(संदेश जो मेरे बड़े बेटे संजय और कैथी के विवाह पर दिया गया था)
मुझे अत्यंत खुशी है कि मैं अपने बड़े बेटे के विवाह पर कुछ कह सकूँ। हमें इस दिन का इंतजार कई सालों से था।
मैं संजय और केथी के साथ एक वचन बाँटना चाहता हूँ जो कि व्यवस्थाविवरण 11:18-21 में पाया जाता है। यहाँ परमेश्वर कहते हैं, “अपने हृदय पर मेरे वचन को धारण कर जिससे तेरे पृथ्वी के दिन स्वर्ग के दिन समान हो।”
“क्या ही अद्भुत विचार है यह कि तेरे पृथ्वी के दिन स्वर्ग के दिन के समान हो।”
जरा स्वर्ग के दिनों के विषय में कल्पना कीजिए। स्वर्ग में कोई संघर्ष, तनाव या अनबन नहीं है, केवल शांति और आनंद है और इस सबसे बढ़कर, प्रेम। आपका भी ऐसा ही एक घर हो सकता है, जहाँ हर दिन पृथ्वी का स्वर्ग के समान हो। हर एक घर के प्रति परमेश्वर की यही योजना है।
बाइबल की शुरुआत आदम और हव्वा के विवाह से होती है, और इसका अंत यीशु मसीह के उनके लोग; यानि कलीसिया के साथ विवाह से होता है।
जब परमेश्वर ने पहले विवाह का आयोजन किया जो आदम और हव्वा का था। परमेश्वर चाहते थे कि उनके पृथ्वी के दिन स्वर्ग के दिन के समान हो। उनका पहला घर स्वर्ग था; अदन की वाटिका। लेकिन शैतान ने आकर उनके घर को नरक बना दिया और आज इस संसार में कई घर नरक के समान है।
परंतु परमेश्वर की स्तुति हो, यह कहानी का अंत नहीं था। बाइबल बताती है कि जैसे ही आदम ने पाप किया उसी दिन अदन की वाटिका में, परमेश्वर ने शैतान द्वारा उत्पन्न की गई समस्या के समाधान के लिए अपने पुत्र को भेजने का वायदा किया। और यहीं पर हम इस महान सत्य को देखते हैं कि; परमेश्वर हमेशा हमारी शैतान के विरोध की लड़ाई में हमारी ओर है। इससे पहले कि परमेश्वर ने इस संसार को आदम के पाप के कारण श्रापित किया, आदम और हव्वा को कहा कि स्त्री से निकला हुआ एक बीज शैतान के सिर को कुचलेगा। उसके पश्चात ही परमेश्वर ने आदम और हव्वा को दंड दिया।
जबकि शैतान ने आकर सब कुछ बिगाड़ दिया था, तब भी परमेश्वर चाहते थे कि आदम और हव्वा यह जाने कि वह उनकी ओर है और शैतान के विरुद्ध। शैतान चाहे किसी भी घर में जो चाहे करे, परमेश्वर उन घरों के छुटकारे के व्यवसाय में है। परमेश्वर चाहते हैं कि हमारे घर पुनः उसकी मूल योजना के अनुसार हो जहाँ हमारे पृथ्वी के दिन स्वर्ग के दिन के समान हो। और अब जब यीशु मसीह आ गए हैं और उद्धार का कार्य पूरा हो गया है, इसलिए अब हम सबके लिए यह बात वास्तविक रूप में संभव है।
निर्माता का निर्देश
कुछ साल पहले मैंने एक डिजिटल कैमरा खरीदा। उससे पहले मैं साधारण सा पॉइंट एण्ड क्लिक कैमरा जिसमें फिल्म रोल का इस्तेमाल होता है, उसका उपयोग किया करता था। लेकिन मैंने देखा कि इस महँगे डिजिटल कैमरा के चित्र बेहतर नहीं परंतु और भी बदतर थे। वे धुंधले और अस्पष्ट थे। इतना पैसा खर्च करने के बाद भी, मैंने ऐसे चित्र खींचे जो केवल कूड़ेदान के लायक थे, जैसे आजकल के कई विवाह।
ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि मैंने उसके निर्माता के निर्देशों को नहीं पढ़ा था। हम जानते हैं कि हर एक कीमती वस्तु या यंत्र के साथ एक निर्देश पुस्तिका आती है जो कि उसका निर्माता प्रस्तुत करता है। क्या यह संभव है कि परमेश्वर, जिसने विवाह को स्थापित किया, वह बिना किसी निर्देश के हमें छोड़ दे? कदापि नहीं। उसने हमें निर्देश दिए हैं। क्योंकि हम उन निर्देशों का पालन नहीं करते (जैसा कि मैंने उस डिजिटल कैमरे के साथ किया), इसलिए हमारा वैवाहिक जीवन अस्पष्ट, धुंधला और कूड़ेदान के लायक बन जाता है।
और इसलिए उस डिजिटल कैमरा का उपयोग करने के लिए मैंने उस निर्देश पुस्तिका को पढ़कर उसके सब निर्देशों का पालन किया। मैंने कभी यह कल्पना करने का साहस नहीं किया कि मैं उसके निर्माता से बेहतर उस कैमरे का प्रयोग करना जानता हूँ। अगर मैं ऐसा सोचता तो यह मूर्खता होती। लेकिन जब विवाह का विषय आता है तो यही मूर्खता कई लोगों में पाई जाती है, जो ‘निर्माता के निर्देशों’ का तिरस्कार करते हैं और वे यह मानते हैं कि मनोवैज्ञानिकों और मनुष्यों की परम्परा के द्वारा परमेश्वर से भी बेहतर विवाह उत्पन्न कर सकते हैं।
परमेश्वर ने विवाह के सम्बन्ध में बहुत स्पष्ट निर्देश दिए हैं। जैसे ही मैंने उस डिजिटल कैमरा के निर्माता के निर्देशों का अनुकरण किया, मेरे खींचे हुए चित्र उत्तम निकले। और एक विवाह में भी वास्तव में ऐसा ही होगा जब पति और पत्नी अपने निर्माता के निर्देशों का पालन करेंगे।
संसार में केवल एक ही पुस्तक है जिसमें विवाह के विषय में ‘निर्माता के निर्देशों’ का वर्णन किया गया है, वह है पवित्र बाइबल। अपने विवाह के कई वर्षों पहले से ही मैं इसका अध्ययन करने लगा। हमारे विवाह के पश्चात मैंने और मेरी पत्नी ने इस पुस्तक का साथ मिलकर अध्ययन किया। हमारे पचास वर्ष के वैवाहिक जीवन में हमने भी चखा की क्या है पृथ्वी पर स्वर्ग के दिनों का होना।
सुसमाचार का यही संदेश है कि हम दो स्वर्गलोक के सहभागी हो सकते हैं, एक अभी जब हमारे पृथ्वी के दिन स्वर्ग के दिन के समान बनेंगे। और अंत में, यीशु मसीह के पुनः आगमन पर एक वास्तविक स्वर्ग। इसके विकल्प में दो नर्क है, एक अभी और एक अनंतकाल में। प्रभु यीशु मसीह हमें उससे छुड़ाने आए है।
नींव
संजय और कैथी दो मंजिले मकान में रहने वाले हैं। इसे हम विवाह के प्रतिरूप में देख सकते हैं। सबसे पहले उस मकान की एक नींव है, जिस पर पहली और दूसरी मंजिल बनाई गई है।
हर घर का एक महत्वपूर्ण भाग उसकी नींव है। हर एक विवाह में सबसे पहली जरूरत है एक अच्छी नींव। और एक अच्छे विवाह की नींव; परमेश्वर का हमारे लिए बिना किसी शर्त का प्रेम है। परमेश्वर का बिना किसी शर्त का प्रेम ही पूरी बाइबल में पाए जाने वाले सत्यों में सर्वोत्तम है। जब हम ठोकर खाते हैं, मूर्खतापूर्ण भूल करते हैं या असफल होते हैं और अपने जीवन को बर्बाद कर देते हैं, तब भी परमेश्वर का प्रेम हमारे प्रति नहीं बदलता।
जब परमेश्वर हमारे प्रति उसके प्रेम को दर्शाना चाहता है, तब वह एक माता का अपने नवजात शिशु के प्रति प्रेम का उदाहरण देता है। हम जानते हैं कि एक माता प्रेम के बदले में अपने शिशु से कुछ नहीं चाहती।
जबकि दूसरी ओर, जो प्रेम टी.वी. और फिल्मों में दर्शाया जाता है, वह एक स्वार्थी प्रेम है। एक नौजवान कहता है कि वह किसी लड़की से ‘प्रेम’ करता है। लेकिन वह उस लड़की से अपने आनंद के लिए कुछ कहना चाहता है। उसी प्रकार वह लड़की भी उस लड़के से कुछ कहना चाहती है।
लेकिन परमेश्वर का प्रेम सबसे अलग है। यह एक माता का अपने नवजात शिशु के प्रति प्रेम के समान है। एक माता अपने बच्चे से कुछ भी नहीं चाहती। वास्तव में उसका छोटा बच्चा बदले में उसे कुछ नहीं दे सकता। इस पृथ्वी पर सबसे निःस्वार्थ प्रेम है; एक माता का प्रेम। यशायाह 49:15 में अपने प्रेम का वर्णन करते समय परमेश्वर यही उदाहरण का उपयोग करते हैं, यह संपूर्ण रूप से निःस्वार्थ प्रेम है और बदले में कुछ नहीं चाहता। ठीक एक माता के समान, परमेश्वर भी अपने बच्चों की सेवा करते हैं और उनके लिए पीड़ा सहते हैं। क्या आपने एक माता को अपने बीमार बच्चे की देखभाल करते हुए देखा है? परमेश्वर भी ठीक उसी प्रकार हमसे प्रेम करते हैं।
परमेश्वर के इस सिद्ध प्रेम को जानना ही आपके नए घर की नींव की आवश्यकता है। उसी नींव पर ही आप दो मंजिले बना सकते हो। अगर आप दोनों परमेश्वर के प्रेम में व्यक्तिगत रूप से सुरक्षित नहीं है तब आपके बीच अनेक समस्याएँ आएँगी।
मुझे इस बात पर पूरा यकीन है कि हमारी अधिकतर समस्याओं का कारण हमारी असुरक्षितता है। हमने अपने आपको हमारे स्वर्गीय पिता के बिना शर्त के प्रेम में सुरक्षित नहीं पाया है। और जब हम स्वर्गीय पिता के प्रेम में अपने आपको सुरक्षित नहीं पाएंगे, तब हम दूसरों से उस प्रकार प्रेम नहीं कर सकेंगे जैसे हमें करना चाहिए। तब हमारे रिश्तों में ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा की भावना और अन्य कई समस्याएँ आ जाएँगी। परंतु जब हम परमेश्वर के प्रेम में सुरक्षित होते हैं तब हम आजाद होकर कुछ निर्माण करने की शुरुआत कर सकते हैं।
पहली मंजिल
जब किसी ने यीशु से पूछा, कि सबसे बड़ी आज्ञा क्या है, तब उसने उत्तर दिया कि दो आज्ञाएँ सबसे बड़ी है। पहली आज्ञा यह है कि परमेश्वर से पूरे हृदय से, प्राण से और सामर्थ से प्रेम करो, और दूसरी यह कि दूसरों से ऐसा प्रेम करो, जैसे परमेश्वर ने हमसे किया।
और यही मकान के दो मंजिले हैं। आप दूसरी मंजिल को पहली मंजिल से पहले नहीं बना सकते। कई लोग यह गलती करते हैं, वे परमेश्वर से पूरे हृदय से प्रेम किए बिना पहले दूसरों से प्रेम करने लगते हैं। उन्होंने निर्माता के निर्देशों को नहीं पढ़ा, इसलिए उनका प्रेम दूसरों के प्रति जल्द ही मुर्झा जाता है। हमें सर्वप्रथम परमेश्वर से प्रेम करना है, इससे पहले कि हम दूसरों से ऐसा प्रेम करें जैसा हमें करना चाहिए।
जब परमेश्वर ने आदम और हव्वा की सृष्टि की, उन्होंने उन दोनों को एक साथ और एक समय में नहीं बनाया। अगर वे चाहते तो बड़े आसानी से ऐसा कर सकते थे। वे एक के बजाय दो मिट्टी के गोले को उठाते और स्त्री और पुरुष की सृष्टि एक साथ करते और एक ही समय पर उन दोनों में श्वास फूँकते। लेकिन फिर परमेश्वर ने आदम को अकेले क्यों सृजा? ताकि जब वह अपनी आँखें खोले, तो पहला व्यक्ति जिसे वह देखता वो परमेश्वर होते, हव्वा नहीं। परमेश्वर ने आदम को गहरी नींद में डाल दिया। क्यों? वह केवल उसके शरीर से पसली निकालने के लिए नहीं। परंतु इसलिए कि जब परमेश्वर हव्वा की सृष्टि वाटिका के किसी दूसरे कोने में अलग से करे, और जब वह अपनी आँखें खोलती, तो पहला व्यक्ति जिसे वह देखती वह परमेश्वर होते, आदम नहीं। वो आदम के अस्तित्व के बारे में नहीं जानती थी। उसने पहले केवल परमेश्वर को ही देखा।
