अनन्तकाल की सुरक्षा

द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   चेले साधक
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यीशु ने कहा, "मनुष्य प्रत्येक (हर एक) वचन से जीवित रहेगा जो परमेश्वर के मुख से निकलता है" और परमेश्वर के किसी एक वचन मात्र से नहीं (मत्ती 4:4)। इसलिए, यदि हम पवित्र शास्त्र के किसी एक पद को बिना अन्य पदों से मिलाकर पढ़ेंगे तो हो सकता है कि हम गलत निष्कर्ष पर पहुंच जाएँ और आखिरकार उस पर विश्वास कर बैठें जो असत्य है। कई प्रचारकों ने पवित्र शास्त्र के अन्य पदों को अनदेखा कर केवल एक ही पद पर ज़ोर देकर लोगों को झूठी उम्मीदें और धोखे दिए हैं।

बाइबल के सिद्धांतों के प्रति बहुत सी गलत धारणाएँ इसलिए खड़ी हो जाती हैं, क्योंकि हम पवित्र शास्त्र के पदों की आपस में तुलना नहीं करते हैं। जब शैतान ने यीशु से पवित्र शास्त्र के एक पद को उद्धृत करते हुए कहा कि "लिखा है, " तो यीशु ने यह कहते हुए संतुलन बनाया, "यह भी" लिखा है (मत्ती 4:6,7)। परमेश्वर ने पक्षियों को दो पंखों के साथ इसलिए बनाया, ताकि वे सीधे उड़ान भर सकें। बाइबल सत्य भी इसी प्रकार संतुलित किए जाते हैं।

अनन्तकाल की सुरक्षा के सिद्धांत पर विचार करते समय, हमें परमेश्वर की सर्वोच्च प्रभुता और मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा के दो बड़े सत्यों के बीच एक संतुलन बनाना चाहिए।

परमेश्वर ने मानव को एक स्वतंत्र इच्छा प्रदान की है और वे कभी किसी पर उन्हें चुनने का दबाव नहीं डालते। वरन् परमेश्वर अनंत काल से ही जानते हैं, कि उन्हें कौन चुनेंगे और कौन नहीं। xxइसलिए जब परमेश्वर कुछ लोगों को अपनी संतान बनाने का चुनाव करते हैं, तो यह उनके पूर्वज्ञान पर आधारित होता है (जिस प्रकार a1पतरस 1:1,2 में स्पष्ट किया गया है) "ना कि उनके मनमाने ढंग से किए गए चुनाव पर।"

परमेश्वर ने ग्रहों को चुनाव की स्वतंत्रता के बिना बनाया। और इसलिए भले ही हजारों वर्षों से उन्होंने परमेश्वर की व्यवस्था की आज्ञा का अनुसरण आँख मूँद के किया हो, तो भी वे पवित्र या पापी या परमेश्वर की संतान नहीं हो सकते। पशुओं को हालाँकि, परमेश्वर ने एक स्वतंत्र इच्छा के साथ तो बनाया है परन्तु उनके पास विवेक नहीं है। और इसलिए वे भी पवित्र या पापी या परमेश्वर की संतान नहीं हो सकते।

लेकिन जब परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया, तब उसे स्वतंत्र इच्छा और विवेक दोनों ही प्रदान किए। इसलिए, मनुष्य या तो पवित्र या पापी बन सकता है और परमेश्वर की संतान बनने का चुनाव कर सकता है।

परमेश्वर यदि हमारे विवेक को हमसे अलग कर दें, तो हम पशुओं की भांति हो जाएँगे- नैतिक चुनाव कर पाने में असमर्थ और इस प्रकार पवित्र या पापी होने में असमर्थ रहेंगे।

परमेश्वर यदि हमारी स्वतंत्र इच्छा को हमसे अलग कर दें तो हम रोबोट की तरह बन जाएँगे और फिर से पवित्र या पापी होने में असमर्थ रहेंगे। इसलिए हमारे विश्वासी बनने के बाद भी परमेश्वर हमारी स्वतंत्र इच्छा को नहीं हटाते हैं।

