अपने शत्रु को जानें

द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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अध्याय
यह पुस्तक और आप२ण्ण्...

इस पुस्तक में वे संदेश हैं जो जवान विद्यार्थियों के एक बड़े समूह को दिये गए थे। संदेशों को उनके मूल रूप में ही रखा गया है।

इन दिनों जवान लोग शैतान के हमले के निशाने पर हैं। शैतान यह निश्चित करना चाहता है कि आज के जवान अशुद्धता, कड़वाहट, इर्ष्या, स्वार्थी अभिलाषा और भौतिकवाद व्दारा भ्रष्ट किए जाएँ, और यदि इनमें से किसी के व्दारा नहीं तो कम से कम घमंड, स्व-धर्मी और पाखंड के व्दारा।

हमें शैतान के किसी भी योजना या छल से अनभिज्ञ नहीं रहना चाहिये।

शैतान हमारे प्रभु यीशु के व्दारा कलवरी पर हरा दिया गया था। अब हमारी बुलाहट यह है कि हम अंधकार की ताकतों पर प्राप्त उस विजय को जहाँ-जहाँ हम जाते हैं, वहाँ घोषित करें।

यदि आप ऐसा करने के इच्छुक हैं तो इस पुस्तक को पढ़ें।

अध्याय 1
आपको शैतान के विषय जानना क्यों ज़रूरी है?

परमेश्वर के वचन से मैं आपको कुछ ऐसी सच्चाईयाँ बताना चाहता हूँ जो आप जवानों ने पहले कभी नहीं जाना होगा। इसका संबध हमारी आत्माओं के शत्रु से है।

आपने उद्धार के विषय बहुत कुछ सुना है और इस विषय भी कि प्रभु यीशु मसीह ने हमारे लिये क्या किया है। परंतु आपने शैतान के विषय कुछ अधिक नहीं सुना होगा, क्योंकि अधिकांश प्रचारक शैतान के विषय प्रचार करना नहीं चाहते।

मैं शैतान के विषय बोलना चाहता हूँ, क्योंकि १ पतरस ५:८ में बाइबल हमें बताती है.

‘‘सचेत हो और जागते रहो; क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाले सिंह के समान इस खोज में रहता है कि किस को फाड़ खाए।’’

युद्ध के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक यह है कि आप अपने शत्रु को जानें। यदि आप कोई युद्ध लढ़ रहे हैं और आपके पास आपके शत्रु के विषय काफी जानकारियाँ हैं, तो वे युद्ध को काफी आसान बना देती हैं। यदि आप अपने शत्रु के विषय बहुत कम जानते हैं, तो युद्ध ज्यादा कठिण होगा।

या एक अन्य उदाहरणः यदि आपको पहले से ही पता चल जाए कि आपके परीक्षा में कौन से प्रश्न आनेवाले हैं, तो आपके लिये परीक्षा काफी आसान हो जाएगी।

यही बात मसीही जीवन में होती है। यदि आप अपने शत्रु को जानतें हैं, तो आप उस पर हावी हो सकते है और हर परीक्षा में जयवंत से भी बढ़कर हो सकते हैं।

ऐसे मसीही हैं जो मसीह का अनुकरण करने में जीवन भर संघर्ष करते रह जाते हैं परंतु असफल रहते हैं। मेरा ख्याल है कि इसके कारणों में से एक यह हो सकता है कि वे उनके शत्रु के विषय कुछ नहीं जानते।

हम सब जानते हैं कि चिकित्सा का अध्ययन महत्वपूर्ण है। हमारी ही पीढ़ी में चिकित्सा विज्ञान ने लाखों लोगों को बीमारियों से चंगा किया है और कई लोगों को असमय मृत्यु से बचाया है। यह इसलिये संभव हो सका क्योंकि वैद्यकीय वैज्ञानिकों ने मानवीय शरीर के शत्रुओं के विषय सबकुछ अध्ययन किया है और शरीर पर शत्रु के हमला करने के तरीकों का भी अध्ययन किया है। यह बैक्टीरिया जीवाणुओं और विषाणुओं के भी - जो मानवीय स्वास्थ के शत्रु हैं - गहन अध्ययन व्दारा संभव हुआ कि मनुष्य का स्वास्थ सुधरा है। वैज्ञानिकों ने ऐसी दवाईयाँ खोज निकाला है जो स्वास्थ के शत्रुओं को मार सकती हैं और उन्हें मानवीय शरीर के बाहर निकाल सकती हैं।

जो बात हमारे भौतिक शरीर के विषय सत्य है वही बात हमारी भीतरी आत्मा के विषय भी ज्यादा सत्य है। हमें शैतान के विषय भी अध्ययन करने की आवश्यकता है जो हमारी आत्मा का शत्रु है -यदि हम उसे अपनी आत्मा से निकालना चाहते हैं और आत्मा को परमेश्वर के लिये शुद्ध रखना चाहते हैं।

बायबल हमें शैतान के विषय बहुत कुछ बताती है। वास्तव में, जैसे ही परमेश्वर ने आदम और हव्वा को बनाया, उसके तुरंत पश्चात् बायबल शैतान के विषय कहती है। बायबल हमें इस विषय कुछ नहीं बताती कि आदम और हव्वा ने अदन की बारी में क्या किया। परंतु वह यह स्पष्टतः बताती है कि शैतान बारी में आग और पाप, और दुविधा को लाया और आदम और हव्वा को परमेश्वर से दूर कर दिया। आज संसार में सभी पाप और हिंसा और जो बुराईयाँ पाई जाती हैं उन सबका कारण अदन में शैतान का प्रवेश है उत्पत्ति ३)।

पुरूष और स्त्री की रचना के तुरंत बाद बायबल हमें शैतान के विषय क्यों बताती है? क्योंकि परमेश्वर चाहता है कि हम शैतान के विषय जानें ताकि हम सतर्क रह सकें। हमने देखा कि शैतान गर्जने वाले सिंह के समान घूमते रहता है और देखते रहता है कि किसे फाड़ खाए। यदि समाचार पत्र यह बताए कि प्राणी संग्रहालय से एक सिंह बच निकला है और आपके शहर की सड़कों पर फिर रहा है तो क्या यह जानना कि वह शहर के किस इलाके में है सहायक नहीं होगा ताकि आप उस क्षेत्र में जाने से बच सकें? निश्चित रूप से आप यही चाहेंगे। उसी प्रकार यदि आप उन क्षेत्रों को जान लें जहाँ शैतान क्रियाशील है, तो यह जानकारी आपको कई समस्याओं से बचा सकती है।

कई विश्वासी निराशा के दौर से बार-बार गुजरते हैं। हमें एक बात समझ लेना चाहिये : निराशा कभी परमेश्वर के पास से नहीं आती। यह हमेशा शैतान की ओर से ही आती है। इसी प्रकार कलह, हिंसा, घृणा, इर्ष्या, कड़वाहट, बुराई करना, शिकायत करना, कुड़कुड़ाना, अधिकारी के विरूद्ध विद्रोह और हर प्रकार की बुराइयों के अन्य रूपों का मूल शैतान है। हमारे शत्रु के विषय जानना अच्छा होता है ताकि हम अपने जीवन में इन बुराईयों पर विजय पा सकें।

नए नियम के शुरूवाती पृष्ठों में भी हम शैतान के विषय पढ़ते हैं। यीशु के पानी में बाप्तिस्मा और पवित्र आत्मा के व्दारा उसके अभिषेक किये जाने के तुरंत बाद हम जंगल में शैतान व्दारा उसका सामना और परीक्षा के विषय पढ़ते हैं। हमें शैतान व्दारा यीशु की परीक्षा के विवरण क्यों दिये गए हैं? ताकि हम अपनी आत्मा के दुश्मन के छल और बल के विषय अनभिज्ञ न रहें।

जवानों के लिये यह महत्वपूर्ण बात हैं कि वे शैतान के विषय जानें क्योंकि एक बार जब आप जान लेते हैं कि शैतान के विषय बायबल क्या सिखाती है, तो आप सावधान रहेंगे। और फिर आप उससे नहीं डरेंगे जैसा कि कई लोग डरते हैं। कई लोग शैतान से डरते हैं क्योंकि वे नहीं जानते की बायबल उसके विषय क्या सिखाती है। वे उन पर लोगों के व्दारा किये जानेवाले जादू-टोने से डरते हैं, क्योंकि वे नहीं जानते कि शैतान को हमारे प्रभु यीशु मसीह के व्दारा क्रूस पर हरा दिया गया था। यदि आपकी आंखें इस विषय खुल जाएँ कि प्रभु ने क्रूस पर हमारे लिये क्या किया है तो आप फिर कभी शैतान से नहीं डरेंगे।

कभी-कभी शैतान दुष्टात्माग्रस्त लोगों के व्दारा मसीही सभाओं में बाधा डालने की कोशिश करता है जैसा कि उसने आराधनालय में किया था जहाँ यीशु ने प्रचार किया था। परंतु ऐसा नहीं करने देना चाहिये। एक बार हमारे सभागृह में हमारी बायबल अध्ययन की सभा के मध्य, एक दुष्टात्माग्रस्त व्यक्ति साँप की तरह रेंगता हुआ मंच पर सामने पहुँचा और सभा में बाधा डालने की कोशिश करने लगा। जब दुष्टात्मा को यीशु के नाम से डाँटा गया तो वह व्यक्ति वहीं फर्श पर गहरी नींद से सो गया। जब बायबल अध्ययन समाप्त हो गया, और हम सबने अंतिम बार आमीन कहा, वह उठ गया। तब हमने उससे बात किया। हम शैतान को उसके किसी भी एजेंट व्दारा हमारे बायबल अध्ययन में दखल देने की अनुमति नहीं देनेवाले थे।

एक अन्य आम सभा में जो खुले क्षेत्र में हो रही थी, एक व्यक्ति पुलपिट के सामने आकर अचानक नाचने लगा। ठीक उसी समय जब मैं कुछ अति महत्वपूर्ण बात कह रहा था। जब मैंने अनुवादक के माध्यम से उसे बैठने को कहा, तो उसने मेरे आग्रह को ठुकरा दिया। फिर हमने उस व्यक्ति में समाई हुई दुष्टात्मा को यीशु के नाम से डाँटा और वह व्यक्ति जाकर शांत बैठ गया। हाँ, दुष्टत्माओं को आज्ञा का पालन करना ही होता है जब उन्हें यीशु के नाम से डाँटा जाता है, क्योंकि उन सब को यीशु के व्दारा कल्वरी पर हरा दिया गया है।

यह बात जानना महत्वपूर्ण है कि यीशु मसीह के सामर्थी नाम में शक्ति है, जिसने कल्वरी के क्रूस पर शैतान को हराया है। आपको शैतान से कभी डरना नहीं चाहिये। जब आप अपने शत्रु को नहीं जानते आप इस भय में जीते हैं कि वह आपको किसी न किसी तरह कुछ नुकसान पहुँचाएगा। परंतु यदि आप यीशु को अपने पूरे जीवन का प्रभु होने की अनुमति देते हैं तो वह आपको कभी छू नहीं सकता- क्योंकि शैतान से उसकी सारी शक्ति उस समय छीन ली गई थी जब यीशु ने उसे क्रूस पर पराजित किया था।

अध्याय 2
शैतान का मूल

हम जानते हैं कि शैतान भी अनंतकाल से विद्यमान है। बाइबल इस कथन से शुरू होती है, ‘‘आदि में परमेश्वर ने...’’ (उत्पत्ति १:१)। ये बायबल के प्रथम चार शब्द हैं। यह पिछले अनंतकाल को दर्शाते हैं - इतना पीछे का समय जिसे हम समझ भी नहीं सकते, क्योंकि हमारा मस्तिष्क थोड़े से समय को ही समझ सकता है। परंतु परमेश्वर समय की शुरूवात से भी पहले से है।

परंतु शैतान समय की शुरूवात के पहले से नहीं है। शैतान बनाया हुआ एक प्राणी है। परंतु क्या इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर ने बुरी चीज़ को बनाया? नहीं। यह बात असंभव है। परमेश्वर कभी बुरी चीज़ नहीं बनाता। वह जो कुछ बनाता है सिद्ध बनाता है। यहाँ तक कि जब आदम और हव्वा बनाए गए थे वे भी सिद्ध थे। उसी प्रकार, शैतान को भी जब बनाया गया था वह भी सिद्ध था। तब वह ‘‘भोर का चमकनेवाला तारा’’ या लूसिफर कहलाता था (यशायाह १४:१२)। अब उस नाम का बुरा अर्थ होता है। परंतु तब ऐसा नहीं था जब वह प्रथम सृजा गया था।

उसे परमेश्वर की आराधना में स्वर्गदूतों की अगुवाई करने के लिये प्रधान स्वर्गदूत के रूप में सृजा गया था। परमेश्वर ने उसे जब बनाया तब उसे कई अलौकिक योग्यताएँ और सामर्थ दिया था। परंतु फिर वह पाप में पड़ गया और शैतान बन गया।

