अद्भुत वास्तविकताएं

द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   जवानी मूलभूत सत्य साधक
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अध्याय 1
ब्रह्माण्ड के बारे में अद्भुत वास्तविकताएँ

मनुष्य यह सोचता है कि क्योंकि वह चन्द्रमा तक पहुँच गया है, इसलिए उसने अंतरिक्ष को ही जीत लिया है। लेकिन चन्द्रमा अंतरिक्ष के एक छोटे से बाहरी कोने में है। अंतरिक्ष अपने आप में इतना विशाल है कि वह हमारी कल्पना को विस्मित कर देता है।

कुछ तारों की दूरी के बारे में विचार करें। हमारी नंगी आँखों से नज़र आने वाला सबसे नज़दीकी तारा ऐल्फा सैन्टॉरी है - जो हमसे 40 लाख करोड़ किलोमीटर की दूरी पर है! अगर आप प्रकाश की गति से यात्रा करें, तो आप मात्र डेढ़ सैकण्ड में चन्द्रमा पर पहुँच जाएँगे, और सूर्य पर साढ़े आठ मिनट में पहुँच जाएंगे। लेकिन ऐल्फा सैन्टॉरी पर पहुँचने के लिए आपको इसी गति से साढ़े 4 साल तक यात्र करनी पड़ेगी! और फिर ऐसी आकाश-गंगाएँ और तारे हैं जिन्हें एक दूरबीन (टैलेस्कोप) से देखना पड़ता है जो हमसे 650 करोड़ प्रकाश-वर्ष दूर हैं!

अब कुछ तारों के आकार के बारे में विचार करें। ओरियॉन क्षेत्र में बेटैलग्यूज़ नामक तारे का व्यास 50 करोड़ किलोमीटर है। अगर यह तारा खोखला होता, तो इसके दायरे में पृथ्वी सूर्य की उसकी सामान्य परिक्रमा कर सकती थी - क्योंकि सूर्य के चारों तरफ घूमती हुई पृथ्वी की परिक्रमा का व्यास सिर्फ 30 करोड़ किलोमीटर है!

अब तारों की संख्या के बारे में विचार करें। हमारा सौर-मण्डल “मिल्की वे” नामक आकाश-गंगा का हिस्सा है जिसमें दस हज़ार करोड़ तारे हैं जिसमें से सूर्य भी एक तारा है। और मिल्की वे अनेक आकाश-गंगाओं में से एक आकाश-गंगा है। अंतरिक्ष के जिस भाग को हमारी दूरबीनें देख सकती हैं, उसमें 10 करोड़ आकाश-गंगाएँ हैं। उससे आगे और भी बहुत हैं।

और जिस सिद्ध रूप में ये आकाश के ये सभी पिण्ड उनकी परिक्रमाओं में भ्रमण करते हैं, उसके बारे में भी विचार करें। मनुष्य द्वारा बनाई गई सबसे सही समय बताने वाली घड़ी भी आकाश के तारों की तरह ऐसे अचूक रूप में नहीं चल सकती है। यक़ीनन, ऐसे ब्रह्माण्ड के पीछे एक सर्वशक्तिशाली बुद्धि का होना ज़रूरी है जिसने हरेक तारे और ग्रह की योजना बनाकर उसकी रचना की है।

अंतरिक्ष कितना विशाल है! मनुष्य कितना छोटा है! बाइबल के लेखकों में से एक ने लिखा, “जब मैं आकाश को निहारता हूँ और तारों को देखता हूँ, तब हे परमेश्वर, मैं समझ नहीं पाता हूँ कि तू मामूली से मनुष्य की क्यों सुधि लेता है?” लेकिन, इस सारी सृष्टि का परमेश्वर, हममें से हरेक की चिंता करता है। यही वह विस्मित कर देने वाले सत्य है जो हम बाइबल में से सीखते हैं।

किसी भी वस्तु का मूल्य उसके आकार से तय नहीं किया जाता। एक करोड़पति व्यक्ति के पास सैंकड़ों एकड़ ज़मीन हो सकती है, लेकिन फिर भी उसका छोटा सा बच्चा उसे अपनी सारी सम्पत्ति से ज़्यादा मूल्यवान लगता है। परमेश्वर के साथ भी ऐसा ही है। अंतरिक्ष विशाल हो सकता है। तारे उनके आकार में बहुत बड़े हो सकते हैं। लेकिन परमेश्वर अपनी बाक़ी पूरी सृष्टि से ज़्यादा मनुष्य से प्रेम करता है। मनुष्य की रचना परमेश्वर का एक पुत्र होने के लिए की गई थी, उसे परमेश्वर के साथ सहभागिता करने के लिए रचा गया था। परमेश्वर के साथ हमारी सहभागिता ही हमारे अस्तित्व को सार्थक और उद्देश्यपूर्ण बनाती है।

हम सृष्टि की रचना में परमेश्वर की महानता को देखते हैं। लेकिन बाइबल इस सत्य को भी प्रकट करती है कि यही परमेश्वर हमसे प्रेम भी करता है और हमारी देखभाल करता है।

अध्याय 2
मनुष्य के बारे में अद्भुत वास्तविकताएं

मनुष्य परमेश्वर की सृष्टि का मुकुट है। पूरे ब्रह्माण्ड के सारे तारों से भी ज़्यादा अद्भुत स्वयं मनुष्य की विस्मयकारी रचना है। सबसे पहले अपनी देह को देखें कि परमेश्वर ने हमारी देह की रचना कितने अनोखे तरीक़े से की है।

हमारी आँखों में काले और सफेद रंगों में फ़र्क जानने के लिए 13 करोड़ सूक्ष्म नलिकाएँ हैं, दूसरे रंगों में फ़र्क जानने के लिए 70 लाख शंकु (कोन) हैं, और वह एक-साथ 15 लाख संदेश/सूचनाएँ ग्रहण कर सकती हैं! एक आँख में से होने वाले काम को हू-ब-हू करने के लिए 2,50,000 टी.वी. संप्रेषण ट्रांसमीटरों और अभिग्राही रिसीवरों की ज़रूरत होगी!