यही पहला पाठ था जो परमेश्वर आदम और हव्वा को सिखाना चाहते थे कि फ्मैं तुम्हारा परमेश्वर, तुम्हारे जीवन में हर-दम सर्वप्रथम रहूँ।” यही पाठ हम सभी को सीखना है।
आपने प्रसिद्ध गोंद / फेविकोल के बारे में सुना होगा जो लकड़ी चिपकाने के काम आती है। मैंने एक बार उसका विज्ञापन देखा था, जिसमें लकड़ी के दो टुकड़े फेविकोल से चिपके हुए हैं और दो हाथी उसे खींचकर अलग करने की कोशिश कर रहे हैं। और यह दोनों हाथी उस लकड़ी के टुकड़ों को अलग नहीं कर पा रहे थे। एक सच्चा मसीही विवाह भी ठीक उसी तरह होता है; जब एक पति और पत्नी का केंद्र यीशु मसीह होता है, जो उन्हें एक साथ जोड़कर रखता है। पृथ्वी या स्वर्ग की कोई भी ताकत उन्हें एक दूसरे से अलग नहीं कर सकती। यदि यीशु मसीह उनके जीवन में सर्वप्रथम नहीं है और उनको एक-दूसरे से नहीं जोड़कर रखता, तो वह विवाह दो लकड़ी के उन टुकड़ों के समान होगा जो एक दूसरों से जोड़ा न गया हो। और तब किसी के ज़ोर लगाए बिना ही वे टूट जाएँगे। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि आज हम इस संसार में कई तलाक देखते हैं। विवाह के दिन कई पति और पत्नी ने यह सोचा होगा कि वे वास्तव में वे एक-दूसरे से कितना घनिष्ठ प्रेम करते हैं। लेकिन उनको इस बात का आभास नहीं होता कि उनका प्रेम एक स्वयं केन्द्रित प्रेम है, क्योंकि यीशु मसीह उनके जीवन के प्रभु नहीं है। इसी कारण कुछ महीनों के बाद उन दोनों में फूट आ जाती है।
“एक-दूसरों से प्रेम करो” यह एक अच्छा और जरूरत से ज्यादा प्रयोग किया गया वचन है। लेकिन आप ऐसा नहीं कर सकते, यदि आप सर्वप्रथम परमेश्वर से प्रेम न करें। यदि यीशु मसीह आपके व्यक्तिगत जीवन के प्रभु नहीं है, तो आप अपने पति या पत्नी के प्रति प्रेम में अंत तक सहनशील नहीं रह पाएँगे।
जब आप पहली मंजिल बना चुके होंगे, जो है परमेश्वर से प्रेम करना- तब ही आप दूसरी मंजिल भी बना पाएँगे, जो है एक दूसरों से प्रेम करना।
दूसरी मंजिल
मैं एक दूसरे से प्रेम करने के सम्बन्ध में तीन बातें बताना चाहता हूँ।
सर्वप्रथम प्रेम प्रशँसा दर्शाता है। पवित्र बाइबल में विवाह सम्बन्ध प्रेम के विषय में एक पूरी किताब है- श्रेष्ठगीत या सुलैमान के गीत। सब विवाहित जोड़ों को यह किताब एक-दूसरों को पढ़कर सुनाना चाहिए। उसमें हम यह अद्भुत बात देख सकते हैं कि परमेश्वर एक पति और पत्नी को एक दूसरे से किस तरह बात करने की अपेक्षा करते हैं और बाइबल की अन्य किताबों के समान यह भी एक प्रेरित शास्त्र है।
इस किताब में से मैं कुछ पंक्तियाँ पढ़ना चाहता हूँ, जिससे कि हम पति और पत्नी एक दूसरे की प्रशँसा कर सकते हैं। जब एक दूसरे की प्रशँसा करने की बात आती है, तब हम सब कंजूस हो जाते हैं। हम तुरंत ही दूसरों की गलती को पकड़ते हैं, लेकिन प्रशँसा करने में धीमे है। हम लोगों को देखकर उनमें कई गलतियाँ ढूँढते हैं। यह मनुष्य का स्वभाव है और इसी प्रकार ‘दोष लगाने वाला जो कि शैतान है’ हमारे जीवन में प्रवेश करते है। दूसरी ओर जब हम दूसरों को देखकर उनकी सराहना करते हैं तब परमेश्वर हमारे जीवन में प्रवेश करते हैं। हम में से हर एक जन अपने आचरण को परखें।
श्रेष्ठगीत की पुस्तक, एक पति और पत्नी के बारे में क्या कहती है यह देखिए (मैसेज बाइबल अनुवाद द्वारा)
“तुम सुंदर हो मेरी प्रियतमा, सिर से पाँव तक तुलना से अपार, सुंदर और एकदम निपुण। तुम मेरे परम आनंद की स्थिति में एक मनमोहक स्वप्न की तरह सुंदर हो। तुम्हारी वाणी शांति प्रदान करने वाली है, और तुम्हारा चेहरा मनमोहक है। तुम्हारी सुंदरता भीतरी और बाहरी रूप से संपूर्ण है, मेरी प्रियतमा तुम स्वर्ग हो।”
(मैं इस सब वाक्यों की रचना खुद नहीं कर रहा, बल्कि यह सब पवित्र बाइबल में है।)
“तुमने मेरे दिल को जीत लिया है। तुमने मुझे देखा और मुझे प्यार हो गया। मेरी ओर एक दृष्टि और मैं प्रेम में डूब गया। मेरा दिल सम्मोहित हो गया है। जब मैं तुम्हें देखता हूँ मेरी भावनाएँ और मेरी चाहत कैसे जाग उठती है। मैं तुम्हें छोड़ किसी ओर के लिए नहीं हूँ।”
मैं आशा करता हूँ कि हर एक पति के जीवन में यह उपरोक्त वचन सत्य हो।
“तुम्हारे समान इस पृथ्वी पर कोई नहीं, अब तक कोई नहीं, और न कभी भी रहेगा। तुम ऐसी स्त्री हो जिसकी कोई तुलना नहीं।”
परमेश्वर ने थोड़ी काव्यात्मक अनुमति दी है। यहाँ वैज्ञानिक यथार्थता का सवाल नहीं, किन्तु एक पति की भावना प्रकट हो रही है।
और अब सुनिए पत्नी क्या कहती है, यह उसका प्रत्युत्तर है, “और तुम मेरे प्रेमी, कितने खूबसूरत हो। तुम करोड़ो में एक हो। तुम्हारे समान और कोई नहीं। तुम सोने के समान हो, तुम एक मजबूत पर्वत समान पुरुष हो। तुम्हारे शब्द प्रेमपूर्ण और आश्वासन देने वाले है। तुम्हारे हर शब्द चुम्बन के समान है। तुम्हारे विषय में सारी चीजे मुझे आनंदित करती है। तुम मुझमें रोमाँच उत्पन्न करते हो। मुझे तुम्हारी लालसा है और हर एक हालत में मैं तुम्हें चाहती हूँ। तुम्हारी कमी मेरे लिए दर्दनाक है। जब मैं तुम्हें देखूँगी, तब मैं तुम्हें अपनी बाहों में ले लूँगी। मैं तुम्हें खुद से अलग नहीं होने दूँगी। मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ और तुम मेरे प्रेमी हो और सिर्फ तुम ही मेरे पुरुष हो।”
परमेश्वर ने ऐसे वचन पवित्र बाइबल में क्यों रखे हैं? क्योंकि परमेश्वर खुद एक प्रेमी है।
संजय और कैथी आप भी ऐसे ही प्रेमी बनो। परमेश्वर चाहते हैं कि आप भी एक दूसरे से ऐसे ही प्रेम करें। आपके पृथ्वी के दिन भी स्वर्ग के दिन के समान बन सकेंगे यदि आप एक-दूसरे की इस प्रकार सराहना करना सीख लें।
यीशु मसीह हम सबके लिए इस विषय में एक उत्तम उदाहरण है। कैसे उदारता से वे लोगों की सराहना करते थे।
प्रेम के विषय में दूसरी बात- प्रेम जल्द क्षमा करता है। प्रेम दोष लगाने में धीमा परंतु क्षमा करने में तत्पर है। हर एक विवाह में पति और पत्नी के बीच समस्याएँ आ सकती है। परंतु यदि आप उन समस्याओं को ऐसे ही छोड़ देंगे, तो वह अवश्य ही उबलने लग जाएगी। इसलिए क्षमा करने में और क्षमा माँगने में देरी न करें। ऐसा करने के लिए शाम तक इंतजार भी न करे। अगर सुबह आपके पैर में काँटा चुभ जाये तब आप उसे तुरंत ही निकाल दोगे, उसे निकालने के लिए शाम तक इंतजार नहीं करोगे। यदि आप अपने पति और पत्नी को चोट पहुँचाते हो तो यह उसी समान है जैसे आपने उस पर काँटा चुभा दिया हो। उसे जल्द ही निकाल दें। शीघ्र ही क्षमा मांगे और शीघ्र ही क्षमा भी करें।
और अंत में प्रेम कोई भी काम अपने सहभागी के साथ करने में उत्सुक रहता है, अकेले नहीं। उस अदन की वाटिका में जब शैतान हव्वा की परीक्षा लेने आया, “तब यदि हव्वा उससे कहती निर्णय लेने से पहले मैं अपने पति की राय लेना चाहती हूँ”- तब शायद मनुष्य जाति का इतिहास कितना अलग होता। और तब कहानी बिल्कुल अलग होती।
याद रखें कि इस संसार की सब समस्याएँ तब शुरु हुई जब एक स्त्री ने खुद से निर्णय लिया, जबकि परमेश्वर ने उसे एक साथी दिया था जिसके साथ वह निर्णय लेने से पहले विचार-विमर्श कर सकती थी।
सच्चा प्रेम हर काम साथ मिलकर करता है। दो हर-दम एक से बेहतर होते हैं।
अंत में मैं परमेश्वर के वचन श्रेष्ठगीत 8:6,7 (मैसेज बाइबल अनुवाद द्वारा) में से पढ़ूँगा “प्रेम की अग्नि अपने सामने से सब कुछ समेटकर ले जाती है। बाढ़ भी उसे डूबा नहीं सकती। सच्चे प्रेम को कभी खरीदा नहीं जा सकता। उसे आप बाजार में भी नहीं पा सकते।”
केवल परमेश्वर का प्रेम ऐसा है। इसी कारण छठे वचन में उसे “परमेश्वर की अग्नि” बताया गया है।
केवल परमेश्वर ही हमें ऐसा प्रेम दे सकते हैं।
संजय और कैथी, परमेश्वर से माँगो कि वो आपको एक दूसरे के प्रति ऐसा प्रेम दें।
परमेश्वर आप दोनों को आशीष दे। आमीन।
(संदेश जो मेरे दूसरे बेटे संतोष और मेघन के विवाह में दिया गया था)
परमेश्वर ने हमें एक ही पुस्तक दी है। यदि हम इस बात पर सचमुच विश्वास करते हैं, तब हम जीवन के हर विषयों के निर्देश के लिए उस पुस्तक को ही देखेंगे। हम बाइबल में पढ़ते हैं कि परमेश्वर ने ही मनुष्य के लिए विवाह नियुक्त किया। परमेश्वर ने इस विषय में सबसे पहले सोचा और उसी ने पुरुष और स्त्री की सृष्टि इस इच्छा से की वे एक हो जाए। और उसने अपनी पुस्तक में एक विवाहित जोड़ों को कैसे जीना है, इस विषय में चेतावनी और निर्देश दिए है।
उत्पत्ति के तीसरे अध्याय में हम आदम और हव्वा के विवाह के बारे में पढ़ते हैं। जैसे ही परमेश्वर ने दोनों को विवाह में एक किया, उसने उन्हें एक सुंदर वाटिका में भेज दिया। उस वाटिका में जो तीन घटनाएँ हुई उनमें हम तीन चुनावों को देखते हैं, जो कि संतोष और मेघन आपको भी करना है। हर विवाहित जोड़ों को भी करना है। यदि आप एक आनंदमय विवाह चाहते हो, जो मनुष्य के लिए परमेश्वर की योजना थी।
इस संसार में ऐसे आनंदमय विवाह बहुत कम दिखते हैं, क्योंकि ज्यादातर लोग पवित्र बाइबल को नहीं पढ़ते। और कई जो उसे पढ़ते हैं लेकिन मनन नहीं करते यह जानने के लिए कि उनके विवाहित जीवन के लिए परमेश्वर की क्या इच्छा है।
