द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   चेले
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परमेश्वर कई रीति से हमसे बात करता है। विशेषतः वह हमसे उसके वचनों द्वारा बात करता है। यदि परमेश्वर के वचन में कोई बात स्पष्ट रूप से लिखी हो तो, उस विषय में परमेश्वर की इच्छा जानने के लिये हमें प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं कि वह बात परमेश्वर हमें प्रकट करे।

परमेश्वर हमसे परिस्थितियों द्वारा भी बात करता है। परमेश्वर के पास हर एक द्वार की चाबी है (प्रकाशितवाक्य 1:18)। जब परमेश्वर द्वार खोलता है तब उसे कोई बन्द नहीं कर पाता और जब परमेश्वर द्वार बन्द करता है तब उसे कोई खोल नहीं पाता (प्रकाशितवाक्य 3:7)। इसकारण हमारी परिस्थितियां हमें परमेश्वर की इच्छा बताती है कि हम किस मार्ग से जाए। द्वार खुलने तक हम वहां खड़े न रहे। बन्द द्वार दिखने पर हम अवश्य प्रार्थना करे, पर कई बार प्रार्थना करने पर भी यदि द्वार न खुले तो हम समझ लें कि शायद परमेश्वर नहीं चाहता कि हम उस द्वार से प्रवेश करें। हम परमेश्वर से प्रार्थना करे कि हमें इंतजार करने की आवश्यकता है या नहीं यह हमें प्रकट करे (लूका 11:5-9)।

कई परिपक्व धर्मी भाईयों द्वारा भी परमेश्वर हमें मार्गदर्शन करता है। ये लोग अनुभवी होते है तथा हमें सावधान करते है। हम आंखे मूंदकर उनकी न सुने परन्तु उनकी धार्मिकता की परामर्श हमारे लिये मददगार साबीत हो सकती है।

जब हम विश्वासियों के संगति में होते है तब परमेश्वर हमसे बात करता है। परमेश्वर हमें सिखाता है कि मसीह की देह में जो लोग है उनपर हमें निर्भर रहना है। जब हम उनमें रहते है तब भी परमेश्वर हमें उसका वचन प्रकट करता है।

जब हम सताव या बीमारी सहते है तब भी परमेश्वर कुछ महत्वपूर्ण बातें हमें बताता है।

औरों के अपयश द्वारा भी हमेंपरमेश्वर चेतावनी देता है। उदाहरण के तौर पर, यदि परमेश्वर का सेवकपाप करे तो हम परमेश्वर से पूछे किइस घटना द्वारा परमेश्वर हमें क्या सिखाना चाहता है, क्योंकि हम सभी दुर्बल है। हम विश्वास में किस तरह बने रहेंगे इसकी सोचे।

जब हम सुनते है कि किसी स्थान पर बुराई हो रही है या दुर्घटना हुई है तब उस समाचार द्वारा भी परमेश्वर हमसे बात करता है। जब पिलातुस ने यहूदियों को सताया, उसी प्रकार जब एक बड़ा बुरुज लोगों पर गिरा और वे मर गए तब यीशु ने कहा कि हमें पश्चाताप करने की आवश्यकता है, क्योंकि ऐसा हमारे साथ भी हो सकता है (लूका 13:1-4)।

मैं तुम्हें एक चेतावनी देना चाहता हूं। परमेश्वर की इच्छा जानने के लिये आंखे मूंदकर बाइबिल खोलना और सामने खुला हुआ वचन पढ़ना बिलकुल ही गलत है। यदि आप किसी लड़की से शादी करना चाहते हो तो मनचाहा वचन खुलने तक आप बाइबिल खोलते रहेंगे। इस तरह स्वयं के साथ धोखाधड़ी करेंगे।

मैने एक पुरुष के विषय में सुना है। परमेश्वर की इच्छा जानने के लिये उसने आंखे बन्दकर बाइबिल खोली और पढ़ा, ''और जाकर अपने आपको फांसी दी'' (मत्ती 27:5)। फिर दोबारा बाइबिल खोलकर पढ़ा, ''जा, तू भी ऐसा ही कर'' (लूका 10:37)। तिसरी बार उसने आंखे बंद कर बाइबिल खोली और पढ़ा, ''जो तू करता है, तुरन्त कर'' (यूहन्ना 13:27)। इस तरह परमेश्वर की इच्छा जानना कितना गलत है यह उसने सदा के लिये सीख लिया।

कई बार हम दबाव में होते है या निराश होते है तब आंखे बन्द कर बाइबिल खोलने से धीरज देने वाला वचन हमें प्राप्त हो सकता है। धीरज पाने के लिये इस तरह वचन खोलना बुरा नहीं। परन्तु परामर्श या मार्गदर्शन के लिये यह तरीका गलत है।

भाईयों, मैं तुम्हें प्रोत्साहन देना चाहता हूं कि परमेश्वर की वाणी सुनने की आदत डाले। यह सबसे महत्वपूर्ण आदत है।