परंतु शैतान के पास अब भी सामर्थ क्योंकि उसके पतन के पश्चात् परमेश्वर ने उससे सामर्थ वापस नहीं लिया था। हमें आश्चर्य होगा कि परमेश्वर ने शैतान से वह सामर्थ थी क्यों नहीं ले लिया था। इसका कारण यह है कि सामान्यतः परमेश्वर जो वरदान देता है उसे वह वापस नहीं लेता। यहाँ तक कि हम मनुष्य भी सामान्यतः हमारे व्दारा किसी को दिया गया तोहफा वापस नहीं लेते - चाहे एक दिन वह व्यक्ति हमारे विरूद्ध भी क्यों न हो जाए! शैतान उसकी शक्ति का उपयोग लोगों को नुकसान पहुँचाने के लिये करता है, और इसलिये जिन लोगों का उससे संपर्क होता है वे जादू-टोना के व्दारा अलौकिक कार्य कर सकते हैं।

शैतान के विषय लिखा है,

‘‘हे भोर के चमकने वाले तारे, तू कैसे आकाश से गिर पड़ा है (चमकनेवाला तारा- यह उसका नाम था)(यशायाह १४:१२)।

प्रधान स्वर्गदूत होने के कारण लूसिफर हमेशा परमेश्वर की उपस्थिति में रहता था। फिर वह क्यों गिर गया? इसका कारण आगे के दो पदों में दिया गया है (यशायाह १४:१३,१४)

‘‘तू मन में कहता तो था, मैं स्वर्ग पर चढूँगा; मैं अपने सिंहासन को इश्वर के तारागण से अधिक ऊँचा करूँगा,... मैं परमप्रधान के तुल्य हो जाऊँगा।’’ परंतु तू अधोलोक में उस गढ़हे की तह तक उतारा जाएगा।’’

लूसिफर को ज्यादा वरदान दिया गया था, वह ज्यादा सुन्दर था और उसके पास दूसरे स्वर्गदूतों की तुलना में कहीं अधिक अलौकिक योग्यताएँ थीं। फिर उसने सोचा, मेरे ऊपर केवल एक ही व्यक्ति है, और वह स्वयँ परमेश्वर है। मैं उस पर भी प्रभुता करूँगा।’’

यह सचमुच एक मूर्खतापूर्ण विचार था जो उसके हृदय में आया था। वह उसके सृजनहार के उपर कैसे उठ सकता था? परंतु शैतान ऐसा ही है, - उसके कई कायरें और विचारों में वह ऐसी ही मूर्खता करता है, यद्यपि वह बहुत होशियार भी है! संसार के कई होशियार लोग भी ऐसी ही मूर्खतापूर्ण बातें करते हैं, यह मैं आत्मिकता के विषय कह रहा हूँ। हम शैतान के विषय जितना अधिक अध्ययन करेंगे, हम पाएंगे कि उसके कई कार्यों में जो वह करता है कितना मूर्ख है।

परमेश्वर ने उसे जहाँ रखा था वह वहाँ खुश नहीं था। वह उस स्थान तक उपर उठना चाहता था जहाँ सब लोग उसकी आराधना किये होते! उसने ऐसा कहा नहीं था। उसने उसके हृदय में ऐसा सोचना शुरू किया था (पद १३)। परंतु परमेश्वर हमारे हृदयों को देखता है, और उसने लूसिफर के हृदय को देखा और देखा कि वह क्या योजना बना रहा था।

परीक्षा और पाप में अंतर है। परीक्षा या लालसा सबसे पहले विचारों में आती है। जब हम उस विचार से सहमत हो जाते हैं हम तब ही पाप करते हैं। दूसरी ओर यदि हम उस विचार को तुरंत तिरस्कृत कर दें तो हम पाप नहीं करते (याकूब १:१४,१५)।

उदाहरण के लिये, क्या आपने कभी दूसरों के सामने किसी व्यक्ति को नीचा गिराने का बुरा विचार किया है, ताकि आप बेहतर व्यक्ति दिख पड़ें?

क्या आप जानते हैं कि ऐसा विचार करनेवाला प्रथम व्यक्ति कौन था? वह लूसिफर था। वह किसे नीचे गिराना चाहता था? स्वर्गदूतों को नहीं क्योंकि वे तो पहले से ही उसके नीचे थे। वह परमेश्वर को ही नीचे गिराना चाहता था। स्वयँ को ऊँचा उठाने के लिये लोगों को नीचे गिराना ही शैतान की आत्मा का काम है।

मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि आपको अपने शत्रु के विषय जानना चाहिये? क्योंकि जब ऐसा विचार आपके मन में आए तो आपको जान लेना चाहिये कि शैतान आप में प्रवेश करना चाह रहा है। गर्जनेवाला सिंह आपको फाड़ने पर है।

सर्वोच्च प्रधानदूत को शैतान बनने में ज्यादा वर्ष नहीं लगे थे। नहीं, केवल कुछ ही क्षण लगे थे। वह धीरे-धीरे, एक-एक कदम करके नहीं गिरा। नहीं, वह बिजली की नाई गिरा जैसे यीशु ने कहा - एक क्षण में (लूका १०:१८)। एक क्षण पहले वह चमक रहा था। जैसे ही उसने परमेश्वर के तुल्य होने के विचार को जगह दिया, वह तुरंत शैतान बन गया।

एक स्वर्गदूत को शैतान बनने के लिये कितना समय लगता है? एक सेकेन्ड भी नहीं। बस एक पल ही लगता है। एक अच्छे व्यक्ति को शैतान के समान बनने में कितना समय लगता है? एक पल। बस यही बात महत्वपूर्ण है। इसे याद रखें।

एक और अनुच्छेद जो शैतान के मूल के विषय बताता है वह यहजे केल २८ है। वहाँ हम शैतान को ‘‘सोर का राजा’’ कहते हुए देखते हैं (यहेजकेल २८:१२)। इस संसार के प्रशसकों के पीछे शतै ानी शक्तियाँ हैं और उस समय शैतान स्वयँ सोर के राजा के पीछे था। और परमेश्वर ने शैतान से कहा जो उस मानवीय प्रशासक में समाया हुआ था।

परमेश्वर ने शैतान को उस समय की याद दिलाया जब वह अदन के बाग में था (यहेजकेल २८:१३)। यह बात हमें दिखाती है कि लूसिफर वहाँ आदम और हव्वा के पहले से था। और परमेश्वर ने शैतान को याद दिलाया कि ‘‘जिस दिन से तू सिरजा गया, और जिस दिन तक तुझ में कुटिलता न पाई गई, उस समय तक तू अपनी सारी चाल-चलन में निर्दोष रहा’’(पद १६,१७)।

लूसिफर का हृदय सबसे पहले उसकी सुन्दरता के कारण घमंड से भर गया। क्या जब दर्पण में देखते हैं तो यह जानने के बाद कि आप दूसरों की तुलना में कितने सुन्दर हैं यह सोचने पर आप भी हृदय में घमंड करते हैं? इस बात से सावधान रहें। आपको दिये गए अच्छे-अच्छे वरदानों के लिये परमेश्वर को धन्यवाद दें। अच्छा दिख पड़नेवाला चेहरा प्राप्त करने में कोई बुराई नहीं है। परंतु उसके लिये घमंड करना बुरा है। क्योंकि ऐसा करने के व्दारा आप शैतान के लिये व्दार खोलते हैं।

लूसिफर के घमंड का दूसरा कारण उसकी चतुराई थी। क्या आप जानते हैं कि सृजे गए सभी प्राणियों में सबसे बुद्धिमान शैतान ही है? बुद्धिमान होने में कोई बुराई नहीं है। हम अपनी बुद्धि का उपयोग परमेश्वर की महिमा के लिये कर सकते हैं। परंतु उसके विषय घमंड करने का हमें कोई अधिकार नहीं है। परमेश्वर की सेवा करने के लिये हमें बुद्धु नहीं रहना चाहिये। नहीं, अपनी बुद्धिमानी और सुन्दरता के लिये परमेश्वर को धन्यवाद दें, परंतु किसी भी तरह उसके विषय घमंड न करें।

लूसिफर के अहंकार का तीसरा कारण यह था कि वह सृजे गए सभी प्राणियों में सर्वोच्च था। वह यह न समझने की गलती कर बैठा कि ये तीनों बातें जिनके विषय वह घमंड करता था - उसकी सुन्दरता, उसकी चतुराई और उसका सर्वोच्च स्थान - ये सभी उसे परमेश्वर की ओर से वरदान हैं। और इसी बात को कई लोग, कई मसीही भी समझ पाने में गलती कर जाते हैं। और इसी तरह शैतान उनके जीवन में स्थान बनाता है और अंततः उन्हें नष्ट कर डालता है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि संसार के हर पाप की उत्पत्ति घमंड से हुई। कत्ल या व्यभिचार से नहीं परंतु घमंड के व्दारा। और इसीलिये उद्धार यीशु के नम्र होने के व्दारा आया। नम्रता का मार्ग ही शैतान की योजनाओं और छल से छुटकारे का मार्ग है।

लूसिफर में हम असंतोष की आत्मा के उद्गम को भी देखते हैं जो व्यक्ति के जीवन में पाया जाता है। यदि हम परमेश्वर के दृष्टिकोण से इस संसार को देखें तो हम संसार को चिड़चिड़ाहट शिकायत, कुड़कुड़ाहट से भरे लोगों से भरपूर पाएंगे - उस आत्मा से जो उन्होंने शैतान से पाया है।

अधिकारी के विरूद्ध विद्रोह की आत्मा एक और बात है जो लुसिफर के भीतर से ही उत्पन्न हुई। लूसिफर के ऊपर केवल एक ही अधिकारी था और वह परमेश्वर था। और उसने अधिकारी के विरूद्ध विद्रोह किया। वह अधिकारी के भी उपर जाना चाहता था और परमेश्वर को नीचे गिराना चाहता था। क्या हम इस आत्मा को मनुष्य जाति में पाते हैं? अधिकारी के खिलाफ विद्रोह की आत्मा ही हैं जिसने देशों में कई परिवर्तन किए और कारखानों में हड़ताल करवाया है। और इन दिनों में, हम पाते हैं कि विद्रोह की आत्मा विद्याथियों में भी पाई जाती है - न केवल कॉलेज के छात्रों में परंतु स्कूली छात्रों में भी और यहाँ तक कि घर में छोटे बच्चों में भी पाई जाती है।

ये सब चिन्ह इस बात को दर्शाते हैं कि संसार नाश हो रहा है। शिक्षकों, माता-पिता और कलीसियाओं में भी बड़े भाइयो के प्रति अनादर हर जगह सामान्य बात हो चली है। यह बात कभी न भूलें कि यह वही आत्मा है जिसने स्वर्गदूतों को दुष्ट आत्मा में बदल दी थी। और आज भी यह आत्मा किसी अच्छे लड़के या लड़की को दुष्ट बना सकती है।

परमेश्वर किसी को भी दुष्ट नहीं बनाता हम स्वयँ को तब दुष्ट बनाते हैं जब हम शैतान की आत्मा के लिये उपलब्ध कराते हैं।

और अब लूसिफर के विषय एक अंतिम विशेषता को देखें। जब वह गिरा तो वह अकेला नहीं गिरा। उसके साथ समूह था। प्रकाशितवाक्य १२:४ में हम पढ़ते हैं कि उसने अपने साथ एक तिहाई स्वर्गदूतों को भी खींच लिया। वे भी मूर्खतापूर्ण रीति से उसके घमंड, असंतोष और विद्रोह की आत्मा से जुड़ गए। आज भी यही बात देखने को मिलती है। जहाँ एक व्यक्ति बुरा है वह अकेले ही बुरा रहना नहीं चाहता। वह दूसरों को भी उसके दुर्भाग्य और बुराई में अपने साथ खींचना चाहता है। व्यक्ति में कड़वाहट की एक जड़ अन्य कई लोगों को भी यदि वे सतर्क न रहें तो अशुद्ध कर सकती हैं (इब्रानियों १२:१५)।

अध्याय 3
शैतान का छल

उत्पत्ति के ३ रे अध्याय में हम देख सकते हैं कि शैतान किस तरह हमला करता है। वह बताता है कि सर्प सभी प्राणियों में सबसे धूर्त था। शैतान ने सर्प में प्रवेश किया। ठीक वैसे ही जैसे गदारा के एक मनुष्य में से यीशु के व्दारा निकाली हुई दुष्टात्माएँ सुअरों में प्रवेश कर गई थीं। और शैतान ने सर्प के माध्यम से हव्वा से पूछा, ‘‘क्या सच है कि परमेश्वर ने कहा, ‘तुम इस वाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना?’’ जब हव्वा ने कही कि यही सच है कि परमेश्वर ने ऐसा ही कहा था, तब शैतान ने परमेश्वर के वचन को चुनौती दिया और कहा, ‘‘तुम निश्चय ही नहीं मरोगे।’’