जब परमेश्वर ने आदम और हव्वा को अदन की वाटिका में भेजा, यद्यपि परमेश्वर ने उन्हें काफी स्वतंत्रता दी, परंतु एक प्रतिबंध भी रखा था। उसने उन्हें एक वृक्ष के फल को खाने से मना किया था। उसका एक कारण था। बिना चुनाव किए, कोई भी परमेश्वर का पुत्र नहीं बन सकता। कोई भी व्यक्ति व्यक्तिगत चुनाव किए बिना पवित्र नहीं बन सकता। इसलिए परमेश्वर ने जब आदम को वाटिका में भेजा, और यदि वो आदम को चुनाव करने का अवसर नहीं देते तो आदम भी ऐसा एक पुत्र नहीं बन पाता जैसा परमेश्वर चाहते थे। हमें यह अहसास नहीं होता कि जो चुनाव हम करते हैं कि वह कितने महत्वपूर्ण होते हैं न कि इस संसार के जीवन के लिए पर उससे बढ़कर अनंतकाल के लिए भी।
महान वरदानों में से एक जो परमेश्वर ने हमें दिया है वो है चुनाव करने की सामर्थ। और यह सामर्थ वह किसी से नहीं छीनता। आप चुन सकते हैं कि आप परमेश्वर के पुत्र बनना चाहते हैं या अपने लिए जीना चाहते हैं। लेकिन जो कुछ आप चुनेंगे, जीवन के अंत में अपने उन चुनावों के परिणामों की कटनी ही काटेंगे।
बाइबल में लिखा है, “जैसा एक मनुष्य बोता है, वैसा ही वो काटता है।”
बाइबल में यह भी लिखा है, “मनुष्य के लिए नियुक्त किया गया है कि वो एक बार मरे और उसके पश्चात न्याय होगा।” लेकिन अंत के दिन परमेश्वर मनुष्य का न्याय मनचाहे तरीके से नहीं करेगा। प्रत्येक मनुष्य का न्याय उसके अपने जीवन में किए गए चुनावों पर आधारित होगा।
यही सिद्धान्त विवाह में भी लागू होता है। आप यह चुनाव कर सकते हैं कि आप एक आनंदमय विवाह चाहते हैं या निराशाजनक। यह चुनाव आपका है, परमेश्वर का नहीं। आदम के पास एक चुनाव था, अपना जीवन शैतान को समर्पित करे या परमेश्वर को।
इसलिए मैं आपको बताना चाहता हूँ संतोष और मेघन, उन तीन चुनावों के बारे में जो आपको अपने विवाह में करने हैं।
1) परमेश्वर में केन्द्रित रहो स्वयं पर नहीं
सर्वप्रथम यह चुनाव करो कि जीवन के हर क्षेत्र में आप परमेश्वर में केन्द्रित रहोगे।
अदन की वाटिका में दो वृक्ष थे, और वे जीवन के दो मार्गों को दर्शाते हैं। जीवन का वृक्ष परमेश्वर में केन्द्रित जीवन का प्रतीक है, जहाँ मनुष्य के द्वारा लिए गए हरेक निर्णय का केन्द्र परमेश्वर होता है। दूसरी ओर, अच्छे और बुरे के ज्ञान का वृक्ष, एक ऐसे जीवन का प्रतीक है जो स्वयं पर केन्द्रित होता है। जहाँ मनुष्य बिना परमेश्वर से विचार-विमर्श किए जीता है, और भलाई और बुराई के बीच निर्णय भी खुद ही लेता है। परमेश्वर ने आदम और हव्वा को वाटिका में भेजकर, कुछ इस प्रकार कहा, “इन दोनों में से किस मार्ग पर तुमको चलना है यह तुम चुन सकते हो।” और हम सब जानते हैं कि आदम ने क्या चुना। उसने एक ऐसा जीवन चुना जो कि स्वयं पर केंद्रित था।
सब पीड़ा, दुःख, हत्या और चारों ओर दिखने वाले घृणित चीज़ों का कारण मनुष्य के द्वारा अच्छाई और बुराई के बीच लिया गया स्वकेन्द्रित चुनाव है। वह नहीं चाहता था कि परमेश्वर उसे कुछ बताए और हर अप्रसन्न विवाह का भी मुख्य यही कारण है, यहाँ तक कि मसीही विवाहों का भी। कई मसीही उनके जीवन को स्वयं पर केन्द्रित रखकर जीते हैं, और वे जैसा बोते हैं वैसा ही काटते हैं।
जब परमेश्वर ने आदम की सृष्टि की, वो चाहते थे कि वह पृथ्वी पर राज करे। आदम राजा बनने के लिए रचा गया था, दास बनने के लिए नहीं। और परमेश्वर चाहते थे कि हव्वा रानी बने और आदम के साथ में रहे। लेकिन आज हम क्या देखते हैं? स्त्री और पुरुष हर जगह गुलाम हैं, अपनी लालसाओं और संसार के नाश होने वाले वस्तुओं के गुलाम हैं।
जब परमेश्वर ने जगत की सृष्टि की तो, उसने सब कुछ सुन्दर बनाया। वह प्रतिबंधित वृक्ष भी सुन्दर था। जब आदम और हव्वा उस पेड़ के सामने खड़े थे तब उन्हें एक चुनाव करना था कि क्या वे परमेश्वर के द्वारा रची गई सुन्दर वस्तुओं को चुनेंगे या स्वयं परमेश्वर को चुनेंगे?
ऐसा ही चुनाव हम सभी को प्रतिदिन करना है। यदि हमारा जीवन स्वयं पर केन्द्रित होगा तब हम परमेश्वर के वरदानों की धुन में रहने के बजाय स्वयं परमेश्वर की धुन में रहेंगे। ज़्यादातर झगड़े जो घर में होते हैं, वे सांसारिक विषयों पर होते हैं। वे झगड़े इसलिए उत्पन्न होते हैं क्योंकि पति और पत्नी सृजित वस्तुओं को चुनते हैं और सृष्टिकर्ता को नहीं, और वे अपने चुनावों का फल भी भोगते हैं। वे अपने शरीर के लिए बोते हैं और बुराई का फल काटते हैं। जब मनुष्य सृष्टिकर्ता को छोड़ सृजित वस्तुओं को चुनता है तब वह गुलाम बन जाता है।
यीशु मसीह हमें इस गुलामी से छुटकारा देने आए हैं। मनुष्य आज धन, सामर्थ, अवैध संबंध, दूसरों की राय और कई सारी चीज़ों का गुलाम है। वो आज़ाद नहीं है। परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि इसलिए की कि वह उकाब की तरह आकाश में ऊँचा उड़े। लेकिन हम चारों तरफ देखते हैं कि मनुष्य ज़जीरों में जकड़ा हुआ है, उसे अपने क्रोध, अपनी ज़ुबान और वासना भरी आँखों पर नियंत्रण नहीं है। यीशु मसीह केवल हमारे पापों के लिए मरने नहीं, परंतु हमें इस गुलामी से छुड़ाने के लिए भी आए।
मैं संतोष और मेघन आपसे कहना चाहता हूँ कि आप एक अत्यन्त आनंदित विवाहित जीवन जी सकते हैं यदि आप वह चुनाव करने से इंकार करोगे जो आदम ने किया था। और यदि परमेश्वर से कहे, “प्रभु जी हमारा स्वयं हमारे जीवन का केन्द्र कभी नहीं होगा। प्रभु सिर्फ आप ही केन्द्र होंगे और हमारे जीवन में सब कुछ आप पर केन्द्रित होगा।”
बाइबल कहती है कि परमेश्वर ज्योति है और परमेश्वर प्रेम है। परमेश्वर का प्रेम ही उसकी ज्योति है। ज्योति की सामर्थ एक अँधेरे कमरे के अंधकार को दूर कर देती है। परमेश्वर का सामर्थ भी उसी प्रकार है। परमेश्वर के सामर्थ और प्रेम के बिना का जीवन केवल अंधकारमय ही होगा।
इस संसार में हमारा सारा जीवन एक परीक्षण और परख का काल है, जोकि अनंतकाल के राज्य के लिए तैयार किया जा रहा है- जहाँ प्रेम का नियम सब पर राज्य करता है। हर एक परिस्थिति और घटना जिससे परमेश्वर हमें ले जाते हैं, वह इसलिए बनाई गई है कि हम परखे जाएँ- कि क्या हम प्रेम के नियम के अनुसार चलते हैं? और इसलिए परमेश्वर हमारे जीवन में कई सारी कठिनाइयाँ और परेशानियों की अनुमति देता है। परमेश्वर सर्वशक्तिमान है और वो पृथ्वी पर इस जीवन को बिना समस्या के बना सकते थे। लेकिन परमेश्वर ने अपनी महान बुद्धि से समस्याओं को नियुक्त किया, जिसके द्वारा हम प्रेम करना सीखें। अगर हम अपने स्वार्थ पर जयवन्त होंगे और यह संकल्प करें कि सिर्फ प्रेम ही हमारे जीवन की अगुवाई करेगा, तो परमेश्वर हमें अपने आने वाले राज्य में शासक बनने के लिए तैयार कर पाएगा। इस विषय हमें अभी सोचना है, नहीं तो हम अनंतकाल में यह पाएँगे कि हमने वो अवसर खो दिये जो परमेश्वर ने हमें इस संसार में दिए थे, और जो कुछ हमें सीखना था वह हम कभी सीख नहीं पाए।
इसलिए आपको अपने विवाह में यह चुनाव करना है कि क्या आप प्रेम के नियम के अनुसार जीयेंगे या स्वार्थ के नियम के अनुसार? अगर परमेश्वर आपके जीवन का केन्द्र है तब कुछ करने या बोलने के विषय में उसका प्रेम आपकी अगुवाई करेगा।
2) एक दूसरे को स्वीकार करें और मुखौटा न पहनें
दूसरी बात जो मैं आपसे कहना चाहता हूँ वह है- एक दूसरे को स्वीकार करें और मुखौटा न पहनें।
पाप प्रवेश करने से पहले, “आदम और हव्वा नग्न अवस्था में थे और वे नहीं शर्माये।” उनका जीवन खुला और एक दूसरे के प्रति ईमानदार था और वे कुछ नहीं छिपाते थे। लेकिन जैसे ही उन्होंने पाप किया, तब बहुत कुछ बदल गया। उन्होंने तुरंत अपने आप को अंजीर के पत्तों से ढक लिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया? उस वाटिका में उन्हें “चुपके से झाँक कर” तो कोई नहीं देख रहा था। और निश्चय वे अपने आपको जानवरों से भी नहीं छिपा रहे थे। फिर क्यों उन्हें अपने आपको अंजीर के पत्तों से ढाँपना पड़ा? वे अपने आपको एक दूसरे से छिपा रहे थे।
पाप का एक परिणाम यह है कि हम चीज़ें एक दूसरे से छिपाते हैं। हर मनुष्य अपने व्यक्तित्व का वो भाग छिपाता है जो भद्दा है। उन्हें शर्मिन्दगी महसूस होगी और अन्य लोग उनके विषय में कोई ऐसी बात जान जाते हैं। इसलिए वे मुखौटा पहनते हैं। वे सामने से ऐसा दिखावा करते हैं कि वे खुश और संतुष्ट हैं, जबकि वास्तव में वे पराजित और दुःखद अवस्था में होते हैं।
आपको यह संकल्प करना है कि आप विवाहित जीवन में वैसे ही रहेंगे जैसे आप हैं, कोई भी मुखौटा पहने बिना। कोई ढोंग या अंजीर के पत्ते न हों।
सब के भीतर एक चाहत है कि वह एक ऐसे व्यक्ति को पाए जो उनके बारे में सब कुछ जानने के बावजूद उनसे करें। हम मुखौटा इसलिए पहनते हैं क्योंकि अन्य लोगों के साथ हमारा बुरा अनुभव रहा। हम जानते हैं कि लोग हमें स्वीकार नहीं करेंगे यदि वे हमारे बारे में सब कुछ जान जायेंगे। इसलिए हम दिखावा करते हैं कि लोग हमें स्वीकार करें। यह बात मसीही लोगों के बीच में भी सत्य है। जब यीशु मसीह इस जगत में थे, तो उन्होंने कई धार्मिक लोगों को मुखौटा पहने हुए देखा और इसलिए वो उनकी मदद नहीं कर पाए।
मैं आप दोनों को आज एक निर्णय लेने के लिए आग्रह करना चाहता हूँ, कि कभी मुखौटा न पहनें, लेकिन एक दूसरे को जैसे हो वैसे ही स्वीकार करें। संतोष क्या तुम मेघन में कुछ गलती पाने के बावजूद उसे स्वीकार करोगे? मेघन क्या तुम संतोष में कुछ गलतियाँ पाने के बावजूद उसे स्वीकार करोगी?
