हे नारी, तू क्यों रोती है?

द्वारा लिखित :   श्रेणियाँ :   महिला चेले
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अध्याय 0
यह पुस्तक और आप

एक स्त्री को उसके रचने वाले ने एक संवेदना से भरे स्वभाव की आशिष दी है। उसकी अनुभूति में बहुत गहराइयाँ और लोगों की समस्याओं को समझने की एक दुर्लभ क्षमता होती है। इसलिए वह सहानुभूति और संवेदना के साथ दूसरों की पीड़ा को कम कर सकती है।

लेकिन उसकी यह संवेदना उसकी बहुत सी समस्याओं की भी वजह होती है। जैसा दुःखद/बुरी घटनाएं दूसरों के साथ घटती रहती हैं, वैसी ही उसके साथ भी घटती हैं। और तब स्वयं उसे भी मदद की ज़रूरत होती है!

कुछ स्त्रियाँ अनेक सप्ताहों तक इस तरह रोती रहती हैं मानो उनकी पीड़ाएं उनके आँसुओं के सागर में डूब कर ख़त्म हो जाएंगी। अन्य अपने भीतर-ही-भीतर रोती रहती हैं और अपने दुःखों के बोझ के नीचे दब जाती हैं। अनेक स्त्रियों के अन्दर उनकी समस्याओं के हल हो जाने के बाद भी उनकी पीड़ा के भावनात्मक निशान बने रहते हैं।

लेकिन पीड़ाओं और परीक्षाओं को एक अच्छे लक्ष्य की तरफ भी लक्षित किया जा सकता है - वह लक्ष्य जिसमें हमसे गहरा प्रेम करने वाला सर्वशक्तिशाली परमेश्वर उन्हें हमारे जीवनों में आने की अनुमति देता है। परीक्षाएं हमारा चरित्र बना सकती हैं। जैसे चंदन का एक पेड़ उसे काटने वाली कुल्हाड़ी में अपनी सुगन्ध छोड़ जाता है, वैसे ही एक स्त्री भी बहुत लोगों के लिए (उसे हानि पहुँचाने वालों के लिए भी) उन बातों द्वारा एक आशिष बन सकती है जो उसने अपनी पीड़ाओं में परमेश्वर से सीखी हैं! परमेश्वर के काम की नारी बनने के लिए एक स्त्री को बहुत सी परीक्षाओं का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा, लेकिन यह ज़रूरी है कि वह इन परीक्षाओं को स्वयं के ऊपर प्रबल न होने दे।

मेरी अनेक मित्र दुःख और पीड़ाओं की बड़ी गहराइयों में से होकर गुज़री हैं। कुछ मामलों में, मैं उनकी पीड़ा की गहराइयों को जान पाने में बिलकुल नाकाम रही हूँ। लेकिन उनकी बात सुनने, उनसे बात करने, उन्हें लिखने, और उनकी मित्र बनने द्वारा मैंने अपने भीतर एक बड़ी भरपूरी पाई है। मैंने यह जाना है कि अगर हम पीड़ा के साथ सही तरह बर्ताव करना सीख लेते हैं, तो हम बेहतर इंसान बन सकते हैं। पीड़ा के विद्यालय में हम एक अनोखी शिक्षा ग्रहण करते हैं। इसके अंत में, हमें यह पुरस्कार मिलता है कि हमारा चरित्र मसीह-समान हो जाता है।

"जब वह मुझे परख चुकेगा, तब मैं सोने के समान निकलूँगा" (अय्यूब 23:10)।

लेकिन वह आग जो सोने को शुद्ध करती है, मिट्टी के बर्तन को भी कठोर कर देती है। एक स्त्री भी उसकी पीड़ाओं द्वारा कठोर हो सकती है, और फिर वह अपना जीवन दूसरों के खिलाफ़, और परमेश्वर के खिलाफ़ भी, कभी-न-ख़त्म-होने-वाली शिकायतें करते हुए बिता सकती है!

हमारी सभी परीक्षाएं और पीड़ाएं ऐसी घटनाएं होती हैं जिन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता। लेकिन प्रभु उन्हीं को हमारे लिए लाभदायक बनाते हुए उनके द्वारा हमारे भीतर कुछ अच्छा कर सकता है। जो लोग परमेश्वर से प्रेम करते हैं और उसके उद्देश्यों के अनुसार बुलाए गए हैं, उनके लिए सारी बातें मिलकर भलाई को ही उत्पन्न करती हैं (रोमियों 8:28)।

यीशु आज हम स्त्रियों से वैसे ही मिलता है जैसे वह मरियम मगदलीनी से मिला था जब वह उसके जी-उठने की सुबह उसकी कब्र के पास रो रही थी। हमसे भी वह यही सवाल पूछता हैः "हे नारी, तू क्यों रोती है?"

"जो कुछ मेरे साथ होता है, वह सब जानता है" (अय्यूब 23:10 - लिविंग)। वह हमारी बातों से अनजान नहीं है।

इसके बाद वह हमसे यह पूछता है, "तू किसे ढूँढती है?"

हमारा जवाब क्या होगा? क्या हम ईमानदारी से यह कह सकेंगी, "हे प्रभु, अपनी सारी परीक्षाओं के बीच में मैं तुझे ढूँढ रही हूँ। अपने आँसुओं के बीच में से मैं सिर्फ तेरे मुख का दर्शन चाहती हूँ।"

जो तसल्ली हमें लोगों से मिलती है, वह कितनी कम होती है। इसकी बजाय, हम यीशु की तरफ देखें।

जब यीशु सूली पर लटका हुआ था, तब उसकी रोती हुई माता ने भी उससे तसल्ली पाई थी। उसने उसके रहने के लिए एक घर का इंतज़ाम किया और यूहन्ना से उसकी देखभाल करने के लिए कहा।

आज भी वह हरेक नारी की इसी तरह देखभाल करता है। आइए, हम उसकी देखभाल में अपना विश्राम पाएं।

ऐनी ज़ैक पूनैन

बैंगलोर,नवम्बर 2001

अध्याय 1
परमेश्वर मेरा पिता है

"मैं अपने पिता और तुम्हारे पिता के पास ऊपर जाता हूँ" (यूहन्ना 20:17)।

एक डॉक्टर के रूप में काम करते हुए, मुझे ऐसी बहुत सी स्त्रियाँ मिली हैं जो अपनी संतान को जन्म देने के बाद - और ख़ास तौर पर एक लड़की को जन्म देने पर - वे उसे अस्पताल में ही छोड़ कर चली जाती थीं! ऐसी माताएं अपने बिल का भुगतान किए बिना ही ग़ायब हो जाती थीं! वे ग़रीब स्त्रियाँ थीं जो एक लड़की को जन्म देकर निराश हो जाती थीं क्योंकि उन्हें ऐसा महसूस होता था कि वे जीवन-भर बस उन पर एक बोझ ही बनी रहेंगी। भारत में फैली दहेज की प्रथा से - ख़ास तौर ग़रीब लड़कियों के लिए - हमारे देश के हरेक भाग में बहुत सी मुश्किलें पैदा हो जाती हैं। वे माताएं ऐसा महसूस करती थीं कि उनके गाँव में ले जाने की बजाय अगर वे उनकी बेटियों को मसीही अस्पताल या अनाथालय में छोड़ जाएंगी, तो उन्हें एक बेहतर जीवन का अवसर मिल जाएगा। और, अनाथालय में से शायद कोई धनवान व्यक्ति उसे गोद भी ले सकता है! और मसीही अनाथालय में उनकी बेटी का पुरुषों द्वारा शोषण किए जाने की सम्भावना कम थी।

मेरे सर्जिकल वॉर्ड में, एक सुन्दर, अनाम, दो साल की लड़की थी जो न तो कभी मुस्कुराती थी और न ही बात करती थी, कभी रोती नहीं थी और कुछ खाने से भी इनकार कर देती थी। वह एक सामाजिक कार्यकर्ता को अस्पताल के द्वार के पास से मिली थी। वह लड़की बड़ी समझदार नज़र आती थी। लेकिन उसकी आँखों में भरी पीड़ा को देखकर कोई भी यह जान सकता था कि पृथ्वी पर बिताए उसके थोड़े से ही दिनों में वह कितनी भयानक बातों में से गुज़री होगी। उस वॉर्ड में काम करने वाले हम सभी लोग उसे बहुत पसन्द करते थे और उसे ख़ुश रखने के लिए हर सम्भव कोशिश करते रहते थे। सामान्य तौर ऐसी छोटी लड़कियों को किसी मसीही अनाथालय में भेज दिया जाता था। यह लड़की मेरी मरीज़ थी, इसलिए जब वह ठीक हुई तो मैंने अपनी कुछ मित्रें के साथ मिलकर उसे एक अच्छे मसीही अनाथालय में भिजवा दिया।

समय गुज़रता गया, और मैं कभी-कभी उसके बारे में जानकारी हासिल करती रहती थी, और यदा-कदा उसके लिए प्रार्थना भी करती थी। फिर एक दिन, लगभग 30 साल के बाद, मेरी उससे मुलाक़ात हुई। उसकी शादी हो गई थी और उसके बच्चे भी थे। लेकिन उसने जो सबसे पहला सवाल मुझसे किया, वह यह थाः "मेरे माता-पिता कौन हैं?"

उन 30 सालों के दौरान, यह सवाल उस लड़की को सताता रहा था। उसके हृदय में एक ऐसा ख़ालीपन था जो एक पिता या माता के प्रेम के लिए तरस रहा था - वह जो उसे अनाथालय में उसे कभी नहीं मिल सका था।

उसके पास वह सब कुछ था जो एक स्त्री चाहती है - एक अच्छा पति, बच्चे, शिक्षा और एक अच्छी नौकरी भी। लेकिन फिर भी उसके हृदय में एक ऐसी पीड़ा थी कि मुझसे मिलते ही वह रो पड़ी।

दुर्भाग्यवश, क्योंकि मुझे मालूम ही नहीं था, इसलिए उसके माता-पिता के बारे में मैं उसे कुछ न बता सकी। लेकिन मैं उसे स्वर्ग में रहने वाले एक ऐसे प्रेमी पिता के बारे में ज़रूर बता सकती थी जो किसी भी पार्थिव माता-पिता से बढ़कर हो सकता है। फिर भी, वह अपने अज्ञात माता-पिता को क्षमा न कर सकी जिन्होंने उसके बचपन में ही उसे त्याग दिया था। मैंने यह देखा कि तिरस्कृत किए जाने की उसकी अनुभूतियाँ उसके जीव का नाश कर रही थीं।

मैं और भी ऐसी लड़कियों को जानती हूँ जिनके माता-पिता हैं, लेकिन फिर भी जैसा उन्होंने चाहा था, उन्हें न तो वैसा प्रेम मिला और न ही उनकी वैसी परवरिश हुई है। ये लड़कियाँ भी बड़ी होने के बाद, एक कठोर और क्रूर संसार में असुरक्षित, एकाकी और अप्रसन्न व्यक्ति हैं।

और फिर टूटे हुए घरों की लड़कियाँ होती हैं, और ऐसी लड़कियाँ जो अविवाहित माताओं की पुत्रियाँ होती हैं। ऐसी विपदाओं का सामना कर रही बहुत सी लड़कियाँ हैं जो यह महसूस करती हैं कि उनके माता-पिता उनकी बातों को नहीं समझ सकते।

अनेक लड़कियाँ ऐसी दुःखद पारिवारिक पृष्ठभूमियों में से आती हैं, लेकिन अगर वे हमारे स्वर्गीय पिता की गोद में आ जाएं, तो उन सभी को वह सुरक्षा, प्रेम और देखभाल मिल सकती है जिसकी वे अभिलाषा करती हैं।

क्या बीते समय में आपके साथ हुए किसी बुरे बर्ताव की याद से आपको पीड़ा होती है - शायद कोई गहरी, गुप्त पीड़ा जो आप किसी को नहीं बता सकतीं? एक बार मुझे एक ऐसी लड़की मिली जिसका बचपन में यौन शोषण हुआ था। वह ख़ुद को बहुत गंदा महसूस करती थी और उसके कुँवारेपन के चुराए जाने से उसमें ऐसा क्रोध भरा था कि वह किसी पुरुष पर भरोसा नहीं कर पाती थी। उसको तब बड़ी राहत मिली जब मैंने उससे कहा कि उसके साथ जो कुछ भी हुआ है, और क्योंकि वह उसके लिए बिलकुल भी जि़म्मेदार नहीं है, इसलिए उसको उस सारे मामले को एक "दुर्घटना" मान लेना चाहिए।

सिर्फ यीशु ही हरेक घाव को भर सकता है और सारे अपराध-बोध और लज्जा को साफ कर सकता है। जिसने आपकी हानि की है, वह उसे क्षमा करने में आपकी मदद कर सकता है। आपका अनुभव आपको ऐसे लोगों के प्रति संवेदनाशील बना सकता है जिन्होंने आपके जैसी पीड़ा सही है कि फिर आप उनकी मदद कर सकें।

शायद आपको अपने अनुशासनप्रिय माता-पिता पसन्द नहीं हैं जो आपके कपड़ों और आचरण आदि पर प्रतिबंध लगाते हैं। कुछ लड़कियाँ तो कभी-कभी ऐसा भी महसूस करती हैं कि उन्हें घर से भाग कर आत्महत्या कर लेनी चाहिए। लेकिन ऐसी कोई लड़की नहीं होती जिसके भविष्य में सब कुछ नकारात्मक ही होता है। हरेक रात के बाद सुबह भी होती है। इसलिए ऐसी भली बातों के बारे में सोचना सीखें जो आपके साथ हो सकती हैं।

उन अच्छी बातों के लिए धन्यवाद दें जो आपके माता-पिता ने आपके लिए की हैं जिनकी वजह से आप आज जीवित हैं। आप जिन कठिनाइयों और परीक्षाओं का सामना कर रही हैं, परमेश्वर उनमें तालमेल बनाने में आपकी मदद करेगा। इसलिए कभी आशा न छोड़ें।

आपके जीवन की तुलना में जिनके जीवन में सब कुछ ज़्यादा बेहतर नज़र आता है, उनसे कभी ईर्ष्या न करें। परमेश्वर ने जिस तरह आपकी रचना की है और आपके रहने के लिए जिस वातावरण की उसने योजना बनाई है, उसमें उसने कोई ग़लती नहीं है। इस संसार में ऐसे करोड़ों लोग हैं जिनकी दशा आपसे ज़्यादा ख़राब है। ऐसा बहुत कुछ है जिसके लिए आप धन्यवाद दे सकते हैं।

आपने विवाह से पहले शायद पाप किया था और आपके गर्भ में एक बच्चा आ गया था। मैं ऐसी बहुत सी लड़कियों को जानती हूँ जिन्होंने ऐसी स्थिति में सही फैसला किया और अपनी संतान को जन्म दिया। कुछ ने अपने बच्चे को अपने साथ रखा; कुछ ने उन्हें गोद लिए जाने के लिए दे दिया। लेकिन उन्होंने अपने बच्चों की हत्या नहीं की। और जब उन्होंने परमेश्वर के आगे अपने आपको नम्र व दीन किया और अपना मन फिराया, तो उसने उन्हें समझदार पति भी दिए। परमेश्वर ने उनके अपराध-बोध और लज्जा को मिटा दिया। इसलिए, ऐसे अंधकारमय समयों में चाहे दूसरे लोग आपको बदनाम करें, तब भी आप परमेश्वर में भरोसा रख सकती हैं।

प्रभु आपको ग्रहण करने के लिए और आपको नया जीवन देने के लिए इंतज़ार कर रहा है।

कुछ समय पहले, हमने अपने देश के समाचार-पत्र में ऐसी तीन बहनों के बारे में पढ़ा (जो तीनों ही विवाह योग्य थीं) जिन्होंने अपने घर में पंखे से लटक कर सामूहिक आत्म-हत्या कर ली थी। जहाँ भी उनके विवाह की बात चलती थी, वहीं लड़कों के माता-पिता इतना दहेज माँगते थे जो उनका पिता नहीं दे सकता था। उनका पिता बेचैनी और झुंझलाहट से भर गया था। तब उन्होंने अपने पिता को उसकी पीड़ा से छुटकारा दिलाने के लिए अपने जीवनों का अंत करने का फैसला कर लिया था! यह कितनी दुःखद घटना है!

शायद आप भी ऐसी ही परिस्थिति का सामना कर रही हैं कि विवाह का जो भी प्रस्ताव आता है, वह दहेज की बड़ी माँग की वजह से रद्द हो जाता है। निराश न हों। परमेश्वर आपका पिता है, और वह आपकी ज़रूरत को जानता है और उसे आपकी चिंता है। संसार में विवाह हो जाना ही सबसे बड़ी बात नहीं है। अपने जीवन के लिए परमेश्वर की योजना को पूरा करना ज़्यादा बड़ी बात है। इसलिए अपने आपको पूरी तरह परमेश्वर को समर्पित कर दें और अपने जीवन के लिए सिर्फ उसकी इच्छा को ही पूरा करना चाहें। और जब सब पूरा हो जाएगा, तो आपके पास एक भरपूर जीवन होगा - चाहे आपके विवाह हुआ हो या न हुआ हो। संसार में हुई कुछ सबसे बड़ी मिशनरी स्त्रियाँ अविवाहित रही थीं।

क्या आप अपनी पूरी कोशिश के बाद भी किसी परीक्षा में निष्फल हो गई हैं? क्या आपको ऐसा महसूस होता है कि दूसरे लोगों ने आपके साथ सहानुभूति नहीं दिखाई है? क्या शैतान ने आपको ऐसा महसूस करने वाला बना दिया है कि आपका पूरा जीवन ही व्यर्थ है? ऐसे शैतानी विचारों को अपने अन्दर न रहने दें, क्योंकि फिर ये आपको उस बिन्दु तक पहुँचा सकते हैं जहाँ आप अपना जीवन समाप्त कर लेने की भी कोशिश करना चाहेंगी।

मेरी बहन, आप रोना बंद कर दें। यह कोई ज़रूरी नहीं है कि एक परीक्षा में फेल हो जाना, या बहुत सी परीक्षाओं में भी फेल हो जाना, आपके पूरे जीवन के रुक जाने की वजह बन जाए। दोबारा से वे परीक्षाएं दें। आप एक दिन ज़रूर सफल होंगी। कभी हार न मानें। और अगर आप पास न हों, या आगे पढ़ने के लिए आपके पास पर्याप्त समझ या पैसा न हो, तो याद रखें कि परमेश्वर ने इस संसार के निर्धन और निर्बल लोगों को चुना है कि वे चतुर और धनवान लोगों को लज्जित करें।

आप जैसी हैं, परमेश्वर आपको वैसे ही रूप में प्रेम करता है - चाहे आप अपनी परीक्षा पास करें या न करें। आपको स्वीकार करने से पहले वह आपका अंक-पत्र (मार्क-शीट) नहीं देखता!