यदि हमें अनन्तकाल की सुरक्षा के सिद्धांत को सही प्रकार से समझना है, तो हमें इस सत्य को समझना होगा। ऐसी शिक्षा कि परमेश्वर पर अपनी आस्था से विश्वासियों का हट जाना असंभव है, विश्वासियों को ऐसे रोबोट में बदल देती है जिसके पास चुनाव करने की स्वतंत्रता नहीं होती है।

"परमेश्वर हर्ष से देने वालों से प्रेम रखते हैं" आज्ञाकारिता सहित सभी मामलों में (2 कुरिन्थियों 9:7) । उन्हें ऐसी आज्ञाकारिता की इच्छा नहीं है जो बलपूर्वक लादी गई हो। यही कारण है कि परमेश्वर हमसे चुनाव करने की हमारी स्वतंत्रता नहीं छीनते। हम चाहें तो मसीह के पीछे चलने को चुन सकते हैं और बाद में, यदि चाहें तो, उसे छोड़ देने का चुनाव भी कर सकते हैं।

पापों की क्षमा परमेश्वर का एक अद्भुत, मुफ़्त उपहार है। परन्तु, इसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को इसको चुनना होगा। यदि क्षमा को परमेश्वर ने हम पर थोप दिया होता तब संसार में हर कोई क्षमा कर दिया गया होता और हर कोई बचाया जाता। पवित्र आत्मा से भरे जाने के साथ भी ऐसा ही है। परमेश्वर विश्वासियों को पवित्र आत्मा से भरे होने के लिए बाध्य नहीं करते। उन्हें इसे मांगने को चुनना होगा (यूहन्ना 7:37-39)।

परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ कभी भी अपने आप ही पूरी नहीं हो जातीं। परमेश्वर के सभी वायदे मसीह में हाँ हैं। परन्तु यदि हमें उन्हें प्राप्त और अनुभव करना है तो हमें स्वतंत्र इच्छा से अपने आमीन को इनके साथ जोड़ना चाहिए (2 कुरिन्थियों 1:20 को देखिए)।

इसको प्रमाणित करने का एक उदाहरण ये है। परमेश्वर ने इस्राएल के प्राचीनों से मिस्र में दो प्रतिज्ञाएँ कीं: (1) कि वे उन्हें मिस्र से बाहर ले आएंगें; और (2) कि वे उन्हें कनान देश में ले आएँगे (निर्गमन 3:17)।

परन्तु उन प्राचीनों के जीवन में उन दो प्रतिज्ञाओं में से केवल पहली ही पूरी हुई, क्योंकि उन्होंने केवल पहली पर विश्वास किया और दूसरी पर विश्वास नहीं किया था।(गिनती 14:22,23)

हमारे जीवन में परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ अपने आप ही `पूरी नहीं हो जाएंगी। यदि हमें उन्हें प्राप्त करना है तो हमें उन पर विश्वास करना होगा। जैसे याकूब कहते हैं, हमें विश्वास से और बिना किसी सन्देह के मांगना होगा क्योंकि सन्देह करने वाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है। ऐसा मनुष्य प्रभु से कुछ नहीं पाएगा। (याकूब 1:6, 7)।

फिलिप्पियों 2: 12,13 हमें आज्ञा देता है: डरते और कांपते हुए अपने अपने उद्धार का कार्य पूरा करते जाओ। क्योंकि परमेश्वर ही है, जिसने अपनी सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनों बातों के करने का प्रभाव डाला है।

यहाँ हम देखते है, कि जो कार्य परमेश्वर को भाते हैं, उन्हें पूरा करने की इच्छा और क्षमता को हम में पहले से भर देने वाले स्वयं परमेश्वर ही हैं। यह इस सत्य का केवल एक भाग (पंख) है। परन्तु यदि हमें इसका अनुभव करना है तो aहमें ही अपने उद्धार के कार्य को पूरा करना है। यह सत्य का दूसरा भाग (पंख) है। कुछ मसीही इस सत्य के एक पंख पर और कुछ सत्य के दूसरे पंख पर जोर देते हैं। पूरे सत्य को प्राप्त करने के लिए, हमें दोनों पंखों की आवश्यकता होगी। यदि हम केवल एक ही पंख को अपनाएँगे, तो दायरे के गोल-गोल ही चक्कर काटते रह जाएँगे!!

