ऐसे बहुत से भाई और बहिनें हैं, जिन्हें लगता है कि वे परमेश्वर की उनके जीवन के लिए सिद्ध योजना को अब इसलिए पूरा नहीं कर सकते हैं क्योंकि अतीत में उन्होंने कोई पाप किया है और वे परमेश्वर की महिमा से गिर गए हैं।
आइए हम देखें कि इस विषय पर वचन क्या कहता है, और अपनी समझ या तर्क का सहारा ना लें।
सब से पहले, ध्यान दें कि बाइबल कैसे आरम्भ होती है।
"आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की" (उत्पत्ति 1:1)। और जब परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की तो वह उत्तम रहा होगा क्योंकि उनके हाथ से कभी कुछ भी दोष युक्त या अधूरी रचना नहीं नहीं हो सकती।
लेकिन स्वर्गदूतों में से कुछ, जिन्हें परमेश्वर ने बनाया था, परमेश्वर के विमुख हो गए थे, और यह हमारे लिए यशायाह 14:11-15 और यहेजकेल 28:13-18 में वर्णित है। और तब पृथ्वी उस अवस्था में आ गई, जिसका वर्णन उत्पत्ति 1:2 में है, - "बेडौल, सुनसान और अन्धियारी"।
उत्पत्ति 1 का बाकी हिस्सा यह वर्णन करता है कि कैसे परमेश्वर ने उस बेडौल, सुनसान और अन्धियारी व्यापक धरा पर सृजन कार्य किया और उससे कुछ इतना सुन्दर सृजन किया कि उन्होंने स्वयं इसे "बहुत अच्छा' है", घोषित कर डाला (उत्पत्ति 1:31)। हम उत्पत्ति 1:2,3 में पढ़ते हैं कि परमेश्वर का आत्मा पृथ्वी पर मंडरा रहा था, और परमेश्वर ने अपना शब्द कहा - और ऐसा होते ही सब बदल गया।
आज हमारे लिए इसमें क्या सन्देश है?
सिर्फ यही, कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कितने असफल रहे हैं या हमने बातों को कितना बिगाड़ दिया है। इसके बावजूद भी परमेश्वर हमारे जीवन से कुछ शानदार बना सकते हैं।
आकाश और पृथ्वी की सृष्टि करते समय परमेश्वर के पास इनके लिए एक पूर्ण योजना थी। परन्तु लूसिफ़र के परमेश्वर से विमुख हो जाने के कारण परमेश्वर को अपनी इस योजना को अलग रख देना पड़ा था। लेकिन बावजूद इसके परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी का पुनर्निर्माण किया और उससे कुछ बहुत अच्छा बना दिया।
आगे क्या हुआ अब इसपर विचार करें।
परमेश्वर ने आदम और हव्वा को बनाया और एक बार फिर से शुरूआत की। परमेश्वर के पास उनके लिए भी एक पूर्ण योजना रही होगी, जिसमें जाहिर तौर पर इन दोनों का भले और बुराई के ज्ञान के पेड़ का फल खा लेना शामिल न था। परन्तु फिर भी उन्होंने उस वर्जित पेड़ के फल को खा लिया और परमेश्वर की उनके लिए - जो भी मूल योजना रही होगी - उसे हताश कर दिया।
तर्क हम से अब यह कहेगा कि इसके आगे वे परमेश्वर की पूर्ण योजना को कभी पूरा नहीं कर सकते थे। फिर भी हम देखते हैं कि जब परमेश्वर उन्हें बगीचे में मिलने आए, तब वे उन से यह नहीं कहते कि अब उन दोनों को अपना बाकी का जीवन उनके दूसरे सबसे उत्तम प्रावधान के साथ बिताना होगा। नहीं। उत्पत्ति 3:15 में परमेश्वर ने उनसे प्रतिज्ञा की, कि स्त्री का बीज सर्प के सिर को रोंदेगा। ये मसीह का संसार के पापों के लिए मरने की और कलवारी पर शैतान के ऊपर उनकी जय पाने की प्रतिज्ञा थी।
