एक अच्छी नींव

द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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यह पुस्तक और आप२ण्ण्…

सुसमाचार यह शुभ समाचार हे कि आरम्भ में परमेश्वर ने मनुष्य से जैसा रहने की इच्छा की थी, वैसा अभी वह रह सक े. जो मसीह के दावों को पूर्ण समर्पित है वह स्थिर विजयी जीवन जी सकता है फिर भी कितने हैं जिन्होंन अपना उद्धारकर्ता ग्रहण किया है, तथापि वे, सुसमाचार ,जो महिमामय जीवन देता है , उसमें प्रवेश नहीं कर पाते है.

कयो नहीं ? साघारणतः कारण यह है कि उनके आरम्भिक मसीही जीवन में अच्छी नींव डाली गई है.

हमारे नये जन्म के बाद के जीवन की तुलना एक बनते हुये घर के साथ की जा सकती है. हम सभी जानते हैं कि घर का महत्वपूर्ण भाग उसकी नींव ही होती है. यदि घर के तीसरे मंजिल में दरार हो तो उसका कारण साधारणतः दोषपूर्ण नींव ही जाना जाता है.

हमारे जीवनो के साथ भी ऐसा ही है. मसीह पर भरोसा करने के वर्षो बाद भी हम आरम्भ में डाली गई दोषपूर्ण नींव के परिणामों से पीडित हो सकते हैं.

नया नियम पाप के ऊपर विजय के जीवन की प्रतिज्ञाएं करता है. परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को देखो

(रोमियों 6:14) "तुम पर पाप को प्रभुता न होएगी, क्योकि तुम व्यवस्था के अधीन नहीं , वरना अनुग्रह के अधीन हो." और यह हमें सदा आनंद के जीवन और संपूर्ण उदासी से मुक्त जीवन जीने की आज्ञा देता है. (फिलिप्पियों 4:4,6), प्रभु में सदा

इसलिये उनकी आज्ञाएं एक अर्थ से प्रतिज्ञीओं में हैं जिन्हें प्राप्त करने के लिये वह हमें अनुग्रह दे सकता है. उपरोक्त आज्ञा में इसलिये प्रतिज्ञा है क्योंकि परमेश्वर हमें नित्य आनंदित तथा संपूर्ण उदासी से मुक्त जीवन जीने की योग्यता देता है.

नये नियम मे इसी प्रकार की अनेकों अनेक महिमामय प्रत्रिज्ञाएं हैं. परंतु जो हमने लिखी है, वे यह दर्शाने के लिये काफी हैं कि वास्तव में सुसमाचार ही शुभ संदेश है. फिर भी दुखदायी सत्य यह है कि बहुतेरे मसीही जो दावा करते हैं कि उन्होंने सुसमाचार को ग्रहण किया है , वे अपना जीवन उपरोक्त पदो ंके अनुसार नहीं जी रहे हैं.

इस पुस्तक का उददेश यह है कि आपके जीवन में अच्छी नींव डाली जाने के योग्य आपको बनाये , ताकि आपके जीवन के लिये परमेश्वर का संपूर्ण उद्येश पूरा हो सके.

आगे पढें और पवित्र आत्मा को आपके हृदय से बातें करने दें.

हो सकता है यह आपके संपूर्ण जीवन मे एक नये अध्याय का आरंभ हो.........

अध्याय 1
मनफिराव

यीशु ने कहा कि उसकी भेडशाला ( उसका राज्य ) में प्रवेश का सही मार्ग द्वार के द्वारा था. परंतु उसने कहा कि कुछ दीवार पर से चढकर आने का प्रयत्न करेंगे (यूहन्ना 10:1)!

परमेश्वर ने मनुष्य के उद्धार के लिये जो मार्ग ठहराया है, वह मनफिराव तथा प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास जाने के द्वारा हैद्य यही एक मात्र मार्ग हैद्य जो किसी अन्य मार्ग से चढकर आने का यत्न करते है, उन मनुष्यों को परमेश्वर कभी ग्रहण नहीं कर सकता.

यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला जो प्रभु क लिये मार्ग तैयार करने के लिये आया ,उसने मनफिराव का प्रचार किया . वही एक मात्र मार्ग था जो इसरायल के राष्ट्र को यीशु को अपना उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण करने हेतू तैयार करने के लिये थाद्य हमारे लिये भी कोई अन्य मार्ग है ही नहीं.

मनफिराव और विश्वास

आज बहुतेरे मसीहियों में वह गहराई या सामर्थ दिखाई नहीं देती जो प्राचीन मसीहियों में थी.

इसका कारण यह है कि उन्होंने मसीह पर विश्वास किया है

प्राथमिक कारण यह है कि उन्होने सही मनफिराव नहीं किया है.

ठीक है उन्होंने मसीह पर विश्वास किया है ,परंतु उन्होंने बिना पहले मन फिराये विश्वास किया है , इसलिये उनका परिवर्तन उथला है.

आईये इस सुप्रसिद्ध गीत के शब्दों को देखेंः

"एक नीच दुष्ट जो सचमुच विश्वास करता है, उसी क्षण यीशु से क्षमा पाता है."

क्या यह सचमुच सत्य है-कि एक वीच दुष्ट केवल "सत्य विश्वास" करने के द्वारा ही क्षमा प्राप्त कर सकता है? क्या उसे पहिले मन फिराव की आवश्यकता नहीं?

आप कहेंगे कि सच्चे विश्वास में मनफिराव भी पाया जाता है. परंतु जब तक नीच दुष्ट को यह समझाया न जाये ,तो वह सोचते हुये चला जायेगा कि उसका नया जन्म मात्र विश्वास करने के द्वारा हुआ है और वह धोखा खाकर चला जायेगा .

मसीह ने जो स्वयं संदेश प्रचार किया , वह था- "मनफिराव और सुसमाचार पर विश्वास करो" (मरकुस 1:15). उसने अपने प्रेरितों को भी यही संदेश प्रचार करने को कहा (लूका 24:47)! और उन्होंने भी ठीक वैसा ही किया प्रेरितों के काम (किया20:21).

इस पर परमेश्वर का वचन बिलकुल स्पष्ट है. यदि आप अच्छा और सच्चा परिवर्तन चाहते हैं , तो जान रखें कि मनफिराव और विश्वास अलग नहीं किये जा सकते. परमेश्वर ने इन दोनों को एक साथ जोडा है, और जिन्हें परमेश्वर ने जोडा है उन्हें कोई मनुष्य अलग न करे. सचमुच में मनफिराव और विश्वास , मसीही जीवन के पहिले दो तत्व हैं(इब्रानियो 6:1). यदि आपने सही मनफिराव नहीं किया है तो आपकी नींव दोषपूर्ण होना ही है . और तब सचमुच आपका संपूर्ण मसीही जीवन भी हिलनेहारा होगा.

बाईबल कहती है कि "परमेश्वर का भय बुद्धि का आरंभ है" (या अ ब स)(नीतिवचन 9:10)और यदि हम सवमुच प्रभु का भय मानते हैं,तो हम "पाप से फिर जायेंगे" (नीतिवचन 3:7)मसीही जीवन का अ -ब-स भी नहीं सीखा है.

असत्य और सत्य मन फिराव

यदि आप ने मन फिराया हे,तो आपको निश्चय होना चाहिये कि आपने सिद्व मन फिराया है . क्योंकि शैतान के पास उसका जाली मन फिराव है, जिसके द्वारा वह लोगों को धोखा देता है.

शैतान को मालूम है,कि अधिकांश लोग एक ही आज्ञा के अनुसार जीते हैं , जो कहती है, कि "तुम पक डमें नहीं आओगे?" सो वह उन्हें ऐसे पाप करन के मार्गो तथा तरीकों को सिखाता है, जिससे वे पकडे न जाएं.

यहा तक कि एक चोर भी पकडे जाने पर खेद महसूस करता है,परंतु वह मन फिराव नहीं है.

जब शाऊल राजा ने परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया , तो उसने शमूएल के सामने मान लिया कि उसने पाप किया है. परंतु वह यह नहीं चाहता था कि लोग इसे जाने . वह अभी मनुष्यों के आदर का खोजी था. उसने सच्चा पश्चताप नहीं किया था. वह केवल दुखी था कि वह पकडा गया.(1 शमुएल 15:24-30). यही उसके तथा दाऊद राजा के बीच भिन्नता थी ,जिसने पाप में गिरने के पश्चात उसका खुले आम अंगीकार किया (भजन संहिता 51).

आहाब राजा भी शाऊल की तरह ही दूसरा है ,कि जब एलियाह ने उसे चेतावनी दी कि परमेश्वर उसका न्याय करने जा रहा है,सो उसने अपने आप पर सचमुच खेद ही प्रगट किया द्य उसने अपने ऊपर टाट ओढकर तथा अपने पापों के लिये विलाप भी किया (1 राजा 21:27-29) द्धद्य परंतु उसने सत्य मन फिराव नहीं कियाद्य वह केवल परमेश्वर के न्याय से डर गया था.

यहूदा इस्करियोती की कथा भी झूठे मन फिराव का स्पष्ट उदाहरण है. जब उसने देखा कि यीशु को मृत्युदंड दिया है,तो उसे बुरा लगा ,तथा उसने कहा "मैने पाप किया है" (मत्ती 27:3,5) द्धद्य परंतु उसने याजकों के सामने उसका अंगीकार किया २२जैसे कि आज भी कुछ लोग करते हैं. उसने मन फिराव नहीं किया...ण्ण्ण्यद्यपि हो सकता है कि उसने जो किया था उस पर वह खेदित हुआ हो. यदि उसने सच्चा मन फिराव किया होता ,तो वह टूटी हुई दशा में प्रभु के पास गया होता, तथा उससे क्षमा मांगी होती . परंतु उसने ऐसा नहीं किया.

इन उदाहरणों से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है......जैसे कि मनफिराव क्या नहीं है "मूरतों से परमेश्वर की ओर फिरना" (1 थिस्सलुनीकियों 1:9).

मूरतें केवल वे ही नहीं हैं ,जो लकडी और पत्थर की बनी हों , जो कि अन्यजातियों के मंदिरो में पाई जाती हों. इसी के समानार्थ ,खतरनाक मूरतें हैं,जिनकी लोग उपासना करते हैं, जो अधिक कुरुप दिखाई नहीं देती हैं, वे हैं आनंद, सुख, धन ,कीर्ति, खुद के मार्ग की वाह रूपी मूरतें इत्यादी........ हम सभी ने इनकी वर्षो तक उपासना की है. मन फिराव का अर्थ इन मूरतों की उपासना करने से रूक जाना और उनसे फिरकर परमेश्वर की ओर हो लेना है.

सच्चे मन फिराव से हमारा संपूर्ण व्यक्तित्व अर्थात हमारा मन ,हमारी भावनायें, और हमारी इच्छा, जुडी हुई है.

सर्वप्रथम पश्चाताप का अर्थ है कि हम संसार तथा पाप के विषय अपना मन बदल रहे हैं,कि हमारे पापों ने हमें परमेश्वर से अलग कर दिया है. हम यह भी देखने लगते हैं कि इस संसार के जीवन का संपूर्ण मार्ग परमेश्वर विरोधी है तथा उस परमेश्वर का निरादार करने वाले जीवन के मार्ग से फिरना चाहते हैं.

दूसरी बात मन फिराव हमारीभावनाओं ो जुडा है. जिस मार्ग में हम जी रहें हैं,उस पर दुःख महसूस करते हैं( 2 कुरिन्थियों 7:10). हम अपने बीते हुये कर्मों से अपने आप पर घृणा करने लगते हैं,जो हमे अपने आप में दिखती है, जिसे कोई और नहीं देख सकता ( येहेजकेल 36:31).

हम जिस रीति से जीवन जीकर परमेश्वर चोंट पहुंचाते रहे है, उस पर हम आँसु बहाते तथा विलाप करते हैं. बाईबल के बहुतेरे महान पुरूषों की प्रतिक्रिया यही रही है,जब वे अपने पापों के प्रति चौकस हुये ( दाऊद भजन :51), अयूब ( अयुब 42:6), और पतरस( मत्ती 26: 75). सभी अपने पापों से मन फिराकर बिलख बिलख कर रो पडे.

यीशु तथा प्रेरितों दोनों ने ही हमें अपने पापों के लिये आँसु बहाने तथा विलाप करने के लिये प्रोत्साहित किया है( गत्ती 5:4; याकुब 4:9). यही परमेश्वर की ओर का मार्ग है.

अन्त में ,मन फिराव हमारी इच्छाओं से जुडा है. हमें अपनी हठीली खुद की इच्छा को समर्पित करना होगा ...

"जो अपने मार्ग चाहती है"
और यीशु को अपने जीवन का प्रभु बना लें .इसका अर्थ है,कि हम अब से , जो कुछ परमेश्वर हमस े चाहे ,उसे करने के लिये इच्छित हैं. चाहे उसके लिये हमें कोई भी कीमत चुकानी पडे , तथा कितना भी नीचा होना पडे.

उडाऊ पुत्र एक टूटा हृदय और समर्पित व्यक्ति के रूप में पिता के घर वापस पहुंचा इस विचार से कि जो कुछ उसका पिता उससे कहे वह करेगा . यही सच्चा पश्चाताप है (लूका 15:11-24)

हमें परमेश्वर के सम्मुख सभी पापों को अंगीकार करने की आवश्यकता नहीं है,जोहम ने अब तक किये हैं. इन सभी को स्मरण करना हमारे लिये असंभव बात है. उडाऊ पुत्र ने ऐसा नहीं किया , उसने जो कहा वह था,

"पिताजी,मैंने पाप किया है"
और केवल यही हमें कहने की आवश्यकता है.

परंतु स्मरण रखे यहूदा इस्कारियोती ने भी कहा ,

"मैंने पाप किया है".
यहां उसके अंगीकार तथा उडाऊ पुत्र के अंगीकार में एक संसार का अंतर था. परमेश्वर केवल हमारे बोले हुये शब्दों को ही नहीं सुनता . वह शब्दों के पीछे आत्मा का बोध लेता है, तथा उसके अनुसार हमस े व्यवहार करता है.

मन फिराव का फल

यूहन्ना बप्तिस्मा देनेवाले ने फरीसियों से कहा कि मन फिराव के योग्य फल लओ (मत्ती 3:8). यदि हमने सच्चा मन फिराया है, तो वह हमारे जीवन का संपूर्ण मार्ग परिवर्तन कर देगा.

मन फिराव के पश्चात , सर्वप्रथम कार्य हम यह करें कि हमने अपने जीवन में दूसरों के साथ जो बुराइयां की हैं, उनके बदल भलाई करें.

हम जक्कई के विषय सुसमाचार में पढते हैं, कि जैसे ही यीशु ने उसके घर में प्रवेश किया , उसने अपने को अपने पापों का दोषी पाया ( लूका 19:1-10)जक्कई पैसो से प्रेम करने वाला व्यक्ति था. परंतु वह समझ गया कि मन फिराव में क्या मिला हुआ है. वह जानता था कि यदि वह यीशु का चेला बनने जा रहा है, तो अपने जीवन में उसने जितनी गलतियां की हैं,उनकी उसे सुधार करनी होगी.

इसका अर्थ उसे पैसों की भारी हानि उठानी होगी,क्योंकि उसने बहुत लोगों को धोखा दिया था. परंतु उसने संपूर्ण हृदय से मन फिराव के विषय सोचा और प्रभु से कहा, वह अपनी आधी संपत्ती कंगालों को बांट देगा, तथा जिन्हें उसने धोखा दिया है उनको चौगुना फेर देगा.‘‘

जक्कई ने जब वापस करने की बात कही, तभी यीशु ने कहा ,

 "इस घर में उद्धार आया है."
वापस करने की इच्छा करना यह सच्चे उद्धार के परिणामों में से एक है ( लूका 19:1-10).

बुद्धिमान व्यक्ति के विषय दृष्टान्त में यीशु ने कहा कि उसने गहरा गढढा रेती की सतह के नीवे तक खोदा तथा चट्टान पर नींव डाली ( लूका 6:48)मूर्ख व्यक्ति ने भी उसी क्षेत्र में अपना घर बनाया . परंतू उसने गढ्ढा गहिरा नहीं खोदा. उसने अपनी नींव रेत की सतह पर ही रखी.

हम इस दृष्टांत को सत्य तथा असत्य मनफिराव पर लागू कर सकते हैं. केवल तभी जब हम दर्द को उठाते हुये अपने जीवन द्वारा संपूर्ण वापसीकरण करते हैं, हम गहरा खोदते है?

जब हम मसीह के पास आते हैं, तो यह अच्छा होगा कि हम आरंभ ही में समय निकालकर हमारे उद्धार रहित जीवन की उन बातों को जान लें हमें ठीक करने की आवश्यकता है. यदि हम बाहरी दिखावा ही करते रहे और कुछ बातों से चूक जाएं,तो हम पायेंगे कि नींव कमजोर रही है. और एक दिन हमारा घर गिर जाता है.

वापसी में क्या मिला हुआ है?

वापसी में क्या मिला हुआ होता है?

इसका अर्थ है कि यदि हमने सरकार को करों इत्यादी के मामलों में धोखा दिया है,तो आपको उन करों को अभी चुकाना होगा. कभी कभी सम्बंधित विभागो को चुकाना संभव नहीं हो सकता है. परंतु जहां इच्छा होती , तहां उपाय सदा होता है- यदि हम परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना चाहते हैं तो! हम यह निश्चित करने के लिये कि सरकार का जितना पैसा हमारे ऊपर आता है, उतना उसे लौटाने के लिये पोस्ट ऑफीस के टिकट या रेल यात्रा का टिकट खरीद कर उन्हें फाड डालें.

यदि आपने मनुष्यों से धोखा किया है, तो उन्हें पूर्ण पैसे लौटाते हुये उनसे क्षमा याचना भी कर लें. उन्हें यह भी बतायें कि यह परिवर्तन आपके जीवन में कैसे आया? यदि आप पाते हैं, कि आपमें ऐसा करने का साहस नहीं है, तो वापस करते समय एक भाई को अपने साथ ले लें.

