द्वारा लिखित :   जैक पूनन
WFTW Body: 

सुसमाचार का संतुलित संदेश इफिसियों को लिखी पौलुस की पत्री में पाया जाता है। अध्याय 1 से 3 में, एक भी उपदेश/आज्ञा नहीं है। वे अध्याय सिर्फ़ उन बातों का बयान करते है जो परमेश्वर ने हमारे लिए की है। फिर अगले तीन अध्याय उन बातों के उपदेश से भरे हुए है जो हमें परमेश्वर के लिए करनी है। सुसमाचार के सिक्के के ये दो पहलू है। अगर एक भी पहलू न हो, तो वह सिक्का (सुसमाचार) नक़ली होगा। गलातियों 1:8,9 में “कोई दूसरा सुसमाचार” प्रचार करने वालों के लिए श्राप की घोषणा की गई है। इसलिए हमें ध्यानपूर्वक दूसरों को सम्पूर्ण सुसमाचार – और सही सुसमाचार – सुनाना चाहिए।

परमेश्वर ने मसीह में हमें स्वर्गीय स्थानों में हर एक आत्मिक आशीष दी है (इफिसियों 1:3)। हमारे मसीही जीवन की शुरुआत इस बात से होनी चाहिए कि परमेश्वर ने क्या किया है। हम उससे प्रेम करते हैं क्योंकि उसने हमसे पहले प्रेम किया (1 यूहन्ना 4:19)। हम उसकी सेवा करते हैं क्योंकि उसने पहले हमारी सेवा की। परमेश्वर हमें सृष्टि की उत्पत्ति से पहले से जानता है (इफिसियों 1:4)। यह बात हम नहीं समझ सकते क्योंकि हमारा एक भूत-काल, वर्तमान-काल और भविष्य-काल है, जबकि परमेश्वर का नाम “मैं हूँ” हैं (निर्गमन ३:१४)। परमेश्वर एक अनंत वर्तमान में रहता है। इसलिए, कुछ भी सृजने से बहुत पहले वह हम में से हर एक को हमारे नाम से जानता था। उसने जगत की उत्पत्ति से भी पहले ही हमें मसीह में रख दिया था।

“मसीह में” होने का क्या अर्थ है, यहाँ इसका एक उदाहरण है। अगर आप एक पुस्तक ले और एक काग़ज़ को उसमें रख दें, और फिर उस पुस्तक को जला दे, तो उसके साथ वह काग़ज़ भी जल जाएगा। अगर आप उस पुस्तक को ज़मीन में गाढ़ दे, तो उसके साथ वह काग़ज़ भी ज़मीन में गढ जाएगा। अगर आप उस पुस्तक को एक रॉकेट में रखकर चंद्रमा पर भेज देंगे, तो वह काग़ज़ भी चंद्रमा पर पहुँच जाएगा। इसी तरह, हम मसीह में रखें गए हैं (बीते अनंतकाल से ही, परमेश्वर के मन में)। तो जब 29 ई. में मसीह को क्रूस पर चढ़ाया गया तो हम भी उसके साथ क्रूस पर चढ़ाए गए। जब वह दफ़नाया गया तो हम भी उसके साथ दफ़नाए गए थे, और जब वह मृतकों में से जी उठा और स्वर्ग में गया, तब “परमेश्वर ने हमें मसीह यीशु के साथ उठाया और स्वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया” (इफिसियों 2:6)। यह एक अदभूत सत्य हैं। लेकिन हम इसकी सच्चाई का तभी अनुभव कर सकते हैं जब हम परमेश्वर के वचन में विश्वास करते हैं – इसके अलावा नहीं। “तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारे साथ हो” (मत्ती 9:29), जो परमेश्वर की व्यवस्था है।

जो कुछ परमेश्वर ने मसीह में हमारे लिए किया है, हमें उसमें स्थापित होना है। जब यह नींव डाल दी जाती है, उसके बाद ही हम इफिसियों 4 से 6 के उपदेशों से वह घर बना सकते है जो नए मार्ग में चलने, शैतान का सामना करने और उस पर जय पाने इत्यादि के विषय में है। वरना अक्सर ऐसा होगा कि हम निराशा और आत्म-दोष के कीचड़ में लोटते हुए पाए जाएगे। इसलिए पहले इफिसियों के अध्याय 1 से 3 पर अधिक मनन करें।

अनेक मसीही नींव तो एक जगह पर डालते है, लेकिन घर का निर्माण किसी दूसरी जगह पर करते है! इसलिए वह घर गिर जाता है। इफिसियों की पत्री के अंतिम 3 अध्याय का हरेक उपदेश हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम और उसके द्वारा हमें पूरी तरह से स्वीकार करने पर आधारित है (जिसका उल्लेख पहले 3 अध्यायों में किया गया है)। यह प्राथमिक बात है, लेकिन हम फिर भी इसे भूल जाते है। एक दिन हम सोचते हैं कि परमेश्वर हमें अधिक स्वीकार करेगा क्योंकि हमने 45 मिनट तक बाइबल पढ़ी हैं, और दूसरे दिन हम सोचते हैं कि वह हम पर क्रोधित है और हमारी प्रार्थना नहीं सुनेगा क्योंकि हमें एक मिनट भी नहीं मिला बाइबल पढ़ने का। और अगर कुछ गलत हो जाता है, तो हमें लगता है कि यह इसलिए था क्योंकि हमने उस दिन बाइबल नहीं पढ़ी थी! यह अंधविश्वास है, और यह विश्वास करना कि परमेश्वर द्वारा हमारी स्वीकृति हमारे बाइबल-पठन पर आधारित है न कि उस पर जो मसीह ने हमारे लिए किया है। इसमें कोई शक नहीं कि बाइबल पढ़ना बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन वह हमारी स्वीकृति की नींव नहीं है। यह ऊपरी ढाँचे का हिस्सा है। आपके लिए इस सत्य में स्थापित होना बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। वरना सुसमाचार मनुष्य-केन्द्रित बन जाता है – और आप नींव में ही खिड़की और दरवाज़े लगाने लगेंगे! जो लोग इन सच्चाइयों को नजरअंदाज या अवमूल्यन करते हैं (जो इफिसियों 1 से 3 में पाए जाते हैं) वे अंततः फरीसी बन जाते हैं।

लेकिन निश्चित रूप से, एक नींव डालने का पूरा उद्देश्य घर का निर्माण करना है। इसलिए हम नींव के साथ नहीं रुकते। हमें आगे बढ़कर ढाँचे का निर्माण करते रहना चाहिए।

“अनुग्रह” परमेश्वर का बढ़ा हुआ वह हाथ है जिसमें हमारे लिए सारी स्वर्गीय आशिषें है। “विश्वास” हमारा बढ़ा हुआ वह हाथ है जो परमेश्वर के हाथ से उन आशीषों को ले लेता है। इसलिए हमें सिर्फ़ उतना ही मिलता है जितना हम यीशु के नाम में विश्वास से ग्रहण करते है। परमेश्वर ने हमारे स्वर्गीय खाते में करोड़ों आशिषें डाल रखी है, और हमें असंख्य कोरे चैक़ दिए है जिन पर यीशु के नाम के हस्ताक्षर है। हमें बस अब इतना करना है कि इन चैको में राशि भर कर बैंक में से अपनी विरासत को हासिल करना है।