परमे’वर की सेवा के सिध्दान्त

द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   कलीसिया
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अध्याय
यह पुस्तक और आप

जब हम अपने चारों ओर ऐसी परिस्थितियों को देखते हैं जहाँ हमारी समस्याओं के लिए कोई हल नहीं दिखाई देता, ऐसे समय परमेश्वर का वचन सुनना कितना उत्तम है,

 "यहाँ
ऊपर आ जा ! मेरी दृष्टी से उन बातों को देख - न ही मेरी दृष्टी से जो पृक्वी के निम्न स्तर की है !"
मेरा विश्वास है कि हमें यह वचन बारबार सुनने की आवश्यकता है - " यहाँ ऊपर आ जा !"

आज परमेश्वर को मनुष्यों की आवश्यकता है ! ऐसे मनुष्यों की जो रोज़ उसके सामने खड़े रहकर उसकी आवाज़ को सुनेंंगे ! ऐसे मनुष्यों की जिनके हृदय में परमेश्वर के अलावा और किसी चीज़ की या किसी व्यक्ति की चाहत नहीं है ! बुध्दी के आधार पर किए जानेवाले मसीही कार्य और आत्मिक कार्य में भेद जानने हेतु उनके पास आत्मा की परख का वरदान है ! आत्मिक अधिकार एवं आत्मिक प्रतिष्ठा से परिपूर्ण लोग ! आवश्यकता पड़ने पर संसार में वे परमेश्वर केलिए अकेले खड़े रहने का हियाव रखने हैं ! वे प्रेरितों और पुराने भविष्यवक्ताओं के समान किसी से समझौता नहीं करते !

यह पुस्तक आपको ऐसे ही जन बनने के लिए प्रोत्साहित करती है !

अध्याय 1
परमे’वर की सेवा के सिध्दान्त

(दिसम्बर 17, 1997 को "कलीसिया की सेवा और अगुवों का प्र’ाक्षण" इस वि”ाय पर आयोजित ऑल इंडिया कान्फ्रेन्स में इव्हेन्जेलिकल मसीही अगुवों को दिया गया संदे’ा !)

मैं प्रका’ात वाक्य के चौथे अध्याय को पढ़ना चाहूॅंगा !

अध्याय 1 में प्रभु ने यूहन्ना को खुद का प्रका’ान दिया, और उसके बाद 2रे और 3रे अध्याय में उन्होंने संसार के उस विभाग में स्थित कलीसियाओं का वास्तविक चित्र उसके सन्मुख रखा !

इन में से कई मंडलियॉं पिछड़ी हुई द’ाा में थी ! फिर प्रभु ने अध्याय 4:1 में यूहन्ना से कहा : "यहॉं ऊपर आ जा !" कितने अद्भुत वचन है यह !

जब हम अपने चारों ओर ऐसी परिस्थितियों को देखते है जहॉं हमारी समस्याओं के लिए कोई हल नहीं दिखायी देता, ऐसे समय परमे’वर का वचन सुनना कितना उत्तम है,

"यहॉं ऊपर आ जा ! मेरी दृ”टी से उन बातों को देख - न ही तेरी दृ”टी से जो पृथ्वी के निम्न स्तर की है !"
मेरा वि’वास है कि हमें यह वचन बारबार सुनने की आव’यकता है - "यहॉं ऊपर आ जा !"

पौलुस ने कहा, "मैं --- केवल यह एक काम करता हूॅं कि जो बातें पीछे रह गयी हैं उन को भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ नि’ााने की ओर दौड़ा चला जाता हूॅं, ताकि वह इनाम पाऊॅं जिसके लिए परमे’वर ने मुझे मसीह यी’ाु में ऊपर बुलाया है !" उसने वह ऊपर की बुलाहट सुन ली थी और भले ही वह ऊपर चढ़ता गया, परंतु और आगे बढ़ने की इच्छा उसमें निरंतर बनी रही !

मसीही सेवकाई में खतरा इस बात का है कि हम लोगों के आगे इतने अधिक खड़े रहते हैं ! हमारी प्र’ांसा की जाती हे ! हमारे पास विभिन्न मीडिया हैं! हमारे नाम के आगे उपाधियॉं हैं, और हमारे नाम के बाद पद्वियॉं हैं! और अधिक हमें क्या चाहिए !

हमें क्या चाहिए मैं आपको बतसपस चाहूॅंगा :

"हमें परमे’वर के अति निकट आने की आव’यकता है ! हमें ऊपर जाने की आव’यकता है !"

परमे’वर को एक नौकर या सेवक चाहिए था इसिलिए उसने आदम को नहीं बनाया ! उन्होंने उसे इसलिए नहीं बनाया क्योंकि उन्हे एक विदवान चाहिए था ! ना ही उन्होंने आपको और मुझको इसिलिए बनाया है कि उन्हें सेवकों या विद्वानों की आव’यकता है! स्वर्गदूतों के रूप में उनके पास करोड़ो सेवक हैं ! उन्होने आदम को सर्वप्रथम इसिलिए बनाया कि वह उसके (परमे’वर) साथ संगति रखें ! इसिलिए आदम के लिए कानून नहीं था कि : "तू छ: दिन काम करेगा और सातवें दिन विश्राम करेगा !" नहीं, यह व्यवस्था बाद में, अर्थात मूसा के समय में आयी !

आदम को छठवें दिन बनाया गया ! और इसीलिए उसका पहला दिन - जो परमे’वर के लिए सातवां दिन था, परंतु आदम के लिए पहला दिन था - वह परमे’वर के लिए विश्राम का और परमे’वर के साथ संगति रखने का दिन था ! उस संगति के दिन के बाद आदम को आने वाले छ: दिनों में अदन की वाटिका में परमे’वर की सेवा करनी थी!

यदि हम इस क्रम को भूल जाते हैं - यदि हम इस बात को भूल जाते हैं कि परमेयवर की दाख की बारी में जाकर उसकी सेवा करने से पहले हमें परमे’वर के साथ संगति करने को प्रधानता देनी चाहिए - तब इस बात को जान लें कि हम आपनी सृ”टी का और आपने उध्दार का मूल उद्दे’य खो बैठे हैं !

कई बार हम अपनी चारों ओर की जरूरतों में इतने अधिक खो बैठते हैं - खासकर भारत जैसे दे’ा में - कि हमारे पास परमे’वर के साथ संगति करने हेतु समय ही नही- रहता ! ‘ाायद चारों ओर की तीव्र आव’येताओं को देखते हुए परमे’वर के साथ संगति में समय बिताना हमें समय की बरबादी लगता है ! परंतु इन आधारित कार्य का क्या प्र्रतिफल हमें मिला है ? ‘ाायद कार्य बहुत है - परंतु उस कार्य का दर्जा अति निम्न स्तर का है !

गिनती करना मात्र धोखा है ! आपने ‘ाायद यह कथन सुना होगा कि इस संसाा में तीन तरह के झुठ हैं - काला झूठ, सफेद झूठ और सांख्यिकी !! सांख्यिकी एक धोखा है! और आज प्रत्येक व्यक्ति के पास सांख्यिकी है ! यी’ाु ने कभी संख्या की परवाह नहीं की !

मेरे जीवन में कई बार मुझे महत्वपूर्ण घठनाओं का सामना करना पड़ा ! ऐसा समय एक बार मेरे जीवन के आरंभ में आया जब मैं परमे’वर की सेवा करना चाहता था और मैंने समझ लिया कि यद्यपि मेरे पास परमे’वर के वचन का ज्ञान था, परंतु फिर भी मुझ में सामर्थ्य का अभाव था! इसिलिए मैंने पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाने मे लिए - स्वर्गीय सामर्थ्य से परिपूर्ण होने के लिए - परमे’वर से प्रार्थना की ! में जानता हूॅं ेक इस वि”ाय में लोगों की विभिन्न विचारधाराएॅं हैं - और मैं केसी को बदलने का प्रयास नहीं करना चाहता ! मैं केवल यह बताना चाहता हूॅं कि मैंने नया जन्म प्राप्त कर लिया था और जल का बपतिस्मा भी लिया था, परंतु "जीवन जल की नदियॉं" मुझ में से नही बह पा रही थी ! परंतु मैं जानता था कि जो कोई उस पर वि’वास करेगा उसमें से जीवन जल की नदियॉं बह निकलेंगी ऐसा परमे’वर का वचन कहता है - वे कभी सूखे न रहेंगे ! मैं वचन का ज्ञान रखता था, मैं प्रचार करता था, फिर भी मुझ में सूखापन था ! कई बार परमे’वर की सेवा मैं ऐसी कर रहा था जैसे मानो हैण्ड-पम्प से पानी निकालने का प्रयास ! आप चाहे जितना प्रयास कीजिए आप केवल कुछ ही बूॅंद जल पा सकते थे ! सचमुच यह नदियों के समान नहीं था ! फिर भी मैंने परमे’वर के वचन को स्प”ट रूप से देखा : "जो कोई मुझ में वि’वास करेगा उसमें से जीवन जल की नदियॉं बह निकलेगी !"

मैंने परमे’वर की खोज की और मैंने उसे पा लिया ! और इस बात ने मेरे जीवन की दि’ाा बदल दी ! मैंने पेन्टिकॉस्टल कलीसिया की सदस्यतस नहीं ली, न ही मैं पेन्टेकॉस्टल या कॅरिस्मॅटिक बन गया ! परंतु मैंने परमे’वर को पाया और परमे’वर ने मुझे अपनी आत्मा से भर दिया !

उसके बाद कई व”ााेर् के प’चात्‌ मेरे जीवन में और एक महत्वपूर्ण घटना घटित हुई ! वह घटना थी वास्तविकता के वि”ाय में - क्या जिस बात का मैं प्रचार कर रहा हूॅं वह मेरे भीतरी जीवन की वास्तविकता थी, और लोगों के सामने प्रचार करते समय जो बोझ मुझ में दिखायी देता था क्या वह वास्तव मे मेरे हृदय में वर्तमान था ?

करीब 28 व”ार् पूर्व, हम ने देवलाली नामक स्थान में सुसमाचार के वि”ाय पर ऑल - इंडिया कॉंफ्रेस का आयोजन किया था ! उस सभा में मैंने एक पत्रिका प्रस्तुत की ! उस समय मैं 30 व”ार् का जवान था ! और आप जानते ही हैं कि जवानी में कैसा जो’ा होता है ! मैं सब को प्रभावित करना चाहता था और मेरी पत्रिका भी प्रभाव’ााली थी, क्योंकि मैंने उसके लिए बहूत परिश्रम किया था ! मैं सेवकाई के निमित्त ऑस्ट्रेलिया और सिंगांपूर की यात्रा करता रहा जहॉं मुझे गहरे आत्मिक जीवन के वि”ाय में सभाएॅं लेने का मौका मिला ! और हर जगह पर मैं लोगों को प्रभावित करना चाहता था !

तब परमे’वर ने मुझ से कहा, "तुम लोगों को प्रभावित करना चाहते है या उनकी सहायता करना चाहते हो ?" और परमे’वर ने मुझ से कहा, "लोगों को प्रभावित करना छोड़ दो !" तब मैं परमे’वर से कहने लगा, "प्रभु, मेरा भीतरी जीवन जो मैं प्रचार करता हूॅं उसके अनुरून नहीं है !" बाहरी तौर पर मेरा रुख - प्रभु यी’ाु के समान नहीं था ! मैं आने मुॅंह से खी”ट का प्रचार कर रहा था, परंतु खी”ट का आत्मा मेरे विचारों मे कार्यरत नहीं था ! और मैं परमे’वर के साथ उस वि”ाय में खरा रहा !

मेरा वि’वास है कि परमे’वर की ओर मेरा पहला कदम है खरा उतरना !

अब तक मैं काफी विख्यात हो चुका था ! मैं पुस्तकें लिखता था और उनका प्रसारण बडे पैमाने पर था ! मेरा एक सान्ताहिक रेडियो प्रसारण भी था ! मुझे प्रचार के लिए बुलाया जाता था ! एक दिन परमे’वर ने मुझ से बात की और कहा, "क्या तू उस मंडली के सामने, जो तेरा आदर करती है यह कह सकता है कि तू जैसा तू प्रचार करता है वैसा नहीं है ?" मैंने कहा, "हॉं प्रभु, लोग मेरे वि”ाय में क्या कहते हैं इस वि”ाय में मैं परवाह नहीं करता ! मैं चाहता हूॅं कि आप मेरे लिए कुछ करें ! मैं केवल एक बात आप से चाहता हूॅं : कि मेरा भीतरी मनु”यात्व मेरे प्रचार के अनुसार हो !"