यदि आप एक साथ अपना पूर्ण कर्ज न चुका सके ,तो चिन्ता न करें , उसे किस्तो में पमरा करें . परंतु उसे आरंभ करें ,चाहे पाच रूपये के साथ ही क्यों न हो ? जिस दिन जक्कई ने कर्ज वापसी का निर्णय लिया , उसी दिन परमेश्वर ने उसे ग्रहण कर लिया. उसने उसे सब कुछ पूर्ण चुकता करने के बाद ग्रहण नहीं किया.

यदि आपने किसी के साथ धोखा किया है, और आपको पता नहीं अब वह कहा रह रहा है, तब आप वह पैसा परमेश्वर को लौटा दें, जो सभी पैसों का वास्तविक स्वामी है. यह नियम परमेश्वर ने इस्त्राएलियों के लिये निर्धारित किया था(गिनती 5:6:8).

हमें किसी भी दशा में गैरकानुनी रीति से लिया गया पैसा अपने पास नहीं रखना चाहिये. परमेश्वर की आशीष इस पर कभी नहीं होगी. यदि हमने किसी को किसी प्रकार से चोट पहुंचाई है, जिसमें पैसा नहीं लगा है, तब हम उस व्यक्ति के पास जायें, तथा उससे क्षमा याचना करते हुये क्षमा करने की मांग करें.

मैं ऐसे भाइयों को जानता हूं ,जिन्होंने महीनों तक पैसा जमा किया तथा बाद में अपने बँक के खातों स सरकार को उसके वापसी के लिये पैसा निकाल कर दिया ,क्योंकि उन्होंने सरकारी करों की तथा सीमा शुल्कों की धोखाधडी की थी . और परमेश्वर ने उन्हें इससे भी अधिक उत्तम बातों से आशीषित किया , जो बँक खातों से भी बडी थी .

मैं दूसरें ऐसे लोगों को जानता हूं जिन्होंने जितनी बार बस या रेल से बिना टिकट सफर किया ,उसकी गिनती करके उतना पैसा वापस लौटा दिया . जो थोडी बातों में विश्वासयोग्य ठहरते हैं, वे परमेश्वर क लिये बडे कामो के करने वाले होते हैं. मैं कुछ लोगो को जानता हूं जो अपनी उपाधी , प्रमाणपत्र लेकर विश्वविदयालय के अधिकारियों के पास गये तथा स्वीकार किया कि उन्होंने अन्तिम परीक्षा में धोखाधडी की थी . यदि आवश्यक पडे तो अपने विवके की शुद्धता के लिये वे अपनी उपाधी , प्रमाणपत्र की बली चढाने को भी तैयार थे .परमेश्वर ने उन्हें ऐसे विश्वविदयालयों के अधिकारियों की दृष्टि में ऐसा अनुग्रह दिया कि उन्होंने उन्हें क्षमा कर दिया .

परंतू सदा ऐसा ही नहीं होगा . आपके मामले में हो सकता है कि परमेश्वर विश्वविदयालय को अनुमती दे कि वह आपका प्रमाणपत्र छीन ले परंतु तब यह आपके लिये परमेश्वर की सिद्ध इच्छा ठहरेगी.

मैं एक भाई के विषय में जानता हूं जिसने एक व्यक्ेित को क्षमा याचना का पत्र लिखा, जिसका उसने कई वर्षों पहले छोटासा टिकट चुराया था. चोरी चोरी ही है. चाहे चोरी हूई वस्तु की कीमत कितनी भी छोटी ही क्यों न हो. थोडी ही बातों में हमारी विश्वासयोग्यता की परख होती है.

मैं आपको यह सलाह नहीं दे रहा हूं कि आप अपना भविष्य देखें , तथा आपने पिछले लीवन में जितनी छोटी भी गलतियां की हैं उनका स्मरण करके कतार लगायें.नहीं, आपको ऐसा करने की आवश्यकता नहीं . परमेश्वर आपको स्मरण दिलायेगा कि क्या क्या ठीक करना है, और उन्हें आपको ठीक करना होगा.

ऐसी भी बातें होगी जिसमें आप कुछ भी नहीं कर पायेंगे , क्योंकि जो गलती हुई होगी वह उलझन भरी होगी . ऐसी स्थिती में आपको परमेश्वर के सन्मुख दुख प्रगट कर उससे उसकी दया की मांग मात्र करनी होग.

हम किसी भी दशा में शैतान को यह अवसर न दें कि वह हमें अपराधी महसूस कराये और सदा के लिये दण्डित ठहराये. परमेश्वर हमारी संपूर्ण परिस्थिति को जानता है और वह हमें भाग्य पर नहीं छोडता. यदि आपके पास इच्छा पूर्ण मन है,तो परमेश्वर जो कुछ भी आप करने मे समर्थ है उसे ग्रहण करेगा ,चाहे वह कुछ भी नहीं हो (2 कुरिन्थियों 8:12).

परमेश्वर की स्तुति हो क्योंकि वह इतना दयावंत है.

परमेश्वर उनका आदर करता है, जो उसका आदर करते हैं (1 शमुएल 2:30). और एक मार्ग जिस के द्वारा हम आदर करते हैं वह है,हमारा थोडी बातों में विश्वासयोग्य पाया जाना.

यदि हम वापसीकरण नहीं करते हैं तो मानो हम आजीवन के लिये अपने साथ जंजीर को खींचते चले जा रहे हैं. परमेश्वर यह देखने के लिये हमारी परख करेगा , कि क्या हम अपने पैसों , अपने आदर , अपनी उपाधियों और यहां तक कि अपनी नौकरी से अधिक शुद्ध विवेक को कीमत देते हैं या नहीं.

ब्हुतेरे इस परीक्षा में असफल हो जाते हैं , परंतु परमेश्वर की स्तुति हो कि हर एक पीढी में कुछ ऐसे लोग बचे हुए हैें , जो पृथ्वी की सभी बातों से बढकर परमेश्वर से अधिक प्रेम करते हैं.

दूसरों को क्षमा करना

मन फिराव में दूसरों के पापों को क्षमा करना भी पाया जाता है, उन्हें जिन्होंने हमें किसी भी रीति से चोट पहुंचाई है, यीशु ने कहा ,

 "यदि तुम मनुष्यो का क्षमा न करोगे , तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा नहीं करेगा" (मत्ती 6:15)
. वह आगे कहता गया कि दूसरों को केवल बाहरी रूप से नहीं , पर हृदय से क्षमा करना चाहिये (मत्ती 18:35).

यदि हम दूसरों को संपूर्ण हृदय से तथा पूर्णतः क्षमा न कर , तो परमेश्वर के द्वारा हमें क्षमा प्राप्त करना भी असंभव है.

हो सकता है, दूसरों ने जो हमारे साथ किया , उसे हम भुला नहीं पा रहे हों, परंतु जब कभी भी यह परीक्षा आए , तो उनके द्वारा की गई बुराई के विचार को निश्चित ही हम इंकार कर सकते हैं.

शायद किसी ने आपको बहुत बुरी तरह चोट पहुंचाई है कि आपको उसे संपूर्ण हृदय से क्षमा करनें में सचमुच कठिनाई हो रही है , तो परमेश्वर से क्षमा करने की सहायता की मांग कीजिये और आप पाएंगे कि वह आपको दोनों अर्थात उचित इच्छा तथा किसी को भी क्षमा करने की सामर्थ देना चाहता है.

जब हम सोचते हैं परमेश्वर ने बडी स्वतंत्रता से हमारे लाखों लाख पाप क्षमा कर दिये हैं , तो इसी रीति हमें भी दूसरों को क्षमा करने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिये. जब हम दूसरों को क्षमा नहीं करते , तब शैतान हमारे ऊपर सामर्थी हो जाता है.

"क्षमा करें" पोलिस ने कहा , "कि शैतान का हम पर दांव न चले" (2 कुरिन्थियों 2:10,11)

शैतान की और एक परिवर्तित बर्ताव

एक और क्षेत्र है जहां बातों को ठीक करने की आवश्यकता है , वह है शैतान तथा दुष्ट आत्माओं के साथ सम्पर्क का क्षेत्र.

यदि आपने ज्योतिषाचार्य , मूर्तिपूजा , हस्तरेखा पठन , काला जादू इत्यादी में सीख पा ली है , या आप रॉक संगीत और चोट पहुचाने वाले नशीले सेवन में दिलसस्पी लेते रहे हैं , तो आपको शैतान के साथ इन संपर्को को त्यागना होगा. यद्यपि इनमें से कुछ संपर्क विवेकहीन दशा में बनाये गये हैं. पहला काम आपको यह करना होगा कि आप सारी मूरतों , जादू की पुस्तकों तथा ताबिजों इत्यादि का नाश ( बेचे नहीं , नाश करें ) कर दें जो आपके पास हों (प्रेरितों के काम 19:19)

तब आप ऐसे प्रार्थना करें,

"प्रभु यीशु , शैतान के साथ मेरा जाने या अनजाने में जो संपर्क था , उसे त्यागता हू."

तब शैतान से सीधे कहें ,

"शैतान ,यीशु मसीह के नाम जो मेरा प्रभु व उद्धारकर्ता है , मैं तेरा सामना करता हूँ , और तू मुझे अब कभी छू नहीं सकता क्योंकि मैं अब प्रभु यीशु मसीह का हूँ
.याकुब 4:7 कहता है ,
"परमेश्वर के अधीन हो जाओ , शैतान का सामना करो और त बवह तुम्हारे सामने से भग जायेगा" 
तब शैतान की आप पर और आगे पकड नहीं रह जायेगी.

यदि हम परमेश्वर के साथ नित्य चलते रहेंगे ,तो वह हमारे जीवन के विभिन्न भागो में अधिक ज्योति देता जायेगा . हो सकता है ये हमारे वस्त्रों के विषय में हो ,जिसमें संसारिकता झलकती हो , या भाषा या शब्दों के स्वरों की कठोरता में हो , या जिस रीती से पढने की आदत से हम अशुद्ध हुये जा रहें हैं इत्यादि से हमउ न नये क्षेत्रों को नित्य खोज पायेंगे जहां हमें मन फिराव तथा शुद्धीकरण की आवश्यकता है.

इस प्रकार लगातर मन फिराव के मार्ग में हम आजीवन चलते रहें .

अध्याय 2
विश्वास

मन फिराव मसीही जीवन की नींव का पहला भाग है . विश्वास दूसरा भाग है.

परमेश्वर पर विश्वास रखने का अथ है उस पर भरोसा रखना और उसने अपने वचन में जो कहा है ,उस पर विश्वास रखना , बावजूद इसके कि हमारी भवनाएं हमें क्या कहती हैं या दूसरे लोग हमें क्या कहते हैं. यह उतना ही सहज है.

यहां परमेश्वर के विषय तीन सच्चाईयां हैं.

  1. वह हमसे असीमित प्रेम करता है
  2. वह पूर्णतः बुद्धिमान है
  3. और
  4. वह सर्व शक्तिमान है
  5. क्या इन सच्चाईयों पर विश्वास करना कठिन है ? नहीं ,तब तो हमें अपने संपूर्ण हृदय से परमेश्वर पे विश्वास रखने में कठिनाई नहीं होनी चाहिये .

    ज्ब हव्वा ने अदन की वाटिका में शैतान की आवाज को सुना , तो वह विश्वास में असफल ठहरी. उसने यह विश्वास नहीं रखा कि परमेश्वर की आज्ञाएं उसकी भलाई के लिये थीं. उसने परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया क्योंकि परमेश्वर के सिद्ध प्रेम पर उसे विश्वास नहीं था.

    परमेश्वर के वरदान पाने के लिये विश्वास

    परमेश्वर के पास हमें देने के लिये बहुतेरी अदभुत बातें हैं और उसके वरदान अनुग्रह के वरदान हैं . परंतु हमें उन्हें पाने के लिये विश्वास की आवश्यकता होती है.

    बायबल कहती है ,

    "विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है" ( इफिसियों 2:8)
    अनुग्रह परमेश्वर का हाथ है , जो स्वर्ग की आशीषों से भरपूर होकर हम तक नीचे पहुंचता है. विश्वास हमारा हाथ है जो परमेश्वर के हाथ से आशीषों को लेने के लिये ऊपर पहुंचता है.

    सर्वप्रथम परमेश्वर हमें हमारे पापों की क्षमा देता है , यदि हमने मन फिराव कर लिया है. तब हमें अपना हाथ बढाकर जो कुछ परमेश्वर मुफ्त में देना चाहता है ,उसे मात्र ले लेना है. हमें उसके लिये न तो कोई पर्म करना है और न ही दान देना है. वह तो पहले ही कल्वरी पर चुका दिया गया है. अब हमें जो करना है , वह सिर्फ यह कहना है कि

     " तेरा धन्यवाद पिता"
    और उस ेले लेना है. यह है विश्वास.

    परमेश्वर जो कुछ हमें दे रहा है , यदि हम उसे नहीं लेते तो हम उसका अपमान करते हैं . हम उसके वरदानों को तुच्छ जान रहे हैं , शायद हम सोचते है कि परमेश्वर हमें चिढा रहा है. जैसे कुछ लोग अपने बच्चों को चिड दिलाते हैं , मानों वे कोई ईमान देने के लिये अपना हाथ बच्चों तक बढाते हैं ,और जेसा ही बच्चा उसे लेने के लिये अपना हाथ बढाता है , वे अपना हाथ पीछे ले लेते हैं. परंतु परमेश्वर इन लोगों के समान हीन तथा बुरा नहीं है , वह हमें भले वरदान देन की सच्ची लालसा करता है.

    इसलिये बायबल कहती है कि

    "बिना विश्वास के परमेश्वर को प्रसन्न करना असंभव है"
    चाहे हम जो कुछ भी और क्यों न करें ( इब्रानियों 11:6).

    यदि हम परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं , तो वह केवल हमारे पापों को ही क्षमा नहीं करेगा ,साथ ह ीवह हमें पापों की सामर्थ से भी मुक्त करेगा.

    हमें विश्वास केसे मिलता है ? केवल एक ही मार्ग है. बायबल कहती है ,

     "विश्वास सुनने से और सुनना मसीह के वचन से होता है" (रोमियों 10:17)
    दूसरें शब्दों में ,जब हम परमेश्वर को उसके वचन के द्वारा हमें बोलने कि अनुमति देते हैं , तो हमें विशस प्राप्त होता है. दस प्रकार से हमारा विश्वास बढता ही है. परमेश्वर के वचन के द्वारा हम जानते हैं कि मसीह हमारे पापों के लिये मरा और जी भी उठा. और यदि हम मन फिराते और उस पर भरोसा रखते हैं तो हम तुरंत हमारे पापों से पूर्ण तथा मुफ्त में क्षमा प्राप्त करते हैं तब पवित्र आत्मा हमारे हृदय के साथ गवाही देता है कि यह सत्य है.

    परमेश्वर के वचन और पवित्र आत्मा की इस दोहरी गवाही के द्वारा हमें पूर्ण निश्चय होना चाहिए कि परमेश्वर ने हमें क्षमा की है तथा यह कि हम सचमुच उसकी सन्तान हैं.

    विश्वास का आश्वासन

    परमेश्वर चाहता है कि हमारे हृदय में हमें सिद्ध आश्वासन हो कि हम सचमुच उसकी सन्तान हैं . वह कभी नहीं चाहता कि हम इस सच्चाई पर संदेह रखें.

    शैतान अति यत्न करेगा कि हमें इस संदेह में रखे. परंतु आवश्यकता है कि हम कभी सेदेह में न पडें क्योंकि परमेश्वर ने हमें आश्वासन देने के लिये बहुतेरी प्रतिज्ञाएं दी हैं.

    आइये इन प्रतिज्ञाओं को देखें :

    यीशु ने कहा ,

     "वह जो मेरे पास आयेगा ,मैं उसे निश्चित ही बाहर नहीं निकालूंगा २२मैं तुमसे सच- सच कहता हूं , वह जो विश्वास करता अनंत जीवन उसका है" (यूहन्ना 6:37,47)

    " जितनों ने उसे ग्रहण किया ( प्रभु यीशु मसीह), उन्हें उसने परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया " ( यूहन्ना 1:12)

    प्रभु ने कहा,

    "मैं उनके अधर्म के विषय में दयावन्त हूंगा, और मैं उनके पापों को फिर स्मरण करूंगा"( इब्रानियों 8:12)

    परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर विश्वास रखना मानो नदी पार करते समय अपने पैर मजबूत पुल पर रखे जाने के साथ जोडा जा सकता है. यदि पुल मजबुत है , तो हमारे पैर यदि कमजोर भी हों , तो कोई फर्क नहीं होगा . तब मजबुत विश्वास क्या है ? वह मजबुत परमेश्वर पर तथा उसकी प्रतिज्ञाओं पर विश्वास करना है.

    हमारी भावनाय ज्यादातर धोखा देने वाली होती हैं. हमें उन पर भरोसा नहीं रखना चाहिए . तीन लोंगो का एक दृष्टांत है जिनके नाम सत्य , विश्वास तथा भावना हैं जो एक संकरी दीवार पर एक के पीछे एक चल रहे थे . सत्य आगे चल रहा था और विश्वास उसके पीछे चल रहा था , तथा भावना उसके पीछे चल रही थी . जब तक विश्वास ने अपनी आँखे सत्य पर लगाये रखा , तब तक सब कुछ सहज चलता रहा . भावना सिद्ध रूप उसके पीछे चलती रही , परंतु जो ही विश्वास ने पीछे मुडकर भावना को देखा कि वह कैसे साथ आ रही है , तो वह एकाएक गिरकर मृत्यु का शिकार हो गया और भावना भी अपनी मौत मर गयी . सत्य बिना किसी गडबडी के दीवार पर चलता ही रहा.

    इस दृष्टांत की शिक्षा स्पष्ट है. परमेश्वर के वचन मे अबदल सच्चाईयां पाई जाती हैं. यदि हमारा विश्वास केवल परमेश्वर के वचन को सीणे देखता रहता है ,तो हमारे गिरने का कोई कारण ही नहीं और भावनायें भी समयानुसार पीछे आती रहेगी .परंतु हम अपनी भावनाओं को देखने लगे , तो हम सरलता से एकाएक निराशा और दण्ड में गिर सकते हैं.