ध्यान दें कि शैतान किस तरह आता है। सर्वप्रथम वह परमेश्वर के वचन को ही प्रश्न चिन्ह लगाता है। इसी तरीके से वह हमारे पास भी आता है। ‘‘क्या सचमुच परमेश्वर ने हमें ऐसा न करने को कहा है?’’ वह प्रश्न करता है, ‘‘ऐसा करने में बुराई ही क्या है? बायबल की ये आज्ञाएँ पुराने तरीके की हैं। वे उस समय और संस्कृति के लिये लिखी गई थीं, जिसमें पौलुस रहता था। उनका २०वीं शताब्दी में हमारे व्दारा पालन किया जाना जरूरी नहीं है,’’ आदि बातें वह कहता है।

हम जवानों और बुजुर्गों को भी अक्सर यही प्रश्न पूछते हुए पाते हैं और इस बात को जरा भी नहीं समझ पाते कि वे शैतान के प्रवक्ता बन रहे हैं। यहाँ तक कि जब उनका विवेक भी उन्हें कहता है कि कुछ गलत है तब भी वे अपना तर्क प्रस्तुत करते हैं और परमेश्वर ने उन्हें जो न करने को कहा है उस पर प्रश्न उठाते हैं।

जब कोई बात परमेश्वर के वचन में न करने के लिये कही गई है या निषिद्ध की गई है, तो हम यह निश्चित कर सकते हैं कि इसके पीछे परमेश्वर का कोई उचित कारण ह।ैं परंतु शैतान हमेशा प्रश्न करता है कि क्या सचमचु परमश्े वर का यही उद्देश्य है? और हमारे व्दारा परमेश्वर के उद्देश्य पर प्रश्न चिन्ह लगवाने के पीछे शैतान का क्या उद्देश्य होता है? ठीक वही उद्देश्य होता है जो हव्वा के विषय था - कि हम प्रभु से दूर जाँए और परमेश्वर को मजबूर करें कि वह हमारा तिरस्कार करे और हमें उसके सामने से निकाल दे जैसे उसने आदम और हव्वा को उसकी उपस्थिति से निकाल दिया था।

एक बार यीशु ने कहा, कि शैतान चोर है। शैतान पैसे नहीं चुराता क्योंकि वह जानता है कि धन की अनंतकाल में कोई कीमत नहीं है। वह केवल वही चुराता है जिसका अनंतकालीन महत्व होता है -सबसे पहले मनुष्य की आत्मा। आगे यीशु ने कहा कि शैतान जो चोरी करता है, वह उसे नाश करता है (यूहन्ना १०:१०)। इसके विपरीत यीशु ने यह भी कहा, कि वह स्वयँ हमें भरपूरी का जीवन देने को आया।

क्या यह आश्चर्यजनक बात नहीं है कि ५५०० मिलियन लोगों के संसार में ९० प्रतिशत से ज्यादा लोग शैतान के झूठ पर विश्वास करना पसंद करते हैं और यीशु मसीह पर विश्वास करने और उसके वचन का पालन करने की बजाय शैतान की आज्ञापालन करना बेहतर समझते हैं? यहाँ हम देख सकते हैं कि शैतान ने लोगों में कितना बड़ा कार्य किया है कि लोग इस बात से सहमत हो जाते हैं कि परमेश्वर के वचन की आज्ञा उल्लंघन करना कोई गंभीर बात नहीं है।

जब लोग पहली बार शराब पीते, धुम्रपान करते या हीरोइन या कोकीन जैसे मादक पदार्थों का सेवन करते हैं तब क्या आप ऐसा सोचते हैं कि शैतान उन्हें चेतावनी देता होगा कि यह बात उनके शरीरों और दिमाग को नष्ट कर देगी और अंत में उनकी आत्माओं को अनंतकाल के लिये नर्क में भेज देगी? नहीं। वह उन्हें सच नहीं बताता - क्योंकि ऐसी बात सुनने में अच्छी नहीं लगेगी। वह उनसे कहता है कि इसे आजमाने के पश्चात् वे उत्साह महसूस करेंगे। यही बात शैतान ने हव्वा से भी कही थी।

और इसी तरह शतै ान आज संसार में करोड़ों लागे ों को धोखा दे रहा है। चाहे वह बात अनैतिकता की हो या दूसरों की कोई वस्तु चुराने की, शैतान कहता ह,ै ‘‘इसमें बरु ाई क्या है? १९वी शताब्दी के पुराने विचारों में मत पड़ो’’ आदि। एसे े विचारों से सावधान रहें जो शैतान आपके मन में डालता है। उसका उद्देश्य आपको नाश करना है।

उत्पत्ति ३:६ में हम देखते हैं कि जैसे ही हव्वा ने देखी कि उस पेड़ का फल खाने में अच्छा था, उसका शरीर उसके लिये लालायित हो उठा। उसे मना किये गए फल के २०वीं शताब्दी में कई रूप हैं। हम अपने शरीरों को उसी ओर आकर्षित होते हुए पाएँगे जिनके विषय परमेश्वर ने हमें मना किया है।

परमेश्वर का वचन आगे कहता है कि हव्वा ने उस वृक्ष को उसकी आखों के लिये मनभाऊ भी पायी। हमारी आखें भी उन कई चीजों को मनभाऊ पाएंगी जिन्हें देखने के लिये परमेश्वर ने हमें मना किया है।

आगे वचन कहता है कि हव्वा ने फल को बुद्धि देने के लिये चाहने योग्य भी पाई। उसने फल को ऐसे दृष्टिकोण से देखी जो उसे बुद्धिमान भी बना सकता है। हमारा मन ऐसे ही कई बातों की ओर आकर्षित हो जाता है जिसके विषय परमेश्वर ने हमें मना किया है। आपको उस समय सावधान रहने की आवश्यकता है जब आपका शरीर और विचार ऐसी बातों में आकर्षित हो जाए जिसे आपका विवेक गलत ठहराता है।

मुझे विश्वास है कि उस क्षण हव्वा के विवेक ने उसे कहा होगा कि वह जो करने जा रही है वह गलत है। वह अच्छी तरह जानती थी कि परमेश्वर ने उसे उस फल को खाने से मना किया है। परंतु उसने क्या की? क्योंकि उसका शरीर और मन दोनों उस फल को पाना चाहते थे, उसने स्वयं को इस बात से संतुष्ट कर ली कि उस फल को खाने में कोई बुराई नहीं है। इसलिये वह उसके विवेक के विरूद्ध जाकर फल को ली और खाई।

हव्वा से पाप करवाने के व्दारा शैतान को क्या प्राप्त हुआ? कई वर्षों पहले वह स्वयँ परमेश्वर की उपस्थिति से गिर गया था। एक बार जब वह दुष्ट बन गया तो उसने दूसरों को भी दुष्ट बनाने की सोचा। यही बात मनुष्य जाति पर अब भी लागू होती है। जब कोई व्यक्ति कुछ बुरा काम करता है तो वह उस बुराई में अकेले रहना पसंद नहीं करता। वह चाहता है कि दूसरे भी वही दुष्टता करें।

मैं आप सभी जवानों को प्रोत्साहित करूँगा कि आप नीतिवचन की पुस्तक को पढें। वह पुस्तक आपको कई खतरों से बचाएगी।

नीतिवचन १:१० कहती है, ‘‘यदि पापी लोग तुझे फुसलाएँ तो उनकी बात न मानना।’’

शैतान दुष्ट बन गया और उसने हव्वा को भी अपने साथ खींचना चाहा। और जब हव्वा उस आत्मा से जहरीली हो गई तो उसने उसके पति को भी उसके साथ गिराना चाहा। इसलिये उसने और एक फल लेकर अपने पति को दी। इसी प्रकार सदियों से इस संसार में बुराई फैल गई। एक व्यक्ति दुष्ट बनता है और अपने साथ दूसरे को भी खींच कर गिरा देता है।

इसीलिये हमें हमेशा सतर्क रहने की जरूरत है। यदि शैतान हमेशा दहाड़ते हुए आता है तो उसे पहचानना आसान होता है। परंतु वह हमेशा ऐसे नहीं आता। कभी-कभी वह मधुर और सुंदर ‘‘ज्योतिर्मय स्वर्गदूत’’(२ कुरि.११:१४)के समान आता है। ऐसे समय हमें सचमुच सावधान रहने की जरूरत है।

उस समय पर विचार करें जब यीशु ने उसके चेलों से कहा कि वह क्रूस पर दुःख उठाने और मरने को जा रहा है, तो पतरस ने कहा, ‘‘हे प्रभु, परमेश्वर न करे! तेरे साथ ऐसा कभी न होगा।’’ तब यीशु ने पतरस को यह कहकर डाँटा, ‘‘हे शैतान, मुझसे दूर हो’’ (मत्ती १६:२३)। उसने समझ लिया कि क्रूस की मृत्यु को टालने की सलाह शैतान का विचार था, यद्यपि वह विचार पतरस की ओर से आया था।

यीशु जानता था कि उसे क्रूस पर जाना होगा क्योंकि वही एक मार्ग था जिससे मनुष्य के पाप क्षमा किये जा सकते थे। पतरस यह बात नहीं जानता था। पतरस का उद्देश्य अच्छा था, परंतु वह नहीं जानता था कि उस क्षण शैतान ही उसके जरिये बोल रहा था और यीशु को क्रूस पर जाने से रोकने की कोशिश कर रहा था। जी हाँ, शैतान हमारे करीबी मित्र के व्दारा भी हमारे पास आ सकता है और ऐसी सलाह दे सकता है जो तरसपूर्ण और अच्छी तथा मानवतापूर्ण दिख पड़ेगी। इसलिये हमें हमेशा सतर्क रहना चाहिये।

एक बात की हमें जो लालसा करनी चाहिये वह है संवेदनशील विवेक -ऐसा कुछ जो हमसे बलपूर्वक जोर से कहता हो चाहे हम छोटी सी भी गलती क्यों न करें।

एक छोटे लड़के के पैर के तलवे को देखें। वे कितने मुलायम और नाजुक होते हैं! उनकी तुलना आपके पैरों से करें। कितना अंतर है, आपके तलवे काफी सख्त हो चुके हैं। यही बात आपके विवेक के विषय भी हो सकती है।

जब आपका जन्म हुआ था आपके पास संवेदनशील विवेक था - ठीक वैसे ही जैसे उस बच्चे के पैर के तलवे, छोटी सी छोटी गलती के विषय संवेदनशील जो आप करते हैं। परंतु जब आप बड़े हुए, आपने अपने माता-पिता से झूठ बोला, उन्हें धोखा दिया, चीज़ें चुराई, कई प्रकार से लोगों को चोट पहुँचाया, परीक्षाओं में नकल किया, अपने माता-पिता के विरूद्ध विद्रोह किया और कई बुरे काम किये। इस प्रकार आपने अपने विवेक को नजरअंदाज किया और विवेक को ठेस पहुँचाया, जब तक वह पाप के विषय सख्त और असंवेदनशील न हो गया - जैसे आपके पैर के तलवे।

एक बार पौलुस ने कहा, ‘‘हम उसकी (शैतान) युक्तियों से अनजान नहीं’’ (२ कुरि.२:११)।

शैतान बड़ी चालाकी से हव्वा के पास आया, उसे ऐसी चीज से लुभाया जो काफी आकर्षक दिखती थी, और अंत में उसे नष्ट कर दिया। आज शैतान हमें भी नाश करने के लिये इसी तरह आता है न केवल उन बातों के साथ जिसके विषय मैंने अभी अभी कहा, परंतु शैतानी आराधना के कुछ सीधे रूप केा लेकर भी आता है। वह लोगों को कुछ खेल जैसे ‘‘डंजियन एण्ड ड्रॅगन’’, ओझा फलक, जादू-टोने, ज्योतिष शास्त्र, कुंडली, हस्त-रेखा पढ़ने और यहाँ तक कि रॉक म्यूजिक तथा ड्रग्स व्दारा भी परमेश्वर से दूर ले जाता है। शैतान लोगों के विचारों में पहुँचने के लिये हर संभव तरीके अपनाता है।

मूर्तिपूजा भी लोगों को शैतान के संपर्क में लाती है, क्योंकि हर मूर्ति के पीछे एक दुष्ट आत्मा होती है - चाहे वह मूर्ति ‘‘बालक यीशु’’ या ‘‘मरियम’’ की या किसी और की भी क्यों नहीं (देखें १ कुरि.१०:१९,२०)। इसीलिये परमेश्वर मूर्ति पूजा से नफरत करता है और हमें उससे पूरी तरह दूर रहने को कहता है (निर्गमन २०:४,५; १ कुरि. १०:१४; १ यूहन्ना ५:२१)

