हमारी परिकल्पना


CFC Pulpit

प्रभु ने 1975 में CFC की स्थापना बेंगलोर में की । हमने कुछ विश्वासियों के साथ शुरुआत की । जब हमने पहली बार मिलना आरंभ किया, हमें यह समझ नहीं थी कि किस कारण परमेश्वर ने हमे एक किया है । पर धीरे धीरे परमेश्वर ने अपनी योजना हम पर प्रगट की ।

यह इसलिए लिए था कि - नए दाखमधु (यीशु का जीवन और दैवीय स्वभाव) का प्रदर्शन और घोषणा नए मशक में हो (स्थानीय कलिसिया जो यीशु की देह का चिन्ह है, जो नए नियम के नमूना अनुसार है । )

और यह हमारा दर्शन बना

हमारी विशेष बुलाहट

पुराने नियम के हर एक नबी को परमेश्वर ने एक साफ दर्शन दिया था जो उसे इस्राएल में ऐलान करना था, और उन्होने केवल उस संदेश का ही प्रचार किया । उन्होने उसे "प्रभु का बोझ' कहा । वे सब नबी परमेश्वर के आदेश को जानते थे और उन्होने केवल परमेश्वर द्वारा उनके हृदय में दिए गए बोझ पर ही ध्यान दिया और वे कभी उनके प्राथमिक बोझ से हटे नहीं ।

CFC में भी परमेश्वर ने हमे एक साफ दर्शन दिया और एक बुलाहट दी भारत में एक कलिसिया के रूप में । और इन पिछले शतको में इसे पूरा करने के लिए हमने पूरा प्रयत्न किया है, और उससे हटे नहीं ।

पिछले दो सदियों में परमेश्वर ने भारत की भूमि पर कई सारे मिशनरी द्वार सुसमाचार के आंदोलन किए ताकि अविश्वासी लोगो को मसीह के पास लाए और अनेक महत्वपूर्ण बाइबल के सत्य प्रचार करे। हम उनके लिए प्रभु की स्तुति करते है । ऐसे कई नए नियम के सत्य है जिन्हे अभी तक भारत में पर्याप्त महत्व नहीं दिया जा रहा है ।

और यह महत्वहीन सत्य जो की नए नियम में है - शिष्यो की दशा, सुरक्षा जो परमेश्वर को एक पिता मानने से महसूस होती है, यीशु के पदचिन्हों पर चलना, पवित्र आत्मा का सामर्थ हमारे भीतर से बहना, परमेश्वर के स्वभाव में सहभागी होना, कलवरी का मार्ग, सारे जानकर किए जानेवाले पापो पर विजय, सांसारिकता और पैसो के प्रेम से आज़ादी, निराशा, भय और चिंता से आज़ादी, पहाडी उपदेशो का पूरा पालन (मत्ती 5, 6 और 7), ये विश्वास करना की परमेश्वर वो सबकुछ हमारे साथ करेगा जो उसने यीशु के साथ किया, स्थानिय कलिसिया को बनाना ।

CFC का बोझ भारत के हर कलिसिया में यह सत्यों को फैलाना है । परमेश्वर ने हमे यह मौका दिया की - यह सत्य अनेक सार्वजानिक सभाओ द्वारा, कोनफरन्स, रेडियो और लेखो द्वारा, और हजारो टेप्स, सीडी, और डीवीडी के बांटने के द्वारा ।

परंतु बहुत सारी अन्य कलिसियाओ ने हमारा और हमारे संदेशो का विरोध किया और अपने दरवाजे हमारे लिए बंध कर दिए ।

उसके बाद परमेश्वर ने चमत्कार किया । उसने हमारे लिए इंटरनेट का द्वार खोल दिया । हम वहाँ हजारो संदेश रखते हे हमारे समर्पित भाइयो की मदद के द्वारा जिन्हे परमेश्वर सीएफ़सी में लेकर आए । इनके द्वारा केवल भारत भर से ही नहीं परंतु दुनिया के कई जगह से विश्वासियों का हमे प्रतिभाव मिला । इन संदेशो द्वारा उनके जीवन परिवर्तित हुए और विवाहित जीवन चंगे हुए । कई जगह नयी कलिसिया स्थापित हुई ।