    विश्वास का अंगीकार

    बायबल कहती है कि जो हम विश्वास करते हैं उसका अंगीकार करें ,

    "यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे ,कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं मे से जिलाया , तो तू निश्चय उद्धार पाएगा . क्योंकि धार्मिकता के लिये मन से विश्वास किया जाता है" (रोमियों 10:9, 10)

    हमारे मुख का अंगीकार महत्वपूर्ण है. परमेश्वर के वचन का अंगीकार करने का अर्थ है , परमेश्वर जो कह रहा है वही कहना. यह कठिन नहीं होना चाहिए क्योंकि इसका अर्थ मात्र परमेश्वर कि प्रतिज्ञाओं को "आमीन" ("ऐसा ही हो") कहना है.

    उत्पत्ती 15 में पहली बार वचन में विश्वास इस शब्द का इस प्रयोग किया गया है. वहां लिखा है कि जब अब्राम संतानरहित था, तब परमेश्वर ने उससे कहा कि तेरे संतान आकाश के तारों के तुल्य होंगे. और ऐसा लिखा है कि "अब्राम ने परमेश्वर पर विश्वास किया."

    ( पद 6)"विश्वास" के लिये वहां इब्रामी शब्द "अमान" है जिसके द्वारा हमें "आमीन" शब्द मिला है जिसका अर्थ है "एऐसा ही हो". सो अब्राम ने जो कुछ किया वह परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को "आमीन" कहना था .

    परमेश्वर को "आमीन" कहना ही सच्चा विश्वास है.

    इसके पश्चात अब्राम नये नाम से पुकारा गया जो परमेश्वर ने उसे दिया.'इब्राहिम' जिसका अर्थ है "भीड का पिता". सारा , उसकी पत्नी अभी भी संतान रहित थी ,परंतु इससे इब्राहिम पर कोई अंतर नहीं पडा . वह अभी भी अपने आपको भीड का पिता कहते रहा क्योंकि परमेश्वर ने जो कहा था , उस पर उसे पूरा विश्वास था (उत्पत्ती 17:5)

    यह विश्वास का अंगीकार है , जबकि प्रतिज्ञा को पूरा होते हुए देखा ही नहीं है , तब भी परमेश्वर ने जो कहा है उसका अंगीकार करना.

    परमेश्वर हम से यही कहने के लिये कहता है कि जो उसने अपने वचन में कहा है , वही करना . जब हम परमेश्वर की प्रतिज्ञा का अंगीकार करते हैं , तब हम परमेश्वर पर अपना विश्वास प्रगट करते हैं और तब परमेश्वर हमारी ओर से काम करने योग्य ठहरता है. अपने "गवाही के वचन" के द्वारा हम शैमान पर विजयी होते हैं. शैतान जो दोष जगाने वाला है , वह सदैव हमें हमारे उद्धार की निश्चयता से और परमेश्वर के संमुख हमारे हियाव से चुराने का यत्न करता है. यदि हम उस पर विजयी होना चाहते हैं , तो हम शैतान को सीधे परमेश्वर की प्रतिज्ञाएं सुनायें .

    यीशु ने स्वयं भी परमेश्वर का वचन सुनाकर शैतान पर विजय पाई . उसने कहा , "यह लिखा है २ण्ण्यह लिखा है२२ण्यह लिखा है" ( मत्ती 4:1-11)

    यदि परमेश्वर के वचन पर संदेह करते हैं , तो हम परमेश्वर को झूठा ठहराते हैं. परंतु जब हम शैतान के समक्ष परमेश्वर के वचन का उच्चारण करते हैं , तो हम शैतान और उसके दूतों के विरूद्ध परमेश्वर और उसके वचन का पक्ष लेते हैं. इस रीति हम शैतान को बताते हैं ,कि हमारी परिस्थितियां तथा हमारी भावनाएं जो चाहे हमसे कहें , फिर भी हम विश्वास करते हैं कि जो परमेश्वर ने कहा , वह सत्य है.

    यह विश्वास का अंगीकार है.

अध्याय 3
चुनाव और धर्मी ठहराया जाना

नया नियम हमें परमेश्वर के द्वारा उसके संतानों का चुना जाना और उनका धर्मी ठहराया जाना यह दो महिमायुक्त सच्चाईयां सिखाता है .

चुनाव

बायबल कहती है कि परमेश्वर ने हमें अपने पूर्ण योजना के अनुसार उसकी संतान होने के लिये चुन लिया है. इसका अर्थ है कि वह सारे बीते हुए अनन्त काल से यह जानता है कि कौन उसकी संतान होने जा रहे हैं .

बायबल हमें यह भी बताती है कि परमेश्वर ने हमें "सृष्टी की नींव डाले जाने" के पहले से मसीह यीशु में चुन लिया है ( इफिसियों 1:4).आदम की रचना के बहुत पहले से ही परमेश्वर हम प्रत्येक उसकी संतान के रूप में नाम से जानता है और हमारे नाम "जीवन की पुस्तक "में लिखे हुये हैं ( प्रकाशितवाक्य 13:8).

यह वे सच्चाईयां हैं जो हमें विशाल सुरक्षा देती हैं.

बायबल कहती हैं ,कि जिस परमेश्वर की नींव पर हम खडे हैं उस पर दोहरी मोहर है - परमेश्वर की ओर वाली बाजू में लिखा है , "कि परमेश्वर उन्हें जानता है जो उसके हैं"." मनुष्य की ओर वाली बाजू में लिखा है , " कि जो कोई प्रभु का नाम लेता है , वह अधर्म से बचा रहे" ( 2 तीमुथियुस 2:19).

परमेश्वर उसकी संतान को पृथ्वी की नींव डाले जाने के पहले से जानता है ,परंतु हम जब सचमुच मन फिराते और उसकी ओर मुडते हैं , तभी यह जानते हैं कि हम उसकी संतान हैं. हमारी सीमित बुद्धि यह समझ नहीं पाती है कि परमेश्वर उसके संतानों को कैसे चुनता है और मनुष्य को उसे चुनने या न चुनने की स्वतंत्रता देता है. यह मानों दो समानांतर रेखाएं हैं जो हमारी समझ से मिलती नहीं . परंतु समांतर रेखाओं की गणित रूपी परिभाषा यह है कि वे अनन्त में मिलती हैं - परमेश्वर की असीमित बुद्धि से ( अनन्त).

किसी ने कहा है -जबकि , आप जीवन के पथ पर चलते जा रहे हैं , एक दिन आपको एक खुला हुआ द्वार मिलता है जिस पर यह वचन लिखे हुये हैं , "जो कोई मन फिराता है तथा मसीह पर विश्वास करता है , वह इसमें प्रवेश करे और अनन्त जीवन प्राप्त करे ."आप अंदर प्रवेश करते हैं , और पीछे देखते हैं तो आप जिस द्वार से आयेंहै उसी द्वार पर ये शब्द लिखे हुए पाते हैं , "जगत की नींव डाले जाने से पहले तुम मसीह यीशु में परमेश्वर के द्वारा चुने गये हो ."

धर्मी ठहराया जाना

पापों की क्षमा भूतकाल के दोषों को मिटा देती है , परंतु वह हमें पूर्ण पवित्र नहीं बनाती और इसीलिये हम सिद्ध पवित्र परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित नहीं रह सकते . इसीलिये परमेश्वर को हमारे लिये कुछ अधिक ही करना पडा .

उसे हमें धर्मी ठहराना पडा !

धर्मी ठहराए जाने का अर्थ है परमेश्वर को हमारे जमा खाते में मसीह की सिद्ध धार्मिकता डालनी पडी. इसका परिणाम यह हुआ कि अभी हमारी उपस्थिती परमेश्वर के संन्मुख मसीह की सिद्धता के समान हो गई है , यह यह चकित करनेवाली सच्चाई है. परंतु यह सत्य है. यह मानो इस प्रकार है कि एक भिखारी के नाम से बँक में लाखों रूपये जमा किये गये हैं , वो पैसा जो न उसने कमाया और न ही वह उसके योग्य है , परंतु यह उसे मुफ्त वरदान के रूप में दिया गया है .

धर्मी ठहराए जाने का अर्थ है , परमेश्वर के द्वारा ऐसे ग्रहण किया जाना मानो हमने अपने संपूर्ण जीवन में पाप ही नहीं किया हो और मानो हम अपने वर्तमान जीवन में सिद्ध धर्मी हों . परमेश्वर का वचन कहता है , "जिस के द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक जिस में हम बने है , हमारी पहुंच भी हुई है"(रोमियों 5:2). अब हम निर्भय व बिना हिचक के कभी भी साहस से परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित हो सकते हैं . इसके लिये स्वयं परमेश्वर ने मार्ग खोल दिया है .

अदन की वाटिका में आदम और हव्वा ने जैसे ही पाप किया , वे अपने आप को दोषी तथा लज्जित महसूस करने लगे , तथा उन्होंने अपने आप को अंजीर की पत्तियों से ढांक लिया . परमेश्वर ने उनकी अंजीर की पत्तियों को हटा दिया तथा एक प्राणी को मारकर उसके चमडे के वस्त्र उन्हें पहिना दिये.

यह अंजीर की पत्तियां हमारे भले कामों का चित्र है. अंजीर की पत्तियों के समान ही हमारे भले काम हमारी नग्नता को परमेश्वर के सामने छिपा नहीं सकते. क्योंकि बायबल कहती है कि हमारे भले काम भी परमेश्वर की दृष्टि में मैंले चिथडो के समान हैं (यशायाह 64:6)

वह वध किए गये प्राणी मसीह का चित्र था जो हमारे पापों के लिये मारा गया . उसका चमडा मसीह की सिद्ध धार्मिकता का चित्र है जो हमें ढांकने के लिये है (उत्पत्ति 3:7 ,21). धर्मी ठहराया जाना परमेश्वर का मुफ्त वरदान है. कोई भी व्यक्ति अपने कामों के आधार पर परमेश्वर के सम्मुख धर्मी नहीं ठहर सकता . यह कहना एक गलती है कि "आओ हम धर्मी बनने की खोज करें , ताकि परमेश्वर के द्वारा धर्मी ठहराया जाएं "." इसके साथ ही गलती का एक और विरोधी चरम भी है. वह यह कहना की" यदि हम चुने गये और धर्मी ठहरे , तो यदि हम अभी पाप भी करें , तो कोई बात नहीं है ." वे पाप को हलका जानते हैं , क्योंकि वे सोचते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें चुना व धर्मी ठहराया है. वे यहां इस बात का प्रमाण देते हैं कि वे बिल्कुल परमेश्वर के चुने हुओं में है ही नहीं ( तुलना करें रोमियों 4:5 से याकुब 2:24 की).

एक बार मिें निश्चय हो जाए कि हम चुने हुये तथा धर्मी ठहरे हैं , तो शैतान के दोषारोपन हमारे ऊपर से अपना प्रभाव खो देंगे. क्योंकि यदि "परमेश्वर हमारी और है , तो हमारा विरोध कौन हो सकता है ?" (रोमियों 8:31). हम कभी भी अपने लीवन की आवश्यकता में यह महसूस न करें कि हम परमेश्वर के द्वारा दण्डित या ठुकराए हुए हैं.

"परमेश्वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा ? परमेश्वर वह है जो उनको धर्मी ठहराने वाला है "( रोमियों 8:33). हलेलूयाह .

यह है सुसमाचार का शुभ संदेश ! तब यह आश्चर्य की बात नहीं होगी की शैतान ने बहुतेरे वियवाकसयों को यह जानने से परे रखा है , कि परमेश्वर ने उन्हें चुना है तथा धर्मी भी ठहराया है .

अध्याय 4
चेला होना

जब यीशु ने अपने चेलों से कहा कि सारे राष्ट्रों में जाओ और चेले बनाओ तो उनके मन में उसके अर्थ के विषय मे ं कोई संदेह नहीं था ( मत्ती 28:19) क्योंकि वह उन्हें पहले ही समझा चुका था कि चेला होना क्या है .

लूका 14:25-35; यहां चेले होने की तीन दशाओं का स्पष्ट चित्रण किया गया है. यीशु वहां एक व्यक्ति के विषय कह रहें हैं जिसने मीनार बनाने के लिये नेव डाली , परंतु उसे पूरा नहीं कर पाया क्योंकि उसके पास उसे पूरा करने की बिसात नहीं थी ( पद 28-30). इसका अर्थ है चेला बनने के लिये मूल्य चुकाना पडता है . यीशु ने कहा , "बनाने से पहले बैठकर खर्च जोड लें "

वास्तव में , चेला होना क्या है यह समझने से पहिले परमेश्वर यह नहीं चाहता कि हमारे पापों की क्षमा के पश्चात हम वर्षो तक ठहरे रहें . यीशु ने जैसे ही लोग उसके पास आए , उन्हें चेला होने की कीमत बताई.

उसने कहा कि एक विश्वासी जो चेला बनने की इच्छा नहीं रखता , वह परमेश्वर के लिये ऐसे नमक के समान अनुपयोगी है जिसका स्वाद बिगड गया है. अपने रिश्तेदारों से "घृणा करना"

चेला होने की पहली शर्त ये है कि हम अपने रिश्तेदारों से स्वाभाविक बेहद प्रेम समाप्त कर डालें.

यीशु ने कहा ,"यदि कोई मेरे पास आये , और अपने पिता और माता और पत्नी और लडकेवालों और भाइयों और लडकेवालों और भाइयों और भाइयों और बहिनों ,वरन अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने ,तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता"(लूका 14:26).

वे तो बलवन्त शब्द हैं. घृणा करने का अर्थ क्या है ? घृणा करना हत्या करने के ही समान है (1 यूहन्ना 3:15). हमें यहां अपने रिश्तेदारों के प्रति जो स्वाभाविक लगाव है ,उसे मार डालने के लिये कहा गया है.

क्या इसका अर्थ यह है कि हम उनसे प्रेम न रखें ? नहीं. निश्चित ही इसका अर्थ ऐसा नहीं है. यदि हम उनके प्रति हमारे स्वाभाविक प्रेम को त्याग देंगे,तो परमेश्वर उसके बदले में ईश्वरीय प्रेम देगा . तब हमारा प्रेम हमारे रिश्तेदारों के प्रति पवित्र होगा. इसमा अर्थ यह है कि लगाव में रिश्तेदारों को नहीं , परंतु परमेश्वर को सदा प्रथम स्थान होगा.

ब्हुतेरे परमेश्वर का आज्ञापालन नहीं करते क्योंकि वे अपने माता ,पिता, पत्नी इत्यादी को अप्रसन्न करना नहीं चाहते . परमेश्वर हमारे जीवन में प्रथम स्थान की मांग करता है. और यदि हम वह स्थान उसे नहीं देते हैं , तो हम उसके चेले बन ही नहीं सकते.

यीशु के स्वयं के उदाहरण को देखिये . यीशु ने अपनी विधवा माता से यद्यपि प्रेम किया , परंतु उससे उसे अपने स्वर्गिय पिता की सिद्ध इच्छा से हटाने के लिये चाहे प्रभाव डालने नहीं दिया , वह छोटी सी बात भी क्यों न हो. यह उदाहरण हम काना के विवाह में देखते हैं जहां यीशु ने अपनी माता की बात पर काम करने से इंकार कर दिया (यूहन्ना 2:4).

यीशु ने हमे अपने भाईयों से भी "घृणा" करना सिखाया है. जब पतरस ने यीशु को क्रूस पर जाने से रोकने का यत्न किया , तो उसने मुडकर तीखे वचनों से उसे घुडका , जो उसने पहले कभी नहीं कहे थे. उसने कहा "शैतान , मेरे सामने से दूर हो , तू मेरे ठोकर का कारण है ( मत्ती 16:23)."पतरस ने मानवी प्रेम से भर कर यह सलाह दी थी. परंतु यीशु ने उसे झिडका क्योंकि उसकी सलाह परमेश्वर की इच्छा के विरूद्ध थी.

यीशु के लगाव में स्वर्गिय पिता सदा सर्वोच्च थे . वह यह अपेक्षा करता है कि हमारा भी ऐसा ही व्यवहार हो . अपने पुनरूत्थान के उसने पतरस से पुछा कि क्या वह पृथ्वी की सब बातों से अधिक उससे प्रेम रखता है (यूहन्ना 21: 15-17). केवल वे जो प्रभु से सर्वोच्च प्रेम रखते हैं , उन्हें ही उसकी कालिसिया में जिम्मेदारियां सौपी गईं .

इफिसियों की कलीसिया के अगुवे को त्यागे जाने का खतरा था, क्योंकि इसने अपना पहला सा प्रेम छोड दिया था ( प्रकाश्तिवाक्य 2:4,5).

यदि हम इस भजनकर्ता के साथ ऐसा कह सके कि "स्वर्ग में कौन है ? तेरे संग रहते हुये मैं पृथ्वी पर और कुछ नहीं चाहता ,"तब तो मानो हमने चेला होने की पहली शर्त को सचमुच पूरी कर ली है (भजन 73:25).

यीशु जिस प्रेम की हम से मांग करते हैं ,वह भावात्मक , संवेदनशील मानवीय लगाव नहीं है ,जो उसके लिये भक्ति के आवेशपूर्ण गीतों को गाकर स्वयं प्रगट किया गया हो. नहीं. "यदि हम उससे प्रेम करते हैं ,तो उसकी आज्ञा पालन करेंगे (यूहन्ना 14:21)"

अपने ही जीवन से घृणा करना

चेला होने की दूसरी शर्त है कि हम स्वयं के जीवन को अप्रिय जानें . यीशु ने कहा

"यदि कोई मेरे पास आए और अपने प्राण को अप्रिय न जानें तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता" (लूका 14:26)

उसे आगे बढाते हुए उसने कहा ,

"जो कोई अपना क्रुस न उठाए और मेरे पीछे न आए , वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता" ( लूका 14:27)

यही यीशु की सभी शिक्षाओं मे कम से कम समझी गई है .

उसने कहा कि चेला होने के लिये ,"अपने आप से इंकार करे और प्रतिदिन अपना क्रुस उठाकर मेरे पीछे हो ले" ( लूका 9:23).यह अपनी बायबल पढने तथा प्रतिदिन प्रार्थना करने से अधिक महत्वपूर्ण है. अपने आप का इंकार वैसा ही है जैसा अपने को अप्रिय जानना .यह वह जीवन है जो हमने आदम से विरासत में पाया है . क्रुस को उठाने का अर्थ है , अपने आप के जीवन को मार डालना .उसको मारने से पहिले हमें सर्वप्रथम उस लीवन को अप्रिय जानना होगा.

