द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   मसीह के प्रति समर्पण
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प्रेरित पौलुस इफिसुस में तीन वर्षों तक रहा और रात और दिन प्रचार करता रहा (प्रेरितों 20:31)। इसका मतलब है कि इफिसियों के मसीहियों ने पौलुस के होंठों से कई सैकड़ों उपदेश सुने थे। उन्होंने अपने बीच परमेश्वर के असाधारण आश्चर्यकर्म देखे थे (प्रेरितों 19: 11)। उनके बीच से परमेशर का वचन दो साल के छोटे समयकाल के दौरान एशिया माइनर के आसपास के हिस्सों में फैल गया था। उन्होंने जागृति का अनुभव किया था (प्रेरितों 19: 10, 19)। वे प्रेरितों के समय काल में बाकी सारी कलीसियाओं से अधिक भाग्यशाली थे। वे उस समय एशिया माइनर में निस्संदेह सबसे आत्मिक कलिसिया भी थे। (हम देख सकते हैं कि इफिसियों को लिखे गए पौलुस के पत्र से, जहां उसे उनके बीच किसी भी गलती को सुधारना नहीं पड़ा, बाकी कलिसियाओं की तुलना में जिन्हे उसने पत्र लिखे।) लेकिन जब पौलुस इफिसुस छोड़ कर जा रहा था, तो उसने वहां के प्राचीनों को चेतावनी दी कि कलिसिया के नए नेतृत्व के अंदर अगली पीढ़ी में चीजें बदतर हो जाएंगी। उसने उनसे कहा कि फाड्नेवाले भेड़िये उनके बीच आ जाएंगे और उनके ही बीच में से ऐसे लोग उठेंगे जो टेढ़ी-मेढ़ी बातें बोलेंगे और लोगों को परमेश्वर की ओर खींचने के बजाय अपनी ओर खींच लेंगे (प्रेरितों 20: 29,30)।

जब तक पौलुस वहां था, तब तक किसी भी भेड़िये ने इफिसुस के झुंड में प्रवेश करने की हिम्मत नहीं की थी। पौलुस एक विश्वासयोग्य द्वारपाल था (मरकुस 13:34 देखें), जिसने प्रभु से आत्मिक अधिकार प्राप्त किया था क्योंकि उसे अभिषेक किया गया था, क्योंकि वह परमेश्वर से डरता था और क्योंकि उसने परमेश्वर के हितों की खोज की थी, न कि स्वयं की। लेकिन उसके पास यह जानने के लिए पर्याप्त आत्मिक परख भी थी कि इफिसुस के प्राचीनों की आत्मिक स्थिति खराब थी और इसलिए वह जानता था कि उन प्राचीनो द्वारा कलिसिया में नेतृत्व लेते ही चीजें बिगड़ जाएंगी। पौलुस ने प्राचीनों से भविष्यवाणी नहीं किया की निश्चित तौर पे इफिसुस में क्या होगा। नहीं। यह केवल एक चेतावनी थी। यदि प्राचीनों ने अपने आप को जांचा होता और मन फिराते तो जैसा पौलुस ने उनसे कहा था, शायद वैसा नहीं होता।

योना ने एक बार निनवे पर विनाश की भविष्यवाणी की थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ जैसा उसने भविष्यवाणी की थी, क्योंकि निनवे के लोगों ने पश्चाताप किया था। इफिसुस की कलिसिया भी पौलूस की भविष्यवाणी के भाग्य से बच सकती थी। लेकिन अफसोस, इफिसुस में अगुओ की नई पीढ़ी ने कभी भी पौलुस की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया और परमेश्वर से दूर चले गए। पहली शताब्दी के अंत तक, तीसरी पीढ़ी सत्ता में आ गई थी और फिर चीजें वास्तव में खराब हो गईं। उनके सिद्धांत अभी भी सही थे और वे मसीही गतिविधि में उत्साही थे। उनमें शायद अभी भी पूर्ण रात्रि की प्रार्थना सभाएँ और अन्य विशेष सभाएँ होती होंगी। लेकिन उनकी आत्मिक स्थिति इतनी खराब थी कि परमेश्वर एक कलिसिया के रूप में उनकी पहचान को हटाने वाला था। उनका अपराध क्या था? उन्होंने परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति को खो दिया था (प्रकाशितवाक्य 2: 4, 5)।

इफिसुस में कलिसिया का इतिहास हमें क्या सिखाता है? बस यह कि कोई भी सिद्धांत खुद परमेश्वर के प्रति उत्साहित भक्ति के तुलना में महत्वपूर्ण नहीं है। सच्ची आत्मिकता का केवल एक और एक मात्र चिह्न है कि मसीह का जीवन बढ़ते क्रम में हमारे व्यवहार से प्रदर्शित हो और यह केवल परमेश्वर के प्रति बढ़ती हुई व्यक्तिगत भक्ति से आता हैं।

पौलुस एक ईश्वरीय व्यक्ति था - एक उत्साही और विश्वासयोग्य प्रेरित जो अपने जीवन के अंत तक प्रभु यीशु के प्रति समर्पित था। और उसने हर जगह विश्वासियों को चेतावनी दिया कि शैतान उन्हें "मसीह के लिए सरल भक्ति" से दूर करने के लिए हर संभव प्रयास करेगा (2 कुरिन्थियों 11: 3)। "पानी में बपतिस्मा" और "पवित्र आत्मा में बपतिस्मा" जैसी सैद्धांतिक मामलों में त्रुटियां, मसीह के प्रति अपनी व्यक्तिगत भक्ति खोने के तुलना में इतना खतरनाक नहीं हैं। फिर भी कई विश्वासियों को यह महसूस नहीं होता है। हम देखते हैं कि पौलुस केवल अपनी पीढ़ी में परमेश्वर के उद्देश्य को पूरा कर सकता था। जो लोग उसके साथ तीमुथियुस की तरह रहते थे, उन्होंने उसकी आत्मा को अपने अंदर धारण किया और मसीह के प्रति निःस्वार्थ भक्ति में जीवन व्यतीत किया (फिलिप्पियों 2: 19-21)। अन्यथा, पौलुस भी अपनी आत्मिकता को अपने ही द्वारा स्थापित की गयी कलीसियाओं की दूसरी पीढ़ी के विश्वासियों को हस्तांतरित नहीं कर पाया।