कान के बारे में विचार करें! श्रवण-धमनी (सुनने की योग्यता प्रदान करने वाली नस) सिर्फ पौना इंच लम्बी और एक पैन्सिल के अन्दर के सीसे जितनी मोटी होती है, लेकिन उसके भीतर 30,000 विद्युत-क्षेत्र (सर्किट) होते हैं। एक पियानो के की-बोर्ड में 88 स्वर-चाबियाँ होती हैं, लेकिन हमारे भीतरी कान में 1100 स्वर-चाबियाँ होती हैं जिनकी बारम्बारता (फ्रीक्वैन्सी) भी पियानो के की-बोर्ड जितनी ही होती है। हमारा कान इतना संवेदनशील होता है कि वह पियानो की दो स्वर-चाबियों के बीच 12 अलग स्वरों को सुन सकता है!

अपने हृदय को देखें। वह आपकी देह के अन्दर साल में 4 करोड़ बार धड़कता है, और एक बार भी विराम/विश्राम नहीं लेता! वह आपके सिर से लेकर पाँव तक प्रतिदिन 1 लाख किलोमीटर मीटर लम्बी रक्त-वाहिकाओं (नसों) में रक्त प्रवाहित करता है। आपकी देह प्रतिदिन 17,200 करोड़ लाल रक्त-कोषाणुओं का निर्माण करती है कि पुराने और क्षतिग्रस्त कोषाणुओं की जगह ले सकें। क्या आपका अब तक जीवित होना एक चमत्कार नहीं है?

अपनी अंतःस्राव ग्रंथियों के बारे में विचार करें। आपके भीतर अवटुग्रंथि (थायरॉइड) को प्रतिदिन सिर्फ आयोडीन के एक ग्राम का 5000वें (1/5000) अंश की ज़रूरत होती है। फिर भी, अगर आपके शिशुकाल में आपके अन्दर  आयोडीन की यह सूक्ष्म मात्र न होती, तो इस समय आप एक मंदबुद्धि (मानसिक विक्लांग) होते!

पीयुष-ग्रन्थि (पिट्यूटरी ग्लैण्ड) और भी अद्भुत है। उसमें से होने वाले प्रतिदिन के अंतःस्राव का वज़न एक ग्राम का मात्र दस लाखवाँ (1/10,00,000) भाग होता है। फिर भी, आपके बड़े होने की उम्र में, अगर इसमें मामूली सी भी कमी या बढ़ौतरी हो जाती, तो आपका दैहिक और मानसिक विकास असामान्य हो जाता! अगर आज आप स्वस्थ हैं, तो उसकी वजह यही है कि आपकी देहे में काम कर रही ऐसी जटिल प्रणालियाँ एक सिद्ध रूप में काम कर रही हैं।

बाइबल के एक लेखक ने कहा, “मैं तेरा धन्यवाद करूँगा, क्योंकि मैं भयानक और अद्भुत रीति से बनाया गया हूँ!” परमेश्वर ने जो सौन्दर्य और संतुलन मानव देह में रचा है, वह वास्तव में आश्चर्य-जनक है।

मानव-देह की तरह, पशुओं की देह में भी कुछ ऐसी ही अद्भुत बातें देखी जा सकती हैं। लेकिन, मनुष्य की देह के भीतर एक जीव है जो उसे विचारशील और तर्कपूर्ण बनाता है। मनुष्य अपने विचारों को लिख सकता है और अपने ज्ञान को फिर भावी पीढ़ियों तक आगे बढ़ा सकता है - एक ऐसा काम जो पशु कभी नहीं कर सकते। मनुष्य की बुद्धि उस सर्वश्रेष्ठ बुद्धि का एक भाग है जो परमेश्वर में पाई जाती है। लेकिन मनुष्य के भीतर इससे भी ज़्यादा गहरी और अनोखी सृष्टि है - एक आत्मा। यही वह बात है जो हमें सारी सृष्टि से श्रेष्ठ बना देती है। आत्मा हमारे अस्तित्व/मनुष्यत्व का सबसे भीतरी और गहरा भाग है, और वह हमें बताता है कि एक परमेश्वर है - एक ऐसी सर्वशक्तिशाली जीवात्मा जिसके सम्मुख हम सभी नैतिक रूप में जवाबदेह हैं।

हमें न तो सभ्यता और न ही शिक्षा यह सिखाते हैं कि कोई परमेश्वर है। और न ही धर्म यह सिखाता है। अगर आप इस जगत के जंगलों में असभ्य लोगों के बीच में जाएँ, तो आप यह पाएँगे कि उन जंगली लोगों में भी परमेश्वर की अनुभूति है। वे किसी-न-किसी वस्तु की आराधना करते हैं, क्योंकि उनके अन्दर मौजूद आत्मा उन्हें यह बताती है कि एक ऐसी सर्व-शक्तिशाली जीवात्मा है जिसके सम्मुख वे जवाबदेह हैं। सिर्फ मनुष्य ही नैतिक रूप में स्वयं को दोषी महसूस करता है क्योंकि उसमें एक विवेक है। आपको कभी कोई धार्मिक बन्दर या आत्मिक मन-मिज़ाज वाला कुत्ता नहीं मिलेगा!