शायद आप प्रेम में नाकाम हुई हैं। आपने जिससे विवाह करने की आशा की थी, उसने किसी दूसरी लड़की से विवाह कर लिया है। और आप रोती हैं - जैसे ऐसी स्थिति में सभी जवान लड़कियाँ रोती हैं।

लेकिन अगर उस युवक ने किसी और से विवाह कर लिया है, तो इससे यही साबित होता है कि वह आपके लिए परमेश्वर की इच्छा में नहीं था! परमेश्वर के पास आपके लिए कोई और या कुछ और बेहतर रखा हुआ होगा - शायद अविवाहित रहते हुए उसकी सेवा का जीवन।

परमेश्वर अपने आपको हमारे लिए इस संसार में सब बातों से और सब लोगों से ज़्यादा मूल्यवान बनाने के लिए बहुत सी बातों को हमारे जीवन में होने देता है। इसलिए अब से वह पूरी पृथ्वी पर आपके लिए सबसे बढ़कर हो।

इसलिए, आप में से जो अपने माता-पिता द्वारा त्याग दी गई हैं, मुझे आपसे यह कहना हैः आपको यह पता करने की कोई ज़रूरत नहीं है कि आपके माता-पिता ने आपको क्यों त्याग दिया था। आपकी कोई ग़लती नहीं थीं, क्योंकि आपके जीवन के सब दिन अनादि से ही अनन्त युगों से परमेश्वर की पुस्तक में लिखे गए थे (भजन. 139:15,16)।

इससे पहले कि परमेश्वर ने जगत की रचना की, उसने आपको चुन लिया था (इफि. 1:4,11)। आप अपने माता-पिता की ग़लती के लिए जि़म्मेदार नहीं हैं।

आपका एक परिवार न होने की वजह से आपने पहले ही शिकायतें करते हुए एक लम्बा समय बिता दिया है। अब आप इस बात में आनन्द मना सकती हैं कि आपका एक स्वर्गीय पिता है जो आपको उसके परिवार का हिस्सा बनाना चाहता है। और याद रखेंः वह अपने बच्चों को कभी नहीं त्यागता।

उसने आपसे एक अनन्त प्रेम से प्रेम किया है, और आप पर अपना प्रेम न्यौछावर किया है। अपने आपको हमेशा एक बच्चे के रूप में ही देखें जो अपने परमेश्वर पिता की स्नेही बाहों में हमेशा सुरक्षित रहता है। आपकी रचना उसके स्वरूप और समानता में की गई है, और वह आपको आशिष देने और आपके लिए उपलब्ध रहने की बड़ी लालसा करता है।

वह आपको वह सब कुछ दिखाने का इंतज़ार करता है जो उसने आपके लिए रखा हुआ है। एक दिन वह आपको उस महल में रहने के लिए ले जाएगा जो उसने आपके लिए तैयार किया हुआ है - ऐसी जगह जो इस पृथ्वी के किसी भी घर या विरासत से बहुत बढ़कर है। लेकिन आपको उसकी संतान और उसके परिवार का हिस्सा होने के प्रस्ताव को स्वीकार करना होगा। फिर उसके हाथ से आपको कोई नहीं छुड़ा सकेगा। इसलिए अपना पूरा जीवन उसे सौंप दें।

"जितनों ने उसे (यीशु को) ग्रहण किया, उन्हें उसने परमेश्वर की संतान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास करते हैं" (यूहन्ना 1:12)।

अगर आप यह मान लें कि आप एक पापी हैं, और अपने पापों की सज़ा के लिए यीशु की मृत्यु को स्वीकार कर लें, तो आप स्वर्गीय पिता की संतान बन सकते हैं।

अपने सभी पापों से मन फिरा लें और उन्हें त्याग दें - और वह आपको पूरी तरह से उस लहू से शुद्ध कर देगा जो उसने आपके लिए बहाया है।

जिन्होंने आपके साथ कुछ ग़लत किया है, उन्हें क्षमा कर दें - जिनमें आपके माता-पिता भी शामिल हैं।

पुरानी यादों को आपको डराने या दोषी ठहराने की अनुमति न दें।

अगर अपने पिछले जीवन के बारे में आप अपने आपको दोषी ठहराते रहेंगे, तो अपने जीवन के लिए आप परमेश्वर की योजना को पूरा न कर सकेंगे।

आपको अपने पिछले जीवन को हमेशा के लिए पीछे छोड़ देना होगा। अपने भूतकाल को यीशु के लहू के नीचे छोड़ दें, और भविष्य की तरफ बढ़ते रहें।

यीशु का पीड़ा सहना और मरना सिर्फ आपको शुद्ध करने के लिए नहीं बल्कि आपको शुद्ध हो जाने का अहसास कराने के लिए भी था।

जब मसीह आपके जीवन में आता है, तब आप परमेश्वर के सामने धर्मी (सही/खरे) हो जाते हैं।

और अब परमेश्वर आपकी तरफ ऐसे देखता है जैसे आपने अपने जीवन में कभी कोई पाप नहीं किया है। ऐसा हो इस सच्चाई का अहसास आपके हृदय को सदा आनन्द से भरता रहे।

इस तरह आप, हममें से उन बहुतों की तरह जिन्होंने वह किया है जो मैंने ऊपर लिखा है, परमेश्वर के अनोखे परिवार में शामिल हो जाएंगी।

जब आप बाइबल पढ़ेंगी, तो आप परमेश्वर को आपके साथ बात करता हुआ पाएंगी।

और प्रार्थना में जब आप उससे बात करेंगी, तब आपके पास यह आश्वासन होगा कि वह स्वर्ग से आपकी प्रार्थना को सुनता है और उसका जवाब देता है।

पिता ने एक बार यीशु से कहा, फ्तू मेरा प्रिय पुत्र है जिससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ।" एक दिन वह आपको भी 'प्रिय' कह कर पुकारेगा - ऐसी बेटी जिससे वह अति प्रसन्न है। इसलिए, अब और मत रोना - आप अनाथ नहीं हैं। आप एक राजा की बेटी हैं।

कुछ समय पहले मैंने एक पत्र पढ़ा था जिसमें यह बात, जो मैं कहने की कोशिश कर रही हूँ, एक बहुत रूप में व्यक्त की गई थी। वह बैरी ऐडम्ज़ द्वारा लिखा गया पत्र है, और उन्होंने उदारता के साथ अपने प्रेरित संग्रह को उसके पूरे स्वरूप में यहाँ प्रकाशित करने की मुझे अनुमति प्रदान की हैः

पिता का प्रेम-पत्र

जो शब्द आप पढ़ने जा रहे हैं वे सच्चे हैं। अगर आप इन शब्दों को अनुमति देंगे, तो वे आपका जीवन बदल देंगे - क्योंकि वे परमेश्वर के हृदय में से आए हैं। वह आपसे प्रेम करता है।

वह वही पिता है जिसकी आपने अपने पूरे जीवन-भर खोज की है।

यह आपके लिए उसके प्रेम का पत्र है।

मेरी बेटी,

तू शायद मुझे नहीं जानती है, लेकिन मैं तेरे बारे में सब कुछ जानता हूँ (भजन. 139:1)।

मैं तेरा उठना-बैठना दोनों जानता हूँ (भजन. 139:2)।

मैं तेरे सारे चाल-चलन से भली-भांति परिचित हूँ (भजन. 139:3)।

तेरे सिर के बाल भी मेरे गिने हुए हैं (मत्ती 10:29-31)।

क्योंकि तुझे मैंने अपने स्वरूप में बनाया है (उत्पत्ति 1:27)।

तू मुझ में रहती है, चलती-फिरती है और अपना अस्तित्व रखती है (प्रेरितों. 17:28)।

क्योंकि तू मेरी संतान है (प्रेरितों. 17:28)।

तेरी माता के गर्भ में आने से पहले से मैं तुझे जानता हूँ (यिर्म. 1:4-5)।

मैंने सृष्टि की रचना के समय से ही तुझे चुना हुआ है (इफि. 1:11-12)।

तू कोई भूल नहीं है, क्योंकि तेरे सारे दिन मेरी पुस्तक में लिखे हुए हैं (भजन. 139:15-16)।

तेरे जन्म के समय और तेरे रहने की जगह को मैंने तय किया है (प्रेरितों. 17:26)।

तू अद्भुत और भयानक रीति से बनाई गई है (भजन. 139:14)।

तेरी माता के गर्भ में मैंने ही तेरी रचना की है (भजन. 139:14)।

तेरे जन्म के दिन मैंने ही तेरी माता के गर्भ में से तुझे निकाला था (भजन. 71:6)।

जो मुझे नहीं जानते उन्होंने मुझे एक ग़लत रूप में प्रस्तुत किया है (यूहन्ना 8:41-44)।

मैं दूर रहने और क्रोध करने वाला पिता नहीं हूँ, बल्कि प्रेम की पूरी अभिव्यक्ति हूँ (1 यूहन्ना 4:16)।

और मेरी यह इच्छा है कि मैं अपने प्रेम को तुझ पर उण्डेलूँ (1 यूहन्ना 3:1)।

सिर्फ इस वजह से कि तू मेरी बेटी है और मैं तेरा पिता हूँ (1 यूहन्ना 3:1)।

तेरा पृथ्वी का पिता तुझे जो कुछ दे सकता था, मैं उससे बढ़कर तुझे देता हूँ (मत्ती 7:11)।

क्योंकि मैं एक सिद्ध पिता हूँ (मत्ती 5:48)।

तुझे मिलने वाली हरेक भली वस्तु मेरे ही हाथों में से तेरे पास पहुँचती है (याकूब 1:17)।

क्योंकि मैं ही तेरा सब इंतज़ाम करने वाला और तेरी सारी ज़रूरतें पूरी करने वाला हूँ (मत्ती 6:31-33)।

तेरे भविष्य के लिए मेरी योजना हमेशा आशा-भरी रही है (यिर्म. 29:11)।

क्योंकि मैंने तुझसे अनन्त प्रेम से प्रेम किया है (यिर्म. 31:3)।

तेरे प्रति मेरे विचार ऐसे ही असंख्य हैं जैसे समुद्र-तट की रेत के कण (भजन. 139:17-18)।

और मैं गीत गाकर तुझमें आनन्दित होता हूँ (सप. 3:17)।

मैं तेरा भला करने से कभी न रुकूँगा (यिर्म. 32:40)।

क्योंकि तू मेरी निज सम्पत्ति है (निर्ग. 19:5)।

मैं अपने पूरे हृदय और अपने पूरे जीव से तुझे दृढ़ करना चाहता हूँ (यिर्म. 32:41)।

मैं तुझे बड़ी और अद्भुत बातें दिखाना चाहता हूँ (यिर्म. 33:3)।

अगर तू अपने पूरे हृदय से मुझे खोजेगी, तो मैं तुझे ज़रूर मिलूँगा (व्य.वि. 4:29)।

मुझमें मग्न रह और मैं तेरे मनोरथों को पूरा करूँगा (भजन. 37:4)।

क्योंकि मैं ही तेरी अभिलाषाओं को तुझमें पैदा करता हूँ (फिलि. 2:13)।

मैं तेरी कल्पना से बहुत आगे बढ़कर काम कर सकता हूँ (इफि. 3:20)।

क्योंकि मैं ही तुझे सबसे ज़्यादा उत्साहित करने वाला हूँ (2 थिस्स. 2:16-17)।

मैं ही वह पिता हूँ जो तेरे सारे क्लेशों में तुझे शांति देता हूँ (2 कुरि. 1:3-4)।

जब तेरा मन टूटा हुआ होता है, तब मैं ही तेरे पास होता हूँ (भजन. 34:18)।

जैसे एक चरवाहा एक मेमने को अपनी गोद में ले लेता है, वैसे ही मैंने तुझे अपने हृदय के पास रखा है (यशा. 40:11)।

एक दिन मैं तेरी आँख के सब आँसू पोंछ डालूँगा (प्रका. 21:3-4)।

और उस सारी पीड़ा को मिटा दूँगा जो तूने पृथ्वी पर सही है (प्रका. 21:3-4)।

मैं तेरा पिता हूँ, और मैं तुझे वैसा ही प्रेम करता हूँ जैसा मैं अपने पुत्र यीशु से करता हूँ (यूहन्ना 17:23)।

क्योंकि यीशु में मैंने तेरे लिए अपने प्रेम को प्रकट किया है (यूहन्ना 17:26)।

वह मेरे प्रभुत्व का प्रतिरूप है (इब्रा. 1:3)।

वह यह प्रदर्शित करने के लिए आया था कि मैं तेरे खिलाफ़ नहीं तेरे पक्ष में हूँ (रोमियों. 8:31)।

और वह तुझे यह बताने के लिए आया था कि मैं अब तेरे पापों का हिसाब नहीं रखता (2 कुरि. 5:18-19)।

यीशु इसलिए मरा कि तेरा और मेरा मेल-मिलाप हो सके (2 कुरि. 5:18-19)।

उसकी मृत्यु तेरे लिए मेरे प्रेम की सबसे बड़ी अभिव्यक्ति है (1 यूहन्ना 4:10)।

मैंने जिससे प्रेम किया वह सब कुछ मैंने इसलिए दे दिया कि मैं तेरा प्रेम पा सकूँ (रोमियों. 8:31-32)।

अगर तू मेरे पुत्र यीशु को एक भेंट के रूप में ग्रहण करेगी, तो तू मुझे ग्रहण करेगी (1 यूहन्ना 2:23)।

और फिर मेरे प्रेम से तुझे कभी कोई अलग न कर सकेगा (रोमियों. 8:38-39)।

तू घर लौट आ, और मैं इतना बड़ा जश्न मनाऊँगा जैसा स्वर्ग में कभी नहीं देखा गया है (लूका 15:7)।

मैं हमेशा से पिता था, और हमेशा पिता रहूँगा (इफि. 3:14-15)।

मेरा सवाल यह हैः "क्या तू मेरी बेटी बनेगी?" (यूहन्ना 1:12-13)।

मैं तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ (लूका 15:11-32)।

सप्रेम,

तेरा पिता,

सर्वशक्तिशाली परमेश्वर

अध्याय 2
परमेश्वर आपका पति है

"क्योंकि तेरा कर्ता ही तेरा पति है जिसका नाम सेनाओं का यहोवा है। इस्राएल का पवित्र ही तेरा छुड़ाने वाला है जो सारी पृथ्वी का परमेश्वर कहलाता है" (यशा. 54:5)।

मेरी एक प्रिय मित्र के पति की अचानक एक दुःखद दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। वह अपनी युवा पत्नी को 'अलविदा' भी नहीं कह सका था। एक शराबी कार-चालक ने उसे कार के नीचे कुचल दिया, और उसकी क्रूर मूर्खता द्वारा मेरी मित्र के पति का जीवन-दीप बुझ गया। और यह तब हुआ था जब वह एक प्रार्थना-सभा में जा रहा था।

मेरी एक और मित्र के पति की थोड़े समय बीमार रहने के बाद मृत्यु हो गई थी। "मृत्यु" नाम का आगन्तुक बिन-बुलाए मेहमान की तरह हरेक घर में कभी भी चला आता है। सिर्फ वह व्यक्ति ही, जो अपने प्रियजन से बिछड़ गया है, उस काट कर खाने वाली पीड़ा और अकेलेपन को महसूस कर सकता है जो मृत्यु के साथ आते हैं। आपके विचारों में अपने प्रियजन की यादें भरी होती हैं, और आप बार-बार यह आशा करती हैं कि उन ख़ुशियों से भरे दिनों को आप अपने प्रियजन के साथ फिर से जी सकें। लेकिन अब ऐसा न हो सकेगा। आपकी असीम पीड़ा के बीच में से जो भी राहत आपको मिलती है, वह सिर्फ दिन भर बहने वाले आँसुओं की झड़ियों और रात की सुबकियों में ही मिलती है। बाइबल कहती है कि प्रभु हमारे सारे आँसुओं का हिसाब रखता हैः "तूने रातों को मेरा इधर-उधर उलट-पलट होना देखा है। तूने मेरे आँसुओं को जमा करके अपनी कुप्पी में भर लिया है! तूने मेरे हरेक आँसू का हिसाब अपनी पुस्तक में लिख रखा है" (भजन. 56:8 - लिविंग)।

प्रभु की एक क़ीमती संतान ने उसी महीने में नीचे दिया गया यह लेख पढ़ा था जिस महीने में उसका युवा पति प्रभु के पास चला गया था। जब मेरी उससे मुलाक़ात हुई, तो मैंने देखा कि इसके द्वारा उसे परमेश्वर में कितनी बड़ी तसल्ली मिली थीः

"शायद यहाँ आज एक ऐसी नारी है जिसके साथ पिछले साल, या कुछ महीने या कुछ सप्ताह पहले, एक ऐसा सशक्त और बुद्धिमान पुरुष खड़ा था कि वह सारी जि़म्मेदारी और देखभाल के हरेक मनोभाव से मुक्त थी, क्योंकि सारा बोझ उस पुरुष के कंधों पर था। उसके साथ बिताए हुए दिन कितनी रौनक़ और ख़ुशियों से भरे हुए थे! लेकिन फिर वह अंधकारमय दिन आया जिसमें वह प्रियजन ले लिया गया, और आज, जीवन कितना अकेला, ख़ाली, सूना और बोझ व चिंता से भरा हुआ है। हे नारी, सुन, एक ऐसा पुरुष है जो तेरे संग-संग चल रहा है, जो इस पृथ्वी के सबसे बुद्धिमान, सशक्त और प्रेमी पति से भी ज़्यादा बुद्धिमान, शक्तिशाली, प्रेम करने वाला, और मार्गदर्शन देने और सहायता करने योग्य है। वह तेरे लिए तेरे जीवन के सारे बोझ और जि़म्मेदारियाँ उठाने के लिए तैयार है। बल्कि, वह इससे भी बहुत बढ़कर करने के लिए तैयार है। वह आकर तेरे हृदय में रहने के लिए और तेरे ख़ाली और दुखते हुए हृदय के हरेक कोने को भर देने, और इस तरह, तेरे अकेलेपन और दिल के दर्द को हमेशा के लिए दूर कर देने के लिए तैयार है।" (ए. डब्ल्यू. टोज़र)।

एक दूसरी स्त्री के लिए उसके शराबी पति के साथ रहना मुश्किल हो गया था, और उसे ऐसा महसूस होने लगा था कि उसके धीरज की सीमा आ गई है। उसके सभी मित्रों ने उसे यही सुझाव दिया कि उसे उससे अलग हो जाना चाहिए। उस स्त्री को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसके पास अब कोई विकल्प नहीं बचा था, और वह यह नहीं जानती थी कि अब आगे वह सब बातों का सामना कैसे कर पाएगी।

क्या आप ऐसी किसी पीड़ा में से गुज़र रही हैं? क्या आपके अकेलेपन की वजह आपके पति से अलग हो जाना है? क्या आपको ऐसी यादें सताती हैं जिनसे आपको पछतावा और अफसोस होता है? क्या आप स्वयं को कभी ऐसा चाहता हुआ महसूस करती हैं कि गुस्से में आकर वह लड़ाई-झगड़ा न हुआ होता तो कितना अच्छा रहता?

अगर आप एक अकेले माता या पिता हैं जो अपने बच्चों की वजह से उलझन-भरे और जटिल हालातों का सामना कर रहे हैं, और ऐसे सम्बंधियों के बीच में जो कोई मदद नहीं करते, तब भी प्रभु के लिए कुछ मुश्किल नहीं है।

अगर आप सिर्फ अपना सब कुछ उसके हाथों में सौंप दें, तो वह आपके जीवन में आकर शैतान की लगाई हुई हरेक गाँठ को खोले देगा और हरेक मुश्किल को आसान कर देगा।

इसलिए, रोना बंद कर दें। अपने जीवन के सारे टूटे हुए हिस्से बस उसके हाथ में सौंप दें। वह ऐसा स्वामी है जो एक कुशल कुम्हार की तरह हरेक टूटे हुए पात्र को दोबारा से बना सकता है। हम तो कुम्हार के हाथ में मिट्टी की तरह है! (यिर्म. 18:6)।

क्या आपका सामना एक ऐसी ठण्डी, शीत-लहर रूपी स्त्री से हो रहा है जो आपके पति के जीवन में आ गई है? प्रभु उन दोनों को क्षमा करने में आपकी मदद कर सकता है। इस बात से भी आपके जीवन को कलंकित होने की ज़रूरत नहीं है।

गुस्से के आँसु न बहाएं। प्रभु आपके पार्थिव साथी की कमी की भरपाई कर देगा। वह आपके साथी के हृदय को पलटकर दोबारा आपकी तरफ फिरा सकता है। वह परमेश्वर है जो अद्भुत युक्ति करता है।

घृणा से भर कोई योजना न बनाएं। इसकी बजाय परमेश्वर से कहें कि वह आपके पति से कड़वे शब्द बोलने की जगह प्रेम के शब्द बोलने के लिए आपके हृदय में उसका प्रेम उण्डेल दे और आपको कृपा प्रदान करे। परमेश्वर टूटे मन वालों के पास रहता है।

शायद आपकी विवाह करने की बड़ी अभिलाषा थी लेकिन अभी तक कुछ नहीं हो पाया है। सिर्फ यीशु में ही अपनी तसल्ली ढूंढें। पिता ने पहले ही हमें उसका सबसे अच्छा सहायक दे दिया है - पवित्र-आत्मा (यूहन्ना 14:6)। वह हमें कभी बेचैनी की हालत में नहीं छोड़ेगा।

यह हो सकता है कि हर बार जब भी आपको किसी दूसरी लड़की की शादी की ख़बर मिलती है, तो आप बेचैन हो जाती हैं। आप उसे मुबारकबाद भी नहीं देना चाहतीं। इसकी बजाय आप अपने कक्ष में जाकर रोना चाहती हैं। यीशु आपके पास ही है और वह आपकी पीड़ा को महसूस कर रहा है।

रात के अंधेरे में रोना और दिन के समय बाहरी तौर पर ख़ामोश रहते हुए उस रोने को दबाए रखना, सब प्रभु की जानकारी में है। जब उसके प्रिय बच्चे ऐसी पीड़ा में से गुज़रते हैं, तो वह दूर हटकर खड़ा नहीं हो जाता। हमारे लिए उसका हृदय ख़ून के आँसू रोया है। वह झुक कर आपको छुएगा, और उसका चंगा करने वाला मरहम आपके हृदय पर लगाएगा और तब आपकी पीड़ा आपके लिए सहनीय हो जाएगी।

उसका जुआ सहज और उसका बोझ आसान है। और इस परीक्षा में आपकी विश्वासयोग्यता का नतीजा यह होगा कि अंत में आप अनन्त महिमा में पहुँचाई जाएंगी।

मैंने कुछ ऐसी विधवा स्त्रियों की साक्षी सुनी है जिनके पति प्रभु के लिए मार डाले गए थे! उनके शब्दों में जय के स्वर थे!

उन्होंने मुझे विस्मित कर दिया था।

वे उन्हें कैसे क्षमा कर सकती थीं जिन्होंने उनके पति की हत्या की थी?