और इस प्रकार यह सत्य हर कलिसिया के अगुवो की गलतफहमी को फाँदते हुए जिन्होने हमारे लिए दरवाजे बंध किए थे, उन तक पहुचा जो भूखे है । आज कई विश्वासी अनेक कलिसिया में इन अद्भुत सत्यों द्वारा प्रभावित हुए और औरों के साथ भी इन्हे बांटते है । हम परमेश्वर का धन्यवाद करते है इन सब बातों के लिए, और इसीके लिए हमने प्रार्थना की थी । इस प्रकार हमने परमेश्वर के उद्देश को सीएफ़सी में पूरा होता हुए देखा । परमेश्वर के तरीके बहुत ही अद्भुत है । जब हम केवल उसके अनुग्रह को चाहते है और खुद के लिए कुछ भी नहीं तब हम उसके अनोखे कामो को देखते है ।

पौलूस ने कहा उसका उद्देश "हर एक व्यक्ति को मसीह के सामने सिद्ध खड़ा करे" और उसने उसके लिए अंत तक कड़ी मेहनत भी की (कुलुसियो 1:28,29) । और यही हमारा ध्येय भी है । हम सीएफ़सी में हर एक व्यक्ति को सच्चे शिष्य बनाने का प्रयत्न करते है जो अपने रिश्तेदारो से, खुद से और किसी भी संसारी चीजों से बढ़कर परमेश्वर से प्रेम करे (लुका 14 : 26,27 और 33) । हम उन्हे यीशु की सारी आज्ञाएँ मानना सिखाते है (मत्ती 28:20) ।

हम यह जानते है कि यह एक सकरा मार्ग है और बहुत कम उसे ढूंढ पाते है । हम यह भी जानते है कि यीशु की 12 लोगो की कलिसिया में भी एक ढोंगी उनके साथ संगति करता था । हम मानते है कि सीएफ़सी में भी ऐसे ढोंगी होंगे यीशु के आगमन तक । पर हमने निश्चय किया है और हमारा ये श्रेष्ठ प्रयत्न है कि हम सत्य वचन के प्रचार द्वारा ऐसे ढोंगी को पूरी तौर से बदल दे - और पश्चताप की आशा से ।

सुसमाचार का प्रचार और शिष्य बनाना

सीएफ़सी में हम विश्वासियों को औरों के साथ व्यक्तिगत रूप से सुसमाचार बांटने के लिए प्रोत्साहित करते है । इस प्रकार बहुत लोग यीशु के पास आए और हमारे कलिसिया में एक हुए हे पिछले सालो में । और इस तरह भारत के कई शहरों और गावों में यहाँ तक विश्व में परमेश्वर ने कलिसियाओं की स्थापना की ।

सीएफ़सी में हमारी एक विशेष बुलाहट की वजह से हम किसी और सेवकाई में भाग नहीं लेते (जैसे समाज सेवा), ऐसा करने से हमारा ध्यान हमारी प्राथमिक बुलाहट से हट सकता है । हम नहीं चाहते की अंत के दिनो में हमारे लिए यह कहा जाए "हमने लोगो के खेतो की देखभाल की परंतु परमेश्वर ने हमें दीए गए खेत की रखवाली हमने नहीं की" (श्रेष्ठगीत 1:6) । हम यह सेवा औरों के लिए जिन्हे उसके लिए बुलाया गया है, इसे मानकर चलते है । हम दूसरे विश्वासियों के सामने संतुलित दिखना नहीं चाहते बहोत सारी सेवकाई करने के द्वारा । केवल परमेश्वर की बुलाहट और स्वीकृति ही हमारे लिए मायने रखती है ।

क्योंकि हम एक बढ़ती कलिसिया है और हम पर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है नए विश्वासियों के लिए और उन बच्चो के प्रति भी जो हमारे मध्य में बढ़कर बड़े हो चुके है । उस सबको शिष्य बनाना जरूरी है । नए विश्वासी और बढ़ते बच्चे यह दोनों एक तंदूरस्त और बढ़ती कलिसिया के चिन्ह है । नए विश्वासि और पुराने बड़े हुए बच्चे ही हमारे कार्य क्षेत्र है ।

