स्पष्ट सुसमचार सन्देश

द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   मूलभूत सत्य साधक
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इस लेख में मैं यह समझाना चाहता हूँ कि ''नया जन्म'' - या ''बचाए जाने'' का क्या अर्थ हैं

इस अनुभव का पहला कदम है पश्चातापं परंतु पश्चाताप करने (पापों से फिरने) के लिये आपको सबसे पहले यह जानना होगा कि पाप क्या हैं आज पश्चाताप के विषय मसीहियों में कई झूठी समझ है, क्योंकि पाप के विषय ही समझ झूठी हैं

पिछले कुछ दशकों में मसीहत का स्तर काफी प्रमाण में गिर चुका हैं कई प्रचारकों द्वारा ''सुसमाचार'' का प्रचार सत्य का मिश्रित रूपांतर हैं लोगों को केवल यीशु पर विश्वास करने के लिये कहा जाता हैं परंतु केवल यीशु पर विश्वास कर लेने से कोई व्यक्ति बच नहीं जाता, जब तक वह पश्चाताप न करें

नया जन्म लेना मसीही जीवन की बुनियाद हैं यदि आप इस बुनियाद को डाले बिना एक अच्छा जीवन जीएंगे, तो आपकी मसीहत संसार के अन्य धर्मों के समान हेागी - जो उन लोगों को भी अच्छा जीवन जीने की शिक्षा देते हैं हमें निश्चित रूप से अच्छा जीवन जीना चाहियें परंतु यह मसीहत का उत्कर्ष ढांचा ही होगा - उसकी बुनियाद नहीं बुनियाद है नया जन्म लेनां हम सभी की शुरुवात वहीं से होना चाहियें

''फिर से जन्म लेना'' इस अभिव्यक्ति का उपयोग यीशु ने यूहन्ना 3:3 में किया जब वह नीकुदेमुस से बातें कर रहा थ जो एक धार्मिक अगुवा, परमेश्वर का भय मानने वाला धर्मी व्यक्ति थां तब भी यीशु ने उससे कहा, ''यदि कोई नए सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता'' (यूहन्ना 3:3)ं इस प्रकार हम देखते है कि यद्यपि आप एक भले व्यक्ति होंगे परंतु परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिये आपको एक आत्मिक जन्म लेने की जरूरत होगीं तब यीशु ने उससे कहा कि वह (यीशु) मरने के लिये क्रूस पर चढ़ाया जाएगा और जो उस पर विश्वास करेंगे, वे अनंत जीवन पाएंगे (यूहन्ना 3:14,16).

यीशु ने उसे यह भी बताया कि लोगों ने अंधकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे (यूहन्ना 3:19)ं परंतु जो सत्य पर चलते हैं, वे ज्योति में आएंगे और बचाए जाएंगे (यूहन्ना 3:21)ं नया जन्म लेने के लिये आपको ज्योति में आना होगां इसका मतलब परमेश्वर के साथ ईमानदार और उसके सामने अपने पापों को मान लेनां ज़ाहिर है कि आप किये गए सभी पापों को याद नहीं रख सकतें परंतु आपको यह तो मानना ही

पाप एक बहुत बड़ी बात है और आप अपने जीवन में सर्वप्रथम उसके एक भाग को ही देख सकते हैं यह ठीक वैसा ही है जैसे आप एक बहुत बड़े देश में रहते हैं और आपने उसके एक छोटे से भाग को ही देखा हैं परंतु जैसे ही आप ज्ञात पापों से फिरते हैं, आप धीरे-धीरे पाप के पूरे देश को भी जान पाएंगें जब आप ज्योति में चलना शुरू करेंगे, आप अपने और अधिक पापों को देख पाएंगे - और तब आप स्वयं को उससे अधिकाधिक श्ुाद्ध कर पाएंगें इसलिये आपको हमेशा ही परमेश्वर के समक्ष ईमानदारी से चलना चाहियें

एक और उदाहरणः आप एक ऐसे घर में रहते है जिसमें कई गंदे कमरे हैं आप चाहते हैं कि प्रभु यीश आपके साथ आकर उस घर में रहें परंतु वह गंदे कमरों में नहीं रह सकतां इसलिये वह एक के बाद एक कमरे को साफ करने में आपकी मदद करता हैं थोड़ा-थोड़ा करके पूरा घर साफ कर लिया गया हैं इसी प्रकार हम मसीही जीवन में पवित्रता में बढ़ते जाते हैं