अब इस तथ्य पर विचार करें और देखें कि क्या आप इसका कोई तर्क निकाल सकते हैं।
हम जानते हैं कि अनंत काल से ही मसीह की मृत्यु परमेश्वर की पूर्ण योजना का एक हिस्सा रही है। "मेमना जगत की उत्पत्ति के समय से घात हुआ है" (प्रकाशित वाक्य 13:8)। इसके साथ ही हम यह भी जानते हैं कि मसीह की मृत्यु हो गई, सिर्फ इस कारण कि आदम और हव्वा ने पाप किया और परमेश्वर की योजना में वे विफल ठहरे। तो तार्किक रूप से, हम यह कह सकते हैं, कि मसीह को संसार के पापों के लिए मर जाने के लिए भेजने की परमेश्वर की श्रेष्ठ योजना पूरी हुई, तो ऐसा आदम के नाकामयाब होने के बावजूद नहीं, परन्तु ऐसा आदम की नाकामयाबी के कारण वश हुआ! यदि आदम का पाप कारण न बना होता तो, परमेश्वर के कलवरी के क्रूस पे दिखाए गए प्रेम को हम जान नहीं पाते।
यह तर्क को चकरा देता है और इसीलिए पवित्रशास्त्र कहता है, कि हमें "अपनी समझ का सहारा नहीं लेना है" (नीतिवचन 3:5)।
यदि परमेश्वर गणितीय तर्क के अनुसार कार्य करते, तो हमें यह कहना चाहिए था कि, मसीह का पृथ्वी पर आना परमेश्वर की दूसरी सबसे श्रेष्ठ योजना रही होगी। परन्तु ऐसा कहना परमेश्वर-निंदा करना होगा। यह परमेश्वर की मानव के लिए सर्वश्रेष्ठ योजना का एक हिस्सा था। परमेश्वर कोई गलती नहीं करते। परन्तु क्योंकि परमेश्वर सर्वश्रेष्ठ होने के साथ ही संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न भी हैं, और वे आदि से अंत को जानते हैं, और क्योंकि वे प्रेम से हमारे लिए सदा चुपचाप योजना बनाते हैं, यही कारण है, कि जब हमारे प्रति उनके व्यवहार का वर्णन करने की हम कोशिश करते हैं तो हमारा मानव तर्क विफल रहता है।
परमेश्वर की गति और हमारी गति एक सी नहीं हैं और ना ही उनके विचार और हमारे विचार एक समान हैं। उन दोनों के बीच आकाश और पृथ्वी का अंतर है (यशाया 55: 8, 9) । तो परमेश्वर की गति को समझने का प्रयास करते समय हमारे लिए यही अच्छा होगा कि अपनी चतुर बुद्धि और तर्क को हम अलग रख दें। तो बाइबल के आरम्भ के पन्नों में वह कौन सा संदेश है जिसे परमेश्वर हम तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं? बस यही, कि वह असफलता से भरे मनुष्य को ले कर उसमें से कुछ महिमामय बना सकते हैं और उसके जीवन के लिए रखी पूर्ण योजना को अब भी पूरा कर सकते हैं।
बाइबल में परमेश्वर का मानव के लिए यही संदेश है और हमें इसे कभी नहीं भूलना चाहिए।
ऐसे मनुष्य को लेकर, जो बार-बार नाकाम रहे हों, परमेश्वर अपनी पूर्ण योजना को अब भी पूरा कर सकते हैं,- यह परमेश्वर की दूसरी अच्छी योजना नहीं, परन्तु उनकी सबसे उत्तम योजना होगी।
ऐसा इसलिए है क्योंकि नाकामयाबियां भी उसे कुछ अविस्मरणीय सबक सिखाने की परमेश्वर की पूर्ण योजना का एक हिस्सा हो सकती हैं। मानव तर्क के लिए यह समझ पाना असंभव है, क्योंकि हम परमेश्वर को बहुत कम जानते हैं।
केवल टूटे हुए स्त्री और पुरुष ही हैं जिन्हें परमेश्वर उपयोग कर सकते हैं।