उपरोक्त पदों में जिस उद्धार की बात की गई है उसे हम केवल तभी अनुभव कर सकते हैं जब परमेश्वर के किए गए भीतरी कार्य को हम अपने अपेक्षित कार्यों द्वारा पूरा करेंगे।

इस का एक प्रमाण अगले ही पद में देखा जा सकता है, जहाँ हमें बिना कुडकुडाए और बिना विवाद के सब काम करते रहने को कहा गया है (फिलिप्पियों 2:14)। कितने विश्वासी ऐसे हैं जो ये गवाही दे सकते हैं कि उन्हें कुडकुडाहट और विवाद से छुटकारा मिल गया है? क्या आप अपने बारे में ऐसी गवाही दे सकते हैं? यदि आप अपने बारे में ऐसी गवाही नहीं दे सकते, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि उन पापों से बचाने के लिए परमेश्वर आप में कार्यरत नहीं हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि अपने अपेक्षित कार्यों को पूरा करके उन पापों से छुटकारा पाने लिए आपने उनकी आत्मा से सहयोग नहीं किया है। इसका अगला पद हमें यह बताता है कि हम जब हर कुडकुडाहट और विवाद से छुटकारा पा लेते हैं, केवल तब हम इस कुटिल और पथ-भ्रष्ट पीढ़ी के बीच परमेश्वर की निष्कलंक संतान बनते हैं (फिलिप्पियों 2:15) हैं। इस मानक के अनुसार क्या अपने आस-पास के संसार में आप ये प्रमाण दे रहें हैं, कि आप परमेश्वर की संतान हैं?

एक अन्य पहलू पर विचार कर के देखिए: परमेश्वर ने अन्यजातियों को भी जीवन के लिए मन-फिराव का दान दिया है(प्रेरितों के काम 11:18)। परन्तु वे चाहते हैं कि सब को मन फिराव का अवसर मिले (2 पतरस 3:9)। इसलिए स्पष्ट रूप से वे हर किसी को मन फिराव का दान देने के लिए तैयार हैं। लेकिन अधिकांश लोग (यहां तक की विश्वासी भी) मन फिराव करने की पवित्र आत्मा की प्रेरणा के प्रत्युतर में कुछ नहीं करते। वे परमेश्वर द्वारा किए गए भीतरी कार्य को अपने अपेक्षित कार्यों द्वारा पूरा नहीं करते।

अब एक और पहलू पर भी विचार कर के देखें: किसी का भी उद्धार करने वाले मात्र परमेश्वर ही हैं। परन्तु वहचाहते हैं कि सब मनुष्यों का उद्धार हो (1 तीमुथियुस 2:4)। इसलिए यदि सभी मनुष्यों को उद्धार नहीं मिला है तो वह इसलिए है कि जो कार्य परमेश्वर मनुष्यों के भीतर करने की कोशिश कर रहे हैं लोग उसके जवाब में कुछ नहीं करते। वे परमेश्वर के अनुग्रह का सामना करते हैं। परमेश्वर जो उनके भीतर करना चाहते हैं, वे उसे अपने अपेक्षित कार्यों द्वारा पूरा नहीं करते।