एक बार पौलुस प्रेरित ने कहा कि वह जहाँ भी गया उसने हर किसी को वही सुसमाचार सुनाया : परमेश्वर की ओर मन फिराना और हमारे प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करना (प्रेरितों के काम 20:20)ं आपके जीवन में एक अच्छी बुनियाद डालने और नया जन्म लेने के लिये ये दो बातें ज़रूरी हैं परमेश्वर ने पश्चाताप और विश्वास को साथ जोड़ा हैं परंतु अधिकांश मसीही प्रचारकों ने उन्हें अलग कर दिया हैं आजकल के सुसमाचार प्रचार में पश्चाताप को छोड़ दिया जाता हैं अधिकांश लोगों द्वारा केवल विश्वास का ही प्रचार किया जाता हैं

परंतु यदि अगर आपके पास केवल विश्वास हो, तो आप नया जन्म नहीं पा सकतें यह उसी कहावत के समान है कि एक महिला अपने आप ही बच्चे को जन्म नहीं दे सकती चाहे वह कितनी भी कठिन कोशिश क्यों न कर लें एक पुरुष भी अकेले बच्चा नहीं पा सकतां एक बच्चे के जन्म के लिये एक पुरुष और एक स्त्री को मिलन करना ही होता हैं उसी प्रकार, जब पश्चाताप और विश्वास एक साथ मिल जाते हैं, एक आत्मिक बालक उत्पन्न होता है - जिससे आपकी आत्मा मे ंनया जन्म होता हैं यह आत्मिक जन्म शारीरिक जन्म के समान ही वास्तविक होता है - और यह एक क्षण में हो जाता हैं यह जन्म धीरे-धीरे नहीं होतां

नए जन्म के लिये महिनों की तैयारी हो सकती हैं - ठीक उसी प्रकार जैसे शारीरिक जन्म के लिये कई महिनों की तैयारी होती हैं परंतु नया जन्म (शारीरिक जन्म के समान) एक क्षण में ही हो जाता हैं कुछ मसीही उनके नए जन्म की तारीख नहीं जानतें मैं भी अपने नए जन्म की तारीख नहीं जानतां परंतु यह ठीक उसी प्रकार है जैसे एक व्यक्ति अपने जन्म की तारीख नहीं जानतां यह कोई गंभीर बात नहीं है - तब जब कोई व्यक्ति ज़िंदा ही होता हो!! उसी प्रकार यह महत्वपूर्ण बात निश्चित रूप से जानना है कि आप मसीह में आज जीवित हैं

क्या हम उस समय संकीर्ण विचार के होते हैं जब हम यह कहते हैं कि परमेश्वर तक पहुँचने का मार्ग केवल यीशु ही है?

इसका उत्तर मैं आपको एक उदाहरण द्वारा देना चाहता हूँ : कोई व्यक्ति जिसने मेरे पिता को कभी नहीं देखा है (या उनका फोटो भी नहीं) वह यह नहीं जान सकता कि मेरे पिता कैसे दिखते हैं उसी प्रकार हम भी जिन्होंने परमेश्वर को कभी नहीं देखा उसके विषय या उसके पास पहुँचने का मार्ग नहीं जान सकतें परंतु यीशु मसीह परमेश्वर की ओर से आयां

इसलिये केवल वही है जो हमें परमेश्वर के पास जाने का मार्ग बता सकता हैं उसने कहा, ''मार्ग मैं ही हूँं बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता'' (यूहन्ना 14:6)ं जब हम यीशु के दावे के विषय सोचते हैं कि परमेश्वर पिता के पास पहुँचने का वही एक मार्ग है, तो हमें यह कहना होगा कि या तो उसने जो कहा वही सच है या वह झूठा और धोखेबाज थां यह कहने की हिम्मत कौन कर सकता है कि वह झूठा और धोखा देने वाला था? केवल इतना ही कह देना काफी नहीं होगा कि वह (यीशु) मात्र एक अच्छा व्यक्ति या भविष्यद्वक्ता थां नहीं वह स्वयं परमेश्वर है - मात्र एक अच्छा व्यक्ति नहीं यदि वह झूठा और धोखा देने वाला होता तो संभवतः वह अच्छा व्यक्ति नहीं रहा होता! इसलिये हम अंत में यह निष्कर्श निकाल सकते हैं कि यीशु मनुष्य के रूप में सचमुच परमेश्वर थां

