? वे सब उन्हें अकेला छोड़ कर भाग गए! उस यीशु को जो परिपूर्ण मानव थे, उनके साथ 3 + साल बिताने और उनके चमत्कारों को देखने और उनकी शिक्षा को सुनने के बावजूद भी वे उन्हें छोड़ कर चले गए। लेकिन पिन्तेकुस के बाद चीजें बदल गईं। वे यीशु के लिए गवाहों का एक एकजुट समूह बन गए। "एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये हमने बपतिस्मा लिया (1 कुरिन्थियों 12:13)"।

तो हर स्थानीय कलिसिया में विश्वासियों के रूप में इस दिव्य अधिकार और मसीह की देह में इस एक-जुटता को प्राप्त करने के लिए हमें पवित्र आत्मा में बपतिस्मा लेने की जरूरत है।

अंत में, मुझे यह कहना है, कि पवित्र आत्मा के व्यकित्त्व और उनकी सेवकाई रहस्य हैं। तो जैसे हम परमेश्वर से ज्ञान और बुद्धि की अपेक्षा रखते हैं, हमें परमेश्वर के रहस्य को भी स्वीकार करना होगा।

लेकिन हम एक बात का यकीन कर सकते हैं: पवित्र आत्मा ही एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो हमारे भीतर में यीशु के शुद्ध जीवन का निर्माण कर सकते हैं। और पवित्र आत्मा ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो हमें अन्य विश्वासियों के साथ के मिलकर मसीह की देह के अंग के रूप में उनका कार्य करने के लिए, अधिकार और एकता प्रदान कर सकते हैं। स्वयं का कितना भी इंकार किया जाए पर यह हमारे भीतर ऐसा नहीं कर पाएगा। और ना ही किसी प्रकार का धर्मी जीवन या उज्ज्वल मानव विचार मिलकर ऐसा कर सकते हैं। इसलिए हम पवित्र आत्मा में डूबे रहने की प्यास को निरंतर बनाए रखें जिससे हम तेजी से यीशु को अपने जीवन में प्रतिबिंबित कर सकें।

आमीन!