शैतान जवानों के मन को बुरे विचारों के व्दारा भी प्रदूषित करता है जैसे चित्रपट, टीवी, कार्यक्रम और वीडियो फिल्म। जब आप परदे पर उन यौनसंबधों आरै हिंसाओं को देखते हं,ै तो क्या आपको उनसे संबधित स्वप्न नहीं आते? आपको डरावने और गंदे दोनों प्रकार के सपने आते हैं। इस प्रकार शैतान आपके मन में डरावनी और अशुद्ध बातों को प्रवेश कराता है ताकि वह आपके परू े जीवन को धीर-े धीरे नष्ट कर दे।

यदि हव्वा स्वयँ ही परमेश्वर से उस समय मदद मांगती जब वह उस वृक्ष के विषय आकर्षित हो गई थी, तो कहानी कुछ और रही होती।

१९ वर्ष की आयु में जब मैं मसीही बना, तो मैंने जाना कि मुझे सिनेमा नहीं जाना चाहिये। परंतु एक दिन मेरे मित्र मेरे पास आए और उन्होंने मुझे उनके साथ जलसेना की छावनी के सिनेमा घर में सिनेमा देखने के लिये चलने को कहा। उस समय मेरे पास इतना साहस नहीं था कि मैं उनसे कह दूँ कि मै एक मसीही बन गया हूँ, इसलिये मैं नहीं आऊँगा। इसलिये मैं उनके साथ सिनेमाघर तक गया। परंतु रास्ते भर मैं चुपचाप प्रभु से कह रहा था, ‘‘प्रभु कृपया मेरी मदद करें। मुझे इस परिस्थिति से बचाएँ। मैं जाना नहीं चाहता।’’ जब हम अंततः सिनेमा घर पहुँचे वहाँ एक सूचना टंगी हुई थी कि उस दिन वह फिल्म नहीं दिखाई जाएगी क्योंकि उन्हें वह फिल्म उपलब्ध नहीं हो सकी थी। मेरी प्रार्थना का इस अद्भुत रीति से उत्तर देने के लिये मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया। परंतु उसी समय परमेश्वर ने मुझसे कहा, ‘‘मैने इस बार तुम्हारी मदद किया है। परंतु अगली बार तुम्हें स्वयं ही ‘‘नहीं’’ कहना होगा। अगली बार जब मेरे मित्र मेरे पास आए तब मैं परमेश्वर के इस अद्भुत उत्तर से इतना प्रोत्साहित था जो मेरी प्रार्थना के बाद मुझे मिला था, कि मैं उन लोगों को बड़ी सरलता से ही ‘‘ना’’ कह सका।

जब परमेश्वर अदन की वाटिका में आया और आदम और हव्वा को उनके पाप से अवगत कराया, तो उसने शैतान को भी यह कहकर शापित किया, ‘‘और मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश के बीच में बैर उत्पन्न करूंगा; वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा’’ (उत्पत्ति ३:१५)। यह बात कल्वरी पर पूरी हुई। यीशु मसीह एक स्त्री से उत्पन्न हुआ उसने शैतान के सिर को कल्वरी पर कुचल दिया और शैतान ने उसकी एड़ी को कीलों व्दारा डसा जो यीशु के पैरों में ठोंके गए थे।

और इस प्रकार हम देखते हैं कि उत्पत्ति का ३रा अध्याय इस आशा के संदेश के साथ खत्म होता है कि शैतान मनुष्य पर हमेशा प्रभुता नहीं कर सकेगा। यीशु आया और उसने शैतान को हरा दिया और अब वह सभी मनुष्यों को शैतान की शक्ति से छुड़ा सकता है।

शैतान अब आपके जीवन में कोई प्रभुत्व नहीं रख सकता। आपका वह विवेक जो कठोर बन गया था फिर से बालक के समान संवेदनशील बन सकता है; यह तब हो सकता है जब आप यह विश्वास करेंगे कि यीशु मसीह क्रूस पर मरा, और उसने आपके ऊपर शैतान की सामर्थ को पूरी तरह हरा दिया है।

बायबल शैतान को दोष लगाने वाला कहती है (प्रकाशितवाक्य १२:१०)। वह आपको आपकी पिछली असफलताओं और पापों के विषय दोषी ठहराता रहेगा, यद्यपि आपने उन्हें परमेश्वर के सामने सौ बार मान भी लिया होगा। शैतान के आरोपों पर विजयी होने का एकमात्र तरीका है कि आप अपने सारे पापों को परमेश्वर के सामने स्वीकार करें यह विश्वास करते हुए कि परमेश्वर आपको उस लहू में पूरी तरह शुद्ध करने की प्रतिज्ञा को पूरी करता है जिसे यीशु ने आपके पापों के लिये कल्वरी के क्रूस पर बहाया था (देखें १ यूहन्ना १:७ और ९)। दोष लगाना यह परमेश्वर के बच्चों को सताने का शैतान का मुख्य तरीका है। उन पर विजय पाने हेतु आपको परमेश्वर के वचन को जानना जरूरी है।

यहाँ तक कि आपको अपने पापों को परमेश्वर के सामने दो बार भी अंगीकार करने की जरूरत नहीं है। जैसे ही आप एक बार अपने पापों को मान लेते हैं, परमेश्वर आपको तुरंत क्षमा करने में विश्वासयोग्य है। उसी तरह आप भी शैतान पर विजय पा सकते हैंः यह कहते हुए कि आपके अतीत के सारे दाग यीशु के लहू के व्दारा धो दिये गए हैं। (देखें प्रकाशितवाक्य १२:११)।

यीशु आपके केवल पापों को क्षमा करने के लिये ही नहीं मरा परंतु आपको शैतान के शक्ति के बंधनों से छुड़ाने के लिये भी मरा जिन्होंने आपको कई बुरी आदतों के व्दारा गुलाम बना रखा है। याद रखें कि शैतान का सिर आपके उद्धारकर्ता व्दारा पूरी तरह कुचल दिया गया है।

हालेलूय्याह।

अध्याय 4
परमेश्वर ने शैतान को नष्ट क्यों नहीं किया

वह कौनसी बात है जो मनुष्य को जानवर के स्तर तक गिरा देती है?

यह तब होता है जब वह केवल उसके शारीरिक जरूरतों और संसारिक अस्तित्व में ही रूचि रखता है। एक जानवर की रूचि किस बात में होती है? भोजन, नींद और यौन-संतोष- बस यही सब कुछ है। और जब एक मनुष्य भी केवल इन्हीं बातों में रूचि रखता है, तब हम कह सकते हैं कि वह जानवर के स्तर तक गिर चुका है।

परंतु परमेश्वर ने मनुष्य को मात्र जानवर जैसे जीने के लिये नहीं बनाया। शिक्षा मनुष्य को जानवर से बेहतर नहीं बनाती, क्योंकि यहाँ तक कि पढ़े लिखे लोग भी कभी-कभी जानवरों जैसा व्यवहार करते हैं।

हमारा एक अंग है जो हमारे मन से भी ज्यादा गहरा है। इसे आत्मा कहते हैं। हमारी आत्मा हमें परमेश्वर के विषय बोध कराती है।

जब परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया तो उसने उसे स्वतंत्र इच्छा के साथ बनाया। उसने मनुष्य को चुनाव करने की स्वतंत्रता भी दिया।

जब शैतान को स्वर्गदूत के रूप में बनाया गया था, वह भी चुनाव की स्वतंत्रता के साथ बनाया गया था। इसीलिये वह कह सका, ‘‘मैं अपने सिंहासन को इश्वर के तारागण से अधिक ऊँचा करूँगा।’’

परमेश्वर ने और भी कई बातों की निर्मिती किया जिनके पास स्वतंत्र इच्छा नहीं थी। उदाहरण के लिये तारे और ग्रह। हमारे सौर मंडल में ग्रहों ने कभी हजारों वर्षों में भी परमेश्वर के नियमों का उल्लघंन नहीं किया है। क्यों? क्योंकि उनके पास इच्छा की स्वतंत्रता नहीं होती। और ग्रह परमेश्वर की संतान नहीं बन सकते। किसी भी व्यक्ति को परमेश्वर की संतान बनने के लिये उसे उसकी मर्जी के अनुसार चुनाव करने की इच्छा के साथ बनाया जाना होगा।

परंतु चुनाव करने की स्वतंत्रता में एक खतरा यह है कि आप इसका उपयोग स्वयं को प्रसन्न करने और परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करने के लिये कर सकते हैं। परंतु परमेश्वर यह जोखिम उठाने के लिये तैयार था क्योंकि वह आज्ञाकारी संतान चाहता था। और यही क्षेत्र है जहाँ शैतान भी परमेश्वर के उद्देश्य को पूरा करता है।

संसार में सारी गड़बड़ियाँ, दुविधाएँ, बीमारियाँ और बुराइयाँ मनुष्य के व्दारा परमेश्वर की आज्ञा के उल्लंघन औश्र अदन की वाटिका में शैतान की बात सुनने के ही परिणाम हैं।

तब हम यह प्रश्न पूछ सकते हैं : ‘‘यदि संसार की सभी समस्याओं की जड़ शैतान ही है तो परमेश्वर ने उसे नष्ट क्यों नहीं किया?’’

हाँ, मैं आशा करता हूँ कि हम कम से कम यह विश्वास तो कर सकते हैं कि परमेश्वर का ज्ञान हमसे ज्यादा है। हमारी बुद्धि पानी के एक छोटे कप के समान है, जबकि परमेश्वर की बुद्धि एक समुद्र के समान है। हम इस बात का निश्चय कर सकते हैं कि यदि परमेश्वर ने शैतान के अस्तित्व की अनुमति दिया है तो इसके पीछे कोई सही कारण भी होगा।

वास्तव में शैतान कि क्रियाओं के व्दारा परमेश्वर बहुत से कार्यों को करता है। इसीलिये उसने उसे अस्तित्व में रहने की अनुमति दिया।

संसार में परमेश्वर शैतान को इतनी बुराईयाँ, नुकसान और क्लेश क्यों करने देता है इसका एक कारण यह है कि लोग परमेश्वर की ओर फिरें। क्या आप इस बात को मानते हैं कि यदि पृथ्वी पर जीवन अति आरामदायक, रोग रहित होता, गरीबी न होती, मुसीबतें न होती तो शायद ही कोई इश्वर के विषय सोचा होता।

परमेश्वर जिस बात की भी अनुमति देता है उसके पीछे कोई न कोई उद्देश्य होता है। पुराने नियम में हम पढ़ते हैं कि जब जंगल में इस्त्राएलियों ने परमेश्वर को भुला दिया, उन्हें जहरीले सापों ने अचानक काट लिया था। वे तुरंत परमेश्वर की ओर फिर गए। और परमेश्वर ने उन्हें चंगा किया (गिनती २१)। क्या यह अच्छी बात नहीं थी कि उन जहरीले सापों के कारण लोग परमेश्वर की ओर मुड़े?

मैने एक व्यवसायी के विषय सुना है जो किसी समय परमेश्वर के बहुत नजदीक थे; परंतु जैसे-जैसे उनका व्यवसाय बढ़ता गया वे परमेश्वर से दूर हो गए। उनके चर्च के अगुवे उन्हें इस विषय बार-बार कहते और कोशिश करते रहे कि वह परमेश्वर के पास लौटें। परंतु वे उनके व्यवसाय मे काफी व्यस्त रहते थे। एक दिन उनके तीन पुत्रों में से सबसे छोटे पुत्र को एक जहरीले साँप ने डस लिया और वह बच्चा गंभीर रीति से बीमार हो गया। यहाँ तक कि डॉक्टरों ने भी उसके बचने की आशा छोड़ दिया। तब पिता सचमचु बहुत चिंतित हो गया और बच्चे के लिये पा्र र्थना करने हेतु चर्च से किसी अगवु े को बुलाने भेजा। वह अगुवा एक समझदार व्यक्ति था। वह आया और यह प्रार्थना किया, ‘‘प्रभु इस बच्चे को डसने के लिये जो साँप आपने भेजा, उसके लिये धन्यवाद - क्योंकि आपके विषय सोचने को बताने के लिये मुझे मौका नहीं मिला हाते ा। जो काम मैं ६ वर्षों में नहीं कर सका, वह इस साँप ने एक पल में कर दिया। अब चूंकि उन्होंने अपना सबक सीख लिया है, पभ्र् ाु बच्चे को पूरी तरह चंगा कर दे। और होने दे कि तेरे विषय साचे ने को लिये उन्हें फिर किसी साँप को काटने की जरूरत न पड़।े ’’

ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर के विषय तब तक नहीं सोचते जब तक वे अचानक कैंन्सर से ग्रसित अस्पताल नहीं ले जाए जाते। फिर वे अचानक परमेश्वर की ओर फिर जाते हैं और नया जन्म पा लेते हैं। ठीक न हो सकने वाली बीमारीयाँ, रोग, गरीबी और कई अन्य बुराईयाँ जो उस संसार में पाई जाती हैं, लोगों को उनके पापों से फिराने और स्वर्ग में अनंतकालीन घर देने के लिये, परमेश्वर व्दारा उपयोग में लाई जाती हैं। इसी प्रकार से परमेश्वर अपने लोगों को बचाने के लिये और अनंत जीवन देने के लिये उन्ही बातों का उपयोग करता है जो शैतान उनके जीवन में लाता है। इस प्रकार परमेश्वर शैतान को बार-बार मूर्ख ठहराता है।