परमेश्वर और पैसा

सीएफ़सी में हमने पैसो के प्रति एक स्वभाव अपनाया है, क्योंकि यीशु ने कहा हम परमेश्वर और पैसो दोनों की सेवा नहीं कर सकते (लुका 16:13), और हमने केवल परमेश्वर की ही सेवा करने का निश्चय किया । और हर बदनामी से बचने के लिए हमने कई व्यवहारिक निर्णय लिए पैसो के प्रति हमारी सेवकाई में । हमने निर्णय लिया कि हमारे मध्य कोई भी प्रचारक वेतन पर नहीं होगा और हम हमारी कोई भी सभा में दान नहीं लेंगे । हम पुराने नियम के दशमांश के नियम वीरुध प्रचार करेंगे । हम सिखाएँगे कि हमारा परमेश्वर को देना आनंद और इच्छापूर्व होना चाहिए । हम किसी पर भी पैसे देने प्रति दबाव नहीं डालेंगे । हम हमारे रिपोर्ट किसी को भी नहीं भेजेंगे और कभी किसी के सामने अपनी कलिसिया की आर्थिक जरूरतों को जाहिर नहीं करेंगे । हम दहेज लेने और देने के विर्रूध खड़े होंगे और हम सभी को कर्ज से मुक्त जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करेंगे (रोमियो 13:8) ।

परमेश्वर के अनुग्रह से आरंभ से ही हम नए वाचा के स्तर को थामे हुए है । हमारे इन सिद्धांतों पर मजबूती से खड़े रहने के कारण हमने कई मसीही समुदाय और कलिसियाओ से विरोध और आलोचना सही है । परंतु हम जानते है कि हम किसके लिए खड़े है और जब तक प्रभु फिर न आए हम इन सिद्धांतों पर दृढ़ता से बने रहेंगे ।

प्रेरित पौलूस की तरह हमारे सारे अगुए आर्थिक रीति से स्वयं पर निर्भर है । पौलूस कभी कबार अन्य विश्वासियों से भेट लेते थे । परंतु वह कभी भी अपनी निजी जरूरतों और अपनी सेवकाई के लिए दूसरों के भेंटों पर निर्भर नहीं रहे । उन्होने इस सबकी पूर्ति के लिए अपने स्वर्गीय पिता पर विश्वास किया । और यही निश्चय हमने भी लिया है और यह हमारे दर्शन का अनिवार्य भाग है ।

यह पूरी तरह से सही उनके लिए जो लोग प्रभु की सेवकाई से जुड़े है और अन्य लोगो द्वारा उनका सहयोग किया जाता है, क्योंकि परमेश्वर ने स्वयं यही ठहराया है कि जो लोग सुसमाचार सुनाते है उनकी जीविका सुसमाचार से हो (1 कुरंथिओ 9:14) । परंतु पौलूस ने अपना स्वयं का भरण पोषण किया क्योंकि उसने देखा कि किस रीति से परमेश्वर के नाम की निंदा उन उपदेशको के कारण हो रही थी जो आत्मिक वरदानो का इस्तेमाल अपने खुद के लिए धन इकट्ठा करने के लिए कर रहे थे । इस कारण इन भ्रष्ट लोगो के बीच में पौलूस स्वयं परमेश्वर की सच्ची गवाही बनना चाहता था ।

भारत में भी हम यही स्थिति को पाते है । इसलिए सीएफ़सी में हमे पौलूस के समान यह जरूरत महसूस हुई की हम पैसो के संदर्भ में इन भ्रष्ट प्रचारको से अलग हो और हमारी भूमि पर प्रभु की एक गवाही बने । और यह दृढ़ संकल्प हमने लिया जिसने हमे कई बलाम, गहजी और देमास से बचा लिया जो शायद हमारे साथ जुड़कर प्रभु की गवाही को भ्रष्ट कर देते ।

हम कभी भी सीएफ़सी में विश्वासियों से यह नहीं कहते की किस प्रकार से अपने पैसो का इस्तेमाल करे । वे अपनी इच्छा के अनुसार उसका इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र है चाहे वह मिशन या अनाथालय का सहयोग करे या चाहे तो सड्को पर भिकारियो को दे । परंतु सीएफ़सी में प्रभु के लिए दिए गए दानो का इस्तेमाल हम केवल शिष्य बनाने और गरीब विश्वासियों की सहायता के लिए करते है जो हमारा दर्शन है (गलतियो 6:10) ।