सभी सत्य संकीर्ण विचार के हैं गणित में 2+2 हमेशा 4 होते हैं हम 3 या 5 को भी संभवित उत्तर मान लेने वाले ज्यादा समझदार नहीं बन सकतें यहाँ तक कि हम 3.9999 को भी उत्तर स्वीकार नहीं कर सकतें यदि हम सत्य के ऐसे कमी घटी को भी स्वीकार कर लें तो हमारे गणित के हिसाब गलत हो जाएंगें उसी प्रकार हम जानते हैं कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती हैं यदि हम कुछ ''ज्यादा ही समझ वाले'' होने की सोच लें और किसी ऐसी धारणा (सिद्धांत) को स्वीकार कर लें जो यह कहता हो कि सूर्य भी पृथ्वी के चारों ओर घूमता है, तो हमारे खगोलशास्त्र के हिसाब गलत हो जाएंगे! उसी प्रकार रसायन शास्त्र में भ्2व् पानी होता हैं हम ज्यादा समझ वाले होकर यह नहीं कह सकते कि भ्2व् नमक भी होता है!! इस प्रकार हम देखते है कि सत्य हर क्षेत्र में संपूर्ण होता हैं ज्यादा समझदारी गणित, खगोलशास्त्र और रसायनशास्त्र में गंभीर त्रृटियाँ ला सकते हैं - और परमेश्वर की सच्चाई को भी जानने के विषय गलती हो सकती हैं

बायबल सिखाती है कि सभी मनुष्य पापी हैं - और यीशु पापियों के लिये मरां इसलिये यदि आप यीशु के पास एक ''मसीही'' के समान बनकर जाएंगे, तो वह आपके पापों को क्षमा नहीं करेगा क्योंकि वह मसीहियों के लिये नहीं मरा! वह पापियों के लिये मरां केवल वही व्यक्ति क्षमा प्राप्त कर सकता है जो यीशु के पास आकर कहता है, ''प्रभु मैं एक पापी हूँं'' आप यीशु के पास किसी धर्म के सदस्य के रूप में आकर क्षमा नहीं प्राप्त कर सकते, क्योंकि वह पापियों के लिये मरां यदि आप उसके पास एक पापी के समान आएंगे तब आपके पाप तुरंत क्षमा किये जाएंगें

हम सब के लिये यह जानना आसान है कि हम पापी हैं - क्योंकि परमेश्वर ने हमें विवेक दिया हैं बच्चों का विवेक अति संवेदनशील होता है जो उन्हें किसी गलत बात के विषय जल्द ही सचेत कर देता हैं परंतु जब वे बड़े होते हैं, वह विवेक कठोर और असंवेदनशील बन सकता हैं जब कोई 3 वर्ष का बच्चा झूठ बोलता है, उसका चेहरा दोषी दिख पड़ता है क्योंकि उसका विवेक दोषी होता हैं परंतु 15 वर्षों बाद वह स्थिर हावभाव के साथ झूठ बोल सकता है क्योंकि उसने लगातार विवेक की आवाज को अनसुनी करने के द्वारा अपने विवेक को मार डाला हैं शिशु के पैर के तलवे इतने नर्म होते हैं कि वे पंख के स्पर्श को भी महसूस कर सकते हैं परंतु सयाने लोगों के तलवे इतने कड़े होते हैं कि वे एक पिन की चुभन को भी महसूस नहीं करते जब तक कि उसे दबा कर घुसाया न जाएं यही उनके विवेक को भी होता है जब वे बड़े होते जाते हैं

विवेक वह आवाज़ है जिसे परमेश्वर ने हमारे भीतर बसाया है, जो हमें यह बताता है कि हम सदाचारी प्राणी हैं यह हमें सही और गलत का प्रारंभिक ..........समझ देता हैं और इसलिये यह परमेश्वर की ओर से दिया गया अदभ्् ाुत वरदान हैं यीशु ने इसे ''हृदय की आंख'' कहा (लूका 11:34)ं यदि हम इस ''आंख'' को संभाल कर सुरक्षित न रखें तो एक दिन हम आत्मिक अंधे हो जाएंगें विवेक की चुभन को नज़रअंदाज करना उतना ही खतरनाक हो सकता है, जितना कि आपकी आखों में घुसते हुए धूल के कणो को नज़र अंदाज़ करना - एक दिन आप आत्मिक रीति से पूरी तरह अंधे बन जाएंगें

जब शिशुओं का जन्म होता है उनमें से किसी का भी कोई धर्म नहीं होतां वे सब एक समान होते हैं दो वर्ष पश्चात भी वे वैसे ही होते है - स्वार्थी और झगड़ालूं परंतु जैसे-जैसे समय बीतता है, उनके माता-पिता उनमें विभिन्न धर्मों का मतारोपण कर देते है - और इस तरह वे विभिन्न धर्मों में बँट जाते हैं 90 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में किसी व्यक्ति का धर्म वही होता है जो उसके माता-पिता उसके लिये चुनते हैं

परंतु परमेश्वर हमें विभिन्न धर्मों के लोगों की तरह नहीं देखतां वह हम सब को पापियों की तरह देखता हैं यीशु स्वर्ग से पृथ्वी पर समस्त मानवजाति के पापों के लिये प्राण देने के लिये आयां वह उनके लिये नहीं आया जो स्वयं को परमेश्वर की उपस्थिती में प्रवेश करने के लिये स्वयं को अति योग्य समझते हैं, परंतु उनके लिये आया जो यह मान लेते हैं कि वे पापी हैं और परमेश्वर की उपस्थिति में जाने के योग्य नहीं हैं आपका विवेक आपको बताता है कि आप एक पापी हैं इसलिये यीशु के पास आकर यह कहना कठिन क्यों हो कि, ''प्रभु, मैं एक पापी हूँ, मैंने मेरे जीवन में बहुत सी गलत बातें की है''?