परमेश्वर हमें जो उसकी संतान है शुद्ध करने के लिये शैतान का उपयोग करता है।

आग के उदाहरण को देखें? हम जानते हैं दुनियाँ के इतिहास में लाखों लोग आग से जलकर मर गए। तौभी किसी ने आग का उपयोग करना बंद नहीं किया। क्योंकि आग ही से भोजन पकता है और गाडियाँ तथा हवाई जहाज चलते हैं। आग से ही सोने को शुद्ध किया जाता है जो अन्य किसी वस्तु से नहीं किया जा सकता। इसलिये आग का सदुपयोग किया जा सकता है। या बिजली के विषय सोचें। लाखों लाग बिजली के कारण मर गए। बिजली सचमुच खतरनाक है। फिर भी हम सब जानते हैं कि उसका कई अच्छे उद्देश्यों के लिये उपयोग किया जा सकता है। उसी प्रकार शैतान का भी जब आदम और हव्वा बनाए गये तब वे निर्दोष थे। यदि उन्हें पवित्र बने रहना था तो उन्हें एक चुनाव करना था। और चुनाव करने के लिये उनकी परीक्षा होना था ताकि वे बुराई का इन्कार करें और परमेश्वर का चुनाव करें। और यही कारण है कि परमेश्वर ने शैतान को अदन की वाटिका में आकर परीक्षा लेने दिया।

क्या आप सोचते हैं कि शैतान को अदन की वाटिका में प्रवेश करने से रोकना परमेश्वर के लिये कठिन था? बिलकुल नहीं। परंतु बिना परीक्षा आदम पवित्र नहीं रह सकता था। वह हमेशा के लिये निर्दोष रह जाता।

निर्दोष और पवित्रता में बहुत अंतर हैं। निर्दोषता या नादानी वह है जो आप एक बच्चे में देखते हैं। यदि आप यह जानना चाहते है कि सृजे जाने के समय आदम कैसा था तो एक बच्चे को देखें - सभी बुराइयों के विषय नादान और निर्दोष। एक छोटा बच्चा नादान हो सकता हैं परंतु पवित्र नहीं, सिद्ध नहीं हो सकता। सिद्ध होने के लिये उस बच्चे को विकसित होना पड़ेगा और बुराई का तिरस्कार और परमेश्वर का चुनाव करना होगा।

यह तब होता है जब हम अपने हृदय में लालच का इन्कार करते हैं कि हम चरित्र का विकास कर सकें। आज आप जो हैं वह अभी तक आपके व्दारा किए गए चुनावों के कारण हैं।

यदि आपके आसपास के लोग आप से बेहतर हैं, तो वह इसलिये हैं कि उन्हों ने जीवन में आप से बेहतर चुनाव किये थे। हम सब हर रोज चुनाव करते हैं - और वे चुनाव ही यह निश्चित करते हैं कि अंततः हम क्या बननेवाले हैं।

हव्वा ने वाटिका में एक चुनाव की। उसके चुनाव करने के व्दारा वह वास्तव में यह कह रही थी, ‘‘मैं अपनी शारीरिक अभिलाषाओं को पूरा करना चाहती हूँ जो मुझे शैतान दे रहा है बजाए इसके कि परमेश्वर की आज्ञाओं से बंधी रहूँ जो परमेश्वर ने मुझ पर थोप रखा है। मैं स्वतंत्र रहना चाहती हूँ।’’

परंतु क्या वह स्वतंत्र हो गई? नहीं। वह शैतान की गुलाम बन गई। केवल परमेश्वर की आज्ञा ही हमें वास्तव में स्वतंत्र कर सकती है।

उस दिन आदम और हव्वा ने वाटिका में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया था जिसने उनके और उनके संतानों के लिये जीवन भर का परिणाम दिया। सभी निर्णय परिणाम लाते हैं - कभी-कभी ऐसे परिणाम जो दुर्भाग्यवश हमारे बच्चों को भी प्रभावित करते हैं। आदम के विषय, उसे और उसकी पत्नी को उनके बाकी जीवन भर के लिये परमेश्वर की उपस्थिति से बाहर भेज दिया गया।

इसलिये यह कल्पना न करें कि वे छोटे निर्णय जो आप करते हैं वे महत्वहीन हैं या उनके परिणाम आप भविष्य में नहीं पाएंगे जिनके लिये आप आज बो रहे हैं। परमेश्वर आपको जाँच और परीक्षा से गुजरने देगा। और इस उद्देश्य के लिये वह शैतान को स्वतंत्र और क्रियाशील रहने देता है।

मैं आपको पुराने नियम की पुस्तक अय्यूब से एक उदाहरण देना चाहता हूँ। अय्यूब के अनुभव से हम शैतान के कार्यों के विषय कुछ सीख सकते हैं। अय्यूब के १ले अध्याय में हम स्वर्ग में परमेश्वर और शैतान के बीच की बातचीत के विषय पढ़ते हैं।

अय्युब १:६ में हम पढ़ते हैं कि एक दिन परमेश्वर के पुत्र (स्वर्गदूत) परमेश्वर के सामने उपस्थित हुए। उनके बीच शैतान भी आया। परमेश्वर ने उससे पूछा तू कहाँ से आ रहा है।

अब शैतान के व्दारा दिये गए उत्तर को सुनिये। उसने कहा कि वह पृथ्वी पर कई स्थानों में घूम कर आया है। क्या आप जानते हैं कि अब भी शैतान पूरे संसार में घूम-फिर रहा है?

कई लोगों का ऐसा विचार है कि शैतान नर्क में रहता है। यदि यही सच होता तो वह यहाँ पृथ्वी पर हमें तकलीफ पहुँचा ही नहीं सका होता। पंरतु शैतान नर्क में नहीं रहता।

बायबल हमें सिखाती है कि तीन स्वर्ग हैं। प्रथम स्वर्ग वह है जिसे हम आंतरिक्ष कहते हैं। तीसरा स्वर्ग परमेश्वर की उपस्थिति का स्थान है (२कुरि.१२:२)। जब शैतान परमेश्वर की उपस्थिति से नीचे गिरा दिया गया था, उसे दूसरे स्वर्ग में गिराया गया था (इफिसियों ६:१२), नर्क में नहीं। और दूसरे स्वर्ग से उसे पृथ्वी पर आने की स्वतंत्रता है। इसीलिये वह अदन की वाटिका में आ सका। और यही कारण है कि आज भी वह और उसकी दुष्ट आत्माएँ पृथ्वी पर आ सकती हैं।

बायबल कहती है कि शैतान गर्जनेवाले सिंह के समान इस ताक में रहता है किसे फाड़ खाए। वह हमेशा से इस फिराक में रहता है कि जवानों को गलत चुनाव करने के लिये प्रेरित करे। वह उनके जीवन में इस तरह प्रवेश करना चाहता है ताकि वह उनकी शुद्धता, इमानदारी और सत्यनिष्ठा से उन्हें वंचित कर दे और इस प्रकार उनके चरित्र को नष्ट करके अंततः उन्हें अनंतकाल के सर्वनाश के लिये अपने साथ ले जाता है।

इसीलिये शैतान पृथ्वी पर गर्जता है।

और आप यह निश्चित रूप से जान सकते हैं कि शैतान हर किसी को देखता रहता है। वह आपको बचपन से देखता आया है और हर समय आपको बुराई करने तथा गलत चुनाव करने के लिये उकसाता रहा है ताकि अंत में वह आपको नाश कर दे। यह वही है जिसने आपको परीक्षाओं में नकल करने को उकसाया और आपके कानों में फुसफुसाया था, दूसरों के प्रति बदले की भावना रखना सिखाया, आपके माता पिता तथा शिक्षकों से झूठ बोलने सिखाया था, दूसरों की चीजें चोरी करने को सिखाया था और गंदी पुस्तकें पढ़ने को सिखाया था।

अय्यूब के पहले अध्याय में हम आगे पढ़ते हैं कि तब परमेश्वर ने शैतान से कहा, ‘‘क्या तूने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है? क्योंकि उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय मानने वाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है।’’ बेशक शैतान अय्यूब के विषय सब कुछ जानता था। वास्तव मे अय्यूब शैतान के निशाने की सूची में पहले क्रमांक में था। इसलिये शैतान ने यह उत्तर दिया,‘‘क्या अय्यूब परमेश्वर का भय बिना लाभ के मानता है? क्या तूने उसकी, और उसके घर की, और जो कुछ उसका है उसके चारों ओर बाड़ा नहीं बांधा? तूने तो उसके काम पर आशीष दी है, और उसकी संपत्ति देश भर में फैल गई है’’(अय्यूब १:८-१०)।

यहाँ सीखने हेतु हमारे लिये एक अद्भुत पाठ है : परमेश्वर उसकी संतानों के चारों ओर बाडा बांधता है - तिहरा बाड़ा, उनके शरीरों के चारों तरफ, उनके परिवारों को और उनकी संपत्ति के चारों तरफ।

यह हमारे लिये आशीष की बात है कि उसकी संतान होने के नाते हमें तिहरी बाड़े के रूप में उसकी इश्वरीय सुरक्षा प्राप्त है। नीतिवचन १८:१० हमें बताती है कि यहोवा का नाम दृढ़ गढ़ है, धर्मी उसमें भागकर सब दुर्घटनाओं से बचता है। यीशु के नाम में बड़ी सुरक्षा है। शैतान किसी और नाम से नहीं परंतु यीशु के नाम से ही डरता है जिसने उसे कल्वरी पर हराया था। जब हमारा जीवन मसीह को समर्पित हो जाता है तो हम मसीह के नाम का उपयोग शैतान को रोकने के लिये कर सकते हैं। बायबल कहती है,

‘‘शैतान का सामना करो तो वह तुम्हारे सामने से भाग निकलेगा।’’

अय्यूब की पुस्तक में हम आगे पढ़ते हैं कि परमेश्वर ने शैतान को अनुमति दिया कि अय्यूब को उसके परिवार और उसकी संपत्ति को तकलीफ दे। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर ने हर बार हर बाड़े को थोड़ा सा खोल दिया ताकि अय्यूब की परीक्षा लेने के लिये शैतान को घुसने की अनुमति मिल सके। परमेश्वर ने ऐसा क्यों किया। ताकि अय्यूब ‘‘सोने के जैसे ताया जा सके’’ (अय्यूब २३:१०)। परीक्षा के अंत में हम पढ़ते हैं कि अय्यूब और अधिक नम्र तथा धर्मी व्यक्ति बन गया, और उसकी अपनी ध् ाार्मिकता उसमें से निकल गई।

इसीलिये परमेश्वर हमारी भी परीक्षा होने देता है। ताकि इन परीक्षाओं से हम और अधिक शुद्ध, नम्र और धर्मी बनें, ज्यादा प्रेमी और दयालू बनें, ज्यादा तरस रखनेवाले, कम स्वधर्मी, और यीशु के समान ज्यादा बन सकें। इसलिये हम देखते हैं कि परमेश्वर की संतानों के पवित्रीकरण में शैतान एक अत्यंत महत्वपूर्ण उद्देश्य को पूरा करता है।

ये सब बातें हमें कम से कम २ बातें सिखाती है :

सर्वप्रथम, परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान परमेश्वर की किसी भी संतान को कभी भी नहीं छू सकता।

और दूसरी बात, यह है कि जब भी शैतान को अनुमति दी जाती है कि वह हमें छुए या किसी भी रीति से क्षति पहुँचाए, इसके पीछे हमेशा एक उद्देश्य होता है कि हम अपने जीवन में और अधिक मसीह के समान बनें, संसारिक बातों से ज्यादा स्वतंत्र रहें और हमारे विचार ज्यादा स्वर्गीय बातों के हों।

क्या यह जानना शांति की बात नहीं है कि चाहे शैतान हमारे साथ जो भी करे तौभी सब बातों का नियंत्रण परमेश्वर ही करता है?