सेवकाई, दशमांश और अधिकार

सेवकाई: इफिसियों 4:11 में लिखा है कि मसीह के वरदानो से भरे हुए दास कलिसियाओ को दिए है - प्रेरित, भविष्यवक्ता, सुसमाचारक, उपदेशक और चरवाहा । प्रभु ने अपनी भलाई में इस पांचों सेवकाईओ को सीएफ़सी में दिया है ।

परंतु हम किसी भी भाई को पदवी या शीर्षक से नहीं बुलाते (पौलूस ने खुद को प्रेरित कहा क्योंकि वह चाहते थे कि लोग उनके लिखे हुए वचन को परमेश्वर का वचन जानकर स्वीकार करे, परंतु आज ऐसी कोई आवश्यकता नहीं है) ।

हालांकि हम इन पाँच सेवकाई के उपयोग में विश्वास करते है और हमारे बीच में इन सेवकाई के उपयोगो द्वारा हमने महिमामय परिणाम देखे है । और यही हमारे लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है और वो नहीं जो प्रत्येक सेवकाई को पूरा करता है, क्योंकि हम सब एक देह और एक दूसरे के दास है

पदवी: केवल एक ही पदवी जो प्रभु हमे इस्तेमाल करने की अनुमति देते है वह "भाई" और "सेवक" है (मत्ती 23:8,11) । हम सबको भाई और सेवक बनना है ।

यीशु ने कहा कि जब हम सारी आज्ञाओं का पालन कर चुके जिसकी आज्ञा उसने हमे दी थी तब हम अपने आप को अयोग्य दास जिसने केवल वह किया है जो प्रभु ने करने की आज्ञा दी थी (लुक 17:10) । और यही पदवी की हमें इच्छा रखनी है ।

अगुवो की आधीनता में: बाइबल हमे बताती है कि हम अगुवो की आज्ञा माने और उनके आधीन रहे (इब्रानिओ 13:17) । इसलिए जो लोग सीएफ़सी का भाग होना चाहते है उन्हे हम परमेश्वर की इस आज्ञा को मानना सिखाते है कि वे अपने स्थानीय अगुवो के आधीन रहे कलिसिया के संदर्भ में । हम किसी पर यह करने के लिए दबाव नहीं डालते क्योंकि इस प्रकार की आधीनता का मूल्य तब ही है जब वो स्वेच्छा से हो

अन्य कलिसियाओ में लोगो पर अगुवो, या पॉप या पास्टर के आधीनता के लिए दबाव डाला जाता है परंतु हम किसी पर भी हमारे अधिकार को थोपते नहीं है । हम विश्वासियों को आज़ादी देते है कि वे किसी के भी अधीन रह सकते है । और जिस अगुवे पर उन्हे भरोसा है वे अपनी स्वेच्छा से उनके अधीन हो सकते है क्योंकि उन्हे आधीनता से मिलनेवाली समझ और सुरक्षा चाहिए । लोगो को अगुवो पर एक भरोसा उत्पन्न होता है जब वे देखते है की किस प्रकार से वे अपने जीवन को जीते है, किस प्रकार से उन्होने अपने परिवार को संभाला है और परमेश्वर उनकी सेवकाई की क्या गवाही देते है ।

प्रेरितों के काम में नए जन्म पाए हुए लोग कलिसिया में आते थे । और तब प्रेरित उन कलिसिया पर अगुवो को चुनते थे (तितुस 1:5) । हर एक कलिसिया में सेवकाई में संतुलन बनाने के लिए दो अगुवे होते थे । यह अगुवे विश्वासियों के आत्मिक पिता हुआ करते थे और उनकी चरवाही करते थे ताकि उन्हे परिपक्वता की ओर बढ़ा सके । और अगुवे खुद प्रेरितों द्वारा मार्गदर्शन प्राप्त करते थे (प्रेरितों की अनुपस्थिति में) अन्य परिपक्व अगुवे । और यही नए नियम के तरीके को हमने CFC से जुड़ी सारी कलिसिया में अभ्यास किया है ।