ऐसा कर पाने में सिर्फ वही स्वामी हमारी मदद कर सकता है जिसने उसे सूली पर चढ़ाने वालों के लिए प्रार्थना करते हुए यह कहा था, "हे पिता, इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।"

एक बार मुझे एक ग़रीब, युवा विधवा मिली जिसके पति की उत्तर भारत में सुसमाचार सुनाने के लिए कुल्हाड़े से हत्या कर दी गई थी। उसकी साक्षी ने मुझे बहुत द्रवित किया था। अपने बच्चों के साथ खड़े होकर उसने यह कहा कि उसकी यह प्रार्थना है कि जहाँ उसके पति का लहू बहा है वहाँ एक कलीसिया का जन्म होना चाहिए। यक़ीनन, वह एक जीती हुई और रोती हुई बहन थी।

यीशु का लहू दया के लिए पुकारता है; वह हाबिल के लहू की तरह बदला लेने के लिए नहीं पुकारता।

परमेश्वर की एक सच्ची संतान उस तरह से अपना जीवन बिता सकती है जैसा कि प्रभु ने पहाड़ी उपदेश में हमें जीना सिखाया है (मत्ती अध्याय 5,6 व 7)।

परमेश्वर विधवाओं और अनाथों का परमेश्वर है।

यीशु ने प्रार्थना के बारे में एक दृष्टान्त सिखाया जिसमें उसने हमारी तुलना एक ऐसी विधवा से की जो उसके बैरी के खिलाफ़ न्याय माँगने के लिए एक अन्यायी न्यायाधीश के पास गई थी। वह लगातार आग्रह करती रही थी, और इस वजह से उसने जो चाहा वह उसे मिल गया था।

यीशु ने एक बार सबके सामने एक विधवा की प्रशंसा की थी जिसने परमेश्वर को उसकी दो दमड़ी दान में दी थीं - एक ऐसी मामूली राशि जो दूसरों की नज़र में कुछ भी नहीं थी। लेकिन उसने उसकी कमी-घटी में से दिया था, और वह दान उसकी सारी कमाई थी।

वहाँ हम यह सीखते हैं कि यीशु उसके लिए किए गए हमारे हरेक बलिदान पर ध्यान देता है - ख़ास तौर वे बलिदान जो हम वेदना और आँसुओं द्वारा करते हैं।

बाइबल कहती है कि एक ईश्वरीय भक्ति करने वाली विधवा "संतों के पैर धोती है" (1 तीमु. 5:10) - दूसरे शब्दों में, वह उसकी सेवा द्वारा परमेश्वर के लोगों के हृदयों को तरोताज़ा करती है।

एक स्त्री ऐसा तभी कर सकती है जब पहले उसने स्वयं अपने बोझ, पीड़ा और आँसू प्रभु के चरणों में अर्पित कर दिए हों।

अध्याय 3
परमेश्वर आपके बच्चों को बचाएगा

"मैं तेरे पुत्रों (बच्चों) को बचाऊँगा" (यशा. 49:25)।

एक बार मुझे एक माता ने बड़ी बेचैनी के साथ बाहर से फोन किया। उसने अपने पुत्र को सैंकड़ों मील दूर एक कॉलेज में पढ़ने भेजा था। वहाँ उसके कुछ मित्र उसे एक झूठे "मसीही" पंथ में ले गए थे। अब वह लड़का उस पंथ का कट्टर समर्थक बन गया था, और उसकी पढ़ाई पूरी करने की बजाय उसका सारा पैसा उस पंथ को दे रहा था। उसने उनके तौर-तरीक़े और भाषा सीख ली थी, और अब वह अपने परिवार से किसी तरह का कोई सम्बंध नहीं रखना चाहता था। वह समूह उनके कामों को सही ठहराने के लिए पवित्र-शास्त्रों के हवाले देता था, लेकिन कोई भी समझदार मसीही स्पष्ट रूप में यह देख सकता था कि वे ग़लत थे। पंथ का अगुवा पंथ के सदस्यों को उनके जीवन की हरेक मामूली बात के लिए भी निर्देश देता था और वे एक नज़दीकी से गुंथे हुए परिवार की तरह रहते थे। हालांकि वे प्रसन्नचित्त रहने का दावा करते थे लेकिन असल में वे ख़ाली और बंधनों में जकड़े हुए थे। सिर्फ कुछ लोग ही उस पंथ में से छूट पाए थे।

उस घर में जब बच्चे बड़े हो रहे थे, तब माता-पिता ने अपने परिवार में परमेश्वर के लिए समय नहीं निकाला था। फिर जब उन पर मुसीबत आई, तब उन्होंने परमेश्वर की खोज करनी चाही। अब उन्हें यह समझ आया कि सिर्फ परमेश्वर ही उनके लड़के से बात कर सकता था। सिर्फ प्रार्थना द्वारा ही उन मज़बूत ज़ंजीरों को तोड़ा जा सकता था जिनमें वह लड़का जकड़ा जा चुका था।

मुझे एक और लड़के की बात याद आ रही है। यह युवक एक अच्छे मसीही परिवार में पला-बढ़ा था जिसे उसके माता-पिता ने बचपन से ही संसार से अलग रहना सिखाया था। फिर जब वह कॉलेज में गया, तो वहाँ दोस्तों के संग शराब की लत में पड़ गया। लेकिन परमेश्वर ने उसके दुःखी माता-पिता की प्रार्थना को सुना, और आज वह युवक एक चुस्त मसीही है।

कुछ बच्चे जो सच्ची भक्ति करने वाले परिवारों में बड़े हुए होते हैं, कभी-कभी संसार में भोग-विलास का मज़ा लेने की कोशिश में कुछ समय के लिए मार्ग से भटक सकते हैं। तब हम माताओं को उन्हें अंधकार-भरे ऐसे दिनों में से प्रार्थना द्वारा बाहर निकाल लाना चाहिए।

सभी माताओं के जीवन में ऐसे समय आए हैं जब वे उन्होंने अपने बच्चों के लिए आँसू बहाए हैं।

कुछ माताओं को इसलिए रोना पड़ता है क्योंकि उनके बच्चे शारीरिक विक्लांगता या स्वास्थ्य-सम्बंधी समस्याओं के साथ पैदा हुए हैं, या फिर वे किसी असाध्य रोग से ग्रस्त हैं।

दूसरों को इसलिए रोना पड़ता है क्योंकि उनके बच्चे सच्चे चरवाहे से दूर हो गए हैं और अब वे उड़ाऊ पुत्र की तरह "एक दूर देश में" रह रहे हैं; हालांकि वे अपने माता-पिता के साथ एक ही छत के नीचे रहते हैं, फिर भी उनका एक-दूसरे के साथ कोई संपर्क नहीं है।

कुछ इसलिए रोती हैं क्योंकि उनका पुत्र या पुत्री किसी झूठे मसीही पंथ में फँस गए हैं और अब अपने परिवार से कोई सम्बंध नहीं रखना चाहते हैं। कुछ बच्चे शराब और मादक द्रव्यों के सेवन के शिकार हो गए हैं। कुछ बच्चे ग़लत दोस्तों की संगति में फंस गए हैं। कुछ अपराधी बन गए हैं और गिरफ्तार होकर जेलों में पड़े हैं।

इन सभी मामलों में, एक बच्चा शायद कुछ ऐसे दबावों में से गुज़रा होगा जिन्हें समझने में उसके माता-पिता नाकाम रहे होंगे। शायद बच्चे ने कभी "अपनापन" ही महसूस न किया हो। उसने शायद उसके माता-पिता और उसके बीच में एक पीढ़ी-की-दूरी महसूस की होगी। और यह भी हो सकता है कि उसके माता-पिता और उसके बीच में ज़्यादा बातचीत/संपर्क न हुआ हो।

लेकिन इनमें से हरेक के लिए एक आशा है।

मैंने ऐसे अनेक युवाओं के बारे में सुना है जिन्होंने अंततः कारावास में अपने जीवन प्रभु को सौंप दिए थे।

हमारे बच्चे हमेशा के लिए प्रभु से दूर नहीं भाग सकते। उसका प्रेम और दया उनका पीछा करते हैं और अंत में उन्हें जा पकड़ते हैं। एक भक्त स्त्री ने एक बार कहा, "उसकी सामर्थ्य के आगे कुछ भी ऐसा नहीं है जो बहुत बड़ा है, और उसके प्रेम के आगे कुछ भी ऐसा नहीं है जो बहुत छोटा है।"

इसलिए, प्यारी माता, आँसुओं से भरी आपकी प्रार्थनाएं व्यर्थ नहीं हुई हैं। आप प्रार्थना करना जारी रखें।

मैं एक बार एक मसीही परिवार से भेंट करने के लिए गई थी जहाँ सभी चारों बच्चे एक ऐसे शारीरिक रोग से ग्रस्त थे जो उनके किशोरावस्था तक पहुँचते-पहुँचते तक उन्हें ख़त्म कर देता था। तीन बच्चे बिस्तर में पड़े थे और सबसे बड़ा बच्चा मर चुका था। लेकिन पूरा परिवार परमेश्वर के प्रेम से जगमगा रहा था। माता अपने बच्चों के जीवन को आरामदेह बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही थी, हालांकि वह जानती थी कि एक दिन उसे अपने बच्चों को एक-एक कर उनके कफन में लपेट देना होगा। वह रोती थी, लेकिन वह जानती थी कि एक दिन वह उन्हें एक स्वस्थ जी-उठी देह में देखेगी। कुछ महीनों पहले मैंने सुना कि वे सभी बच्चे अब स्वर्ग में थे, और उनका पृथ्वी का पीड़ा का जीवन अब ख़त्म हो चुका था।

परमेश्वर पृथ्वी पर हमारे बच्चे हमें कुछ समय के लिए उधार देता है कि हम उन्हें उसके राज के लिए तैयार करें। एक बार मैंने एक कविता पढ़ी जो हमें बच्चों के प्रति हमारी जि़म्मेदारी के बारे में बताती है जिन्हें परमेश्वर ने हमें दिया हैः

वह बच्चा जो परमेश्वर ने हमें उधार दिया है

"कुछ समय के लिए मैं अपना एक बच्चा तुम्हें दूँगा", परमेश्वर ने कहा, "तब तक वह जीवित रहे उससे प्रेम करना, जब मर जाए तो मुझे लौटा देना।

वह एक साल, या दो, या पाँच, या चार, या तीन साल के लिए होगा। लेकिन क्या तुम उसकी तब तक मेरे लिए देखभाल करोगे जब तक मैं उसे वापिस न बुला लूँ?

तुम्हें हर्षित करने के लिए वह अपनी मनोहर बातों के साथ आएगा; और अगर उसके रहने की अवधि ज़्यादा न होगी, तो उसकी याद तुम्हारे दुःख में तुम्हारी तसल्ली होगी।

मैं उसके रहने का वादा नहीं करता,

क्योंकि पृथ्वी से सभी को लौटना पड़ता है।

लेकिन पृथ्वी पर कुछ ऐसे पाठ सिखाए जाते हैं,

जो मैं चाहता हूँ कि यह बच्चा उन्हें सीखे।

मैंने पूरी पृथ्वी पर देखा कि सच्चे शिक्षक कहाँ हैं,

और पृथ्वी पर रहने वालों में से मैंने अब तुम्हें चुना है।

अब क्या तुम उसे अपना पूरा प्रेम दोगे, और अपने श्रम को व्यर्थ न जानोगे,

और जब मैं इस खोए हुए को वापिस बुला लूँ, तो मुझसे घृणा न करोगे?"

और माता-पिता ने यह जवाब दिया, फ्प्यारे परमेश्वर, तेरी इच्छा पूरी हो।

यह बच्चा हमारे लिए जो आनन्द लाएगा, उस आनन्द के लिए हम दुःखी होने का ख़तरा भी उठा लेंगे,

"हम कोमलता से उसे संभाल कर रखेंगे,

जब तक वह रहेगा, हम उससे प्रेम करेंगे,

जो ख़ुशी वह लेकर आएगा, हमेशा उसके लिए हम कृतज्ञ रहेंगे,

लेकिन हे प्रभु, अगर तू आकर हमारे समय से पहले उसे बुला लेगा,

तो हम पीड़ा का कड़वा घूंट भी पी लेंगे,

और समझने की कोशिश करेंगे।"

(लेखकः अज्ञात्)

प्यारी माता, याद रखें कि बच्चे उनके भीतर बहुत सी बातें महसूस करते हैं। लेकिन अपनी भावनाओं को शब्दों में व्यक्त कर पाना उनके लिए मुश्किल होता है। इसलिए जब वे चिड़चिड़े, ख़ामोश या अलग हट रहे हों, तो आपको उन्हें समझने की कोशिश करनी होगी। वे कोई दुष्टता नहीं कर रहे हैं। वे सिर्फ किसी बात के साथ संघर्ष कर रहे हैं।

आपका बच्चा चाहे जैसी भी बातों में से गुज़र रहा हो, यह याद रखें कि स्वर्ग में एक है जो उन्हें पूरी तरह समझता है। उसने याईर की मृत बेटी के बिस्तर के पास आकर उसे जि़न्दा किया था। उस दृश्य का चित्रण करके देखें, जब यीशु ने अपने कुछ शिष्य अपने साथ लिए थे और उस छोटी लड़की के दुःखी माता-पिता के साथ अन्दर जाकर कक्ष का द्वार बंद कर लिया था। फिर उसने उसे मृतकों में से जीवित करके उसके माता-पिता को दे दिया था, और उनसे कहा था कि वे उसे कुछ खाने को दें।

आपके लिए भी यीशु को आज ऐसा करने दें। आज जबकि आप रो रहीं हैं, तो उसे यह अनुमति दें कि वह आपके कक्ष के एकान्त में आपको ले जा सके। वह आपके बच्चे के लिए भी कुछ ऐसा ही अद्भुत करेगा। हताश न हों।

ऐसी सभी माताएं जो अपने बच्चों के लिए निरंतर प्रार्थना करती हैं, यह जानती हैं कि उन्हें अचानक अपने एक बच्चे के लिए प्रार्थना करने का बोझ मिलता है। फिर उसके लिए प्रार्थना में कुछ समय बिताने के बाद, उन्हें यह महसूस होता है कि वह बोझ हट गया है। उन्हें इस बात का बाद में पता चल पाता है कि ठीक उसी समय उस बच्चे ने किसी ख़तरे का सामना किया था। परमेश्वर इसी तरह हमारे बच्चों के लिए हमें प्रार्थना योद्धा बनाता है। प्रार्थना कोई आिख़री बात नहीं है, बल्कि हमारे बच्चों द्वारा जिन मुश्किलों का सामना किया जा रहा है, यह उनका एकमात्र जवाब है।

नाईन नगर की विधवा को उसका पुत्र जीवित वापिस मिल गया था। यह हो सकता है कि आपका पुत्र आत्मिक तौर पर मर चुका हो और (लाज़र की तरह) बदबूदार हो गया हो। लेकिन वह भी प्रभु की आवाज़ को सुन लेगा/लेगी और जीवित होकर बाहर निकाल आएगा/आएगी। इसलिए रात-दिन प्रभु के आगे अपने बच्चे के लिए पुकारते रहें। परमेश्वर ने हमें अनेक प्रतिज्ञाएं दी हैं, और वह उनमें से हरेक को पूरा करेगा और आपकी प्रार्थनाओं का जल्दी ही जवाब देगा। अगर आप प्रभु की बाट जोहने वाली बन जाएंगी, तो प्रभु ने आपके लिए ऐसी बातें तैयार की हुई हैं जो बातें न तो आपकी आँख ने देखी हैं और न ही आपके कानों ने सुनी हैं। "जो मनुष्य के लिए असम्भव है, वह परमेश्वर के लिए सम्भव है।"

यह पद मेरे लिए जीवन के जल का एक ऐसा गुप्त स्रोत् बना रहा है जिसने मेरी अनेक परीक्षाओं में मुझे बल दिया है। मेरे अपने बच्चों के मामलों में, और उनकी विविध परिस्थितियों में, मैं अपनी अनेक प्रार्थनाओं का जवाब पाने की साक्षी दे सकती हूँ। मेरे चारों बेटों के लिए की गई प्रार्थनाओं के जवाब में परमेश्वर ने जो कुछ किया है, उसके लिए मैं सारी महिमा उसको ही देती हूँ। मैं जानती हूँ कि प्रार्थना से बातें बदल जाती हैं। वह आपके लिए - और आपके बच्चों के लिए भी बातों को बदल सकती है। परमेश्वर हमारे लिए और हमारे बच्चों के लिए हमारे माँगने और हमारे सोचने से भी कहीं बढ़कर कर सकता है (इफि. 3:20)।

अगर आपका बच्चा किसी बुरी आदत का शिकार हो गया है, तो उस पर कभी दोष न लगाएं। वह पहले ही पीड़ा भोग रहा है। वह उससे मुक्त होना चाहता है, लेकिन हो नहीं पाता। और अपने आपको भी कभी दोषी न मानें। वह यह कहने का समय नहीं होता, "काश, मैं एक बेहतर माँ बन पाती!" कोई भी माँ सिद्ध नहीं होती। हम सब अपना सर्वश्रेष्ठ करती हैं, लेकिन हम सब ग़लतियाँ भी करती हैं।

अगर ऐसी कोई बात है जो आपको परेशान कर रही है, तो प्रभु के आगे उसका अंगीकार कर लें और इस तरह उसका निपटारा कर दें। पछतावे और अपराध-बोध की हरेक मनोभावनाओं को अपने अन्दर से दूर कर दें। शैतान के सब तीरों में से यह एक सबसे पैना तीर यह है कि वह हमें स्वयं को ही दोषी ठहराने वाला बना देता है, और इस तरह वह परमेश्वर के बहुत से बच्चों को घायल और निष्क्रिय करते हुए उन्हें प्रार्थनाहीन बना देता है। हम एक युद्धभूमि में हैं, अपने बच्चों के जीवन के लिए युद्ध कर रही हैं। इसलिए हम रो-रोकर अपनी ऊर्जा को बर्बाद न करें। हमारे करने के लिए बहुत काम पड़ा है, और वह अभी होना ज़रूरी है। जब आप अपने बच्चे से बात करें तो परमेश्वर से आपकी मदद करने के लिए कहें। परमेश्वर को उन सभी दीवारों को गिराने दें जो बीते सालों में खड़ी हो गई हैं। आँसुओं में डूबी आपकी विनतियाँ अद्भुत काम करेंगी - परमेश्वर और आपके बेटा/बेटी दोनों के साथ।

आपको अपने बच्चे की तरफ से लड़ना होगा - क्योंकि वह कमज़ोर है। आपको मज़बूत होने की ज़रूरत है। जैसे दाऊद ने शेर के मुँह में से एक मेमने को छीन कर छुड़ा लिया था, हमें भी शैतान के मुँह में से अपने बच्चों को छीन कर छुड़ा लेना होगा।

अभी तक आप एक कमज़ोर और डरपोक स्त्री थीं। लेकिन अब आपको उठकर खड़े हो जाना है, अपने आँसुओं को पोंछ डालना है, और स्वर्गीय स्थानों में चल रहे युद्ध में शामिल हो जाना है। जीवन की रोटी से पोषण पाएं, आत्मा की तलवार - परमेश्वर का वचन चलाएं, और शैतान से लड़कर उसे अपने परिवार में से दूर भगाएं। जैसा प्रभु ने वादा किया है, उसे यीशु के नाम में डाँटें तो वह भाग जाएगा - बिजली की गति से भागेगा (याकूब 4:7; लूका 10:18)।

ऐसे समयों में आपके लिए परमेश्वर का वचन बहुत मूल्यवान होना चाहिए। आपके बच्चे के साथ चल रही इस परीक्षा को आपकी ताक़त को ख़त्म न करने दें। आपकी सबसे गहरी वेदना के पलों में भी परमेश्वर की अद्भुत प्रतिज्ञाएं आपको संभाले रहेंगी। दाऊद के भजनों को पढ़ें। उनमें एक ऐसी ख़ास शक्ति है जो हमारी परीक्षा और पीड़ा के समयों में से निकाल कर हमें बाहर ला सकती है। परमेश्वर के पास जाकर कहें कि वह आपको उसकी "भलाई का एक चिन्ह् दिखाए" (भजन. 86:17)। ऐसी प्रतिज्ञाओं पर आपका अधिकार होने का दावा करेंः

"जिन वर्षों को टिड्डियों ने खा लिया था, मैं उनके नुक़सान की भरपाई कर दूँगा" (योएल 2:25)।

"प्रतिज्ञा करने वाला विश्वासयोग्य है... क्या वह कुछ कहे, और उसे न करे?" (इब्रा. 10:23; गिनती. 23:19)।

"बाद की महिमा पिछली महिमा से बढ़कर होगी" (हाग्गै 2:9)।

"तूने अद्भुत काम किए जिनकी हमने अपेक्षा भी न की थी" (यशा. 64:3)।

"परमेश्वर बहुतायत से तुम्हें सब प्रकार की कृपा दे सकता है जिससे कि तुम सदा सब बातों में परिपूर्ण रहो, और हर भले काम के लिए तुम्हारे पास भरपूरी से हो" (2 कुरि. 9:8)।

ऐसे वचन नबूवत के शक्तिशाली वचन हैं, और ये हमारे लिए अद्भुत काम कर सकते हैं।

"अद्भुत, अद्भुत है परमेश्वर का वचन!

इसके पन्नों में हैं सच्चे ज्ञान के वचन

हालांकि हम इन्हें हज़ारों बार पढ़ते हैं

फिर भी वे कभी पुराने नहीं होते हैं

हर पंक्ति एक खज़ाना है, हर प्रतिज्ञा एक मोती

उसमें, अगर वह चाहे, तो ये सब बातें हैं पूरी होती

और हम जानते हैं कि जब समय पूरा होगा व संसार जाता रहेगा

परमेश्वर का वचन तब भी हमेशा, हमेशा बना रहेगा।"

(जूलिया स्टर्लिन्ग)

वह प्रभु जिसने दाऊद को उसके सब शत्रुओं द्वारा लगाए गए फंदों में से छुड़ाया, वह आपके बच्चे को भी छुड़ाएगा (भजन. 124:6-8 को पढ़ें और उस प्रतिज्ञा पर अपने अधिकार का दावा करें)।

अपने बच्चे के साथ ऐसा बर्ताव न करें मानो वह कोई अपराधी है, बल्कि उसे एक मरीज़ की तरह देखें। अपने बच्चे से कभी ऐसे शब्द न कहें, "तुम हमारे साथ ऐसा कैसे कर सकते हो?"