जवानों मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि आप अपना जीवन पूरी रीति से परमेश्वर को सौंप देते है तो ये तिहरा बाड़ा आपके शरीर, परिवार और संपत्ति के चारों तरफ हमेशा रहेगा। शैतान इनमें से किसी भी बाड़े में परमेश्वर की अनुमति के बिना घुस नहीं पाएगा। और जब भी परमेश्वर शैतान को अनुमति देता है, तो आप यह निश्चित रीति से जान लें कि यह आपकी भलाई के लिये होगा।

इस प्रकार हम देखते हैं कि बायबल हमें शैतान और उसकी गतिविधियों के विषय स्पष्ट शिक्षा देती है - हमें डराने के लिये नहीं परंतु इसलिये कि शैतान के अस्तित्व को बने रहने देने के पीछे हम परमेश्वर के उद्देश्य को समझ पाएँ।

अध्याय 5
शैतान की तरकीबें

एक जवान होने के नाते यदि आप नहीं जानते कि आप अपने जीवन में शैतान को किस तरह रोक सकते हैं, तो यह न केवल पृथ्वी पर आपके जीवन को नाश करेगा परंतु यह आपके अनंतकालीन गंतव्य पर भी प्रभाव डालेगा। उसके हमले शुरू करने के लिये वह आपके बड़े होने तक नहीं रूकेगा। वह अभी आप पर अपने हमला करेगा। इसलिये आपको उसके हमले करने के तरीकों के विषय कुछ जानना जरूरी है।

दुर्भाग्यवश, अधिकांश लोगों की शैतान के विषय कल्पना ओनिडा टीवी से होती है बजाय परमेश्वर के वचन की शिक्षा से। और इसलिये वे शैतान को एक नुकसान न पहुँचाने वाला शरारती के रूप में देखते हैं जिसके सींग, पंजे और हरी पूँछ है। परंतु हम बायबल में पढ़ते हैं कि शैतान का ऐसा डरावना रूप नहीं होता। शैतान एक आत्मा है और वह मूर्ख नहीं है कि इस डरावने तरीके से आए कि लोग उससे डर कर भाग जाएँ। अन्यथा वह उन्हें किस तरह मार्ग से भटकाने में सफल हो सकेगा?

शैतान एक विश्वास जीतनेवाला छली है जो पहले आपका भरोसा जीतता है और फिर आपको धोका देता है। बायबल कहती है कि शैतान ज्योर्तिमय स्वर्गदूत की नाई आता है- जो आकर्षक दिखता है। और चूंकि वह ‘ज्योर्तिमय स्वर्गदूत’’ के समान आता है, वह ‘‘सारे संसार का भरमाने वाला’’ कहलाता हैं (प्रकाशितवाक्य १२:९)।

मैं आपको एक उदाहरण देना चाहता हूँ -कराटे। अधिकांश लोग उसे मार्शल आर्ट का एक रूप समझते हैं, आत्म रक्षा का एक तरीका। परंतु यह सच्चाई का केवल एक भाग है। योगा के समान जो मात्र शारीरिक कसरत दिख पड़ता है, परंतु वह सूक्ष्मता से लोगों को सूर्य की पूजा करना सिखाता है (सूर्य नमस्कार), उसी प्रकार कराटे के पीछे भी शैतानी ताकतें हैं। कराटे की दुष्टात्माएँ होती हैं, और मैंने दुष्टात्माग्रसित लोगों में उनका सामना किया है। परंतु वे स्वयं को आत्मरक्षा के नाम पर अहानिकारक संदेश वाहक के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

अदन की वाटिका में शैतान हव्वा के पास बड़ी मोहक और आकर्षक रूप में आया। यदि वह प्रतिकर्षक (घृणित) रूप में आता तो हव्वा उसके पास से भाग गई होती।

इस सत्य को पुराने और नए नियम में देखें जो शैतान व्दारा लोगों को बहकाने के वर्णन से शुरू होते हैं -पुराने नियम में आदम आरै हव्वा (उत्पत्ति ३) को बहकाने के व्दारा, आरै नये नियम में यीशु की परीक्षा के व्दारा (मत्ती ४)। यह इस बात को बताता है कि हमारे शत्रु की तरकीबों को जानने के विषय बायबल कितना महत्व देती है।

यदि हम उस उदाहरण का अनुकरण करें जिस तरह उन्होंने शैतान का सामन किया था तो हम निश्चित रूप से गिरेंगे। परंतु यदि हम यीशु के तरीके का अनुकरण करेंगे तो हम उस पर विजय पाएंगे।

यीशु के पानी में बाप्तिस्मा के और पवित्र आत्मा के अभिषेक के तुरंत पश्चात, यहाँ तक कि लोगों के बीच उसकी सेवा शुरू करने से पहले हम पढ़ते हैं कि शैतान के व्दारा परीक्षा लेने हेतु उसे पवित्र आत्मा के व्दारा जंगल पहुँचाया गया।

यह सचमुच आश्चर्यजनक बात है कि शैतान से सामना करने के लिये यीशु को पवित्र आत्मा ने ले गया। कोई भी व्यक्ति यह सोच सकता है कि पवित्र आत्मा लोगों को परमेश्वर और स्वर्ग के दर्शन तथा प्रगटीकरण के लिये पर्वत शिखर पर ले जा सकता है! हाँ, वह हमें ऐसे स्थानों में ले जाता है। परंतु वह हमें ऐसे स्थानों में भी ले जाता है जहाँ शैतान व्दारा हमारी परीक्षा होती है।

मैं आशा करता हूँ कि आप यह बात स्वीकार करेंगे कि पवित्र आत्मा हमें ऐसे स्थानों में नहीं ले जाता जो हमारे लिये नुकसानदेह हों। इसलिये, वचन में लूका ४:१ के उस एक पद से हम यह समझ सकते हैं कि परीक्षाएँ हमारे लिये उपयोगी होती हैं। अन्यथा, पवित्र आत्मा यीशु को शैतान व्दारा परीक्षा लिये जाने के लिये नहीं ले जाता; और न ही वह हमें शैतान व्दारा परखे जाने के लिये ले जाता है। परमेश्वर किसी की परीक्षा नहीं लेता। परंतु वह शैतान व्दारा हमारी परीक्षा की अनुमति देता है।

शैतान व्दारा परीक्षाओं के समय पर ध्यान दे :

वह यीशु के पास तब आया जब यीशु चालीस दिनों और रात के उपवास के बाद भूखा था। हम भी जब शारीरिक तौर पर कमज़ोर होते हैं या जब हम कुछ मानसिक या भावनात्मक दबाव को अपने जीवन में महसूस करते हैं, तब शैतान हम पर हमला करने की कोशिश करता है।

दूसरी बात, हम देखते हैं कि शैतान यीशु के पास तब आया जब यीशु के पवित्र आत्मा व्दारा अभिषेक हुआ और उसने स्वर्ग से सहमति की वाणी को सुना। शैतान हमारे पास उस समय आता है जब हम परमेश्वर की ओर से आशीष प्राप्त करते हैं।

इसलिये आइये हम शैतान की युक्तियों के विषय सतर्क रहें। जब परमेश्वर हमें बहुतायत से आशीषित करता है तब शैतान हमारी परीक्षा लेने और हमें झंझोड़ने को आता है। या जब हम परीक्षा में फेल हो जाते है, बीमार होते हैं और शारीरिक रीति से नाकाम हो जाते हैं तब वह हमारी परीक्षा लेने आता है और हमें निराश करता है ताकि वह हमसे पाप करवाए।

हमें परमेश्वर का वचन पहले से ही दिया गया है कि हम शैतान के ‘‘छल और युक्तियों’’ को जान सकें। परमेश्वर का वचन हमें बताता है कि शैतान किस तरह हमारे पास आता है, वह अक्सर किस समय आता है, वह कौन से प्रलोभन देता है, अन्य लोगों को उससे किस प्रकार का धोखा हुआ, और यीशु उस पर किस प्रकार विजयी हुआ।

शैतान के हम तक पहुँचने के कौनसे माध्यम हैं?

सर्वप्रथम, हम देखते हैं कि उसने यीशु की शारीरिक इच्छा के माध्यम से परीक्षा लिया। शैतान यीशु को सलाह देता है कि ‘‘यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो इस पत्थर से कह की रोटी बन जाए।’’

इसी तरीके से शैतान हमारे पास भी आता है। वह हमें हमारी शारीरिक उचित जरूरतों को अनुचित रीति से पूरी करने के लिये लुभाता है। परंतु यीशु सतर्क था, और उसने उत्तर दिया ‘‘लिखा है...।’’

हजारों वर्ष पहले जब शैतान हव्वा के पास आया था, उसने परमेश्वर के वचन पर यह कहकर प्रश्न किया था, ‘‘क्या सच है कि परमेश्वर ने कहा...?’’

क्या आप जानते हैं कि संसार में केवल एक ही पुस्तक है जिससे शैतान हृदय से घृणा करता है? वह है बायबल। और वह बायबल से क्यों घृणा करता है? क्योंकि यह पुस्तक इस बात का ख्ुालासा करती है कि वह शैतान कैसे बना। यह पुस्तक उसकी सभी योजनाओं का भंडाफोड़ करती है, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह हमें कल्वरी पर उसकी पराजय के विषय बताती हैं, और उसके अंतिम न्याय के विषय भी जब यीशु इस पृथ्वी पर फिर आएगा।

इसलिये शैतान बायबल से घृणा करता है और पूरी कोशिश करता है कि वह लोगों को इसे पढ़ने से रोके। बल्कि वह आपकेा कोई उपन्यास या कॉमिक्स पढ़ने की अनुमति देगा परंतु बायबल पढ़ने की नहीं। क्योंकि शैतान जानता है कि वे उपन्यास या कॉमिक्स आपको उस पर विजयी होने में सहायता प्रदान नहीं कर सकते, परंतु बायबल ऐसा कर सकती है।

जब यीशु इस पृथ्वी पर आया वह हमारे समान मनुष्य के रूप में ही आया; और हमारे ही समान हर क्षेत्र में परीक्षा का सामना किया जैसे हम करते हैं (इब्रानियों २:१७; ४:१५)। क्यों? ताकि वह हमारे लिये उदाहरण बन सके। ताकि वह हमें कह सके ‘‘मेरे पीछे चलो। मेरे उदाहरण का अनुकरण करो।’’

और यीशु का क्या उदाहरण है जिसका हम अनुकरण कर सकते हैं? वह है परमेश्वर का वचन शैतान को उस समय याद दिलाना जब हमारी परीक्षा होती है। यीशु ने शैतान से वैसी चर्चा नहीं किया जैसे हव्वा ने की थी। उसने यह तर्क भी नहीं दिया कि उसे भोजन की जरूरत हैं भी या नहीं या भोजन अच्छी और उपयोग वस्तु है, आदि। उसे केवल इस बात से संबध था कि परमेश्वर ने उसके वचन में क्या कहा है। और मेरे प्रिय मित्रो, मैं आपको बताना चाहता हूँ कि यदि आप केवल इसी सिद्धांत को लेकर अपना जीवन जीएंगे कि, ‘‘परमेश्वर ने उसके वचन में क्या कहा है? वही मेरे लिये अंतिम आदेश है,’’ तभी आप हमेशा शैतान पर विजयी हो सकेगें जैसा यीशु ने किया था। वास्तव में यीशु ने शैतान की ओर से होनेवाली तीनों परिक्षाओं का उत्तर परमेश्वर का वचन याद दिलाते हुए ही दिया।

और यहाँ हम हव्वा और यीशु के बीच विपरीतता को देखते हैं। यीशु की नीति यह थी ‘‘मेरी आत्मा के लिये परमेश्वर का वचन, मेरे शरीर के लिये भोजन से ज्यादा महत्वपूर्ण है।’’ या दूसरे शब्दों में, ‘‘भोजन की आवश्यकता उतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितनी कि परमेश्वर के वचन को पढ़ने, समझने और उसकी आज्ञा का पालन महत्वपूर्ण है।’’ शैतान को पुराने नियम से वचन बताने का यीशु का यही तात्पर्य था,‘‘मनुष्य केवल रोटी से नही वरन् हर एक वचन से जीता है जो परमेश्वर के मुख से निकलता है।’’

मेरे जवान मित्रो, क्या आपने इसे समझा? पहला नियम जिसके व्दारा हम शैतान पर विजय पा सकते हैं वह इस बात को मानना है कि हमारे लिये हमारे शारीरिक जरूरतों की संतुष्टि से परमेश्वर का वचन ज्यादा महत्वपूर्ण हैं - चाहे वह भोजन, यौनसंबध या अन्य कुछ की जरूरत हो। यदि आप पहले ही सही पैंतरा नहीं लेते तो निश्चित रूप से आप अपने जीवन में धोखा खाएंगे।

आप यह निश्चित रूप से जान लें कि शैतान आपसे कहेगा कि हर रोज परमेश्वर का वचन पढ़ने की बजाए आपका रोज भोजन करना ज्यादा जरूरी है। और ऐसे कई विश्वासी हैं जो शैतान पर विश्वास करते हैं। इस बात का सबूत कि वे शैतान की बात पर विश्वास करते हैं इस वास्तविकता में देखा जा सकता है कि वे कभी खाना नहीं भूलते और खाने के लिये उनके पास समय की कमी नहीं होती (यहाँ तक कि दिन में तीन या चार बार भी) परंतु परमेश्वर के वचन पर मनन करने के लिये वे अक्सर भूल जाते हैं या उनके पास व्यस्तता के कारण समय नहीं होता।