यही बात मैंने परमे’वर से तेईस व”ार् पूर्व मॉंगी ! परमे’वर ने फिर मुझ से भेंट की ! जो सच्चे मन से उन्हे खोजते हैं उन्हें वह प्रतिफल देता है ! प्रभु ने मुझ से कहा, "यहॉं ऊपर आ जा !"

पिछले बाईस व”ााेर् में परमे’वर के साथ संगति मेरे लिए एक अनमोल बात बन गयी है ! इस ने मेरे जीवन को बदल दिया है और निरा’ाा को पूर्ण रूप से मेरे जीवन से दूर हटाया है !

मैने प्रभु के साथ चलने के रहस्य को जान लिया है ! और इस के द्वारा मेरी सेवा आनंद का कारण बन गयी है ! उसमें सूखापन नहीं है !

हमारी सेवा हम परमे’वर के साथ किस प्रकार व्यक्तिगत रूप से चलते हैं इस पर निर्भर हैं ! उस समय को स्मरण कीजिए जब प्रभु यी’ाु मरियम और मार्था के घर में थे ! उन्होने मार्था से कहा, " तू बहूत बातों के लिए चिंन्ता करती और घबराती है ! मार्था को किस बात की चिन्ता थी ? वहॉं आव’यकता थी ! वह परमे’वर की सेवा निस्वार्थ भाव से और समर्पण भाव के साथ कर रही थी ! वह रसोईघर के कमरे में उसके लिए पसीना बहा रही थी ! खुद के लिए नहीं परंतु यी’ाु के लिए और उनके ’ा”यों के लिए खाना बना रही थी ! उससे बढ़कर और क्या सेवा उस समय हो सकती थी ? उसमें स्वार्थ नहीं था ! वर्तमान समय के कई सेवकों के समान वह पैसों के लिए या वेतन पाने के उद्दे’य से ऐसा नहीं कर रही थी ! नहीं ! उसमें ले’ामात्र भी स्वार्थ नहीं था ! परंतु फिर भी यी’ाु ने उसे कहा, "तू बहुत बातों के लिए चिन्ता करती और घबराती है !" उसने सोचा कि मरियम स्वार्थी है, वह प्रभु के चरणों में निठल्ले के समान बैठ कर केवल उनकी बातेे सुन रही थी ! और यी’ाु ने कहा, "यही बात अति महत्वपूर्ण है ! इसी एक बात की आव’यकता है !"

लिविंग बाइबिल में 1 कुरिन्थियों 4:2 का अनुवाद इस प्रकार किया गया है :

"सेवक के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह केवल वही करे जो उसका स्वामी उसे बताता है 
!"
इस बात ने मेरे हृदय को बड़ी प्रदान की ! जब मैं जरूरतमंद संसार की और देखता हूॅं तब मेझे क्या करना है ? क्या आव’यकताओं के कारण थक कर चूर हो जाएॅं ? इस मसीही संसार में कई बातें ऐसी हैं जो मुझे थका देने के काम में व्यस्त कर देना चाहता है ! परंतु मैं प्रभु से कहता हूॅं, "प्रभु, मैं आपकी सुनना चाहता हूॅंं!" कई मार्थाएॅंँ हैं जो मेरी आलोचना करेंगी ! वह कहेंगी, "उसे कहो के वह केवल सुनने में अपना समय बरबाद न करें, जबकि पाप में ना’ा होने वाला जरूरतमंद संसार चारो ओर बिखरा पड़ा है !"

हमें वास्तव में संसार की आव’यकताओं की ओर देखना है ! यी’ाु ने कहा "अपनी ऑंखे उठा कर देखो, फाल पक चुकी हैं !" हमें आव’यकताओं की ओर देखना है, और अन्य लोगों का भी ध्यान उस ओर लगाना है ! जी हॉं ! परंतु यह बुलाहट परमे’वर की ओर से हो - न कि मनु”य की ओर से ! मैंने यह जान लिया है !

चार हज़ार व”ार् तक यी’ाु स्वर्ग में बैठे रहे, जबकि संसार उध्दारकर्ता की इन्तजार में ना’ा हो रहा था ! परमे’वर पिता के समय से पहले उन्हें कोई स्वर्ग छोड़ने पर मज़बूर नहीं कर सकता था ! परंतु "जब समय पूरा हुआ तब" वह आये और जब वे संसार में आए तब वे तीस व”ार् तब टेबल और बेन्च बनाते रहे - जबकी संसार पाप में मर रहा था ! वह केवल आव’यकता देख कर व्याकुल नहीं हुए ! परंतु जब उचित समय आया, तब पिता ने कहा, "जाओ !" और वह निकल पड़े ! जो वह 3000 व”ार् में कर सकते थे, वह उन्होंने साढ़े-तीन व”ार् में पूर्ण किया ! सेवक के लिए महत्वपूर्ण बात यह नहीं कि वह यहॉंँ दौड़े या वहाँ दौड़े, और अपने स्वामी परमे’वर के लिए काम करता रहे, परंतु यह कि उनकी सुनें ! सुनना अति कठिन कार्य है !

मैं अपनी जवानी में एक कलीसिया में था ! वहाँ रहते हुए हम वचन का नियमित रून से अध्यएन करते थे और उपवास और प्रार्थना करते थे ! हमें प्रति दिन सुबह परमे’वर के वचनों पर मनन करने की ’ाक्षा दी गयी थी ! यह अच्छी आदत है जिस पा हमें अमल करना है ! परंतु फिर भी परमे’वर की उपस्थिती में इतना समय व्यतीत करने के बाद भी लोगों के स्वभाव में कटुता, ई”र्या, आलोचना करने का स्वभाव, संदेह करने का स्वभाव होता है ! मैंने अनुभव किया है कि कई बार परमे’वर के लोगों के साथ 10 से 15 मिनट का समय व्यतीत करने के बाद उनकी उपस्थिति में दस से पंद्रह मिनट व्यतीत करेंगे तो उसके द्वारा हमें क्या लाळा प्राप्त होगा इस वि”ाय में क्या अपने कल्पना की है ? परमे’वर ने मुझे बता दिया कि मैं मनन के समय परमे’वर के साथ समय व्यतीत नहीं कर रहा था, परंतु मैं खुद के साथ समय बिता रहा था ! मैं किसी पुस्तक का अध्ययन कर रहा था, रह पुस्तक बाइबल थी या केमिस्ट्री की पुस्तक थी इसमें कोई फर्क नहीं पड़ रहा था - मैं परमे’वर के साथ समय नहीं बिता रहा था, नही उनकी सुन रहा था, परंतु मैं केवल किसी पुस्तक का अध्ययन कर रहा था !

यी’ाु ने कहा, "एक बात की आव’यकता है --- सुनना" (लूका 10:42) ! इसी सोते से सारी बातें प्रवाहित होती हैं !

और यही परमे’वर की सेवा करने का एक प्रभाव’ााली मार्ग है - क्योंकि वह हमें बता सकते हैं कि आपको क्या करना चाहिए !

पिता ने प्रभु यी’ाु को बताया कि वह क्या करें ! एक समय परमे’वर की आत्मा ने प्रभु यी’ाु को बताया कि वह गलील से इस्त्राएल की सीमा पर स्थित सायरोफोनि’ाया को 50 मील की दूरी तय करते हुए जाएँ ! उस स्थान पर पहुँचने में उन्हें कितना समय लगा यह मैं नहीं बता सकता, ‘ाायद सारा दिन ! वहाँ उनकी भेंट एक स्त्री से हुई जो दु”टात्मा से पीड़ित थी ! उन्होंने उस दु”टात्मा को बाहर निकाला और जब उस स्त्री ने उन्हें मेज से गिरे हुए रोटी के टुकड़े माँगे, तब उन्होंने उस स्त्री के महान वि’वास की ओर संकेत किया ! वह फिर गलील को लौट पड़े ! इस प्रकार का जीवन यी’ाु व्यतीत करते थें ! केवल एक आत्मा को बचाने हेतु वे उतनी दूरी तय करते हुए गए ! यह सेवा गिनती की दृ”ट से महत्वपूर्ण नहीं था, परंतु परमे’वर की यही इच्छा थी !

इस प्रकार प्रभु यी’ाु ने साढ़े तीन व”ार् तक सेवा की ! और उस समय के अन्त में उन्होंने कहा,"पिता, जो कार्य आपने मुझे सौंपा था उसे मैंने पूरा किया हैं" (यूहन्ना 17:4). क्या उन्होंने संसार की सारी आव’यकताओं को पूरा किया - भारत दे’ा की और आफ्रिका की जरूरतों को क्या वह पूरा किया जो पिता ने उन्हें सौंपा था ! और उसके प’चात्‌ वे इस संसार में एक दिन भी नहीं रहे! प्रेरित पौलुस ने भी कहा,"मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है !"

आपकी बुलाहट भिन्न हो सकती है, मेरी बुलाहट भिन्न है, परंतु हमस ब को यह समझ लेना है कि परमे’वर हमस े क्या करवाना चाहते हैं ! हम अपने जीवन में परमे’वर की वाणी को सुनने में असमर्थ हो जाते हैं इसका कारण हमारे जीवन में पायी जाने वाली अवास्तविकता - अप्रामाणिकता और पाखण्ड !

फरीसी प्रभु यी’ाु की आवाज को सुन नहीं सके क्यांकि उनका जीवन पाखण्ड से भरा हुआ था ! वे अन्य लोगों के सामने यह प्रभाव रखते थे कवे धार्मिक हैं ! वे लोगों के सामने उस समय के अगुवे और ज्ञानी माने जाते थे ! यदि आप ये पतरस या यूहन्ना से पूछते, "पतरस, यूहन्ना, क्या आप इस ‘ाहर के कुछ धर्मी जनों के नाम जानते हैं ? तो वे आप से सिनेगॉग के कुछ प्राचीन फरीसियों नाम बताते ! लोगों की यह धारणा थी कि जो लोग पवित्र ‘ाास्त्र का अभ्यास करते, उपवास करते, प्रार्थना करते, जो धर्मी दिखाई देते वे वास्तव में परमे’वर के जन हैं ! परंतु जब सिनेगॉग के इन प्राचीनों को जो नरक की और अग्रसर हो रहे थे, यी’ाु ने पाखण्डी कहा, तब वे दंग रह गये !

जब यी’ाु ने अपने ’ा”यों को चुना तब उन्होंने बाइबल - ‘ााला के किसी भी छात्र को नहीं चुना ! उन दिनों यरु’ालम में गमलीएल द्वारा एक बाइबाल-’ााला चलायी जाती थी ! परंतु यी’ाु वहाँ अपने लिए चेले खोजने नहीं गए ! उन्होंने उन्हें गलील के सागर किनारे से चुना - अनपढ़ लोगों को - और उन्हे आने प्रेरित बनाया ! और उन्होने ऐसी पुस्तकें लिखी जो आज के बाइबल सेमिनरीज़ में लोगों को ई’वरीक ज्ञान में डॉक्टॉरेट करने हेतु पढ़ने दी जाती है ! क्या यह अद्भुत नहीं ? मैं सोचता हूँ कि स्वयं पतरस भी हमारे सेमिनरीज़ में प्रवे’ा पाने की योग्यता नहीं रखता था ! ‘ाायद एक ही व्यक्ति वह डिग्री पा सकता था - यहूदा इस्कर्योती जो उन सब में हो’ायार और कु’ाल था !

यी’ाु ने ऐसे लोगों को क्यों चुना ? क्योंकि वे सरल-हृदय के थे और उनकी सुनने के उत्सुक थे ! जब ये सामान्य लोंग किसी सिनेगॉग में प्रचार करने जाते तो वहाँ बड़ी हलच लमच जाती ! वे ऐसा प्रचार नहीं करते थे जो लोगों ने आज तक नित्य सुना था ! वे भवि”यद्वक्ता थे और लोगों ने भवि”यद्वक्ताओं को कभी प्रिय नही जाना था ! इस्त्राएल के 1500 व”ार् के इतिहास में उन्होंने "किस भवि”यद्वक्ता को नहीं सताया था ?" जैसा कि स्तिफनुस ने कहा !