हमारा स्वार्थमय जीवन मसीह के जीवन का प्रमुख बैरी है. बाईबल उसे "शरीर" कहती है . शरीर हमारे भीतर बुरी लालसाओं का गोदाम है, जो हमें अपने स्वयं के लाभ , आनंद , सन्मान और मार्ग इत्यादि की खोज की परीक्षा में डालता है.

यदि हम ईमानदार हैं तो हम यह मान्य करेंगे कि हमारे उत्तम कार्य हमारे भीतर से उठने वाली हमारी भ्रष्ट लालसाओं के बुरे अभिप्राय द्वारा भ्रष्ट हैं. जब तक हम इस शरीर को अप्रिय न जानें , हम प्रभु के पीछे चलने के योग्य नहीं ठहरेंगे.

इसी कारणवश यीशु ने हमारे जीवन को अप्रिय जानने के विषय (खोने) में इतना कुछ कहा है . वास्तव में यह बात सुसमाचारों में 6 बार दोहराई गई है ( मत्ती 10:39 ,16:25, मरकुस 8:35, लूका 9:24, 14:26, यूहन्ना 12:25).

यह हमारे प्रभु की वह एक बात है जो सूसमाचारों में कई बार दोहराई गई है. फिर भी इसे कम से कम प्रचार किया गया है तथा कम से कम समझा गया है.

अपने आप से इंकार करने का अर्थ है अपने आप के अधिकारों तथा अवसरों और सन्मान को खोजना बंद कर देना . अपनी आकांक्षा तथा दिलचस्पी को छोड देना और अपने आप के मार्ग को खोजना बंद कर देना इत्यादि . यदि आप केवल इसी मार्ग से चलने की इच्छा रखते हैं , तो ही आप यीशु के चेले हो सकते हैं.

अपनी समस्त अधिकृत संपत्ति दे देना

चेला होने के लिये तीसरी शर्त है कि हमें अपनी समस्त अधिकृत संपत्ति दे देना होगा. यीशु ने कहा , "इसी रीति से तुम में से जो कोई अपना सबकुछ त्याग न दे, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता" (लूका 14:33)

हमारी अधिकृत संपत्ति का अर्थ है कि हमारी संपत्ति जो स्वयं की है. उन्हें समस्थ दे देने का अर्थ है कि इसके पश्चात यह सोचना कि उसमें से अब हमारा कुछ भी नहीं है .

अबा्रहम के जीवन में हम इसका एक उदाहरण पातें हैं. इसहाक उसका अपना पुत्र था , वह उसकी अधिकृत संपत्ति था. एक दिन परमेश्वर ने उस से कहा कि इसहाक को बलिदान करके अर्पण कर दे. अब्राहम ने इसहाक को वेदी पर लिटा दिया और उसे बली करने को तैयार था ,परंतु परमेश्वर ने आकर उस से कहा , कि बलिदान आवश्यक नहीें है , क्योंकि उसने आज्ञा पालन की इच्छा को प्रमाणित किया था (उत्पत्ति 22) उसके पश्चात अब्राहम यह पहचान गया कि यद्यपि इसहाक उसके घर में था परंतु वह उसकी अधिकृत संपत्ति नही है इसहाक अब परमेश्वर का है.

अपनी समस्त अधिकृत संपत्ति को छोड देने का अर्थ यही है. हमारे पास जो कुछ है वह सब वेदी पर रख देना और परमेश्वर को दे देना. परमेश्वर हमें अनुमति दे कि उनमे से कुछ चीजो का हम उपयोग कर सकें. परंतुहम उन्हें आगे को अपनी कहकर नहीं सोच सकते. जबकि हम यदि अपने स्वयं के घर में रहते हैं तो भी हमें उस घर को परमेश्वर का घर मानना होगा और यह भी कि उसने हमें उसे बिना किराये के रहने के लिये दिया है ! यही सत्य चेला होना है.

क्या हमने अपनी समस्त संपत्ति के साथ ऐया किया है ? हमारी अधिकृत संपत्ति अर्थात हमारा बँक खाता ,संपत्ति ,नौकरी , पढाई ,वरदान और तोडे ,पत्नी और बच्चे तथा अन्य वह सभी जिन्हें हम इस पृथ्वी पर मूल्य देते हैं इसमें पाई जाती है. यदि हम सच्चे चेले होना चाहते हैं , तो इन सभी को हमें वेदी के ऊपर रख देना होगा .

परमेश्वर चाहता है कि हम संपूर्ण हृदय से उससे प्रेम रखें . मत्ती 5:8 में जिस शुद्ध मन के बारे में कहा गया है , वही इसका अर्थ है. शुद्ध विवेक ही का होना काफी नहीं है. शुद्ध विवेक का अर्थ केवल यह है कि हमने पाप को त्याग दिया है. एक शुद्ध हृदय वह है जिसने अपना सब कुछ त्याग दिया है.

सो हम देखतें हैं कि सत्य चेला होने में निम्न बातों के प्रति हमारी प्रवृत्ति में परिवर्तन पाया जाता है

  1. हमारे रिश्तेदारों के और प्रियजनों के प्रति
  2. हमारे अपने जीवन के प्रति
  3. और अधिकृत संपत्ति के प्रति
. जब तक कि हम हमारे मसीही जीवन के ठीक आरंभ में ही इन चौथरफा मुद्दो का सामना नहीं कर लेते तब तक एक अच्छी नींव का डालना असंभव होगा.

अध्याय 5
जल का बप्तिस्मा

स्वर्ग पर उठाने जाने से पहले अंतिम बातों में से एक बात की आज्ञा यीशु ने अपन चेलों को दी थी, वह यह थी कि

  1. जाओं और चेले बनाओ
  2. और उन्हें पिता ,पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बप्तिस्मा दो और
  3. जो आज्ञाएं एसने उन्हें दी हैं , उन्हें मानना सिखाओ . यहां पर क्रम महत्वपूर्ण है
. केवल वे जो चेले बनने के इच्छुक हैं ,उन्हें ही बप्तिस्मा दो . अन्य किसी को नहीं.

जब बालकों को यीशु के पास लाया गया , तो उसने अपने हाथ उन पर रखे और उन्हें आशीष दी (देखें मरकुस 10:13-16).परंतु जब सियाने लोग मन फिराकर उसके पास आये , सो उसने चेलो के द्वारा उन्हें बप्तिस्मा दिया (देखें यूहन्ना 4:1,2)

परंतु आज हम बहुतेरी कलीसियों में क्या देखते हैं ? बिलकुल विपरीत , बालकों को बप्तिस्मा दिया जाता है और सियानों के सिर पर हाथ रखे जाते हैं ( दृढीकरण ). यीशु ने जो किया यह उसके बिलकुल विरूद्ध है.

पेंन्तिकुस्त के दिन जब बहुतेरे अपने पाप से कायल हुये तो पतरस ने उनसे कहा , "मन फिराओं और बप्तिस्मा लो". नया नियम ये बताता है कि "जितनों ने उसका वचन ग्रहण किया उन्होंने बप्तिस्मा लिया"( प्रेरितों के काम 2:38-41).

यह स्पष्ट है कि केवल वे ही जो बुद्धिमानी से परमेश्वर का वचन ग्रहण करने मन फिराव के योग्य थे उनका बप्तिस्मा हुआ . इस प्रकार "प्रेरितों के काम" में प्रत्येक घटना के विषय वर्णन किया गया है.

p> बप्तिस्मे का अर्थ क्या है

रोमियों 6:1 - 7 में बप्तिस्मे का स्पष्ट अर्थ समझाया गया है. वहा बताया गया है कि , हमारा पुराना मनुष्यत्व मसीह के साथ क्रूस पर चढाया गया है और बप्तिस्मे के द्वारा हम मसीह के साथ मृत्यू कें गाडे गये हैं. पुराना मनुष्यत्व मन है जो हमारे उद्धार रहित दिनों में हमारा था , जो पाप करना चाहता था . वह मसीह के साथ क्रूस पर चढाया गया है.

p> इसकी सच्चाई में जीने से पहले हमें इसे प्रथम जानने की आवश्यकता नहीं है . परमेश्वर जो कहता है हमें उसपर केवल विश्वास करना है. जब परमेश्वर का वचन कहता है कि हमारा पुराना मनुष्यत्व मसीह के साथ क्रूस पर चढाया गया है ,तब हमें निश्चित ही उस पर ऐसा विश्वास करना चाहिये जैसे हम ने परमेश्वर के कहे गये इस वचन पर विश्वास किया कि मसीह स्वयं कलवरी की पहाडी पर क्रूस पर चढाया गया था . यह दोनों सत्य वियवास के द्वारा ग्रहण किये जाते हैं.

पुराना मनुष्यत्व और शरीर दोनों एक नहीं हैं. शरीर हमारी भीतर बुरी लालसाओं का गोदाम है , जो परमेश्वर की इच्छा का विरोध करता है. हमारे मृत्यु के दिन तक हमें इसे साथ लेकर चलना है. हम शरीर की तुलना चोरों के दल से कर सकते हैं जो हमारे घर में प्रवेश करने की खोज में है. पुराना मनुष्यत्व मानों विश्वासघाती सेवक है जो हमारे घर के भीतर रहता है, जो सदा चोरों को प्रवेश के लिये द्वार खोल रखता है. अब वही विश्वासघाती सेवक मारा जा चुका है. चोर स्वस्थ तथा प्रसन्न है. परंतु अब हमारे पास नया सेवक , नया मनुष्यत्व है जो द्वार को इन चोरों के विरूद्ध बंद रखता है.

बपतिस्मा में हम हमारे पुराने मनुष्यत्व के मारे जाने तथा गाडे जाने की गवाही देते हैं ( पाप की लालसा ), तथा मसीह के साथ जी उठने की भी , ताकि हम आगे को "नये जीवन की सी चाल चलें" ( रोमियों 6:4)

नूह के दिनों का जलप्रलय भी बपतिस्मा का रूपक है ( 1 पतरस 3:20,21).संपूर्ण संसार परमेश्वर के द्वारा उस जलप्रलय से नष्ट किया गया . उस समय नूह जहाज में चला गया तथा एक बिलकुल नये संसार में बाहर आया . पुराना संसार तथा उसका सब कुछ जल प्रलय में गाडा गया . यही गवाही हम बपतिस्मा के विषय देते हैं , कि संसार के साथ हमारा पुराना संबंध (संसारिक फैशन तथा संसारिक मित्रता इत्यादी ) अब पूरा टूट चुका है , तथा अब यह कि हमज ल में से निकलकर एक बिलकुल नये संसार में प्रवेश कर रहे हैं .

बप्तिस्मा की रीति

अब हम इस प्रश्न पर आते हैं कि हमारा बप्तिस्मा कैसे हो ?

बप्तिस्मा अंग्रेजी का शब्द नहीं है. नया नियम मूल में युनानी भाषा में लिखा गया तथा बप्तिस्मा शब्द युनानी भाषा के शब्द " बेप्टो" से लिया गया जिसका अर्थ " किसी तरल पदार्थ से ढंक देना" या उसमे "डुबो देना" होता है. यही अर्थ बप्तिस्मा के लिये प्रारम्भिक प्रेरितों ने लिया , जो था पानी में डुबोना. किसी के सिर पर पानी छिडकना निश्चित ही बप्तिस्मा नहीं है. जब फिलिप्पुस ने इथोपिया के खोजा को बप्तिस्मा दिया , तो यह लिखा है कि "वे दोनो पानी में उतरकर गये २ण्ण्पानी में से बाहर आये" ( प्रेरितो के काम 8:38,39).

यीशु के बप्तिस्मे के समय भी हम ऐसे ही शब्दों को पढते हैं कवह बप्तिस्मा के बाद पानी में ऊपर आया ( मरक्रुस 1:10).

न्ये नियम में बप्तिस्मा सदा पानी में डुबाकर ही दिया गया . जबकि बप्तिस्मा गाडा जाना है ,तो केवल डुबाना ही उसका सही रूपक हो सकता है. क्योंकि हम मृतकों को उनके सिर पर रेत छिडककर नहीं गाडते हैं ,परंतु उन्हें संपूर्ण गड्डे में दफनाते हैं .

यह इस बात को भी स्पष्ट करता है कि जिनका पुराना मनुष्यत्च मर गया है वे ही बप्तिस्मा के पात्र हैं , वे जो अब आगे पाप नहीं करना चाहते हैं. क्योंकि चाहे जो हो , केवल मृतको ही गाडा जा सकता है. जो व्यक्ति मृतक नहीं है , उसे गाडना अपराध है .

तीन नाम में बप्तिस्मा

यीशु ने हमें आज्ञा दी है कि हम "पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के" नाम से बप्तिस्मा दें ( मत्ती 28:19). नाम एक वचनीय है क्योंकि परमेश्वर एक है. परंतु यीशु ने प्रगट किया है कि यद्यपि परमेश्वर एक है , परंतु तीन व्यक्तियों में उसका अस्तित्व है , जो एक दूसरे से भिन्न है.

पिता हमारे पापों के लिये नहीं मरा , न ही पवित्र आत्मा मरा था ,जो मरा था वह था पुत्र. जब यीशु का स्वर्गारोहण तो वह पिता के दाहिने हाथ जा बैठा ,पवित्र आत्मा के दाहिने हाथ पर नहीं . इसी रीति उसने चेलों की सहायता के लिये जिसे भेजा वह था पवित्र आत्मा , न कि पिता . भले ये हमें मौलिक लगे ,परंतु यह आवश्यक है कि हम ईश्वरत्व के तीन व्यक्ति तथा हमारे छुटकारे की अनोखी सेवकाईयों को भ्रम में न डालें.

प्रेरितों क काम में हम बार बार पढते हैं कि प्रेरितों ने जोगों को यीशु मसीह के नाम से बप्तिस्मा दिया ,( प्रेरितों के काम 2:38 इत्यादि). तो मत्ती 28:19 में यीशु ने जो आज्ञा दी , उसके साथ यह कैसे ठीक बैठ सकता है ?

जब वचनों में दो स्पष्ट विरोधी बयान पायें जातें हैं , तो हम अपने निकट अध्ययन में यह पायेंगे कि दोनों बयान सही हैं. यह स्पष्ट करने के लिये कि पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा मूर्तिपूजकों की त्रिएकता नहीं है , प्रेरितों ने पुत्र को यीशु मसीह के रूप में पहिचाना . इसलिये उन्होंने लोगों को "पिता और पुत्र यीशु मसीह और पवित्र आत्मा" के नाम से बप्तिस्मा दिया . इसे ही यीशु मसीह के नाम से बप्तिस्मा कहा गया है.

विश्वास का आज्ञापालन

एक चेले के जीवन में बप्तिस्मा आज्ञा पालन का पहला कदम होना चाहिये , जो आजीवन के आज्ञा पालन का अगुवा ठहरे . यह आज्ञा पालन तर्क का आज्ञा पालन नहीं ,परंतु विश्वास कका आज्ञा पालन हो. यदि यीशु अपने तर्क पर झुके होते , तो वे बप्तिस्मा लेने के लिये यूहन्ना बप्तिस्मा देनें वाले के पास नहीं गये होते. क्योंकि उनके तर्क ने उन्हें बप्तिस्मा लेने के विरूद्ध में कई विवाद दिये होते , विशेष रूप से जबकि उसने कभी पाप ही नहीं किया था. यूहन्ना खुद भी यह नहीं समझ पाया कि यीशु को बप्तिस्मा की क्यों आवश्यकता थी. परंतु यीशु ने तर्क के वादविवाद को अलग रखा और सरलता से पवित्र आत्मा की वाणी का पालन किया ( मत्ती 3:15).

"तू अपनी समझ का सहारा न लेना २ण्वरन् संपूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना" यह वचन में लिखा है ( नीतिवचन 3:5). तर्क विश्वास का पहला बैरी है क्योंकि मानवी तर्क आत्मिक सच्चईयों को ग्रहण नहीं कर सकते.

जब हम बप्तिस्मा लेते हैं तो पानी में हमारे शरीर का अंतिम भाग अर्थात सिर का ऊपरी भाग अंत में डुबता है. यह एक चिन्ह है ! हमारे तर्क का अधिकार हमारा ही भाग है जिसे मारना अत्यंत कठिन है ! आदम के संतान अपने तर्क के कहने के अनुसार जीवन जीते हैं . बप्तिस्मे में हम यह गवाही देते हैं कि हम जीवन के उस मार्ग के लिये मर चुके हैं ( अपने स्वयं के तर्क पर निर्भर होने के ) और अब परमेश्वर के मुख से जो भी वचन निकलता ह ैउस पर विश्वास करते हुए जीवन जीते हैं (अपने स्वयं के तर्क पर निर्भर होने के) और अब परमेश्वर के मुख से जो भी वचन निकलता है उस पर विश्वास करते हुए जीवन जीते हैं ( मत्ती 4:4, रोमियों 1:17). कुछ मसीहियो द्वारा बप्तिस्मा को महत्वहीन करके कम समझा गया है. नामान ने आरंभ में अपने कोढ से चंगा होने के लिये यरदान नदी में जाकर 7 बार डुबकी लगा इस एलिशा की आज्ञा को तुच्छ जाना. परंतु जब उसने इस सहज आज्ञा का पालन किया तब वह चंगा हो गया ( 2 राजा 5:10-14). बात यह है कि परमेश्वर छोटी बातों के द्वारा हमारे आज्ञा पालन की परीक्षा लेता है.

परमेश्वर की आज्ञा पालन में देरी नहीं होनी चाहिए . यदि आपका पुराना मनुष्यत्व मर चुका है तो उसे तुरंत गाड देना चाहिए . मरे हुये व्यक्ति को न गाडना अपराध है .

" अब क्यों देर करता है ? उठ , बप्तिस्मा ले " ( प्रेरितो के काम 22:16)

अध्याय 6
पवित्र आत्मा से बप्तिस्मा

हम सभी की दो आवश्यकताएं हैं ,पहली भूतकाल से जुडी है जो हमारे पापों की क्षमा है. दूसरी हमारे भविष्य से जुडी है परमेंयवर को प्रसन्न करने वाले जीवन को जीने की योग्यता पाना . हमारी पहली आवश्यकता की चिंता मसीह की मृत्यु के द्वारा दूर हो गयी है. दूसरी की पूर्ति के लिये परमेयवर हमें अपने पवित्र आत्मा की सामर्थ देता है.