एक प्रश्न कोई यह पूछ सकता है कि, ''क्या एक अच्छा परमेश्वर हमारे पापों को नज़रअंदाज करके हमें माफ नहीं कर सकता, ठीक वैसे ही जैसे एक पिता करता है?'' यदि कोई पुत्र कुछ महंगी वस्तु को तोड़ डाले (या खो दे) और उसके विषय दुखी हुआ रहा हो और उसके पिता से माफी मांगा हो तो उसका पिता उसे माफ कर देगां परंतु ये मामले नैतिक मुद्दे नहीं हैं यदि हमारे सभी पाप इन मामलों के समान होते, तो परमेश्वर हमें तुरंत क्षमा कर देतां परंतु, पाप इन मामलों की तरह नहीं होतां पाप एक गुनाह हैं

यदि एक व्यक्ति न्यायालय में न्यायाधीश हो और उसके सामने उसका ही बेटा खड़ा हो जिस पर किसी गुनाह का आरोप लगाया गया हो तो क्या वह अपने बेटे से यह कह सकता है, ''बेटा मैं तुझ से प्रेम करता हूँं मैं तुझे क्षमा करता हूँं मैं तुझे सजा नहीं दूंगा?'' एक संसारिक न्यायाधीश जिसे न्याय की थोड़ी सी भी अनुभूति हो कभी ऐसा नहीं करेगां न्याय की यह अनुभूति जो हम सभी को होती है सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सिद्ध न्याय का एक छोटा सा भाग है, जिसकी स्वरूपता में हम बनाए गए हैं इसलिये जब हम कुछ गंभीर गलती करते हैं, परमेश्वर न्यायाधीश होता है और हमसे यह कहेगा, 'मैं तुझसे बहुत प्रेम करता हूँ; परंतु, तूने एक गुनाह किया है - इसलिये मुझे तुझे सजा देना होगां'' उस न्यायालय में, चाहे पुत्र उसके गुनाह के लिये कितना भी खेद प्रगट करे, न्यायाधीश होने के कारण उसके पिता को उसे सजा देना होगां आइये हम मान लेते हैं कि लड़के ने एक बैंक को लूटा थां पिता कानून के अनुसार उसे दस लाख रुपये का जुर्माना भरने की सजा देता हैं चूंकि लड़के के पास दंड की यह राशि भरने के लिये पैसे नहीं हैं, उसे जेल जाना होगां तब पिता न्यायाधीश की कुर्सी से उतरकर नीचे आता है, न्यायाधीश का चोगा उतारता है और फिर नीचे आ जाता हैं वह उसकी व्यक्तिगत चेक बुक निकालता है और दस लाख रुपयों को चेक लिखता है (जो उसके जीवनभर की बचत है) और अपने बेटे को वह चेक देता है कि वह दंड की राशि का भुगतान करें क्या उसका बेटा उस पर अब उसे प्यार न करने का दोष लगा सकता है? नहीं साथ ही साथ कोई उसे न्यायाधीश का कर्तव्य पूरा न करने का दोषी भी नहीं ठहरा सकता, क्योंकि कानून के मुताबिक उसने अपने बेटे को पूरी सजा सुनाया थां ठीक यही बात परमेश्वर ने हमारे लिये भी कियां एक न्यायाधीश होने के नाते उसने यह घोषित किया कि हम सब को अपने पापों के लिये मरना होगां फिर वह एक मनुष्य के रूप में उतर आया और वह सजा स्वयं ले लियां