यह प्रेरित कु’ाल वक्ता तो नहीं थें ! वे भवि”यद्वक्ता थे और मेरा वि’वास है कि हमारे दे’ा को इस समय भवि”यद्वक्ताओं की आव’यकता है, ताकि हम परमे’वर क्या कहते हैं यह हम सुन सकें !

मनु”य की दृ”ट में जो महान और बड़ा है उसकी परमे’वर परवाह नहीं करते ! मै इस तरह की सभाओं के विरोध में नही हूँ, परंतु मैंने इस तरह की सभाओं में जाना बीस साल पहले ही बंद कर दिया है ! मैं इस तरह के नियत्रण स्वीकार नहीं करता ! मैं जानता हूँ कि ऐसी सभाओं में आप नाम कमा सकते हैं, क्योंकि इन सभाओं के द्वारा हम लागों के सामने आते हैं ! परंतु हमारे दे’ा के देहातों में जहाँ मैं इस समय सेवारत हूँ, य़ात्रा करते समय मैंने पाया है कि जो वास्तव में सेवा करते हैं वे इस तरह की सभाओं में नही, लेकिन गाँवों में जाकर सेवा करते हैं !

वे म’ाहूर नहीं हैं, वे ऐसे लोग हैं जो देहातों में सेवा कर रहे हैं ! वे अँग्रेजी बोलना नहीं जानते ! वे पवित्र आत्मा से भरे हैं और परमे’वर से प्रेम करते हैं और बाहर जाकर मसीह के लिए आत्माओं को खोज लाते हैं ! ऐसे लोगों के लिए परमे’वर का धन्यवाद हो ! अन्य लोग मि’ान का निर्माण करते हैं और मि’ान के अगुवे जाने जाते हैं और सम्मान पाते हैं ! जब यी’ाु आएँगे तब आज जो प्रथम हैं वे अंतिक सिध्द होंगे ! इसलिए यह भला है कि हम नम्र बनें ! बेहतर है कि यह अपने लिए खुद की दृ”टी में छोटे बने रहें ! ‘ाायद हम परमे’वर की दृ”टी में उतने महान नहीं हैं जितना लोग हमें हमारी डिग्रियों और पद्वियों के कारण समझते हैं ! इनके द्वारा हम लागों पर प्रभाव डाल सकते हैं, परंतु परमे’वर पर नहीं ! सच तो यह है कि वे ‘ाैतान को भी प्रभावित नहीं कर सकते ! ‘ाैतान पवित्र जन से, सच्चे वि’वासी से डरता हैं ! वह ऐसे व्यक्ति से डरता है, जो बाहर और अंदर एक-सा है ! ऐसा व्यक्ति जो उस बात का प्रचार नहीं करता जिसे वह स्वयं अमल में नहीं लाता !

लोग मुझ से पूछते हैं, "भाई ज़ैक, आप लोगों को उत्तर हिंदुस्तान में जाने का आग्रह क्यों नही करते ?" मैं कहता हूँ, यी’ाु ने केवल उन्हीं बातों को सिखाया जिसे वे स्वयं पहले करते थें !" (प्रेरितो के काम 1:1)

मैं स्वयं उत्तर भारत में नहीं रहा, इसिलिए मैं लोगों को ऐसे करने नहीं कह सकता ! मैं लोगों से य नहीं कहता कि वे वैसा न करें ! मैं केवल यह कहता हूँ, कि जो मैंने नहीं किया उसका प्रचार मैं नहीं करता !

परंतु मैं मसीही की संपूर्ण देह नहीं हूँ ! मैं केवल उसका एक हिस्सा हूँ ! मैं प्रभु की देह का एक असंतुलित हिस्सा हूँ ! मैं हमे’ाा असंतुलित रहूँगा ! इस पृथ्वी पर केवल प्रभु यी’ाु ही एक मात्र सतुलित व्यक्ति थे ! आप और मैं असंतुलित हैं ! हम में से कोई भी यह न सोचे कि वह किसी एक अंग से बढ़ कर है ! प्रत्येक अंग जरूरी है - प्रचारक, ’ाक्षक, चरवाह, भवि”यद्वक्ता और प्रेरित - ताकि लोग मसीही की दे हके अंग बनें और प्रभु की देह बनती जाए !

हमारी बुलाहट क्या है ? जो मसीही की दे हके अंग नहीं हैं उन्हें मसीह की दे हके अंग बनाएँ ! क्या यह मुख्य रूप से हमारी बुलाहट नहीं है ? मैं सोचता हूँ हमस ब इस बात से सहमत हैं !

पवित्र आत्मा "देह" ‘ाब्द का प्रयोग करते हैं, इसलिए मैं ‘ाारीरिक देह का उदाहरण देना चाहता हूँ ! यहाँ मेरे सामने आलू की एक थाली रखी है ! इसे मेरी देह का अंग बनना है ( यह थाली अवि’वासी का प्रतीक है ) ! यह कैसे होगा ? प्रथमत: सुसमाचार के द्वारा - हाथ को आगे बढ़ कर आलू उठाना है !

इस कार्य में सुसमाचार पहले स्थान पर है ! इसलिए मैं सुसमाचार को तुच्छ नहीं जानता इसलिए मै उसे स्थान देता हूँ - और खास कर उन्हें जो उत्तर हिन्दुस्तान की धूल में और गर्मी में यह सेवा कर रहे हैं! मैं उनकी रिपोर्टस्‌ को पढ़ता हूँ - कई पत्रिकाएँ मुझे आती हैं ! वहाँ जो सेवारत हैं उनकी सेवा के वि”ाय में पढ़ना मैं बहुत पसंद करता हूँ ! उनमें से कुछ लोगों की भेंट करने हेतु मैं वहाँ गया भी था !

मैं उस आलू को अपने हाथ से उठाता हूँ ! जब तक प्रचारक (मेरा हाथ) बाहर जाकर सुसमाचार का कार्य न करे (आलू मेरे मुँह में न डाले) तब मक यह आलू मेरी देह का हिस्सा नहीं बन सकता !

परंतु क्या यही सब कुछ है ? यदि मैं यह आलू अपने मुँह में रखूँ तो क्या वह मेरी देह का भाग बन जाएगा ? नहीं ! कुछ समय बाद वह मेरे मुँह में सड़ जाएगा और मुझे उसे थूकना होगा ! इसी तरह कुछ नए वि’वासी आज हमारे गिरजाघरों में सड़ रहे हैं ! उन्हें लाया जाता है और रखा जाता है !

परंतु उस आलू के साथ कुछ और करना है ! इसे दाँतों से चबाना जरूरी है ! उसके बाद आलू सोचेना कि अब सब कुछ हो गया ! परंतु नहीं ! आलू मेरे पेट में जाता है, और वहाँ उस पर कुछ अम्ल उण्डेले जाते है ! यह कलीसिया के भवि”यद्वक्ता की सेवकाई है ! जब हम पर अम्ल उण्डेला जाता है तब हमें अच्छा नहीं लगता ! थाली से उठाने की सेवा बहुत अच्छी थी ! परंतु जब अम्ल उण्डेला जाता है तब अच्छा नहीं लगता ! अब आलू पूरी तरह से टूट जाता है और अ बवह आलू के समान नहीं दिखता, परंतु कुछ हफ्तों में वह खून, मांस और हड्डी बन जाता है - मेरे ‘ारीर का भाग !

इस सेवा में किसका कार्य सब से महत्वपूर्ण था ? यदि हम नम्र हैं तो हम कबूल करेंगे कि हम असंतुलित हैं ! हाथ पेट का सहायक है ! दु:ख की बात यह है कि मसीही मण्डली में अंगो के बीच लगातार सर्वश्रे”ठ कहलाने की होड़ लगी है ! हाथ अपना राज्य बसा राहा है, पेट अपना और मुँह अपना राज्य उभार रहा है ! फिर हमारे पास क्या रहा ? ‘ारीर नहीं, परंतु "देह की एक प्रयोग’ााला," हाथ यहाँ, पेट वहाँ, पाँव यहाँ ! यह ‘ारीर नहीं है !

हमें सब से अधिक किस बात की जरूरत है ? हमें ’ाक्षा की आव’यकता है, यह सच है ! परंतु हमें उससे भी अधिक आव’यकता नम्रता की है ! हमें इस बात को मानना है कि हमस ब अर्थात्‌-मसीह की देह का प्रत्येक अंग समान रूप से महत्वपूर्ण हैं ! वह गरीब भाई भी जिसे अँग्रजी नहीं आती, परंतु वह बाहर जाकर आत्माओं को लाता है वह भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना किसी मि’ान का अगुवा ! वे समान रूप से मसीह के देह के अंग हैं !

"यहाँ ऊपर आ, " यी’ाु कहते हैं, "और मेरी दृ”टी से देख !" सांसारिक दृ”टी से बढ़ कर जब हम परमे’वर की दृ”ट देखते हैं तब हमें वह बातें भिन्न दिखायी देती हैं !

मसीही सेवकों में खुद के वि”ाय में इतने उँचे ख्याल क्यों हैं ?

ईमानदारी के साथ कहिए कि जब आप अकेले रहते हैं तब आपके विचार खुद के वि”ाय में क्या हैं ? आप नम्रता के साथ यह सोचते हैं कि आप खुद कुछ भी नहीं ?

मै कभी कभी बाहर जाकर सितारों की ओर देखता हूँ ! मैं जानता हूँ कि आका’ा में लाखों सितारे हैं और यह पृथ्वी इस पूरे वि’वमंडल में मात्र एक बिंदु है ! और फिर मैं कहता हूँ, "हे प्रभु, आप कितने महान है ! यह वि’व कितना वि’ााल है ! और इस छोटे बिन्दु मात्र पृथ्वीपर मैं मात्र एक धूलि का कण हूँ ! फिर भी मैं आपका प्रतिनिधि होने का दावा करता हूँ और बड़ी बड़ी बातों का प्रचार करता हूँ ! मेरी सहायता कीजिए कि मैं खुद का सही मूल्य लगा सकूँ" ! मैं चाहता हूँ कि आप सभी परमे’वर से यही कहें !

परमे’वर दीन व्यक्ति पर अनुग्रह करते हैं ! ज्ञान तो सभी पाते हैं, ज्ञान तो दीन जन ही पाता है ! हमें ज्ञान से बढ़ कर अनुग्रह की आव’यकता है !

मैं उन जवानों के वि”ाय में सोचता हूँ जो प्रभु के पास आते हैं और उन्हें अपने वि’वास के लिए उनके परिवारों की ओर सताया जाता है ! जब ऐसा व्यक्ति हमारी मंडली में आता है त बवह क्या देखता है ? क्या वह प्रभु यी’ाु की आत्मा को यहाँ देखता है ! हमारे आसपास के लोगों के मन में मसीहियत के वि”ाय में गलत विचार हैं !

मेरा ऐसा वि’वास रहा है कि सभी प्रभाव’ााली सेवकाई का, - चाहे वह सुसमाचार की सेवा हो या अन्य - पहला सिध्दान्त इब्रानियों 2:17 में पाया जाता है, जहाँ लिखा है कि यी’ाु "सब बातों में अपने भाईयों के समान बने !" मैं इस बात पर मनन करना चाहूँगा कि - यी’ाु सब बातों में अपने भाईयों के समान बने !

मैं दूसरों की सेवा कैसे कर सकता हूँ ? मुझे सब बातों में उनके समान बनना है ! मुझे उनके स्तर पर जाना है ! मैं जमीन पर चलने वाली चींटी के साथ बातचीत क्यों नहीं कर सकता, क्योंकि मैं उसके लिए बहुत बडा हूँ ! यदि मैं मनु”य रूप् में उस चींटी के पास जाऊँगा तो वह डर जाएगी ! उस चींटी के साथ मैं वार्तालाप तभी कर सकता हूँ जब मैं पहले उसके समान न बन जाऊँगा ! परमे’वर तब तक हमस े बातचीत नहीं कर सकते थे जब तक वे हमारे समान नहीं बन जाते ! हम सभी इस बात को समझ सकते हैं ! परंतु इस बात को हम स्मरण करें कि हमारी सेवकाई, चाहे वह स्थानीय कलीसिया के साथ हो या दूर किसी इलाके में जहाँ कोई पहुँचा नहीं है वहाँ हो - पहला सिध्दान्त यह है कि हमस ब बातों में उनके समान बन जाएँ, "जहाँ वे बैठते हैं वहाँ हम बैठें," जैसा यहेजकेल ने कहा है (यहेजकेल 3:15) !