जीवन तथा सेवा के लिये सामर्थ

हमने अपने ही द्वारा उस पहली आवश्यकता पूरा नहीं किया होता. उसे परमेश्वर को पूरा करना पडा . ऐसा ही दूसरी के साथ भी है. हम अपनी ही शक्ति के द्वारा परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला जीवन उसकी ही इच्छा को पूरा करने वाला जीवन नहीं जी सकते . कुछ लोग बुद्धिमानी से अपने मसीही जीवन के आरंभ में ही इस बात को पहचान लेते हैं और इसलिए वे सीधे परमेश्वर की सामर्थ को खोजते हैं . दूसरे कठिन रास्ते से खोजते हैं, वर्षों तक बार -बार यत्न करते हुये तथा असफल होते हुये और तब सामर्थ के लिये परमेंश्वर की और मुडते हैं.

दुर्भाग्यवश दूसरे और भी हैं जो लगातार असफल होने के बाद यह विश्वास करते हुये कि विजयी जीवन जीना इस जीवन में असंभव है , अंत में अपने आप को पराजय के जीवन सौप देते हैं .

यह बात हमारे द्वारा प्रभु की सेवा करने तथा उसके गवाह बने रहने पर भी लागू करती है . बहुतेरे विश्वासी अपने परिवर्तन के तुरंत बाद यह पहचान जाते हैं ,कि उन्हें प्रभु का गवाह होना चाहिए , परंतु वे अपने आप को बंद मुख के तथा सामर्थहीन पातें हैं . कुछ इसे अपने व्यक्तित्व का दुर्भाग्यपूर्ण गुण मानते हैं और मसीह के लिये सामर्थी गवाह बनने की आशा को त्याग देते हैं.

दूसरे यह पहचान जाते हैं कि परमेयवर ने उन्हें पवित्र आत्मा की सामर्थ की प्रतिज्ञा दी है. सो वे इस सामर्थ के लिये परमेश्वर को खोज कर उसे पा लेते हैं और वे साहस से भरपूर हो जाते हैं और मसीह की गवाही के लिये प्रभावशाली , लज्जारहित तथा अग्नीमय होने के लिये अलौकिक वरदानों से सुसज्जित हो जाते हैं.

आत्मा के द्वारा जन्म पाना एक बात है कि हम कैसे परमेश्वर की संतान बनते हैं. परंतु पवित्र आत्मा में बप्तिस्मा (डूबना ) पाना बिलकुल अलग बात है. इसके द्वारा परमेश्वर जैसा चाहता है कि हम करें वैसे सामर्थी हम बनते हैं.

हमारी नयी वाचा का पहिलौठापन

पुरानी वाचा के अंतर्गत पवित्र आत्मा परमेश्वर के द्वारा दिये गये कुछ विशेष कार्यों को पूरा करने के लिये केवल कुछ लोगों पर उन्हें योग्य बनाने के लिये आता रहा. नई वाचा के अंतर्गत पवित्र आत्मा सभी विश्वासियों के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है. वह हमें यीशु की महिमा दिखाने के लिये आया है , तथा हमें उसके स्वरूप में बदलने के लिये आया है.

यूहन्ना बप्तिस्मा देनेवाले ने यीशु की दो सेवाओं की ओर इशारा किया है , जो वह पूरा करेगा . पहली यह `ि कवह पापों को उठा ले जायेगा , तथा दूयरी यह कि यह लोगों को पवित्र आत्मा में बप्तिस्मा देगा ( यूहन्ना 1:29 ,33). हमें इन दोनों के अनुभवों की आवश्यकता है. पहली प्रतिज्ञा नये नियम यह है कि ,

‘‘वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा ‘‘ (मत्ती 1:21)
दूसरी प्रतिज्ञा नये नियम में यह है कि ‘‘
वह तुम्हें पवित्र आत्मा से बप्तिस्मा देगा‘‘( मत्ती 3:11)

यह महत्व की बात है, कि नया नियम इन दो प्रतिज्ञाओं के साथ खुलता है. नयी वाचा यह मनुष्य के साथ परमेश्वर के व्यवहार के नये युग का आरंभ थी. हमारा पापों से उद्धार पाना तथा पवित्र आत्मा में बप्तिस्मा पाना परमेश्वर के संतान होने के कारण यह हमारा दोहरा पहिलौठापन है और परमेश्वर हमें निश्चित ही आधा ही नहीं , परंतु हमारा संपूर्ण पहिलौठापन हमें देना चाहता है.

नयें नियम की पाचों पुस्तकों का आरंभ पवित्र आत्मा के बप्तिस्मे की प्रतिज्ञा के साथ हुआ है ( मत्ती 3:11 ,मरकुस 1:8 ,लूका 3:16 ,यूहन्ना 1:33 , प्रेरितों के काम 1:5). फिर भी बहुतेरे मसीही इसका अपने लिये दावा करने की उपेक्षा करते रहे हैं.

जीवन के जल की नदियां

नये नियम में पवित्र आत्मा को परमेश्वर के निकलकर पृथ्वी पर गिरती हुई नदी के रूप में दर्शाया गया है ( प्रकाशितवाक्य 22:1, प्रेरितों के काम 2:33). गिरते हुये पानी में डूब जाना पवित्र आत्मा से बप्तिस्मा पाना है. यीशु ने कहा , ‘‘ जो कोई प्यासा हो वह उसके पास आये , और पवित्र आत्मा को ग्रहण करे , ताकि उनके हृदय की गहराई से जीवन के जल की नदियां उमड पडे‘‘ ( यूहन्ना 7:37).

सामान्य विश्वासी के अनुभव में यह पानीकल्प ( हस्तपंप ) के समान है. एक संघर्ष और पंप करते रहने का जीवन जिसके द्वारा सुखे हृदय से आशीष की थोडी सी बूंदे निकल पाती हैं. यह वास्तव में ऐसा नहीं होना चाहिये . यदि हमारा सुखापन ही हमें प्रभु के पास ला सकता है तो बातें भिन्न हो सकती हैं. परमेश्वर की इच्छा यह है कि हमारे जीवनों से आशीषों की नदी बहकर उन सभी लोगों तक पहुंचे जो हमारे संपर्क में आते हैं.

पहला कदम उसके लिये यह होगा कि हम अपनी आवश्यकता की पहिचाने . बहुतेरे विश्वासी इन शब्दों के प्रति मूर्खता के वाद-विवाद से बंधे हैं. हमें सही शब्दावली नहीं , परंतु सामर्थ चाहिए जो आवश्यक है. यदि हमारे पास सही शब्दावली हो , परंतु यदि हम सुखी हड्डियों के समान है , तो उसका क्या उपयोग है ? इसलिये उत्तम होगा कि हम इमानदार बनकर यह अंगीकार करते हुए कि वक आशीष की नदियां हमारे भीतर से नहीं बह रही है ,परमेश्वर के पास आयें . इस प्रथम कदम को उठाते हुये हम परमेश्वर पर भरोसा रख सकते हैं कि जो हमने मांगा है ,वह उसे हमें दे.

पवित्र आत्मा में बप्तिस्मा के लिये जो हमें आवश्यक है ,वह है प्यास ( एक कडी इच्छा , जो परमेश्वर की महिमा करने के लिये बडी लालसा से उत्पन्न हुई है) और विश्वास ( इस संपूर्ण भरोसे के साथ कि जो परमेश्वर ने प्रतिज्ञायें की है ,वह उन्हें हमें देगा). आइये तब इस सामर्थ के लिये हम प्यास और विश्वास के साथ मांग करें और परमेश्वर हमारी बिनती को इन्कार नहीं करेगा.

सामर्थ से भरपूर होना

यीशु के पीछे चलने के लिये पहिले प्रेरितों ने सब कुछ त्याग दिया था . परंतु उन्हें बाहर जाकर परमेश्वर की नियुक्त सेवा करने से पहले पवित्र आत्मा में नियुक्त बप्तिस्मा पाने के लिये रूके रहना पडा. यीशु को भी अपनी सार्वजनिक सेवा आरंभ करने से पहिले पवित्र आत्मा तथा सामर्थ के अभिषेक की आवश्यकता पडी ( प्रेरितों के काम 10:38). यदि उसे इस अभिषेक की आवश्यकता पडी , तो हमें इसकी कितनी अधिक आवश्यकता है

यीशु ने चेलों से कहा कि जब तक वे सामर्थ को न पा लें ,जब तक यरूशलेम में ठहरे रहें ( लूका 24:49) , और स्वर्गारोहण के ठीक पहले उसने अपने चेलों से कहा , कि जब पवित्र आत्मा हम पर उतरेगा , तब तुम सामर्थ पाओगे ( प्रेरितों के काम 1:8). पेन्तिकुस्त के दिन पवित्र आत्मा उन पर उण्डेला गया और उन डरपोक लोगों का ,साहसी और अग्नी से भरे प्रभु के गवाहों के रूप में तुरंत रूपांतर हो गया ( प्रेरितो के काम 2:1-4). उन्होने जो प्राप्त किया वह ठीक वही था , जो यीशु ने उन्हें पाने के लिये कहा था - सामर्थ.

मसीही जीवन जीने के लिये हमें जो आवश्यकता है वह केवल शिक्षा ही की नहीं है ,परंतु हमारे जीवन में परमेश्वर की सामर्थ की है. पवित्र आत्मा में बप्तिस्मा हमें भक्ति के सामर्थ के साथ साथ सेवा की सामर्थ भी देता है.

आत्मा के कार्यो की विभिन्नता

वचनों मे पवित्र आत्मा को हवा के समान बताया गया और हवा भिन्न - भिन्न समयों पर भिन्न भिन्न दिशाओं से बहती है. ‘‘ वैसे ही वह प्रत्येक है जो आत्मा से जन्मा है ,‘‘ यीशु ने कहा ( यूहन्ना 3:8). इसी रीति से पवित्र आत्मा के बप्तिस्मे के विषय में पेत्येक वयक्ति का अनुभव बाहरी रीति से भिन्न हो सकता है . भीतरी जीवन में सामर्थ से भरपूर होना अधिक अर्थपूर्ण बात है.

परमेश्वर हमें आत्मा के द्वारा सामर्थ् के वरदान देता है ताकि हम उसकी कलीसिया को जो मसीह की देह है, प्रभावशाली कार्य करते हुये निर्माण करें . वही एक है जो संकल्प करता है कि हम में से प्रत्येक के पास कौन सा वरदान हो .

भविष्यवाणी (सामर्थ से प्रचार में योग्यता, चुनौती की योग्यता, हियाव दिलाने की योग्यता और शान्ति दिलाने की योग्यता ) इन वरदानों मे सबसे अधिक उपयोगी है .(1 कुरिन्थ्यिों 14:1-5) इसके साथ ही सेवा, सिखाना, चंगाई, हियाव बंधाना, पैसे देना और अगुवाई इत्यादि के भ्ी वरदान है .(रोमियो 12:6-8, कुरिन्थियो 12:8-10). अज्ञात भाषा में बोलने की योग्यता (अन्य अन्य भाषा का वरदान) यह एक दूसरा वरदान है जो परमेश्वर हमें देता है ताकि हम अपनी बुध्दि और मातृभषा की सीमाओं से परे उससे प्रार्थना करने और उसकी स्तुती के योग्य ठहरें .

यदि आप आत्मा में बाप्तिस्मा नहीं पाए हैं, तो परमेश्वर की खोज करें तथा अपने जन्मसिध्द अधिकार का दावा करें उससे यह बिनती भी करें कि वह आपको इसका प्रमाण भी दे . यदि तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी वस्तुए देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी पवित्र आत्मा क्यों न देगा, उन्हं जो उससे मागते है ... तुम्हारे पास नहीं है, क्योंकि तुम मागते नहीं (लूका 11:13, याकूब 4:2).

इसलिए आओ, जैसे याकूब ने पनीएल में परमेश्वर को पुकारा वैसे ही हम भी अपने संपूर्ण हदय से परमेश्वर को पुकारें, जब तक तू मुझे आशीष न दे मै तुझे जाने न दूंगा (उत्पत्ति 32:26).

परमेश्वर के पास पक्षपात नहीं है . जो उसे दूसरों के लिये किया, वही आपके लिये भी करेगा . आज भी वह अपने खोजने वालों को प्रतिफल देता है (इब्रानियों 11:6) जो उसकी महिमा करने की इच्छा करते है . उन्हें वह आज भी बडी उत्सुकता से पवित्र आत्मा उसकी सारी भरपूरी के साथ देता हैं .

अध्याय 7
पवित्रता

सुसमाचार का दोहरा संदेश् में यीशु के शब्दों मे, जो उसने पाप में पकडी गई महिला से कहा संक्षिप्त में यह है :

  1. मै तुझे दण्ड नहीं देता
  2. फिर पाप न करना (यूहन्ना 8:11)

धार्मिकता मसीही दौड के प्रारंभ की रेखा है और पवित्रता दौड को दौडने की पगडंडी हैं . पवित्रता शब्द का अर्थ है, अलग होना .पवित्रता संसार और हमारे स्वयं के स्वार्थपूर्ण जीवन और बढते पाप से अलग होते रहने की प्रक्रिया है .प्रभु यीशु मसीह के पास आने का हमारा संपूर्ण उद्देश यह है कि हम पवित्र हो जाये-जैसे कि एक धावक का संपूर्ण उद्देश्य यह है कि हम पवित्र हो जाये-जैसे कि एक धावक का संपूर्ण उद्देश्य आरंभ की रेखा पर खडे होने का होता है कि वह दौड में ही भाग लें यह निरर्थक है कि एक धावक दूसरों के साथ दौडने की रेखा पर खडा हो जाये जब कि वह दौडने में भाग लेने की इच्छा ही न रखता हो .

हमारे लिये परमेश्वर का उद्देश्य

हम मे से बहुतेरे पहिली बार मसीह के पास कुछ स्वार्थ के लक्ष्य से आते हैं, ताकि अपने लिये कुछ लाभ प्राप्त करें .शायद चंगाई या नरक की आग से छुटकारा परंतु परमेश्वर फिर भी हमें उन स्वार्थ के लक्ष्य के बाद भी ग्रहण करता हैं .यद्यपि ऊडाऊ पुत्र केवल अपना पेट भरने के लिये घर लौटा था, परंतु फिर भी उडाऊ पुत्र का पिता उससे इतना प्रेम करता था, कि उसने उसका पुनः स्वागत किया ऐसा ही भला परमेश्वर भी है .परंतु यहां सचमुच दुख की बात होगी कि हम मसीही जीवन में इसलिये चलते रहे कि हम स्वर्ग जाना चाहते थे . जैसे ही हम परमेश्वर के अधिकतम उद्देश्य को, जो हमारे जीवन के लिये है समझ जाये, तो उसे पूर्णतः पूर्ण करने की लालसा करें .इफिसुस के मसीहियों के लिये पौलुस प्रार्थना करता है कि उनके हृदय की आँखे ख्ुाली हों, ताकि वे देखे कि उसके बुलाने से कैसी आशा होती है (इफिसियो 1:2)

रोमियों 8:26,30 हमे बताता है कि उसके बुलाने की आशा क्या है, कयोंकि जिन्हे उसने पहिले से जान लिया है उन्हें पहिले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरुप मं हो, ताकि वह बहुत भाईयों में पहिलौठा ठहरें दिव्य परमेश्वर का उद्देश्य यह है कि हम यीशु की समानता में बदल जाएं यही सब पवित्रता के विषय में है कि हम लगातार यीशु के समान बनते जाये . यह मसीही दौड है जिसे दौडने के लिये हमें प्रोत्साहित किया गया है कि हम अपनी आँखें यीशु की ओर लगाकर रखें जिसने इस दौड को हमसे पहले दौडकर पूरी कर लिया है (इब्रानियों 12:1,2)

पाप से संबंध तोड लें

इस दौड का पहला कदम यह है कि हम विवेक में होकर पाप करना बंद कर दें व्यवस्था के अधीन पाप को रोका देने का कोई प्रयोजन नहीं था परंतु नई वाचा के अंतर्गत सभी प्रेरितों ने सहमती दर्शाई है कि सुसमाचार का दोहरा संदेश ठीक वही है जो यीशु ने सामने रखा, अर्थात् दण्ड से छुटकारा तथा पाप न करना

पौलुस कहता है, पाप मत करो (1 कुरिन्थियों 15:34) यूहन्ना कहता है, मैं यह बातें तुम्हें इसलिए लिखता हूं कि तुम पाप न करो (1 यूहन्ना 2:1) पतरस भी हमें प्रोत्साहित करता है कि पाप करने से रुक जाओ (1 पतरस :1)

रोमियों पांच में विश्वास के द्वारा धर्मी बबने के स्पष्टीकरण् के बाद पौलुस यहां प्रश्न करता है, सो हम क्या कहें क्या हम पाप करते रहे कि अनुग्रह बहुत हो (रोमियो 6:1)? अब पुनः (इस समय भारी प्रवाह के साथ), तो क्या हुआ ? क्या हम इसलिए पाप करें (रोमियों 6:15, शाब्दिक).प्रश्नों में उत्तर नही इसी स्वर में सुनाई पडता है हमें एक भी बार पुनः पाप करने की खेाज नहीं करनी चाहिए. क्या यह हमे भारी अथवा बोझिल संदेश लगता है यह केवल उन्हीं के लिये बोझिल लगेगा जो पाप करते रहना चाहते है . परंतु यह उनके लिए जो बीमार तथा पाप से दासत्व से थकित हैं छुटकारे का आनंदित संदेश है. कोई भी कैदी प्रसन्न हो जाता है जब वह अपने छुटकारे का संदेश सुनता है यह उसे बोझिल नहीं जान पडता, क्या ऐसा लगेगा ?