परमेश्वर के विषय में यह अद्भुत बात है कि हम जैसे हैं वह हमें उसी दशा में स्वीकार करता है। जो धर्म हमें यह सिखाता है कि परमेश्वर हमें स्वीकार करे इससे पहले हमें अपने आपको सुधारना है- तो वह एक झूठा धर्म है। यीशु मसीह ऐसे धर्म को लेकर नहीं आए। वे ऐसा संदेश लेकर आए कि जैसे भी हम हैं, परमेश्वर हमसे प्रेम करते हैं। परमेश्वर जानते हैं कि हम अपने आपको बदल नहीं सकते। इसलिए हमें वैसे ही स्वीकार करते हैं जैसे हम हैं और वह खुद हममें बदलाव लाते हैं। संतोष और मेघन, बाइबल आप दोनों को प्रोत्साहित करता है कि, “एक दूसरे को स्वीकार करें, जैसे यीशु मसीह ने तुम्हें स्वीकार किया है।”
कुछ समय पहले मैंने इस विषय पर एक लेख पढ़ा था, लेखक का नाम मुझे स्मरण नहीं है। उसने ऐसा लिखा था-
“हम सब लुका-छिपी का खेल खेलते हुए इस जीवन से गुज़रते हैं क्योंकि हम जैसे हैं उससे हम शर्मिन्दा होते हैं इसलिए एक-दूसरे से छिपते हैं। हम सब मुखौटा पहनते हैं ताकि दूसरे हमारे अन्दर के वास्तविक व्यक्ति को न देख सकें। मुखौटे पहने हुए हम एक-दूसरे को देखते हैं और इसे हम “सहभागिता” कहते हैं। हम दिखावा करते हैं कि हमें कोई परेशानी नहीं है और हम सुरक्षित हैं, लेकिन वह एक मुखौटा है। उस मुखौटे के पीछे हम उलझन, भय और अकेलापन महसूस करते हैं। हम डरते हैं कि कोई हमारे अन्दर झाँक न ले। हम डरते हैं कि यदि दूसरे हमारे अन्दर के वास्तविक व्यक्ति को जान लेंगे, तो वे हमारा तिरस्कार करेंगे और शायद हम पर हँसेंगे भी- और उनकी हँसी हमारी जान ले लेगी। इसलिए हम “दिखावेपन का खेल” खेलते हैं, बाहर से निश्चिन्त और आत्मविश्वासी लगते हैं, लेकिन भीतर से बच्चे के समान घबराते हैं। हमारा पूरा जीवन एक दिखावा बन जाता है। हम दूसरों से बात और हँसी मज़ाक करते हैं और उन्हें हमारे विषय में महत्वहीन बातें बताते हैं, परन्तु उन विषयों के बारे में चर्चा नहीं करते जो हमारे भीतर पुकार रही हैं।”
“हम चाहते हैं कि लोग हमें स्वीकार करें, समझें और प्रेम करें।” लेकिन हमने अनुभव से सीखा है कि जब हम अपनी वास्तविकता दूसरों पर व्यक्त करते हैं, तब वे हमारा तिरस्कार करते हैं। हम ऐसे व्यक्ति को ढूँढते हैं जो हमारे बारे में सब जानकर भी हमें स्वीकार कर सके। लेकिन हमें कभी इस प्रकार का व्यक्ति नहीं मिलता। हम नए जन्म पाए मसीही को प्रेम के विषय में बात करते हुए सुनते हैं, और हमारे हृदय में आशा जाती है कि शायद वे हमें स्वीकार कर लें। लेकिन जब हम उनसे मिलते हैं, हमें जल्द ही पता लग जाता है कि उन्होंने भी मुखौटा पहना है। और वे भी हममें केवल गलती ही ढूँढते हैं।
“इसका इलाज क्या है? हमें यह देखना है कि हम जैसे हैं वैसे ही परमेश्वर ने हमें स्वीकार किया है और प्रेम भी किया है। परमेश्वर प्रेम है। इस प्रेम को अनुभव करने के द्वारा ही हम निडर बनेंगे। और तब हमें दिखावा करने की ज़रुरत नहीं होगी। तब हम परमेश्वर और मनुष्यों के सामने वैसे ही रहेंगे जैसे हम हैं। परमेश्वर का प्रेम कभी भी हमें कुछ करने के लिए ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं करता। परमेश्वर हमारी सब कमियों को समझते हैं और फिर भी हमें दोषी ठहराए बिना स्वीकार करते हैं। दूसरी ओर, वे हमें सिद्ध बनाना चाहते हैं। यह जानना कि परमेश्वर हमारे विषय में सब कुछ देखने और जानने के बावजूद हमें स्वीकार करते हैं- यही एक खुशहाल मसीही जीवन की जड़ है। यही है वह बहुतायत का जीवन जो यीशु मसीह हमें देने आए।”
परमेश्वर के प्रेम के विषय में ज्ञान, मनुष्य द्वारा स्वीकार होने की चाहत को स्थायी रूप से अंत कर देता है। तब हममें आत्मविश्वास भर जाएगा। हमारे अन्दर की दोष भावना और भय निकल जायेंगे। हम कभी अकेले भी पड़ सकते हैं, लेकिन कभी अकेलापन महसूस नहीं होगा। क्योंकि परमेश्वर ने वायदा किया है कि वह हमें कभी नहीं छोड़ेंगे और न कभी त्यागेंगे।
आपके विवाह साथी के भीतर से भी कुछ पुकार रहा है- वो है स्वीकार किए जाने की चाहत। और इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि तुम्हारे सुनने वाले कान हों, केवल उन शब्दों के लिए नहीं जो आपका विवाह साथी बाल पाता है, लेकिन उन शब्दों के लिए भी जो बिन बोले ही रह जाते हैं। उन खामोश शब्दों के लिए जो उनके हृदय में हैं लेकिन वो वह बोल नहीं पाते।
सबसे दुःखद बात यह है, कि हम यह विश्वास नहीं करते हैं कि हम जैसे भी हैं परमेश्वर हमें वैसे ही स्वीकार करते हैं। इसलिए हम परमेश्वर से भी छिपाते हैं। यही आदम और हव्वा ने भी किया। वे पेड़ के पीछे जाकर परमेश्वर से छिपने की कोशिश कर रहे थे।
कई पति और पत्नी एक-दूसरे से प्रेम नहीं कर पाते क्योंकि उन्होंने परमेश्वर द्वारा स्वीकार किए जाने का आनंद नहीं चखा है। उनके पास धर्म है लेकिन मसीह नहीं। शैतान की एक बड़ी कला यह है कि उसने लोगों को बिना मसीह का ईसाई धर्म का एक खाली कोष दे दिया है और यही बात लोगों को और बदत्तर बना देता है। सैंकड़ों ऐसे धर्म से दूर हो जाते हैं, जो कि सच्ची मसीहियत नहीं है। स्वयं मसीह ही सच्ची मसीहियत है।
हर घर जहाँ यीशु मसीह केन्द्र है, वह शान्तिपूर्ण होता है। वह ऐसा घर होता है जहाँ पति और पत्नी एक-दूसरे को समझते हैं और वे एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं, क्योंकि उन्हें इस बात पर विश्वास और भरोसा है कि परमेश्वर ने उन्हें स्वीकार कर लिया है। ऐसा ही एक घर आपको बनाना चाहिए।
यीशु मसीह ने आपसे तब प्रेम किया जब आप बदसूरत और बरबाद थे, तब नहीं जब आप ने उन्हें खुश किया, लेकिन जब आप दुष्ट थे। तब नहीं जब आपने उन्हें खुशियाँ दीं परन्तु जब आपने उन्हें दुःख पहुँचाया। परमेश्वर आपको बुला रहे हैं कि आप भी अपने पति या पत्नी से, किसी भी गुण को न ढूँढते हुए ऐसा ही प्रेम करें।
एक-दूसरे के साथ रहते समय जल्द ही आप एक-दूसरे में ऐसी गलतियाँ देखोगे जो आप अभी नहीं देख पा रहे। और उस समय जो बात आपको एक-दूसरे से प्रेम करने में मदद करेगी, वह यह आश्वासन है कि परमेश्वर ने आपके विषय में जो भी देखा, उसके बावजूद भी वो आपको स्वीकार करते हैं। परमेश्वर आपके भीतर कई बातों को देखते हैं, जो आप खुद नहीं देख पाते और फिर भी वह आपको स्वीकार करते हैं।
यदि आप एक-दूसरे से ऐसा ही प्रेम करोगे तब आप हर एक “बन्दीगृह की दीवार” को तोड़ डालोगे जिसके पीछे आप छिपते हो। आपके भीतर परमेश्वर का प्रेम उन सब दीवारों से बलवान है और वह कोमलता से उन हर एक दीवार को तोड़ डालेगा। और फिर आप दोनों वास्तव में एक हो जाओगे।
और अब मैं उस लेख के अंतिम शब्दों को पढ़ना चाहता हूँ।
“तुम्हारा दयालुपन, कोमलता और तुम्हारे साथी के विचारों और भावनाओं को समझने की कोशिश ही आपके साथी पर पंख लगा देंगे। शुरुआत में छोटे और निर्बल पंख। और यदि आप हार नहीं मानोगे तो वे पंख और बढ़ेंगे, जिससे कि एक दिन आप दोनों आसमान में उकाब के समान उड़ोगे, जैसे कि परमेश्वर चाहते हैं।”
3) सब कार्य साथ मिलकर करें, तब आप शैतान पर जयवन्त होंगे।
तीसरा चुनाव है कि आपको सब कार्य साथ मिलकर करने हैं। जब आदम और हव्वा वाटिका में गए तब परमेश्वर ने उन्हें एक साथ भेजा। लेकिन शैतान ने आकर हव्वा को अलग करके उससे अकेले में बात की। आदम वहाँ खड़ा रहा और उसने अनुमति दी कि उसकी पत्नी वह घातक चुनाव खुद ही कर ले। आदम को बोलना चाहिए था कि “रुको प्रिय, तुम्हें याद है परमेश्वर ने हमसे क्या कहा था? हमें उस वृक्ष से नहीं खाना चाहिए।” कितनी अलग कहानी होती यदि आदम इस प्रकार कहता।
जब पति और पत्नी एक-दूसरे से अलग होकर कार्य करने की कोशिश करते हैं तब कई समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं। आप शैतान का सामना अकेले नहीं कर सकते। शैतान केवल ऐसे मौके ढूँढ रहा है कि आपके घर और जीवन में किस प्रकार गड़बड़ी लाए। घर ही पहला स्थान है जिस पर उसने हमला किया और आज भी वह वही हमला करता है। जैसे यीशु मसीह ने कहा, शैतान चोरी करने, हत्या करने और नाश करने के लिए आता है लेकिन यदि आप दोनों एकजुट रहोगे तो शैतान पर जयवन्त हो सकते हो।
सभोपदेशक 4:9-12 में लिखा है, “एक से दो बेहतर हैं, क्योंकि यदि उनमें से कोई एक गिरे तो दूसरा उसको उठाएगा। जो अकेला खड़ा होता है उस पर आसानी से वार करके शैतान विजय पा सकता है। तीन तो उससे भी बेहतर हैं। तीन धागों की डोरी जल्दी नहीं टूटती।”
मत्ती 18:18-20 में इन वचनों से जुड़ा हुआ एक अद्भुत वायदा है। ज़्यादातर पति-पत्नी इस वायदे का दावा नहीं कर पाते हैं क्योंकि इसके लिए ज़रुरी है कि वे आपस में एक साथ रहें। मैं इस वायदे को आप दोनों से बाँटना चाहता हूँ क्योंकि मेरे और ऐनी के विवाहित जीवन के करीबन पचास वर्षों में इस वायदे के द्वारा अद्भुत रीति से प्रार्थनाओं के उत्तर मिले हैं।
यहाँ लिखा है कि यदि आप दोनों एकता में रहें और अपनी आत्मा में सहमत हो तब आप जो कुछ माँगो, स्वर्ग से तुम्हारा पिता तुम्हारी माँगी हुई प्रार्थना का उत्तर प्रदान करेगा (18 वचन); क्योंकि यीशु मसीह तुम्हारे मध्य में है (20 वचन) आप दोनों (यीशु मसीह के साथ जो तीसरा व्यक्ति है) शैतान के कार्यों को बाँध सकते हो और वे बँध जायेंगे (वचन 18)। आप दोनों तीन धागों की डोरी के समान होंगे जो अटूट रहेगी।