शायद आप उन बातों की वजह से शर्मिन्दा हैं जो लोग आपके बच्चे के बारे में बोल रहे हैं। लेकिन मनुष्य के मत की कभी परवाह न करें। मेरे पति हमेशा यह कहते हैं कि मनुष्य के मत को कूड़े के डिब्बे में डाल देना चाहिए! आपका बच्चा पृथ्वी के किसी भी व्यक्ति से बढ़कर है। इसलिए इस बात के लिए विलाप न करें कि आपके परिवार का नाम बदनाम हो रहा है। अपने बच्चे के लिए विलाप करें कि वह परमेश्वर के पास लौट आए। बस यही एक महत्वपूर्ण बात है।

अपने बच्चे के साथ आपकी बातचीत में चंगाई, क्षमा, विश्वास व मेलमिलाप के शब्दों का उपयोग करें। उसके साथ एक परिपक्व व्यक्ति की तरह बात करें क्योंकि उसे वही बनना है।

विश्वास में प्रार्थना करें और उसे शैतान के फंदे में से छुड़ाएं। मसीही मित्रों द्वारा प्रार्थना में समर्थन प्राप्त करें। जैसे उड़ाऊ पुत्र के पिता ने उसे बिना-शर्त स्वीकार कर लिया था, आप भी अपने बच्चे को इसी तरह स्वीकार करने के लिए तैयार रहें। अगर आपको ज़रूरी लगे तो उसके लिए डॉक्टर या किसी दूसरे विशेषज्ञ की मदद लेने के लिए तैयार रहें। युवाओं की ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए प्रशिक्षित लोग होते हैं, और आप उनकी मदद ले सकते हैं। या आप अपने बच्चे की समस्या के बारे में पढ़कर स्वयं उसकी मदद कर सकते हैं। और सबसे बढ़कर, आप अपने पति के साथ मिलकर अपने बच्चे के लिए प्रार्थना कर सकती हैं। अगर आपके घर में फूट होगी, तो शैतान को वहाँ पाँव रखने की जगह मिल जाती है। यीशु ने कहा कि अगर दो लोग उसके नाम में इकट्ठे होकर पिता से कुछ माँगेंगे, तो वह उन्हें दिया जाएगा।

इसलिए किसी पर दोष न लगाएं। अगर आपका बच्चा मार्ग से भटक जाने के नतीजे भुगत रहा है, तो याद रखें कि सबके लिए आशा है। भजन. 119:15 कहता है, "मैं तेरे उपदेशों पर मनन और तेरे मार्गों पर ध्यान करूँगा।" उड़ाऊ पुत्र अंततः अपने पिता के घर लौट आया था। मुझे यक़ीन है कि उसके माता-पिता ने उसके लिए बहुत आँसू बहाए होंगे। लेकिन एक दिन उनके विलाप के आँसू उनकी ख़ुशी के आँसुओं में बदल गए थे।

आज आपके बच्चे के साथ जो कुछ हो रहा है, उसके बारे में जानकर आपको हैरानी हुई होगी। लेकिन परमेश्वर के लिए वह कोई हैरानी की बात नहीं है। जो होने वाला था वह उसके बारे में पहले से जानता था और उसके पास उसका हल भी है। उसके पास हरेक समस्या का, हमारी हरेक ग़लती का भी हल होता है। इसलिए हम पूरे भरोसे और तसल्ली के साथ उसके पास यह मानकर जा सकते हैं कि हमारे बच्चों को हरेक संकट में से बाहर निकलेगा।

"जब मेरा मन कड़ुवा हो गया और मेरा अंतःकरण छिद गया, तब मैं निर्बुद्धि और नासमझ था। मैं तो तेरे सम्मुख जानवर ही था। फिर भी मैं निरंतर तेरे साथ हूँ। तूने मेरा दाहिना हाथ थाम लिया है। अपनी सम्मति के द्वारा तू मेरी अगुवाई करेगा, और अंत में मुझे महिमा में ग्रहण करेगा" (भजन. 73:21-24)।

"तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े जो मनुष्य के सहने से बाहर है। परमेश्वर तो सच्चा है जो तुम्हें सामर्थ्य से बाहर परीक्षा में पड़ने नहीं देगा, परन्तु परीक्षा के साथ-साथ बचने का भी उपाय करेगा कि तुम उसे सह सको" (1 कुरि. 10:13)।

परमेश्वर आपको कभी किसी ऐसी परीक्षा में नहीं डालेगा जो आपकी सहने की शक्ति से ज़्यादा होगी। रात रोते हुए गुज़र सकती है, लेकिन सुबह ज़रूर एक ख़ुशी लेकर आती है। "प्रभु टूटे मन वालों के पास रहता है, और जिनके जीव कुचले हुए हैं, वह उनका उद्धार करता है" (भजन. 34:18)।

हमें तोड़़ने वाले हमारे ऐसे सभी अनुभव, हमें प्रभु के सामने और ज़्यादा समर्पण करने वाले और इस बात की राह देखने वाले बना देते हैं कि हमारे लिए और हममें से काम करे। एक दिन इस परीक्षा का भी अंत हो जाएगा। लेकिन निष्क्रिय होकर प्रतीक्षा न करें। जब ज़रूरी हो तब सक्रिय होने के लिए तैयार रहें। आपको जो करना है, वह करने के लिए परमेश्वर आपको बुद्धि देगा। टूटे जाने को सहते रहें, लेकिन रोते-रोते भी काम करते रहें।

हम सभी इतने आत्म-निर्भर और अपने आपमें ऐसे परिपूर्ण होते हैं कि सिर्फ परीक्षाएं ही हमें प्रार्थना करना और प्रभु पर निर्भर रहना सिखा सकती हैं। "परखे जाने से धीरज पैदा होता है..."।

प्रभु ने हमें उपवास और प्रार्थना करना सिखाया है। आप चाहे कितने भी भीरु या निर्बल हों, आप स्वर्ग के द्वार को खटखटाएं तो वह आपके लिए खोला जाएगा। रात के गुप्त समयों में, परमेश्वर के आगे अपनी पीड़ा को उण्डेल कर उससे प्रार्थना करें। आपको जल्दी ही स्वर्ग खुलता हुआ और आपकी प्रार्थना का जवाब आता हुआ नज़र आएगा। अंधेरे के उन दिनों में उसने जो प्रतिज्ञाएं आपको दी थी, उन्हें लिख कर रख लें, और उनमें से हरेक प्रतिज्ञा आपको एक मेघ-धनुष या एक मूल्यवान पत्थर की तरह नज़र आएगी जिसे एक दिन आप दूसरों की मदद करने के लिए इस्तेमाल कर सकेंगे। वह पिता जो आपकी प्रार्थना को गुप्त में सुनता है, आपको सबके सामने आशिष देगा। उसने यह भी कहा है कि वह हमारी प्रार्थना का जवाब अति-शीघ्र देगा। इसलिए आप तब तक आग्रहपूर्ण प्रार्थना करते रहें जब तक आपकी प्रार्थना का जवाब नहीं मिल जाता। परमेश्वर की यह इच्छा नहीं है कि आपका बच्चा हमेशा के लिए नाश हो जाए। परमेश्वर का राज्य उनके लिए है जो उसमें बलपूर्वक प्रवेश कर रहे हैं; यीशु ने हमारे सामने स्वर्ग के राज्य को एक चुनौती की तरह रखा है।

"प्रभु का भय मानने वालों के चारों ओर उसका दूत छावनी डालकर उन्हें बचाता है" (भजन. 34:7)।

"परमेश्वर हमारे सोचने और माँगने से ज़्यादा कर सकता है" (इफि. 3:20)।

इसलिए उससे विश्वास से माँगें। निरंतर प्रार्थना करती रहें और साहस के साथ कृपा के सिंहासन के पास आएं।

"उठ, रात के हरेक पहर के आरम्भ में गला फाड़कर चिल्ला; अपना हृदय जल के समान प्रभु के आगे उण्डेल दे" (विला. 2:19)।

उपवास सिर्फ खाने के बारे में ही नहीं है। हम जीवन की अहंकार-भरी व्यर्थ बातों से दूर रहने, एक भोग-विलास का जीवन जीने से बचे रहने, और अपने स्वार्थी मनोवेगों के वश में न होने के भी उपवास कर सकते हैं। जब कोई संकट आ खड़ा होता है, तब उपवास करना मुश्किल नहीं होता - क्योंकि तब तो हमें वैसे भी भूख नहीं लगती। लेकिन उपवास हमारे द्वारा किया गया एक चुनाव होता है। यीशु ने कहा कि कुछ दुष्टात्माएं सिर्फ उपवास के साथ की गई प्रार्थना से ही जाती हैं।

हमारा संघर्ष मनुष्यों से नहीं बल्कि शैतानी शक्तियों से है। शैतान गुस्से से भरा हुआ है क्योंकि अब उसका अंत निकट आ रहा है, और इसलिए वह परमेश्वर के लोगों की तरफ उसके नए और ज़्यादा धोखा देने वाले अस्त्र छोड़ रहा है। लेकिन यीशु ने कलवरी पर पहले ही शैतान और सारी दुष्टात्माओं को हरा दिया है। प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में, हम अंत के समय का बयान पाते हैं। और विश्वास द्वारा, हम शैतान को पहले ही आग की झील में पड़ा हुआ देखते हैं। परमेश्वर की स्तुति हो!

एक बार मैंने प्रभु के एक भक्त को यह कहते सुना था कि प्रार्थना एक ऐसी रस्सी है जिससे हम अपने बच्चों को खींचकर प्रभु के पास ला सकते हैं।

2 राजा 4:7 में, हम एक ऐसे देनदार के बारे में पढ़ते हैं (जो शैतान का चित्रण है), जो एक ग़रीब विधवा के बच्चों को उसके दास बनाकर ले जाने के लिए आया था। तब नबी एलीशा ने उस विधवा से कहा था कि वह जाकर उसके घर में से, और उसके पड़ौसियों के भी घरों में से, सभी ख़ाली बर्तन इकट्ठे कर ले और अपने बच्चों के साथ घर में जाकर अपना दरवाज़ा बंद कर ले (यह प्रार्थना का चित्रण है), और फिर उनमें तेल उण्डेले (यह पवित्र-आत्मा की पूर्णता का चित्रण है)। इस तरह उस स्त्री का कर्ज़ चुकाया गया था और उसके बच्चे भी एक चमत्कारिक रूप में उसके लेनदार से बचाए गए थे। उस ग़रीब विधवा ने ज़रूर परमेश्वर के आगे आँसू बहाए होंगे क्योंकि वह अपने बच्चों को खोना नहीं चाहती थी। उसने बहुत अधीर होकर प्रार्थना और विलाप किया होगा। और परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना का जवाब दिया था।

मेरी प्यारी बहन, परमेश्वर आपके लिए भी ऐसा ही करेगा। क्या आज आप अपने बच्चों के लिए रो रही हैं? मैं आपको इब्रानियों 10:35 में से एक प्रतिज्ञा देना चाहती हूँः "स्त्रियों ने जी-उठने की सामर्थ्य द्वारा अपने मृतकों को जीवित पाया" (इब्रा. 11:35)।

अपने प्रियजन के लिए इस प्रतिज्ञा पर आपके अधिकार का दावा करें जो इस समय आत्मिक तौर पर मृतक है। परमेश्वर उसे जीवित कर देगा। आपकी प्रार्थना के जवाब में परमेश्वर आपको बड़ी और गूढ़ बातें बताना चाहता है (यिर्म. 33:3) और वह हमेशा आपका भला करने की ही योजना बनाता है (यिर्म. 29:11; 32:40)।

"आशा में आनन्दित रहो, क्लेश में स्थिर रहो, प्रार्थना में लवलीन रहो" (रोमियों. 12:12)।

"और वह विजय जिसने संसार पर जय प्राप्त की यह हैः हमारा विश्वास" (1 यूहन्ना 5:4)।

अध्याय 4
परमेश्वर मृत्यु की घाटी में आपके साथ रहेगा

"मरियम रोती हुई कब्र के बाहर खड़ी रही। यीशु ने उससे पूछा 'हे नारी, तू क्यों रोती है?"

यीशु केा मालूम था कि मरियम क्यों रही थी। लेकिन मेरा मानना है कि वह उससे यह पूछ रहा था (जैसे हम एक बच्चे से पूछते हैं), "तुझे रोने की क्या ज़रूरत है?" जब यीशु हमारे पास होता है तब हमें रोने की कोई ज़रूरत नहीं होती।

यीशु स्वयं लाज़र की कब्र के पास रोया था। वह जानता था कि लाज़र मृतकों में से जिलाया जाएगा। लेकिन वह पाप की वजह से हुए मानव जाति के पतन के भयानक परिणाम को देखकर रोया था। लेकिन यीशु के कब्र में से बाहर आने के बाद - अब मृत्यु का डंक कुचला जा चुका है।

मेरे बचपन की यादों में से एक चित्र - अपने मृतक बच्चों के लिए रोती हुई एक माता - मेरे मानस-पटल पर एक बड़े जीवंत रूप में अंकित है। जिस क़स्बे में मैं पली-बढ़ी थी, वहाँ एक ग़रीब स्त्री का घर तेज़ बारिश में गिर गया था, और उस विपत्ति में उसके दो किशोर पुत्र मर गए थे। हम स्कूल जाते वक़्त जब उनके टूटे हुए घर के पास से गुज़रे तो हमने उसके दोनों पुत्रों की मृतक देहों को देखा; वे रात को सोए थे, लेकिन सुबह उठे नहीं थे। उनकी शोक में डूबी माता उन्मत्त होकर इस तरह विलाप कर रही थी मानो वह अपने बच्चों को नींद से जगाना चाह रही थी। लेकिन उसकी कोशिश बेकार थी। वह जानती थी कि वे मर चुके हैं। देखने वाले सभी लोगों की आँखों में भी आँसू थे। परमेश्वर पूरी तरह निराश हो चुकी ऐसी माताओं की भी देखभाल करता है।

हाल ही में हमारे एक राष्ट्रीय पर्व के दिन एक भयानक भूकम्प ने गुजरात के कुछ शहरों को पूरी तरह नाश कर दिया था। उन क्षेत्रों में कितना बड़ा विलाप हुआ होगा। कुछ ही क्षणों में, न जाने कितने बच्चे अनाथ हो गए थे और कितने लोग बेघर हो गए थे! यह ज़रूरी नहीं है कि भूकम्प परमेश्वर की तरफ से आने वाले दण्ड ही होते हैं। यीशु के समय में जब शिलोम की मीनार गिर गई थी, तो उसने कहा कि उसमें मरने वाले दूसरों से ज़्यादा बड़े पापी नहीं थे। उसने हमें चेतावनी दी थी कि अंत के समय में युद्ध, अकाल, भूकम्प आदि होंगे। इसलिए भूकम्प हमें सिर्फ इतना याद दिलाते हैं कि प्रभु का आना निकट ही है। हमें मन फिराने, जागते रहने और प्रार्थना करने की ज़रूरत है। हमें निष्ठापूर्वक अपने देश भारत के लिए प्रार्थना करने की ज़रूरत है कि प्रभु मूर्तिपूजा में डूबे इस देश पर दया करे।

जब यीशु को क्रूरतापूर्वक सूली पर चढ़ा दिया गया था, तब यीशु से प्रेम करने वाले बाक़ी सब लोगों की तरह मरियम मगदलीनी भी शोक मना रही थी। सब्त के बाद रविवार को भोर होने से पहले ही वह यीशु की देह पर गंधरस और मसाले लगाने और रोने के लिए कब्र पर पहुँच गई थी।

दुःख को हल्का करने का एक तरीक़ा रोना होता है। हमें अपने आँसुओं को रोकना या दबाना नहीं चाहिए।

यीशु के जी-उठने के बाद सबसे पहले उसे मरियम मगदलीनी ने ही देखा था। उसके आनन्द की उस समय कोई सीमा न रही होगी जब उसने यीशु को पहचान लिया था और उसने उससे बात की थी! उसके बाद उसे अन्दर शोक के कोई आँसू नहीं रहे थे! तब यीशु ने उसे यह आज्ञा देकर भेजा कि वह जाकर शिष्यों को भी यह बता दे कि वह जि़न्दा है और जल्दी ही वह उनसे भी मिलेगा। इन सब बातों के बाद भी, मरियम आरम्भिक कलीसिया में वही नम्र व दीन व सामान्य बहन बनी रही जो वह हमेशा से थी। उसने जी-उठे प्रभु को सबसे पहले देखने वाली होने के लिए अपने आपको दूसरों से ज़्यादा ऊँचा नहीं किया। वह पीछे ही रही। कलीसिया में की सार्वजनिक सेवकाई में प्रभु उन शिष्यों को ही इस्तेमाल करने वाला था जो पहले डर गए थे। मरियम मगदलीनी हम बहनों के लिए कितना बड़ा उदाहरण है। अगर प्रभु हमें अद्भुत प्रकाशन दे, तब भी सारी महिमा उसे और कलीसिया को ही मिले।

प्यारी बहन, आप अपने दुःख में यीशु के बारे में सोचें जो लाज़र की कब्र पर रोया था। मरियम के बारे में सोचें जो रोई थी। जब हमारा कोई प्रियजन संसार से विदा होता है, तो हमारे लिए रोना सही होता है।

ऐसी तीव्र पीड़ा में से उबरने में समय लगता है। लेकिन हमें संसार के ईश्वर-विहीन लोगों की तरह विलाप नहीं करना है। हमारे बीच में कभी भी चीख़ना-चिल्लाना और ऐसे शब्दों का बोलना न हो जो परमेश्वर के नाम को बदनाम करने वाले हों और परमेश्वर से सवाल-जवाब करते हों।

मृतकों को दफनाए जाते समय मैंने लोगों को परमेश्वर को कोसते हुए सुना है, और तब मुझे ऐसा महसूस हुआ था कि मुझे उस जगह से चले जाना चाहिए। मूर्तिपूजकों को यह मालूम होना चाहिए कि भविष्य के लिए हमारे पास एक जीवित आशा है।

जो प्रभु में सोते हैं वे तुरन्त प्रभु की उपस्थिति में पहुँचाए जाते हैं। यीशु क्योंकि मृतकों में से जी उठा है, इसलिए हमारे पास भविष्य के लिए महिमा से भरी आशा है।

कई बार इस सवाल का सामना करना हमारे लिए सबसे मुश्किल बात बन जाती है कि क्या हमारा प्रियजन हमेशा के लिए खो गया है? हमें अंततः इस सवाल को प्रभु के हाथों में छोड़ देना चाहिए। गुप्त बातें प्रभु के वश में हैं।

कोई मनुष्य हमें इस सवाल का जवाब नहीं दे सकता। ऐसे सवालों का जवाब ढूंढने के लिए कभी किसी ज्योतिषी के पास या किसी तथा-कथित "नबी" के पास भी न जाएं। प्रभु ने हमें ऐसा कोई काम न करने के लिए चेतावनी दी है (देखें व्य. 18:10-12)। हमारे दुःख को सिर्फ प्रभु ही दूर कर सकता है।

यह ध्यान रखें कि आप निराशा के गहरे गड्ढे में न गिर जाएं। इससे आपका भावनात्मक, मानसिक और आत्मिक नुक़सान हो सकता है। आप अपनी अनुमानित बातों से दूसरों के लिए भी ठोकर का कारण बन सकते हैं। यह हो सकता है कि आपका वह प्रियजन आपको स्वर्ग में मिल जाए और फिर आपको उसके पीछे बर्बाद किए समय के लिए पछताना पड़े - वह समय जिसे आपको प्रभु की नज़दीकी में बढ़ने के लिए ख़र्च करना चाहिए था।

जब हम अपने एक बिछड़े हुए प्रियजन के लिए विलाप कर रहे हों तो पहला कुरिन्थियों का अध्याय 15 हमें शांत करने के लिए एक अच्छा अध्याय है।

1 थिस्सलुनीकियों 4:13-17 एक और ऐसा भाग है जो हमें बताता है कि हमें क्यों दूसरों की तरह विलाप करने की ज़रूरत नहीं है। "परन्तु हे भाइयो, हम नहीं चाहते कि तुम उनके बारे में अनजान रहो जो सो गए हैं, और अन्य लोगों की तरह शोकित होओ जो आशारहित हैं। हम विश्वास करते हैं कि यीशु मरा और जी भी उठा - इसलिए परमेश्वर उन्हें भी जो यीशु में सो गए हैं उसके साथ ले आएगा। इसलिए हम प्रभु के वचन के अनुसार तुमसे कहते हैं हम जो जीवित हैं और प्रभु के आने तक बचे रहेंगे, सोए हुओं से कदापि आगे न बढ़ेंगे। क्योंकि प्रभु स्वयं ललकार और प्रधान स्वर्गदूत की पुकार और परमेश्वर की तुरही की पुकार के साथ स्वर्ग से उतरेगा, और जो मसीह में मर गए हैं, वे पहले जी उठेंगे। तब हम जो जीवित हैं और बचे रहेंगे उनके साथ हवा में प्रभु से मिलने के लिए बादलों पर उठा लिए जाएंगे। इस प्रकार हम सदैव प्रभु के साथ रहेंगे। इसलिए इन बातों से एक-दूसरे को तसल्ली दिया करो।"