एक तरीका है जिससे वे हमें तोड़ते हैं, बार-बार की विफलताओं के माध्यम से।
प्रेरित पतरस के लिए विफलताएं उनके अगुवाई के प्रशिक्षण का एक हिस्सा बनी। प्रभु ने पतरस को तोड़ने के लिए उसकी विफलताओं का उपयोग किया।
परमेश्वर के लिए हमसे जुडी सबसे बड़ी समस्याओं में से एक यह है कि वे हमें इस प्रकार आशीषित करें कि आशीष पा कर हम घमंड से न भर जाएँ। क्रोध पर विजय प्राप्त कर लेना और फिर इस पर घमंड करना, पहले से भी बड़े गहरे गड्ढे में गिर जाने के समान होगा! परमेश्वर को हमारी विजय में हमें विनम्र रखना पड़ता है।
गहरी विनम्रता पाप पर वास्तविक विजय को दिखाती है। यहीं आकर बार-बार होने वाली विफलताएँ हमारे आत्मविश्वास को नष्ट करने का काम करती हैं जिससे हम ये जान सकें कि हमारे लिए पाप पर विजय पाना परमेश्वर की सामर्थकारी अनुग्रह के बाहर संभव नहीं है। उसके बाद, जब हमें विजय मिलती है, तो भी हम इसका झूठा गर्व नहीं करते।
इसके अलावा, जब हम खुद बार-बार विफल रहे हों, तब हम दूसरों की विफलता को तुच्छ नहीं समझते। असंख्य बार ठोकर खाने के कारण ही हम अपने शरीर की दुर्बलताओं को समझ पाते हैं, और इसीलिए उन लोगों के साथ हमदर्दी दिखा सकते हैं जो ठोकर खा बैठते हैं। "स्वयं निर्बलताओं से घिरे होने के कारण ही हम अज्ञानियों और भूले भटकों के साथ विनम्रता का व्यवहार कर पाते हैं" (इब्रानियों 5:2)।
ऐसा संदेश सुनने के बाद कोई तार्किक दिमाग वाला व्यक्ति यह कह सकता है, "तो हम सभी और अधिक पाप करें जिससे अच्छाई आए!"
ऐसा कहने वाले व्यक्ति को रोमियों 3:7, 8 इन शब्दों में उत्तर देता है: "तुम कहते हो, मेरे झूठ के कारण परमेश्वर की सच्चाई उसकी महिमा के लिए अधिक करके प्रकट हुई"। यदि तुम इस विचार को लेते हो तो निष्कर्ष यह निकलता है: हम में जितनी बुराई है, उतना ही परमेश्वर इसे पसंद करते हैं! "परन्तु ऐसा कहने वालों का दोषी करार किया जाना न्यायसंगत है"।
नहीं, हम इस बात का प्रचार नहीं करते कि हमें इसलिए बुराई करनी चाहिए ताकि अच्छाई आए। न ही हम यह कहते हैं कि हम परमेश्वर के अनुग्रह का गलत फायदा उठाया जा सकता है, या हम जान-बूझकर परमेश्वर की आज्ञा का उलंघन कर सकते हैं, और यह सब करने के बावजूद भी जो बो रहे हैं उसकी कटनी से बच सकते हैं।
लेकिन हम ये अवश्य कहते हैं परमेश्वर के विमुख हुए व्यक्तियों पर होने वाले परमेश्वर के अनुग्रह को मानव तर्क नहीं समझ सकता। परमेश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है - हमारे बार-बार और बुरी तरह से विफल रहने के बावजूद भी - हमें उनकी सिद्ध आज्ञाकारिता में लाना भी नहीं । हमारा अविश्वास ही केवल उनके लिए रूकावट बन सकता है।
यदि आप कहते हैं, "लेकिन मैंने तो बातों को कई बार बिगाड़ दिया है। परमेश्वर के लिए अब मुझे अपनी पूर्ण योजना में लाना असंभव है", तब ऐसा करना परमेश्वर के लिए असंभव हो जाएगा क्योंकि आपने उसपर विश्वास नहीं किया है जो वे आपके लिए कर सकते हैं। लेकिन यीशु ने कहा कि परमेश्वर का हमारे लिए कुछ भी कर पाना असंभव नहीं है - यदि हम केवल विश्वास करें।
"तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारे साथ हो" सभी मामलों में परमेश्वर की यही व्यवस्था है" (मत्ती 9:29)। हम जिस बात के लिए विश्वास करेंगें हमारे लिए वही हो जाएगी। यदि हम यह विश्वास करते हैं कि कुछ ऐसा है जो परमेश्वर का हमारे लिए कर पाना असंभव है तो फिर वह हमारे जीवन में कभी पूरा नहीं होगा।
दूसरी ओर जिस दिन आप मसीह के न्याय के सिंघासन के पास होंगें उस दिन आप जानेंगें कि कोई अन्य विश्वासी जिसने अपने जीवन में आपसे भी से अधिक गड़बड़ियाँ की थीं, उसने अपने जीवन के लिए परमेश्वर की सिद्ध योजना को पूरा कर लिया था, क्योंकि उसने विश्वास कर लिया था कि परमेश्वर उसके जीवन के टूटे हुए टुकड़े लेकर उनसे कुछ बहुत अच्छा बना सकते हैं। उस दिन आपको कितना अफसोस होगा, जब आप ये जानोगे कि अपने ही अविश्वास के कारण आपने परमेश्वर की आपके जीवन के लिए रखीं योजनाओं को (चाहे गिनती में वो कितनी भी रही हों) हताश कर दिया था!
उडाऊ पुत्र, जिसने इतने साल बर्बाद कर दिए थे, के दृष्टान्त से पता चलता है कि परमेश्वर नाकामयाब रहे लोगों को भी अपना सबसे उत्तम देते हैं। पिता ने, उस पुत्र के लिए, जिसने उनके साथ इतना बुरा किया था कहा, "झट अच्छे से अच्छा वस्त्र निकालकर उसे पहिनाओ"। सुसमाचार का भी यही संदेश है - उद्धार और एक नया आरंभ, केवल एक बार के लिए नहीं, परन्तु बार बार के लिए - क्योंकि परमेश्वर किसी को भी ऐसे ही नहीं छोड़ देते।
दाख बारी का स्वामी जो मजदूरों की नियुक्ति कर रहा था (मत्ती 20:1-16) का दृष्टान्त भी यही बात सिखाता है। दिन ढलने से एक घंटा पूर्व काम पर रखे मजदूरों को उतना ही मेहनताना मिला जितना दिन शुरू होते समय रखे गए मजदूरों को मिला। दूसरे शब्दों में, जिन लोगों ने उनके 90% (12 में 11वाँ हिस्सा) जीवन को अनन्त-काल तक महत्व रखने वाले किसी कार्य को किए बिना ही व्यर्थ कर दिया हो, वे अब भी अपने 10% शेष जीवन में परमेश्वर के लिए कुछ गौरवशाली कर सकते हैं। ये उन सब के लिए एक बेहतरीन प्रोत्साहन है जो अब तक नाकामयाब रहे हैं।
"परमेश्वर का पुत्र इसलिए आया कि शैतान के कामों का नाश (विघटित) करे" (1 यूहन्ना 3:8 अम्प्लिफाईद बाइबल)।
इसका अर्थ है कि यीशु वो सभी गांठे खोलने के लिए आए थे जो हमारे जीवन में उलझी पड़ी हैं। इसकी कल्पना इस प्रकार कर के देखें, हम सब ने लड़कपन से अपने जीवन को धागों से लिपटे एक ख़ूबसूरत गोले के साथ शुरू किया है। परन्तु अब इस गोले में दस हजार गांठें पड़ गई हैं, और इनके सुलझने की हमारे पास कोई भी उम्मीद नहीं है। अपने जीवन को इस अवस्था में पड़ा देखकर हम मायूस और उदास हैं। सुसमाचार का अच्छा समाचार यही है कि यीशु इन्हीं उलझी हुए गांठों में से हर एक गाँठ को खोलने आए थे।