उदाहरण के तौर पर, इसका अर्थ है कि हम खुद को अन्य लोगों से किसी भी तरह से ऊँचा न करें ! इसीलिए प्रभु यी’ाु ने अपने ’ा”यों से कहा कि वे किसी भी पदवी को जैसे, "रब्बी","पिता" या अन्य लोगों से जिसकी आप सेवा करते हैं, उँचा उठाएगी ! दनके समान बनने के ऐवज में आप उन्हें अपने बड़प्पन के द्वारा प्रभावित करने का प्रयास करेंगे !

इस चेतावनी के बावजूद भी, हमारे मसीही संसार में ऐसे कई लोग हैं जिनके पास कई पद्वियाँ हैं !

हम सोचते हैं कि हम संसार के तौर तरीके अपनाने के द्वारा बेहतर तरीके से पामे’वर की सेवा कर सकते हैं ! परंतु यह सच नही हैं !

पुराने नियम हम पढ़ते हैं कि फिलिस्तयों ने एक बार परमे’वर की वाचा का संदूक छीन लिया ! परंतु वे समस्याग्रस्त हो गए, और उन्होंने उसे बैलगाड़ी पर लौटा दिया ! कई व”ााेर् बाद जब दाऊद वाचा का संदूक दूसरे स्थान में ले जाना चाहता था तब उसने सोचा, "यह बहुत अच्छा विचार है ! कम दूरी के लिए तो ठीक है कि लेवी वाचा के संदूक को अपने कांधे पर उठाकर चले ! परंतु दूरी के लिए फिलिस्तियों का तरीका बेहतर है !" और इसलिए उसने वाचा के संदूक को बैलगाड़ी पर रखा ! और क्या हुआ ? बैलों ने ठोकर खायी ! तब उज्जा ने अपना हाथ परमे’वर के उठा ! वह परमे’वर के संदूक के सामने मर गया, क्योंकि वह लेवी नहीं था ! परमे’वर अपनी योजनाओं को नहीं बदलता ! इससे दाऊद बहुत अप्रसन्न हुआ ! परंतु इसका आरंभ कहाँ हुआ था ? दाऊद ने फिलिस्तियों की नकल की और मृत्यु आयी !

जब हम संसार के तरीके अपनाते हैं, जब मसीही संस्थाएँ व्यापार संस्थाओं के मार्ग पर चलती हैं, और मसीही कार्य में धन को पहला स्थान दिया जाता है, तब मृत्यु प्रवे’ा करती हैं !

प्र’न यह है कि यदि सारा पैसा आना बंद हो जाए तो क्या जिन कलीसिया या संस्थाओं के साथ हम काम करते हैं, वे कलीसिया या संस्थाएँ बंद हो जाएँगी? या सभी किया धरा पानी में मिल जाएगा ? परमे’वर के सच्च्ो कार्य में धन का उपयोग जरूर किया जाता है, परंतु वह कार्य धन पर निर्भर नहीं होता ! वह कार्य केवल पवित्र आत्मा पर निर्भर होता है !

बाइबल कहती है कि पवित्र आत्मा जलन रखती हैं (याकूब की पत्री 4:5) - वह तब जलन रखती हैं जब उनका स्थान कलीसिया में किसी वस्तु को या अन्य व्यक्ति को दिया जाता है ! वह चीज़ संगीत हो सकती है ! मैं संगीत के विरोध में नही हूँ ! हमारी मंडलियों में संसार की नकल न करते हुए हम बेहतर से बेीतर संगीत अपनाएँ ! परंतु हम संगीत पर निर्भर न रहें !

उदाहरण के तौर पर, यदि हम सोचते हैं कि सभा के अंत में धीमी आवाज़ में ऑर्गन बजा कर यदि हम लोगों को निर्णय लेने हेतु प्रेरित करें तो क्या यह गलत है ? यह पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, यह केवल मनोविज्ञान का तरीका है !

जैसे प्रभु यी’ाु ने प्रचार किया, जैसे पतरस ने प्रचार किया वैसे यदि हम पवित्र आत्मा की सामर्थ में परमे’वर के वचन का प्रचार करते तो सभा के अंत में हमें धीमी आवाज़ में ऑर्गन बजाने की आव’यकता नहीं होती ! आप चाहें तो ऐसा कर सकते हैं, परंतु इससे कुछ लाभ न होगा ! परंतु यदि आपके पास पवित्र आत्मा की सामर्थ का अभाव है तो आप मनोविज्ञान के तौर तरीके अपना कर लोगों को निर्णय लेने हेतु उत्साहित कर सकते हैं ! परंतु अंत में आप पाएंगे कि ऐसे निर्णय केवल भावना में भर कर और ऊपरी तौर वर किए गए थे !

पवित्र आत्मा ई”र्या रखती हैं ! वे कलीसिया में अपना उचित स्थान चाहते हैं ! आप उनके स्थान पर ई’वरीय ज्ञान को नही रख सकते ! आप उनका स्थान संगीत को नहीं दे सकते ! आप उनका स्थान धन को नहीं दे सकते ! इन सारी बातों के लिए परमे’वर का धन्यवाद हो ! उन सभी बातों का उपयोग कीजिए ! यी’ाु ने पैसे का उपयोग किया ! हम उसके विरोध में कैसे हो सकते हैं ? ऐसा भी लिखा है के यी’ाु ने गीत गाया ! इब्रानियो 2:12 में, हम पढ़ते हैं कि स्वयं प्रभु यी’ाु मसीह परमे’वर की आराधना करने में हमारी अगुवाई करते हैं ! सो जब हम परमे’वर की स्तुति करते हैं तब हम अपने अगुवे का अनुसरण करते हैं ! फिर हम संगीत कैसे विरोध कर सकते हैं ! हम किसी भी बात के विरोध में नहीं हैं ! प्र’न इस बात का हैं के हम किस पर निर्भर रहते हैं !

क्या मि प्रभाव’ााली व्यक्तियों पर या महान प्रचारकों पर निर्भर पर रहते हैं ? नहीं, पवित्र आत्मा ई”र्यावान हैं !

यी’ाु मसीह सेवक बने ! प्रत्येक मसीही अगुवा सेवक की जीवन ‘ाैली के वि”ाय में, सेवक बनने के वि”ाय में प्रचार करता है ! उस वि”ाय पर कई पुस्तकें भी लिखी गई हैं ! परंतु प्रत्यक्ष जीवन में उसका क्या अभिप्राय है ? मुझे आपसे पूछने दीजिये: आप अपने सहयोगी के साथ कैसा व्यवहार करते हैं ? आप उस सहयोगी के है ? क्या वह सचमुच आपका भाई है या क्या वह आपसे डरता है ? यदि ऐसा है तो, आप विना’ा के दिन तक सेवक बनने के वि”ाय पर प्रचार करते रहिए मैं यही कहूँगा कि आपने उसका अर्थ नहीं जाना हैं ! आपने यी’ाु को नहीं देखा हैं !

यी’ाु एक साधारण व्यक्ति थे ! उन्होंने किसी पर गलत प्रभाव डालने का प्रयास नहीं किया ! उन्होंने कहा, "मैं मनु”य का पुत्र हूँ !" इसका अर्थ है, "सामान्य जन" वह परमे’वर के पवित्र और नि”पाप पुत्र थे जो आदि से परमे’वर पिता के साथ रहते थे ! परंतु वे साधारण मनु”य बन कर इस संसार में आए ! वे सभी बातों में अपने भाईयों के समान बने ! सभी बातों में अपने भाईयों के समान बनने हेतु हमम ैं किसी बात का मर जाना जरूरी है ! यी’ाु के वि”ाय कहा गया है कि "वह मृत्यु तक नम्र बने रहे " जब हम स्वयं के लिए मर जाते हैं, तब हम अपनी नम्रता प्रमाणित मरते है !

जब गेहूँ का दाना जमीन पर गिर कर मर जाता है त बवह बहुत फल लाला है ! यह बात मैंने 22 व”ार् पहले जान ली ! मैंने जान किया कि यदि मैं भारत दे’ा में परमे’वर के लिए बड़े बड़े काम करना चाहता हूँ, तो मुझे भूमि पर गिर कर मर जाना है, अपनी इच्छा के लिए, लोग मेरे वि”ाय में क्या कहते हैं इसके लिए, अपनी इच्छाओं के लिए अपने लक्ष्य के लिए, धन के मोह के लिए, अपने स्वयं के लिए मर जाना है ताकि सारी बातों में मेरे लिए केवल प्रभु यी’ाु बचे रहे, ताकि मैं प्रति कदन उनकी ओर देखता रहूँ और सच्चाई के साथ्ां कह सकूँ (भजन के लिखनेवाले के समान कि,

"स्वर्ग में मेरा और कौन है ? तेरे संग रहते हुए मैं प1थ्वी पर और कुछ नहीं चाहता" (भजन सहिंता 
73:25)!

कई बार मैं आने बिछौने पर पड़ा पड़ा परमे’वर से कहता हूँ, "प्रभु, मेरी सेवकाई, मेरा परमे’वर नहीं है ! केवल आप मेरे परमे’वर, मेरा सर्वस्व हैं ! आप मेरी आवाज़ ले सकते हैं, मेरे साथ जो चाहे कर सकते हैं ! फिर भी मैं आपसे प्रेम करूँगा, "कोई भी मेरे आनंद को मुझ से छीन नहीं सकता - क्योंकि परमे’वर की उपस्थिति में आनंद की भरपूरी है ! उसी सोते से हमारे जीवन जल की नदियाँ बह सकती है !"

आखरी बात : कई व”ार् पहले, जब मैं एक जवान मसीही था, तब परमे’वर ने मुझे से 2 ‘ामुएल 24:24 से बात की, जहाँ दाऊद कहता है, "मैं अपने परमे’वर यहोवा को सेतमेंत के होमबलि नहीं चढ़ाने का !"

प्रभु यी’ाु ने उस दिन मुझ से जो कहा उसका सार यह था के जब वे इस संसार में आए तब उन्हें अपने सर्वस्व का मूल्य देना पड़ा ! और यदि मैं उनकी सेवा करना चाहता हूँ, तो मुझे भी उसी भावना के साथ उनकी सेवा करनी होगी ! मेरी प्रत्येक सेवा के लिए मुझे कुछ न कुछ मूल्य देना होगा !

आप किस तरह प्रभु की सेवा कर रहे है ? क्या उसके लिए आपको कुछ मूल्य देना पड़ा ? आज हमारे दे’ा में प्रभु के कई सेवक हैं जो सांसारिक आमदनी से दस गुना अधिक ज्यादा कमा रहे हैं !

क्या यह बलिदान है ?

जब मैंने 31 व”ार् पहले नौसेना दल की नौकरी त्यागी तब मैंने यह नि’चय कर लिया कि मैं मेरी सांसारिक आमदनी से अधिक जो धन प्राप्त होगा उसका स्वीकार नहीं करूँगा ! इसी निर्णय में मैं 31 व”ार् तक बना रहा हूँ !

हमें दूसरों का न्याय करने की, या उन्हें परखने की आव’यकता नहीं हैं ! मैं आपका न्याय नहीं करना चाहता हूँ ! मैं आप में से कई लोगों को नहीं जानता ! इसलिए मेरे लिए आज यह कहना आसान नहीं है कि यदि आप सांसारिक पे’ाे में होते तो आपकी आमदनी क्या होती ?

जॉन वेस्ली अपने सहयोगी से कहते हैं, "कोई ऐसा न कहने पाए कि सुसमाचार प्रचार करने के द्वारा आप धनी हो गए हैं !"

क्या आप जानते हैं कि मसीही सेवकाई में सब से अधिकाई रूकसवट कहाँ है? यहाँ, इसी क्षेत्र में ! आप परमे’वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते ! इसी विवाद को हमें सब से पहले सलझाना है ! हम अन्य सभी वि”ाय्रो के बारे में चर्चा कर सकते हैं ! परंतु हम पैसों के लोभ की इस समस्या का हल नहीं खोजेंगे तो हमारी सेवा व्यर्थ है !

लोग अपने घरों को एक जगह से दूसरी ज्रह पर बनाते हैं ! इसमें गलत कुछ भी नहीं है ! यी’ाु भी अपना स्वर्गीय घर त्याग कर पृथ्वी पर आए ! परंतु जब उन्होंने अपना स्थान बदला तब वे निम्न स्थान पर आए ! इसका कारण उनके मन में इस संसार के लोगों के प्रति बोझ था !