यीशु ने कहा, "पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ; जो मुझमें विश्वास करता है, अगर वह मर जाए, फिर भी वह जीएगा। और जो मुझ पर विश्वास करता है वह कभी नहीं मरेगा" (यूहन्ना 11:25,26)।

जी-उठे प्रभु ने यूहन्ना से कहा, "मत डर, मैं ही प्रथम, अंतिम और जीवित हूँ। मैं मर गया था, और देख, अब मैं युगानुयुग जीवित हूँ" (प्रका. 1:17,18)।

"चाहे मैं मृत्यु के घोर अंधकार की तराई में होकर चलूँ, फिर भी हानि से न डरूँगा क्योंकि तू मेरे साथ रहता है" (भजन. 23:5)।

रोमियों 8:38 हमसे कहता है कि अब हमें कोई परमेश्वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकता।

प्यारी माता, आप अपने एक ऐसे बच्चे के बारे में सोच कर रो रही होंगी जो आपसे पहले स्वर्ग चला गया है। लेकिन यह सोचें कि आज वह कितना ख़ुश है, हरेक निर्बलता से मुक्त है, और यीशु और स्वर्गदूतों की संगति में आनन्द मना रहा है। आपका बच्चा एक दिन वहाँ आपका भी स्वागत करने का इंतज़ार कर रहा है। इसलिए और न रोएं। नीचे लिखी कविता परमेश्वर के एक ऐसे बच्चे द्वारा लिखी गई है जो प्रभु के पास चला गया है और वहाँ से पृथ्वी पर रहने वाले अपने प्रियजनों से बात कर रहा हैः

अगर तुम यह देख पाते कि मैं कहाँ आ गया हूँ

मैं कहाँ हूँ, अगर तुम यह देख पाते,

- इस जगह का सौन्दर्य देख पाते

घर लौट आना, और मुक्तिदाता का मुख देखना क्या होता है,

शांति में रहना व डर को न जानना - कैसा अतुल्य आनन्द होता है

पृथ्वी पर हालांकि अभी तुम मेरी कमी महसूस करते होगे,

पर अब मैं पृथ्वी पर रहूँ, यह तुम हर्गिज़ न चाहोगे,

मैं कहाँ हूँ, अगर तुम यह देख पाते,

और मेरे साथ ये सफर करने पाते,

तो तुम जान लेते कि मैं अकेला नहीं आया हूँ

मेरा उद्धारकर्ता भी मेरे साथ-साथ आया है

वह मेरे साथ आया था, और उसने मेरा हाथ थामा हुआ था

वह मुझे सीधा उसके घर - इस भव्य व महिमामय जगह में ले आया था

मैं कहाँ हूँ, अगर तुम यह देख पाते,

और वह देख पाते, जो मुझे दिखाया गया है,

तो तुम कभी न डरते, और कभी अकेले महसूस न करते,

तुम प्रभु की देखरेख पर विस्मित होते - हर जीवन पर उसका हाथ देखते

और जान लेते कि वह वास्तव में बड़ी चिंता करता है,

हमारे साथ मिलकर हरेक दुःख को सहता है।

मैं कहाँ हूँ, अगर तुम यह देख पाते,

जहाँ परमेश्वर हर वक़्त मेरे पास रहता है,

तुम यह देख पाते कि उसकी कितनी लालसा है कि सब यहाँ आ जाते,

तुम देखते कि किसी एक के खो जाने से वह कितना दुःखी होता है,

उसका हृदय कितने दर्द से भर जाता है,

और तुम देखते कि उसका आनन्द तक कैसे पूरा होता है,

जब अंततः कोई एक घर को लौट आता है।

मैं कहाँ हूँ, अगर तुम यह देख पाते,

और कुछ समय के लिए मेरे साथ रह पाते,

और अनन्त में परमेश्वर की कृपा की बातों को मेरे साथ बाँट पाते

तो स्वर्गीय आनन्द को जान लेने के बाद,

तुम कभी यहाँ से जाना न चाहते

स्वर्ग को अपना घर बना लेने के बाद

तुम कभी पृथ्वी की राहों में न चलना चाहते।

मैं कहाँ हूँ, अगर तुम यह देख पाते,

तो तुम जानते कि हम एक दिन फिर मिलेंगे,

हालांकि मैं अभी तुम से बिछड़ गया हूँ,

मैं सिर्फ कुछ समय के लिए दूर गया हुआ हूँ,

और अब जबकि मैं प्रभु के पास घर में हूँ - सब तरह से सुरक्षित हूँ,

मैं स्वर्ग के द्वार पर खड़ा हूँ,

हमारे मधुर मिलन के आने वाले दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ।

(लेखकः अज्ञात्)

मसीहियों के रूप में हमारी पास कैसी महिमामय आशा है!

अध्याय 5
आपके सताए जाने से परमेश्वर की महिमा होगी

मेरी ऐसी बहुत सी मित्र हैं जिन्होंने प्रभु को अपने मुक्तिदाता के रूप में स्वीकार कर लिया है, लेकिन जिनके पतियों ने अभी तक मन नहीं फिराया है। उनके पति उन्हें सताते और यातनाएं देते हैं। कभी-कभी वे उन्हें शारीरिक कष्ट देते हैं, सबके सामने अपमानित करते हैं, और दूसरे बहुत से तरीक़ों से उन्हें सताते हैं। इनमें से कुछ पत्नियों को तो उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ तलाक़ भी दे दिया गया है। कुछ स्त्रियाँ अपने परिवारों को जोड़े रखने और अपने बच्चों के साथ रहने के लिए हरेक अपमान को ख़ामोशी से सब सहती रहती हैं।

ऐसे घरों में टूटे हुए दिलों में से बहुत सा रोना निकलता रहता है। प्रभु ने ऐसी पत्नियों को सत्य के लिए खड़े होने, और मसीह के क्षमाशील, दीन व अधीनता-भरे स्वभाव की साक्षी होने के लिए कृपा प्रदान की है। उनके बच्चों ने उन्हें ख़ामोशी से प्रभु की ख़ातिर पीड़ा सहते हुए देखा है, और उनमें से कुछ बच्चों ने मसीह को ग्रहण भी कर लिया है। यह देखें कि परमेश्वर कैसे बुराई में से भलाई को पैद करता है। अंततः उनमें से कुछ फिर प्रभु के लिए जीते गए थे।

मेरी एक मित्र ने बताया कि उसके पति के एक गुप्त संगठन का सदस्य होने की वजह से उसने बहुत पीड़ा सही थी। अनेक वर्षों तक उनके घर में उलझन बनी रही थी। उसने रो-रोकर अपने पति से यह विनतियाँ की थीं कि उस संगठन के साथ उसके सम्बंध की वजह से वह उसके परिवार को प्रभावित न होने दे। लेकिन वह उससे अपना सम्बंध तोड़ नहीं पा रहा था। और उस संगठन के व्यापारियों के साथ उसके सम्बंध की वजह से वह बहुत धनवान हो गया था।

शैतान ने यीशु को परखने के लिए भी एक ऐसी ही युक्ति का इस्तेमाल किया था। "अगर तू मेरे आगे झुक जाएगा, तो मैं तुझे संसार के सारे राज्य और उनकी महिमा दे दूँगा (जिसमें उनका धन-सम्पत्ति भी शामिल है)।" लेकिन यीशु ने शैतान को डाँटा और दूर हो जाने के लिए कहा था।

ऐसे कुछ लोग, जिन्होंने ऐसी गुप्त संगठनों को छोड़ा है और अब मसीही बन गए हैं, उन्होंने यह बताया है कि नए सदस्यों द्वारा इन संगठनों के नियमों को तोड़ने पर उन्हें स्वयं अपने आपको और अपने परिवारों को श्राप देना पड़ता है। कुछ समूहों में उन्हें यह शपथ अपने लहू से लिखकर देनी होती थी। अनेक लोग उनके मुख से निकलने वाले शब्दों की गंभीरता को समझे बिना ही ये प्रतिज्ञाएं कर लेते हैं। इनमें से कुछ समूह गुप्त रूप में शैतान की आराधना भी करते हैं। जान-बूझ कर और सोच-समझ कर बांधी गई इन ज़ंजीरों के बंधनों को तोड़ना आसान नहीं होता। लेकिन बीते समय में एक व्यक्ति ने दुष्टता से भरी ऐसी जो भी शपथ ग्रहण की होती हैं, परमेश्वर उन्हें रद्द करने में उसकी मदद कर सकता है। प्रभु द्वारा अनेक लोगों को ऐसे समूहों में से मुक्त किया गया है - ऐसे लोगों को भी जो एक समय में इन संगठनों के अगुवे थे।

इसलिए, आपका पति चाहे जहाँ भी जकड़ा हुआ हो, उसके लिए प्रार्थना करना न छोड़ें। आँसू बहाते हुए विश्वास से प्रार्थना करें। प्रभु की सुरक्षा माँगें और अपने पति के लिए ऐसे प्रार्थना करें मानो आप अपने एकलौते पुत्र के लिए माँग रही हों। जब मसीह सूली पर मरा, तब उसने हरेक शिकंजे को तोड़ डाला था। वह हरेक बंदी को छुटकारा देने के लिए आया था।

मसीह को स्वीकार करने वाली कुछ अविवाहित लड़कियों को, उनके सम्बंधियों की तरफ से तीव्र सताव का सामना करना पड़ता है। मसीह को स्वीकार करने वाली एक लड़की की माता ने तो उसकी जान भी दे देने की धमकी थी। यीशु यह जानता है कि आपको अपनी माता को, जिसने कड़ी मेहनत करके आपको पाला-पोसा है, दुःखी करने से स्वयं आप कितनी दुःखी रहती हैं। लेकिन प्रभु ने हमें अपने माता-पिता से भी ज़्यादा उससे प्रेम करने और मृत्यु तक विश्वासयोग्य रहने के लिए बुलाया है। आपके माता-पिता के मन-फिराव के लिए आपके आँसुओं से भरी प्रार्थनाएं व्यर्थ नहीं जाएंगी। जिस माता का ऊपर उल्लेख किया गया है, वर्षों बाद वह एक भले मसीही युवक के साथ हुए उसकी बेटी के विवाह समारोह में भी आई थी।

मैं ऐसी किशोर कन्याओं को भी जानती हूँ जिन्हें ऐसे आधुनिक समय में भी, सिर्फ इस वजह से उनके घरों में से निकाल दिया गया है क्योंकि उन्होंने मसीह को ग्रहण कर लिया है या पानी का बपतिस्मा लेकर उसका आज्ञापालन किया है। मैं जानती हूँ कि अंतिम दिन पिता उनसे कहेगा, फ्ये मेरी प्रिय पुत्री है, जिससे मैं अति प्रसन्न हूँ।"

क्या आपको ऐसा महसूस हो रहा है कि आर्थिक तंगी की वजह से आपको हमेशा के लिए अपने पति के माता-पिता के साथ ही रहना पड़ेगा? हालांकि वे अच्छे लोग हैं, फिर भी आपको एक "सामूहिक परिवार" में रहना पड़ रहा है जहाँ आपको अपना घर अपने पति के सम्बंधियों के साथ बाँटना पड़ रहा है; और घर का सारा इंतज़ाम आपकी सास के हाथ में है। घर में सब कुछ सामूहिक रूप में सबका है, और कभी-कभी तो आपको ऐसा लगता है कि आपके विचार भी आपके नहीं बल्कि सामूहिक सम्पत्ति है! आपको यह पसन्द नहीं आता और आप भीतर-ही-भीतर रोती रहती हैं। आपको ऐसा लगता है कि आपका घर आपसे छीन लिया गया है। आप अपनी भावनाओं को अपने पति के साथ बाँटने के लिए तरसती रहती हैं। लेकिन आप उसके सम्बंधियों के बारे में उससे कुछ नहीं कह सकते क्योंकि इससे उसे दुःख होगा। आप गिन-गिन कर एक-एक दिन बिताती हैं और अपनी दयनीय दशा को स्वीाकर करते हुए किसी तरह अपना जीवन गुज़ार रही हैं, वैसे ही जैसे भारत की बहुत सी दूसरी स्त्रियाँ अपने जीवन बिता रही हैं। कभी-कभी आपका रोना और गुस्सा फूट निकलता है, क्योंकि सब कुछ वैसा नहीं है जैसा आपने चाहा था। आपके मन और आपके जीवन दोनों में ही एक उलझन बनी हुई है।

आप भारत की संस्कृति को नहीं बदल सकतीं। लेकिन परमेश्वर आपको बदल सकता है! आप क्षमा करना और आपको कही गई बातों का बुरा न मानना सीख सकती हैं। अब से सौ साल बाद उन शब्दों से कुछ नहीं होगा। अपनी स्थिति की बहुत सी सकारात्मक बातों के बारे में सोचें - कुटुम्ब के लोग जो आपकी व्यावहारिक मदद करते हैं, और आपके बच्चों के दादा-दादी जो उनके पास रहते हैं आदि। अनेक परिवार अपने सम्बंधियों से बहुत दूर रहते हैं। लेकिन आपके घर में रहने वाली बाहरी उथल-पुथल के बावजूद, आप अपने हृदय में फिर भी प्रभु के साथ एक गुप्त रूप में चल सकती हैं।

आप एक ऐसी स्त्री बन सकती हैं जो भारत में इसी तरह के हालातों में से गुज़रने वाली दूसरी स्त्रियों को तसल्ली और ताक़त दे सकती हैं। हमें तोड़ने वाले जिस अनुभव में से भी हम गुज़रती हैं, वह हमें मसीह की पीड़ाओं में सहभागी होने में मदद करता है। इस तरह हम मसीह का स्वभाव ग्रहण कर सकते हैं, और ऐसे सब लोगों के लिए एक आशिष बन सकते हैं जो इस तरह की समस्याओं में से गुज़र रहे हैं।

क्या "दहेज़ की कमी" की वजह से आपके पति के सम्बंधी उनकी कथनी और करनी द्वारा सता रहे हैं? यह हो सकता है कि आप अपने आसपास के लोगों से तंग आ चुकी हों और यह सोचने पर मजबूर हो गई हों कि अच्छा होता अगर आपने शादी ही न की होती। हम अख़बारों में "दहेज़ न लाने की वजह से हुई मौत" के बारे में लगभग रोज़ ही पढ़ते रहते हैं। लेकिन आपका जीवन अपना नहीं है। वह परमेश्वर का है। इसलिए उसे ख़त्म करने के बारे में कभी न सोचें। इसकी बजाय, परमेश्वर से कहें कि परीक्षा की इस घड़ी में धीरज से सहने के लिए वह आपको कृपा प्रदान करे। ऐसा कुछ न करें जो आपके परिवार के लिए दुःख का कारण बन जाए। प्रभु में अपनी सुरक्षा पा लें। उसने यह प्रतिज्ञा की है कि वह किसी भी परीक्षा को हमारे सहने की सीमा से आगे न जाने देगा। दूसरों पर अंगुली उठाते और दोष लगाते हुए अपने दिन बिताना एकदम व्यर्थ है। विश्वास से बाट जोहते हुए प्रभु को आपकी तरफ से काम करने दें। जो उसमें भरोसा रखते हैं वे कभी निराश न होंगे (यशा- 49:23) और एक दिन वे उक़ाबों की तरह ऊँचे पर उड़ेंगे (यशा. 40:31)।

प्रभु से कहें कि आपके हालातों में वह आपको बुद्धि दे।

कुछ विश्वासियों को यह अनोखा विशेषाधिकार मिला है कि उन्हें प्रभु की ख़ातिर अदालतों में घसीटा गया है। यह वास्तव में एक विशेषाधिकार और एक सम्मान की बात है, क्योंकि हमारा प्रभु भी उसके शत्रुओं द्वारा अदालत में ले जाया गया था। यह हो सकता है कि आप पर लगाए गए सभी आरोप झूठे हों। लेकिन प्रभु उसके किसी उद्देश्य केा पूरा करने के लिए वह भी होने देता है। उसने हमें यह आश्वासन दिया है कि जब हमें न्यायाधीशों के आगे खड़ा किया जाए, तब हमें यह चिंता नहीं करनी है कि हमें क्या बोलना है। वह हमें बताएगा कि हमें क्या बोलना है। इसलिए हम एक बच्चे-जैसे भरोसे के साथ उसमें विश्राम पा सकते हैं। जिन्हें अन्यायपूर्वक अदालतों में घसीटा जाता है, उनके लिए परमेश्वर ने अपने वचन में कुछ अद्भुत प्रतिज्ञाएं की हैं जिनका उल्लेख नीचे किया जा रहा है। आप इन सभी पर यीशु के नाम में आपका अधिकार होने का दावा कर सकती हैं (ये सभी उद्धरण लिविंग बाइबल में से हैं):

"प्रभु मेरा अधिवक्ता और न्यायी है, और वही मुझे छुड़ाएगा" (1 शमू. 24:15)।

"प्रभु कहता है, 'तुम इस घड़ी भीड़ के कारण मत डरो और तुम्हारा मन कच्चा न हो क्योंकि युद्ध तुम्हारा नहीं परमेश्वर का है। तुम्हें लड़ने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी! शांत खड़े रहो और उस अद्भुत छुटकारे के काम को देखो जो परमेश्वर तुम्हारे लिए करने वाला है। प्रभु तुम्हारे साथ है" (2 इति. 20:15-17)।

"जब धर्मी को न्याय के लिए लाया जाएगा, तो परमेश्वर उसे दोषी न ठहरने देगा" (भजन. 37:33)।

"क्योंकि न्याय न तो पूर्व से, न पश्चिम से, और न दक्षिण (अर्थात् मनुष्य की तरफ से) आता है। परन्तु परमेश्वर ही न्यायी है; वह एक को घटाता है तो दूसरे को बढ़ाता है। वह दुष्ट की सारी शक्ति को मिटा देगा, लेकिन धर्मी की शक्ति को बढ़ाएगा" (भजन. 75:6,10)।

"प्रभु न तो मुँह देखकर, न झूठे सबूतों पर, और न सुनी-सुनाई बातों के अनुसार न्याय करेगा, बल्कि वह निर्धन और शोषित का खराई से न्याय करेगा। वह उन्हें सताने वाले दुष्ट को मिटा देगा" (यशा. 11:3-5)।

"प्रभु मेरी सहायता करता है, इसलिए मैं अपमानित न हुआ। उनका सामना करने के लिए मैं अपने आपको तैयार करता हूँ। मैं जानता हूँ कि मुझे लज्जित न होना पड़ेगा क्योंकि जो मुझे निर्दोष ठहराता है वह मेरे पास ही रहता है। मुझ पर दोष लगाने का दुस्साहस कौन करेगा? आओ, हम अदालत में चलते हैं! आओ, मेरे सामने आओ! जब सर्वशक्तिशाली प्रभु स्वयं मेरा बचाव करता है तो कौन मुझे दोषी ठहराएगा? मुझ पर दोष लगाने वाले लुप्त हो जाएंगे; वे कीड़े खाए हुए कपड़े की तरह पुराने हो जाएंगे। जेा दूसरों को मिटाने के लिए युक्तियाँ करते हैं, वे उनमें ख़ुद ही नष्ट हो जाएंगे। स्वयं प्रभु ऐसा होने देगा। तुम्हारी बुरी दशा हो जाएगी" (यशा. 50:7-11)।

"प्रभु कहता है, 'तेरे सब शत्रु तुझसे दूर रहेंगे; तू शांति से रहेगा। आतंत तुझ से दूर रहेगा क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ। तेरे सब शत्रु पराजित होंगे क्योंकि मैं तेरे पक्ष में हूँ। तेरी हानि के लिए बनाया गया कोई भी हथियार सफल न होगा, और अदालत में जितनी भी जीभें तुझ पर झूठे आरोप लगाएंगी, वे तुझे दोषी न ठहरा पाएंगी" (यशा. 54:14-17)।

"प्रभु कहता है, 'मैं तेरा वकील होऊँगा; मैं तेरा मुक़द्दमा लड़ूँगा" (यिर्म. 51:36) (लिविंग बाइबल)।

"हे प्रभु, तू मेरा वकील है! तू ही मेरा मुक़द्दमा लड़! क्योंकि तूने ही मेरे जीवन को छुड़ाया है। तूने उस बुराई को देखा है जो उन्होंने मेरे खिलाफ़ की है; मेरा न्यायी बन और मुझे निर्दोष साबित कर। तू मेरे विरोधियों की सब युक्तियों को जानता है; तूने मेरे विरोध में बोली सारी बातों को और उन सारी गालियों को और सुना है जो उन्होंने मुझे दी हैं - उनकी जीभों की फुसफुसाहट को तू जानता है जो दिन-भर मेरे विरुद्ध चलती रहती है। देख, वे मुझे मिटाने की युक्तियाँ करते समय कैसे ठट्ठा करते हैं और हर्षित होते हैं" (विलाप. 3:58-63)।

"तो क्या परमेश्वर अपने चुने हुओं का न्याय न करेगा जो रात-दिन उसे पुकारते रहते हैं? क्या वह उनके विषय में देर करेगा? मैं तुमसे कहता हूँ कि वह शीघ्र उनका न्याय करेगा" (लूका 18:7,8)।

"उसे किसी ने नहीं पकड़ा, क्योंकि उसका समय नहीं हुआ था" (यूहन्ना 7:30; 8:20)।

अगर आपको या आपके पति को प्रभु की ख़ातिर कभी भी अदालत में खड़ा होना पड़े, तो आपको रोना नहीं है। अपने आँसुओं को रोक कर रखें। इसकी बजाय, आप पर दोष लगाने वालों के लिए अफसोस करें। जिस दिन सारी पृथ्वी का न्याय करने वाला उनका न्याय करेगा, उस दिन उनका न्याय कितना भयानक होगा!

