द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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इस नई वाचा के युग में, हमारा प्रभु "हर जगह पर एक शुद्ध गवाही" को चाहता हैं - पूर्व से पश्चिम तक हर देश में – जैसा कि मलाकी 1:11 में भविष्यवाणी की गई है। यह वह वचन था जिसे प्रभु ने हमें एक लक्ष्य के रूप में खोजने के लिए दिया था, जब परमेश्वर ने 1975 में बैंगलोर में हमारी कलीसिया की शुरूआत की। शैतान का मुख्य उद्देश्य आत्मिक स्वभाव से भरी कलीसिया की गवाही को भ्रष्ट करना है, न की इसमें शामिल होने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि को रोकना है। वास्तव में, इस तरह की कलीसिया में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में अनुमति देना, यह शैतान के उद्देश्य के लिए बहुत अच्छी तरह से उपयुक्त हो सकता है, क्योंकि वह तब ऐसी कलीसिया में शारीरिक विश्वासियों के माध्यम से अधिक आसानी से घुसपैठ कर सकता है और उसकी गवाही को भ्रष्ट कर सकता है।

किसी भी कलीसिया को प्रभु के लिए शुद्ध रखना एक युद्ध है। एक अच्छी शुरुआत करना बहुत आसान है और फिर थोड़े समय पश्चात, स्तर को कम करना और धीरे धीरे एक मृत कलीसिया के रूप में पतन होना। यह वह जगह है जहाँ हमें आत्मिक रूप से सतर्क और शैतान की युक्तियों के बारे में पता होना चाहिए। इस सतर्कता और जागरूकता को तभी तेज किया जा सकता है जब हम सबसे पहले स्वयं के जीवन को ध्यान से देखते हैं। शारीरिक लोगों को हम अपनी कलीसिया की सभाओं में भाग लेने से रोक नहीं सकते। यीशु की 12 लोगों की "कलीसिया" में यहूदा इस्करियोती बैठता था। और पौलूस द्वारा कुरिन्थियों में स्थापित कलीसिया में भी कई शारीरिक लोग थे। हमारी कलीसियाओं में भी शारीरिक लोग हो सकते हैं। इसे टाला नहीं जा सकता। लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कलीसिया का नेतृत्व हमेशा आत्मिक व्यक्ति के हाथों में हो। और हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि कलीसिया में घोषित संदेश हमेशा शुद्ध और नई वाचा का संदेश है।

पौलूस ने तीमुथियुस से कहा कि वह पहले स्वयं की ओर ध्यान दे (1 तीमुथियुस 4: 15, 16)। जो लोग शरीर और आत्मा की सभी गंदगी से स्वयं को साफ करने में विश्वासयोग्य रहते हैं (2 कुरिन्थियों 7: 1), वे इससे दुश्मन के हर छल–कपट पर आत्मिक संवेदनशीलता प्राप्त करेंगे। और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। सिद्धांतो का ज्ञान, वाक्पटुता और यहाँ तक कि आत्मिक वरदानो का यहाँ कोई काम नहीं है, क्योंकि हमारी लड़ाई माँस और लहू के खिलाफ नहीं है, और न ही बौद्धिक ताकतों के खिलाफ, बल्कि उन दुष्ट आत्मिक ताकतों के खिलाफ है, जो उन लोगों को धोखा देने के लिए इंतजार कर रहे हैं जिन्हें धोखा दिया जा सकता है।

यीशु ने कहा कि वह एक ऐसी कलीसिया का निर्माण करेगा जिस पर आत्मिक मृत्यु की शक्तियां प्रबल न हो सकेंगी (मत्ती 16: 18)। केवल प्रभु ही ऐसी कलीसिया का निर्माण कर सकता है। जैसे परमेश्वर की इच्छा है हम उसके इस्तेमाल के लिए केवल एक साधन ही बन सकते है। हालाँकि, कलीसिया की प्रभुता को केवल परमेश्वर के ही कंधों पर होना चाहिए (यशायाह 9: 6)। हमें इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। यदि प्रभु कलीसिया का निर्माण नहीं करता है, तो हमारा सारा परिश्रम व्यर्थ होगा (भजन 127: 1)। जो लोग कल्पना करते हैं कि वे स्वयं किसी भी स्थान पर प्रभु की कलीसिया का निर्माण कर रहे हैं, वे अनजाने में नबूकदनेस्सर के साथ संगति में हैं, जिसने कहा, "क्या यह बेबीलोन नहीं है जो मैंने स्वयं बनाया है?" (दानिय्येल 4: 30)। इस तरह का गर्व केवल एक बेबीलोनियन, सांसारिक "कलीसिया" (प्रकाशितवाक्य 17: 5) उत्पन्न कर सकता है।

परमेश्वर नम्र अगुवो की खोज में हैं। वह उन लोगों की भी तलाश कर रहा है जो पहले उसके राज्य की खोज करेंगे - वे जिनके लिए कलीसिया का निर्माण उनके जीवन की पहली प्राथमिकता है, जैसा कि नूह के लिए जहाज था। मसीह ने कलीसिया से प्रेम किया और उसके लिए स्वयं को दे दिया (इफिसियों 5: 25)। यदि हम कलीसिया से प्रेम करते हैं, तो हम भी स्वयं को और हमारे पास जो कुछ भी है, उसे पूरी तरह से दे देंगे। जो लोग अपनी स्थानीय कलीसिया के निर्माण से अधिक अपनी सांसारिक व्यवसाय को अधिक महत्व देते हैं, उनसे बेबीलोन के अलावा और कुछ भी निर्माण करने की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। इसका मतलब यह नहीं है कि हमें अपने सांसारिक व्यवसायों को छोड़ देना चाहिए। नहीं। आजकल, यह सबसे अच्छा है कि हम स्वयं की कमाई पर निर्भर हो, जैसे कि प्रेरित पौलुस था, क्योंकि गैर-मसीहियों के सामने यह एक अच्छी गवाही है, जो सभी मसीही सेवको पर पैसों के लिए काम करने का आरोप लगाते हैं। लेकिन सांसारिक व्यवसाय में काम करते हुए भी परमेश्वर का राज्य हमारी सोच में सर्वोपरी होना चाहिए।

परमेश्वर यह देखने के लिए हमारी परीक्षा करेगा कि क्या उसकी कलीसिया हमारी सोच और जीवन में प्रथम प्राथमिकता है या नहीं, इससे पहले कि वह उसकी कलीसिया के निर्माण में हमारी सहायता करे।

हमें कभी भी अपनी संख्या को बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं रखनी चाहिए - या तो विश्वासियों की या कलीसियाओं की। हमें केवल प्रभु के लिए एक शुद्ध गवाही रखने में रुचि होनी चाहिए। यह वही है जिसमें स्वयं परमेश्वर भी रुचि रखता है। यीशु ने हमें सिखाया कि परमेश्वर से हमारी पहली प्रार्थना हमेशा "तेरा नाम पवित्र माना जाए" हो, न कि "हमारी संख्या बढ़ा"। यह बेहतर होगा कि किसी जगह पर कोई कलीसिया न हो बजाय इसके उस जगह पर एक ऐसी कलीसिया का होना, जो अपवित्र है और इस प्रकार यीशु के नाम के लिए एक बुरी गवाही है।