द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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लूका 18:13 में, चुंगी लेने वाले ने प्रार्थना किया कि "हे परमेश्वर मुझ पापी पर दया कर।" उसने खुद को "पापी" कहा। उसका मतलब यह था कि उसने महसूस किया कि उसके चारों ओर हर व्यक्ति उसकी तुलना में एक संत था! अपनी खुद की नजरों में वह पृथ्वी के ऊपर एक मात्र पापी था। यीशु ने कहा कि यह व्यक्ति धर्मी ठहराया जाकर घर गया। परमेश्वर ऐसे ही लोगों को धर्मी ठहरता हैं।

मुझे इस शब्द "धर्मी ठहरना" का अर्थ वास्तव में क्या है इसके बारे में कुछ बांटने दें। यह एक सुंदर और एक स्वतंत्र करने वाला शब्द है (लुका 18: 14)। एक किताब के पृष्ठों को देखो। क्या आप देखते हैं कि प्रत्येक पृष्ठ पर दायां हाथ मार्जिन (हाशिया) बिलकुल बाएं हाथ मार्जिन की तरह है? कंप्यूटर की भाषा में इसे "जस्टिफिकेशन अर्थात बराबरीकरण" कहा जाता है! भले ही प्रत्येक पंक्ति में अक्षरों की संख्या अलग है, फिर भी कंप्यूटर दाएं हाथ के किनारे को पूरी तरह से सीधे बनाता है। अब अगर आप अपने कंप्यूटर पर "जस्टिफाई या बराबर" किए बिना कुछ लिखना चाहते थे, तो आप पाएंगे कि दायां हाथ का किनारा टेढा-मेढ़ा है। इसी रीति से हमारे पृष्ठ मुद्रित होते थे, जब हम बीते दिनों में टाइपराइटर का उपयोग किया करते थे। और एक पृष्ठ भी पंक्तियों की लम्बाई को बराबर करके लिख पाना असंभव हुआ करता था। लेकिन अब हम "जस्टिफिकेशन या बराबरीकरण" के चमत्कार को देखते है और यह हर पंक्तियों के आखिर में आने वाले शब्दों में केवल हायफ़न जोड़कर नहीं किया जाता। नहीं। यदि आप एक पुस्तक के पृष्ठों को देखेंगे तो पाएंगे कि वहाँ पर हायफ़न का इस्तेमाल नहीं किया जाता - नहीं तो वह कुरूप दिखेगा। कंप्यूटर हर पंक्ति में प्रत्येक शब्दों के बीच की दूरी को ऐसे समायोजित करता है कि हर पंक्ति एकदम बराबर दिखाई देती है। यधपि आपने एक पृष्ठ में 30 पंक्तियाँ टेढ़े-मेढ़े किनारों के साथ क्यों न लिखी हो, अब आप कंप्यूटर को आदेश दे सकते है कि जो भी आपने लिखा है उसे बराबर करे - और देखिये, एक बटन दबाते ही सारी पंक्तियाँ, तुरंत बराबर हो जाती है। परमेश्वर भी हमारे साथ ठीक ऐसा ही करता है, जब वह हमे धर्मी ठहरता है। हो सकता है कि आपने अपने जीवन को बिगाड़ दिया हो, और आपके बीते जीवन का हर दिन टेढ़े-मेढ़े किनारो के साथ समाप्त हुआ हो। परन्तु यदि आप मसीह के पास आओगे तो परमेश्वर आपको एक क्षण में "बराबर" कर देगा अर्थात "धर्मी" ठहरा देगा। आपके बीते जीवन की हर एक पंक्ति सिद्ध कर दी जाएगी - ठीक वैसे ही जैसे कि आपने अपने जीवन में एक बार भी पाप नहीं किया - कोई टेढ़े-मेढ़े किनारे नहीं, केवल एक सीधा सपाट किनारा।

क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है? जो कार्य कंप्यूटर पृष्ठों के साथ करता है वही कार्य परमेश्वर हमारे जीवनों के साथ करता है। वहां हम “धर्मी ठहराये जाने” शब्द का 20 वीं शताब्दी का चित्रण देखते हैं।

मैं आपको इसके आगे भी कुछ बताता हूँ। एक बार हमने कंप्यूटर को "जस्टिफाई या बराबर" करने की आज्ञा दे दिया, इसके बाद हर पंक्ति जो हम लिखेंगे वह अपने आप बराबर कर दी जाएगी और बाकि सारी पंक्तियों के साथ स्पष्ट रीति से मेल खायेगी। धर्मी ठहराया जाना जितना हमारे भूतकाल के लिए लागू होता है उतना ही हमारे भविष्य के लिए भी। यह सचमुच में एक अद्भुत सुसमाचार है।

परमेश्वर अब हमें मसीह में देखता है। अब से हमारे पास स्वयं की धार्मिकता नहीं, कि हम घमंड करें। मसीह स्वयं हमारी धार्मिकता है जब परमेश्वर हमे धर्मी ठहरता है, यह ठीक वैसा होगा जैसे हमने कभी भी एक भी पाप नहीं किया था या कभी भी हमारे पूरे जीवन में एक भी गलती नहीं की थी और हम मसीह के लहू के द्वारा निरंतर धर्मी ठहराए जाते है क्योंकि जब हम ज्योति में चलते है, तो मसीह का लहू हमे निरंतर हमारे सारे पापों से शुद्ध करता है - जाने - अनजाने दोनों ही पापों से।