अनन्तकाल की सुरक्षा की के सन्दर्भ में कई गलत धारणाएँ ऐसी कल्पना से आती है कि अनन्त जीवन का अर्थ है सदा के लिए जीवित रहना। परन्तु अनन्त जीवन कभी न समाप्त होने वाले जीवन से संदर्भित नहीं है, क्योंकि जो लोग नरक में जाते हैं वे भी तो हमेशा के लिए जीते हैं - पर उनके पास अनन्तकाल का जीवन निश्चित रूप से नहीं होता। यीशु ने "अनन्त जीवन" को ऐसे परिभाषित किया, "कि वे तुझ अद्वैत परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तूने भजा है, जाने" (यूहन्ना 17:3)। अनन्त जीवन एक ऐसा जीवन है सर्वप्रथम, जिसका ना तो कोई आरम्भ था और फिर ना ही कोई अंत है। ऐसा तो मात्र परमेश्वर के जीवन के बारे में ही कहा जा सकता है। यही वह ईश्वरीय स्वभाव है, जिसमें हम अब मसीह के द्वारा सहभागी हो सकते हैं (2 पतरस 1:4)।

परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनन्त जीवन है (रोमियों 6:23)। परंतु इसके पहले लिखी आयत (रोमियों 6:22) हमें बताती है, कि जो पाप से स्वतंत्र होकर परमेश्वर के दास बन कर रहना चाहते हैं केवल उन्हीं मनुष्यों को परमेश्वर इस अनन्त जीवन का फल देते हैं । तो भले ही अनन्त जीवन एक मुफ्त वरदान क्यों ना हो, इसे प्राप्त करने की कुछ शर्तें हैं।

अनन्तकाल की सुरक्षा के विषय के सन्दर्भ में, बाइबिल से लिए गए निम्नलिखित सात पदों पर विचार करें। [यह ज़रूरी है कि इन पदों को पढ़ते समय हम अपनी पूर्व कल्पित धारणाओं को त्याग दें कि हम क्या समझते हैं कि ये वचन क्या कह रहे हैं। इन्हें खुले दिमाग के साथ ही पढ़ें क्योंकि, "यह परमेश्वर का वचन है" और तब तुम सत्य को जानोगे]:

1. यूहन्ना 10:27-29: मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं और मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे चलती हैं; और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूं, और वे कभी नाश नहीं होंगी; और उन्हें मेरे हाथ से कोई छीन ना लेगा। मेरा पिता, जिसने उन्हें मुझे दिया है, सब से बड़ा है; और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता। जब इन पदों में निहित प्रतिज्ञाओं पर हम विचार करें, तब हमें यह याद रखना चाहिए कि इन प्रतिज्ञाओं के पूरे होने की कुछ शर्तों का यहाँ उल्लेख किया गया है। अधिकांश मसीही इन शर्तों पर ध्यान नहीं देते! इस कारण वे एक झूठी शिक्षा पर विश्वास कर बैठते हैं। अनन्तकाल की सुरक्षा की यहाँ दी गई प्रतिज्ञा केवल उन मनुष्यों के लिए है जो अंत तक यीशु के पीछे चलते हैं। आप किसी चैक को तब तक नहीं भुना सकते जब तक कि उस पर आपका नाम ना हो; और ठीक इसी तरह आप किसी प्रतिज्ञा पर अपना अधिकार तब तक नहीं जमा सकते जब तक आप उससे जुडी शर्तों को पूरा नहीं करते। यदि आप यीशु के पीछे चल रहे हैं, तो अनन्तकाल की सुरक्षा निश्चित रूप से आपकी है। लेकिन यदि आप यीशु के पीछे नहीं चल रहे हैं, और ये मान कर निश्चिन्त हो गए हें कि आप सदा के लिए सुरक्षित हैं तो आप स्वयं को धोखा दे रहे हैं। लेकिन यदि आप यीशु के पीछे चलते हैं तो आपको उनके हाथ से कोई नहीं छीन सकता। परन्तु आप किसी भी समय उनके हाथ छटक कर उन्हें छोड़ कर जाने का चुनाव कर सकते हैं, "क्योंकि परमेश्वर आपकी स्वतंत्र इच्छा को आपसे कभी वापस नहीं ले लेते।"