परमेश्वर आपके जीवन की कोई भी समस्या का समाधान कर सकते हैं। आप सैंकड़ों ऐसी समस्याओं से गुज़र सकते हैं जिसका समाधान किसी मनुष्य के पास नहीं है। लेकिन परमेश्वर के लिए ऐसी कोई भी समस्या नहीं जिसको वह सुलझा नहीं सकते। लेकिन आप दोनों को एकता में रहना होगा, तभी परमेश्वर आपकी समस्याओं का समाधान करेंगे। इसलिए सब कार्य एक साथ मिलकर करें।
जैसे ही आपको एहसास हो कि आपने अपने साथी को चोट पहुँचाई है तब तुरन्त ही क्षमा माँग लें, टालिए मत। हर कीमत पर अपनी एकता को बनाए रखें चाहे आपको उसके लिए संसार में कुछ भी खोना क्यों न पड़े। अपनी एकता को बनाए रखो ताकि जब आप प्रार्थना करो तो परमेश्वर से शीघ्र ही उत्तर मिले और तब शैतान आपके घर में प्रवेश नहीं कर सकेगा। यह परमेश्वर का वायदा है।
अंत में एक बात और कहना चाहता हूँ, आपके विवाहित जीवन में हर एक विचार, कार्य और मुँह से निकला शब्द यदि प्रेम से प्रेरित नहीं है तो वह एक दिन नाश हो जाएगा।
हर एक कठिनाई पर जयवन्त होने के लिए परमेश्वर का प्रेम आपको मदद करेगा। वह सारे बंद दरवाज़े खोल देगा और दीवारें तोड़ देगा। अगर आप इस प्रेम का अनुकरण करोगे तो संसार में सबसे आनंदित विवाहित जीवन आपका होगा।
सही व्यक्ति को चुनना ही केवल काफी नहीं है। वो तो आपने कर लिया है। लेकिन अब आपको आगे अपने विवाहित जीवनभर में सही चुनाव करने हैं।
यदि प्रेम के इस सिद्धान्त को अपनाओगे तो आपके विवाहित जीवन की सबसे बढ़िया शुरुआत होगी। और यदि प्रतिदिन इसी मार्ग पर आप निरन्तर बने रहोगे, तो आप इस अधर्मी पीढ़ी को यह सिद्ध कर दोगे कि परमेश्वर का प्रेम हर समस्या पर जयवन्त होता है और वह कभी असफल नहीं होता। और आपके जीवन में परमेश्वर की महिमा होगी।
मैं प्रार्थना करता हूँ कि आपका घर परमेश्वर के लिए एक महान गवाही बने। मैं प्रार्थना करता हूँ कि यह वचन जो आपने सुने हैं केवल शब्द नहीं लेकिन आपके जीवन में देहधारी बनें, जिससे आपका घर दूसरों के लिए ज्योति बन सके।
यह संसार ज़रुरतमन्दों से भरा है। अगर परमेश्वर आपके जीवन में कुछ कार्य कर सकता है और यदि वह अपना प्रेम आपके द्वारा प्रकट कर सके तो वह आपका उपयोग करेगा। मेरे इन वचनों को स्मरण रखें। आपके आसपास इस संसार में कई ज़रूरतमंद घर हैं, जिन्हें मदद के लिए वह आपका उपयोग करेगा।
परमेश्वर आप दोनों को आशीष दें। आमीन।
(संदेश जो मेरे तीसरे बेटे संदीप और लौरा के विवाह में दिया गया था)
सबसे पहले विवाह का संचालन परमेश्वर ने एक वाटिका में किया था। यह अच्छी बात है कि आज हम भी ऐसे ही एक जगह पर उपस्थित हैं। अदन भी ऐसी ही वाटिका थी जैसा हम यहाँ से देख रहे हैं, लेकिन इससे भी खूबसूरत। इसलिए इस विवाह के लिए हम परमेश्वर के शुक्रगुज़ार हैं कि हम यहाँ पर एकत्रित हो सके।
संदीप और लौरा, मैं आपको एक वायदा देना चाहता हूँ जो यशायाह 58:11 से है, “तुम एक सींची हुई वाटिका के समान होंगे।” मैं उसमें यह जोड़ना चाहता हूँ, फ्तुम्हारा विवाह एक सींची हुई वाटिका के समान होगा।”
उत्पत्ति 2 अध्याय में ऐसा लिखा है, “प्रभु परमेश्वर ने एक वाटिका बनाई और स्त्री और पुरुष को वहाँ रखा कि वे उसकी देखभाल और सिंचाई करें।” लेकिन परमेश्वर ने आदम और हव्वा को सिंचाई करने के लिए एक और वाटिका दी और वो था उनका पारस्परिक संबंध। परंतु इस वाटिका की सिंचाई उन्होंने नहीं की। उन्होंने शैतान को उनके बीच आने दिया।
परमेश्वर ने आप दोनों को एक वाटिका सिंचाई करने के लिए दी है। एक वाटिका जल्द ही जंगल बन सकता है यदि सही ढंग से उसकी देखभाल न की जाए। नीतिवचन 24:30-34 में हम एक आलसी व्यक्ति की वाटिका के बारे में पढ़ते हैं, जो एक जंगल बन गया था। यही बहुत सारे विवाहों में हुआ है। लेकिन ऐसा आपके साथ नहीं होना चाहिए। परमेश्वर का आप दोनों के लिए यह वायदा है, “आपका विवाह एक सींची हुई वाटिका के समान होगा।”
मैं पवित्र बाइबल में पाए गए तीन वाटिका के बारे में बताना चाहता हूँ।
1) अदन की वाटिका
2) गतसमनी और कलवरी की वाटिका
3) दूल्हे की वाटिका (श्रेष्ठगीत में)
पाप का एक वाटिका में प्रवेश हुआ और उद्धार का भी एक वाटिका में ही प्रवेश हुआ। और आपका विवाह एक ऐसी वाटिका के समान बन सकता है जो यीशु मसीह की महिमा करे।
उस वाटिका में पाप का प्रवेश कैसे हुआ? इसका मूल कारण आदम और हव्वा की दो गलत मनोवृति थी।
सर्वप्रथम था घमंड। उन्होंने सोचा कि वे परमेश्वर से अधिक जानते हैं। उन्होंने सोचा कि वे परमेश्वर के आदेश का उल्लंघन करके बच निकल सकते हैं। वैसे ही आज भी संसार में बहुत सारे लोगों की विचार धारणा है।
दूसरा था स्वार्थ। उन्होंने सोचा कि फल खाने से उन्हें क्या लाभ मिल सकता है। पवित्र बाइबल में लिखा है कि “स्त्री ने उस फल को देखा जो दिखने में मनभावना, चाहने योग्य और उसे बुद्धिमान बना देने वाला था।”
आदि में पाप की उत्पत्ति घमंड और स्वार्थ से हुई। आज मनुष्य जाति में पाए जाने वाले सारे पापों की जड़ यही है और वह कई रूप में प्रकट होता है।
मूल रूप से मनुष्य स्वयं में केन्द्रिता और परमेश्वर से स्वतंत्र होकर जीना चाहता है। इसी तरह पाप प्रवेश करता है।
पाप एक वाटिका में आया। और यीशु मसीह ने भी हमारे उद्धार की उत्पत्ति एक वाटिका में की।
गतसमनी की वाटिका के बारे में कई लोग जानते हैं। लेकिन कई लोग यह नहीं जानते कि यीशु मसीह को एक वाटिका में ही क्रूस पर चढ़ाया गया था और वाटिका में ही दफनाया भी गया था। यूहन्ना 19:41 में लिखा है, “उस स्थान पर जहाँ यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था, एक बारी थी और उस बारी में एक नई कब्र थी जिसमें कभी कोई न रखा गया था।”
यीशु मसीह एक वाटिका में ही धोखे से पकड़वाए गए, उन्हें वाटिका में ही क्रूस पर चढ़ाया गया, और वाटिका में ही दफनाया गया और फिर वह जी उठे भी एक वाटिका में ही। अब आप दोनों के लिए उद्धार भी उस वाटिका में ही आया है। यीशु मसीह ने जो कुछ उस वाटिका में किया, उसका लाभ आज आपको मिल सकता है।
आदम की जाति में पाए जाने वाले अभिमान और स्वार्थ के एकदम विपरीत हम यीशु मसीह के धरती पर जिए हुए जीवन में देखते हैं।
यीशु मसीह के जीवन में हम दीनता देखते हैं। वे वही करना चाहते थे जो उनके पिता चाहते थे कि वे करें, चाहे वह क्रूस पर मरना ही क्यों न हो। उन्होंने तुरंत ही वह मार्ग चुन लिया बिना किसी हिचकिचाहट के।
यीशु मसीह अपनी नहीं पर निःस्वार्थ होकर दूसरों की ज़रूरत के बारे में सोचते थे। दूसरों के लिए वह स्वयं को बलिदान करने के लिए भी तैयार थे। और वे चाहते थे कि ऐसी ही मनोवृत्ति आप दोनों में भी हो।
मैं तीसरी वाटिका के बारे में बताना चाहता हूँ जिसके विषय में कई मसीही ज़्यादा नहीं जानते। इस वाटिका का वर्णन श्रेष्ठगीत में किया गया है (जो कि दूल्हे और दुल्हन के बीच अर्थात पति और पत्नी के बीच के संबंध को दर्शाता है।)
श्रेष्ठगीत 4:12 में दूल्हा कहता है, “मेरी दुल्हन एक निजी वाटिका के समान है।” यहाँ पर दूल्हा यीशु मसीह है। और हम उसकी दुल्हन केवल उसी के लिए आरक्षित की गई एक वाटिका है। सबसे पहले आपको यह बात समझने की ज़रूरत है कि आपको अपने विवाहित जीवन में एक साथ मिलकर वाटिका लगाना है। लेकिन यह वाटिका मुख्य रूप से आपके या दूसरों के लाभ के लिए नहीं है किन्तु प्रभु के लिए हैं। यह स्मरण हरदम रखें कि आपका विवाह प्रभु के लिए एक निजी वाटिका है। और फल स्वरूप उसके द्वारा अन्य लोग भी आशीषित होंगे।
यीशु मसीह ने यही सिखाया। जब किसी ने उससे पूछा कि व्यवस्था में सबसे बड़ी आज्ञा क्या है? यीशु ने उत्तर दिया, “सबसे बड़ी आज्ञा यह है कि परमेश्वर को अपने पूरे हृदय से प्रेम करो, और तभी आप अपने पड़ोसी को अपने समान प्रेम कर पाओगे।” मत्ती 22:38-40
हमारे जीवन की शुरुआत हमेशा परमेश्वर से होनी चाहिए। इसलिए परमेश्वर ने आदम और हव्वा की सृष्टि अलग-अलग की, एक साथ नहीं ताकि जब आदम अपनी आँखें खोले तो वह सर्वप्रथम परमेश्वर को देखें, हव्वा को नहीं। और उसके पश्चात जब हव्वा की सृष्टि हुई और जब उसने अपनी आँखें खोली तब उसने सर्वप्रथम परमेश्वर को देखा, आदम को नहीं। यदि आप चाहते हैं कि आपका विवाह एक सींची हुई वाटिका के समान बने, तो आपके जीवन में भी हरदम ऐसा ही होना चाहिए।
हर वाटिका को बरसात की ज़रूरत होती है। और हमें नई वाचा में यह अवसर मिलता है कि हम पवित्र आत्मा से भर जाएँ जो कि स्वर्ग की बरसात है। मैं आपको प्रोत्साहित करता हूँ कि आप पूरे हृदय से इस विषय में परमेश्वर को खोजें। पवित्र आत्मा से भरने का मतलब यह है कि अपने जीवन के हर क्षेत्र को पवित्र आत्मा के नियंत्रण में लाना। इसलिए प्रतिदिन अपने आपको स्वर्ग की बरसात के लिए खोल दें।