मनुष्य की रचना उसके इस पृथ्वी के जीवनकाल से कुछ आगे के लिए की गई थी। मनुष्य एक ऐसी सृष्टि है जो अनन्त के लिए है। क्रमिक विकासवादी यह कह सकते हैं कि मनुष्यों और पशुओं में कोई फ़र्क नहीं होता। फिर भी, हरेक देश का क़ानून यही कहता है कि एक हाथी को मार डालने की तुलना में एक छोटे बच्चे को मार डालना ज़्यादा बड़ा अपराध है। एक हाथी आकार में बड़ा हो सकता है, लेकिन एक छोटा बच्चा ज़्यादा मूल्यवान है क्योंकि वह परमेश्वर के स्वरूप में रख गया है। मनुष्य परमेश्वर की सृष्टि का मुकुट है। उसकी रचना परमेश्वर के साथ सहभागिता करने के लिए की गई थी।

अध्याय 3
सच्चे आंदोलन के बारे में अद्भुत वास्तविकताएँ

आज आंदोलन एक सामान्य शब्द है! एक ऐसे क्षेत्र के बारे में सोचें जिसमें हम सभी को आंदोलन की ज़रूरत होती है। हम सभी ने अपने माता-पिता से विरासत में एक धर्म पाया है, और उस धर्म के साथ कुछ ख़ास तरह के दुराग्रह भी हममें प्रवेश कर चुके हैं। ये दुराग्रह ज़्यादातर मनुष्यों को उन बातों पर सवाल उठाने से रोकते हैं जो उनके बचपन में उन्हें सिखाई गई थीं।

विज्ञान के परिमण्डल में, अगर मनुष्यों ने हमेशा ही उन बातों को स्वीकार किया होता जो उनके बाप-दादा मानते आए थे, तो किसी तरह का कोई विकास न हुआ होता।

इसके सिर्फ एक उदाहरण पर विचार करेंः हज़ारों साल से, मनुष्यों का यह मानना था कि पृथ्वी सारे ब्रह्माण्ड का केन्द्र-बिन्दु है, और यह कि सूर्य और सारे ग्रह उसी के चारों तरफ परिक्रिमा करते हैं। लेकिन 450 साल पहले, एक कॉपरनिकस नाम के व्यक्ति ने उस बात पर सवाल उठाया जो उसके बाप-दादा मानते आए थे, और उसने उन्हें ग़लत साबित कर दिया।

लेकिन यह एक अफसोस की बात है कि सिर्फ धर्म के परिमण्डल में ही लोग उन बातों को अंधविश्वास होकर स्वीकार कर लेते हैं जो उनके माता-पिता या उनके धर्म-गुरुओं ने उन्हें सिखाई हैं। आप अपने बारे में क्या कहना चाहेंगे? आपकी धार्मिक आस्थाएँ क्या हैं? क्या वे वही हैं जो आपने अपने पूर्वजों की विरासत में से एक धर्मान्ध रूप में स्वीकार कर रखी हैं? या परमेश्वर और अनन्त के बारे में आपकी अपनी भी कुछ ऐसी आस्थाएँ हैं जिनके बारे में आपने अपने मन में सोच-विचार किया है, और अब आपको उनके ऊपर यक़ीन है?

इस जगत में यीशु मसीह से बड़ा आंदोलनकारी दूसरा कोई नहीं हुआ है। वह इसलिए आया कि मनुष्यों को भीतर से बदल दे। जब मनुष्य इस भीतरी आंदोलन का अनुभव पा लेता है, तो बाहरी बातें अपने आप ठीक हो जाती हैं। हमें पहले समस्या की जड़ में पहुँचना ज़रूरी होता है।

एक डॉक्टर जब एक मरीज़ का इलाज करता है, तो वह सिर्फ उसके बाहरी लक्षणों का ही इलाज नहीं करता। वह स्वयं उसकी बीमारी का इलाज करता है। उदाहरण के तौर पर, एक व्यक्ति जो कैंसर के रोग से पीड़ित है, वह भूख न लगने की शिकायत कर सकता है। ऐसा डॉक्टर बड़ा मूर्ख होगा जो उसके भूख न लगने का तो इलाज करे, लेकिन उसके कैंसर का कोई इलाज न करे। जो लोग किसी बाहरी आंदोलन को हमारी समस्याओं का समाधान मानते हैं, वे भी यही ग़लती करते हैं। वे सिर्फ बाहरी लक्षणों से मुक्ति पाना चाहते हैं, लेकिन भीतरी बीमारी फिर भी बनी रहती है।

जब तक मनुष्य ही न बदले, तब तक उन समस्याओं से कोई छुटकारा नहीं मिल सकता जिनका सामना आज हमारे संसार और समाज को करना पड़ रहा है।