विश्वासियों और अगुवो का अनुशासन हर एक अच्छे घर में एक पिता अपने बच्चो को अनुसाशित करता है । और सीएफ़सी से जुड़े कलिसिया में - हम उन्हे जो पाप में निरंतर बने रहते है अनुशासित करते है (जैसे मत्ती 18:15-17), "क्योकि थोडा सा खमीर पूरे गूँधे हुए आटे को खमीर कर देता है"

यदि दो या तीन विश्वासी कलिसिया के अगुवे पर दोषारोपण करते है, तब वरिष्ठ अगुवे (जिनको प्रेरितों की कलिसिया की ज़िम्मेदारी दी गयी है) - वे उनको अच्छी तरह से जाचेंगे । अगर किए हुए दोष सही निकले तो 1 तीमुथियूस 5:19-21 में दिए गए नियम का पालन हम करेंगे

"कोई दोष किसी प्राचीन पर लगाया जाए तो बिना दो या तीन गवाहो के उस को न सुन । पाप करनेवालों को सब के साम्हने समझा दे, ताकि और लोग भी डरें, और कोई काम पक्षपात से न कर ।"

और यह अनुशासन किसी भी पक्षपात बिना होना चाहिए । और प्राचीन ने जिस स्तर तक गुनाह किए हो उस स्तर तक उसे अनुशासित करना होगा - और पूरी कलिसिया को उसकी जानकारी देनी होगी (ऊपर के वचन में बताए अनुसार) । प्रभु प्रेरित यूहन्ना से कहते हुए हम देखते है की उसकी डांट उन सारे पीछे हटे कलिसिया के प्रति - सभी कलिसिया को बता दे प्रकाशितवाक्य 2 और 3) ।

इस बात में यदि किसी भाई को परमेश्वर द्वारा अधिकार दिया गया हो कि वो अगुवो की स्थापना करे कलिसिया में, तब वो वही अधिकार जरूरत पड़ने पर किसी अगुवो को अनुशासित करने के लिए इस्तेमाल कर सकता है ।

इस सब बातो में यह अनुशासन प्रेम की आत्मा में किया जाता है (जो एक पिता करता है), यह आशा के साथ की अंत में वह विश्वासी पुनः स्थापित हो (प्राचीन के रूप में ) प्रभु के लिए और कलिसिया के लिए (2 कुरुन्थिओ 2:6-11) ।

स्थानीय कलिसियाओ के बीच संगति

सीएफ़सी से जुड़ी कलिसियाए कोई संप्रदाय नहीं है । हम संगति है उन कलिसिया की जो साथ मिलकर काम करती है, क्योंकि सब का एक ही दर्शन है । हमारा कोई केन्द्रीय मुख्यालय नहीं है । हमारे यहा अगुवेपन के लिए कोई चुनाव नहीं होते । हमारे यहा कोई भी सुपरिटेंडन् या प्रेसिडेंट नहीं है । हमारे यहाँ कोई केन्द्रीय नियंत्रण या कोई कलिसिया की जायदाद नहीं है । हर एक कलिसिया प्रभु के अधीन स्वतंत्र है । इसलिए हर एक नियुक्त किए गए प्राचीन सबसे पहले प्रभु की ओर उत्तरदाई है (और यह नए नियम के नमूना रूप है जो प्रकाशितवाक्य 1:20 में है "हर एक तारे प्रभु के हाथो में है" । हमारा कोई धर्मप्रदेश या समुदाय नहीं हे जो किसी बिशप के अधीनता में हो । किसी भी स्थानिय कलिसिया के अगुवो को केवल उनही के कलिसिया के प्रति अधिकार है । और कोई भी अगुवे को किसी और कलिसिया के अधीनता में रहने के लिए नहीं कहा जाता ।

पौलूस ने जिन कलिसिया की स्थापना की उसे किसी संप्रदाय में नहीं जोड़ा । सीएफ़सी और उससे जुड़े कलिसियाए कोई संप्रदाय नहीं है । हर एक कलिसिया सीएफ़सी में पूरी तौर से आत्मनिर्भर है और उनकी अगुवाई उनके अगवो के द्वारा होती है । कोई भी इन प्राचीनो को नियंत्रित नहीं करता है कि उन्हे क्या करना चाहिए । प्रभु ही केवल उनके प्रमुख है ।

