द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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प्रकाशितवाक्य 10:8-11 में इस प्रकार से लिखा गया है, ''और जिस शब्द करनेवाले को मैंने स्वर्ग से बोलते सुना था, वह फिर मेरे साथ बातें करने लगा, "जा, जो स्वर्गदूत समुद्र और पृथ्वी पर खड़ा है, उसके हाथ में की खुली हुई पुस्तक ले लें" और मैंने स्वर्गदूत के पास जाकर कहा, "यह छोटी पुस्तक मुझे दें" और उसने मुझ से कहा, "ले, इसे खा जा, और यह तेरा पेट कड़वा तो करेगी, परंतु तेरे मुंह में मधु सी मीठी लगेगीं" इसलिए मैं वह छोटी पुस्तक उस स्वर्गदूत के हाथ से लेकर खा गया, वह मेरे मुंह में मधु सी मिठी तो लगी, परंतु जब मैं उसे खा गया, तो मेरा पेट कड़वा हो गयां तब मुझ से यह कहा गया, "तुझे बहुत से लोगों, और जातियों, और भाषाओं, और राजाओं पर, फिर भविष्यद्वाणी करनी होगीं"|

यहां हम देखते है कि जब यूहन्ना ने वह पुस्तक खाई वह उसके मुंह में मधु सी मिठी लगीं यह परमेश्वर के अनुग्रह का दृश्य है जो हमारे पास वचनो के माध्यम से आता हैं परन्तु जब वह वचन उसके अंदर गया वह कड़वा था जो यह दर्शाता है कि उसमें सत्यता है जो हमारे पापों का न्याय करता हैं यह मात्र अनुग्रह ही नही सत्य भी हैं प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में एक के बाद एक अनुग्रह और न्याय का दृश्य देखते हैं|

यहां हम देखते है कि किस प्रकार से परमेश्वर के वचन की सेवकाई कैसे सही रीति से करें हमे पहले परमेश्वर से वचन लेना, खाना और पचाना है तभी परमेश्वर हमें दूसरों के भविष्य के विषय में बताएगां जो लोग अपने संदेश को प्रभावशाली बनाने के लिये केवल पुस्तके पढ़ते, रेकॉर्डींग सुनते और अपने दीमाग की कसरत कर संदेश तैयार करते उससे यह बिल्कुल ही अलग हैं|

जब हम परमेश्वर को पाते है तो यह बहुत ही आसान होता है कि उसमें का मधुर भाग अनुग्रह ले लें हम उसे हमेशा के लिए अपने मुंह में रख सकते है, बिना परमेश्वर की अनुमति लिये कि वह हमारे अंदरूनी भाग तक पहुंचें हम उस आखरी भाग का आनन्द नहीं ले पाते क्योंकि हमने जो पाप किए है उनका न्याय करने में हम लगे रहते हैं जबकि न्याय हममें ही शुरू होना है (1 पतरस 4:17)|

बहुत से मसीही वचन को चुईंगम की तरह चबाते हैं वे इस लिए चबाते है क्योंकि वह मिठा है और बाद में उसे बाहर उगल देते हैं वह उनके हृदय में पाचन नही होतां वे परमेश्वर के वचन को गंभिरता से नहीं लेते कि खुद ही उनका न्याय करें|

परमेश्वर हमे बहुत से कड़वे अनुभवों में से लेकर जाता है ताकि जो वचन हमने सुने वे पाचन हो सकें परन्तु उन सारे कडुए अनुभवों से हम परमेश्वर की सुरक्षा का भी अनुभव करते है (2 कुरिन्थियों 1:4) और तभी हमारे पीढ़ी में हम भविष्यवाणी की सेवकाई कर पाएंगें|

जब यूहन्ना परमेश्वर के वचन का पाचन कर चुका तब परमेश्वर ने यूहन्ना से कहा 'अब तुझे भविष्यद्वाणी करना हैं जो परमेश्वर ने उससे पूर्व में कहा था इससे तुलना करो और जो सुना है वह मत लिखों हमे यह मालूम होना चाहिये कि दूसरों से क्या बाटना चाहिए और क्या नहीं|

एक बार पौलुस तिसरे स्वर्ग पर उठा लिया गया था परन्तु 14 वर्षों में उसने उस विषय में किसी को नहीं बताया और जब बताया भी तो उसने कहा मैने ऐसी बाते सुनी जो अकथनीय और मुंह पर लाना मनुष्य को उचित नही (2 कुरिन्थियों 12:4)|

यूहन्ना साफ रीति से समझ गया कि परमेश्वर उससे क्या कहना चाह रहा है और दूसरों से क्या कहना चाह रहा हैं|