अध्याय 4
हमारी सबसे बड़ी ज़रूरत के बारे में अद्भुत वास्तविकताएं

मनुष्य की सबसे बड़ी ज़रूरत क्या है? क्या वह रोटी है, घर है, या नौकरी है? एक मनुष्य को अगर उसके पूरे जीवन-भर पर्याप्त खाना, रहने की जगह और काम/धंधा है, लेकिन जब वह मरता है, तब उसका क्या होता है? क्या मृत्यु उस मनुष्य के अस्तित्व का अंत होती है? नहीं।

पृथ्वी का जीवन अनन्त से हमारा परिचय कराने के लिए है। पृथ्वी पर हम परिवीक्षा (परखे जाने के समयकाल) में हैं, और परमेश्वर हमें देख रहा है। हमारा पृथ्वी का जीवन ही हमारी अनन्त नियति सुनिश्चित करेगा। परमेश्वर हम सभी के जीवन के वास्तविक सत्य को जानता है। हम अच्छे मनुष्य होने का दिखावा करने द्वारा अपने मित्रों को मूर्ख बना सकते हैं, लेकिन हम परमेश्वर को मूर्ख नहीं बना सकते। परमेश्वर की नज़र में, हम सभी दोषी हैं क्योंकि हम उस उसके ऊँचे और पवित्र मानकों के स्तर पर रहते हुए अपने जीवन नहीं बिताते हैं। मनुष्य की रचना परमेश्वर के साथ सहभागिता करने के लिए की गई थी। अगर वह इसमें नाकाम हो जाता है, तो वह पृथ्वी पर अपने अस्तित्व के मूल उद्देश्य को पूरा करने से चूक गया है। और परमेश्वर के साथ उसकी इस सहभागिता का अनुभव वह तब तक नहीं कर सकता जब तक कि उसके पाप का दोष नहीं मिट जाता। यह मनुष्य की सबसे बड़ी ज़रूरत है।

हमारे पाप का दोष कैसे मिट सकता है?

हमारे पापों के लिए सिर्फ हमारा अफसोस करना/खेद व्यक्त करना काफी नहीं होता। अगर मुझ पर एक डकैती डालने के लिए अदालत में मुक़द्दमा चल रहा हो, और उस अदालत में मेरे पिता न्यायाधीश हों, तो वे सिर्फ इस आधार पर मुझे नहीं छोड़ सकते थे कि मुझे अपने किए पर अफसोस हो रहा था। वे एक पिता होते हुए मुझसे प्रेम करने वाले हो सकते हैं, लेकिन अदातल में वे एक न्यायाधीश हैं। इसलिए उन्हें मेरे द्वारा किए गए अपराध के लिए मुझे दण्ड देना पड़ेगा - फिर चाहे मुझे अपने किए पर अफसोस हो, या उनका पुत्र होते हुए उन्हें मुझसे प्रेम हो।

अगर हम एक ऐसे परमेश्वर पर विश्वास करते हैं जो न्यायप्रिय है औैर जिसे अवश्य ही मनुष्यों से बढ़कर होना चाहिए, तो वह हमें कैसे छोड़ सकता है  क्योंकि हमें अफसोस हो रहा है या क्योंकि वह हमसे प्रेम करता है? न्याय दोषी को दण्डित किए जाने की माँग करता है।

लेकिन अदालत में मेरे पिता मेरी मदद के लिए एक काम कर सकते हैं। अगर क़ानून मेरी पूरी सज़ा के रूप में मुझ पर एक लाख रुपए का दण्ड प्रस्तावित करता है, तो मुझे सज़ा देने के बाद, वे अपनी मेहनत की कमाई में से एक लाख रुपए लेकर मुझे यह कहते हुए दे सकते हैं, “मेरे पुत्र, यह धनराशि ले ले, जाकर अपना दण्ड चुका दें, और मुक्त हो जा!” न्यायाधीश के रूप में, वे मुझे दण्ड देते हैं, और पिता के रूप में, वे स्वयं उस दण्ड का बोझ उठाते हैं।

परमेश्वर ने यही किया है। न्यायधीश के रूप में, उसने हम सभी को हमारे पापों के लिए अनन्त मृत्यु की सज़ा दी है। लेकिन क्योंकि उसने हमसे प्रेम किया है, इसलिए उसने यीशु मसीह के रूप में देहधारी होकर स्वयं उस दण्ड को सह लिया है। मसीह हमारे पापों के लिए मरा है।

लेकिन अब हमें भी कुछ करना है। जब मेरे पिता मुझे अदालत में वह धनराशि देते हैं, और अगर मैं उसे ग्रहण नहीं करता, तो मैं मुक्त नहीं हो सकता। परमेश्वर हमें मसीह में जो क्षमा प्रदान करते हैं, उसमें भी बिलकुल ऐसा ही है। अगर हम उसे ग्रहण नहीं करते, तो हमें उससे कोई लाभ नहीं हो सकता है।

अध्याय 5
नशे की लत के बारे में अद्भुत वास्तविकताएं

सारे संसार में, लोग भोग-विलास, बड़े नाम, धन-सम्पत्ति या शक्ति के पीछे भाग रहे हैं।

लेकिन इन सब बातों के साथ एक सिद्धान्त जुड़ा हुआ है जिसे हमें ज़्यादा लागत और कम मुनाफे का सिद्धान्त कह सकते हैं।

