द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   कलीसिया
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यूहन्ना अध्याय 6 एक बड़ी भीड़ के साथ शुरू होता है (पद 2), और 11 लोगों के साथ समाप्त होता है (पद 70)। यदि आप यह जानना चाहते हैं कि आप कैसे अपने कलीसिया की गुणवत्ता में सुधार लेकर आए और इसके आकार को कम कैसे करे, तो आप इस अध्याय में यीशु से यह सीख सकते हैं। निस्संदेह अधिक्तर प्रचारक और पादरियां इस में रुचि नहीं रखेंगे, क्योंकि वे हमेशा अपनी संख्या बढ़ाने में रुचि रखते हैं। यीशु गुणवत्ता के सुधार लाने में और परिमाण को कम करने में एक महान स्वामी थे।

परमेश्वर ने गिदोन की सेना को 99% से कम कर दिया 33,000 से 300, और यह उससे पहले कि उसके साथ परमेश्वर की उपस्थिति आए, जिस पर जीत का आश्वासन निश्चित था। परमेश्वर ने हमेशा कुछ चुनिंदा लोगों के साथ अपने उद्देश्यों को पूरा किया है। यहाँ हम देखते हैं कि यीशु ने यह कैसे किया। उन्होनें उनके साथ क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिए प्रचार किया (= मेरा मांस खा और मेरा लहू पी - पद 56)। इस बड़ी भीड़ में इसके द्वारा कई लोग अपमानित हुए और लगभग सभी चेलें यह कहकर उनको छोङकर चले गए कि, "यह बात नागवार है" (पद 6:60)। और यीशु ने उनमें से किसी को भी ठहरने के लिए नहीं पूछा।

जो 12 छोड़ दिए गए थे उनकी ओर यीशु मुङे और उन्होनें उनको पूछा यदि वे भी जाना चाहता थे। यीशु का दृष्टिकोण यह था कि “क्रूस के संदेश से यदि कोई अपमानित होता है और मुझे छोड़ना चाहता है, तो वह जा सकता है। मैं उसे रोकूंगा नहीं । लेकिन मैं किसी के स्वाद के अनुरूप, शिष्यत्व के योग्यता में घटी लेकर नहीं आऊंगा”।

यदि सारे उपदेशकों का यही दृष्टिकोण होता तो पृथ्वी पर हमारे कितने सामर्थी कलीसियाएं होती। आज के प्रचारक लोगों को यीशु के पास आर्थिक रूप में आशीषित होने के लिए और शारीर में चंगाई पाने के लिए आमंत्रित करते हैं। कौन इस प्रकार के "यीशु" के पास नहीं आना चाहेंगे जो उनको यह सब चीज़े प्रदान करता है? लेकिन यह "एक और यीशु" है। कई विश्वासी जो समृद्धि प्रचार करते तो नहीं है लेकिन अब भी यह विश्वास करते है कि उन पर परमेश्वर के आशीष का यही चिह्न है। यह एक धोखा है। हर धर्म के कुटिल व्यापारियों के भीड़ को देखे जो पैसा बनाते है और यह कल्पना करते है कि परमेश्वर उन्हें आशीष दे रहे है!

परमेश्वर के आशीष का केवल एक ही चिह्न है - कि आप मसीह की तरह अधिक से अधिक होते जा रहे हो। वास्तविक यीशु हमें आमंत्रित करते है कि "आ और मर"। इस प्रकार के संदेश से कई लोग आकर्षित नहीं हैं। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं क्योंकि यीशु ने कहा था कि केवल कुछ ही जीवन के इस मार्ग को पाएंगे (मत्ती 7:14)। लेकिन ये कुछ लोग ही कलीसिया का निर्माण करेंगे। यीशु ने जैसा कहा था कि उनको पृथ्वी पर कई दुख और असम्मति और क्लेश का सामना करना पङ सकता हैं (यूहन्ना 16:33)। लेकिन वे परमेश्वर के लिए पृथ्वी पर एक ऐसा काम करेंगे जो अनंत काल के लिए भी स्थायी रहेगा।