सब से बड़ी गलती जो हम बाइबिल पढ़ने के दौरान करते है वह है तार्किक तरीके से सोचने की , ठीक वैसे ही जैसे हम गणित हल करते समय सोचते है। हम इस तरह परमेश्वर के मन को समझ नहीं सकते, क्योंकि परमेश्वर गणितीय तर्क के अनुसार काम नहीं करता!! इसलिए हम यह पता लगाने की कोशिश करते समय तर्क का उपयोग नहीं कर सकते कि क्या हम अभी भी अपने जीवन के लिए परमेश्वर की पूर्ण योजना को पूरा कर सकते हैं, अतीत में इतनी सारी गलतियों के बाद भी। अंकगणितीय तर्क के अनुसार, ये असंभव है - क्योंकि अंकगणित में एक प्रश्न हल करते समय यदि आप किसी भी एक कदम पर गलती कर देते है तो आपका अंतिम उत्तर हमेशा गलत ही होगा। यदि आप इस तर्क का इस्तेमाल करेंगे, तब आपको यह कहना होगा कि अगर आप भूतकाल में परमेश्वर की इच्छा से भटक गए थे (चाहे जब आप 2 वर्ष के रहे हो या 52 वर्ष के, इससे वास्तव में कोई फ़र्क नहीं पड़ता), अब आप परमेश्वर की सिद्ध इच्छा को पूरी नहीं कर सकते, चाहे आप कितना भी कठोर परिश्रम क्यों न करें या कितना भी मन फिराए - क्योंकि इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि अंकगणितीय के प्रश्न हल करते समय आपने किस स्तर पर गलती किया (चाहे स्टेप 2 पर या 52 पर), आपका अंतिम उत्तर फिर भी गलत ही होगा। परमेश्वर कहता है कि, "मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है" (यशायाह 58 : 8,9)। परमेश्वर का धन्यवाद हो कि उसकी योजना हमारे जीवन के लिए गणितीय तर्क के अनुसार काम नहीं करती है। यदि ऐसा होता तो एक मनुष्य भी (प्रेरित पौलुस भी नहीं) परमेश्वर की सिद्ध इच्छा को पूरी नहीं कर पाता। क्योंकि हम सब कहीं न कहीं असफल हुए है। विश्वासी होने के बाद भी हम अनेक बार असफल हुए है। विश्वासी होने के बाद भी हमने अनेक बार जान-बुझ कर पाप किया है। वे लोग जो ईमानदार है इस बात को तुरंत स्वीकार करेंगे। परन्तु अद्भुत सत्य यह है कि हम सभों के लिए अब भी आशा है।

गणित बिना किसी पक्षपात के छोटी सी गलती करने वालों को दोषी ठहरता है। छोटी सी गलती के लिए भी कोई छूट नहीं मिलती है। 2 + 2 किसी रीती से 3.99999999 नहीं होता है। उसे पूर्णतः 4 होना है, न कम न ज्यादा। लेकिन परमेश्वर की योजना गणित के अनुसार काम नहीं करती है। उसकी योजना में असफलता अनिवार्य है। असफलता को छोड़ और कोई तरीका नहीं जिसके माध्यम से हम टूट सके। और इसलिए हम कह सकते है कि हमारे आत्मिक पाठ्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है "टुटापन"। यीशु मसीह ही एक मात्र व्यक्ति था जो बिना असफल हुए जीवन जिया। परन्तु हम सब को (यहाँ तक कि हममे सर्वोत्तम लोगों को) परमेश्वर के द्वारा असफलता से टूटना है। यहाँ तक कि पतरस और पौलुस को भी निरंतर असफलता के द्वारा टूटना पड़ा।

इसलिए सुसमाचार के सन्देश में आनंदित हो जाये और होने दे कि परमेश्वर की दया आपको मन फिराने में अगुवाई प्रदान करे। होने दे कि वह आपकी अगुवाई आनंद के जीवन और परमेश्वर के सिद्ध विश्राम में करे - वह विश्राम जो यह जानने से आता है कि परमेश्वर ने “आपको (हमेशा के लिए) अपने प्रिय बेटे में ग्रहण कर लिया है” (इफिसियों 1 :6)। हर दिन हम कितनी सारी गलतियां करते है। हम फिसल कर पाप में गिरते है - चाहे यह अनजाने में या भूल से ही क्यों न हो। कई बार हमारे ऊपर इतना दबाव होता है कि हम उदास और निराश हो जाते है - तब हम पाप करने के लिए और भी प्रलोभित हो जाते है। परमेश्वर हमारे दबाव को समझता है और वह करुणामय है। वह हमे सामर्थ्य से बाहर परीक्षा में नहीं पड़ने देगा, और संकट से साथ निकासी का रास्ता भी निकालेगा। वह हमारे जीवन में हर चीज़ को सीधा-सपाट कर सकता है। मसीही जीवन मानवीय तर्क के अनुसार कार्य नहीं करता है। यह स्वर्गीय पिता के आश्चर्यकर्म करने की सामर्थ्य, सिद्ध बुद्धि और सिद्ध प्रेम के द्वारा कार्य करता है।

कोई भी अपने जीवन को कभी भी सिद्ध पंक्तियों से मुद्रित नहीं कर सकता और एक सिद्ध सपाट किनारा नहीं बना सकता। यह तो परमेश्वर ही है जो हम सब को धर्मी ठहरता है - यहाँ तक कि हममे से सर्वोत्तम को भी। कोई भी मनुष्य कभी भी परमेश्वर के सामने घमंड नहीं कर सकता।