यीशु का अभिषेक ही इस घोषणा के लिये किया गया कि वह बन्धुओं को (पाप में) को छुटकारे का और कुचले हुओं (शैतान के द्वारा) को छुटकारे का प्रचार करें (लूका 4:18). नये नियम की महिमामय प्रतिज्ञा यह है कि:

"और तुम पर पाप की प्रभुता न होगी क्योंकि तुम व्यवस्थ के अधीन नहीं, (पुरानी वाचा) वरन् अनुग्रह के अधीन हो (यीशु के द्वारा स्थायी नई वाचा ) (रोमियों 6:14)
विजय के लिये पहला कदम यह विश्वास करना है कि ऐसा जीवन आपके लिये संभव है

परीक्षा तथा पाप

परीक्षा में पडने तथा पाप करने के बीच अंतर पाया जाता है . बाईबल कहती है, परंतु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा से खींचकर और फंसकर परीक्षा में पडता है . फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है (याकूब 1:14,15).जब तक हमारे शरीर में अभिलाषा को गर्भवती होने की अनुमती नहीं दी जाती, तब तक पाप हमारे हृदय में जन्म नहीं लेता . जब अभिलाषा हमारे शरीर में कोई सलाह डालती है, तब हम परीक्षा में पडते हैं . यदि हमारा मन उस परीक्षा के साथ सहमत होता है, तब गर्भधारण होता है और पाप जन्म लेता है .

परीक्षा में पडना हमे बुरा नहीं बनाता है . यीशु की भी परीक्षा हुई, परंतु उसने एक भी पाप किसी भी रीति से नहीं किया और इसीलिए वह पूर्ण पवित्र था .

वचन कहता है कि यीशु सब बातों में अपने भाईयों के समान बना और सब बातों में हमारी नाई परखा गया (इब्रानियों 2:17, 4:15).वह ठीक हमारे समान ही परखा गया, फिर भी उसने कभी पाप नहीं किया .

यह बात हमें शायद बहुत अद्भुत न लगे, क्योंकि हम यह सोचेंगे कि यीशु परमेश्वर होने के कारण स्वाभाविक ही सरलता से पाप पर विजयी हो सका . परंतु याद रखें कि उसने परमेश्वर के तुल्य होने के विशेषाधिकार से अपने को शून्य कर दिया . जब वह इस पृथ्वी पर आया (फिलिप्पिों 2:6, 7) यद्यपि वह परमेश्वर था, फिर भी जब वह मनुष्य के रुप में इस पृथ्वी पर रहा, तो उसकी पहुंच उसी पवित्र आत्मा के सामर्थ तक थी जिसे वह आज हमें देता हैं इसलिये हमें कहा गया है, कि हम दौड को दौडे, अपनी आंखे यीशु की ओर लगाकर हमारे उलझाने वाले पाप को दूर करके . आज हम उसके उदाहरण् को देखकर प्रोत्साहित हो सकते है (इब्रानियों 12:2-4).आप हम जिन परीक्षाओं में पडते हैं उन सब पर उसने मनुष्य रुप में विजय पाई है . ऐसे वह हमारे आगे दौडने वाला तथा हमारे लिए अनुकरण करने योग्य उदाहरण् बन गया है (इब्रानियों 6:20).

यह भक्ति का भेद है .....मसीह देह में प्रगट हुआ..... और आत्मा में धर्मी ठहरा (1तीमुथ्यिुस 3:16) यद्यपि उसके पास हमारा शरीर था, परंतु उसने अपनी आत्मा को संपूर्ण जीवन भर पवित्र रखा .

यही बात हमें आशा देती है, कि जैसे वो जयवंत हुआ, वैसे ही हम भी जयवंत हो सकते हैं . क्योंकि उसने हमारे लिये शरीर में होकर नये तथा जीवित मार्ग का उद्घाटन किया है. जिसके द्वारा हम उसके पीछे चल सकें (इब्रानियों 10:20)यह पवित्रता का मार्ग है .

पुराना मनुष्यत्व और नया मनुष्यत्व

हम पहिले ही देख चुके है कि पुराना मनुष्यत्व विश्वासघाती सेवक के समान है जिसने चोरों को घर में प्रवेश करने की अनुमति दी . वह पुराना मनुष्यत्व क्रूस पर चढाया गया है, बुझाया तथा गाड दिया गया है . अब हमारे भीतर एक नया मनुष्यत्व है जो कहता है कि देख, मै आ गया हूं, हे परमेश्वर, कि तेरी इच्छा पूरी करु (इब्रानियो 10:7).

हम जानते है कि यीशु के चेले को पाप करना संभव है परंतु एक चेले के पाप करने तथा एक अविश्वासी के पाप करने में अंतर है, जैसे कि एक बिल्ली का गंदे पानी में गिर जाना, तथा एक सुअर का गंदे पानी में रहने का चुनाव करके उसमे कूद जाना, इन दोनों में ही भिन्नता है ! बिल्ली गंदे पानी से घृणा करती है, परंतु वह दुर्घटनावश उसमें गिर पडती है . सुअर तो गंदगी से ही प्रेम करता है . यह प्रश्न तो स्वभाव ही का है. यीशु के चेले का स्वभाव नया है जो पवित्रता से प्रेम तथा पाप से घृणा करता है .

पुराना मनुष्यत्व पाप करना चाहता है . नया मनुष्यत्व कभी पाप नहीं करना चाहता . परंतु यदि नया मनुष्यत्व इतना बलवंत नहीं है, तो वह शरीर की लालसाओं के लिए अपने हृदय के द्वार को बंद नहीं रख सकता . यह इसलिये नहीं कि वह उन लालसाओं को चाहता है, नहीं, परंतु इसलिये कि वह उनका सामना करने में इतना बलवंत नही है . यह इस कारण् हो सकता है क्योंकि उसने अपने आप को परमेश्वर के वचन से भरपूरी से तृप्त नहीं किया होगा, या उसने प्रार्थना के द्वारा अपने आप को शक्तिशाली नहीं बनाया होगा .

इसलिये पाप करने तथा पाप में गिरने में अंतर है . यह अंतर जानना आवश्यक है . क्योंकि तब हम हमारे हृदय को दण्डित करनेवाली बहुतेरी अनावश्यक भावनाओं को दूर कर सकते है .

बाईबल कहती है कि वह जो पाप करता है ( जो लगातार जान बूझकर पाप करता है) वह शैतान से है ( 1 यूहन्ना 3:8)दूसरी ओर वह विश्वासियों को लिखते हुए कहता है की यदि कोई पाप करे (यदि कोइ दुर्घटनावश पाप में गिर जाता है ) तो पिता के पास हमारा एक सहायक है, अर्थात धर्मी यीशु, और वही हमारे पापों का प्रायश्चित है (1 यूहन्ना 2:1-2)

जान बूझकर तथा अनजाने में किया गया पाप

पाप में गिरना तथा पाप में पाया जाना इसके बीच भी अंतर है . पाप में पाए जाने का अर्थ है, हमारे व्यक्तित्व में सचेत पाप का पाया जाना . ऐसा पाप जिसके प्रति हम स्वयं अज्ञान है. यद्यपि दूसरे जो हम से ज्ञानवान है, वे हमारे भीतर उसे जानने की योग्यता रखते है .परंतु ऐसे अचेत पाप हमें कभी भी अपराधी महसूस नहीं होेने देते क्योंकि परमेश्वर का वचन कहता है, जहाँ व्यवस्थ नाहीं वहाँ पाप गिना नहीं जाता (रोमियों 5:13)(इसका अर्थ यह भी होता है कि जब हमारे सचेत मन में पाप की जागृती नहीं होती, तो परमेश्वर हमारे पाप का दोष हम पर नहीं लगाता)

हमारे मृत्यु के दिन तक हमारे भीतर अचेत पाप पाया जायेगा, जब कि हम ज्योति में ही चलते हों फिर भी वह थोडे और थोडे प्रमाण में रहेगा . बाइबल कहती है, यदि हम कहे, कि हम में कुछ भी पाप नहीं तो अपने आप को धोखा देते है (यूहन्ना 1:8).वह जो कहता है कि उसमें कोई पाप नहीं है, वह वास्तव में यह दावा कर रहा है कि वह मसीह के समान सिध्द बन गया है. परंतु परमेश्वर का वचन कहता है कि हम तभी ष्उसके समान होंगे, जब वह प्रगट होगा इसके पहले नहीष्(1 युहन्ना 3:2)जो यह दावा करते है कि वे पूर्ण पवित्र है तथा सिध्द है, वे अपने आप को धोखा देते हैं

अचेत पाप से शुध्द किया जाना आवश्यक है और मसीह यीशु का लहू हमें सब पापों से शुध्द करता है (1 यूहन्ना 1:7).सो हम अब बिना भय के असीमित पवित्र परमेश्वर के सम्मुख् हियाव से खडे हो सकते है .

हमे धर्मी ठहराने के लिए ऐसा है, मसीह का सामर्थी लहू हालेलुययाह!

दया तथा अनुग्रह

हमें कहा गया है कि हम ष्अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बांधकर चले कि हम पर दया हो और वह अनुग्रह पाये जो आवश्यकता के समय हमारी सहायता करे ष् (इब्रानियों 4:16).दया और अनुग्रह एक ही नहीं है . दया हमारे पापों की क्षमा की ओर इशारा करती है वह हमारे भूतकाल से संबंधित हैं परंतु हमें अनुग्रह की जरुरत है, हमारे आवश्यकता के समय के लिए, भविष्य के लिए .

हमारी आवश्यकता का समय वह है जब परीक्षा में पडते हैं, जब हम पतरस के समान ही गलील के समुद्र में डूबने पर या गिरने की स्थिति में होते है (मत्ती 14:30).इस समय जब हम अनुग्रह के लिए पुकारते है, ठीक जैसे यीशु ने पतरस को पकडने के लिए अपना हाथ बढाया था, हम भी अनुग्रह को प्राप्त करते है ताकि हम खडे ही रहें और गिर न पडें .

परमेश्वर के वचन में अद्भुत प्रतिज्ञायें है जो हमे प्रमाण देती है कि परमेश्वर हमे गिरने से बचाएगा . आइये इनमें से कुछ को देखे ...

सर्वप्रथम परमेश्वर हमें ऐसी किसी भी परीक्षा मे पडने की अनुमती नही देगा जो इतनी मजबूत हो कि हम उस पर जय न पा सके .

‘‘परमेश्वर सच्चा है और वह तुम्हें सामर्थ से बाहर परीक्षा में न पडने देगा वरन् परीक्षा के साथ निकास भी करेगा कि तुम सह सको‘‘ (1 कुरिन्थियों 10:13)

"परमेश्वर का वचन ऐसा कहता है कि ष्अब जो तुम्हें ठोकर खाने से बचा सकता है और अपनी महिमा की भरपूरी के सामने निर्दोष करके खडा कर सकता है ष् "(यहूदा 24)

ऐसी बहुतेरी अद्भुत प्रतिज्ञाएं परमेश्वर के वचन मे हमे दी गई है . इसलिए हमें अब और पाप करते रहने की आवश्यकता नही . अब हम अपना जीवन परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिये ही जी सकते है (जैसे 1 पतरस 4:2 में कहा गया हैं ).

प्रगतिशील पवित्रता

यीशु ने अपने प्रेरितों से कहा कि जो मैने तुम्हें सिखाया है, उन्हें दूसरों को मानना सिखाओ, जो आज्ञा उसने उन्हें दी है, (मत्ती 28:20) . जो प्रभु से प्रेम करता है, वह अपने संपूर्ण हृदय से प्रथम यह खोज निकालेगा कि उसकी वे आज्ञाएं क्या हैं, ष्और तब वह उसका पालन करने का यत्न करेगाष् (युहन्ना 14:21).व्यवस्थ के अंतर्गत परमेश्वर ने मनुष्य को आज्ञायें तो दी, परंतु उन्हें पालन करने की सामर्थ नहीं दी . क्यों परमेश्वर ने व्यवस्था दी यह केवल इसलिए कि मनुष्य यह खोजे कि वह परमेश्वर के स्तर तक पहुँचने में अयोग्य है और इसी रीति वह अपने लिये उध्दारकर्ता और एक सहायक की आवश्यकता केा देखे . ‘‘व्यवस्थ हमे मसीह तक पहुंचाने में शिक्षक हुई है‘‘ (गलतियों 3:24).

परंतु जब परमेश्वर ने मनुष्य के साथ एक नयी वाचा बान्धी है . और उसने हमे केवल आज्ञा ही नहीं दी है, परंतु प्रभु यीश्ु मसीह ने इस व्यक्ति के रुप में उदाहरण भी हेमे दिया है . यीशु ने अपने पृथ्वी के जीवन के द्वारा यह प्रदर्शित किया है कि परमेश्वर की सभी आज्ञाओं का पालन करना हमारे लिये संभव है . परमेश्वर ने नई वचा के अंतर्गत अपनी व्यवस्थ केा हमारे मनों में डालने की प्रतिज्ञा की है (इब्रिनियों8:10).इसे वह हमारे भीतर पवित्र आत्मा के निवास के द्वारा करता है . पवित्र आत्मा हमारा सहायक है जो हमे केवल परमेश्वर की इच्छा क्या है यह दिखाता ही नहीं है, परंतु उस इच्छा को पूरी करने की लालसा भी देता है और उन सभी को पालन करने का अनुग्रह भी देता है .

परमेश्वर ही है जो हमें पूर्ण पवित्र करता है ( 1 थिस्सलुनीकियों 5:23). हम अपने आपसे यह नहीं कर सकते . हमें उस पर निर्भर होना पडता है क्योंकि वही है जो अपनी सुइच्छा निमित्त हमारे मन में इच्छा और काम दोनों बातों के करने का प्रभाव डालता है कि उसकी इच्छा पूरी होवे .‘‘ हमें डरते और कापते हुये जपने उध्दार का कार्य पूरा करते जाना है ‘‘ (फिलिप्पियों 2:12,13). परमेश्वर जो भीतर करता है, उसे हमें बाहर कार्य रुप में करना है, क्योंकि उसने हमें यंत्र मानव में परिवर्तित नहीं किया है .

परमेश्वर हमे पाप के अपराध से शुध्द करता है . परंतु हमें आज्ञा दी गयी है कि ष्हम अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुध्द करें, और परमेश्वर का भय रखते हुये पवित्रता को सिध्द करें ष् (2 कुरिन्थियों 7:1). जब कभी भी हमारी भीतरी मलिनता पर प्रकाश पडे, तब हमें ऐसा ही करना चाहिए . ‘‘ यह ऐसा है जब कि आत्मा से देह की क्रियाओं को मारोगेष् (रोमियो 8:13), तब आत्मा का फल प्रेम, आनंद, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता और संयम अधिक से अधिक हमारे भीतर से प्रगट होंगे . यही मसीह की समानता में रुपांतरण का अर्थ है

ऐसे ही हमारा मार्ग बढता हुआ प्रकाश बन जायेगा (नीतिवचन 4:18). यह परमेश्वर का हमारे लिये पवित्रता के लिये बनाया गया महिमामय मार्ग है .

अध्याय 8
परमेश्वर का वचन और प्रार्थना

नये जन्मे हुये बच्चे को दो बातों की जन्म के समय आवश्यकता पडती है, एक तो भोजन है और दूसरा हवा है. ठीक ऐसे ही आत्मिक जन्म पाये हुओं के लिये भी हैं. परमेश्वर में नया पाये हुओं को भी भोजन तथा साँस की आवश्यकता है.

परमेश्वर का वचन उसका भोजन है तथा प्रार्थना उसकी परमावश्यक साँस होनी चाहिए .

परमेश्वर का वचन-हमारा आत्मिक भोजन

पहले एक बालक को दूध की आवश्यकता होती है, परंतु उसके पश्चात् उसे कडा भोजन चाहिए. बाईबिल में दूध तथा कडा भोजन दोनों ही पाया जाता हैं. दूध को यीशु की आरंभ की शिक्षा (इब्रानियों 6:1) कहा गया है, तथा कडे भोजन को धर्म का वचन (इब्रानियों 5:13) कहा गया है . जितनी जल्दी हम परमेश्वर के दिये गये किसी भी प्रकाश का आज्ञा पालन करते है, उतनी ही तेजी से हम कडे भोजन की ओर बढते है .

हमारी आत्मिक उन्नति विश्वास तथा आज्ञा पालन पर निर्भर है .

परमेश्वर ने हमें उस पर भरोसा रखने के लिये उसके वचन में प्रतिज्ञाएं दी हैं. साथ ही उसने हमें पालन करने के लिये आज्ञायें भी दी है .यदि हम निरंतर परमेश्वर के वचन का ध्यान करते रहे और उस पर भरोसा करते रहे तथा उसका आज्ञा पालन करते रहे, तो हम यह पायेंगे कि हमारी जडे परमेश्वर में गहरी है, जैसे एक सदा हरा-भरा पेड होता है जो कभी सूखता नहीं. तब परमेश्वर हमें ऐसी आशीष देने में समर्थ ठहरेगा कि हम जो भी करे, उसमें हमारी उन्नति होगी (भजन संहिता1:2,3)

हम अपने बौध्दिक अध्ययन से परमेश्वर के वचन को समझ नहीं सकते . हमे पवित्र आत्मा के प्रकाशन की आवश्यकता है . यीशु ने कहा, आत्मिक सच्चाईयों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपाकर रखा गया, तथा बालकों पर प्रगट किया है (मत्ती 11:25)

बालकों के पास क्या है, जो ज्ञानियों और समझदार लोगों के पास नहीं है ?

एक पवित्र हृदय!

परमेश्वर सिर को नहीं परंतु हृदय को देखता है वह उन्हें प्रकाशन देता है जो नम्र है तथा उसके वचन के आगे कापते हैं (यशायाह 66:2)

यीशु ने कहा कि परमेश्वर के वचन को वे ही समझेंगे जो परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने को तैयार हैं (यूहन्ना 7:17)

परमेश्वर का वचन - आत्मा की तलवार

परमेश्वर का वचन एक हथियार है, जो शैतान के विरुध्द युध्द में हम उपयोग में लाते हैं .

उसे आत्मा की तलवार कहा गया है (इफिसियों 6:17)

यीशु ने स्वयं जंगल में अपनी पिछली तीन परिक्षाओं में इस हथियार का बडे प्रभाव के साथ उपयोग किया . उसने सदा शैतान की परीक्षाओं का सामना ष्यह लिखा है -----ष् (मत्ती 4:4, 7, 10) इन शब्दों के साथ किया

और जैसे वह जयवंत हुआ, वैसे ही हम भी जयवंत हो सकते है

शैतान दोष लगानेवाला है, हमें उसके दोष लगाने तथा पवित्र आत्मा के द्वारा दोष सिध्दी के बीच अंतर करना चाहिए. शैतान सदैव उसके दोषों के द्वारा हमें परेशान तथा दण्डित महसूस कराने की खोज करता रहता हैं . दूसरी ओर पवित्र आत्मा का दोष सिध्दी करना हमारे लिये सभ्य तथा आशा से भरपूर होता हैं.