2. मत्ती 24:11-13: "अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा। परन्तु जो अंत तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।" यहाँ यीशु स्वयं कहते हैं कि उद्धार पाने के लिए अंत तक धीरज धरे रहना होगा। यदि हमें सच्चाई को जानना है तो हमें यीशु के इन शब्दों को ठीक वैसे ही लेना चाहिए जैसा उन्होंने कहा है।

3. मत्ती 6:14,15: यदि तुम मनुष्य के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा। और यदि तुम मनुष्यों के अपराध क्षमा न करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा न करेगा। यीशु की बातें पूरी तरह सत्य थीं। यह तथ्य कि उन्होंने यहां स्वर्गीय पिता का इस्तेमाल किया, ये बताता है कि उन्होंने ये वचन अविश्वासियों के नहीं वरन परमेश्वर की संतानों के सन्दर्भ में कहा था। वास्तव में, पर्वत पर उपदेश (ये पद जिनका एक हिस्सा हैं) पूर्ण रूप से परमेश्वर की संतानों से संदर्भित था। यहाँ परमेश्वर की संतानों से यीशु कहते हैं कि यदि वे दूसरों के अपराध क्षमा न करेंगे, तो उन्हें अपने अपराधों की क्षमा भी ना मिलेगी। उस उद्धार पाए व्यक्ति का क्या होगा जिसने दूसरों को क्षमा ना किया हो और "परमेश्वर से अपने पापों की क्षमा प्राप्त किए बिना ही" उसकी मृत्यु हो जाए। क्या वह क्षमा-विहीन अवस्था में परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश कर पाएगा? क्या वह मरने के बाद पापों की क्षमा प्राप्त कर सकता है? कब्र से परे पापों की कोई क्षमा नहीं है। तो वह सदा के लिए नाश हो जाएगा। भले ही वह एक बार बचाया क्यों ना गया हो, परन्तु ऐसा ना करके उसने उपने उद्धार को खो दिया होगा। मत्ती 18:23-35 में वर्णित निति-कथा से यीशु ने इस बात को स्पष्ट कर दिया है। वहाँ हम देखते हैं कि राजा द्वारा माफ किया गया पूरा ऋण उस दास के सिर पर दोबारा डाल दिया गया था और उसे बंदीगृह में डाल दिया गया था, मात्र इसलिए कि उसने अपने संगी-सेवक को माफ नहीं किया था। यीशु ने इस निति-कथा का निष्कर्ष करते हुए कहा, "इसी प्रकार यदि तुम में से हर एक अपने भाई को मन से क्षमा न करेगा, तो मेरा पिता जो स्वर्ग में है, तुम से भी वैसा ही करेगा (35) । ये कथा हमें स्पष्ट रूप से सिखाती है कि यदि हम किसी व्यक्ति को क्षमा करने में चूक जाते हैं तो वो सारे के सारे पाप जिन्हें हमारे स्वर्गीय पिता ने एक बार क्षमा कर दिया था, हमारे सिर पर दोबारा डाल दीए जाएँगें। और यदि इस अवस्था में हमारी मृत्यु होगी तो हम क्षमा विहीन रह जाएँगे, अत: हम अनन्तकाल के लिए नाश हो जाएँगे।

4. रोमियों 8:12, 13: "हे भाइयों.. यदि तुम शरीर के अनुसार दिन काटोगे, तो तुम मरोगे"। ये चेतावनी विश्वासी भाइयों के लिए है। पवित्र आत्मा यहाँ विश्वासियों को, (नि:संदेह) यह बताती है कि यदि वे शारीर के अनुसार जिएंगे, तो भले ही beवे एक बार जीवित भी किए गए हों तो भी निश्चय ही वे आध्यात्मिक रूप से मर जाएँगे। फिर भी कई प्रचारक विश्वासियों को ये कहते हैं कि वे आध्यात्मिक रूप से कभी नहीं मरेंगे। उत्पत्ति 2:17 में परमेश्वर ने आदम को ये चेतावनी दी थी, कि यदि उसने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी, तो "वह अवश्य मर जाएगा"(ठीक जैसा रोमियों 8: 13 में लिखा है)। परन्तु शैतान ने कहा, "तुम निश्चय ही नहीं मरोगे"(उत्पत्ति 3:4) जैसा आज कई प्रचारक विश्वासियों को कह रहे हैं। अदन में कौन सही था "परमेश्वर या शैतान? आपके विचार में आज कौन सही है "परमेश्वर या ये झूठे शिक्षक?

