द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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हम उन लोगों के साथ कोई संगति नहीं रख सकते हैं जो परमेश्वर के वचन के और यीशु ने जो सिखाया, उसके विपरीत चलते है। बिना परमेश्वर के भीड़ के साथ खड़े होने से, परमेश्वर के साथ अकेले खड़े होना बेहतर है। याद रखें कि सामान्य रूप में मसीही-जगत में बहुमत आमतौर पर गलत होता है। यहाँ परमेश्वर के वचन से पाँच उदाहरण हैं जहाँ हम यह देखते हैं:

1. जब बहुमत ने बछड़े की आराधना की तब मूसा ने पूछा कि परमेश्वर की ओर कौन है। केवल एक गोत्र (लेवी) उसके साथ खड़ा था। इसलिए उन्हें याजक का पद (निर्गमन 32:33) दिया गया। बहुमत (11 गोत्र) गलत थे।

2. शाऊल ने परमेश्वर के अभिषिक्त दाऊद पर हमला करने का जो निर्णय लिया, वह उसे विनाश की ओर लेकर गया। शाऊल के पास इस्राएल का बहुमत था। लेकिन परमेश्वर दाऊद के साथ था (1 शमुएल 16)। बाद में अबशालोम के पास भी इस्राएल का बहुमत था जब वह अपने पिता दाऊद का पीछा कर रहा था। लेकिन परमेश्वर दाऊद (2 शमुएल 15) के साथ था।

3. गिनती 13 में हम देखते है कि जिस कनान देश को देने की प्रतिज्ञा परमेश्वर ने इस्राएलियों से की थी, वे उसकी सीमा पर कादेशबर्ने नामक स्थान में पहुंचे। उन्हें मिस्र छोड़े अब 2 वर्ष हो चुके थे (व्यवस्थाविवरण 2:14, 29:5)। और परमेश्वर ने उनसे कहा कि वे जाकर उस भूमि को अपने वश में कर ले। इस्राएलियों ने देश का भेद लेने के लिए 12 जासूसों को भेजा। सभी 12 लोगों ने आकर यह कहा कि वह देश वास्तव में बहुत अद्भुत देश है। लेकिन उनमे से 10 ने यह कहा, उस देश में बड़े डील-डौल वाले लोग रहते है, और हम उन पर विजयी नहीं हो सकते। लेकिन उनमें से दो – कालेब और यहोशू ने यह कहते हुए उत्तर दिया, “प्रभु उन भीमकाय लोगों पर जय पाने में हमारी मदद करेगा”। लेकिन 600,000 इस्राएलियों ने बहुमत की बात सुनी।

हम इससे क्या सीखते है? सबसे पहले यही कि बहुमत के साथ होना खतरनाक हो सकता है – क्योंकि बहुमत का चुनाव गलत ही होता है। यीशु ने कहा, “जीवन का मार्ग बहुत सकेत है, और थोड़े ही है जो उसे पाते है” (मत्ती 7:14)। बहुमत फिर भी विनाश के चौड़े मार्ग में आगे बढ़ता रहेगा। इसलिए यदि आप बहुमत का अनुसरण करते हैं तो आप निश्चित रूप से विनाश के व्यापक रास्ते पर उनके साथ होंगे। कभी मत सोचो कि एक बड़ी कलीसिया एक आत्मिक कलीसिया है। यीशु की कलीसिया में केवल 11 सदस्य थे।

जब दस अगुवे एक बात कहते हैं और दो उनसे विपरीत कहते हैं, तो आप किसका पक्ष लेंगे? परमेश्वर यहाँ इन दो लोगों की ओर था - यहोशू और कालेब। अविश्वास और शैतान बाकी के 10 लोगों की तरफ थे। लेकिन इस्राएलियों ने मूर्खतापूर्वक बहुमत का साथ दिया, और इस वजह से उन्हें अगले 38 साल तक जंगल में भटकना पड़ा था। उनमें यह परखने की क्षमता नहीं थी कि परमेश्वर किसके साथ था! एक व्यक्ति और उसके साथ परमेश्वर मिलकर सबसे बड़े बहुमत से भी बढ़कर होते है – इसलिए मैं तो हमेशा परमेश्वर की ओर रहना ही पसंद करूंगा। निर्गमन 32 में हमने देखा था कि परमेश्वर एक मनुष्य, मूसा की तरफ था, जबकि पूरा इस्राएल सोने के बछड़े की आराधना कर रहा था। लेकिन बाकी सभी गोत्रों मे से सिर्फ लेवी का गोत्र यह देख सका। और जब कि परमेश्वर कालेब और यहोशू की ओर था तो लेवी का गोत्र भी यह नहीं देख सका था!

इस सब बातों में आज हमारे सीखने के लिए कुछ पाठ रखे है। सामान्य रूप में मसीहियत समझौते व सांसारिकता से भरी हुई है। परमेश्वर यहाँ-वहाँ कुछ लोगों को खड़ा करता है जो कोई समझौते किए बिना परमेश्वर के वचन के सत्य के लिए खड़े रहते है। अगर आप में परख का आत्मा है, तो आप जान लेंगे कि परमेश्वर उन थोड़े से लोगों के साथ है और फिर आप बहुमत के खिलाफ होकर उनके साथ खड़े रहेंगे। और आप उनके साथ प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश करने पाएंगे। आप उस मनुष्य को कैसे पहचानेगे जिसके साथ परमेश्वर खड़ा है? वह व्यक्ति विश्वास की भाषा बोलेगा। यहोशू और कालेब ने विश्वास की भाषा बोली: “हम जय पाएंगे”। हम क्रोध, लैंगिक वासना, ईर्ष्या, कुड्कूड़ाहट, इत्यादि भीमकाय शत्रुओं पर जय पा सकते है। हम शैतान पर जय पा सकते है। परमेश्वर शैतान को हमारे पैरों तले कुचल देगा – यह उस मनुष्य की भाषा है जिसके साथ परमेश्वर खड़ा है।

4. जब यीशु धरती पर आया, तब यहूदियों का यीशु को अस्वीकार करने के निर्णय का परिणाम यह हुआ कि वे लगभग 1900 वर्षों तक बिखरे रहें। बहुमत यहूदियों और फरीसियों के साथ था। लेकिन परमेश्वर यीशु के साथ था और उसे मृतकों में से जिलाया।

5. पौलुस के अधिकांश मित्रों ने उसके जीवन के अंत में उसे छोड़ दिया। लेकिन परमेश्वर अंत तक पौलुस के साथ था (2 तीमुथियुस 1:15; 4 :16-18)