बायबल हमें सिखाती है कि यद्यपि परमेश्वर एक है, वह तीन व्यक्तित्व में अस्तित्व रखता है - पिता, पुत्र और पवित्र आत्मां यदि परमेश्वर मात्र एक ही व्यक्ति होता, स्वर्ग में वह अपने सिंहासन को छोड़कर पृथ्वी पर नहीं उतर सका होता और यीशु के व्यक्तित्व को धारण नहीं किया होतां फिर विश्व को कौन नियंत्रित किया होता? परंतु, चूंकि परमेश्वर तीन व्यक्तित्वों में विद्यमान है, पुत्र पृथ्वी पर आ सका, और उसके पिता जो स्वर्ग में न्यायाधीश है उसके सामने हमारे पापों के लिये मर सकां कुछ मसीही लोगों को ''केवल यीशु'' के नाम में बप्तिस्मा देते हैं यह कहते हुए कि परमेश्वरत्व मे ंकेवल एक ही व्यक्ति है - यीशुं यह एक गंभीर गलती हैं 1 यूहन्ना 2:22 कहती है कि जो कोई पिता और पुत्र का इन्कार करता है उसमें ख्रीष्ट विरोधी की आत्मा हैं क्योंकि ऐसा करने से वह यह इन्कार करता है कि परमेश्वर पुत्र यीशु मसीह के रूप में आया, और उसकी मानवीय इच्छा का इन्कार किया, पिता की इच्छा को पूरी किया और फिर हमारे पापों की सजा परमेश्वर पिता के सामने खुद ले लिया (1 यूहन्ना 4:2,3).

यीशु जब पृथ्वी पर आया तब वह पूरी तरह परमेश्वर औेर पूरी तरह मनुष्य थां जब वह क्रूस पर मरा, उसने समस्त मानवजाति के पापों की सजा स्वयं ले लियां हमारे पापों की सजा परमेश्वर से सदाकाल के लिये अलग किया जाना हैं और जब यीशु क्रूस पर लटकाया गया, वह स्वर्ग मे ंउसके पिता से अलग किया गयां इस प्रकार का अलगाव बहुत भयानक क्लेश है जिसे कोई मनुष्य कभी अनुभव कर सकें

यदि यीशु मात्र एक सृजा गया प्राणी होता तो संभवतः हजारों लोगों के पापों की सजा को, जो आदम के समय से रहे थे, अपने ऊपर नहीं ले सका होतां क्योंकि एक अब्ज कातिलों के लिये केवल एक ही मनुष्य को ही क्रूस पर नहीं चढ़ाया जा सकता! परंतु यीशु वह सजा इसलिये ले सका क्योंकि वह अनंत परमेश्वर हैं

चूंकि वह अनंत है, वह अनंतकाल की सजा 3 घंटो में ले सकां

यदि यीशु परमेश्वर न होता, और परमेश्वर उसे हमारे पापों के कारण दंडित करता तो यह बड़े अन्याय की बात होतीं परमेश्वर एक व्यक्ति के गुनाह के कारण दूसरे को सजा नहीं दे सकता, यद्यपि वह व्यक्ति उस गुनहगार की सजा लेने के लिये तैयार हो तौभीं आपका मित्र आपकी सजा नहीं ले सकता और आपके स्थान पर लटकाया नहीं जा सकतां वह तो अन्याय होगां इसलिये यदि यीशु मात्र एक निर्मित प्राणी होता, और हमारे पापों के लिये दंडित किया गया होता तो यह बड़ा अन्याय हुआ होतां

इसलिये यह स्पष्ट है कि कोई भी निर्मित प्राणी शायद हमारी सजा नहीं उठा सकता थां केवल परमेश्वर ही वह सजा ले सकता था, क्योंकि वह सृष्टि का न्यायकर्ता हैं उसे हमें सजा देने का अधिकार है - उसे हमारी सजा स्वयं पर लेने का भी अधिकार हैं और जब वह यीशु मसीह के व्यक्तित्व में इस पृथ्वी पर आया तो उसने यही कियां मसीही जीवन की बुनियाद दो महान सत्यों पर आधारित है : पहली कि मसीह समस्त मानव जाति के पापों के लिये मरां दूसरी कि वह 3 दिनों पश्चात ् मृतकों में से जी उठां

यदि मसीह मृतकों में से जी न उठा होता तो कोई प्रमाण नहीं रहा होता कि वह परमेश्वर हैं मृतकों में से उसका जी उठना यह प्रमाण था कि जो कुछ उसने कहा था वह सत्य थां किसी भी धार्मिक अगुवे ने कभी ऐसा नहीं कहा कि वह संसार के पापों के लिये मर सकता हैं और कोई भी धार्मिक अगुवा कभी मृतकों में से जी नहीं उठां यही दो वास्तविकताएं यीशु मसीह को अनोखा (अद्वितीय) बनाती हैं

सभी धर्म हमें दूसरों की भलाई करने की तथा शान्ति का जीवन जीने की शिक्षा देते हैं परन्तु, मसीही विश्वास तो अद्वितीय नीव है : यीशु मसीह हमारे पापों के लिये मरा और मृतकों में से जी उठां यदि यह वास्तविकताएं मसीहत में से निकाली जाएं तो मसीहत अन्य धर्मों जैसी होगीं यही दो वास्तविकताएं मसीहत को अनोखा बनाती हैं