आपने किस कारण अपना घर बदला है ?

मैं फिर कहना चाहता हूँ कि मैं आप पर दो”ा नहीं लगा रहा ! मैं केवल पूछ रहा हँ!

क्या आपने अपने वास स्थान को इस कारण बदला क्योंकि आपको ऐसा लगा कि आप अपने नये स्थान से भारत में जिसके लिए आपको बड़ा बोझ है, परमे’वर की सेवा अधिक प्रभाव’ााली रूप से कर सकते हैं ? क्या वास्तव में आपके हृदय पर बोझ है ?

क्या हम दक्षिण भारत में आराम से रहकर उत्तरी भारत के देहातों के लिए बोझ रख सकते है ? ‘ाायद ! परंतु ‘ाायद मैं ऐसा नहीं कर सकता !

क्या आप अमेरिका में रहकर भारत के लिए अपने दिल में बोझ रख सकते हैं ? जी हाँ - केवल पन्नें पर ! पन्नों पर आप किसी भी बात के लिए बोझ रख सकते हैं !

‘ाैतान धोखा देने वाला हे ! वह हमें धोखा देता है ! वह हमें यह महसूस करता है कि हमारे पास किसी बात के लिए बोझ है, परंतु वास्तव में यह झूठ है !

मैं चाहता हूँ कि आप खुद से ईनामदार रहें !

मैं आपके सामने कोई लेख प्रस्तुत नहीं कर रहा ! मैं आने हृदय का बोझ है !

मेरा वि’वास है कि यही परमे’वर के हृदय का बोझ है !

मेरे भाई -बहनों, मैं आप पर दो”ा नही लगा रहा हूँ ! परमे’वर ने मुझे कई व”ााेर् पहले कहा, "यदि तुम दूसरों पर दो”ा लगाओंगे तो ना’ा हो जाओगे !"

आज मैं परमे’वर के सामने खड़ा हो होंकर कहता हूँ कि मैं किसी पर दो”ा नहीं लगा रहा हूँ ! मैं खुद को परख हरा हूँ ! और मैं ंप’चाताप करता हूँ ! मेरा प्रतिदिन का जीवन प’चाताप का जीवन है - क्यों कि अपने जीवन के कई क्षेत्र में खुद को प्रभु की यी’ाु की समानता में नहीं पाता ! मैं प’चाताप करते हुए कहता हूँ, "प्रभु मैंने उस व्यक्ति के साथ प्रेमपूर्वक बात नहीं की ! मुझे सीखना है कि कैसे बोला जाए !"

जो व्यक्ति अपनी जीभ पर नियंत्रण नही रख सकता - उसकी मसीहियत का मूल्य ‘ाून्य है, जैसा याकूब कहता है (याकूब 1:26) !

मैं इस वचन को निरंतर अपनी आँखों के सामने रखना चाहता हूँ !

पौलुस ने एक बार अपने सहकर्मियों के वि”ाय में कुछ कहा था ! वह किसी को फिलिप्पी भेजना चाहता था और उसने केवल तीमुथियुस को योग्य पाया क्योंकि उस समय जो भी उसके साथ थे वे अपना ही स्वर्थ खोज रहे थे (फिलिप्पियों 2:19 -21) ! पौलुस ने यह कियी अन्य जाति के वि”ाय में नहीं कहा, परंतु अपने ही सहयोगियों के वि”ाय में कीा ! पौलुस के दल में ‘ाामिल होना ही सम्मान की बात थी ! क्योंकि पौलुस इस तरह का व्यक्ति था जिसने यूहन्ना जो मरकुस कहलाता था उसे भी अपने साथ रहने से मना किया था क्योंकि वह सोचता था कि यूहन्ना इसके योग्य नहीं है ! पौलुस सोचता था कि उसके दल के कई लोग अपना ही स्वार्थ खोज रहे थे !

आज कई लोग सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं, और ऐसा जान पड़त

अध्याय 2
परमे’वर को मनु”र्यो की आव’यकता है

आज मनु”यों की आव’यकता है -

  • - ऐसे मनु”यों की जो रोज परमे’वर के सामने खड़े रहकर उनकी आवाज़ को सुनेगें,
  • -ऐसे मनु”यों की जिनके हृदय में परमे’वर के अलावा और किसी चीज़ की या किसी व्यक्ति की चाहत नहीं हैं,
  • - ऐसे मनु”यों की जिनके हृदय में परमे’वर का इतना अधिक भय है कि वे हर प्रकार के पाप से घृणा करते हैं और धर्म और सच्चाई से प्रेम करते हैं,
  • - मनु”य जिन्होंने यह वि’वास करते हुए परमे’वर के विश्राम में प्रवे’ा किया है कि सर्वसत्ता संपन्न परमे’वर सभी बातों में उनको भलाई के लिए कार्य करते है, और इसलिए वे सब मनु”यों के लिए, सब बातों के लिए और सब परिस्थिति के लिए परमे’वर का धन्यवाद करते है !
  • -मनु”य जो केवल परमे’वर में आनंद पाते हैं और इसलिए सदा प्रभु आनंदित रहते हैं और निरा’ाा और चिड़चिड़ाहट से दूर रहते है !
  • -मनु”य जो दृढ़ वि’वास रखते हैं, परंतु खुद पर और खुद की क्षमताओं पर भरोसा नहीं रखते, परंतु सब परिस्थिति में परमे’वर पर भरोसा रखते हैं जो उनके सहायक है !
  • - मनु”य जो अपने ही विचारों से नहीं चलते, परंतु परमे’वर की आत्मा के चलाए चलते हैं !
  • -मनु”य जिन्होंने वास्तव में पवित्र आत्मा का और स्वयं खी”ट के द्वारा आग का बपतिस्मा पाया है (और वे किसी नकली भावनाओं के या ई’वरीय ज्ञान (थियोलॉजी) के विवादों के व’ा में नहीं होते !
  • - मनु”य जो निरंतर आत्मा के अभि”ाेक में चलते हैं और वे अलौकिक आत्मिक वरदानों से परिपूर्ण हैं !
  • - मनु”य जिनके पास यह प्रका’ान है कि कलीसिया प्रभु यी’ाु मसीही की देह है (और मण्छली या सम्प्रदाय नहीं), और जो अपना परिश्रम, अपनी सारी भौतिक संपत्ति और आत्मिक वरदान उसकी उन्नति के लिए व्यय करते हैं !
  • - मनु”य जिन्होंने पवित्र आत्मा के द्वारा अपनी जीभ पर नियंत्रण करना सीख लिया है और जिनकी जीभ परमे’वर के वचनों से प्रज्वलित है !
  • - मनु”य जिन्होंंने अपना सर्वस्व त्याग दिया है और अब जिनके मन में धन या अन्य भौतिक वस्तुओं के प्रति आक”ार्ण नहीं है और जो दूसरों से इनाम पाने की आ’ाा नहीं रखते!
  • - मनु”य जो अपनी सांसारिक जरुरतों के लिए परमे’वर पर भरोसा रख्सते हैं और अपनी भौतिक आव’यकताओं के लिए किसी से कुछ नहीं कहते, न ही अपने परिश्रम के वि”ाय में बढ़ाई करते हैं , न मौखिक रूप से, न पत्रों में !
  • - मनु”य जो जिद्दी तो हैं , परंतु सौम्य और लीन हैं और खुले हृदय से आलोचना स्वीकार करते हैं, और खुद में सुधार लाने हेतु उत्सुक रहते हैं !
  • - मनु”य जो दूसरे लोगों पर दबाव नहीं लाते और न किसी को सलाह देने का प्रयास करते हैं (परंतु जब कोई उनसे सलाह लेना चाहता है तो वे तैयार रहते हैं) !
  • - वे 'प्राचीन' या अगुवे कहलाना नहीं चाहते, परंतु सब के सेवक बनने की, भाई बनने की उनमें चाहत होती है !
  • - उनके साथ सहज मित्रता की जा सकती है, परंतु वे सावधान रहते हैं कि कोई उनकी सहृदयता का व्यर्थ लाभ न उठा लें !
  • - मनु”य जो लखपति और भिखारी, गोरा और काला, बुध्दिमान और मूर्ख, सभ्य और जंगली में भेद नहीं रखते और सबके साथ एक समान बर्ताव करते हैं !
  • - खी”ट के प्रति भक्ति में और परमे’वर के आदे’ााें के प्रति उनकी आज्ञाकारिता में किसी भी वजह से कमी नहीं आती, न पत्नि के कारण, न बच्चों, न रि’तेदारों, न मित्रों और न अन्य वि’वासियों के कारण !
  • - ‘ाैतान के द्वारा प्राप्त होने वाले किसी भी लाभ के लिए (चाहे धन हो, सम्मान हो या पद) उनके साथ समझौता नहीं किया जा सकता, या उन्हें रि’वत नहीं दी जा सकती !
  • - जो निर्भयता के साथ मसीह की गवाही देते हैं, वे न तो धर्म के अगुवों से डरते हैं, और न संसार के अधिकारियों से !
  • - जो इस संसार मे मनु”यों को प्रसन्न करने की चाह नहीं रखते ! परमे’वर को प्रसन्न करने हेतु वे मनु”यों की नाराज़गी की परवाह नहीं करते !
  • - मनु”य जिनके लिए खुद से बढ़ कर परमे’वर की महिमा है, परमे’वर की इच्छा और परमे’वर का राज्य है !
  • - परमे’वर के लिए "मरे हुए काम" करने हंतु की बुध्दि के द्वारा या अन्य लोगों के द्वारा उन पर दबाव नहीं लाया जा सकता ! वे परमे’वर की प्रगट इच्छा पूर्ण करने में ही संतु”ट रखते हैं !
  • - बुध्दी के आधार पर किए जाने वाले मसीही कार्य और आत्मिक कार्य में भेद जानने हेतु उनके पास आत्मा की परख का वरदान है !
  • - मनु”य जो आत्मिक दृ”टकोण से देखते हैं, न ही सांसारिक !
  • - परमे’वर के लिए परिश्रम करने हेतु सभी सांसारिक सम्मानों और उपाधियों का इन्कार करने हेतु वे तैयार हैं !
  • वे निरंतर प्रार्थना करना जानते हैं, आव’यकता पड़ने पर उपवास और प्रार्थना करते है !
  • - मनु”य जो उदारपूर्वक, आनंद के साथ, गुप्त में और बुध्दिमानी के साथ देना जानते हैं !
  • - जो सब मनु”यों के लिए सब कुछ बनने हेतु तैयार हैं ताकि हर प्रयास से कुछ लोगों को बचा सकें !
  • - जिनके मन में दूसरे लोगों के उध्दार की इच्छा है इतना ही नहीं, वे उन्हें प्रभु यी’ाु के ’ा”य बनाना और सत्य के ज्ञान में तथा परमे’वर के वचनों की आज्ञाकारिता में लाना चाहते हैं !
  • - वे लोग जो हर स्थन पर प्रभु यी’ाु की गवाही देखना चाहते हैं !
  • - वे कलीसिया में खी”ट के महिमा देखने की तीव्र इच्छा रखते हैं !
  • - वे जो अपना स्वार्थ नहीं देखते !
  • - आत्मिक अधिकार एवं आत्मिक प्रति”ठा से परिपूर्ण लोग !
  • - आव’यकता पड़ने पर संसार में परमे’वर के लिए अकेले खड़े रहने का हियाव रखते हैं !
  • - वे प्रेरितों और पुराने भवि”यद्वक्ताओं के समान किसी से समझौता नहीं करते !

आज संसार में परमे’वर का कार्य आगे नहीं बढ़ पा रहा है, क्योंकि ऐसे लोग संख्या में कम हैं ! अपने हृदय में दृढत्र नि’चय करें कि इस पापी व व्यभिचारी संसार के साथ समझौता करनेवाले मसीही लोगों के बीच आप ऐसे वि’वासी जन के रूप में खड़े रहेंगे ! परमे’वर किसी का पक्षपात नहीं करते, और आपके लिए भी ऐसा बनना संभव है ! ‘ार्त यह है कि आप हृदय से इच्छा रखें ! परमे’वर हमारे जीवन में समर्पण और आज्ञाकारिता चाहते हैं, इस कारण आपके लिए ऐसा बनना संभव है ! इसके लिए कोई बहाना नहीं है !