यह समझने के लिए कि यह सिद्धान्त कैसे काम करता है, हम भोग-विलास के पीछे भागने का एक उदाहरण लेते हैं। शुरू में, एक भोग-विलास की थोड़ी मात्र से कुछ संतुष्टि मिल सकती है - चाहे वह भोग-विलासिता सिग्रेट पीना, शराब पीना, उत्तेजना पैदा करने वाला संगीत सुनना, मादक-द्रव्यों का सेवन करना, अश्लील चित्र/चलचित्र देखना या अवैध शारीरिक सम्बंध बनाना हो। लेकिन एक बार जब वह उसमें लिप्त हो जाते हैं, फिर ये बातें उस पर तब तक अपना शिकंजा कसती रहती हैं जब तक उसे इनकी लत नहीं लग जाती। और फिर वह उस भोग-विलास की मादक उत्तेजना के बिना नहीं रह पाता है।

लेकिन, उस लत के शिकार मनुष्य को, उसी स्तर की संतुष्टि पाने के लिए, हर बार अपनी लत की मात्र बढ़ाने की भी ज़रूरत महसूस होने लगती है। यह ज़्यादा लागत और कम मुनाफे का सिद्धान्त है।

फिर उस लत का शिकार व्यक्ति, अपने आपको मानो शिकंजे में जकड़ा हुआ पाता है; और अब वह अपने आपको छुड़ा नहीं सकता है।

बड़ा नाम कमाने के पीछे भागने के बारे में सोचें। यह दौड़ - चाहे खेलकूद के मैदान में हो, सिनेमा जगत के पर्दे पर, या किसी भी क्षेत्र में हो - कभी ख़त्म नहीं होती। जिसका शहर में नाम हो जाता है, वह देश में नाम कमाना चाहता है, और फिर सारे जगत में नाम कमाना चाहता है। इस दौड़ में, लोग अपने विवेक ख़त्म कर देते हैं और शीर्ष पर पहुँचने के लिए, दूसरे लोगों को भी कुचल देते हैं। और इसके अंत में उन्हें क्या मिलता है? जब कुछ नई उपलब्धि हासिल नहीं होती, तो वे झुँझलाहट से भर जाते हैं। विश्व स्तर पर लोकप्रिय अनेक फिल्मी सितारों ने आत्म-हत्याएँ कर ली हैं क्योंकि वे उनके भीतरी जीवन में हताश/निराश थे।

अब यह विचार करें कि यह सिद्धान्त धन के पीछे दौड़ने के मामले में कैसे काम करता है। जब कोई व्यक्ति उसकी ज़रूरत से ज़्यादा धन संग्रह करना शुरु कर देता है, तो वह एक ऐसी दौड़ में शामिल हो जाता है जो कभी पूरी नहीं होती - क्योंकि इस जगत में सभी मनुष्यों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए तो पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन इसमें इतने पर्याप्त संसाधन नहीं हैं कि वे सिर्फ एक मनुष्य के लालच को पूरा कर सकें। ज़्यादा लागत और कम मुनाफे का सिद्धान्त यहाँ भी काम करता है। सारे इलैक्ट्रॉनिक उपकरण, चिकना और पौष्टिक भोजन, यात्रएँ करना और नए-नए लोगों से मिलना, ऊँचे स्तर का सामाजिक जीवन आदि, जो एक व्यक्ति धन संचित करने द्वारा हासिल कर लेता है, उसे पहले से कम, और फिर और ज़्यादा कम संतुष्टि देने वाले बनते जाते हैं। उसे उन सब बातों में एक खोखलापन और ख़ालीपन महसूस होने लगता है। और फिर उसे यह समझ आने लगता है कि वह उस समय ज़्यादा ख़ुश था जब उसके पास ज़्यादा धन-दौलत नहीं था। उसका पारिवारिक जीवन भी नष्ट हो जाता है।

इस तरह, प्रभु यीशु मसीह के शब्द सच्चे साबित हो जाते हैं, फ्एक व्यक्ति का जीवन उसके द्वारा अर्जित की गई वस्तुओं की भरपूरी में नहीं होता।”

यह देखें कि शक्तिशाली बनने की दौड़ में भी यह सिद्धान्त कैसे काम करता है - चाहे वह राजनीति हो या दूसरा कोई क्षेत्र हो। राजनीति में, एक व्यक्ति जो पहले ससंद-सदस्य बनने से ही संतुष्ट रहता था, अब उसकी नज़र मंत्रीपद पर लग जाती है। वह यही पाएगा कि देश का सर्वोच्च पद पाने के बाद भी वह फिर भी झुँझलाहट और अप्रसन्नता से भरा रहेगा। जैसा एक पुरानी कहावत में कहा गया है, फ्वह सिर चैन की नींद नहीं सो सकता है जिस पर राजमुकुट रखा होता है।” जब वह एक अज्ञात व्यक्ति था, तब उसे अपनी हत्या हो जाने का डर नहीं सताता था!

इन सभी क्षेत्रों में ऐसी झुँझलाहट और ख़ालीपन क्यों होता है?