स्वयं यीशु के साथ विश्वासघात हुआ था और उसे अदालत में ले जाया गया था, और उसे एक ठट्ठा करने वाली भीड़ के सामने खड़ा किया गया था। इसलिए, अगर आपके साथ ऐसा होता है तो विस्मित न हों। क्या आप उसकी शिष्य नहीं हैं? उसने आपको यह दुर्लभ विशेषाधिकार दिया है कि आप इस क्षेत्र में भी उसके पदचिन्हों में चल सकें। साहस रखें। यह रोने का समय नहीं होता। इसकी बजाय आनन्द मनाएं क्योंकि स्वर्ग में आपका प्रतिफल महान् है। यीशु आपके लिए प्रार्थना कर रहा है, और एक दिन वह आपको सच्चा ठहराएगा, और आपका सम्मान करेगा।

यहाँ पृथ्वी पर हमारा जीवन एक पीड़ा का जीवन होगा। हम उसकी पीड़ाओं में सहभागी होते हैं, लेकिन हरेक परीक्षा में वह हमें उसका उमड़ता-छलकता आनन्द भी देता है। स्वयं उसके साथ भी एक नज़दीकी मित्र ने विश्वासघात किया था और उस पर भी एक झूठा मुक़द्दमा चलाया गया था। उसके मुँह पर थप्पड़ मारे गए थे और पीठ पर कोड़ों के निशान बन गए थे। आज तो हम एक वकील कर सकते हैं और थोड़े-बहुत न्याय की आशा कर सकते हैं। लेकिन यीशु पर तो सही तरह मुक़द्दमा भी नहीं चलाया गया था, और अन्यायपूर्वक उसे मौत की सज़ा सुना दी गई थी। उसकी मृत्यु जैसी पीड़ादायक मृत्यु कभी किसी ने न सही होगी। लेकिन उसके भीतर एक आनन्द था क्योंकि वह उन पीड़ाओं के बाद के प्रतिफल के बारे में सोच रहा था - आपको और मुझे पाप के शिकंजे में से छुड़ाने, और हमें अपनी दुल्हन बनाने के बारे में सोच रहा था। वही आनन्द वह हमें भी दे सकता है।

पवित्र-शास्त्र में यशायाह 53:7-9 एक एक ऐसा भाग है जो हमेशा मुझे द्रवित कर देता हैः

"वह सताया गया और उसे दुःख दिया गया, फिर भी उसने अपना मुँह न खोला। एक मेमने की तरह वध करने के लिए उसे लाया गया, और एक जैसे एक भेड़ उसके ऊन कतरने के समय शान्त रहती है, वैसे ही उसने अपना मुँह न खोला। अत्याचार करके और दोष लगाकर उसे मार डालने के लिए ले गए। लेकिन उस पीढ़ी के लोगों में से किसने इस बात को जाना कि वह उनके पापों के लिए मारा जा रहा था - कि वह उनकी सज़ा भुगत रहा था? एक धनवान मनुष्य की कब्र में उसे एक अपराधी की तरह दफनाया गया था; लेकिन उसने कुछ भी ग़लत नहीं किया था और उसके मुख से कभी कोई छल की बात नहीं निकली थी।" (लिविंग बाइबल)

सुसमाचार के लिए प्रेरित पौलुस ने बहुत दुःख सहे थे। लेकिन कारावास की अपनी काल-कोठरी में से उसने फिलिप्पयों जैसे अपने सबसे अनोखे पत्र लिखे जिसमें उसने हमें प्रभु में सदा आनन्दित रहने के लिए कहा।

वे सभी लोग जो मसीह में एक भक्तिपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं, उन्हें किसी-न-किसी तरह के सताव का सामना करना ही पड़ेगा। इसलिए, जब हमारे साथ ऐसा हो तो हमें विचलित नहीं होना चाहिए मानो हमारे साथ कुछ अनहोना हो रहा है (1 पत- 4:12)। प्रभु अपने वचन के द्वारा हमेशा ही हमें उत्साहित करेगा।

"धन्य हैं वे जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है" (मत्ती 5:10)।

प्रभु हमें यह सिखाया है कि जो हमें सताते हैं, हम उन्हें क्षमा करें, उनसे प्रेम करें और उनके लिए प्रार्थना करें। जब हमें नुक़सान पहुँचाने वाले के साथ हम भलाई करते हैं, तो हम साबित करते हैं कि हम अपने स्वर्गीय पिता की संतान हैं। परमेश्वर सबके लिए भला है। यह हो सकता है कि आपके किसी नज़दीकी सम्बंधी या मित्र ने ही आपकी पीठ में छुरा भोंका हो। आप न रोएं। आनन्द मनाएं कि आपको यीशु के पदचिन्हों पर चलने का मौक़ा मिला है। ऐसे समयों में ऐसा होने दें कि मसीह का मन आप पर राज कर सके।

मैंने ऐसे पास्टरों के बारे में पढ़ा है जिन्हें प्रभु की ख़ातिर बहुत सालों तक जेलों में रहना पड़ा है। वह समय उनकी पत्नियों के लिए बड़ा कठिन रहा होगा। हमें उन सभी मसीही परिवारों के लिए प्रार्थना करनी चाहिए जिन्हें आज भी अनेक देशों में सताया जा रहा है। हमारे देश भारत में भी हम पर सताव आएगा। हम प्रार्थना करें कि प्रभु हमें विश्वास में दृढ़ बनाए रखे। हम सभी के लिए ऐसे लोगों की साक्षियाँ पढ़ना अच्छा जिन्हें बीते समय में प्रभु की ख़ातिर सताया और मारा गया है। फिर जब हमारे सताव का समय आएगा, तो उनकी कहानियों से हमें बल मिलेगा।

"वर्तमान समय के दुःखों की तुलना उस महिमा से करना उचित नहीं है जो हम पर प्रकट होने वाली है" (रोमियों. 8:18)।

"हमारा पल भर का यह क्लेश एक ऐसी चिरस्थाई महिमा को उत्पन्न कर रहा है जो अतुल्य है" (2 कुरि. 4:17)।

"जब तू नदियों में से होकर चलेगा तो वे तुझे नहीं डुबाएंगी" (यशा. 43:2)।

"परमेश्वर हमें तसल्ली देता है (उत्साहित करता है) कि हम दूसरों को भी तसल्ली दे सकें (उत्साहित कर सकें)" (2 कुरि. 1:4)।

"यीशु स्वयं हमारी मदद करता है, और हमारी मध्यस्थता करने के लिए सर्वदा जीवित है" (इब्रा. 7:25)।

"यीशु हमारा सहायक (अधिवक्ता) है" (1 यूहन्ना 2:1)।

"जिसका हृदय स्थिर है, वह बुरे समाचारों से न डरेगा" (भजन. 112:7)।

"तेरी सामर्थ्य तेरे दिनों के अनुसार-अनुरूप होगी। अनन्त परमेश्वर तेरा शरणस्थान है और तेरे नीचे उसकी सनातन भुजाए हैं" (व्य.वि. 33:25,27)।

"वह गीत गाकर तेरे लिए आनन्द मनाता है" (सप. 3:17)।

"जो लोग परमेश्वर से प्रेम करते हैं - अर्थात् उसके अभिप्राय के अनुसार बुलाए गए हैं, उनके लिए सब बातें मिलकर भलाई को उत्पन्न करती हैं" (रोमियों. 8:28)।

"परमेश्वर हमारा शरण-स्थान और बल है; संकट के समय तत्पर सहायक" (भजन- 46:1)।

पतरस ऐसी अग्निमय परीक्षाओं की बात करता है जिनका हमें सामना करना पड़ेगा, और प्रभु यशायाह 43:3 में हमें आश्वस्त करता है कि अगर हम आग में से भी होकर चलेंगे, तब भी वह हमें जला न सकेगी। जब हम अपनी पीड़ा को शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाते, तब पवित्र-आत्मा हमारी सहायता के लिए आता है। इसलिए हम अपने आपको पवित्र-आत्मा को सौंपते रहें कि वह हमारे अन्दर से पुकार कर प्रार्थनाएं करता रहे।

अध्याय 6
परमेश्वर आपको सांसारिक दुःख में से छुड़ाएगा

"सांसारिक शोक मृत्यु उत्पन्न करता है" (2 कुरि. 7:10)।

स्त्रियों का ज़्यादातर रोना ख़ुद ही दया का पात्र बन जाने, बुरा मान जाने, अपमानित किए जाने, या उनकी कोई मनचाही वस्तु न मिल पाने की वजह से होता है।

कुछ स्त्रियाँ स्वभाव से ही अति-भावुक होती हैं। उनका क्रोध जल्दी ही आसानी से भड़क उठता है। याकूब 1:19 हमें कहता है कि हमें "क्रोध करने में धीमा" होना चाहिए - क्योंकि "क्रोध मूर्खों के हृदय में वास करता है" (सभो. 7:9)। शैतान अक्सर लोगों को उनको असंतुलित करने द्वारा क्रोध से भर देता है, और फिर उन्हें अपराध-बोध के कीचड़ में लोटने वाला बना देता है। शैतान की युक्तियों से अनजान न रहें! कीचड़ में से फौरन बाहर निकल आएं, अपने पाप से मन फिराएं, और प्रभु के पास लौट आएं।

कुछ स्त्रियाँ स्वयं की तुलना लगातार ऐसी दूसरी स्त्रियों से करती रहती हैं जो उनसे ज़्यादा सम्पन्न होती है। इसका परिणाम हमेशा ऐसी निराशा और हताशा होती है जो उन्हें दुःखी करती है। अगर आप अपनी तुलना दूसरों से करना चाहती हैं, तो यह उनके साथ करें जिनकी स्थिति आपसे ज़्यादा बुरी है - जैसे वे स्त्रियाँ जो झोपड़-पट्टी में रहती हैं।

कुछ स्त्रियों के अन्दर अकेलेपन का ऐसा मनोभाव होता है कि वे दूसरों के ऊपर अपने आपको थोपती रहती हैं, लेकिन फिर भी जो तसल्ली जो ढूंढती फिरती हैं, वह उन्हें कहीं नहीं मिलती। ऐसा करने की बजाय हम प्रभु के साथ आत्मीय सम्बंध विकसित कर सकती हैं।

कुछ अधेड़ उम्र की स्त्रियाँ शारीरिक तौर पर कमज़ोर होती हैं, और उनके शरीर में होने वाले परिवर्तनों की वजह से वे आसानी से रोने लगती हैं। ऐसे चिकित्सीय मामलों का इलाज किया जा सकता है, इसलिए उन्हें किसी डॉक्टर की सलाह ले लेनी चाहिए। हमारी रचना परमेश्वर ने की है और वह हमारी देह के अंग-प्रत्यंग को जानता है, और अगर हम उससे माँगने के लिए तैयार हों, तो ऐसे समय में वह हमारी मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता है।

क्या आपना रोना सांसारिक बातों की पीड़ा में से आता है? नीचे दी गई सूची द्वारा आप यह परख कर जान सकते हैंः

A. क्या आपकी परवरिश एक लाड़-प्यार करने वाले माता-पिता द्वारा एक बिगड़े हुए बच्चे के रूप में हुई है कि आज आप आसानी से झुंझला जाती हैं और मामूली तकलीफें और देर लगने को आप सह नहीं पाती हैं? क्या आप इस वजह से रोती हैं? अपने माता-पिता को दोषी न ठहराएं। अपने इससे पहले कि आपका चिड़चिड़ापन अण्डे में से बाहर आकर आपको और दूसरों को सताने वाला एक घातक सर्प बन जाए, उसके आरम्भिक स्तर पर ही उससे निपट लें। आपकी परवरिश के दौरान पैदा हुई बुराइयों पर जय पाने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करें।

B. क्या आप भौतिक वस्तुओं - कपड़ों, संगीत, गहनों आदि से इतना प्रेम करती हैं कि अगर वे आपको नहीं मिलते तो आप अप्रसन्न हो जाती हैं और रोना शुरू कर देती हैं? क्या ये चीज़ें न मिलने पर आप अपने माता-पिता या अपने पति से लड़ाई-झगड़ा करना शुरू कर देती हैं? प्रभु के सामने अपने सांसारिक मनोभाव का अंगीकार कर लें और प्रभु से कहें कि वह आपको इसमें से छुटकारा दे दे।

C. क्या आप इसलिए रोती हैं क्योंकि आपको या आपके पति को या आपकी संतान को एक नौकरी या पदोन्नति या कॉलेज में दाख़िला नहीं मिला है? परमेश्वर जानता है कि आपके और आपके परिवार के लिए क्या अच्छा है और आपके जीवन के सारे हालात उसके वश में हैं। इसलिए हरेक हालात में उसे धन्यवाद देती रहें।

D. क्या लोगों ने जानबूझ कर किसी बात में आपको चोट पहुँचाई है? और क्या अब आपको उन्हें क्षमा कर पाना मुश्किल लग रहा है? क्या आप अब गुस्से और नफ़रत से भरी हुई रो रही हैं? क्या आपकी ऐसी इच्छा होती है कि दूसरों के पास जाकर उन लोगों की बुराई की जाए? अगर ऐसा है तो आप बदला लेने वाली बन रही हैं। ऐसे मामलों को लेकर प्रभु के पास जाएं और उससे कहें कि वह सब लोगों को क्षमा करने में आपकी मदद करे। उन सभी को अपने मन में से मुक्त कर दें और उन्हें क्षमा कर दें। फिर जब उनसे दोबारा मिलेंगी तो आप एक सच्ची मुस्कान के साथ उनसे बात कर सकेंगी।

E. क्या आप इसलिए रो रही हैं क्योंकि किसी धोखे या बेईमानी से आपको कोई आर्थिक हानि उठानी पड़ी है? परमेश्वर आपके नुक़सान को आपको धन के प्रेम से मुक्त करने और आपको मसीह-समान बनाने में इस्तेमाल कर सकता है। इसलिए आर्थिक नुक़सान के लिए भी परमेश्वर को धन्यवाद दें। प्रभु, जो सब भली वस्तुओं का दाता है, ऐसे सभी नुक़सानों की भरपाई कर सकता है। वह ऐसा न्यायकर्ता है जो एक दिन सब बुराई करने वालों का न्याय करेगा। इसलिए ऐसे मामलों को उसके हाथों में छोड़ देना ही सबसे अच्छा है। अगर आप उनके बारे में सोचती रहेंगी जिन्होंने आपको धोखा दिया, तो आप सिर्फ अपने ही जीवन को असहनीय बनाएंगी। ऐसी स्थिति में एक सवाल जो आप अपने आपसे पूछ सकती हैं वह हैः फ्क्या आज से 50 साल बाद इस बात से कुछ फ़र्क पड़ेगा?"

F. क्या आप इसलिए रो रही हैं क्योंकि आपके पति और आपके बीच में ऐसी समस्याएं चल रही हैं जो आप और किसी को नहीं बता सकतीं? शैतान विवाहों का नाश करना चाहता है। ईर्ष्या के हरेक विचार को अस्वीकार कर दें। परमेश्वर ने विवाह को एक सुन्दर बात के रूप में तैयार किया है। इसलिए अपने विवाह की देखभाल ऐसे ही करें जैसे कोई एक बाग़ की देखभाल करता है। बाग़ में लगातार पानी देते रहें, और मन-मुटाव और शक के उस सारी जंगली घास को उखाड़ते रहें जो शैतान बो देता है। इसकी बजाय बाग़ में प्रेम और क्षमा के ईश्वरीय बीज बोएं।

G. क्या आप इसलिए रो रही हैं क्योंकि आप फिर से गर्भवती हो गई हैं? शायद आप और बच्चे नहीं चाहती थीं और यह जानकर आप निराश हो गई हैं कि फिर से गर्भवती हो गई हैं। यह याद रखें कि हरेक बच्चा परमेश्वर की तरफ से एक उपहार होता है। एक बच्चे को अस्वीकार करने का विचार ही मानो उसे मार डालने का विचार वाला विचार होता है। परमेश्वर ने आपको जो भी बच्चा दिया है उसे यीशु के नाम में स्वीकार करें। यह हो सकता है कि जिस बच्चे को आप नहीं चाहती हैं, वही बच्चा आपको दूसरे बच्चों से ज़्यादा ख़ुशी देने वाला साबित हुआ होगा। बाद में, आप अपना 'परिवार नियोजन' कर सकती हैं।

H. क्या आप इसलिए रो रही हैं क्योंकि आपने यह जान लिया है कि रोने से आप लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर सकती हैं और एक हद तक रोने के बाद आपको वह मिल जाता है जो आप अपने माता-पिता या पति से चाहती हैं? प्रभु से कहें कि वह आपको ऐसी स्वार्थी होने से छुटकारा दिलाए।

I. क्या आप इसलिए रो रही हैं क्यों जैसा आपने चाहा था, सब कुछ उस तरह से नहीं हो रहा है? क्या आप इसलिए परेशान हैं क्योंकि परमेश्वर ने आपकी प्रार्थना का जवाब नहीं दिया है? ऐसा मनोभाव हमारी स्वाभिमान में से आता है। प्रभु से कहें कि वह आपको धीरज दे।

क्या आपने सांसारिक दुःख की यादों को संभाल कर रखा हुआ है (जैसे 'मिस्री मृतदेह - ममी' को संरक्षित करके रखा जाता है) कि दूसरे लोग आपको उनकी सान्त्वना और सहानुभूति देते रहें? जब भी आप बीते समय की दुःखद बातों को याद करने की परीक्षा में पड़ें, तो प्रभु से कहें कि वह ऐसे विचारों को तुरन्त दूर कर देने में आपकी मदद करे। अगर आप लगातार ऐसा करती रहेंगी, तो कुछ समय बाद आप यह पाएंगी कि आप उन घटनाओं को पूरी तरह भूल चुकी हैं। और आपके जीव को चंगाई मिल जाएगी। आपका भूतकाल एक ऐसी सड़ चुकी लाश है जिसे जल्दी-से-जल्दी हमेशा के लिए दफना देना चाहिए। जब आप ऐसा करेंगी, तब आप स्वयं को मुक्त महसूस करेंगी, और इसी पृथ्वी पर आपको स्वर्ग का थोड़ा-थोड़ा अहसास होना शुरू हो जाएगा। इस तरह आप अपने आसपास के जगत को अपने और दूसरों के लिए एक बेहतर जगह बना सकेंगी।

अपना जीवन परमेश्वर की इच्छा के अनुसार बिताएं। अपने स्वार्थी होने से मन फिराएं और अपना सब कुछ प्रभु को समर्पित कर दें। कभी-कभी आपको ऐसा महसूस होगा कि आपके धीरज की हद आ चुकी है। लेकिन बाद में आपको यह अहसास होगा कि आप सिर्फ अति-प्रतिक्रियात्मक हो रही थीं और यह कि परमेश्वर की कृपा आपको उसमें से निकालने के लिए काफी थी। परमेश्वर आपको ऐसी किसी परीक्षा में नहीं पड़ने देगा जो आपके सहने से बाहर हो।

अनेक भक्त स्त्रियों को उनके विश्वास के लिए कारावास में डाला गया है। मैडम गूयोन को उनको विश्वास की वजह से एक लम्बे समय तक एक ठण्डी कोठरी में रखा गया था। लेकिन अपने कारावास की उस कोठरी में से उन्होंने पुस्तकें लिखीं जिनमें एक ऐसी जयवंत आत्मा है जो आज भी लोगों को आशिष देती हैं क्योंकि वे प्रभु के प्रति भक्तिपूर्वक समर्पित रही थीं।

परमेश्वर चाहता है कि हम स्त्रियाँ सशक्त हों। वह चाहता है कि हम स्वयं टूट कर बिखर जाने की बजाय उन लोगों की मदद करें जो संघर्ष कर रहे हैं। हमारे लिए उसकी सामर्थ्य हमेशा उपलब्ध है और वह हमें सशक्त बनाना चाहता है। तो हम उसमें भरोसा रखें, और तब हम पाएंगे कि प्रभु की मदद से हमारे सबसे बुरे समय भी हमारे सबसे अच्छे समय बन सकते हैं।

अपना जीवन और अपना भविष्य पूरी तरह से प्रभु के हाथों में सौंप दें और वह आपके सबसे कठिन समयों में से गुज़र जाने में आपकी मदद करेगा। आने वाले दिनों में और भी बड़ी परीक्षाएं आ सकती हैं, लेकिन आप उन सब पर जयवंत होंगी। वह आपको ऐसी योग्यता प्रदान करेगा कि आप अपनी मनोवृत्ति के बड़े दैत्यों पर प्रबल हो सकेंगी और उसे प्रसन्न करने वाला जीवन जी सकेंगी। इस तरह, आप बहुत से लोगो के लिए एक आशिष बन जाएंगी।

अध्याय 7
परमेश्वर ईश्वरीय दुःख द्वारा आपको अपनी तरफ खींच लेगा

"परमेश्वर की इच्छानुसार आने वाला दुःख ऐसा पश्चाताप् उत्पन्न करता है जिसका परिणाम उद्धार होता है" (2 कुरि. 7:10)।

"धन्य हैं वे जो शोक करते हैं, क्योंकि वे सान्त्वना पाएंगे" (मत्ती 5:4)।

ईश्वरीय दुःख वह दुःख है जो पवित्र-आत्मा हममें उत्पन्न करता है। पवित्र-आत्मा हमारी तरफ से ऐसी आहें भर-भर कर विनतियाँ करता है जिन्हें शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता (रोमि. 8:26)।

आरम्भ में, यही वह दुःख था जिसने हमें मन-फिराव द्वारा प्रभु के पास पहुँचाया था। और हमारे पूरे जीवन-भर हमारे लिए यही भला है कि हम अपने हृदय में होने वाले पवित्र-आत्मा के काम के प्रति ऐसे ही संवेदनशील रहें।

जब हम आत्मिक तौर पर गिरें या जब हमारे प्रभु के साथ हमारी संगति टूट जाए, तो हमें भी उसी तरह रोना चाहिए जैसे अपने प्रियतम् से बिछड़ने पर उसकी प्रियतमा रोती है (श्रेष्ठ. 3:1-4)। ऐसा रोना हमारे जीव के लिए अच्छा है। पश्चाताप् के आँसू कभी बेकार नहीं जाते। जब हम उसकी ज्योति में अपने जीवन को देखते हैं, तब हम यह पाते हैं कि भावुकता, लालच, घमण्ड, स्वार्थ, और दया के पात्र बन जाने वाली बातों ने हमारे हृदय पर एक मकड़ी का जाल बुन दिया है, और इससे स्वयं हमारा और हमारे आसपास के लोगों के लिए जीना मुश्किल हो गया है। तब हमारा रोना हमें ऐसे टूटेपन और दीनता में ले जाएगा जेा हमें लगातार परमेश्वर की कृपा ग्रहण करने योग्य बनाएगा।

पतरस को यह पूरा भरोसा था कि वह एक चट्टान की तरह अडिग खड़ा रहेगा और प्रभु का कभी इनकार नहीं करेगा। उसने अपने स्वामी की रक्षा करने के लिए तलवार भी उठा ली थी। लेकिन परीक्षा की घड़ी में, जैसे प्रभु ने उसे पहले ही चेतावनी दे रखी थी, वह गिर गया था। लेकिन उसके स्वामी की संवेदना और क्षमा से भरी दृष्टि ने उसे इस हद तक तोड़ दिया था कि फिर वह फूट-फूट कर रो पड़ा था। वह यह सोचने लगा था कि क्या उसे दोबारा ऐसा मौक़ा मिल सकेगा कि वह प्रभु से यह कह सके कि उसकी नाकामी पर उसे कितना अफसोस हुआ था और यह कि वह प्रभु से कितना प्रेम करता था?