हमारी देह में कुछ भी भलाई वास नहीं करती ! उपरोक्त गुणों को पाने हेतु हमें परमे’वर से अनुग्रह पाने की आव’यकता है ! प्रतिदिन परमे’वर को पुकारिए ! इस युग के समापन काल में वह आपको ऐसे व्यक्ति बनने के लिए अनुग्रह प्रदान करेंगे !

अध्याय 3
कुछ महत्वपूर्ण सच्चाईयॉं जो मैंने सीखीं

नया जन्म प्राप्त करने के बाद चालीस वर्षो के मेरे जीवन में कुछ महत्वपूर्ण सच्चाईयों को मैने सीखा ! उन सच्चाईयों के ,द्वारा मुझे प्रोत्साहन मिला है और उन सत्यों ने मेरे जीवन को एक दिशा और उद्देश्य प्रदान किया है ! मैं इन सत्यों को आपके साथ बॉंटना चाहता हूॅं, मुझे आशा है कि उनके द्वारा आपको भी प्रोत्साहन प्राप्त होगा !

1- परमेश्वर ने जैसे प्रभु यीशु से प्यार किया है वैसे ही वह हम से भी प्यार करते हैं !

जैसा आपने मुझ से प्रेम रखा वैसा ही उन से रखा (यूहन्ना 17:23) !

यह सब से बडा सत्य है जो मैने बाइबल में पाया ! उसके द्वारा मेरे जीवन में बडा बदलाव आया ! मुझ से असुरक्षितता और निराशा की भावना दूर हो गयी और मैं परमेश्वर में पूर्ण रुप से सुरक्षित हो गया और सदा प्रभु के आनंद से परिपूर्ण हो गया !

पवित्र बाइबल में ऐसे कई वचन पाए जाते हैं जो हमें बताते कि परमेश्वर हम से प्रेम करे हैं ! परंतु यह वचन हमें उनके प्रेम के विस्तार के विषय में बताता है - जैसे प्रभु यीशु ने हम से प्रेम किया !

हमारे स्वर्गीय पिता हम से किसी तरह पक्षपात नहीं करते, क्योंकि वह हम सब से प्रेम करते हैं और निश्चय ही जो कुछ उन्होंने अपने पहलौठे बेटे अर्थात्‌ यीशु के लिए किया, वह सब कुछ हमारे लिए भी जो उनके संतान हैं, करने तैयार हैं !

जैसे उन्होंने यीशु की सहायता की, वे हमारी भी सहायता करेंगे ! जैसे उन्होंने यीशु की देखभाल की वे हमारी भी देखभाल करेंगे ! जैसे वे प्रभु यीशु के जीवन की योजना बनाने में दिलचस्पी रखते थे वैसे ही वे हमारे प्रतिदिन की बातों की योजना बनाने में दिलचस्पी रखते हैं ! हमारे जीवन में ऐसा कुछ नहीं हो सकता जिससे परमेश्व अचरज में पड जाएॅं ! उन्होंने हमारे जीवन की हर संभावना की पहे से योजना बना रखी है ! इसलिए हमें अब से आगे असुरक्षितता का अनुभव करने की आवश्यकता नहीं ! जिस प्रकार प्रभु यीशु को किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस संसार में भेजा गया था उसी तरह हमें भाी एक निश्चित उद्देश्य से इस संसार में भेजा गया है !

यह सब आपके लिए भी सत्य है- परंतु जब आप इस पर विश्वास करेंगे तब !

जो परमेश्वर के वचनों पर भरोसा नहीं रखता उसके लिए कुछ भी संभव नहीं है !

2- परमेश्वर ईमानदार लोगोंं से प्रसन्न होते हैं !

यदि जैसे वह ज्योति में हैं, वैसे ही हम भी ज्योति में चलें तो एक दूसरे से सहभागिता रखते हैं (1 यूहन्ना 1:7) !

प्रकाश में चलने का पहला अर्थ है कि हम परमेश्वर से कुछ भी छिपा न रखें ! हम उन्हें सब कुछ जैसा है वैसा बता दें ! मेरे विचार से परमेश्वर की ओर बढने का पहला कदम है ईमानदार ! जो ईमानदार नहीं है उनसे परमेश्वर घृणा करते हैं ! परमेश्वर ने पाखण्डी लोगों का विरोध किया !

परमेश्वर हमें पहले पवित्र या सिध्द बनने नहीं कहतें, परंतु ईमानदार बनने को कहते हैं ! यही सच्ची पवित्रता का आरंभ बिन्दु है ! और इसी स्त्रोत हम में से अन्य सारी बातें प्रवाहित होती हैं ! और यदि किसी के लिए करने योग्य कोई आसान बात है, तो वह है प्रामाणिक बनना! इसलिए तुरन्त परमेश्वर के सामने अपने पापों को कबूल करें ! पापमय विचारों को मधुर शब्दों से न पुकारें ! यह न कहे कि मैं परमेश्वर की सुंदर रचना की प्रशंसा कर रहा हूॅं ! जब कि आपकी ऑंखो में व्यभिचार की वासना भरी हुई है ! क्रोध को उचित क्रोध् मत कहिए ! आप अप्रमाणिक रहे तो आप पाप पर कभी विजय नहीं पा सकते !

पाप को गलती मत कहिए, क्योंकि प्रभु यीशु का लहू आपको सब पापों से धो देता है, गलतियों को नहीं ! वह अविश्वासयोग्य लोगों को शुध्द नहीं करता !

केवल ईमानदार लोगों के लिए आशा है ! जो अपने अपराध छिपा रखता है, उसका कार्य सुफल नहीं होता (नीतिवचन 28:13)!

महसुल लेनेवाले और वेश्या धार्मिक अगुवों से पहले परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करेंगे ऐसा यीश्ु ने क्यों कहा (मत्ती 21:31) क्योंकि वेश्या और चोर पाखण्ड नहीं रचते !

कई जवान लोग आज मण्डली को छोड कर जा रहे हैं क्योंकि कलीसिया के सदस्यों ने उनके सामने ऐसा चित्र रखा है कि उनके खुद के जीवन में कोई संघर्ष नहीं है ! और इसलिए वे जवान लोग सोचते है कि ये पवित्र लोग हमारी समस्याओं को कभी समझ नहीं पाएॅंगे ! यह हमारे विषय में सच है तो हम यीशु के समान पापियों को कभी अपने पास खींच नहीं पाएॅंगे !

3- परमेश्वर हर्ष से देने वालों से प्रसन्न रहते हैं !

परमेश्वर हर्ष से देने वालों से प्रेम रखते है (2 कुरिन्थियों 9:7) !

यही कारण है कि परमेश्वर मनुष्य को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करते हैं- उध्दार पाने से पहले भी और बाद में भी, और आत्मा से भर जाने के बाद भी !

यदि हम परमेश्वर के समान हैं तो हम अन्य लोगों को नियंत्रित करने की या उन पर दबाव डालने की कोशिश नहीं करेंगे ! हम उन्हें खुद को स्वतंत्र रुप से प्रगट करने की स्वतंत्रता देंगे ! हमसे भिन्न विचार रखने की, अपने समय से आत्मिक रीति से बढने की स्वतंत्रता उन्हें देंगे !

सब प्रकार का दबाव शैतान की ओर से हैं ! पवित्र आत्मा लोगों को भर देता है, कि दुष्टृात्मा लोगों को जकड लेती है ! फर्क यह है कि जब पवित्र आत्मा किसी व्यक्ति को भर देता है तब वह उस व्यक्ति को अपने इच्छा के अनुसार कार्य करने की अनुमति देता है ! परंतु जब दुष्टात्मा लोगों को पकड लेती है तब वह उनकी आजादी उनसे छिन लेती है और उन्हें नियंत्रण में कर लेती है ! पवित्र आत्मा से भर जाने का फल है आत्म-नियंत्रण (गलतियों 5:22,23) ! दुष्टात्मा से पीडित व्यक्ति आत्म-नियंत्रण खो बैठता हैं !

हमें इस बात को स्मरण रखना है कि जो कार्य हम परमेश्वर के लिए करते है यदि वह आनंद के साथ, स्वतंत्रता के साथ और अपनी इच्छा से नहीं करते, वह कार्य मरा हुआ कार्य है! परमेश्वर के लिए किया गया वह कार्य जो वेतन लेकर किया गया है वह भी मृत कार्य हैं ! दूसरों के दबाव में आकर जो काम हम परमेश्वर के लिए करते हैं उसका परमेश्वर की दृष्टि में कोई मूल्य नहीं है !

जो छोटा सा काम परमेश्वर के लिए हर्ष के साथ किया जाता है वह काम परमेश्वर की दृष्टि में अति अनमोल है, परंतु जो कार्य दबाव में आकर किया जाता है वह काम कुछ मायने नहीं रखता !

4- पवित्रता प्रभु यीशु की ओर देखने से आती ह

यह दौड जिसमें हमें दौडना है, धीरज से दौडें, यीशु की ओर ताकते रहें (इब्रा- 12:12)!

धार्मिकता का रहस्य प्रभु यीशु के व्यक्तित्व में पाया जाता है जो देहरुप में इस संसार में आए (तीमुथियुस 3:16 में यह स्पष्ट बताया गया है ), पवित्रता के किसी सिध्दान्त की उसके लिए आवश्यकता ही नहीं है !

केवल स्वयं प्रभु यीशु हमें परमेश्वर की उपस्थिति में एक दिन गिरने से बचा सकते हैं और निर्दोष खडा कर सकते है !

हमारे अपने प्रयत्नों से हमारे पापी हदय पवित्र नहीं बन सकते ! इसके लिए परमेश्वर को हमारे दिल में कार्य करना होगा !

पवित्रता (अनन्त जीवन) परमेश्वर का वरदान है- और इसे कामों के द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता (रोमियों 6:23) ! बाइबल बताती है कि केवल परमेश्वर हमें पवित्र बनाने की सामर्थ रखते हैं (1 थिस्सलुनीकियों 5:23) में यह इतने स्पष्ट शब्दों में लिखा गया है कि इस विषय में गलती की कोई गुंजाइश नहीं है !

फिर भी हजारों विश्वासी पवित्रता के लिए संघर्ष कर रहे हैं! वे फरीसी बन गए है !

पवित्रता जो भ्रम नहीं है (इफिसियों 4:24) प्रभु यीशु में विश्वास करने के द्वारा प्राप्त होती है - दूसरे शब्दों में यीशु की ओर देखने से प्राप्त होती है !

यदि हम सिध्दांतों की ओर देखते रहेंगे तो हम फरीसी बन जाएॅंगे ! जितना अधिक हमारा सिध्दान्त शुध्द होगा उतने ही हम फरीसी के समान बनते जाएॅंगे फरीसियों से मैने भ्टें की उनमें सबसे महान फरीसी वे थे जो- स्वप्रयत्नों के द्वारा- पवित्रता का ऊॅंचा स्तर प्राप्त करना चाहते थे ! हमें सावधान रहना चाहिए कि हम उनके समान न बनें !

यीशु की ओर देखने का अर्थ क्या हैं यह इब्रानियों 12:2 में स्पष्ट शब्दों में बताया गया हैं ! सर्वप्रथम हमें उनकी ओर देखना है जो प्रतिदिन अपना क्रूस उठाए चले - और सब बातों में परखे गये तौभी निष्पाप निकले (इब्रानियों 4:15)! वह हमारे अगुवा हैं (इब्रानियों 6:20), जिनका हमें अनुसरण करके चलना है ! दूसरी बात, हमें उनकी ओर देखना है जो इस समय पिता के दाहिने हाथ पर बैठे हमारे लिए मध्यस्थता करते हैं और हमारी सारी परिक्षाओं में हमारी सहायता करते हैं !

5- हमे निरंतर पवित्रता आत्मा से भरना है !

आत्मा से परिपूर्ण होते जाओ (इफिसियों 5:18)!

यदि हम लगातार पवित्र आत्मा से न भरें तो परमेश्वर की इच्छानुसार मसीही जीवन व्यतीत करना हमारे लिए असंभव है ! जब तक हम पवित्र आत्मा का अभिषेक न पाले और उसके अलौकिक वरदानों को प्राप्त न कर लें तब तक परमेश्वर की सेवा करना असंभव है ! स्वयं प्रभु मसीह को भी अभिषेक पाने आवश्यकता थी !