हम दोष लगानेवाले पर केवल मेम्ने के लहू और अपनी ग्वाही के वचन के कारण् जयवंत हो सकते है (प्रकाशितवाक्य 12:11) वह जो हम पर हमारे पिछले पापों को दोषारोपन करता है, उसे हम अपनी गवाही के वचन कहकर कि यीशु के लहू से हम शुध्द हो गये है तथा संपूर्ण रीति से धर्मी ठहराये गये है, जयवंत हो सकते हैं . हमे उसी हथियार का उपयोग करना है जो यीशु ने कियाः ष्यह लिखा है -----ष्

परमेश्वर के वचन का शैतान के विरोध में अंगीकार करना केवल शैतान के द्वारा लगाये गये दोषों पर जय पाना ही नहीं है, परंतु निराशाओं तथा उदासी और परीक्षाओं की सेना पर भी जिनके द्वारा वह हमारे मन पर आक्रमण करता है, जयवंत होना है ष् इसलिए परमेश्वर के वचन को अच्छे से जान लेना महत्वपूर्ण है, ताकि पवित्र आत्मा है कि प्रतिदिन परमेश्वर के वचन का ध्यान करते समय हम कहें, हे परमेश्वर हमसे बातें कर, जब कि हम परमेश्वर के वचन को अपने हृदय में छिपा रखेंगे तो वह हमें उसके विरुध्द पाप करने से बचाये रखेगा (भजन संहिता 116:11)

हमारे जीवन के लिये परमेश्वर की योजना

परमेश्वर के पास हमारे जीवन के लिये सिध्द योजना हैं . उसको पूरा करने में वह हमारी अगुवाई करना चाहता हैं . इस पृथ्वी पर हमारा जीवन अति धन्य होगा, यदि हम उस योजना को संपूर्ण रीति पूरी कर सके . अपनी दिनचर्या या विवाह के विषय कितना अद्भुत होगा, कि हम यह जानें कि परमेश्वर ने पहले ही सही व्यक्ति को हमारे लिये चुनकर ठहरा दिया हैं .यदि हम उसके मार्ग को चुन लेते हैं तो शैतान ने हमारे लिये जो गड्डे खोद रखे हैं उसमें हम गिरने से बच जायेंगे .अपने वचन के द्वारा ही प्रथम परमेश्वर अपनी योजना में हमारी अगुवाई करता है

परमेश्वर की इच्छा को खोज निकालना यह एक परिश्रम का काम है जो मैने अपनी पुस्तक जिसका नाम है परमेश्वर की इच्छा को जानना में पूर्ण स्पष्टीकरण् के साथ लिखा है.

मेरी एक दूसरी पुस्तक जिसका नाम है यौन, प्रेम और विवाह - मसीही पहुंच इसमें आत्मिक मार्ग से विवाह तक पहुंचना, इस विषय को स्पष्ट वर्णित किया गया है.

प्रार्थना - परमेश्वर से बातें करना

परमेश्वर से वार्तालाप करना यह दोहरी बात है . पहले हम परमेश्वर को उसके वचन के द्वारा बात करते हुए सुनते है और तब उससे बात करते है .परंतु प्रार्थना परमेश्वर से केवल बिनती करना ही नहीं है, परंतु प्रार्थना का प्रथम चरण मानो दुल्हा, दुल्हन के संबंध् के समान परमेश्वर से संगति का रखना हैं .

दुल्हन अपने दुल्हे से कैसी बात करे इसके कोई नियम नहीं हैं .

परंतु अनुशासन के कारण अच्छा होगा कि हमारी प्रार्थनाओं में:

  1. हमारे पिता परमेश्वर की स्तुति
  2. पाप, तथा असफलता का अंगीकार
  3. परमेश्वर के राज्य के विषय विनतियां
  4. स्वयं के विषय आवश्यकता की बिनतियाँ
  5. दूसरों की आवश्यकता के लिए निवेदन
  6. परमेश्वर नेजो किया उसके लिये धन्यवाद
  7. और परमेश्वर जो करेगा उसके लिये धन्यवाद पाया जाए

यीशु ने हमे नित्य प्रार्थना करने को कहा है (लूका 18:1).हमारे प्रतिदिन के जीवन की छोटी बातों को परमेश्वर को बताना अच्छी आदत डालना है और ऐसा ही दिन भर परमेश्वर की आत्मा में बने रहना . इस प्रकार परमेश्वर से बातें करना कोई विधी नहीं, परंतु हमारे लिये आनंद ठहर ेगा . और हम भी यह पायेंगे, कि परमेश्वर अद्भुत तरीकों से हमारे हृदयों से बातें करेगा . परंतु प्रार्थना के पाठशाला में मानो यह बालक मंदिर की शिक्षायें हैं . यदि हम विश्वासयोग्य हैं, तो आगे प्रगती कर सकते हैं .

किसी भी दशा में हम प्रार्थना को सूखी खाली विधी में परिवर्तित होने की अनुमती न दें . प्रार्थना हमारी सांस के समान है . जब सांस लेना हमें कठिन होता है, तो हम समझ जाते है कि कुछ समस्या है . परमेश्वर ने प्रार्थना को सूखी तथा सुनी नहीं ठहराया हैं . परंतु जैसे ही हम प्रगती करते है तो प्रार्थना हमे एक कठिन कार्य लगने लगता हैं . यदि हम प्रार्थना के लिये परमेश्वर जो हमारे हृदय पर थोडा बोझ रखता है, उसमें विश्वासयोग्य पाये जाते है, तो हम यह पायेंगे कि परमेश्वर अपने और अधिक बोझ को हमें देता जा रहा है, इस रीति हम दूसरों के लिये आशीष बनने के कार्य में परमेश्वर के साथ उसके सहकर्मी बन जाते हैं .

यीशु ने ऊंचे शब्दों से तथ आंसुओ के साथ प्रार्थना की (इब्रानियों 5:7). एक समय जब उसने गतसमनी में प्रार्थना की, तो उसका पसीना खून की बूंदो के समान बन गया (लूका 22:44). उसकी प्रार्थना इतनी सामर्थपूर्ण थी.

एक समय उसने पूर्ण रात प्रार्थना में बिताई (लूका 6:12).बार-बार प्रार्थना के लिये जंगल में चले जाना उसकी आदत थी (लूका 5:16) .जैसे किसी ने कहा है कि जैसे पर्यटक नये जगहों पर पहुंचकर दृष्यों को देखने की लालसा करते है, वैसे ही यीशु भी जहां जाते थे, वहां शांत प्रार्थना के स्थान को सदा ढूंढते थे .

प्रार्थना कैसी महत्वपूर्ण है यह यीशु का उदाहरण् हमे दिखाता है . यदि उसे इतनी प्रार्थना की आवश्यकता पडी, तो हमें कितनी अधिक आवश्यकता है .

तब सुस्ती के विरुध्द लडाई लडें, और किसी भी कीमत पर प्रार्थना के स्त्री-पुरुष बनने का संकल्प करें .

अध्याय 9
संगति और कलीसिया

हम पहले ही देख चुके है कि परमेश्वर हमे मसीह की समानता में रुपांतरण करना चाहता है, परन्तु यह रुपांतरण यीशु के दूसरे चेलों से अलग रहते हुए नहीं हो सकता केवल उनके साथ ही हमारा रुपांतरण होता है .

परमेश्वर चाहता है कि हम केवल उस पर निर्भर जीवन ही न जीएं, परंतु साथ ही साथ एक दूसरे की संगति में भी जीएं. पुराने नियम के समयों में परमेश्वर ने व्यक्तिगत अर्थात मूसा या एलिया या यूहन्ना बाप्तिस्मा देनेवाला इत्यादि के द्वारा काम किया .

परन्तु नये नियम के अंतर्गत परमेश्वर चेलों की देह को, जो मसीह की प्रधानता में एक हो गई है, चाहता है . यही कलीसिया अर्थात् मसीह की देह है (इफिसियों 1:22,23 2:14-16)

कलीसिया- मसीह की देह

चर्च यह एक इमारत नही है, न ही यह एक फिरका है नये नियम मे युनानी भाषा के इकलिसिया शब्द का अंग्रेजी भाषा के चर्च इस शब्द में अनुवाद किया गया है . जिसका अर्थ है बुलाये हुये लोगों की मंडली . यहा ये संसार में से परमेश्वर की संपत्ती बनने के लिये बुलाये हुये लोग हैं .

समस्त संसार में जो परमेश्वर की बुलाहट के उत्तर में, पाप तथा संसार से अलग हुये है, वे कलीसिया बनते है, अर्थात् मसीह की देह . हर एक मोहल्ले में इन मसीह की देह के सदस्यों को एक साथ उस देह का स्थानीय प्रकटीकरण बनना चाहिये .

पहली मसीह की देह वह शारीरिक देह थी, जिसमें होकर यीशु इस पृथ्वी पर आया . उस देह में परमेश्वर ने अपने आप को संसार को दिखाया . यीशु पिता पर इतनी सिध्द रीति से समर्पित रहा, कि अपने जीवन के अंत में वह यह कह सका कि जिसने मुझे देखा है, उसने पिता को देखा है (युहन्ना 14:6)

अब हमारी बुलाहट यह है कि हम हमारे आसपास के संसार को एक साथ यीशु को प्रगट कोई भी यीशु को पर्याप्त या अपने ही द्वारा केवल प्रस्तुत नहीं कर सकता . हमें एक दूसरे की आवश्यकता है . हम में से उत्तम भी असंतुलित है . हमारे अपने मजबूत गुण है, परन्तु साथ ही अपने कमजोर गुण भी है . हम एक क्षेत्र में हम बहुत कमजोर पडते है . परंतु संगति में होकर हम यह पाते है कि एक के मजबूत गुण दूसरे के कमजोर गुणों को समानांतर करते है . और यदि हम एक दूसरे के साथ प्रेम और अधीनता में रहते है, तो अविश्वासी संसार पर मसीह हमारे द्वारा संपूर्ण रीति से प्रतिबिंबित किया जा सकता है . यही कलीसिया के लिये परमेश्वर का उद्देश्य है .

स्थानीय कलीसिया का भाग बन जाना

जब आपका उध्दार हो जाता है, तो आपको यह ढूंढने की आवश्यकता है कि आप ऐसे चेलों की संगति में जो परमेश्वर के वचन का आज्ञापालन करने के तथा यीशु के पद चिन्हों पर चलने की उत्सुक है, उनके साथ जुड जायें .

यहीं पर एक नया उध्दार पाया हुआ विश्वासी, मसीहत के बहुतेरे दल तथा फिरको ं को देखकर भौचक्का रह जाता है . सिध्दांतों की शिक्षा को लेकर एक सिरे से दूसरे सिरे तक दुर्भाग्यवश बहुतेरे ऐसे दल हैं जो पृथ्वी पर मसीह के एक मात्र सच्चे प्रतिनिधि होने का दावा करते है .

इनमें से बहुतेरे दल अपने बाईबल से दावा करके आपको प्रमाणित करेंगे कि जब तक आप उनसे न जुड जाये, आप मसीह के देह के भाग नहीं बन सकते . उन मे ंसे बहुतेरो को कायल करना असंभव होगा कि परमेश्वर के पास बहुतेरे संतान है, जो उनके दल मे नहीं है, तथा जो उनकी विशेष प्रकार की शिक्षा को नहीं मानते है . ऐसी है अंध विश्वास की सामर्थ . आपको फरीसीवाद तथा झूठी शिक्षा के जाल में फसने से सावधान रहना चाहिये जो आज मसीहत में महामारी फैला रहे हैं .

अपने हृदय को उनके लिये जो प्रभु से प्रेम करते है तथा जो ईमानदारी से उसके पीछे चलते है, खुला रखे . आप ही की तरह वे अपनी शिक्षा से न रुकते है या न ही उसके पार जाते है. परंतु यदि वे परमेश्वर की दी हुई ज्योति के प्रकाश में चल रहे है, तो यह गंभीर बात नहीं है . हम यह मांग नहीं कर सकते कि परमेश्वर ने जो ज्योति हमें दी है, वे भी उसी में चले .

परमेश्वर की सभी संतानों को ग्रहण करना

जितने परमेश्वर के संतान है, वे सब हमारे भाई तथा बहन है .

जिन्हें परमेश्वर ने ग्रहण किया है उन्हें हमे भी संपूर्ण हृदय से ग्रहण करना चाहिये (रोमियो 14:1,15:7).यदि यीशु किसी को अपना भाई कहने से नहीं लजाता, तो हमे भी नहीं लजाना चाहिये (इब्रानियों 2:11).

संगति के विषय विश्वासियों को जाने के लिये दो धाराये है . पहली, संगति को बनाये रखने के लिये सत्य से समझौता करना . दूसरा है, संगति से पहले सभी बातों में समानता की मांग करना . यदि आप बुध्दिमान हैं, तो आप इन दोनो धाराओं को परखने के पश्चात् ही संगति करेंगे .

यह स्पष्ट है कि हम उन लोगों के साथ काम नहीं कर सकते, जो इस बात से सहमत नहीं है कि परमेश्वर का काम कैसे किया जाये . परन्तु हमें यह मांग नहीं करनी चाहिये कि जो विश्वास हम करते है वे भी वही करें, इससे पहले कि हम उससे संगति रखे . किसी की संगति में काम करना तथा किसी से संगति रखना इस बात में अंतर है

चाहे जो हो, आप अपने मोहल्ले में ऐसा चर्च देख्ं जो आपके लिये आत्मिक घर ठहरे और जिसके लिये आप समर्पित रहें .

नये नियम का कलीसिया

आपके क्षेत्र में बहुतेरी कलीसियाओं के बीच में आप ऐसी कलीसिया में सहभागी हो जाएं जो नये नियम के बिल्कुल अनुरुप है, जिसके विषय आप अब तक समझ चुके हैं . जैसे-जैसे समय बीतता जाता है और आप नये नियम को और अधिक समझने लगते है, तो शायद आपको ऐसा लगने लगे कि आपको यह कलीसिया छोडकर दूसरी कलीसिया में जुड जाना चाहिए, जो परमेश्वर के वचन की अधिक अनुसार हैं .

यह उसके लिये स्वाभाविक है जो आत्मिक उन्नति कर रहा है और वह अपने जीवन के लिये परमेश्वर से सर्वोच्च और उत्तम पाने के लिये संकल्प के साथ आगे बढ रहा है. अपने लिये परमेश्वर के उत्तम से कुछ कम की कामना न करें, और तब आपको अनंतकाल में कोई दुख नहीं होगा .

नये नियम की कलीसिया पर किसी भी फिरके की छाप नहीं होगी . यह यीशु मसीह के नाम में पवित्र आत्मा द्वारा एकत्रित की गई लोगों की संगति होगी .प्रभु ने ऐसी ही संगति में उपस्थित रहने की प्रतिज्ञा की है (मत्ती :18:20)

जिस कलीसिया के आप भाग बनते है, वह ऐसी होनी चाहिये जो बाईबल को परमेश्वर का वचन मानती है तथा जीवन और विश्वास की एक मात्र नींव मानती है .अकसर पाया जाता है कि कई झूठी शिक्षा देने वाले दल जो केवल बायबल को ही अपने अधिकार का श्रोत मानते है, वे उसी अधिकार की समानता में उनके अगुवों के लेखनों को भी प्रस्तुत करते है . जितना आप उनके पास जाते है, यह पाते है कि परमेश्वर के वचन से अधिक वे अपने अगुवों की शिक्षा से बंधे हुए है . हो सकता है, उनमें बहुत सी अच्छी बाते भी हो, परंतु यदि आप उनसे जुड जाते है, तो जल्द ही आप यह जान जायेंगे कि उनका झूठा व्यवहार आपको दास बना देगा .

परमेश्वर की कलीसिया में समस्त विश्वासी परमेश्वर के समानांतर याजक है, क्योंकि परमेश्वर ने हम सभी को याजक बनाया है (1 पतरस :2:6). कलीसिया जिसमें परमेश्वर के वचन की सेवा के लिये विशेष दर्जे के याजक या पास्टर्स ही योग्य मान ेजाते है, यह बात परमेश्वर की इच्छा के विरुध्द है .

परमेश्वर ने प्राचीनों के हाथो कलीसिया की अगुवाई नियुक्त की है (सदा एक से अधिक) . परंतु यह आवश्यक नहीं है कि ये पूरे समय के लिये काम करनेवाले प्राचीन ही हों (प्रेरितों के काम 14:23, तीतुस 1:5).

नये नियम की कलीसिया की सभाओं में परमेश्वर के वचन के प्रचार पर अधिक जोर डाला जाता है . सभी विश्वासियों को ऐसी कलीसिया में अपनी परिपक्वता तथा अपने आत्मिक वरदान के अनुसार परमेश्वर का वचन बांटने की स्वतंत्रता होती है .

यदि सुनाया गया वचन पवित्र आत्मा से सचमुच प्रेरित हो, तो आप पाएंगे कि वह शंाति और चुनौती तथा बनाने का काम करता है और मनुष्य के हृदय के भेदों को प्रकट करता है और सुनने वालेा को यह मानने पर बाध्य करता है कि परमेश्वर बोल रहा है (1 कुरिन्थियो 14:3, 24-31)

एक सच्ची नये नियम की कलिसिया की मुख्य प्यास चेले बनाने की होगी और उन्हें यीशु की आज्ञाओं का संपूर्ण पालन करना सिखनेवाली होगी (मत्ती 28:16,20). ऐसी कलीसिया के सदस्यों के बीच उनका आपसी प्रेम उन्हें अन्य कलिसियाओं की तुलना में अलग करेगा . जैसे यीशु ने यूहन्ना 13:35 में कहा है यदि तुम एक दूसरे से प्रेम रखोगे, तो इससे सभी लोग जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो .

ऐसी कलिसिया जहाँ परमेश्वर का वचन सामर्थ के साथ बोला जाता है, तथा जहाँ परमेश्वर का प्रेम राज्य करता है तथा जहां परमेश्वर की उपस्थिति अनुभव की जाती है, वही आपके क्षेत्र की वह कलीसिया (चर्च) है जिसका आपको सदस्य बनना चाहिये .