किसी भी समस्या के समय वे वरिष्ठ प्राचीन से सलाह ले सकते है जिनको प्रेरितों की बुलाहट से बुलाया गया है, जैसे कुरुन्थिओ की कलिसिया ने पौलूस का संपर्क किया जब वे अपने बीच किसी समस्या का सामना कर रहे थे । उस समय पौलूस की सलाह से उन्हे मदद मिली उनके समस्या के समाधान के लिए ।

हम निरंतर हमारी सीएफ़सी कलिसियाओ के बीच में संबंध बने रहने के लिए और उनकी एकता को मजबूत करने के लिए अक्सर कॉन्फ्रेंस का आयोजन करते है ।

पारिवारिक जीवन का महत्व

सीएफ़सी में परिवार में भक्ति महत्वपूर्ण है । और इसलिए हम अक्सर ऐसी सभाओ का आयोजन करते है जिनमे हम सिखाते है - अच्छे पति पत्नी के संबंध के बारे में, एक दूसरे के प्रति प्रेम और आदर और कैसे बच्चो की परवरिश परमेश्वर के मार्गो में करे ।

परमेश्वर ने पत्नियों को पति के सहायक के रूप में बनाया है । सीएफ़सी में पत्नियों को सराया जाता है अपने पति के सहायक रूप में और सेवकाई में । सीएफ़सी में हम पतियों को अपनी पत्नी की अच्छी देखभाल करनेवाले होने के लिए सिखाते है, उनके आगे जाकर एक उदाहरण बनकर ।

परमेश्वर की बेटी भी भविष्यवाणी कर सकती है, हम सीएफ़सी में बहनों को पवित्र आत्मा से भरने के लिए प्रोत्साहित करते है (प्रेरितों के काम 2:17, इफिसियों 5:18, 1 कुरुन्थिओ 14:1) - की वे प्रोत्साहन के वचन औरों के साथ बांटे (जैसे हम 1 कुरुन्थिओ 14:3) - सबसे पहले उनके खुद के घरो में उनके पति और बच्चो के प्रति और अन्य बहनों प्रति ।

सीएफ़सी का भावी नेतृत्व

सीएफ़सी में हम सारे जवान भाइयो को पूर्ण हृदय से बने रहने के लिए प्रोत्साहित करते है ताकि परमेश्वर उनमे से किसी को अनुग्रह दे कि वे आनेवाले दिनो में कलिसिया के अगुवे बने ।

मानव के इतिहास से ही जलन एक बहुत बड़ी समस्या रही है । कैन अपने छोटे भाई हाबिल से जलन रखता था, शाउल दाऊद से जलन रखता था । और मसीहत के इतिहास मे ऐसे कई उदाहरण है जहां ' प्राचीन' उनसे ज्यादा वरदान रखनेवाले छोटे भाईओ से जलन रखते है जो आगे आ रहे है । सीएफ़सी में हम प्राचीनो को प्रोत्साहित करते है कि वे ऐसे जवान भक्तिमय भाई को देखे और उन्हे अगुवेपन की ओर प्रशिक्षित करे ।

परमेश्वर के काम में कोई सेवा निवृति नहीं होती, सीएफ़सी में एक प्राचीन कभी निवृत नहीं होते । परंतु जैसे पिता अपने बेटे को बढ़ाते है परिपक्वता की ओर, और अपने आपको पीछे रख कर अपने संतान को आगे करते है, और इसी प्रकार से सीएफ़सी में वरिष्ठ प्राचीन करते है । ऐसे नम्र, भक्तिमय, पिता समान हृदय रखनेवाले प्राचीन जो आदर के योग्य है और उनके आत्मिक संतान उनसे सलाह लेते है उनके जीवन के अंत तक ।

"क्या ही भली और मनोहर बात है कि भाई लोग आपस में मिले रहे" (भजन 133:1,3)

"जो सेवा प्रभु में तुझे सौपी गई है उसे सावधानी के साथ पूरी करना" (कुलुस्सियों 4:17)