5. इब्रानियों 3:12-14: "हे भाइयों, चौकस रहो (यहाँ ये 'पवित्र भाई' वे हैं, जो स्वर्गीय बुलाहट में सह-भागी हैं जिनका महायाजक यीशु है ' जैसा हम पहली आयत में देखते हैं), कि तुम में ऐसा कोई बुरा और अविश्वासी मन न हो, जो जीवते परमेश्वर से दूर हट जाए। क्योंकि हम मसीह के सहभागी तभी होते हैं जब हम अपने प्रथम भरोसे पर अन्त तक दृढ़ता से स्थिर रहते हैं।" यहाँ हम पढ़ते हैं कि पवित्र भाइयों (विश्वासियों) का मन भी भटक सकता है और अंततः बुराई और अविश्वास से भर सकता है, जो उन्हें जीवते परमेश्वर से दूर हटा देता है। हमें यह भी बताया गया है कि हम मसीह के सहभागी केवल तभी बनते हैं जब हम अपने विश्वास पर अन्त तक दृढ़ता से स्थिर रहते हैं। ये शब्द उन सभी के लिए पारदर्शी रूप से स्पष्ट हैं जिनका मन पूर्व-कल्पनाओं से ग्रसित होकर पक्षपात पूर्ण धारणाओं से प्रभावित हो जाता है।

6. इब्रानियों 6:4-6: "उन के विषय में, जिन्होंने एक बार ज्योति पाई है, जो स्वर्गीय वरदान का स्वाद चख चुखें हैं और पवित्र आत्मा के भागी हो गए हैं और परमेश्वर के उत्तम वचन का और आने वाले युग की सामर्थों का स्वाद चख चुके हैं और यदि वे भटक जाएं तो उन्हें मन फिराव के लिए फिर नया बनना अन्होना है; क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र को अपने लिए फिर क्रूस पर चढ़ाते हैं।" यह वचन स्पष्ट रूप से उन विश्वासियों से संदर्भित है जो एक बार पवित्र आत्मा के भागी बने थे। यहां हमें बताया गया है कि ऐसे विश्वासियों की आस्था से हट जाने की सम्भावना बनी रहती है। हमें यह में भी बताया गया है कि इनका मन फिराव की और लौटना तब तक अनहोना है जब तक वे अपने पाप में बने रहते हैं और ऐसा करके वे परमेश्वर के पुत्र को पुनः क्रूस पर चढ़ाते हैं। हर वह व्यक्ति जो पाप को गंभीरता से नहीं लेता, मसीह के क्रूसित होने को तुच्छ जानता है, और एक अर्थ में मसीह को नए सिरे से क्रूसित कर देता है। जब तक व्यक्ति पाप का रवैया रखता है, उसे मन फिराव की ओर लाया नहीं जा सकता। यदि वह उसी अवस्था में रहता है, तो वह सदा के लिए खो जाएगा। परन्तु यदि वह पाप को गंभीरता से लेने का फैसला करता है, तो उसके लिए आशा है और इस प्रकार मसीह को पुनः क्रूसित नहीं करती है।