विश्वासियों को धोखा देने और उन्हें कमजोर बनाने का कार्य किसने किया, बेशक स्वयँ शैतान ने। यीशु में हमारे पास कितना अच्छा उदाहरण है जिसने चालीस दिन उपवास करने के पश्चात भी अपनी शारीरिक जरूरत को पूरा करने की बजाय परमेश्वर के वचन पर ध्यान लगाना ज्यादा महत्वपूर्ण समझा।

ये वे लोग हैं जो उनके जीवन में परमेश्वर के वचन को सबसे ऊँचा स्थान देते हैं और वे ही नियमित रूप से विजयी जीवन जीएंगे। प्रेरित यूहन्ना ने जवानों से कहा, (१यूहन्ना २:१४ में),‘‘परमेश्वर का वचन तुम में बना रहता है और तुम ने उस दुष्ट पर जय पाई है।’’ किसी अन्य तरीके से शैतान पर विजय पर असंभव है। मैं आप सब को प्रोत्साहित करूंगा कि आप अपने जीवन में हर रोज परमेश्वर का वचन पढ़ें और उस पर मनन करें।

आइये अब हम दूसरी परीक्षा के विषय देखें।

यहाँ शैतान यीशु को मंदिर के कगं ूरे पर से कूद जाने के लिये उकसाता है; और बचाव के लिये परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर दावा करने को कहता है। यह एक परीक्षा थी कुछ ऐसा कर दिखाने की जिससे नीचे आंगन में खड़ी भीड़ से वाहवाही मिल सकती थी जो उसे उनके बीच कदू ने पर भी बिना चोट लगे उतरते हुए देखे होत।े शैतान ने यीशु को जो करने को कहा वास्तव में वह यीशु से आत्महत्या करवाने की एक चाल थी।

अक्सर शैतान आपको कुछ ऐसा करवाने की कोशिश करेगा ताकि आपको दूसरों से प्रशंसा मिले, या यह दिखाने के लिये प्रोत्साहित करेगा कि आप कोई महान व्यक्ति हैं। ध्यान दें कि शैतान ने वचन से भी कहा,‘‘स्वर्गदूत तेरी रक्षा करेंगे।’’

याद रखें कि शैतान आपको गलत तरीके से वचन बोलकर बता सकता है; यदि वह आपको गुमराह करने में सफल होना चाहता है। और यदि आप इस बात से अनभिज्ञ हैं कि वास्तव में वचन क्या सिखाता है, तो वह आपको धोखा देगा।

शैतान सुझाता है कि ‘‘यीशु के नाम से कुछ विशेष कार्य करो।’’ कई बार मसीहत का नाम इसलिये खराब हुआ है क्योंकि कई विश्वासियों ने कई मूर्खतापूर्ण कार्य किये हैं, वचन बताकर और परमेश्वर की परीक्षा करवाकर।

उदाहरण के लिय,े कुछ ऐसे विश्वासी हैं जो बीमार होने पर भी दवाई नहीं लते े। उनके पास उनके विश्वास के आधार के लिये कोई वचन नहीं होता। परतं ु वे कल्पना करते हैं कि वे ‘‘परमेश्वर पर विश्वास’’ करते हैं। यह ठीक वैसा ही है जैसे मंदिर से नीचे यह साचे कर कदू पड़ना कि स्वर्गदूत अलाैि कक रीति से सुरक्षा प्रदान करगें े! उनमें से कई लोग अंततः मर जाते हैं -और अन्यजातियों के मध्य यीशु मसीह के नाम की निदं ा हाते ी है जो यह धारणा प्राप्त करते हैं कि मसीहत एक मूर्खतापूर्ण मतांधता का धर्म है। और शैतान बाद में हँसता है क्योंकि वह इन विश्वासियों को आत्महत्या करवाने में सफल हो गया उनके व्दारा जहर खाने से नहीं परंतु उनके शरीर के कीटाणुओं को दवाई से मारने से इन्कार करवाने के व्दारा। परमेश्वर की कई संताने जो परमेश्वर के लिये इस पृथ्वी पर उसके राज्य के कार्य में उपयोगी हो सकते थे, वे शैतान व्दारा इसी रीति से बहकाए जाने के कारण मर गए।

शैतान हमेशा लोगों को कुछ मूर्खतापूर्ण कार्य करने के लिये उकसाता रहा है, ऐसा कुछ करने के लिये जो परमेश्वर की आत्मा और वचन की शिक्षा के विरूद्ध है, और कुछ अनोखा। यह केवल नम्रता के व्दारा ही- अर्थात् नम्रता से परमेश्वर को समर्पण करने हमारे अपने लिये महिमा पाने के किसी तरीके से नहीं - संभव है कि हम शैतान पर विजय पा सकते हैं।

जब शैतान ने यीशु को वचन बताया तो जवाब में यीशु ने भी उसे वचन कहा। उसने कहा, ‘‘यह भी लिखा है, तू प्रभू अपने परमेश्वर की परीक्षा न करना।’’ हमें मूर्खतापूर्ण, बेहूदे और अनावश्यक कार्यों व्दारा परमेश्वर की परीक्षा नहीं करना चाहिये, और फिर यह उम्मीद भी नहीं करना चाहिये कि परमेश्वर हमें इस बेवकूफी के परिणाम से बचाएगा!

अब अंततः तीसरी परीक्षा।

अब अंत में शैतान उस विषय पर आया जो वह चाहता है -आराधना। उसने यीशु से कहा,‘‘यदि तू झुककर मुझे प्रणाम करे तो मैं संसार की सारी महिमा तुझ को दूंगा।’’

इस संसार की महिमा हम सब के लिये काफी बड़ी परीक्षा है -धन, प्रसिद्धी, सम्मान, ओहदा, अधिकार आदि। और शैतान कहता है,‘‘इनमें से तुझे क्या चाहिये? मुझे बता, और मैं तुझे वह दूँगा। केवल मेरे सामने थोड़ा सा झुक जा और यह सब मैं तुझे दूँंगा।’’

वह कहेगा,‘‘क्या तुम अपनी परीक्षा में पास होना चाहते हो? क्या तुम अपनी कक्षा में प्रथम आना चाहते हो? मैं तुम्हारी मदद करूँगा। केवल मेरे सामने झुक जाओ - घूस दो और वह प्रश्नपत्रिका पहले से ही हासिल कर लो; परीक्षक को घूस दो और कुछ नंबर हासिल कर लो; परीक्षा में नकल करो...आदि।’’

ये वे तरीके हैं जिनके व्दारा कई लोग आज शैतान के सामने झुक रहे हैं।

आप जवानों के लिये यह महत्वपूर्ण है कि आप शैतान की योजनाओं को जाने? निश्चित रूप से जानें। आपको यह मालुम होना चाहिये कि जब आप परीक्षा में नकल करते हैं तब आप अपने मन में ही शैतान के सामने यह कहते हुए झुक रहे होते हैं,‘‘मैं तेरे आदेशों का पालन करूँगा शैतान। मै मेरे जेब में नोट्स का एक छोटा कागज परीक्षा कक्ष में ले जाऊँगा।’’

नकल करने के कई और चतुर तरीके हैं जो जवानों ने इन दिनों खोज निकाले हैं - क्योंकि शैतान बहुत चालाक है, और उसकी चतुराई उन्हें प्रदान करता है जो नकल करना चाहते हैं।

यदि शैतान ने यीशु को इस संसार की महिमा देने का प्रस्ताव रखा तो क्या आप नहीं सोचते कि वह आपके सामने भी ऐसा ही प्रस्ताव रखेगा? जैसे जैसे आप बड़े होते जाते हैं आप पाएंगे कि शैतान आपसे बहुत सी बातें प्रस्ताव के रूप में कहेगा। ऐसे लोग हैं जो झूठे कथनों पर हस्ताक्षर करते हैं, धन के विषय अधार्मिकता से चलते हैं, और दुष्ट कार्यों में संलग्न होते हैं - सब कुछ थोड़ा अधिक धन पाने के लिये, थोड़ी और प्रसिद्धी : या संसार में थोड़ा और बेहतर स्थान पाने के लिये।

यह शैतान लोगों से लगातार कह रहा है,‘‘मुझे बताओ तुम्हें क्या चाहिये? मैं तुम्हें वह दूंगा।’’ ऐसी परीक्षाओं का यीशु के पास केवल एक ही जवाब था। उसने कहा, ‘‘हे शैतान दूर हो जा, क्योंकि लिखा है तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर और केवल उसी की उपासना कर।’’ (मत्ती ४:१०)

यह कितनी अद्भुत बात है कि हमें शैतान की योजनाओं से सतर्क करने के लिये हमारे पास परमेश्वर का वचन है। आप जवान लोग कितने आशीषित हैं कि आप इस छोटी उम्र में ही यह सब कुछ सीख सकते हैं।

जब आपको इस संसार की कुछ बात हासिल करने के लिये किसी परीक्षा से गुजरना पड़ता है और आप जानते हैं कि उसे पाने के लिये आपको अपने चरित्र की बलि चढ़ाना होगा, तो आप क्या करेंगे? याद करें कि यीशु ने शैतान से क्या कहा, और यीशु के आदर्श का अनुकरण करें और यही बात आप स्वयँ शैतान से कहें।

जब शैतान यह कहकर आपकी परीक्षा लेता है, ‘‘तुम्हें बहुत धर्मी बनने की जरूरत नहीं है, वहाँ तुम्हें सच बोलने की जरूरत नहीं है। थोड़ा झूठ बोल लो, तो तुम्हें इस संसार से कुछ मिल जाएगा’’ तो ऐसे समय में निडर होकर उसे यह जवाब दें, ‘‘मुझसे दूर हो शैतान, मैं तेरी बात नहीं सुनूँगा। लिखा है कि मुझे केवल परमेश्वर के सामने ही झुकना चाहिये और केवल उसी की आराधना करना चाहिये। मैं यीशु के ही पीछे चलूँगा।’’

जबसे उसे सृजा गया था, शैतान हमेशा यही चाहता रहा कि दूसरे उसकी आराधना करें। इसीलिये वह परमेश्वर के समान होना चाहता था - क्योंकि वह जानता था कि आराधना केवल परमेश्वर ही की, की जा सकती है। वह चाहता था कि अन्य स्वर्गदूत उसकी आराधना करें। वह चाहता था कि आदम की जाति उसकी आराधना करे। और आश्चर्यजनक रीति से वह चाहता था कि यीशु भी उसकी आराधना करे!

शैतान यीशु के विषय सफल नहीं हो सका। परंतु वह कई लोगों के साथ सफल हो जाता है. वास्तव में अधिकांश लोगों के विषय जो इस संसार में है, और यहाँ तक कि कई विश्वासियों के विषय जो भी स्वयं के लिये कुछ सांसारिक प्राप्तियों के लिये अपने समर्पण के विरूद्ध समझौता कर लेते हैं।

आज ऐसे लाखों लोग है जो शैतान के सामने झुकते हैं। वे यह नहीं समझते कि जब वे पाप के सामने झुक जाते हैं या उनके विवेक के विरूद्ध जाते हैं तो ऐसा करने से वे शैतान के सामने ही झुकते हैं। और वे ऐसा क्यों करते हैं? ताकि इस संसार की महिमा में से उन्हें भी कुछ मिले।

जब आप सफलता, प्रसिद्धी या अधिकार पाना चाहेंगे हो सकता है परीक्षा में सफलता, या स्कूल में प्रसिद्धी, या संसार में अधिकार का स्थान-शैतान आपके पास आएगा और कहेगा, ‘‘यह सब मैं तुम्हें दूँगा। ऐसा करो। वैसा करो। जाओ और यह कहो। जाओ और ऐसा करो...।’’आप अच्छी तरह जानते हैं कि वह आपको गलत सलाह दे रहा है। परंतु फिर भी आप उसे करते हैं, और इस प्रकार शैतान के सामने घुटने टेक देते हैं। क्या आप सोचते हैं कि ऐसा सब करने के पश्चात् भी आप स्वयँ को मसीही कह सकते हैं। बिलकुल नहीं। कोई भी व्यक्ति मसीही नहीं हो सकता यदि वह शैतान के सामने घुटने टेकता है।

तो हम क्या करें, यदि हमने पिछले वर्षों में शैतान के सामने घुटने टेका हो? हमें उन सब समयों के लिये जब हमने ऐसा किया है पश्चाताप करना चाहिये, जो कुछ हमने गलत तरीके से चुराया या हासिल किया है उसे लौटाएँ, और यीशु से कहें कि वह हमें माफ करे और हमें धोकर शुद्ध करे। आइये हम इसे बिना विलंब करें, कहीं ऐसा न हो कि शैतान हमारे जीवनों पर अब भी कब्जा, अधिकार बनाए रखे।

अध्याय 6
शैतान की हार

अब मैं आपको शैतान की हार के विषय कुछ बताना चाहूंगा।

इस पृथ्वी पर सबसे बड़े युद्ध के विषय संसार की किसी भी इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है। वह युद्ध कल्वरी पर हुआ जब यीशु ने उसकी मृत्यु के व्दारा शैतान को हराया, जो इस संसार का राजकुमार कहलाता था।