यह अनुभव परमेश्वर के ऐसे अनेक बच्चों का रहा है जिन्होंने किसी बात में प्रभु को इसी तरह निराश किया है। प्यारी बहन, अगर आपका ऐसा अनुभव रहा है, तो मैं आपको यह तसल्ली देना चाहती हूँ कि आपके लिए आशा है।

याद रखें कि पतरस को गेहूँ की तरह फटकने के लिए शैतान को परमेश्वर की अनुमति लेनी पड़ी थी। और आपको परखने के लिए भी शैतान को परमेश्वर से अनुमति लेनी पड़ेगी।

यीशु ने पतरस के लिए यह प्रार्थना की थी कि उसका विश्वास चला न जाए। और यीशु आज आपके लिए भी प्रार्थना करता है। प्रभु का यह विश्वास था कि पतरस उस परीक्षा के उस समय में से गुज़र जाएगा और पुनःस्थापित हो जाएगा। जब पतरस पुनःस्थापित हो गया था, फिर उसने प्रभु के लिए बड़ा काम किया और उसके अनेक साथी-विश्वासियों को दृढ़ किया था। आपके साथ भी ऐसा ही होगा।

अगर पतरस ने गतसमनी में प्रभु की चेतावनी पर ध्यान दिया होता, और उसने प्रार्थना की होती जैसा उससे कहा गया था, तो वह न गिरता - लेकिन पतरस आत्म-निर्भर था। इसलिए वह नाकाम हुआ। लेकिन जी उठने के बाद प्रभु ने प्रकट होकर उसे उत्साहित किया था। और पतरस को यह मौक़ा मिला था कि वह प्रभु से यह कह सके कि वह उससे प्रेम करता है। और प्रभु ने उसे दोबारा से प्रेरित के रूप में नियुक्त किया था।

परमेश्वर एक भला परमेश्वर है और वह हमारे जीवन में विषमता और परीक्षा को इसलिए आने देता है कि उनके द्वारा हमारा असली स्वभाव हम पर प्रकट कर सके। इस तरह वह हमें नम्र व दीन करता और तोड़ता है कि फिर वह हमें उसकी समानता में बदल सके। ऐसा कुछ भी नहीं है जो हमें परमेश्वर के प्रेम से अब अलग कर सकता हो।

हमारे व्यक्तिगत दुःख के समयों में, हम अपनी ही समस्याओं में ऐसे उलझे न रहें कि हमें दूसरों की कोई चिंता ही न रहे। हमारा प्रभु, जो "दुःखी पुरुष था, लेकिन फिर भी उसकी हमारी पीड़ाओं से जान-पहचान" थी। जब उसने यरूशलेम नगर के लोगों को देखा जिन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया था, तब वह रोया था।

"उसके आँसू उसके अपने दर्द के लिए न थे

उसके लहू के क़तरे मेरे दर्द के लिए गिरे थे"

हमारा प्रभु दूसरों के लिए रोया था। और यीशु के प्रतिनिधियों के रूप में, अब हमें भी दूसरों के लिए रोना है।

युसुफ के बारे में सोचें जिसे अन्यायपूर्वक कारावास में रहना पड़ा था। लेकिन कारावास में, वह अपना दुःख भूलकर दूसरे बंदियों की देखभाल में लग गया था। फिरोन के साक़ी के प्रति उसकी हमदर्दी ने ही उसे अंततः कारावास में से मुक्ति दिलाई थी। दूसरे के प्रति सच्ची हमदर्दी आपके लिए भी छुटकारे की तरफ उठाया गया पहला क़दम बन सकती है (उत्पत्ति 40:7)।

"जो बीज लेकर बोने के लिए रोता हुआ चला जाता है, वह निश्चय ही अपनी पूलियाँ लिए हुए जयजयकार के साथ लौट आएंगे" (भजन. 126:6)।

नीचे कुछ ऐसे लोगों के उदाहरण हैं जो एक ईश्वरीय दुःख में रोए थेः

A. जब यशायाह ने परमेश्वर की महिमा को और उसके बाद तुरन्त ही अपने स्वभाव की भ्रष्टता को देखा तो वह रो पड़ा और बोला, "मुझ पर हाय, मैं तो एक अशुद्ध मनुष्य हूँ" (यशा. 6:5)।

B. यिर्मयाह परमेश्वर के भटके हुए लोगों के लिए रोया और उसने ऐसा चाहा कि उसकी आँखें आँसुओं का झरना बन जाएं कि वह उनके लिए निरंतर रोता ही रहे (यिर्म. 9:1; 13:17)।

C. दानिय्येल परमेश्वर के लोगों के पाप के लिए रोया (दानि. 9:20,21)।

D. एज़्रा और नहेमायाह ने जब परमेश्वर के लोगों की दशा को देखा तो वे रो पड़े थे (एज़्रा 10:1; नहे. 1:4)।

E. पौलुस का हृदय हमेशा उसके लोगों (यहूदियों) के लिए बड़े शोक से भरा रहता था (रोमियों. 9:1-3)।

ईश्वरीय दुःख हमें उन बातों के लिए शोक से भरेगा जो बातें परमेश्वर को शोकित करती हैं।

एक पल के लिए हमारे देश में होने वाली मूर्तिपूजा के बारे में सोचें कि उससे हमारा प्रभु कितना दुःखी होता होगा। यह हो सकता है हम अपने देश में मन्दिरों और मूर्तियों को देखने के ऐसे आदी हो चुके हैं कि अब हम पर उनका कोई असर नहीं होता (प्रेरितों. 17:16)। लेकिन जिस देश में हम रहते हैं, उसके लिए हम प्रभु के सामने जवाबदार हैं।

परमेश्वर ने कहा है, "और अगर मेरे लोग जो मेरे नाम के कहलाते हैं, दीन होकर प्रार्थना करें और मेरे दर्शन के खोजी होकर अपने बुरे मार्गों से फिरें, तो मैं स्वर्ग में से सुनकर उनके पाप क्षमा करूँगा और उनके देश को चंगा करूँगा" (2 इति. 7:14)।

मुझे ऐसे अवसर याद हैं जब प्रभु ने मेरे हृदय पर उनके लिए प्रार्थना करने का बोझ डाला था।

मेरी एक यात्रा के दौरान, मैंने स्त्रियों व पुरुषों के एक समूह को देखा था जिनके साथ 2 व 3 साल की कुछ लडकियाँ थीं। मैंने यह देखा कि बच्चों के साथ उनका व्यवहार कुछ अजीब सा था। छोटी लड़कियाँ सुन्न व डरी हुई थीं और शायद किसी नशीली दवा के प्रभाव में थीं। शायद उनका अपहरण किया जा रहा था। मैं क्योंकि इस बात को किसी भी तरह प्रमाणित नहीं कर सकती थी, इसलिए मैं कुछ न कर सकी। उन ग़रीब बच्चों ने मुझ पर एक गहरा प्रभाव छोड़ा था और मुझे अपने देश में होने वाले बाल-शोषण के खिलाफ़ प्रार्थना करने के लिए प्रेरित किया था।

एक दूसरे अवसर पर मुझे एक पश्चिमी देश की लड़की मिली थी जो गुरुओं, योग और पूर्वी धर्मों द्वारा शांति की खोज में आई थी। मुझे उसे असली गुरु यीशु के बारे में बताने का मौक़ा मिला और फिर उसके लिए प्रार्थना करने का बोझ मैंने अपने ऊपर महसूस किया। कुछ पश्चिमी देशों के लोगों ने प्रभु को भारत में पाया है। प्रभु से कहें कि वह ऐसे ज़रूरतमंद और खोजी लोगों के सम्मुख उसके साक्षी होने के लिए, या उनके लिए प्रार्थना करने के लिए आपको इस्तेमाल करे।

जब यीशु यरूशलेम में से सूली लेकर गुज़र रहा था और उसने कुछ स्त्रियों को उसके लिए रोते देखा, तो उसने उनसे कहा कि वे उसके लिए नहीं बल्कि उनके बच्चों के लिए रोएं। "यरूशलेम की बेटियों," उसने कहा, "मेरे लिए बल्कि अपनी संतानों के लिए रोओ।"

भारत की बेटियों, क्या हम सुन सकती हैं कि वह आज हमसे क्या कह रहा है?

अध्याय 8
आपकी शारीरिक पीड़ा में भी परमेश्वर की एक योजना है

अनेक स्त्रियाँ पुरानी बीमारियों से ग्रस्त हैं और उन्हें लगातार पीड़ा में और रातों को जागते हुए अपना जीवन बिताना पड़ता है। और उनके मन भविष्य के बारे में आशंकाओं से भरे रहते हैं - ख़ास तौर पर यह कि उनके बच्चे बिन-माँ के बच्चे हो जाएंगे। ऐसे विचार बहुत डरावने हो सकते हैं।

अनेक स्त्रियाँ अपनी पीड़ा में कुछ राहत पाना चाहती हैं। सबसे शक्तिशाली दर्द-निवारक दवाएं भी कुछ समय के बाद असर करना बंद कर देती हैं।

जब कोई स्त्री यह सुनती है कि एक बहन की जाँच के बाद उसमें कैंसर पाया गया है, तो वह यह सोचने लगती है कि क्या अब मेरे साथ भी ऐसा होने वाला है!

यीशु ने भी पीड़ा सही थी, और इसलिए वह हमसे सहानुभुति रख सकता है और हमें सान्त्वना दे सकता है। उसने सूली की पीड़ा सही, और जब हम पीड़ा सहते हैं, तो उसे आख़िर तक सहने में वह हमारी भी मदद कर सकता है। अपनी जान ले लेने के विचार के आगे कभी न झुकें। मृत्यु की कुंजी यीशु के हाथ में है (प्रका. 1:18)। उसके हाथ में से वह छीनने की कोशिश न करें। चाहे आपको कितनी भी पीड़ा सहनी पड़े, लेकिन परमेश्वर के समय के लिए इंतज़ार करें। इस बीच, परमेश्वर आपकी पीड़ा को आपके लिए पवित्र कर सकता है। "एक जन्म लेने का समय है, और एक मरने का समय है" (सभो. 3:2)।

आमोस 4:12 कहता है, "अपने परमेश्वर से भेंट करने के लिए तैयार हो।"

हम इन शब्दों को एक ऐसी डरावनी धमकी के रूप में न देखें कि अब हमें मरने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। इसकी बजाय हम इन्हें अपने सृष्टिकर्ता की तरफ से उससे मिलने के लिए एक आमंत्रण के रूप में देख सकते हैं।

मैंने एक माँ के बारे में पढ़ा जो कैंसर से मर रही थी, और अपनी पीड़ा के बीच में भी, उसने अपने हरेक बच्चे के लिए एक-एक संदेश रेकॉर्ड किया था; उन संदेशों में उसने उनके बड़े होने के वर्षों के लिए सलाह दी थी जिसमें उनके जीवन-साथियों के चुनाव का मामला भी शामिल था। उसने उनसे यह भी कहा कि अगर उनका पिता एक दिन घर में उनकी एक नई माँ लाना चाहे, तो भी उन्हें उसका स्वागत करते हुए ख़ुशी से स्वीकार कर लेना चाहिए। उसने अपनी पीड़ा प्रभु को सौंप दी, और जब उसने यह जान लिए कि अब पृथ्वी पर उसका समय थोड़ा ही था, तो जो कुछ वह अपने परिवार के लिए कर सकती थी, उसने वह सब कुछ किया।

जब डॉक्टर आपके स्वास्थ्य के बारे में आपको कोई बुरी ख़बर सुनाता है, तब क्या आपको रोना आता है?

क्या अपनी पीड़ा से राहत पाने के लिए आप दर्द-निवारक दवा (मॉर्फीन) की अगली ख़ुराक पाने का इंतज़ार करती हैं? यीशु को पुकारें। उसने भी तीव्र पीड़ा को सहा था और वह आपकी पीड़ा को भी सहनीय बना सकता है। वह आपके सहने की क्षमता से ज़्यादा पीड़ा आपको नहीं देगा बल्कि हरेक परीक्षा में से गुज़रने के लिए कृपा और बल देगा। हमारी पार्थिव पीड़ा हमें उस बेहतर जगह में जाने की बाट जोहने वाला बना देती है जहाँ फिर कोई पीड़ा या दुःख न होगा।

मुझे वह समूह-गान याद आ रहा है जो हमारी कलीसियाई-सभाओं में हम अक्सर गाते हैंः

"प्रभु की उपस्थिति में आनन्द की भरपूरी है,

प्रभु की उपस्थिति में आनन्द की भरपूरी है,

हमारे आँसुओं व पीड़ाओं केा मिटना ही है,

क्योंकि प्रभु की उपस्थिति में आनन्द की भरपूरी है।"

इस समूह-गान के बाक़ी पद, प्रभु की उपस्थिति में शांति, सामर्थ्य और जय के बारे में बात करते हैं। गीतों में एक ऐसी ज़बरदस्त शक्ति होती है कि वे हमारी पीड़ा या दुःख के अनुभव में से गुज़रते समय हमें बड़ी तसल्ली दे सकते हैं।

अगर हरेक क्षेत्र में आपका जीवन पूरी तरह प्रभु को समर्पित है, तो आप यह पाएंगी कि जब आप शारीरिक पीड़ा में से गुज़रेंगी तो उसे सहना आपके लिए आसान हो जाएगा। बीते समय में आपके लिए एक सिरदर्द सहना भी मुश्किल होता था। लेकिन अब एक घातक बीमारी के आ जाने के बाद भी आप प्रार्थना कर सकती हैं और प्रभु में आनन्दित रह सकती हैं। प्रभु की यह प्रतिज्ञा की है कि अगर "हम नदियों में से होकर चलेंगे", तो वह हमें तसल्ली देता है कि "बाढ़ भी हमें डुबा न पाएगी।"

"जब तू जल में होकर जाए तो मैं तेरे संग रहूँगा; और जब तू नदियों में से होकर चले, तो वे तुझे न डुबाएंगी; जब तू पीड़ा की अग्नि में से होकर चले तो वह तुझे न झुलसाएगी, न ही उसकी लौ तुझे जलाने पाएगी। मत डर क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ" (यशा. 43:2-5 - लिविंग)।

उसकी कृपा हमारी हरेक स्थिति के लिए काफी होती है। हमारी परीक्षाएं जैसे-जैसे बड़ी होती जाती हैं, उसकी कृपा की आपूर्ति भी उसी अनुपात में बढ़ती जाती है। परमेश्वर की स्तुति हो!

परमेश्वर के अनेक मूल्यवान रत्न ऐसे हैं जो असीम पीड़ा की गहराइयों में से निकाले गए हैं। जैसे पृथ्वी की गहराइयों में हीरा तैयार होता है वैसे ही उन्होंने भी ज़बरदस्त ताप और दबाव में सब मनुष्यों की नज़रों से दूर रहते हुए पीड़ा सही हैं। आप भी उसकी एक क़ीमती रत्न हो सकती हैं। अगर आप परमेश्वर द्वारा आपके साथ किए जा रहे बर्ताव के अधीन हो जाएंगी, और अपने आपको दया का पात्र मानकर अपने लिए आँसू न बहाएंगी, तो आपके आँसू उस प्रक्रिया का हिस्सा बन जाएंगे जिसमें आप मसीह की समानता में बदलती जाएंगी। परमेश्वर आपकी पीड़ा को आपका लाभ बना देगा।

मेरी एक नज़दीकी मित्र का इलाज करते समय उसे कुछ ऐसी ग़लत दवाएं दे दी गईं जिसकी वजह से अब उसे हमेशा पीड़ा सहनी पड़ती हैं। लेकिन उसकी वह पीड़ा तब और भी ज़्यादा बढ़ गई जब वह उस डॉक्टर को क्षमा न कर पाई थी। (हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि डॉक्टर भी मनुष्य ही हैं जो ग़लतियाँ कर सकते हैं।) उसे डॉक्टर को क्षमा करने और अपनी स्थिति को स्वीकार करने में एक लम्बा समय लगा। यीशु वह सबसे बड़ा चिकित्सक है जो हमारी भीतरी पीड़ाओं को भी चंगा करता है।

मैं एक ऐसी युवा ग़ैर-मसीही लड़की को जानती हूँ जो एक दिन बस-स्टैण्ड पर बस का इंतज़ार कर रही थी, और वहाँ उसका मालिक एक स्त्री के वेश में बुर्का पहन कर आया था और उसने उस पर हमला किया था। उसके मालिक को एक लम्बे समय से उससे शिकायत थी और वह उसके मुँह पर तेज़ाब फेंककर भाग गया था। उसका मुँह जल गया और वह हमेशा के लिए अंधी हो गई थी। एक समय में वह बहुत सुन्दर लड़की थी, लेकिन अब उसकी सुन्दरता हमेशा के लिए ख़त्म हो गई थी। अस्पताल के जिस वॉर्ड में उसे रखा गया था, वह उसकी तीव्र, असहनीय पीड़ा से भरी चीख़ों से गूँज रहा था। लेकिन उस अस्पताल में किसी ने उससे यीशु के प्रेम के बारे में बात की और उसकी आत्मिक आँखें खुल गईं और उसने यीशु को उसके मुक्तिदाता के रूप में देख लिया। उसका परिवार, उसके लम्बे चले इलाज में हुए ख़र्च की वजह से ग़रीब हो गया, लेकिन उन्होंने भी यीशु के प्रेम को जाना और उद्धार पा लिया था। मैंने उसकी एक पुरानी तस्वीर देखी (उसके जलने से पहले) जिसमें वह सुन्दर नज़र आ रही थी, और मैं जानती हूँ कि स्वर्ग में मैं उसे इससे भी ज़्यादा सुन्दर रूप में देखूँगी।

मुझे एक और युवा स्त्री मिली जो वर्षों से उसके अपंग पति की देखभाल कर रही थी। वह कहीं से गिर जाने की वजह से अपाहिज हो गया था। उन्होंने पहले कभी यीशु के बारे में नहीं सुना था। लेकिन उन पर आई विपत्ति के बाद जब उनके सभी सम्बंधियों ने उनका साथ छोड़ दिया था और वे असहाय और टूटे हुए थे, तब प्रभु उन्हें मिला था और उन्होंने यीशु को उनके मुक्तिदाता के रूप में पा लिया था। अब परमेश्वर उन्हें दूसरे अपाहिज लोगों की मदद करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है, और अनेक लोग प्रभु यीशु को जान रहे हैं। उनके बहुत ग़रीब और बड़ी पीड़ा में होने के बावजूद, उनके मुख चमकते रहते हैं। जो भी उनसे मिलते हैं वे आशिषित होते हैं, और वे उनके मुख की चमक और जीत के भाव को कभी नहीं भूल सकते। फिर भी, जब उनके साथ वह दुर्घटना हुई थी, उस समय उनका नया-नया विवाह हुआ था और पत्नी गर्भवती थी। वह बिलकुल पागल सी हो गई थी और रात-दिन रो-रोकर बस यही कहती रहती थी कि परमेश्वर ने ऐसा क्यों होने दिया था। फिर यीशु ने आकर उन्हें उसकी शांति और सामर्थ्य से भर दिया। परमेश्वर अब हमारे देश के एक सुदूर क्षेत्र में उन्हें सामर्थ्य के साथ इस्तेमाल कर रहा है। मैं जब भी उनके बारे में सोचती हूँ तो मुझे भजन-संहिता 34:5 याद आ जाता है जो यह कहता हैः "जितनों ने उसकी तरफ देखा, उन्होंने ज्योति पाई।"