मैंने पाया कि पूर्वीय संस्कृति और पश्चिमी संस्कृति में काफी अंतर है। लेकिन दोनों संस्कृतियों में घमंड पाया जाता है। पूर्वीय संस्कृति- भारत में पाए जाने वाली शादियों में, ऐसे गाया नहीं जाता कि “देखो दुल्हन आ रही है”। वे यह गाते हैं, “देखो, दूल्हा आ रहा है।” कुछ भारतीय शादियों में दूल्हा घोड़े पर सवार होकर आता है, क्योंकि दूल्हा पूर्वीय विवाह में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति है और दुल्हन घोड़े के पीछे चलती हुई आती है, क्योंकि वह महत्वपूर्ण नहीं है। यह भारतीय संस्कृति है।
जबकि पश्चिमी संस्कृति में इसके विपरीत है। वहाँ सभा में दुल्हन के प्रवेश करने पर सब खड़े हो जाते हैं। लेकिन दूल्हे के लिए कोई खड़ा नहीं होता। क्योंकि अधिक महत्व यहाँ दुल्हन का होता है, “देखो, दुल्हन आ रही है।”
लेकिन मसीही संस्कृति में ऐसा होना चाहिए, “देखो, प्रभु आ रहा है।” पूर्वीय संस्कृति और पश्चिमी संस्कृति दोनों पाप से दूषित हैं। एक संस्कृति में पुरुष महत्वपूर्ण है और दूसरे में स्त्री। लेकिन जब प्रभु को पहला स्थान दिया जाता है, तब आप कह सकते हैं, “देखो, प्रभु आ रहा है।”
भारतीय संस्कृति में दूल्हा इस बात पर घमंड करता है कि “मैंने जाकर उसे नहीं माँगा। उसके पिता आए थे मुझे माँगने”। क्या आप यहाँ घमंड की भावना को देख सकते हो? पश्चिमी संस्कृति में दुल्हन कहती है, “मैं उसको ढूँढते हुए नहीं गई, उसने आकर मुझसे विनती कर मुझे मनाया।” यहाँ भी घमंड है।
परंतु मसीही संस्कृति में हम नम्रता से यह कहते हैं कि “परमेश्वर हम दोनों को एक साथ लाए। हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं और हम दोनों उसकी नज़र में एक समान हैं।”
मैं आप दोनों को प्रोत्साहित करना चाहता हूँ कि आप अपनी निजी संस्कृति के घमंड से ऊपर उठकर एक मसीही बनें। हर सुबह आपका यह गीत हो, “देखो, प्रभु आ रहा है” और आप दोनों उसके नम्र सेवक बनो। तब आपका विवाहित जीवन एक सींची हुई वाटिका के समान होगा। घमंड के साथ स्वार्थ भी कई संस्कृतियों में सामान्य रूप से पाया जाता है। जब कोई पुरुष विवाह के लिए किसी लड़की को खोजता है, तब वो स्वार्थ से सुंदरता की खोज में रहता है। और जब कोई स्त्री विवाह के लिए किसी पुरुष को खोजती है तब वह स्वार्थ से पैसों की ओर देखती है। विश्व के हर कोने में यह बात सत्य है।
लेकिन मसीही संस्कृति में मुख्य रूप से आप ऐसे व्यक्ति को चुनते हैं जो प्रथम परमेश्वर से प्रेम करे और उसको आदर दे और इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप दोनों मानवजाति में पाए जाने वाले स्वार्थ से ऊपर उठो।
क्योंकि आप दोनों अलग-अलग संस्कृतियों से हो, मैंने सोचा कि इस बात को स्पष्ट कर दूँ कि कोई भी संस्कृति अन्य किसी संस्कृति से बेहतर नहीं है। पूर्वीय सोचते हैं कि वे पश्चिमी लोगों से बेहतर हैं और पश्चिमी राज्यों के निवासी मानते हैं कि वे पूर्वीय से बेहतर हैं। लेकिन वे दोनों ही गलत हैं। मसीही संस्कृति सबसे उत्तम है और परमेश्वर चाहता है कि आप इसी का पीछा करें।
मैंने ‘गूगल’ में यह खोजा कि एक अच्छे वाटिका को कैसे बनाएँ और जो पाँच नियम मुझे मिले वह यह हैं।
यह सब नियम है जो परमेश्वर ने स्वयं इस विश्व भर में अपने सब वाटिकाओं के लिए बनाए हैं। इसलिए अपने परिवार को प्राथमिकता दें।
और अब श्रेष्ठगीत 4:16 में देखें, “हे उत्तर वायु जाग, और हे दक्षिण वायु चली आ (उत्तरी वायु ठंडी है और दक्षिणी वायु गर्म है) मेरी वाटिका पर बह, जिससे उसकी सुगंध फैले। और मेरा प्रिय प्रभु आए इस वाटिका में और उसके उत्तम फल खाए।”
हर विवाहित जीवन में हम ठंडी उत्तरी वायु की विपत्ति और गर्म दक्षिणी वायु की संपन्नता का सामना करते हैं। लेकिन जब यीशु हमारा सिर है और हम उसे अनुमति देते हैं कि वह हमारे जीवन का संचालन करे और तब चाहे हमें मुसीबत का सामना करना पड़े या संपन्नता का, परीक्षा या सुविधा- यह दोनों वायु हमारे द्वारा यीशु मसीह के सुगंध को चारों ओर फैला देगी।
संसार में ऐसा करना संभव नहीं है। संसार में लोग हर विषय में शिकायत करते रहते हैं। यहाँ तक कि विपत्ति के समय वे परमेश्वर के विरोध में शिकायत करते हैं। संसार में हर एक जन दक्षिणी वायु की संपन्नता तो सह लेता है लेकिन उत्तरी वायु की विपत्ति को सह नहीं पाता।
लेकिन यीशु मसीह की दुल्हन मुसीबत और संपन्नता दोनों में जयवंत हो सकती है। यही बात आप दोनों के लिए और हम सब के लिए भी जो विवाहित हैं इसी प्रकार से हो सकती है।
और अंत में हम पढ़ते हैं कि “मेरा प्रिय इस बगीचे में आए और उत्तम फल खाए।” आपकी मुसीबत में पाए जाने वाले विजय केवल परमेश्वर को दिखाने के लिए ही होने चाहिए, न कि अन्य लोगों के सामने दिखावा करने के लिए। परमेश्वर गुप्त में आपके जीवन को देखते हैं, जब अन्य लोग नहीं देख सकते। और जब प्रभु आपके बगीचे में आते हैं, उन्हें कुछ मिलना चाहिए जो उनके हृदय को आनंदित कर दे।
परमेश्वर आप दोनों को आशीष दे। आमीन।
(संदेश जो मेरे चौथे बेटे सुनील और अनुग्रह के विवाह में दिया गया था)
परमेश्वर का वचन ही हमारे जीवन, घर और अन्य सब कुछ जो इस संसार में है उसकी नींव है, क्योंकि परमेश्वर ने इस संसार की सृष्टि अपने वचन से की थी। इसलिए अगर हम सिर्फ परमेश्वर के वचन को हमारी बुनियाद रखेंगे, तो कुछ गलत नहीं हो सकता।
निर्गमन 25 में हम देखते हैं कि पहली बार परमेश्वर अपनी इच्छा को प्रकट कर रहे हैं कि वे मनुष्य के साथ वास करना चाहते हैं। परमेश्वर निर्गमन 25:8 में कहते हैं, “वे मेरे लिए एक पवित्र स्थान का निर्माण करें कि मैं उनके मध्य निवास करूँ”। यह बात तम्बू के संबंध में कही गई थी जहाँ परमेश्वर की अग्नि आकर ठहरी थी जो परमेश्वर की महिमा थी। जिसने इस्राएलियों को विश्व के अन्य सभी जातियों से अलग रखा था।
निर्गमन में वर्णन किए गए तम्बू जैसा एक तम्बू बनाना आसान है क्योंकि उसका नाप भी वहाँ दिया गया है। हम उस तम्बू की सटीक नकल कर सकते हैं परंतु वहाँ एक चीज़ थी जिसकी नकल हम नहीं कर सकते और वह थी परमेश्वर की महिमा जो उस पर आकर ठहरी थी। उस पवित्र स्थान का सबसे महत्वपूर्ण भाग था, परमेश्वर की महिमा जो उस पर ठहरी थी और यह बात दर्शाती है कि परमेश्वर की उपस्थिति उनके बीच थी।
सुनील और अनुग्रह अब जब आपका विवाह हो रहा है तब सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर आप अपने घर को परमेश्वर के लिए एक पवित्र स्थान बनायें, परंतु ऐसी जगह नहीं जहाँ आप एक दूसरे को खुश रखना चाहते हो, हालांकि आपको एक दूसरे को खुश रखना चाहिए, और ऐसी जगह भी नहीं जहाँ आप अन्य लोगों के लिए आशीष का कारण बनो। हालांकि आपका घर अन्य लोगों के लिए आशीष का कारण होना चाहिए, लेकिन मुख्य रूप से एक ऐसी जगह जहाँ परमेश्वर अपनी उपस्थिति को प्रकट कर सके, और यीशु मसीह वहाँ स्वयं आराम महसूस कर सकें। परमेश्वर कहते हैं कि वे मेरे लिए एक घर बनायें जहाँ मैं वास कर सकूँ।
और मैं आप दोनों से कहना चाहता हूँ, परमेश्वर आपको आज्ञा दे रहे हैं कि आप एक ऐसा घर बनाएँ जहाँ परमेश्वर वास कर सके।
हम सब जानते हैं कि जब हम कुछ घरों में जाते हैं वहाँ आराम महसूस नहीं होता है। लेकिन कुछ घर ऐसे भी होते हैं जहाँ प्रवेश करते ही हम पूरी तरह से आराम महसूस करते हैं। इस एहसास का वर्णन करना मुश्किल है परंतु हम सब इसे जानते हैं। एक मसीही घर भी ऐसी जगह होना चाहिए जहाँ यीशु मसीह पूरा आराम महसूस कर सकें। इसका मतलब यह है कि वह आपके घर के सभी बातों से खुश हैं। वह आपके द्वारा पढ़ी गई किताबों से, पत्रिकाओं से, पति और पत्नी के आपस में बात करने के ढंग से, आपके द्वारा बात किए गए विषयों से, टीवी पर देखे जाने वाले कार्यक्रमों से, और अन्य सभी बातों से खुश हैं। कई मसीही घरों में बाइबल के वचन दीवारों पर टंगे होते हैं, लेकिन यीशु मसीह उनके घर में आराम महसूस नहीं करते हैं।
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कितनी उम्मीद के साथ परमेश्वर ने आदम और हव्वा को एक साथ मिलाया। एक पिता होने के नाते परमेश्वर के पास उनके लिए कितनी अद्भुत योजनाएँ थीं। मैं एक पिता हूँ और मैं जानता हूँ कि कितनी उम्मीद के साथ अपने पुत्र का विवाह होते देख रहा हूँ। जब परमेश्वर ने आदम और हव्वा को साथ जोड़ा था, तब जो उन्होंने महसूस किया होगा, उसकी तुलना मैं जो आज महसूस कर रहा हूँ, वह केवल एक छोटा सा भाग है। परमेश्वर चाहते थे कि उनका एक अद्भुत घर हो जहाँ उन्हें प्राथमिकता मिले। लेकिन कैसे जल्द ही परमेश्वर निराश हो गए। परमेश्वर उनसे क्रोधित नहीं थे लेकिन वे उदास थे। मैं विश्वास करता हूँ कि आज भी परमेश्वर अत्यंत दुखित होते हैं, जब वह बहुत सारे मसीही घरों को देखते हैं जहाँ शांति नहीं है, लेकिन सिर्फ झगड़े और लड़ाईयाँ हैं। वे परमेश्वर की ओर केवल तब मुड़ते हैं जब उनके जीवन में कोई समस्या आती है। इस संसार के लोग परमेश्वर की ओर तब मुड़ते हैं जब वे कठिनाईयों का सामना करते हैं। लेकिन मसीही होने के नाते हममें कुछ भिन्नता होनी चाहिए। परमेश्वर ऐसा कोई आपातकालीन नंबर नहीं है जिसे हम विपत्ति आने पर ही बुलायें। परमेश्वर हमेशा हमारे जीवन का केन्द्र होना चाहिए।
