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यिर्मयाह 3:14,15 में परमेश्वर प्रतिज्ञा देते है कि,"तुम्हारे प्रत्येक नगर पीछे एक, और प्रत्येक कुल पीछे दो को लेकर मैं सिय्योन में पहुँचा दूँगा। मैं तुम्हें अपने मन के अनुकूल चरवाहे दूँगा जो ज्ञान और बुद्धि से तुम्हें चराएँगे"

"सिय्योन" जीवित परमेश्वर के सच्चे कलीसिया का प्रतिनिधित्व करता है। परमेश्वर एक नगर से एक और एक परिवार से दो लोगों को अपने "सिय्योन" में लेकर आते है और जब हम इस सिय्योन अतः इस कलीसिया में आ जाते है - ऐसी कलीसिया जिसका निर्माण प्रभु कर रहे है - वहा वे हमें "अपने मन के अनुकूल चरवाहे" प्रदान करेंगे​, जो हमें परमेश्वर के ज्ञान से भरपूर करवाएँगे (और न कि केवल पवित्र शास्त्र के ज्ञान से) और उनके मार्गों को समझना (और न कि केवल सिद्धांतों की समझ से)।

एक सच्चे कलीसिया की प्राथमिक चिन्ह यह है: उन्में मन के अनुकूल चरवाहे होंगे। परमेश्वर प्रेम है - और प्रेम की प्राथमिक विशेषता यह है कि वह स्वयं का विचार नहीं करता। अतः परमेश्वर के मन के अनुकूल चरवाहें वे है जो स्वयं का विचार नहीं करते हैं। ऐसे चरवाहें किसी के भी पैसों की या सम्मान की चाह नहीं रखते। वे न तो मनुष्य को मनभावित में और न ही उन्हें प्रभावित करने में रूचि रखते है। इसके विपरीत वे विश्वासियों को स्थापित करने में प्रयास करते है जिससे कि " वे हर व्यक्ति को मसीह में सिद्ध करके उपस्थित कर पाए" (कुलुस्सियों 1:28)। जहां कहीं भी परमेश्वर को ऐसा चाह रखने वाला एक मनुष्य भी मिल जाए, चाहे वह किसी भी शहर या गाँव में क्यों न हो, वहाँ परमेश्वर अपने कलीसिया का निर्माण करेंगे।

दूसरी ओर, हमने अनेक ऐसी विश्वासियों को देखा है जो मेनलाइन संप्रदायों को छोड़ तो देते हैं और जो "नए नियम के विधि" का भी पालन करना चाहते हैं, जिनके सारे सिद्धांत भी सही हैं, लेकिन जो पैसों से प्रेम करते हैं और स्वयं का ही विचार करते हैं, और जो फिर भी यह सोचते हैं कि वे मसीह का शरीर बना रहे हैं। भ्रम और अराजकता ही हमेशा उनके श्रमिकों का परिणाम हैं और वह हमेशा बाबुल ही होता है जो अंततः उनके मजदूरों के माध्यम से बनाया जाता है ।

केवल वही, जहाँ पर परमेश्वर को एक ऐसा मनुष्य मिलता है जो स्वयं का विचार नहीं करता, तब ही परमेश्वर अपने सच्चे कलीसिया का निर्माण कर सकते हैं। एक ऐसा मनुष्य जो लोगों के लिए परमेश्वर के हृदय की चिंता को साझता है, वह हज़ारों स्वयं का विचार करने वाले ऐसे विश्वासियों की तुलना में अधिक मूल्यवान है। परमेश्वर के हृदय के अनुकूल एक चरवाहा बनने के लिए बलिदान, असुविधा, और कष्टों को सहना पङता है। इसका अर्थ है कि हर्षपूर्वक गलतफहमी, विरोध, उपहास और बदनामी को स्वीकार करना और यदि यह चरवाहा इतना आशीषित है कि उसकी पत्नी भी स्वयं का विचार नहीं करती, तो उनका घर एक खुला द्वार होगा जहाँ प्रभु अपनी इच्छा को वहाँ कर पांएगें, तब परमेश्वर उनकी जीवन के माध्यम से क्या कर सकते है, उसकी कोई भी सीमा नहीं होगी।

मैं बहुत से लोगों को इकट्ठा करने के विषय में बात नहीं कर रहा हूं। संख्या परमेश्वर के आशीष का एक चिह्न नहीं हैं । कई प्रसिद्ध पंथ दूसरो की तुलना में अधिक संख्या में लोगों को इकट्ठा करते हैं। यह किसी भी बात को साबित नहीं करता है। मैं अब गुणवत्ता की बात कर रहा हूं - मसीह के शरीर के निर्माण की बात कर रहा हूं, जहां हर एक व्यक्ति परमेश्वर के व्यक्तिगत ज्ञान में आता है।

इस तरह के विकास के बिना, कोई भी समूह केवल एक ऐसा स्थान होगा, जहां एक अंधा व्यक्ति अन्य अंधे लोगों को खाई के तरफ नेतृत्व करता है। उनकी सभी प्रार्थना सभाएं खाई में होगी, उनकी बाइबल-अध्ययन भी खाई में होगी और उनके सम्मेलन भी खाई में होंगें !!

यीशु के समय में, उन्होंने चारों ओर देखा और पाया कि लोग चरवाहे के बिना भेड़ के समान थे। आज की स्तिथि भी ऐसी ही है।

हर एक जगह की आवश्यकता परमेश्वर के मन के अनुकूल चरवाहें है। मैं यहाँ केवल एक कलीसिया में उसका प्राचीन होने के बारे में बात नहीं कर रहा हूं। नहीं । एक बड़े कलीसिया को कई चरवाहों की आवश्यकता होती है - जिनका हृदय परमेश्वर के लोगों की परवाह करती है । हो सकते हैं ऐसे लोग प्राचीन भी न हो। लेकिन वे भेङो को खिलाएंगे और उन्हें प्रोत्साहित करेंगे, और हर्षपूर्वक उनकी सेवकाई करेंगे।