ज़्यादा लागत और कम मुनाफे का यह सिद्धान्त स्वयं परमेश्वर ने ही संसार में आकर्षित करने वाली हरेक वस्तु के पीछे दौड़ने में क्रियान्वित किया है, कि मनुष्य को यह समझ आ जाए कि वह एक ऐसी सृष्टि है जो अनन्त के लिए है। उसकी रचना एक ऐसी आत्मिक रिक्तता के साथ की गई है जो स्वयं परमेश्वर के अलावा और किसी वस्तु से नहीं भरी जा सकती। मनुष्य लगातार उसे भोग-विलास, बड़े नाम, धन-सम्पत्ति और शक्ति से भरना चाहता है। लेकिन यह दौड़ व्यर्थ है, क्योंकि बाइबल में यह लिखा है कि परमेश्वर ने मनुष्य के हृदय में ही अनन्त रखा हुआ है। हमारे हृदय तब तक विचलित रहेंगे जब तक वे परमेश्वर में उनका विश्राम नहीं पा लेते।

लेकिन जैसे एक प्याले में कुछ पीने की वस्तु उण्डेलने से पहले उसे भीतर से साफ करने की ज़रूरत होती है, वैसे ही, इससे पहले कि हमारे हृदय हमारे रचने वाले की रहने की जगह बनने के लिए तैयार हो सकें, यह अवश्य है कि वे सारे पाप से शुद्ध किए जाएं।

मसीह हमारे पापों के लिए मरा कि हमारे हृदय पाप से धुलकर शुद्ध हो सकें कि फिर उनमें परमेश्वर का वास हो सके।

अध्याय 6
न्याय के बारे में अद्भुत वास्तविकताएँ

पृथ्वी पर हमारा जीवन असल में हमारी मृत्य की उलटी गिनती होता है। हम प्रतिदिन हम उस दिन की तरफ और आगे बढ़ जाते हैं जिसमें हम अंततः मर जाएँगे और अपनी देह को छोड़ देंगे लेकिन उसके बार क्या?

बाइबल कहती है कि मरने के बाद, हममें से हरेक को परमेश्वर के सम्मुख खड़े होकर अपने जीवन का लेखा देना होगा। जब हम यह विचार करते हैं कि इस पृथ्वी पर करोड़ों लोगो ने अपने जीवन बिताए हैं और वे अब वे मर चुके हैं, तो हम यह सोच सकते हैं कि परमेश्वर हरेक मनुष्य द्वारा उसके पूरे जीवन में किए गए हरेक काम, उसके हरेक शब्द और हरेक विचार का लेखा कैसे रख सकता है। यह लेखा हरेक मनुष्य की स्मृति में रखा हुआ है।

स्मृति एक ऐसा टेप है जो पूरी ईमानदारी से हमारे विचारों, शब्दों, कामों, मनोभावों और उद्देश्यों का लेखा रखता है। जब एक व्यक्ति मर जाता है, तो हालांकि वह अपनी पार्थिव देह को पीछे छोड़ जाता है, लेकिन उसकी स्मृति उसके जीव के साथ मृत जीवों की जगह में चली जाती है। और अंततः जब न्याय का दिन आएगा, तो वह परमेश्वर के सम्मुख हाजि़र होकर पृथ्वी के अपने पूरे जीवन का लेखा देगा।

उस दिन, जब हरेक न्यायासन के सामने हाजि़र होगा, तो परमेश्वर को सिर्फ स्वयं उसी मनुष्य की स्मृति के वीडियो-टेप को शुरू से चलाना होगा, और सभी उसके जीवन को प्रदर्शित होता हुआ देखेंगे। उस लेखे के ग़लत होने के बारे में कोई बहस न हो सकेगी, क्योंकि हरेक मनुष्य की स्मृति ही स्वयं उसके पार्थिव जीवन का लेखा देगी।

भले और धार्मिक होने का जो भी बाहरी आवरण आज लोगों ने धारण कर रखा है, उस दिन उतार दिया जाएगा और असली भीतरी मनुष्य उघाड़ा हो जाएगा। उस दिन किसी का धर्म उसे नहीं बचाएगा, क्योंकि यह प्रकट हो जाएगा कि सबने पाप किया है - फिर चाहे वे किसी भी धर्म के मानने वाले क्यों न हों। भले काम, ग़रीबों के लिए, या आराधना-भवन, मस्जिद या मन्दिर बनाने के लिए दिया गया धन किसी को नहीं बचा सकेगा - क्योंकि इनमें से किए गए कोई भी धार्मिक काम हमारे पापों के लेखे को नहीं मिटा सकते।

हमारे द्वारा किए गए सभी पापों को एक न्यायपूर्ण और उचित रीति से दण्डित किया जाना ज़रूरी होगा। और बाइबल कहती है कि पाप के लिए निश्चित किए गए ईश्वरीय विधान में सिर्फ एक ही दण्ड का प्रावधान है - अनन्त मृत्यु।

हमें इसी दण्ड से बचाने के लिए परमेश्वर का पुत्र यीशु मसीह स्वर्ग से इस पृथ्वी पर मनुष्य बन कर आया और लगभग 2000 साल पहले सूली पर मर गया था। वहाँ उसने सभी लोगों के लिए - सभी धर्मों के लोगों के लिए - उस ईश्वरीय दण्ड को सहा। उसे वहीं पास की एक कब्र में दफना दिया गया था। लेकिन तीसरे दिन वह मृतकों में से जी उठा, और यह साबित कर दिया कि वह वास्तव में परमेश्वर का पुत्र है, और यह कि वह मृत्यु पर, मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु पर जय पा सकता है। फिर, 40 दिन के बाद, बहुत से लोगों के देखते हुए, वह इस प्रतिज्ञा के साथ स्वर्ग में चला गया कि वह पहले से ठहराए हुए न्याय के दिन, सब मनुष्यो का न्याय करने के लिए फिर से आएगा। उसके द्वारा की गई इस प्रतिज्ञा को 1900 साल से भी ज़्यादा समय बीत चुका है, और अब उसके आने का समय नज़दीक आता जा रहा है। आने वाले दिनों में से किसी भी एक दिन में हम उसे स्वर्ग से बादलों पर आता हुआ देखेंगे। मानव इतिहास में, सिर्फ यीशु मसीह ही एक ऐसा है जो पूरी मानव-जाति के पापों के लिए मरा है। और सिर्फ वही ऐसा है जो मरने के बाद जी उठा है। इन दोनों ही मामलों में, वह सबसे निराला है।

