द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   महिला
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शमुएल की कहानी उसकी माँ हन्ना के बाँझ होने से शुरू होती है (1 शमुएल 1:2)। यह बड़ी दिलचस्प बात है कि पवित्र शास्त्र में कई स्त्रियों के बारे में यह लिखा गया है कि उनको पुत्र होने से पूर्व, उनको कई वर्षो तक निःसंन्तान रहना पङा- सारा, रिबेका, राहेल, और हन्ना। इन स्त्रियों ने परमेश्वर से प्राथना की, और हर एक ने एक पुत्र को जन्मा, जिनके लिए परमेश्वर के उद्देश्य में एक अनोखा स्थान था। उन्होंने अपने निःसंन्तान होने की बात को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने बड़ी यत्न से परमेश्वर से सन्तान के लिए विनती की। परमेश्वर ने उनकी विनती सुनकर हर एक को एक संतान दिया, जिनके द्वारा परमेश्वर ने एक अनोखा उद्देश्य पूरा किया।

कई माताएं जब बच्चे कोख में ही होते है, तब से ही उनके लिए प्राथना करना शुरू कर देती है। परन्तु इन स्त्रियों ने तो एक अनोखी तीव्रता के साथ प्रार्थना किया। यह बड़ी अद्भुत बात है कि जब एक बच्चा ऐसी तीव्र प्राथना के द्वारा इस दुनिया में जन्म लेता है और इसी तरीके से शमुएल का भी जन्म हुआ।

हन्ना परमेश्वर से एक सन्तान के लिए कई वर्षो से प्राथना किया करती थी। आखिर में, उसने एक मन्नत मांगी, "प्रभु, यदि तू अपनी दासी के दुख पर सचमुच ध्यान करे, उसे स्मरण करे और अपनी दासी को न भूले, परन्तु अपनी दासी को एक पुत्र दे, तो मैं उसे उसके जीवन भर के लिए यहोवा को दे दूंगी (शमुएल 1:11)। उसके ध्यान में एक बदलाव आया। पहले वह केवल अपनी आव्यश्यकता के अनुसार सोचती थी: "मुझे एक पुत्र चाहिए"। लेकिन बाद में वह यह कहने लगी - मै उसे यहोवा को दे दूंगी, क्योंकि प्रभु को भी हमारे आव्यश्यकता है। जब हमारे प्राथना करने का दृष्टिकोण हमारे आव्यश्यकता से प्रभु की आव्यश्यकता की ओर फेरती है, तब हमें भी हमारे प्रथानाओ का जवाब मिलता है। प्रभु ने हमें यह प्रार्थना करने के लिए सिखाया है कि सब से पहले "तेरा नाम पवित्र मन जाए''।

उसी काल में. इस्राएल में एक आत्मिक आव्यश्यकता थी। परमेश्वर के लोगों का बुरी तरीके से पतन हो चूका था। एली जैसे अगुवे भी परमेश्वर से दूर हट गए थे। मूसा के दिनों के पश्चात इस्राएल में कोई भविष्यवक्ता नहीं था। हन्ना ऐसी स्त्री थी जिसे यह पता था कि उसके आस-पास क्या हो रहा था, और वह यह जानती थी कि इस्राएल में एक नबी की कमी थी। इसलिए वह प्रार्थना करती रही, 'हे प्रभु, इतना ही नहीं कि मैं अपने पुत्र को आप के लिए अर्पण कर दूँ, परन्तु उसके सिर पर कभी अस्तुरा भी नहीं चलने दूंगी, वह आपके लिए अर्पण किया गया एक नजरीन कहलायेगा। उसके द्वारा आप इस्राएल को आपकी ओर फेर सकते है, वह आपका है''। उसकी पूरी प्रार्थना अपने ऊपर से परमेश्वर की ओर फेर गया था।

कई बार हमें अपनी प्रार्थनाओ का जवाब नहीं मिलता है, क्योकि वह हमारे ऊपर केन्द्रित होती है। यह बड़ी अदभुत बात है कि ऐसी माँ को शमुएल जैसा पुत्र जन्मा।

जब हन्ना ने शमुएल को जन्मा, वह अपना वादा नहीं भुली। उसने अपने पुत्र को मंदिर में लाया और यह कहा, ''इसी बालक के लिए मैंने विंनती की थी और येहोवा ने मुझे मुह माँगा वर दिया है। अतः मैंने भी उसे येहोवा को समर्पित कर दिया है। वह जीवन भर के लिए यहोवा को समर्पित है'' (1 शमुएल 1:27,28) वह उसे वापस ले जाने वाली नहीं थी। उसने वही पर उस बालक को घुटने टेककर परमेश्वर को दण्डवत् करना सिखाय। ऐसी एक धार्मिक माँ का होना कितना अद्भुत बात है। फिर उसने परमेश्वर को धन्यवाद करते हुए एक गीत गाया (1 शमुएल 2 :1-10)। यह संभावना से अधिक बात होगी कि मरियम के धन्यवाद का गीत (लूका 1: 46-55) हन्ना के गीत से प्रेरित था - क्योंकि दोनों के शब्द बहुत ही समान हैं।

शमुएल ऐसा एक जवान बना जिसने अपने भवियाव्द्वानी की सेवकाई से इस्राएल को उस उजाड़ दशा से, जो हम न्यायियों के पुस्तक में पढतें हैं, दाउद के राज्यकाल में, एक महिमामय राज्य में बदल दिया।