7. प्रकाशित वाक्य 3:5 "जो जय पाए उसे इसी प्रकार श्वेत वस्त्र पहिनाया जाएगा; और मैं उसका नाम जीवन की पुस्तक में से किसी रीति से ना काटूँगा।" यह वह वचन थे जो यीशु ने एक कलीसिया के प्राचीन (संदेशवाहक) से और उस कलीसिया के सभी विश्वासियों से कहा। यीशु खोखले खतरों की चेतावनी कभी नहीं करते। मसीह की इस चेतावनी को, खुले दिमाग के साथ पढ़ें और अपने आप से पूछें, क्या जीवन की पुस्तक से किसी व्यक्ति का नाम मिटाया जा सकता है? क्या प्रभु सदा सत्य बोलते हैं? जीवन की पुस्तक के बारे में हम में से प्रत्येक से अधिक यीशु ही जानते हैं। तर्क का उपयोग ना करके हमें यहाँ यीशु के शब्दों को यथास्वरूप स्वीकार करना है। यह सच है परमेश्वर ने आदि को अंत से देखा है और इसलिए परमेश्वर ही जानता है कि कौन जय पाएगा, और कौन नहीं। परन्तु यहाँ वे हम से मानवीय भाषा में बात कर रहे हैं, ताकि जीवन की पुस्तक से हम अपना नाम मिटाए जा सकने वाले इस खतरे से सावधान हो सकें। अंतिम न्याय के विषय में इस प्रकार लिखा है: और जिस किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा हुआ ना मिला, वह आग की झील में डाला गया (प्रकाशित वाक्य 20:15) । परमेश्वर इस सत्य को उन ज्ञानियों और समझदारों से छुपाता है जो अपने तर्क का प्रयोग करते हैं और बालकों पर प्रकट करता है "वे जो उसके वचन को एक बालक के हृदय के समान ठीक वैसे लेते हैं जैसे वे लिखे हुए हैं (मत्ती 11:25)।

अनेक लोग ये दावा करते हैं कि उन्हें इस बात पर विश्वास है कि बाइबिल परमेश्वर का अचूक शब्द है। फिर भी वे जिसे मन चाहें उस पर विश्वास करने को चुन लेते हैं और जिसे मन न चाहें उसे अस्वीकार कर देते हैं। वे अपनी भ्रमाने वाली बुद्धि पर निर्भर रहते हैं नाकि उस पर जो परमेश्वर का वचन स्पष्ट रूप से सिखाता है। इसप्रकार वे अपने अहंकार और अपने घमंड को दिखाते हैं।

ये चरम महत्व रखने वाले मामले इसलिए है, क्योंकि ये हमारी अनन्तकाल की नियति को प्रभावित करते हैं। तो हम आँख मूँद कर मनुष्य द्वारा सिखाई गई बात पर विश्वास करके स्वयं को धोखा देने की भूल नहीं कर सकते। हमें परमेश्वर के वचन पर ही विश्वास करना चाहिए जो इस अंधकारमयी दुनिया में एकमात्र ज्योति है। नए नियम के किसी भी अन्य वचन की आप जो भी चाहें व्याख्या करें, वह इस उपरोक्त पद में कहे इस स्पष्ट सत्य को रद्द नहीं कर सकता।

पत्रियों में प्रतिज्ञाओं में से एक अंतिम यह है, कि परमेश्वर हमें ठोकर खाने से बचा सकते हैं (यहूदा 1:24)। यह सत्य है - निश्चय ही प्रभु हमें गिरने से बचा सकने में समर्थ हैं। परन्तु यदि हम खुद को पूरी तरह से उन्हें समर्पित नहीं करते तो वह हमें गिरने से नहीं बचा सकेंगें। वो अपनी इच्छा किसी पर थोपते नहीं हैं, यही करण है हमे इस वचन के तीन पदों पहले यह बताया गया है: "अपने आप को परमेश्वर के प्रेम में बनाए रखो" (यहूदा 1:21)। यदि हम अपने आप को उनके प्रेम में बनाए रखेंगें, तो वे हमें अंत तक बनाए रखेंगे। परन्तु यह एक तरफा मामला नहीं है जो अकेले परमेश्वर पर निर्भर हो। इसमें हमारी भागीदारी भी लगेगी।