हम सब परमेश्वर द्वारा उसके लिये जीने के लिये बनाए गये थें परंतु हम सब अपने लिये ही जीते हैं इसलिये जब हम परमेश्वर के पास आते हैं हमें पश्चातापी चोर के समान आना चाहिये जिसने उन वर्षों को चुराया था जिन पर परमेश्वर का अधिकार थां हमें उसके पास, मसीह की हमारे लिये मृत्यु का धन्यवाद करते हुए आना चाहिये और यह विश्वास करना चाहिये कि वह मृतकों में से जी उठा है और आज भी वह जीवित हैं परंतु क्योंकि यीशु मृतकों में से जी उठा है, हम उसके साथ एक हो सकते हैं उससे बातचीत कर सकते हैं जब यीशु मृतकों में से जी उठा, वह स्वर्ग पर चढ़ गयां तब पवित्र आत्मा जो परमेश्वरत्व का तीसरा व्यक्ति है पृथ्वी पर आयां पवित्र आत्मा यीशु के समान ही एक वास्तविक व्यक्ति हैं वह पृथ्वी पर आयां पवित्र आत्मा यीशु के समान ही एक वास्तविक व्यक्ति हैं वह पृथ्वी पर इसलिये आया कि हमारे जीवनों को उसकी उपस्थिती से भर दें यदि हम स्वयं को पवित्र आत्मा के अधीन सौंप दें तो वह हमें भी पवित्र बना देगां जब पवित्र आत्मा आपको उसकी उपस्थिति से भर देता है तो आप पाप के ऊपर एक विजयी जीवन को जी सकने में सक्षम हो जाते हैं पेन्तिकोस्त के दिन पवित्र आत्मा के आने के पहले कोई भी व्यक्ति ऐसा जीवन नहीं जीया थां उसके पहले लोग केवल उनके बाह्य जीवन में ही सुधार कर सकते थें उनके आंतरिक जीवन पाप द्वारा हराए हुए और अपरिवर्तित थें जब पवित्र आत्मा आपके भीतर अपनी उपस्थिति को भर देता है तब परमेश्वर स्वयं आपके भीतर वास करता हैं और भीतर से भी धर्मी जीवन जीने के लिये आपकी सहायता करता हैं

सुसमाचार का अनोखा संदेश यह है कि जब परमेश्वर आपको क्षमा करता है तब आप पूरी तरह शुद्ध हो सकते हैं और मसीह उसकी आत्मा द्वारा आपमें रहते हुए आपके शरीर को परमेश्वर का घर बना सकता हैं

एक बार मैं एक मसीही से बात कर रहा था जो सिगरेट पी रहा थां मैंने उससे पूछा कि क्या उसने कभी चर्च के भीतर भी सिगरेट पीया है? उसने कहा कि वह कभी ऐसा नहीं करेगा क्योंकि चर्च की इमारत परमेश्वर का घर हैं मैंने उसे बताया कि उसका शरीर ही परमेश्वर का घर है चर्च की वह इमारत नहीं आप कभी चर्च की इमारत के भीतर व्यभिचार नहीं कर सकते, क्या ऐसा कर सकते है? न ही आप चर्च की इमारत के भीतर अश्लील बातों को इंटरनेट द्वारा देख सकतें

जब मसीह आपके अंदर वास करता है तब आपका शरीर परमेश्वर का घर होता हैं इसलिये सावधान रहें कि आप अपने शरीर के अंगों का कैसा उपयोग करते हैं धुम्रपान, शराब पीना, नुकसानदेह मादक पदार्थों का सेवन और अपने मन में अपवित्र विचारों को आने देने की अनुमति जैसी बुरी आदतें धीरे-धीरे आपके शरीर और विचारों को नष्ट कर देंगीं

मसीही जीवन एक दौड़ के समान हैं जब हम पाप से मुड़ते है और नया जन्म पाते है तब हम इस दौड़ की शुरूवातकी बिंदु रेखा पर आते हैं तब एक मैराथॉन दौड़ शुरू होती है - हमारे जीवन के अंत तक की दौड़ं हम दौड़ते, और दौड़ते और दौड़ते चले जाते हैं और प्रतिदिन हम गंतव्य रेखा के नज़दीक और नज़दीक होते जाते हैं परंतु हमें दौड़ना छोड़ना नहीं चाहियें

या एक और उदाहरण : जब हम नया जन्म पा लेते हैं, हम हमारे घर की बुनियाद डालते हैं उसके पश्चात ् हम धीरे धीरे विशिष्ट ढा़ंचे को बनाते हैं - और इसमें कई मंजिलें होती हैं

यह सर्वोत्तम जीवन होता है जिसे आप सभी जी सकते हैं, क्योंकि आप धीरे-धीरे अपने जीवन की बुराईयों को खत्म करते जाते हैं और हर वर्ष परमेश्वर के स्वरूप बनते जाते हैं

तो नया जन्म पाने के लिये आपको क्या करना चाहिये?