आज, अगर हम ईमानदारी से अपने पापों को मान लें और उनसे अपने मन फिरा लें, और यीशु मसीह के नाम में परमेश्वर से हमें क्षमा करने के लिए कहें क्योंकि वह हमारे लिए ही मरा और फिर जी-उठा है, तो हमारी स्मृति के वीडियो टेप में से हमारे पाप क्षमा किए जाकर मिटाए जा सकते हैं।

लेकिन सिर्फ इतना ही नहीं है। परमेश्वर अपने पवित्र आत्मा में होकर हमारे हृदयों में बसने और हमारी पापमय आदतों पर जय पाने के लिए हमें सामर्थ्य देने की भी प्रतिज्ञा करता है जिससे कि आने वाले दिनों में, हम शुद्धता, प्रेम और भलाई से भरे जा सकें।

मानव-जाति के उद्धार के लिए परमेश्वर ने सिर्फ यही मार्ग तैयार किया है। यह याद रखें, कि इसके अलावा किसी भी मनुष्य के पास बस एक यही विकल्प रह जाता है कि न्याय के दिन, उसकी स्मृति में से उसके पापों का लेखा सुनाया जाए।

अध्याय 7
इतिहास की सबसे बड़ी घटना के बारे में अद्भुत वास्तविकताएँ

प्रभु यीशु मसीह की मृत्यु और उसका मृतकों में से जी-उठना, सारे जगत के इतिहास की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण घटना है।

यही वे प्रमुख/केन्द्रीय वास्तविकताएं भी हैं जिन पर मसीही विश्वास की नींव रखी हुई है।

कलवरी की सूली पर मसीह की मृत्यु में से चार सत्य स्पष्ट हो जाते हैंः

  1. मरने के बाद जीवन है

अगर यह जीवन ही सब कुछ होता, तो यीशु मसीह कभी न मरा होता। उसके पास ईश्वरीय सामर्थ्य थी, और अगर वह चाहता, तो वह उनके हाथ से आसानी से बच निकल सकता था जो उसे मार डालना चाहते थे। लेकिन मारे जाने और दफनाए जाने के तीन दिन बाद, यीशु मृतकों में जीवित होकर लौट आया था। जीवन और मृत्यु के बारे में उसने जो कुछ कहा था, यह उन बातों के अक्षरशः सच होने का सबसे स्पष्ट सबूत है।

  1. परमेश्वर एक असीम रूप में पवित्र है

मसीह की मृत्यु से, हम यह सीखते हैं कि परमेश्वर असीम रूप में पवित्र है और वह पाप को कभी सहन नहीं कर सकता। सूली पर, हम यह देख सकते हैं कि जब जगत का पाप परमेश्वर के निष्पाप पुत्र यीशु मसीह पर लादा गया, तो परमेश्वर ने उसे त्याग दिया था, क्योंकि पाप परमेश्वर के सम्मुख नहीं रह सकता है। बाइबल कहती है, “परमेश्वर की आँखें इतनी पवित्र हैं कि वे बुराई को नहीं देख सकतीं।” अपने प्रेम की वजह से परमेश्वर प्रेम पाप को अनदेखा नहीं करता है। वह आपसे बहुत प्रेम कर सकता है, लेकिन अगर आपके जीवन में पाप होगा, तो वह आपको बिलकुल उसी तरह त्याग देगा जैसे उसने अपने पुत्र को कलवरी की सूली पर त्याग दिया था।

  1. परमेश्वर एक असीम रूप में प्रेम करता है

परमेश्वर के असीम प्रेम के सत्य को हम इस बात में भी देखते हैं कि मसीह ने हमें पाप और पीड़ा से बचाने के लिए अपनी जान दी। बाइबल मनुष्य के लिए परमेश्वर के प्रेम की तुलना एक बच्चे के लिए उसकी माँ के प्रेम से करती है। जैसे एक माता अपने बच्चे की सारी दुःख-तकलीफ को अपने अन्दर ले लेना चाहती है कि उसके बच्चे को चँगाई मिल सके, वैसे ही परमेश्वर ने मनुष्य के दण्ड को अपने ऊपर लिया कि मनुष्य मुक्त हो सके।