पवित्र आत्मा इसलिए इस संसार में आया ताकि हमारे व्यक्तिगत जीवन में और हमारी सेवकाई में भी हम यीशु के समान बनें (2 कुरिंथ 3:18) ! परमेश्वर ने हमें अपनी आत्मा से इसलिए भरा ताकि हम अपने चरित्र में खीष्ट की समानता में बदल जाएॅं और जैसे यीशु ने सेवा की वैसे सेवा करने हेतु हमें तैयार करें ! हमारी सेवकाई प्रभु यीशु के समान नहीं हैं, और इसलिए यीशु ने अपनी सेवकाई में जो किया वह हम नहीं कर पाएॅंगे ! परंतु - हमारी अपनी सेवकाई पूर्ण करने हेतु हम परमेश्वर की सेवा में यीशु के समान तैयार हो सकते है !

आवश्यकता इस बात की है कि हमारे हदय में पर्याप्त विश्वास हो और हमारे दिल में यह चाहत हो कि जीवन जल की नदियों हम में से बह निकले (यूहन्ना 7:37-39) !

यदि हम पवित्र आत्मा के वरदानों को पाना चाहते हैं तो उन्हें पाने की तीव्र लालसा हमारे हदय में रहे (1 कुरिन्थ 14:1), अन्यथा हमे उन्हें प्राप्त नहीं कर सकेंगे !

पवित्र आत्मा के वरदानों से वंचित कलीसिया उस मनुष्य के समान है जो जीवित तो है, परंतु बहिरा, अंधा, गूंगा और लंगडा है- और इस कारण बिना लाभ का है !

6- क्रूस का मार्ग जीवन का मार्ग है !

यदि हम उसके साथ मर गए हैं तो हम उसके साथ जीएंगे भी (2 तीमुथियुस 2:11)!

परमेश्वर ने जिन बातों की योजना बनायी है उन सारी परिस्थितियों में जब तक हम स्वयं की मृत्यु स्वीकार नहीं कर लेते तब तक हमारी देह में प्रभु यीशु मसीह का जीवन प्रगट नहींं हो सकता (2 कुरिन्थ 4:10,11) !

यदि हम पाप पर विजय पाना चाहते है तो सभी परिस्थितियों में हम पाप के लिए मरे हुए (रोमियों 6:11) हैं ! यदि हम जीवित रहना चाहते है तो हमें आत्मा से देह की क्रियाओं को मारना है (रोमियों 8:13) ! पवित्र आत्मा हमारे प्रतिदिन के जीवन में हमें क्रूस की ओर ले चलता है !

हमें परमेश्वर हर परिस्थितियों में भेजते हैं जहॉं हम प्रतिदिन घात किए जाते है (2 कुरिन्थ 4:11) ! ऐसी परिस्थिति में यीशु की मृत्यु को (2 कुरिन्थ् 4:10) स्वीकार करना है, ताकि यीशु का जीवन हम में प्रगट हो सके !

7- मनुष्य के विचार व्यर्थ हैं !

सो तुम मनुष्य से परे रहो जिसकी श्वास उसके नथनों में है (यशायाह 2:22) !

जब मनुष्य की श्वास रुक जाती है तब वह धूल के समान हो जाता है पॉंवों तले रौंदा जाता है ! इसलिए हम क्योंकर मनुष्य के विचारों को मूल्य दें !

जब तक हम इस बात को जान न लेंगे कि मनुष्य की विचारधाराएॅं कूडे में फेंकने योग्य है, तब तक एक प्रभावी रुप से परमेश्वर की सेवा नहीं कर पाएॅंगे (गलतियों 1:10)!

परमेश्वर के विचारों की तुलना में मनुष्य के विचार व्यर्थ हैं ! जो इस बात को जानते हैं वे अपने जीवन और सेवकाई के लिए केवल परमेश्वर की सराहना की खोज में रहते हैं ! वे लोगों को प्रभावित करने का या खुद को लोगों के सामने सत्य प्रमाणित करने का प्रयास नहीं करेंगे !

8- परमेश्वर उन बातों से घृणा करते हैं जो इस संसार में महान मानी जाती हैं !

जो वस्तु मनुष्यों की दृष्टि में महान है वह परमेश्वर के निकट घृणित है (लूका 16:15)!

जो बाते इस संसार में महान मानी जाती हैं उनका परमेश्वर की दृष्टि में कोई मूल्य नहीं, परमेश्वर उनसे घृणा करते हैं ! संसार के आदर सम्मान का परमेश्वर तिरस्कार करते हैं इसलिए हमें भी उसका तिरस्कार करना है !

पैसों को इस संसार में सभी मूल्यवान समझाते हैं ! परंतु परमे’वर कहते हैं कि लोग धन से प्रेम रखते हैं और धनवान होना चाहते हैं उन्हें जल्द ही निम्नलिखित परिणामों का सामना करना होगा (1तीमुथि 6:9, 10) !

  • वे परिक्षा में पड़ेंगे !
  • वे फंदे में पड़ेगे !
  • वे व्यर्थ लालसाओं में फसते है !
  • वे हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं !
  • वे ना’ा हो जाएंगे !
  • वे विना’ा के समुद्र में डूब जाएंगे !
  • वे वि’वास से भटक जाएंगे !
  • वे अपने आपको नाना प्रकारे के दु:खों से छलनी बना लेंगे !

मैंने वि’वासियों के जीवन में ऐसा घटते देखा है !

हमारे दे’ा में इन दिनों प्रभु की और से भवि”यवाणी के वचन बहुत कम सुनने मिलते हैं, इसका मुख्य कारण यह है कि अधिकतर प्रचारक धन के प्रेमी बन गए हैं ! जो धन के मामले में वि’वासयोग्य नहीं हैं उन्हें सच्ची संपत्ती प्राप्त नहीं (भवि”यद्वाणी का वरदान उनमे से एक है) होगी (लूका 16:11) ! यही कारण है कि कई ऊबा देने वाले उपदे’ा और गवाहियाँ हमें सुननी पड़ती हैं !

9- हमारे अलावा और कोई हमें हानि नहीं पहुँचा सकतां

"और यदि तुम भलाई करने में उत्तेजित रहो तो तुम्हारी बुराइ करने वाला फिर कौन है?" (ं पतरस 3:13)र्

परमे’वर इतने समर्थी हैं कि जो उनसे प्रेम करते हैं और जो उनकी योजना के अनुसार बुलाए गए हैं - अर्थात्‌ वे लोग जिनके मन में उनकी इच्छा को छोड़ और कोई इच्छा नहीं है (रोमियों 8:28)!

जिनके मन में स्वार्थपूर्ण इच्छा एवं आकाक्षाएँ हैं वे इन वचनों का दावा न करें ! यदि हम पूर्ण रूप से परमे’वर की इच्छा को स्वीकार करते हें, तो हम इस वचन का दावा उपने जीपन में हर पल कर सकते हैं ! हमें किसी बात से हानि नहीं है ! जो कुछ अन्य लोग हमारे लिए करेंगे - भला या बुरा, जान बूझकर या अनजाने में - वह रोमियों 8:28 से होकर गुजरेगर और हमारे लिए भलाई ही उत्पन्न करेगा - हर बार हमें प्रभु यी’ाु की समानता में बदलता जाएगा (रोमियों 8:28)- वहीं उत्तम है जो परमे’वर ने हमारे लिए नियुक्त किया है !

इस वचन में प्रस्तुत की गयी ‘ार्ते जो लोग पूर्ण करते हैं उनके लिए हर हर बार यह वचन कार्य करता है !

ऐसे वि’वासी को हानि पहुॅचाना किसी भी दु”टात्मा या मनु”य के लिए संभव नहीं है!

इसलिए जब कोई मसीही वि’वासी इस बात की ’ाकायत करता है कि अन्य लोगों ने उसे हानि पहुँचाई है तो वह अप्रत्यक्ष रूप से वह बता रहा है कि परमे’वर से प्रेम नहीं करता, वह परमे’वर की योजना के अनुसार नहीं बुलाया गया है और अच्छी बातों के वि”ाय में जो’ाीला नहीं है !

अन्यथा जो बातें उसके वि”ाय में की गयी वे उसके लिए ही भलाई उत्पन्न करती, और उसके पास किसी बात में ’ाकायत न होती !

वास्तव में, आप स्वयं ही अपने अवि’वासयोग्यता के कारण और अन्य लोगों के प्रति गलत धारणा रखने के कारण खुद को हानि पहुँचाते हैं !

मेरी उम्र अब साठ व”ार् से अधिक है और मैं सच्चाई के साथ कह सकता हूँ कि मेरे सारे जीवनभर में कोई भी मुझे हानि नहीं पहुँचा पाया है ! कई लोगों ने मुझे हानि पहुँचाने का प्रयास किया, परंतु जो कुछ भी उन्होंने मेरे साथ किया उसके द्वारा मुझे और मेरी सेवकाई को लाभ ही प्राप्त हुआ ! इसलिए मैं उन लोगों के लिए परमे’पर को धन्यवाद ही देता हूँ ! जिन्होंने मेरा विरोध किया वे अधिकतर "वि’वासी ही" थे जो परमे’वर के मार्ग नहीं जानते थे !

मैं आपको प्रोत्साहित करने हेतु मेरी गवाही दे रहा हूँ ताकि आप वि’वास करें कि यह आपकी भी गवाही हो - हमे’ाा !

10- हम से प्रत्येक के लिए परमे’वर की पूर्ण योजना है

"क्योंकि हम उसके बनाये हुए हैं, और मसीह यी’ाु में उन भले कामों के लिए सूजे गये, जिन्हें परमे’वर ने पहले से हमारे करने के लिए तैयार किया" (इफिसियो 2:10) !

बहुत पहले, जब परमे’वर ने मसीह यी’ाु में हमें चुन लिया, तब उसने यह भी योजना बनायी कि हम अपने जीवन के वि”ाय में क्या करें !

हमारा कर्तव्य यह है कि हम प्रतिदिन इस योजना को खोजते रहें और उसके अनुसार चलें ! हम परमे’वर से अधिक बेहतर योजना नहीं बना सकते !

हमें अन्य लोगों की नकल नहीं करना हैं, क्योंकि परमे’वर की योजना उसके सभी बच्चों के लिए भिन्न है !

उदाहरण के तौर पर, यूसुफ के लिए परमे’वर की योजना यह थी कि वह मिस्त्र के राज दरबार में अपनी उम्र के 80 व”ार् आराम के साथ वास करें !

इसके विपरीत, मूसा के लिए परमे’वर की योजना यह थी कि वह मिस्त्र का राजदरबार त्याग कर 80 व”ार् तक जंगल में क”ट का जीवन व्यतीत करें ! यदि मूसा, आराम को चाह कर यूसुफ का अदाहरण अपनाता तो वह उसके लिए परमे’वर की जो योजना थी उसे खो बैठता !

उसी तरह आज भी, परमे’वर ‘ाायद चाहते हैं कि एक भाई अपने संपूर्ण जीवन भर आरात के साथ अमेरिका में वास कर और दूसरा भाई अपने सारे जीवन भर उत्तम हिन्दुस्तान की गर्मी और धूल में परमे’वर की सेवा करें !

हम अपने भाई से अपने जीवन की तुलना न करें, और उससे ई”र्या न रखते हुए और न ही उसकी आलोचना करते हुए हम अपना जवन व्यतीत करें ! परंतु हमारे जीवन के लिए परमे’वर की क्या योजना हैं इस बात को हम जान लें !

मैं जानता हूँ कि परमे’वर ने मुझे हिन्दुस्तान में उसकी सेवा करने हंतु बुलाया है ! परंतु मैं परमे’वर से कभी यह नहीं कहता कि अन्य लोग भी मेरी ही सेवकाई पाएँ !

जब तक हम अपनी ही महिमा खोजते रहेंगे या धन, आराम या अन्य लोगों द्वारा सम्मान खोजते रहेंगे तब तक हम परमे’वर की योजना को नहीं समझ पाएँगे !

11- सामर्थी बनने का रहस्य है परमे’वर को निकटता से जान लेना

"जो लोग अपने परमे’वर का ज्ञान रखेंगे, वे हियाव बांधकर बडें काम करेगें" (दानिय्येल 11:32)

आज, परमे’वर यह नहीं चाहते कि हम उन्हें अन्य लोगों के माध्यम से जानें! परमे’वर छोटे से छोटे वि’वासी से चाहते हैं कि वह उन्हें व्यक्तिगत तौर पर जानें (इब्रा 8:11) ! प्रभु यी’ाु के अनंसार परमे’वर को और प्रभु यी’ाु मसीह को व्यक्तिगत्‌ रूप में जानना ही अनंत जीवन है (यूहन्ना 17:3) ! यह पौलूस के जीवन की सबसे बड़ी इच्छा थी ! और यही हमारे जीवन की भी सबसे बड़ी इच्छा रहे (फिलिप्पियों 3:10) !