सर्वप्रथम, यह मान लें कि आप एक पापी हैं दूसरों के साथ स्वयं की तुलना न करें और इस कल्पना से शांति न पाएं कि आप दूसरों से बेहतर हैं पाप एक घातक जानलेवा विष हैं चाहे आप एक बूंद पीएं या सौ बूंद पीएं, आप हर हाल में मर जाएंगें इसलिये यदि आप अपने मसीही जीवन में अच्छी शुरुवात करना चाहते हैं तो यह मान लें कि आप संसार के सबसे बुरे पापी से बेहतर नहीं हैं फिर आप अपने जीवन के सभी ज्ञात पापों से फिरने का निर्णय लें

फिर मसीह पर विश्वास करें अर्थात स्वयं को मसीह के अधीन करना - और मात्र उसके विषय अपने विचारों में कुछ विश्वास कर लेना ही नहीं आप किसी पर स्वयं को उसके अधीन किये बिना विश्वास कर सकते हैं एक दुल्हन को उसके विवाह के समय पूछा जाता है, ''क्या आप स्वयं को इस पुरुष के लिये समर्पित (अधीन) करना चाहती हो?''

मान लीजिये कि वह इस प्रकार जवाब देगी, ''मैं यह विश्वास करती हूँ कि यह एक अच्छा व्यक्ति हैं परंतु मैं निश्चित रूप से यह नहीं कर सकती कि मैं उसे अपना पूरा जीवन और भविष्य समर्पित कर पाऊंगी या नहीं'' तब तो वह उस पुरुष से विवाह नहीं कर सकती क्योंकि वह उस व्यक्ति पर विश्वास नहीं करतीं जब एक जवान स्त्री विवाह करती है तब उसके संपूर्ण जीवन की दिशा बदल जाती हैं वह अपने अंतिम नाम को पुरुष के अंतिम नाम से बदल लेती हैं वह अपने माता पिता का घर छोड़कर अपने पति के साथ रहने के लिये चली जाती हैं वह नहीं जानती कि वह कहाँ रहेगी, परंतु वह अपना संपूर्ण भविष्य उसके हवाले कर देती हैं उसे उस व्यक्ति पर विश्वास (भरोसा) होता हैं मसीह पर विश्वास करने का यही चित्रण हैं

शब्द ''मसीही'' (आदरयुक्त तरीके से कहें तो) का अर्थ होता है ''मिसेस मसीह''ं मेरी पत्नी मेरे नाम का उपयोग तब कर सकी जब उसने मुझसे विवाह कीं ठीक उसी प्रकार आप मसीह का नाम तब ले सकते हैं और स्वयं को मसीही कहला सकते हैं जब आपका उसके साथ विवाह हुआ हों यदि कोई महिला मुझसे विवाह किये बिना ही मेरा नाम लेती और स्वयं को ''मिसेस जॅक पूनेन'' कहती, तो यह एक झूठी बात होगीं उसी प्रकार कोई भी व्यक्ति जो मसीह से विवाह किये बिना स्वयं को मसीही कहलवाए, झूठ बोलता/बोलती हैं

विवाह हमेशा के लिये होता है, कुछ दिनों के लिये नहीं उसी प्रकार एक मसीही होना भी जीवन भर का समर्पण हैं मसीह के प्रति संपूर्ण समर्पण का अर्थ यह नहीं कि आप पूरी तरह सिद्ध हो चुके हैं जब कोई स्त्री विवाह करती है तो वह यह प्रतिज्ञा नहीं करती कि वह उसके जीवन में कभी गलती नहीं करेगीं वह कई गलतियाँ करेगी परंतु उसका पति उसे माफ कर देगां परंतु वह यह प्रतिज्ञा करती है कि वह उसके पति के साथ हमेशा रहेगीं मसीह के साथ हमारे संबंध का भी यही चित्रण हैं

अगला कदम जो आपको उठाना है वह है बप्तिस्मा लेना जो आपके लिये आवश्यक हैं बप्तिस्मा लेना एक विवाह का प्रमाण पत्र लेने के समान हैं आप मात्र विवाह प्रमाणपत्र लेकर विवाहित नहीं हो सकतें न ही केवल बप्तिस्मा लेने के द्वारा आप मसीही कहला सकते हैं यह केवल तब ही हो सकता है जब आप विवाह करें और तब ही प्रमाण पत्र हासिल कर सकते हैं उसी प्रकार जब आप स्वयं को यीशु के हाथों सौंप देते हैं तब ही आप बप्तिस्मा ले सकते हैं, इसके द्वारा आप यह साक्षी देते हैं कि आपने अपना पुराना जीवन छोड़ दिया है और यीशु को अपने जीवन का प्रभु बना लिया हैं

