द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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यीशु ने हमें हर जगह चेले बनाने के लिए कहा और न केवल धर्म परिवर्तन करनेवाले। इसलिए एक शुद्ध गवाही होने के लिए, हमें सबसे पहले उन सभी लोगों को जो हमारी कलीसिया का हिस्सा बनना चाहते हैं, एक शिष्य होने की शर्तों को स्पष्ट रूप से सिखाना चाहिए, और कैसे शिष्यता का हमारे व्यक्तिगत जीवन, हमारे पारिवारिक जीवन और हमारी कलीसिया के जीवन पर प्रभाव होना चाहिए।

हमें लूका १४:२६ से ३३ में से सिखाना आरंभ करना चाहिए, जहाँ यीशु ने अपने शिष्य होने के लिए तीन आवश्यक शर्तें दीं:

१. हमें अपने सभी पारिवारिक सदस्यों, रिश्तेदारों और भाइयों और बहनों (लूका १४:२६) से अधिक यीशु से प्रेम करना चाहिए। उनमें से किसी को भी, जो प्रभु हमारे द्वारा करवाना चाहता है, उसे रोकने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
२. हमें अपने स्वयं (लूका १४:२७) से ज्यादा यीशु से प्रेम करना चाहिए। जब हम परीक्षण में पड़े तब हमें प्रतिदिन हमारे स्व-जीवन का इनकार करना और उसे क्रूस पर चढ़ाना है - प्रतिदिन कई बार (लूका ९:२३)।
३. हमें उन सभी सांसारिक चीजों से अधिक यीशु से प्रेम करना चाहिए जो हमारे पास हैं (लूका १४:३३)। परमेश्वर हमारे पास कई सांसारिक चीजें होने की अनुमति देता है। लेकिन हमें उनमें से किसी के भी ऊपर अपना हक़ नहीं जताना चाहिए। उन सारी चीजों को खुली हथेली में रखना चाहिए - परमेश्वर की संपत्ति के रूप में।

दूसरी बात, हमें बड़े पैमाने पर और स्पष्ट रूप से समझाना चाहिए, वह सब जो यीशु ने पहाड़ी उपदेश में सिखाया और चेतावनी दी (मत्ती ५,६ और ७)। यीशु ने तीन दृष्टांतों के साथ उस उपदेश का अंत किया:

(क) इस उपदेश में उसकी शिक्षाएँ उस सकेत मार्ग का वर्णन करती हैं जो अनंत जीवन की ओर ले जाती है (मत्ती ७: १४)
(ख) इस उपदेश में दी गई उसकी शिक्षाओं का पालन करने से ही उसके शिष्य परमेश्वर की महिमा के लिए एक फलवंत पेड़ बनेंगे (मत्ती ७ : १६-२०)
(ग) यीशु ने इस उपदेश में जो भी सिखाया, उसका पालन करने से ही उसके शिष्य अपने व्यक्तिगत जीवन, अपने पारिवारिक जीवन और अपने कलीसिया को अनंत काल तक अटल नीव पर बनाए रखने में सक्षम होंगे (मत्ती -27: २४-२७)

तीसरा, हमें कलीसिया में सभी को प्रोत्साहित करना चाहिए कि हम पवित्र आत्मा से भरे रहने के लिए परमेश्वर को खोजे- क्योंकि हमारे स्वयं के सामर्थ्य से ऊपर बताए गए मानक-दंड़ो पर खरा उतरना असंभव है। लेकिन यह पवित्र आत्मा की सामर्थ के द्वारा संभव है (प्रेरितों के काम १:८; इफ़िसियों ५:१८)

चौथा, हमें हर विश्वासी को परमेश्वर को अपने स्वर्गीय पिता के रूप में जानने के लिए अगुवाई करनी चाहिए, ताकि वे अनिश्चित और दुष्ट संसार के मध्य में अपनी सुरक्षा को प्राप्त कर सके।

पांचवीं बात, हमें लोगों को यह महान सत्य सिखाना चाहिए कि यीशु “सब बातों में हमारे समान बना" (इब्रानियों २: १७) और “सब बातों में वह हमारे समान परखा गया" (इब्रानियों ४:१५), ताकि उन सबके के पास यह विश्वास हो कि वे भी "यीशु के समान चल सकते हैं" (१ यूहन्ना २: ६)

जब हमने अपना काम आरंभ किया, तब हमने पवित्रशास्त्र की इन महत्वपूर्ण सच्चाइयों का अध्ययन करने में कई महीने बिताए। और हमने इसके बाद इसके उत्कृष्ट परिणाम देखे। केवल इस प्रकार ही हम प्रभु के लिए एक शुद्ध गवाही का निर्माण कर सकते हैं - एक नई वाचा की कलीसिया।