परमेश्वर का वचन हमें एक ‘निर्माता के निर्देश’ जैसा दिया गया है, जिसे कोई वस्तु के खरीदने पर मिलता है। एक विद्युत यंत्र खरीदने के पश्चात उसके निर्माता के निर्देशों का पालन करने में हम सब तत्पर रहते हैं। जब उस यंत्र में कोई समस्या आती है और आप उसे उसके निर्माता के पास ले जाते हैं, तो पहला सवाल जो वह आपसे पूछेगा, वह यह है “क्या आपने निर्माता के निर्देश पुस्तिका का ठीक से पालन किया?” कई गारंटी कार्डों में लिखा होता है कि निर्देशों का यदि सही तरीके से पालन नहीं करने पर गारंटी अवैध हो जाएगी।
लेकिन परमेश्वर की यह विशेषता है कि जब भी हम उनके पास हमारे उलझे हुए जीवन को लेकर जाते हैं, वे उसे ठीक करने की इच्छा रखते हैं। और उनकी गारंटी केवल एक साल की नहीं होती है परंतु जीवन भर के लिए होती है। यदि आप उनके पास अपने टूटे हुए जीवन को लेकर आएँगे तो वह उसे ठीक कर देंगे। और यही बात परमेश्वर में अद्भुत है। वे एक प्रेमी पिता है। और यह महत्वपूर्ण बात आप जान लें कि जो परमेश्वर आपको अपने घर में उसके लिए पवित्र स्थान बनाने को कह रहा है वह एक प्रेमी पिता है। वे पहले दिन से ही आपके जीवन में बहुत रुचि रखते हैं और वे चाहते हैं कि यीशु मसीह के लौटने तक आप उसमें आनंदित रहें।
मैंने उस आनंद का एक छोटा भाग मेरी पत्नी के साथ अपने विवाहित जीवन के कई वर्षों में चखा है। और मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि सबसे अद्भुत जीवन वह है जिसमें यीशु मसीह आपके जीवन का केंद्र हो और आपके घर में सब कुछ इस बात पर निर्भर है कि क्या यीशु मसीह उससे आनंदित है या नहीं। जिस ढंग से आप अपना समय बिताते हैं, पैसे खर्च करते हैं और अन्य जो कुछ भी आप करते हैं। यदि आप इस प्रकार अपना जीवन बिताते हैं, तो आपके जीवन के अंत में या यीशु मसीह के पुनः आगमन पर जब आप परमेश्वर के सामने खड़े होंगे तब वे कहेंगे “बहुत खूब।” तब यह महत्व नहीं रखता कि अन्य लोग आपके बारे में क्या सोचते थे।
मनुष्य की एक विशेषता है कि वह बाहरी रूप से न्याय करता है। मैंने भी कई सालों तक ऐसा ही किया जब मैं केवल नियम पालन करने वाला व्यक्ति था। लेकिन अब मैं स्पष्ट रूप से समझता हूँ कि परमेश्वर की दृष्टि हमारे हृदय पर है। मैं चाहता हूँ कि आप दोनों इस बात को याद रखें कि आपका हृदय ही वह जगह है जिसे हर-दम शुद्ध रहना चाहिए। यह महत्वपूर्ण नहीं कि आपका घर राजमहल है या झोंपड़ी, बाहरी रूप महत्वपूर्ण नहीं है। परमेश्वर आपके हृदय को देखता है। इसलिए ध्यान दें कि आप दोनों के हृदय एकसाथ मिलकर परमेश्वर के लिए पवित्र स्थान बनें जहाँ परमेश्वर वास कर सके।
परमेश्वर कहाँ वास करते हैं? सर्वप्रथम उस घर में जहाँ शांति हो। जब यीशु मसीह ने उनके शिष्यों को विभिन्न जगह में शुभ संदेश बाँटने के लिए भेजा, तब उसने उनसे लूका रचित सुसमाचार 10:5-7 में यह कहा कि ऐसे घर को खोजो जहाँ शांति हो। और जब उन्हें ऐसा घर मिल जाए तो उन्हें वहीं ठहरना था और कोई दूसरा घर नहीं ढूँढना था। यीशु ने ऐसा क्यों कहा? क्योंकि यीशु मसीह जानते थे कि शिष्यों को ऐसे बहुत कम घर ही मिलेंगे।
परमेश्वर ऐसे घर में वास करते हैं जहाँ कोई झगड़ा न हो। पति और पत्नी अक्सर किस विषय को लेकर झगड़ते हैं? अधिकतर किसी भौतिक विषय पर जब कोई सांसारिक विषय में कुछ गड़बड़ी हो जाती है। इस संसार में गलत तो होता ही रहेगा। लेकिन जब कुछ गलत हो जाए तो यह याद रखना कि सबसे गंभीर बात केवल पाप ही है। बाकी सब विषय गंभीर या महत्वपूर्ण नहीं हैं। मैं आशा करता हूँ कि आप दोनों इस बात को स्पष्ट रूप से समझ लें कि अगर कोई चीज़ यदि गंभीर है तो वह पाप है। यदि आप में कभी भी कोई कड़वाहट आती है और सांसारिक विषयों के कारण आप एक-दूसरे से बात नहीं करते हो तो यह परमेश्वर के हृदय को चोट पहुँचायेगा। मैं आपसे एक छोटी सी ज्ञान की बात बाँटना चाहता हूँ।, “पाप से घृणा करें, क्योंकि वही एकमात्र ऐसी बात है जो आपके विवाह को नष्ट कर सकती है।”
याद रखें कि आपका घर परमेश्वर के लिए एक पवित्र स्थान बने। यदि आपके घर में कुछ ऐसा आ जाए जो आपके घर की शांति को भंग करे, तब आपका घर एक पवित्र स्थान नहीं ठहरेगा। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि परमेश्वर आपसे क्रोधित होंगे या आपको श्राप देंगे, नहीं। वह कभी भी आपसे क्रोधित नहीं होंगे और न कभी श्राप देंगे। लेकिन वह दुःखी ज़रूर होंगे। और मुझे आशा है कि आप भी यही चाहते हैं कि यीशु मसीह पहले दिन से ही आपके घर से आनंदित रहें।
मैं प्रार्थना करता हूँ कि आपके सारे कामों में आप कहें कि “प्रभु जी हमें इस बात की चिंता नहीं है कि लोग हमसे खुश हैं या नहीं। क्या आप खुश हैं? क्या आप हमारे जीवन के विचारों से और एक दूसरे के प्रति हमारी भावनाओं से नाखुश हैं? हम चाहते हैं कि आप हमारे घर में आनंदित रहें। हम अपने जीवन के सभी कार्य को इस प्रश्न से जाँचना चाहते हैं कि क्या यह परमेश्वर को प्रसन्न करेगा?”
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि तब आपका घर कैसा होगा? उसमें वही परमेश्वर की महिमा होगी जो तम्बू पर उतरी थी। और आपके घर के द्वारा लोग जीविते परमेश्वर की ओर आकर्षित होंगे।
परमेश्वर वहाँ वास करते हैं जहाँ पति और पत्नी शांति बनाए रखने के लिए अपने हक को त्यागने के लिए तैयार होते हैं। एक बार एक नौजवान पति और पत्नी मेरे पास आए, और उनको शीघ्र ही रेलगाड़ी पकड़नी थी और उन्होंने मुझसे कहा, “भाई जैक क्या आप हमें दो मिनट के लिए कोई सीख दे सकते हैं?” मैंने कहा, “हाँ ज़रूर, हरदम एक-दूसरे से क्षमा माँगने के लिए तैयार रहें और क्षमा करने के लिए भी।”
यदि कुछ गलती करने पर आप जल्द ही क्षमा माँगने के लिए तैयार रहते हो और जब सामने वाला क्षमा माँगता है तब उसे क्षमा करने के लिए भी तैयार होते हो, तब मैं आपको यह लिखित गारँटी देता हूँ कि आपका घर प्रतिदिन शांति से भरा रहेगा।
आपका घर ऐसा हो सकता है। परंतु आपको इस विषय में अति संवेदनशील बनना पड़ेगा। यदि आपके पाँव में काँटा चुभ जाए, तब उसे निकालने में आप ज़रा भी इंतज़ार नहीं करोगे। ठीक उसी प्रकार से जब आपके हृदय में अशांति होती है तो उसे तुरंत ही निकाल दें। वह एक काँटा है और वह आपको नाश कर देगा। वह आपके हृदय में, पाँव में लगी चोट से अधिक दर्द पहुँचाएगा। हर कीमत पर शांति का पीछा करें। चाहे आपको पैसा या अन्य वस्तु खोना क्यों न पड़े। यह सब चीज़ें शांति से अधिक महत्वपूर्ण नहीं हैं। मैं आशा करता हूँ कि आप दोनों इस बात को समझ लें कि यदि शांति और धन को तराज़ू में तौला जाए तब शांति धन से अधिक भारी होगी। हरदम इस बात को स्मरण रखें।
क्या किसी दिन घर में कुछ बुरा हुआ? या खाना जल गया? कोई बात नहीं। इससे क्या फर्क पड़ता है कि खाना जल जाने के कारण आप एक पहर का खाना नहीं खा पाए। इससे आप और अधिक स्वस्थ और बलवंत बन सकोगे और शायद अधिक आत्मिक भी। परंतु यदि आप इस बात पर नाराज़ हो जाते हैं तब शैतान विजय पा लेगा।
परमेश्वर द्वारा स्थापित किए गए उस पहले घर में क्या हुआ था इस बात को याद रखें। शैतान कौने में इंतज़ार कर रहा था कि वह आदम और हव्वा के बीच में आ जाए। और वह सफल भी हुआ। वह अय्यूब और उसकी पत्नी के बीच भी आया, और वह इसहाक और रिबका के बीच में आने में भी सफल हुआ।
यह परमेश्वर की इच्छा कदापि नहीं कि शैतान पति और पत्नी के बीच आए। और ऐसा आपके जीवन में कभी न होने पाए। परमेश्वर आपके घर से हरदम प्रसन्न रहे और हर क्षण आपको शांति प्रदान करें।
दूसरी बात जो मैं आपको बताना चाहता हूँ वह यशायाह 57:15 से है, “परमेश्वर ऊँचे और पवित्र स्थान में वास करता है और उन में जो आत्मा में नम्र और दीन हैं।” परमेश्वर नम्र और टूटे हुए मन में वास करते हैं। एक टूटा हुआ व्यक्ति वह होता है जो दूसरों से अधिक अपनी कमी और असफलता को पहचानता हो। संसार ऐसे लोगों से भरा है जिन्हें दूसरों की कमियों का ज्ञान है। किसी भी सामान्य घर में अधिकतर चर्चा असफल परिवारों और लोगों के विषय में होती है। हम जल्द ही दूसरों की कमियाँ ढूँढ लेते हैं। लेकिन अक्सर हम उनमें भलाई को नहीं पहचान पाते। इस बात में हम सब दोषी हैं। अतीत में इस विषय के लिए मैं भी दोषी रहा हूँ। परंतु परमेश्वर ने इस विषय में मुझे प्रकाश दिया और मैंने पश्चाताप भी किया।
हमें किसी पर भी पत्थर फेंकने का कोई हक नहीं है, क्योंकि हम स्वयं पापी हैं। हम परमेश्वर के अनुग्रह से उद्धार पाए हुए हैं। लेकिन मैं आशा करता हूँ कि हम ऐसे लोग हैं जो एक ही पाप को दोहराना नहीं चाहते, खासकर दूसरों की बुराई करना। हम सब स्नानघर के शीशे और गाड़ी के शीशे में अंतर समझते हैं। स्नानघर के शीशे में हम अपना चेहरा देखते हैं। गाड़ी के शीशे में हम अन्य किसी के चेहरे को देखते हैं। याकूब 1:23-25 में लिखा है कि परमेश्वर का वचन एक दर्पण के समान है। लेकिन क्या यह स्नानघर का दर्पण है या गाड़ी का? उसमें आप किसका चेहरा देखते हो? क्या आप उसमें दूसरों को प्रचार करने के लिए देखते हो? या कुछ ऐसा देखते हो जिसका अनुकरण आपने नहीं किया है? इब्रानियों 10:7 में लिखा है, “पुस्तक में मेरे विषय में लिखा गया है।”