अच्छे पति और पत्नियाँ एक दूसरे से बहुत बातचीत करते हैं इसलिये आपको भी यीशु से बातें करना चाहिये और जब वह हर रोज आपसे बायबल के द्वारा बात करे तो उसे सुनना चाहियें एक अच्छी पत्नी कभी ऐसा कुछ नहीं करेगी जिससे उसका पति नाराज़ हों वह उसके साथ संगति में सब कुछ करना चाहेगीं एक सच्चा मसीही भी ऐसा कुछ नहीं करेगा जो मसीह को अप्रसन्न करता हो - जैसे ऐसा चलचित्र देखना जिसे यीशु देखना पसंद न करें वह ऐसा कुछ नहीं करेगा जो यीशु उसके साथ मिलकर करने को तैयार न हों क्या आप यह निश्चित रूप से मान सकते हैं कि आपने नया जन्म पाया है? हाँं रोमियों 8:16 कहती है कि जब आप नया जन्म पा लेते हैं तब परमेश्वर का पवित्र आत्मा आपकी आत्मा के साथ गवाही देगा कि आप परमेश्वर की एक संतान हैं

यह एक अदभ्् ाुत जीवन है - क्योंकि हम एक ऐस े सर्वोत्तम मित्र के साथ रहत े हैं जो हमें फिर कभी मिल सकता हैं हम कभी अकेले नहीं होंगे क्योंकि यीशु हमारे साथ और हर जगह रहेगां हम उससे अपनी समस्याओं के विषय बात कर सकते हैं और उससे कह सकते हैं कि उसे हल करने में हमारी सहायता करें यह एक ऐसा जीवन है जिसमें आनंद की भरपूरी है; और जो घबराहट और डर से मुक्त है - क्योंकि हमारा भविष्य यीशु के हाथों में हैं

यदि आप नया जन्म पाना चाहते हैं तो हृदय की ईमानदारी के साथ अभी प्रभु से यह कहें: प्रभु यीशु, मैं विश्वास करता/करती हूँ कि आप परमेश्वर के पुत्र हैं मैं एक पापी हूँ जिसकी जगह नर्क में हैं मुझसे प्रेम करने और मेरे लिये क्रूस पर मरने के लिये धन्यवादं मैं विश्वास करता/करती हँ कि आप मृतकों में से जी उठे और

आज भी जीवित हैं मैं अपने पापी जीवन से इसी समय फिरना चाहता/चाहती हूँं

कृपया मेरे सभी पापों के लिये मुझे क्षमा करें और पाप के प्रति मुझमें अरूचि पैदा करें मैं हर किसी को जिसने मेरा बुरा किया है, क्षमा करता/करती हूँं प्रभु यीशु मेरे जीवन में आएं और आज ही से मेरे जीवन का प्रभु बन जाएं मुझे अभी परमेश्वर की संतान बना दें''

परमेश्वर का वचन कहता है, ''जितनों ने उसे ग्रहण किया उसने उन्हें परमेश्वर की संतान होने का अधिकार दिया'' (यूहन्ना 1:12)ं प्रभु यीशु कहता है, ''जो कोई मेरे पास आएगा, मैं उसे कभी न निकालूंगा'' (यूहन्ना 6:35) तो आप निश्चित रूप से जान सकते हैं कि उसने आपको स्वीकार कर लिया हैं तब आप उसे यह कहते हुए धन्यवाद दे सकते हैं, ''प्रभु यीशु मुझे क्षमा करने और ग्रहण करने के लिये धन्यवादं कृपया मुझे अपने पवित्र आत्मा से भर दें और आपके लिये जीने हेतु सामर्थ दें आज से मैं केवल आपको ही प्रसन्न करना चाहता/चाहती हूँ

अब आपको परमेश्वर का वचन हर रोज पढ़ना चाहिये ताकि वह आपको हर रोज पवित्र आत्मा से भर दें आपको नये जन्म पाए हुए अन्य मसीहियों के साथ भी संगति करना चाहियें इसी प्रकार से ही आप मसीही जीवन में उन्नति करेंगे और प्रभु के पीछे चलने की सामर्थ पाएंगें इसलिये परमेश्वर से कहे कि वह आपको एक अच्छी कलीसिया में ले जाएं परमेश्वर आपको बहुतायत से आशीषित करें