विश्वासियों होने के नाते, मसीह से हमारे संबंध की तुलना उस कुंवारी से की गई है जो सगाई के बाद अपने विवाह का इंतजार करती है (2 कुरिन्थियों 11:2; प्रकाशित वाक्य 19:7) । अगले वचन में (2 कुरिन्थियों 11:3), पौलुस कहते हैं कि वो डरते हैं कि जिस प्रकार शैतान ने हव्वा को धोखा दिया था वैसे की शैतान कहीं हमें धोखा देकर हमें मसीह, की भक्ति से दूर ना कर कर दे। स्वर्ग में रहने के वावजूद हव्वा, शैतान के धोखे में आ गई 'और परमेश्वर द्वारा स्वर्ग से बाहर निकाली गई'। आज, हम जो मसीह के साथ सगाई के बंधन में हैं और स्वर्ग की राह पकड़ें हैं। परन्तु यदि हम शैतान को हमें धोखा देने की अनुमति देंगे, तो हम कभी स्वर्ग में प्रवेश न करेंगे।

यदि दुल्हन दुनिया और पाप के साथ वेश्या वृति करती है, तो दूल्हा उससे विवाह करने से इन्कार कर देगा। प्रकाशितवाक्य 17 में इसी वेश्या कलीसिया को बाबुल कह कर संदर्भित किया गया है अंत में यहोवा ने जिसका त्याग कर दिया था।

यदि आप प्रभु से प्रेम करते हैं, तो उसके लिए आप अपने आप को पवित्र रखेंगे, चाहे आप आसपास के अन्य विश्वासियों को दुनिया और पाप से वेश्यावृति करते भी देखें। यीशु ने हमें चेतावनी दी है कि अंत के दिनों में, "ज्यादातर लोगों का प्रेम ठंडा पड़ जाएगा (जाहिर है ये वाक्य विश्वासियों से संदर्भित है क्योंकि वे ही हैं जो प्रभु से प्रेम करते हैं)। लेकिन जो अंत तक धीरज धरे रहेंगें उन्हीं का उद्धार होगा"(मत्ती 24:11-13)।

शैतान हम सभी को धोखा देना चाहता है। पर बाइबिल हमें सावधान करती है कि यदि हम सत्य के प्रेम को ग्रहण ना करेंगे तो परमेश्वर विश्वासियों में भटका देने वाले सामर्थ को भेजेगा जिससे हम झूठ की प्रतीति करें (2 थिस्सलुनीकियों 2:10,11)।

यदि हम परमेश्वर के वचन में लिखे सत्य को स्वीकार करते हैं, और यदि हम पवित्र आत्मा द्वारा दिखाए गए अपने जीवन में उपस्थित पापों के सत्य का सामना करते हैं, और अगर हम उन सभी पापों से उद्धार पाने के लिए उत्सुक हैं, तो हमें कभी भी धोखा ना दिया जा सकेगा।

परन्तु परमेश्वर के वचन में स्पष्ट रूप से लिखे सत्य को यदि हम स्वीकार नहीं करते, या पाप से बचाए जाने की इच्छा हममें यदि ना हो, तब "परमेश्वर हममें भटका देने वाले सामर्थ को भेजेगा जिससे हम झूठ की प्रतीति करें" न केवल अनन्तकाल की सुरक्षा के इस मामले में, वरन अन्य क्षेत्रों में भी।

तो इस पूरे विषय का निष्कर्ष यह है:

हम प्रभु से प्रेम करते हैं, क्योंकि उसने पहले हमसे प्रेम किया और उसने हमारे सब पापों को क्षमा कर दिया। इसलिए, उसके अनुग्रह से हर समय हम अपने विवेक को साफ रखेंगे और उससे प्रेम करते जाएँगे और अंत तक उसके पीछे चलेंगे "और इसप्रकार हम सदा के लिए सुरक्षित हैं।

यीशु का अनुसरण करने वाला हर शिष्य सदा के लिए सुरक्षित है।

इसलिए जो समझता है, मैं स्थिर हूं, वह चौकस रहे; कि कहीं गिर न पड़े (1 कुरिन्थियों 10:12)

जिसके कान हैं वह सुन ले।