आप कहते हैं, "यह असंभव है!" तो ठीक है, आपके विश्वास के अनुसार आपके साथ किया जाएगा। आपके मामले में यह असंभव होगा। लेकिन मैंने किसी ऐसे व्यक्ति को जिसका जीवन आपकी तुलना में कहीं अधिक जटिल है, ये कहते सुना है कि, "हाँ, मेरा मानना है, कि परमेश्वर मुझ में ऐसा ही करेंगे"। उस के लिए भी उसके अपने विश्वास के अनुसार किया जाएगा। उसके जीवन में परमेश्वर की सिद्ध योजना पूरी हो जाएगी।
यिर्मयाह 18:1-6 में, परमेश्वर ने यिर्मयाह से अपनी बात एक व्यावहारिक उदाहरण के माध्यम से कही। यिर्मयाह को एक कुम्हार के घर जाने के लिए कहा गया था, और वहाँ उसने उस कुम्हार को चाक पर एक मिट्टी का बरतन बनाने की कोशिश करते देखा। लेकिन मिट्टी का बरतन "कुम्हार के हाथ में बिगड़ गया था"। तो कुम्हार ने क्या किया? "कुम्हार ने मिटटी को लेकर जैसा चाहा एक दूसरा मिट्टी का बरतन, बना दिया"।
फिर इसका प्रयोजन / इस्तेमाल आया: "हे................, क्या मैं तुम्हारे साथ इस कुम्हार की भांति, नहीं कर सकता हूँ" (यिर्मयाह 18:6) ? इस्राएल के घराने से परमेश्वर का यही प्रश्न था। (इन रेखा बिन्दुओं में अपना नाम भरें, और आप से भी परमेश्वर का यही प्रश्न होगा)।
यदि परमेश्वर की भक्ति के कारण आपके जीवन में अपनी सभी विफलताओं का शौक है, तो फिर भले ही आपके पाप लाल रंग या किरमिजी रंग की तरह ही क्यों ना रहे हों, तो भी आपका दिल न केवल हिम की नाई उजला किया जाएगा - जैसी पुरानी वाचा में प्रतिज्ञा की गई थी (यशाया 1:18) - वरन, नई वाचा में परमेश्वर ने इससे भी बढकर एक प्रतिज्ञा की है "यहां तक कि मैं उनके पापों को याद भी नहीं रखूंगा" (इब्रानियों 8:12)।
आपकी गलतियों या विफलताओं के बावजूद भी, फिर वो चाहे कुछ भी रही हों, आप परमेश्वर के साथ एक नई शुरुआत कर सकते हैं। और चाहे एक हजार बार नई शुरुआत करने पर भी भले ही आप के हाथ नाकामयाबी ही आई हो, तो भी आज ही से आप 1001वीं नई शुरुआत कर सकते हैं। परमेश्वर अब भी आपके जीवन से कुछ महिमामय बना सकते हैं। जब तक जीवन है, आशा है।
तो, परमेश्वर पर विश्वास करने में कभी चूक न करें। अपने कई बच्चों के लिए परमेश्वर महान कार्य नहीं कर पाते, इसलिए नहीं कि वे सब अतीत में विफल रहे हैं, परन्तु इसलिए कि वे लोग परमेश्वर पर अब विश्वास नहीं कर पाते।
तो इसलिए हम "विश्वास में दृढ होकर परमेश्वर की महिमा करें" (रोमियों. 4:20), आने वाले दिनों में उस पर उन बातों के लिए भरोसा करें जिसे अब तक हमने असंभव माना था।
सभी लोग - जवान और बूढ़े - आशा रख सकते हैं कि अतीत में चाहे वे कितने नाकाम रहे हों, यदि वे लोग सिर्फ अपनी नाकामियों को स्वीकार करें, और विनम्र होकर परमेश्वर पर विश्वास करें।
इस प्रकार हम सब नाकामयाबियों से सीख ले सकते हैं और अपने जीवन के लिए परमेश्वर की सिद्ध योजना को आगे बड कर पूरा कर सकते हैं।
और आने वाले युग में अपने उदाहरण के द्वारा दूसरों को दिखा सकते हैं, कि परमेश्वर ने उन लोगों के जीवन के साथ क्या किया है जिनके जीवन पूरी तरह असफल थे।
"कि वह अपनी उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आनेवाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाएँ"(इफिसियों 2:7)।