मैंने अपने जीवन के कई वर्ष मूर्खतापूर्ण गंवा दिए, परमेश्वर के वचन को एक गाड़ी के शीशे के समान देखा, पवित्र बाइबल से वचन ढूँढता कि दूसरों को उपदेश दूँ। और उन दिनों मैं एक निराशाजनक वक्ता था और दूसरों को भी इस बंधन में लाया करता था। लेकिन अब मैं उन सारी बातों से आज़ाद हो गया हूँ। आज भी मेरे पास वही संकल्प है, लेकिन अब मैं उनको दूसरों पर नहीं थोपता। मैं उन्हें दूसरों से बाँटता हूँ, लेकिन उनका पालन करने के लिए उन पर ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं करता क्योंकि यह मेरा काम नहीं है। मुझे केवल परमेश्वर के सामने जीना है।
और अब मैं इस अद्भुत सत्य को जान गया हूँ कि किसी अन्य व्यक्ति को उतना प्रकाश नहीं मिला होगा जितना शायद परमेश्वर ने मुझे दिया है। इस सत्य से मुझे पिछले 20 वर्षों में काफी मदद मिली है। परंतु इससे पहले मैं चाहता था कि पाप के विषय में मुझे जितना प्रकाश और समझ थी, हर मनुष्य में भी उतनी ही समझ होनी चाहिए। लेकिन कई वर्षों के अनुभव से मैंने यह जान लिया कि प्रत्येक व्यक्ति के पास एक सीमित स्तर तक ही प्रकाश और समझ होती है। और सर्वशक्तिमान परमेश्वर चाहते हैं कि हर एक मनुष्य अपने प्राप्त किए प्रकाश के अनुसार ही जीवन जीये, अन्य मनुष्य के प्रकाश के आधार पर नहीं। हम जानते हैं कि परमेश्वर ने हमें कितनी समझ और प्रकाश दिया है, परंतु हम यह नहीं जानते कि परमेश्वर ने दूसरों को कितना प्रकाश दिया है। इसलिए हमें दयालु होना चाहिए।
(इस समय वीडियो का प्रकाश किसी ढीले कनेक्शन के कारण बंद हो जाता है)
क्या आपने देखा कि बिजली एकदम कैसे चली गई? यह एक उदाहरण है। कुछ लोग बहुत ज़्यादा रोशनी होने पर ही सही रीति से देख पाते हैं, परंतु कुछ लोग कम रोशनी में भी देख सकते हैं। यह अच्छा हुआ कि परमेश्वर ने अभी इस प्रकाश के चले जाने के द्वारा हमारी आँखों के सामने ही इस सत्य को प्रदर्शित कर दिया।
इसलिए सुनील, यह पहचान लो कि अनुग्रह को कई क्षेत्रें में आपके जितना प्रकाश नहीं होगा।
और अनुग्रह, यह पहचान लो कि सुनील को कई क्षेत्रें में आपके जितना प्रकाश नहीं होगा।
आपको अपने प्रकाश के अनुसार ही जीवन जीना है और आपके साथी को उनके प्रकाश के अनुसार जीने के लिए छोड़ दें।
एक छठी कक्षा का विद्यार्थी, दूसरी कक्षा के विद्यार्थी से अधिक जानता है। इसलिए यदि वह छठी कक्षा का विद्यार्थी यह उम्मीद करता हो कि दूसरी कक्षा के विद्यार्थी को भी उसके जितनी ही समझ हो तो वह मूर्ख है। और यदि मैं 65 साल के उम्र में यह उम्मीद करता हूँ कि एक 26 साल के नौजवान को परमेश्वर के मार्ग के विषय में मेरे जितना प्रकाश और समझ हो, तो मैं मूर्ख ही कहलाऊँगा। परंतु मैं मूर्ख नहीं बनूँगा।
कई मसीही मूर्ख हैं। वे अपेक्षा करते हैं कि उन्होंने जो समझ 30 साल में पाई है, दूसरे उसे एक साल में ही पा लें।
इसलिए इस नवविवाहित पति और पत्नी से मैं कितने ज्ञान की उम्मीद कर सकता हूँ? सिर्फ उतनी ही जितना 20 वर्ष के उम्र के लोगों से होती है।
सुनील और अनुग्रह मैं आपको प्रोत्साहित करना चाहता हूँ कि जितना मैंने आपकी उम्र में मूर्खतापूर्वक कार्य किए थे, उसकी तुलना में आप मुझ से दस गुना कम ही करेंगे। मैं आशा करता हूँ कि आप इस बात से प्रोत्साहित हुए हो। परमेश्वर ने मुझ पर करुणा दिखाई और मेरी कमियों और गलतियों के बावजूद मुझे प्रोत्साहित किया।
मैं आप दोनों को पिता होने के नाते कुछ कहना चाहता हूँ। और अनुग्रह मैं आपका ससुर नहीं हूँ। मैं बहुत पहले ही यह निश्चय कर लिया था कि मैं बहू नहीं परंतु बेटियाँ ही चाहूँगा, क्योंकि मैं व्यवस्था के अधीन नहीं परंतु अनुग्रह के अधीन हूँ। अगले कुछ सालों में आप मुझे इस बात में परख लेना और यह देखना कि मैं तुम्हें एक बेटी मानता हूँ या बहू। और यदि मैं कभी ऐसा करने से चूक जाऊँ तो कृपया मुझे इस बात का स्मरण दिलाना जो मैं आज तुमसे कह रहा हूँ कि मैं तुम्हें एक बेटी ही मानूँगा। और मैं ऐसा करुँगा भी।
मैं आप दोनों को पिता के रूप में यह कहना चाहता हूँ कि मैं कभी भी यह उम्मीद नहीं करूँगा कि आप दोनों में मेरी जितनी समझ या प्रकाश हो। मैं आशा करता हूँ कि जब आप 45 उम्र के हो जाओ, तब आप में भी मेरे जितनी समझ आ जाए। और जब आप 65 उम्र के हो जाओगे मैं आशा करता हूँ कि आपमें मुझ से अधिक बुद्धि और ज्ञान होगा।
इसलिए जब आप ऐसे लोगों से मिलो जो यह उम्मीद करते हैं कि आप में उतना ज्ञान और समझ हो जितनी उन्होंने 40 वर्षों में पायी है, तो ऐसे लोगों की परवाह न करें। यशायाह 42:19 में एक सुंदर वचन है, जो कहता है कि परमेश्वर का सच्चा सेवक अँधा और बहरा होता है। अपने चारों ओर लोगों की राय के प्रति अँधे और बहरे बन जाओ। इस वचन ने मुझे काफी मदद की है। यह आपकी भी मदद करेगा। यदि आप अपने चारों ओर के लोगों की राय या विचार के प्रति अँधे और बहरे बनोगे तभी आप परमेश्वर के मुख के सामने उसके सेवक बनकर रह सकोगे।
इसलिए यह ढूँढने की कोशिश करें कि आप में क्या कमी है न कि उनमें जो तुम्हारी निंदा करते हैं। यदि दूसरे आपकी निंदा करके स्वयं को नाश करना चाहते हैं तो उन्हें ऐसा करने दो। परंतु मैंने कई साल पहले ही यह निश्चय कर लिया कि मैं अपने आपको इस तरह नाश नहीं करूँगा। मैंने अपनी जवानी के दिनों में बहुत मूर्खतापूर्ण कार्य किए लेकिन अब मुझ में थोड़ी समझ और ज्ञान है। पौलुस ने कहा, “जब मैं एक बालक था तो मेरा व्यवहार बालक के समान था, मैं बालक के समान बोलता था और एक बालक की तरह मेरा स्वभाव था। अब मैं बड़ा हो गया हूँ। मैंने बचपना छोड़ दिया है।” (1 कुरिन्थियों 13:11)
मैं आप दोनों को प्रोत्साहित करता हूँ कि आप जल्द ही बड़े हो जाओ।
परमेश्वर उस घर में वास करता है जहाँ पति और पत्नी प्रतिदिन पवित्रता में चलते हैं। यहेजकेल 43:12 में लिखा है, “इस भवन का नियम यह है कि संपूर्ण क्षेत्र अति पवित्र होगा।”
तम्बू के तीन भाग थे- बाहरी आँगन, पवित्र स्थान और परम पवित्र स्थान। इन तीनों में से परम पवित्र स्थान ही सबसे छोटा क्षेत्र था।
लेकिन हम पढ़ते हैं कि नई वाचा में बाहरी आँगन और पवित्र स्थान नहीं रहेगा। पूरा क्षेत्र ही परम पवित्र स्थान होगा। इसका मतलब यह है कि परमेश्वर की महिमा नई वाचा में केवल एक कोने में नहीं ठहरेगी, जैसे तम्बू में थी, लेकिन पूरे विस्तार में रहेगी।
इसका मतलब यह है कि आपके जीवन में हर क्षण आप पवित्र रहोगे, केवल रविवार को नहीं परंतु प्रतिदिन। आप केवल बाइबल पढ़ते समय ही नहीं परंतु हर काम करते समय पवित्र रहोगे। आपके जीवन और घर का हर कोना पवित्र होगा। पवित्रता का मतलब यह नहीं कि धार्मिक परम्पराओं को मानना लेकिन आपमें जितना प्रकाश और समझ है उसके अनुसार ऐसी हर बात से दूर रहना जिससे परमेश्वर घृणा करता है। मैं आशा करता हूँ कि यह आप दोनों के जीवन में सत्य हो।
आपके एकजुट जीवन के प्रति परमेश्वर की एक अद्भुत योजना है। जब परमेश्वर ने सर्वप्रथम आदम की सृष्टि की तब कोई हव्वा नहीं थी। परमेश्वर ने आदम में जीवन का श्वांस फूँका और जब आदम ने अपनी आँखें खोलीं तब उसने सर्वप्रथम परमेश्वर को देखा। और मैं आशा करता हूँ कि सुनील आपके जीवन में हर दिन सर्वप्रथम आप परमेश्वर को देखेंगे। फिर परमेश्वर ने आदम को गहरी नींद में डाल दिया और उसकी एक पसली निकाली और हव्वा की सृष्टि की। और जब हव्वा ने अपनी आँखें खोलीं तब उसने सर्वप्रथम परमेश्वर को देखा। और मैं आशा करता हूँ कि अनुग्रह अपने जीवन के हर दिन सर्वप्रथम आप परमेश्वर को देखोगी। हव्वा आदम के अस्तित्व के बारे में नहीं जानती थी, जब उसने परमेश्वर को देखा उसके पश्चात ही परमेश्वर हव्वा को आदम के पास लेकर आए, और कहा, “अब आप दोनों विवाह कर सकते हो।” और तब वह एक-दूसरे से बहुत प्रेम करने लगे क्योंकि उन्होंने सर्वप्रथम परमेश्वर को देखा।
और जो परमेश्वर ने आदम के लिए किया, सुनील- वही उसने आपके लिए भी किया। 26 वर्ष पहले जब तुम पैदा हुए थे तुम्हारे माता-पिता होने के नाते हम बहुत खुश थे। परंतु तुम्हारे जन्म को परमेश्वर बहुत पहले से ही जानते थे। मेरे और तुम्हारी माँ के विवाह के पहले से ही तुम्हारा नाम जीवन की पुस्तक में लिखा गया था। अद्भुत सत्य तो यह है कि परमेश्वर ने तुम्हारे विवाह की योजना भी तुम्हारे जन्म से पहले ही कर ली थी। इसलिए तुम्हारे जन्म के कुछ साल बाद परमेश्वर ने भारत के किसी और कोने में एक नन्ही लड़की को जन्माया, एक योजना से जो तुम नहीं जानते थे और अनुग्रह को भी इस बात का ज्ञान नहीं था। परमेश्वर एक महान जोड़ी बनाने वाला है और उनके पास आप दोनों के लिए एक अद्भुत योजना थी जो आप नहीं जानते थे। और जब यह नन्ही लड़की बड़ी हो रही थी और उसके लिए परमेश्वर के मन में तुम ही थे। और एक दिन परमेश्वर ने आप दोनों को एक साथ मिलाया। एकदम वैसे ही जैसे आदम और हव्वा को मिलाया। परमेश्वर ने आपके लिए कितना भला काम किया है।
इसलिए आप दोनों के लिए मेरी यह प्रार्थना है कि परमेश्वर आपके जीवन से प्रसन्न रहें और आप अपने घर को एक पवित्र स्थान बनाए।
परमेश्वर आप दोनों को आशीष दें। आमीन।