  1. उद्धार का कोई दूसरा मार्ग नहीं है

मसीह की मृत्यु से यह बात बिलकुल स्पष्ट हो जाती है कि उद्धार पाने के लिए इसके अलावा दूसरा कोई मार्ग नहीं है। उद्धार के लिए अगर इसके अलावा कोई दूसरा मार्ग होता, तो परमेश्वर ऐसा रास्ता न चुनता जिसमें उसके मसीह को इतनी पीड़ा सहनी पड़ती। अगर एक मनुष्य सिर्फ एक भला जीवन जीने द्वारा परमेश्वर के सम्मुख जा सकता, तो परमेश्वर सूली पर मसीह को मृत्यु की पीड़ा में से गुज़रने देना परमेश्वर द्वारा किया गया एक ग़ैर-ज़रूरी काम होता। इसलिए, यह कल्पना करना कि उद्धार पाने का कोई दूसरा तरीक़ा भी हो सकता है, अपने आपको परमेश्वर से भी ज़्यादा बुद्धिमान समझना है, और यह सिर्फ हमारी मूर्खता ही दर्शाता है।

क्या हमने समझ लिया है कि मसीह की मृत्यु हमें क्या सिखाती है? अगर हाँ, तो हमारा सिर्फ एक ही सही प्रत्युत्तर हो सकता हैः कि हम अपने जीवनों को इस समय के लिए और अनन्त के लिए पूरी तरह अर्पित कर दें। इन बातों को सिर्फ बौद्धिक रूप में स्वीकार करना व्यर्थ है। परमेश्वर यह चाहता है कि हम अपनी इच्छा में से अपना प्रत्युत्तर दें।

अध्याय 8
सबसे अद्भुत वास्तविकता

हम सभी ऐसे लोगों की तरह हैं जो एक रेगिस्तान में से गुज़र रहे हैं और प्यास से मरने पर हैं। अगर किसी को कहीं पानी मिल जाए, तो वह ज़रूर दूसरों को भी इसकी जानकारी देना चाहेगा। यह सही है कि वह उन्हें पानी पीने के लिए मजबूर नहीं कर सकता; लेकिन वह संकेत करते हुए उन्हें पानी दिखा सकता है। हम भी यही कर रहे हैं - संकेत करते हुए यह दिखा रहे हैं कि जो भी चाहता है, उसके लिए मुफ़्त में अनन्त जीवन कहाँ उपलब्ध है।

जगत का सबसे अद्भुत सत्य यह है कि सबसे बड़ा पापी भी, अगर ईमानदारी से परमेश्वर को खोज रहा है, तो वह एक ही क्षण में परमेश्वर की संतान बन सकता है।

परमेश्वर को यान्त्रिक मनुष्य (रोबोट) नहीं बल्कि पुत्र चाहिए। यही वजह है कि उसने हम सभी को एक मुक्त इच्छा दी है। हमें उसकी आज्ञा मानने का या आज्ञा न मानने का चुनाव कर सकते हैं। हम सभी के भटक जाने की वजह यही है कि हमने अपनी मुक्त इच्छा के उपयोग द्वारा परमेश्वर का आज्ञा-उल्लंघन किया है। पाप ने न सिर्फ हमारे जीवन बर्बाद किए, बल्कि इसने हमारे परिवार भी बर्बाद कर दिए हैं। यह पृथ्वी पर हमारे जीवन दुःख और पीड़ा से भर देता है और अंततः हमें नर्क की अनन्त मृत्यु में भी पहुँचा देगा।

लेकिन इस समय परमेश्वर हमें मन फिराने (अर्थात्, हमारी पापमय जीवन-शैली से मन फिरा कर परमेश्वर की तरफ फिर जाने) के लिए आमंत्रित कर रहा है, कि हम यीशु मसीह की मृत्यु द्वारा हमारे सभी बीते पापों की पूरी क्षमा प्राप्त कर सकें।

परमेश्वर बलपूर्वक भी हमसे ऐसा करवा सकता था। हमारे हर बार पाप करने पर वह हमें बीमारियों से पीड़ित करने द्वारा तब तक दण्डित कर सकता था जब तक कि हम अपने मन न फिरा लेते। लेकिन उस दशा में हम पुत्र नहीं होते, बल्कि यान्त्रिक मनुष्य या गुलाम बन जाते। इसलिए वह ऐसा नहीं करता। वह इंतज़ार करता है कि हम स्वयं अपनी इच्छा के चुनाव द्वारा पाप से मन फिरा लें।

यह चुनाव अभी कर लें, और आप एक ही पल में परमेश्वर की संतान बन जाएंगे। आपको शायद इसका अहसास नहीं है, लेकिन यह जीवन और मृत्यु का मामला है। आप इसी समय परमेश्वर से यह प्रार्थना कर सकते हैंः

फ्प्रभु यीशु मसीह, मैं यह अंगीकार करता हूँ कि मैं एक पापी हूँ जो दण्ड के योग्य है। मैं आपको धन्यवाद देता हूँ कि आपने मेरा दण्ड अपने ऊपर ले लिया और मेरे पापों के लिए अपनी जान दे दी, और मरने के बाद जीवित होकर आप कब्र में से बाहर निकल आए। मैं वास्तव में अपना पापमय जीवन छोड़ देना चाहता हूँ। आप मेरे हृदय में आएँ, और मुझे परमेश्वर की एक संतान बनाएँ। मेरे पिछले जीवन के दोष दूर कर दें, और आज से ही एक नया जीवन शुरू करने में मेरी मदद करें। मुझे अपनी सामर्थ्य प्रदान करें कि मैं अपना बाक़ी जीवन आपको आदर देते हुए जी सकूँ। मेरी प्रार्थना सुनने के लिए धन्यवाद।”

आपने अपने जीवन में इससे ज़्यादा महत्वपूर्ण फैसला नहीं लिया है।

परमेश्वर आपको भरपूर आशिष दे।