एक पद जिसे आपको अपने जीवन भर नहीं भूलना चाहिये वह है इब्रानियों २:१४,१५। मुझे यकीन है कि शैतान नहीं चाहेगा कि आप इसे जानें। कोई भी अपनी हार या असफलता के विषय सुनना नहीं चाहता, शैतान भी इससे अछूता नहीं है। वह पद यह है :

‘‘इसलिये जब कि लड़के माँस और लहू के भागी हैं, तो वह आप भी उनके समान उनका सहभागी हो गया, ताकि मृत्यु के व्दारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी, अर्थात शैतान को निकम्मा कर दे, और जितने मृत्यु के भय के मारे जीवन भर दासत्व में फँसे थे, उन्हें छुड़ा ले।’’

जब यीशु मरा तो उसने शैतान को शक्तिहीन कर दिया। क्यों? ताकि हम शैतान और भय के बंधन से जो उसने हम पर जीवन भर डाल रखा था, उससे हमेशा के लिये छूट जाएँ। संसार के लोगों में कई प्रकार का भय पाया जाता है -बीमारी का भय, गरीबी का भय, असफलता का भय, लोगों का भय, भविष्य का भय आदि। इन सभी भयों में सबसे बड़ा भय मृत्यु का भय है। हर अन्य भय मृत्यु के भय से छोटा है।

मृत्यु के भय इस बात का भय है कि मृत्यु के पश्चात क्या होगा। बायबल बड़ी स्पष्ट रीति से सिखाती है कि जो लोग पाप में जीते हैं वे अंत में नर्क में जाएंगे - ऐसी जगह जो परमेश्वर ने उनके लिये बनाया है जो पश्चाताप नहीं करते। शैतान भी आग की झील में ही अनंतकाल बिताएगा और उसके साथ वे भी होंगे जिन्हें उसने धोखा दिया इस पृथ्वी पर पाप में फँसाया।

यीशु इस पृथ्वी पर इसलिये आया कि हमें उस अनंतकाल के नर्क से बचाए, और उसने हमारे पापों की सजा स्वयं लिया। उसने हम पर से शैतान की शक्ति को नष्ट कर दिया ताकि वह हमें दोबारा कभी नुकासान न पहुँचा सके।

मैं चाहता हूँ कि आप सब इस एक सत्य को अपने जीवन भर याद रखें :

परमेश्वर शैतान के विरूद्ध आपके साथ हमेशा रहेगा।

यह एक ऐसा महिमामय सत्य है जिसने मुझे काफी प्रोत्साहन, शांति और विजय दिलाया है; और मैं चाहता हूँ कि संसार में जाकर हर विश्वासी को इसके विषय बताऊँ।

बायबल कहती है, ‘‘परमेश्वर के अधीन हो जाओ, और शैतान का सामना करो, तो वह तुम्हारे पास से भाग निकलेगा’’ (याकूब ४:७)। यीशु के नाम से शैतान हमेशा भाग निकलेगा।

अधिकांश मसीहियों के दिमाग में शैतान के विषय ऐसा चित्रण है कि शैतान उनका पीछा करता है और वे उससे अपनी जान बचाने के लिये भागते हैं। परंतु यह बायबल की शिक्षा के बिलकुल विपरीत है।

आप क्या सोचते हैं? क्या शैतान यीशु से डरता था या नहीं? हम सब जानते है कि शैतान हमारे उद्धारकर्ता के सामने खड़े रहने से भी डरता था। यीशु जगत की ज्योति है; और अंधकार के राजकुमार को उसके सामने से भागना पड़ा था।

मेरे प्रिय मित्रो मैं आपको बताना चाहता हूँ कि शैतान उन सब से भी डरता है जो यीशु का नाम लेते हैं; इश्वरीय अधिकार के साथ उसके विरूद्ध।

यीशु ने उसके चेलों को बताया कि उसने शैतान के स्वर्ग से किस तरह गिरते हुए देखा था। ‘‘उसने उनसे कहा, मैं शैतान को ‘बिजली के समान’ स्वर्ग से गिरा हुआ देख रहा था (लूका १०:१८), यह उस समय हुआ जब परमेश्वर ने शैतान को गिराया था। जब यीशु ने जंगल में शैतान से कहा,‘‘हे शैतान दूर हो’’ वह यीशु के सामने से बिजली की गति से दूर हो गया। और आज जब हम यीशु के नाम से शैतान का सामना करते हैं वह हमारे सामने से भी प्रकाश की रफ्तार से भाग निकलेगा। अंधियारा उजियाले के सामने से भाग निकलता है।

शैतान यीशु के नाम से डरता है। वह इस सत्य के याद दिलाए जाने से घृणा करता है कि यीशु प्रभु है और उसे यीशु के व्दारा हराया गया है। मैने ध्यान दिया है कि दुष्टआत्माग्रस्त लोग यह स्वीकर नहीं करते कि ‘‘यीशु मसीह प्रभु है,’’ या कि ‘‘शैतान को यीशु ने क्रूस पर हराया था।’’

यीशु मसीह के नाम में सामर्थ है जो किसी भी दुष्टात्मा को निकाल सकता है और शैतान को आपके पास से भागने पर मजबूर कर सकता है। वह भी बिजली की गति से। इसे कभी न भूलें।

जवानों मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि अपने जीवन में जब भी आप मुसीबत में हों, या कोई जटिल समस्या से जूझ रहे हों, या आप ऐसी परेशानी झेल रहे हों जिसके लिये मानवीय स्तर पर उत्तर नहीं मिलता है, तो यीशु का नाम लीजिये। उससे कहिये, ‘‘प्रभु यीशु आप शैेतान के विरूद्ध मेरे साथ हैं। मेरी मदद करें।’’ और फिर शैतान की ओर मुड़ें और उससे कहें, ‘‘शैतान, मैं यीशु के नाम से तेरा सामना करता हूँ।’’ मै आपको बताना चाहता हूँ कि शैतान आपके पास से तुरंत भाग निकलेगा, क्योंकि यीशु ने उसे क्रूस पर हरा दिया है। शैतान आपके विरूद्ध शक्तिहीन हो जाता है जब आप परमेश्वर की ज्योति में चलते हैं और शैतान को यीशु के नाम से रोकते और सामना करते हैं।

जाहिर है कि शैतान नहीं चाहता कि आप उसकी हार के विषय जाने और इसीलिये उसने आपको ये बातें सुनने से वंचित रखा था। इसीलिये उसने अधिकांश लोगों को उसकी हार के विषय प्रचार करने से रोक रखा था।

मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि शैतान एक बार में ही हमेशा के लिये यीशु मसीह के व्दारा क्रूस पर हरा दिया गया था। अब आपको तकलीफ नहीं दे सकता। वह आपका नुकसान नहीं कर सकता। वह आपकी परीक्षा कर सकता है। वह आप पर हमला कर सकता है। परंतु मसीह में परमेश्वर का अनुग्रह आपको हमेशा उस पर विजयी करेगा यदि आप अपने आप को नम्र बनाएंगे, स्वयँ को परमेश्वर के अधीन रहेंगे और सदा उसकी ज्योति में चलेंगे। ज्योति में काफी सामर्थ है। शैतान जो अंधकार का राजकुमार है वह कभी भी ज्योति के दायरे में प्रवेश नहीं करेगा। यदि आज कई विश्वासियों के जीवन में शैतान की शक्ति प्रबल है तो इसलिये कि वे अंधकार में चल रहे हैं, किसी गुप्त पाप में जी रहे हैं, दूसरों को उन्होंने माफ नहीं किया है, किसी से इर्ष्या करते हैं, या उनके जीवन में कोई स्वार्थी भावना को लेकर चल रहे हैं। यही कारण है कि शैतान उन पर प्रभुता कर रहा है। अन्यथा वह उन्हें छू भी नहीं सकता।

आपको इस संसार के लोगों के समान अंधविश्वासी नहीं होना चाहिये। कुछ लोग किसी विशेष दिन कुछ करने से डरते हैं - उदाहरण के लिये, किसी शुक्रवार को जिसकी तारीख १३ होती हो। कुछ लोग सोचते हैं कि यदि काली बिल्ली उनका रास्ता काट जाए तो अपशकुन होगा। कुछ लोग चंद्रमा की स्थिति की जांच करते हैं यह जानने के लिये कि बुरा समय कब होगा, और उस समय कोई महत्वपूर्ण कार्य करने को टाल देते हैं।

ये सारे अंधविश्वास और डर कहाँ पैदा होते हैं? शैतान की ओर से। यीशु हमें ऐसे सभी ड़र से छुड़ाने के लिये आया। अब हमें संसार में ऐसी किसी बात से डरने की कोई जरूरत नहीं है। सभी अंधविश्वास शैतान की ओर से है।

हमें प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में कहा गया है कि एक दिन यीशु वापस आएगा और शैतान को अथाह कुंड में बांध देगा और हजार वर्ष के लिये इस पृथ्वी पर राज्य करेगा। उस समय के पश्चात् शैतान को थोड़े समय के लिये छोड़ दिया जाएगा यह बताने के लिये कि लंबी सजा के पश्चात् भी वह बदल नहीं पाया है। फिर वह पृथ्वी के लोगों को अंतिम बार धोखा देगा। और फिर यह भी देखा जाएगा कि आदम जाति भी नहीं बदली है, यहाँ तक कि प्रभु यीशु के शांतिमय १००० वर्ष के राज्य के पश्चात भी।

फिर परमेश्वर शैतान का न्याय करने को उतर आएगा और शैतान को आग की झील में अनंतकाल के लिये डाल देगा। और वे सब जो पाप में जीते थे, जिन्होंने शैतान के आगे घुटने टेके थे, और जिन्होंने परमेश्वर के वचन का पालन करने की बजाय शैतान की आज्ञा का पालन किया था, वे सब शैतान के साथ आग की झील में डाल दिये जाएंगे।

इसीलिये हम शैतान की हार का सुसमाचार प्रचार करते हैं। शायद यह सबसे महत्वपूर्ण सत्य है कि विश्वासी इस बार इसे सुनें। परंतु याद रखें कि यदि आप पवित्रता में नहीं चलते हैं तो शैतान पर आपका अधिकार नहीं चलेगा।

और यदि आप उसके आरोपों पर यीशु के लहू के व्दारा विजय पाना नहीं सीखा है तो आपका शैतान पर अधिकार नहीं चलेगा। यदि आप इस संसार की बातों से प्रेम करेंगे तो आपका शैतान पर अधिकार नहीं होगा - क्योंकि शैतान इस संसार का राजकुमार और शासक है। यदि आप इस पृथ्वी पर परमेश्वर से ज्यादा किसी वस्तु या व्यक्ति से प्रेम करते हैं तो आप शैतान पर विजय नहीं पा सकेंगे (देखें प्रकाशितवाक्य १२:११)।

इसलिये, जवानों मैं आपसे आग्रह करता हूँ : प्रभु यीशु मसीह से और आपके जीवन के लिये उसकी इच्छा से प्रेम करें अपने संपूर्ण हृदय से, अपने पूरे मन से और अपनी सारी शक्ति से प्रेम करें। शैतान को किसी भी तरह से आपके विचारों को दूषित न करने दें।

यदि आपके विचार अशुद्ध हैं, तो आप शैतान के विरूद्ध प्रभावी रूप से यीशु के नाम का उपयोग नहीं कर पाएंगे। यीशु का नाम कोई जादुई मंत्र के समान नहीं है जिसे शैतान को भगाने के लिये दोहराया जा सकता है, नहीं। सबसे पहले आपको स्वयं को परमेश्वर के हाथों समर्पित करना होगा। तब ही शैतान आपके सामने से भाग निकलेगा जब आप उसका सामना करेंगे। परंतु यदि आप अपने जीवन का हर क्षेत्र परमेश्वर को समर्पित नहीं करेंगे तो शैतान आपसे नहीं डरेगा।

तो अपना जीवन अभी मसीह को सौंप दें और निश्चय करें कि अब से आप अपना जीवन केवल परमेश्वर के लिये ही जीएंगे।

मैं आपको यकीन दिलाना चाहता हूँ कि अब से बीस वर्ष पश्चात् आप धन्यवादी रहेंगे कि आपने अभी२ जो सुनो परमेश्वर की इस शिक्षा पर आपने अमल किया। और एक दिन जब आप मसीह के न्याय के सिंहासन के सामने खड़े होंगे, और जब लेखा देने की आपकी बारी आएगी, तब आप और अधिक धन्यवादी होंगे।

परमेश्वर आपकी सहायता करे कि आप ऐसा जीवन जीएँ कि जब आप अपने जीवन यात्रा के अंत में पहुँचे तो आपको किसी बात का खेद न हो। आमीन।

जिसके पास सुनने के कान हों, वह सुन ले।