संगति का महत्व

यदि हम अपनी संगति को बनाये रखना चाहते है तब जब हम दूसरों के साथ प्रेम से एक साथ रहने का यत्न करेंगे, तभी हम अपने आप का इन्कार करना तथा अपना क्रूस उठाकर प्रतिदिन चलने की आवश्यकता को समझ पाएंगे .

शैतान सदा परमेश्वर के संतानों के मार्ग में रोडे रखने में व्यस्त रहता है . यदि हम परिपक्व है, तो हम उन पत्थरों को हमारे तथा दूसरों के मध्य गाडे जाने से रोकने में सदा चौकस रहेंगे . यदि मसीह के देह की संगति टूट जाये तो यह परमेश्वर तथा हमारे दोनों का भारी नुकसान है .

कलीसिया की एकता में महान सामर्थ है . केवल संयुक्त कलीसिया के द्वारा ही हम शैतान पर जयवंत हो सकते है . यीशु ने कहा, जो कुछ तुम पृथ्वी पर बांधोगे वह स्वर्ग में बंधेगा, और जो कुछ तुम पृथ्वी पर खोलोगे वह स्वर्ग में खुलेगा . यदि तुम में से दो जन पृथ्वी पर किसी बात के लिए, जिसे वे माँगे एक मन के हों तो वह मेरे पिता की ओर से जो स्वर्ग में है, उनके लिए हो जायेगी . क्योंकि जहां दो या तीन मेरे नाम पर इकठ्ठे होते है, वहाँ मैं उनके बीच में हूँ (मत्ती 18:18-20).

इसलिए शैतान विश्वासियों मे विभाजन लाता है, और इसलिये वह कलीसिया में गुटां और दलों को तैयार करता है . संयुक्त कलीसिया के हमले से वह अपने राज्य को सुरक्षित रखना चाहता है . हमें शैतान की योजना के प्रति चौकस रहना चाहिए .

उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिये . यीशु मसीह की देह में कितना सीमाएं होती, यदि उसके अंग एक साथ काम करने में असमर्थ होते . जैसे उसने संसार में परमेश्वर की महिमा प्रगट की, वैसा वह नहीं कर सका होता . कलीसिया अर्थात् आत्मिक देह का सिर होने के नाते, मसीह आज विश्वासियों के विभाजनों के कारण सीमाओं का सामना कर रहा हैं .

हम भी हार जाते है . यदि आप परमेश्वर की एक भी संतान से अपना संबंध तोडते है, तो परमेश्वर के उस संतान के द्वारा जो आशीष आपको प्राप्त होने वाली थी, उससे आप वंचित रह जाते है . हम परमेश्वर के प्रेम को केवल परमेश्वर के सभी संतो के साथ जान सकते हैं (इफिसियों 3:17-18)

(मसीही संगति के महत्व के गहन अध्ययन के लिए आप मेरी लिखी हुई पुस्तक

मसीह मे एक देह
यह पुस्तक पढ सकते है ).

अध्याय 10
इस युग का अंत

पुराने नियम के समयों में, मृत्यु के पश्चात् जीवन तथा भविष्य के लिए परमेश्वर की योजना, आदि बातों की स्पष्ट समझ नहीं थी. परंतु यीशु ने ये दोनों बातें स्पष्ट रुप से सिखाई हैं. हमें इन बातों के विषय जानना भी अच्छा है.

मृत्यु के बाद क्या ?

यीशु के चेले को मृत्यु का कोई भय नहीं हैं, क्योंकि यीशु ने मृत्यु पर जय पा ली है. मृत्यु एक हारा हुआ बैरी है. यीशु ने मृत्यु के द्वारा शैतान को सामर्थहीन कर दिया, ताकि हमें मृत्यु के भय की कोई आवश्यकता न रहे (इब्रानियों 2:14-15). मृत्यु की कुंजियाँ अभी यीशु के हाथों में हैं.(प्रकाशितवाक्य 1:18).अब केवल वही उसके किसी भी चेलों के लिए मृत्यु का द्वार खोल सकता है .शैतान उन्हें छू नहीं सकता.

जब एक मनुष्य मरता है, तो क्या होता है ? यीशु ने धनी तथा लाजरस के विषय बोलते हुए इस प्रश्न का स्पष्ट उत्तर दिया है. इसके पहले कि हम आगे बढे, अभी लूका 16:16-31पढें

यह एक दृष्टांत नहीं है क्योंकि जैसे यीशु ने यहां मनुष्य के नाम का प्रयोग किया, वैसा उसने किसी दृष्टांत में नहीं किया है. धनी मनुष्य और लाजर दोनों वास्तविक व्यक्ति थे.

यीशु ने यह स्पष्ट किया है कि केवल दो ही स्थान है जहाँ मृतक जाते है. एक है स्वर्ग (इसे अब्राहम की गोद या स्वर्ग भी कहा गया है). एक शंति का स्थान, दूसरा है नरक, एक पीडा तथा सताव का स्थान . जैसे ही एक व्यक्ति मरता है, तो उसका प्राण तुरंत इन दो स्थानों में से एक में जाता है, उसके शरीर के पृथ्वी में गाडे जाने से पहले ही. यद्यपि उसके पास शरीर नहीं होता, फिर भी वह अपने आसपास की शांति या तो पीडा के विषय सचेत रहता है.

मनुष्य त्रिएक प्राणी है जिसमें आत्मा, प्राण् और देह है (1 थिस्सलुनीकियों 5:23). मृत्यु के समय प्राण और आत्मा शरीर से अलग हो जाते है और या तो स्वर्ग या तो नरक जाते है .

जब यीशु क्रुस पर थे, तो उन्होने मन फिरानेवाले चोर से कहा कि वह उसी दिन उसके साथ स्वर्गलोक में होगा. यीशु तथा वह चोर जैसे ही उनके प्राण शरीर से निकल गये, एक साथ स्वर्गलोक चले गये. यीशु ने कहा था कि उसकी मृत्यु के पश्चात् वह तीन दिन व तीन रात धरती के हृदय मे रहेगा (मत्ती 12:40). इससे हमें यह ज्ञात होता है कि, उस समय स्वर्गलोक पृथ्वी के भीतर (हृदय) ही रहा होगा. परंतु जब यीशु पृथ्वी के निचले भागों से पुनरुत्थित हुआ और उँचे पर चढा और वह बंधुवों को बॉध ले गया, (इफिसियों 4:8‘6) ता ेवह अपने साथ स्वर्गलोक और उसके सब प्राणें को ऊपर तीसरे स्वर्ग में ले गया

2 कुरिन्थियों 12 में जब हम उसके 2 और 4 पदों की तुलना करते है, तो यह पाते है कि स्वर्गलोक अब तीसरे स्वर्ग में पाया जाता है . यह वही स्थान है जहाँ यीशु का चेला मरने के तुरंत पश्चात् जाता है(फिलिप्पियो 1:23).

यीशु के आगमन के चिन्ह

बाईबल हमे बताती है कि यीशु के पृथ्वी पर वापस आने से पहले तुरंत कई घटनाये होंगी. यहा उनमें से कुछ लिखी जा रही है .

  1. लडाईयां और अकाल और भूकंप (मत्ती 24:7). यह तो पृथ्वी पर हमेशा होता ही आ रहा है. परंतु दूसरे महायुध्द के बाद से इनकी संख्या में महान बढत हुई है (1636-1645)
  2. ज्ञान का अचानक बढ जाना और अंतर्राष्टीय यात्रा में भारी बढत का होना (दानियल 12:4). पिछले पचास वर्षो से इन दोनों बातों में महान पैमाने पर बढत देखी जा रही है जो पहले नहीं थी.
  3. मनुष्य सुख विलास के चाहनेवाले होंगे (2 तीमुथियुस 3:4). अनैतिकता हमारे समयों की विशेष बुरी चारित्रिक विशेषता है. अश्लील चलचित्र और वीडिओ टेप्स शैतान के अनैतिकता के उद्देश्यों को आगे बढाने की सेवा कर रहे हैं.
  4. मनुष्य कठोर, भले के बैरी और माता पिता की आज्ञा न माननेवाले होंगे (2 तीमुथियुस 2:2-4).आज हम हमारे चारों तरफ विद्रोह करनेवाली आत्म को देखते है, जैसे घरों में,स्कूलों में, कॉलेज में, और कारखानों में इत्यादि
  5. विश्वासी अपने विश्वास से गिर जायेंगे (1 तीमुथियुस 4:1). यह भी हम अपने दिनों में बहुतेरी झूठी शिक्षाओं के फैलने के साथ देख रहे है, बहुतेरे विश्वासी इन शिक्षाओं के शिकार होकर गिर रहे हैं .
  6. इस्त्राएल के राष्ट्र का दोबारा जन्म (अंजीर को पेड जो इस्त्राएल का रुपक है, उस पर पुनः पत्तियों का लगते जाना लुका 21:26-32). सन 70 से यहूदी संसार में तितर-बितर हो गये. इसके पश्चात् से यह अंजीर का पेड लगभग 16 शताब्दी तक सूखता चला गया. परंतु मई 1949 से इस्त्राएल के राष्ट्र का दोबारा जन्म हुआ. यीशु ने कहा कि जो यहूदी राष्ट्र नहीं है, उनके द्वारा यरुशलेम, जब तक उसका समय पूरा न हो, ले लिया जायेगा (लूका 21:24).1967 में इस्त्राएल ने यरुशलेम शहर पर कब्जा कर लिया. 20 शताब्दियों में पहली बार ऐसा हुआ .

आज जगत मेंजो हो रहा है, उसे देखना बडे उत्साह की बात है .सभी चिन्ह यीशु के बहुत जल्दी आने की ओर इशारा कर रहे है .

पहिला पुनरुत्थान और मसीह का न्याय सिंहासन

जब मसीह आएगा, तब जितने उसके है वे पलक मारते ही बदल जायेंगे . हम नये शरीरों को ग्रहण करेंगे जो कभी बुढे नहीं होंगे और न ही मरेंगे (1 कुरिन्थियो 15:51-53) . हमारा नया शरीर ठीक वैसा ही शरीर होगा, जो यीशु का पुनरुत्थान के बाद स्वयं था (फिलिप्पियों 3:20-21). जो मसीह में मरे है, वे भी अपनी कब्रों से जी उठेंगे अपेन नये शरीरों मे और उस समय के यीशु के जीवित चेलों के साथ हवा में उठाये जायेंगे कि प्रभु से मिलें (1 थिस्सलुनीकियो 4:13-17)

तब मसीह अपना न्याय का सिंहासन लगायेगा, तथा हमारा न्याय होगा और हमें हमारे पृथ्वी के विश्वासयोग्य जीवन के लिये व्यक्तिगत रुप से प्रतिफल मिलेगा .

बाईबल बताती है कि, उस दिन जो विश्वासयोग्य होंगे, उन्हें मुकुट दिया जाएगा. इन प्रतिफलों के विषय हम 2 कुरिन्थियों 5:10, 1 कुरिन्थियो 3:11-15 और 4:5, 2 तीमुथियुस 4:8 और 1 पतरस 5:4 इन पदों में अधिक स्पष्टीकरण् पाते है, कि ये उस समय उसके चेलों को प्रभु के द्वारा दिये जायेंगे .

उस दिन हम देखेंगे कि बहुतेरे जो पहिले है, वे पिछले होंगे तथा जो पिछले है वे पहिले होंगे (मत्ती 19:30).जो हमें पृथ्वी पर बहुत आत्मिक दिखाई दिए, वे हमें परमेश्वर की दृष्टी में उतने विश्वासयोग्य नहीं दिखाई देंगे. दूसरे, जिनके विषय हमने उतना उच्च नहीं सेाचा होगा, वे हमे वहां परमेश्वर की आंखें मे उच्च विश्वास के योग्य दिखाई देंगे. उस दिन अनजान परंतु विश्वासयोग्य विधवा, जग प्रसिध्द परंतु अविश्वसनीय प्रचारक से अधिक सम्मान प्राप्त करेंगे.

उस दिन हम यह जान पायेंगे कि बहुतेरी वस्तुएं , जैसे पैसा और प्रसिध्दी जिन्हें मनुष्य पृथ्वी पर मूल्यवान मानता है, वे परमेश्वर के सम्मुख मूल्यहीन ठहरेगी, और बहुतेरे नैतिक गुण जिसकी मनुष्य ेने कीमत नहीं कि जैसे पवित्रता, नम्रता, विश्वास, दया, और भलाई इनकी परमेश्वर के द्वारा भारी कीमत की जायेगी. तब बाईबल जैसा बताती है, वैसे ही परमेश्वर के मेम्ने उसकी दुल्हन के साथ विवाह होगा जो विश्वास योग्यता के साथ अपने आप का इंकार करके और प्रति दिन क्रूस उठाकर पृथ्वी पर उसके पीछे उसके चेले बनकर चलते रहे हैं (प्रकाशितवाक्य 16:8-10).उस दिन हम यह पायेंगे कि हमारा प्रभु और उसके सुसमाचार के लिये दुःख उठाना, गलत समझा जाना, लज्जित होना, सताया जाना और यहां तक कि मारा जाना भी सब कुछ योग्य था .

एक हजार साल

एक हजार वर्ष का शाति का राज्य स्थापित होगा, जब अदन की वाटिका की दशा पृथ्वी पर फैल जायेगी, जैसे कि शेर मेम्ने के साथ शांति से लेटेगा, तथा बालक करेत के साथ खेलेगा, इत्यादि . (यशायाह 11:6-6).तब यीशु राजा होकर यरुशलेम से लेकर समस्त पृथ्वी पर राज्य करेगा (जकर्याह 14:6-21).शैतान इन वर्षों के लिये बांधा जायेगा ताकि पृथ्वी पर आज की तरह उसकी पहुंच न हो सके . इन 1000 वर्षो के अंत में, कुछ समय के लिये शैतान को छोडा जायेगा ताकि उध्दार रहित निवासियों को जो पृथ्वी पर होंगे, उन्हें पुनः परखे. पुनः एक बडी भीड शैतान के पीछे हो लेगी. यह स्वर्गदूतों तथा मनुष्यों को परमेश्वर का प्रदर्शन होगा कि एक हजार वर्ष के शंाति के राज्य को देखने के पश्चात् भी ये लोग मसीह को अपने ऊपर राज्य करने नहीं देना चाहते. ऐसा है मनुष्य का अंधापन, हठीलापन और दृष्टता. परंतु परमेश्वर उस बलवा करनेवाली भीड पर अपने न्याय के साथ आयेगा, और शैतान आग की झील में डाला जायेगा (जो नर्क का एक विशाल स्वरुप है- प्रकाश्तिवाक्य 20:7-10)

जिनका नाम जीवन की पुस्तक में लिख हुआ नह ीं मिला, वे आग झील की में डाले जाएंगे, कि शैतान के साथ मिल जाएं, जिसकी सेवा उन्होने पृथ्वी पर की (प्रकाश्तिवाक्य 20:15)है .

समय का अंत

तब समय समाप्त हो जाएगा और अनंतकाल आरंभ हो जाएगा. छुडाए हुए स्त्री और पुरुष नए आकाश और नयी पृथ्वी में प्रवेश करेंगे और मसीह की दुल्हन अपनी संपूर्ण महिमा में चमकेगी (जैसे प्रकाशितवाक्य 21 मे बताया गया है) .

शैतान और समस्त अविश्वासी उस सिध्द स्वर्ग तथा पृथ्वी से हटा दिए गये होंगे. उस महिमामय नये संसार में पाप अपने कुरुप सिर को कभी ऊंचा नही उठाएगा और वहाँ हमारे शरीर में कोई अभिलाषाएं नहीं होगी. जिन्होंने परमेश्वर की इच्छा को समस्त अनंत काल के लिए आनंद से चुन लिया है ऐसे लोगों से स्वर्ग भरा हुआ होगा .

जयवंत होने के लिए पुकार

पतरस ने कहा, जब कि यह सब चीजें (विद्यमान स्वर्ग और पृथ्वी) नाश होने वाली है, तो तुम्हे पवित्र चालचलन और भक्ति में कैसे मनुष्य होना चाहिए (2 पतरस 3:11-12).

इन अंतिम दिनेां मे आत्मा के संदेश को एक शब्द में रख जा सकता है, जो है जय पाएं देखे (प्रकाशितवाक्य 2:7, 11, 17,26,3:5, 12, 21,21:7)

हमने इस पुस्तक का आरंभ इस खोए हुए तत्व पर जोर देते हुऐ किया है जो आज अविश्वासियों को प्रचार करते समय उपयोग में नहीं लाया जाता है, वह है मनफिराव.

हम इस पुस्तक का समापन उस खोए हुए तत्व पर जोर देकर कर रहे है जो आज के विश्वासियों को प्रचार करते समय प्रयोग में नहीं लाया जाता. वह है जय पायें.

जब से मनुष्य पाप में गिरा है, तब से परमेश्वरकी पुकार उसके लिए यह रही है कि वह जय पाये. परमेश्वर ने कैन से कहा, पाप तेरे द्वारा (हृदय) पर खडा है और तू उस पर प्रभुता करेगा (उत्पत्ति 4:7).बाईबल की अंतिम पुस्तक में यह पुकार दोहराई गयी है, जो जय पाए वही इन वस्तुओं को वारिस होगा और मैं उसका परमेश्वर हूंगा और वह मेरा पुत्र होगा (प्रकाशितवाक्य 21:7)

परमेश्वर की संगति में बिताने वाले जीवन की महिमा की तुलना पृथ्वी पर किसी से भी नहीं की जा सकती और उसके उद्देशों को पूरा करने की भी. जो जीवन पृथ्वी पर यीशु ने दिया वह अति अद्भुत और महिमामय और आनन्दित जीवन था, जैसा किसी भी मनुष्य ने अभी तक नहीं जिया. वह जगप्रसिध्द या धनी नहीं था, परंतु उसने परमेश्वर की महिमा को उसके जीवन के द्वारा प्रकाशमान किया.

सुसमाचार का शुभ संदेश यह है कि आप भी उस महिमा को फैला सकते है. आप भी आपके पृथ्वी के जीवनभर के सभी दिनेां में जय पाने वाले हो सकते है. तब आप भी विश्वासयोग्य बनें और सदा अनंत काल का दृष्टिकोण रखते हुए जीवन बिताएं. आमीन .