जो परमे’वर को निकटता से जानना चाहते हैं उन्हें हमे’ाा परमे’वर की सुनना है ! यी’ाु ने कहा, कि मनु”य परमे’वर के मुख से निकलने वाले प्रत्येक ‘ाब्द से आत्मिक रूप से जीवित रह सकता है (मत्ती 4:4) ! उन्होंने यह भी कहा कि उनके चरणों में बैठकर उनके वचनों को सुनना मसीह जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अंग है (लूका 10:42)!

हमें प्रतिदिन सुबह, और संपूर्ण दिन प्रभु यी’ाु मसीह के समान परमे’वर पिता की आवाज़ सुनने की आदत बना लेनी चाहिए (य’ाायाह 50:4) ! जब हम सोते हैं तब भी हमारी आत्मा जागती रहे और परमे’वर के वचन को सुनने हेतु उत्सुक रहें - ताकि जब हम नींद से जागे तब हम कह सके, "हे प्रभु बोलिए, तेरा दास सुनता है" (1 ‘ामएल 3:10) !

जब हम परमे’वर को जानते हैं तब हमस ब परिस्थितियों में विजय पाते हैं - क्योंकि परमे’वर के पास हमारी समस्याओं का हल है - और जब हम उनकी सुनेंगे तब वह हमें बताएंगे कि उन समस्याओं का हल क्या है !

12- नया नियम पुराने नियम से अधिक श्रे”ठ है

"यी’ाू नयी वाचा के मध्यस्थ है " (इब्रा- 8:6) !

कई मसीही लोग इस बात को नहीं जानते कि पुरानी और नयी वाचा में एक महत्वपूर्ण भेद है (इब्रा- 8:8-12) ! जिस प्रकार यी’ाु मूसा से श्रे”ठ है उसी प्रकार नयो वाचा पुरानो वाचा से अधिक श्रे”ठ है (2 कुरिन्थियों 3 और इब्रा- 3) !

पुरानी वाचा न्याय के भय से और प्रतिफल की आ’ाा के द्वारा मनु”य के बाहरी रूप को ‘ाुध्द करने की क्षमता रखती थी, परंतु नयी वाचा भय एवं आ’वासन के द्वारा नहीं, परंतु पवित्र आत्मा के द्वारा हमें प्रभु यी’ाु मसीह का पूर्णत: पवित्र और प्रेममय स्वभाव देकर आंतरिक रूप से ‘ाुध्द करती है !

सांकलों से बांधकर यदि सुअर को रखा जाए तो वह अव’य स्वच्छ बना रहेगा (व्यवस्था के अनुसार न्याय के भय से), परंतु यह एक भिन्न बात है ! लेकिन बिल्ली खुद को स्वभाव के अनुरूप साफ-सुथरा रखती है ! इन उदाहरणों के द्वारा हम दोनों वाचाओं के बीच द’ाार्या गया भेद समझ सकते हैं !

13- लोगों के द्वारा तिरस्कृत होने के लिए और सताए जाने के लिए हमें बुलाया गया है !

"पर जितने मसीह यी’ाु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे" (2 तीमुथि 3:12) !

प्रभु यी’ाु ने अपने ’ा”यों से कहा कि संसार में उन्हें क्ले’ा होगा, (युहन्ना 16:13)/em>; उन्होंने पिता से प्रार्थना की, कि वह उन्हें संसार से न उठा ले (यूहन्ना 17:15) ! प्रेरितों ने वि’वासियों को यह सिखाया कि उन्हें बड़े क्ले’ा उठाकर परमे’वर के राज्य में प्रवे’ा करना होगा (प्रेरितों के काम 14:23) !

यी’ाु ने कहा, कि यदि उन्होंने घर के स्वामी को बालज़बूब कहा तो उसके घर बालों को क्यों न कहेंगे (मत्ती 10:25) ! इसी के द्वारा हम जान पाएँगे कि हम उसके घराने के वि’वासयोग्य सदस्य हैं !

अन्य वि’वासी मुझे इन नामों से पुकारते हैं : "’ाैतान", ‘ाैतान का पुत्र", "दु”टात्मा", "खी”ट विरोधी", "धोकेबाज", "आतंकवादी", "खूनी" आदि !

मसीही के घराने के होने के नाते इन नामों द्वारा पहचाना जाना मेर लिए सम्मान की बात है ! जो वि’वासयोग्यता के साथ प्रभु यी’ाु की सेवा करते हैं उन्हे इन बातों का अनुभव आएगा !

यी’ाु ने यह भी कहा कि सच्चे भवि”यवक्ता का सम्मान "उसके अपने सगे- संबंधी " नहीं करेंगे (मरकुस 6:4) ! यी’ाु के परिवार जनों ने उसे स्वीकार नहीं किया था !

परमे’वर के सच्चे भवि”यद्वक्ता को उसके अपने संबंधियों द्वारा तिरस्कृत और अपमानित किया जाएगा ! वर्तमान समय में भी उसी तरह, सच्चे प्रेरितों को "बदनाम किया जाएगा ! वर्तमान समय में भी उसी तरह, सच्चे प्रेरितों को "बदनाम किया जाएया और वे जगत के कूड़े और सब वस्तुओं की खुरचन की नाइ ठहरेंगे" (1कुरिन्थ 4:13) ! यातना और तिरस्कार हमे’ाा ही परमे’वर के महान सेवकों के जीवन का भाग रहे हैं !

कई वि’वासी इस ’ाक्षा को पसंद करते हैं कि कलीसिया "उस महान क्ले’ा के" पहले उठा ली जाएगी क्योंकि इसके द्वारा उन्हें आनंद प्राप्त होता है ! परंतु प्रभु यी’ाु ने मत्ती 24:29-31 में स्प”ट रूप से कहा है कि वह उस महान क्ले’ा के बाद अपने चुने हुओं को ले जाने आएंगे !

नये नियम में ऐसा एक भी वचन नही है जिसमें बताया गया है कि कलीसिया उस महान क्ले’ा के आने से पहले उठा ली जाएगी ! यह सिध्दांत इंगलैण्ड में सन्‌ 1800 के मध्य में प्रचलित हुआ !

हमे अपने दे’ा की कलीसिया को सताव के लिए तैयार करना है !

14- हमें उप सभों को स्वीेकार करना है जिन्हे परमे’वर ने स्वीकार किया है !

"परंतु सचमूच परमे’वर ने अंगों को अपनी इच्छा के अनुसार एक एक करके देह में रखा है" (1 कुरिन्थ 12:18,25) !

परमे’वर ने अपने लिए पवित्र गवाह के रूप में विभिन्न दे’ााें में विभिन्न समय में अपने लोगों को खड़ा किया है ! परंतु उनकी मृत्यु के बाद उनके माननेवालों ने उन्हीं के नाम से अपने गुटों और संप्रदायों का निर्माण किया है !

परंतु प्रभु यी’ाु मसीह की देह सभी गुटों से अधिक वि’ााल है ! हम यह बात भूलने न पाएं !

प्रभु यी’ाु मसीह की दुल्हन आज विभिन्न गुटों में विभाजित हो गई है ! हमें उन सभी लोगो के साथ संगति रखना है, जिन्हे प्रभु ने स्वीकार किया है जबकि उनके विभिन्न मतों के कारण हम उनके साथ एक साथ कार्य नहीं कर सकते !

15- हमें प्रत्येक मनु”य का आदर करना है

"इसी जीभ से मनु”यों को जो परमे’वर के स्वरूप में उत्पन्न हुए हैं श्राप देते हैं !" "हे मेरे भाईयों, ऐसा नहीं होना चाहिए --- सब का आदर करो" (याकूब 3:9,10; 1पतरस 2:17) !

जिस कार्य या ‘ाब्द के द्वारा मनु”य को नीचा दिखाया जाता है वह परमे’वर की ओर से नहीं है ! वह ‘ाैतान की ओर से है जो हमे’ाा मनु”य को नीचे गिराना चाहता है !

हमें आज्ञा दी गई है कि "हम नम्रता और आदर के साथ" बोलें (1 पतरस 3:15) ! सभी मनु”यों के साथ हमारा व्यवहार ऐसा हो - चाहे वह हमारी पत्नी हो, बच्चे, जवान लोग, भिखारी या ‘ात्रु कोई भी क्यों न हो ! हम सभी मनु”यों का आदर करें ! उदाहरण के तौर पर, जब हम किसी गरीब भाई को इनाम देते हैं तब हम उससे उसकी प्रति”ठा न छीन लें ! हम उसके भाई बने रहें, न ही उसके द्वारा लाभ प्राप्त करने की चाह रखें !

16- हम अपनी आर्थिक आव’यकताओं के वि”ाय में केवल परमे’वर से कहें

"मेरा परमे’वर अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित यी’ाु मसीह में तुम्हारी हरेक घटी को पूरी करेगा" (फिलिप्पियों 4:19)

जो पूर्ण समय के लिए मसीही सेवकाई में हैं वे सभी आव’यकताओं के लिए परमे’वर पर भरोसा रखें और केवल उन्हीं से अपनी आव’यकताओं के वि”ाय में कहें ! तब परमे’वर हमारी आव’यकताओं को पूर्ण करने हेतु अपने बच्चों की प्रोत्साहित करेंगे ! ऐसा न हो कि वे "वि’वास के द्वारा परमे’वर में जीवित रहें और अन्य वि’वासियों को सहायता के लिए संकेत करें !" आज कई सेवक ऐसा ही जीवन बिता रहे हैं !

"इसी रीति से प्रभु ने भी ठहराया कि जो लोग सुसमाचार सुनाते हैं उनकी जीविका सुसमाचार से हो" (1 कुरिन्थ 9:14) ! इस कारण जो पूर्ण समय परमे’वर की सेवा करते है उन्हें अन्य वि’वासियों से भेंट स्वीकार करने की अनुमति दी जाती है ! परंतु वे वेतन पाने का प्रयास न करें !

"भेंट" और "वेतन" में अंतर है ! हम भेंट को मुँह खोलकर नही माँग सकते, परंतु वेतन माँगा जा सकता है ! और यही कारण है कि आज अधिकतर मसीही कलीसिया और संस्थाएँ पिछड़ी हुई द’ाा में हैं !

परंतु जो लोग हमसे गरीब हैं उनके द्वारा हम अपने तथा अपने परिवार के उपयोग के लिए भेंट स्वीकार न करें ! यदि ऐसे लोग हमें देते हैं, तो हमें इस भेंट को अन्य गरीब व्यक्ति को दे देना है या परमे’वर के कार्य के लिए दे देना है !

जो सेवक पूर्णकालीन सेवा में हैं उनकी सहायतार्थ धन के वि”ाय में "दस सिध्दांत" यहाँ प्रस्तुत किए गए हैं :

  • परमे’वर के अलावा अन्य किसी पर अपनी आर्थिक आव’यकताओं को प्रगट न करें (फिलिप्पियों 4:19) !
  • किसी अवि’वासी से धन स्वीकार न करें (3यूहन्ना 7) !
  • किसी भी व्यक्ति से कोई भेंट स्वीकार न करें (भ-स- 62:5) !
  • कोई भी आपको या आपकी सेवकाई को धन देकर नियंत्रित न करने पाएँ !
  • जो आपकी सेवकाई को स्वीकार नहीं करते उनसे धन न लें !
  • आप से अधिक गरीब व्यक्ति से अपनी व्यक्तिगत तथा पारिवारिक जरूरतों के लिए धन स्वीकार न करें !
  • अपनी आर्थिक आव’यकताओं के लिए किसी मनु”य पर निर्भर न रहें !
  • परमे’वर के पैसों का गलत उपयोग न करें ताकि लोग आप पर संदेह करें (2कुरिन्थ 8:20,21) !
  • धन पाने पर अति उत्साहित न हो !
  • धन खो देने के कारण निरा’ा न हो !

समापन

मुझे आ’ाा है कि इन सच्चाईयों के द्वारा आपको प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है, और आप स्वतंत्र हुए हैं ! यदि आप परमे’वर के साथ और अपनी सेवकाई के साथ गंभीरता से चलना चाहते हैं, तो इन सच्चाईयों को अपने प्रतिदिन के जीवन में अपनाएँ !