मैं एक और ऐसी युवा स्त्री को जानती हूँ जो उसके पति और सास-ससुर की यातनाओं को न सह सकी थी, और उसने अपने ऊपर मिट्टी का तेल डालकर आग लगाने द्वारा आत्महत्या करने की कोशिश की थी। हम जानते हैं कि भारत में जब स्त्रियों को दहेज के लिए उनके पतियों और/या सास-ससुर द्वारा सताया जाता है, तब उनके द्वारा आत्महत्या के लिए अपनाया जाने वाला यह सबसे आम तरीक़ा होता है। लेकिन यह युवा स्त्री मरी नहीं थी। परमेश्वर ने उसे न सिर्फ आग की लपटों से बल्कि नर्क की लपटों से भी बचा लिया था। वह आज हमारी ग्रामीण-कलीसियाओं में एक अद्भुत बहन है, और परमेश्वर के प्रेम और दया की साक्षी है।

ये ऐसी स्त्रियों के उदाहरण हैं जिन्होंने गंभीर दुर्घटनाओं द्वारा प्रभु यीशु को पाया है। जब भी मुझे याद दिलाया जाता है, मैं इन स्त्रियों के लिए परमेश्वर के सम्मुख प्रार्थना करती हूँ और कभी-कभी रोती हूँ जिन्हें निरंतर पीड़ा सहते रहना होता है।

मैं ऐसी स्त्रियों के बारे में भी जानती हूँ जिन्हें अद्भुत चंगाइयाँ मिली हैं। उनमें से कुछ चंगाई पाने के बाद यीशु की शिष्य बन गई हैं। कुछ को दुष्टात्माओं से छुटकारा मिला है और अब वे परमेश्वर की महिमा के लिए जीवन व्यतीत करती हैं।

यीशु जब पृथ्वी पर था, तब जितने उसके पास आए उसने उन सबको चंगा किया था। उससे कहें कि वह आपको भी चंगा करे। बाइबल हमें बताती है कि बीमार हो जाने पर हमें कलीसिया के प्राचीनों को बुलाना चाहिए और उनसे हमारा तेल से अभिषेक करने और प्रार्थना करने के लिए कहना चाहिए। विश्वास की प्रार्थना रोगी को चंगा कर देगी (याकूब 5:14)।

बीमारी को पाप से भी जोड़ा जा सकता है। जब प्रभु ने पृथ्वी पर लोगों को चंगा किया था, तो उनमें से कुछ से उसने कहा था, "तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है। अब पाप न करना।" गठिया, ऐलर्जी, उच्च रक्तचाप, और पेट की बीमारी को कभी-कभी भीतरी तनाव, कड़वाहट और चोट लगने के अहसास के साथ जोड़ा जाता है। इसलिए हमें पहले अपने पापों का अंगीकार करते हुए प्रभु से हमें क्षमा माँग लेनी चाहिए। हमें उन लोगों के साथ भी मेल-मिलाप कर लेना चाहिए जिन्हें हमने चोट पहुँचाई है। किसी ने आपके खिलाफ़ चाहे कितना भी बड़ा अपराध क्यों न किया हो, यह सुनिश्चित करें कि क्षमा-न-करने-वाली आत्मा आप पर प्रबल न होने पाए। चंगा करने वाला परमेश्वर है - चाहे दवा से करे या दुआ से करे। और जब आप चंगे हो जाएं, तो परमेश्वर को ही सारी महिमा और धन्यवाद देना न भूलें।

पूरी तरह से परमेश्वर की इच्छा के आगे समर्पित हो जाएं और फिर विश्वास से प्रभु से आपको चंगा करने के लिए कहें। प्रभु आपका चंगा करने वाला है। और जब आप चंगे हो जाएं, तो अपना स्वस्थ जीवन परमेश्वर को लौटा दें कि वह उसे दूसरों को आशिष देने और उनकी मदद करने में इस्तेमाल कर सके।

हम यह नहीं समझ सकते कि परमेश्वर ऐसा क्यों होने देता है कि उसके कुछ सबसे विश्वासयोग्य बच्चे बीमारी की दशा में रहते हैं जबकि कुछ बच्चों को वह चंगा कर देता है। परमेश्वर प्रभुसत्ता-सम्पन्न प्रभु है। उसने याकूब को तो मारे जाने की अनुमति दे दी थी, लेकिन पतरस को एक चमत्कारिक रूप में कारावास में से छुड़ा लिया था (प्रे. अध्याय 12)। लेकिन हमने जैसा पहले देखा था, कि मृत्यु की कुंजी हमारे प्रभु के पास है, और सिर्फ वही आपके लिए उसका द्वार खोल सकता है। इसलिए, अगर हम उसकी इच्छा में जीवन बिताते हैं, तो हम अपने समय से पहले नहीं मर सकते। हमें मृत्यु से डरने की ज़रूरत नहीं है। आरम्भिक मसीही साक्षी स्तुति के गीत गाते हुए मरने के लिए चले गए थे।

एमी कारमाइकल ने (जो डॉह्नावूर -दक्षिण भारत में एक मिशनरी थी) अपनी बीमारी के बिस्तर पर से अद्भुत पुस्तकें और कविताएं लिखी थीं। अगर वह सशक्त और स्वस्थ रहती तो शायद वह उन्हें कभी न लिख पाती।

मसीह हमारी देहों में हमारे स्वास्थ्य द्वारा और हमारी देह में लगातार चुभने वाले एक काँटे द्वारा भी महिमान्वित हो सकता है (फिलि. 1:20)। इसलिए हमें अपनी पीड़ाओं और परीक्षाओं को परमेश्वर और मनुष्यों के सम्मुख अपने आपको दीन करके मौक़ों के रूप में देखना चाहिए।

"हे लोगों, हर समय उस पर भरोसा रखो। अपना हृदय उसके सामने उण्डेल दो, क्योंकि वह तुम्हारी सहायता कर सकता है" (भजन. 62:5)।

जब आपका "हृदय टूटने पर हो" तब प्रभु आपके नज़दीक होता है (भजन. 34:18)।

जब हम विलाप की घाटी (बाका) में से गुज़र जाएंगे, तो परमेश्वर उसे ऐसे झरनों में बदल सकता है जो दूसरों को आशिष देने के लिए हममें से प्रवाहित हो सकेंगे (भजन. 84:6)। परमेश्वर जब हमारी पीड़ाओं के बीच में स्वर्ग के जीवित जल से हमें तसल्ली और ताज़गी देगा, तो फिर हम इस जीवित जल को हमारे आसपास के लोगों के साथ बाँट सकते हैं।

परमेश्वर ने यह वादा किया है कि एक दिन वह हमारी आँख का हरेक आँसू पोंछ डालेगा (प्रका. 21:1-4)। फिर कोई दुःख या परीक्षा या मृत्यु न होगी, कोई विलाप या रोना या पीड़ा न होगी, क्योंकि वह कुछ गुज़र चुका होगा। हम उत्सुकता के साथ बाट जोहते हैं - नई पृथ्वी और नए आकाश की राह तकते हैं, जहाँ हमारा पिता सर्वदा हमारे साथ रहेगा।

इसलिए हमारे हृदय उत्सुक होकर पुकारते हैं और कहते हैं, "हे प्रभु यीशु, जल्दी आ!"

अध्याय 9
परमेश्वर रोती हुई स्त्रियों की देखभाल करता है

परमेश्वर का पुत्र पृथ्वी पर इसलिए आया कि वह हमें यह दिखा सके कि पिता हमसे प्रेम करता है, और वह हमसे नाराज़ नहीं है। उसने स्त्रियों को उस नीचे और तिरस्कृत स्तर से भी ऊँचा उठाया जहाँ समाज ने उन्हें फेंक रखा था। सुसमाचारों में हम ऐसी अनेक स्त्रियों के बारे में पढ़ते हैं जो अलग-अलग समयों में उनकी विभिन्न ज़रूरतों के लिए उसके पास आई थीं। यीशु ने एक बार भी उनकी पुकार को अनसुना नहीं किया था। रोती हुई स्त्रियों के लिए उसके पास हमेशा दया से भरे शब्द होते थे।

हम यह कह सकते हैं कि वह मानो ख़ामोश रहते हुए उनसे यह कहता था, "हे नारी, तू क्यों रोती है?"

मरियम मगदलीनी उसके जीवन में निश्चय ही बहुत रोई होगी। एक समय था जब उसमें सात दुष्टात्माएं समाई हुई थीं। लेकिन यीशु ने उसे उनसे छुटकारा दिला दिया था, और वह उसके इस अहसान को कभी न भूली थी। उसकी कृतज्ञता की वजह से ही वह पूरे मनोभाव के साथ यीशु के प्रति समर्पित थी। शैतान ने उसके जीवन का नाश कर रखा था। एक दुष्टात्मा के बाद दूसरी दुष्टात्मा उसमें घर करती गई थी और नगर में वह एक उग्र स्त्री के रूप में जानी जाती थी - एक ऐसी स्त्री जिससे सब दूर ही रहना चाहते थे। लेकिन उसमें हम यह देख सकते हैं कि निराशा में डूबे हुओं को यीशु कैसे बाहर निकाल कर ऊँचे स्थान में पहुँचाता है; जो गहराई तक पाप के दलदल के डूबे होते हैं, कैसे उन्हें आत्मिक सिंहासनों पर बैठाता है। हालेलुय्याह!

मरियम और मार्था ऐसी दो और स्त्रियाँ थीं जो रोई थीं। उन बहनों ने अपना घर यीशु के लिए खोला हुआ था। प्रभु ने उनके घर में अक्सर भोजन और विश्राम पाया था और वे हमेशा ख़ुशी से प्रभु की सेवा करने के लिए तैयार रहती थीं। एक दिन उनका भाई लाज़रस बहुत गंभीर रूप में बीमार पड़ गया था और उन्होंने तुरन्त यीशु के पास संदेश भेजकर उसे बुलवाया। लेकिन यूहन्ना का अध्याय 11 हमें बताता है कि कैसे यीशु ने जानबूझ कर उनके घर पहुँचने में देर की थी। और यह बात उनकी समझ नहीं आई थी। वह क्यों नहीं आ रहा था? हमारी प्रार्थनाओं में होने वाली हरेक देर भी परमेश्वर द्वारा तय की जाती है कि फिर वह हमारे माँगने से भी बढ़कर हमें दे सके। अंततः लाज़रस मर गया। यीशु उसके मरने के बाद आया। मरियम और मार्था दोनों की प्रतिक्रिया अलग थी - एक ने बड़े ज़ोर-शोर से कुड़कुड़ा कर शिकायत की, लेकिन दूसरी ने अपनी कड़वाहट को ख़ामोश रहते हुए अपने भीतर ही रखा। लेकिन यीशु उनका दुःख समझता था। उसने उनके साथ अपनी संवेदना प्रकट की थी और उनके साथ मिलकर रोया भी था। उसने उनकी शिकायतों और कुड़कुड़ाने को क्षमा किया, और उनके भाई को मृतकों में से जि़न्दा कर दिया। उन्होंने यीशु से सिर्फ चंगाई की आशा की थी। उसने उन्हें मृतकों मे से जीवित कर दिया, और उनका रोना आनन्द में बदल गया। यीशु आज, कल और युगानुयुग एक सा है। हम जितना माँग सकती हैं या सोच सकती हैं, यीशु उससे बढ़कर कर सकता है। वह आज भी स्त्रियों के साथ मिलकर रोता है और फिर उनके आँसुओं को पोंछ देता है।

हम सुसमाचारों में एक ऐसी अज्ञात स्त्री के बारे में पढ़ते हैं जो 12 साल तक उसकी देह में से लहू बहने की बीमारी से पीड़ित थी। वह एक डॉक्टर के बाद दूसरे डॉक्टर के पास गई थी, और उन्होंने उसकी सारी जमा-पूंजी लूट ली थी। उसकी बीमारी एक लज्जाजनक बीमारी थी, जिसे "ख़ून का गिरना" कहते हैं। इतना ख़ून गिर जाने से उस स्त्री में ज़रूर बड़ी कमज़ोरी और ख़ून की कमी हो गई होगी। उसने अनेक रातें रोते हुए और परमेश्वर से उसे चंगा करने की विनतियाँ करते हुए गुज़ारी होंगी। वह भी उत्सुकता से मसीह का इंतज़ार कर रही होगी कि वह आकर इस्राएल को उसकी पीड़ा से मुक्ति दिलाएगा। लेकिन 12 साल से उसे कोई जवाब नहीं मिला था। फिर एक दिन उसने सुना कि मसीह आ गया है और वह उसके नगर में से होकर गुज़रेगा। उस दिन की भीड़ सामान्य दिनों की बहुत ज़्यादा थी और लोग यीशु के आसपास एक-दूसरे पर गिर-पड़ रहे थे। लेकिन उसने यह पक्का इरादा बना लिया था कि वह उस भीड़ में जाकर कम-से-कम यीशु के वस्त्र का छोर ही छू लेगी। इस कमज़ोर स्त्री ने पुरुषों, स्त्रियों व बच्चों की भीड़ में से होकर उसके वस्त्र के छोर के निचले भाग को उसकी अंगुलियों से छू लिया। और वह उसी क्षण चंगी हो गई थी। यीशु ने रुक कर उसे सामने बुलाया और उसने डरते-डरते सबके सामने अपनी साक्षी दी। उसकी साक्षी पिछले 2000 सालों से जगत के सारे देशों के लोगों को आशिष देती रही है।

आप भी शायद ऐसी ही एक अनजान स्त्री हो सकती हैं जो सालों से आँसू बहा रही हैं। आप भी शर्मिन्दा करने वाली किसी बीमारी से पीड़ित हो सकती हैं। प्रभु आपको निराश नहीं करेगा। उसके पास आएं। हम आज भी विश्वास से उसे छू सकती हैं। यीशु ने हमारी बीमारियों और कमज़ोरियों को अपने ऊपर उठाया था और उसके कोड़े खाने से हम चंगे हुए हैं।

यूहन्ना अध्याय 4 में, हम एक और ज़रूरतमंद स्त्री के बारे में पढ़ते हैं - इस बार वह एक सामरी स्त्री थी - एक ऐसी स्त्री जिसका जीवन एक ठुकराया हुआ जीवन था - उसने पाँच बार विवाह किया था। आिख़र में वह जिसके साथ रह रही थी, वह तो उसका पति भी नहीं था। वह ज़रूर उसके जीवन से तंग आ चुकी होगी। यहूदी लोग सामरी लोगों को एक नीच जाति मानकर उनसे घृणा करते थे। सामान्य तौर पर सामरी स्त्रियाँ सुबह के समय कुँए पर पानी भरने जाती थीं। लेकिन बीते समय में इस स्त्री को गाँव की दूसरी स्त्रियों के साथ ज़रूर बुरे अनुभव हुए होंगे। उन्होंने उसे तुच्छ जाना होगा, ताने मारे होंगे, और उसे अनदेखा किया होगा। सामरिया में लज्जा, तिरस्कार और दुःख उसके स्थाई साथी बन चुके होंगे। इसलिए उसने अब दोपहर के समय, जब आसपास कोई नहीं होता, तब कुँए पर आने का फैसला कर लिया होगा। ज़रा सोचिए कि उसे उस समय वहाँ एक पुरुष को देखकर कितनी हैरानी हुई होगी! उससे मिलने के लिए ही स्वामी जानबूझ कर सामरिया में से होकर जा रहा था, और उस दोपहर को उससे बात करने के लिए ही वह कुँए पर बैठा था। उसने अपनी प्यास को उससे बात करने का शुरूआती मुद्दा बनाया, और फिर धीरे-धीरे जीवन के जल के लिए उसकी ज़रूरत की तरफ संकेत किया। अंततः, प्रभु ने पूरे गाँव को मन-फिराव तक लाने के लिए उसे इस्तेमाल किया।

यीशु ऐसी स्त्रियों को कैसी आशा देता है जिन्हें समाज ने ठुकरा दिया है। आप एक फेंकी हुई, अनदेखी की हुई या एक छोटी जाति की स्त्री हो सकती हैं, ऐसी स्त्री जिसके अधिकार के लिए लड़ने वाला कोई नहीं है। हे नारी, आपको रोने की अब कोई ज़रूरत नहीं है। आपका छुड़ाने वाला अब आपके पास आ गया है।

मत्ती 15:22 में, हम एक रोती हुई, लेकिन बड़ी आग्रही कनानी स्त्री के बारे में पढ़ते हैं। वह "चुनी हुई प्रजा" का हिस्सा नहीं थी। लेकिन परमेश्वर ने उसे सम्भाला। उसकी बेटी एक लम्बे समय से दुष्टात्माग्रस्त थी और वह स्त्री को यह समझ नहीं आ रहा था कि उसकी मदद कौन करेगा। उसने सुना था कि इस्राएल में एक नबी आया था जो दुष्टात्माओं को निकालता था। लेकिन उसके लिए इस्राएल की यात्रा करना मुश्किल और शायद बहुत महंगा भी रहा होगा। इसके अलावा वह इस्राएली नहीं थी और वह नहीं जानती थी कि यीशु के पास उसकी बात सुनने या उसकी मदद करने का समय भी होगा या नहीं। इसलिए उसने उसकी बेटी के चंगा होने की उम्मीद ही छोड़ दी होगी। लेकिन वह यह नहीं जानती थी कि परमेश्वर उससे कितना प्रेम करता था और उसने उसके आँसुओं को देख लिया थाः परमेश्वर ने यीशु को उसके पास भेजा। यीशु गलील से पैदल चलता हुआ उसके नगर में आया था, और वहाँ से पैदल ही वापिस लौटा था। उसकी एक तरफ की यात्रा 50 मील की थी, और उसने यह यात्रा सिर्फ उस स्त्री की मदद करने के लिए की थी। जब वह स्त्री यीशु को मिली तो वह जानती थी कि वह एक परदेसी थी और वह परमेश्वर से कुछ भी पाने की अधिकारी नहीं थी। प्रभु के सामने उसने एक कुत्ता होने की अपनी दशा को भी एक सहज रूप में स्वीकार करते हुए यह निवेदन किया था वह बच्चों की मेज़ पर से गिरने वाले चूरे से ही संतुष्ट हेा जाएगी। उसका यह विश्वास था कि प्रभु के हाथ से मिलने वाला एक टुकड़ा भी उसकी बेटी के अन्दर से दुष्टात्मा को निकालने के लिए काफी था। उसका विश्वास कितना अद्भुत था! यीशु ने उसके निवेदन को स्वीकार कर लिया था। उसकी लड़की मीलों दूर थी, लेकिन वह उसी क्षण चंगी हो गई थी। उस दिन उसके वर्षों के आँसू आनन्द और हँसी में बदल गए थे।

प्यारी माता, हमारे अद्भुत प्रभु की खोज करने के लिए आपके लिए यह कितना सुन्दर उदाहरण है। उसने आपके आँसुओं को भी देखा है, और वह आपकी ज़रूरत को भी जानता है। यह हो सकता है कि आपका बच्चा आपसे दूर रह रहा हो। लेकिन आप उसे प्रभु के चरणों में ला सकती हैं और उसे छुटकारा मिल सकता है। प्रभु आपके आँसू पोंछ कर आपके रोने को ख़ुशी में बदलने के लिए कितनी भी दूरी तय कर सकता है। और याद रखें, कि आप कोई कुत्ता नहीं परमेश्वर की बेटी हैं। आप बच्चों की मेज़ पर से गिरने वाले टुकड़े नहीं, बल्कि बच्चों की रोटी खा सकती हैं! इसलिए विश्वास से प्रभु के पास जाएं, और शैतान के धोखे और शिकंजे में फँसी अपनी बेटियों और बेटों के लिए जो चाहें वह माँगें। प्रभु उनमें से हरेक को छुटकारा देगा।

एक बार व्यभिचार में पकड़ी गई एक स्त्री को रोती हुई हालत में फरीसियों द्वारा यीशु के पास लाई गई (यूहन्ना अध्याय 8)। यहूदियों की व्यवस्था के अनुसार उसको पत्थरों द्वारा जान से मार डालना था। इसलिए वे उसे सारे गुरुओं के गुरु के पास लाए कि वे उसे फँसा सकें। अगर वह उसे छोड़ देता है, तो वे उस पर व्यवस्था केा तोड़ने का आरोप लगा सकते थे। अगर वह उसे पत्थरों से मारने की आज्ञा देता, तो वह संवेदनशील होने के अपने अच्छे नाम को बदनाम करता। वह एक ऐसी स्थिति थी जिसमें उसकी हार "निश्चित" थी - "चित मैं जीतूँ, पट तू हारे।" यीशु ने हरेक स्थिति में समझदारी से काम किया था। परमेश्वर की मूर्खता भी मनुष्यों से ज़्यादा बुद्धिमानी-भरी होती है (1 कुरि. 1:25)। यीशु को उसके प्रति सहानुभूति थी क्योंकि वह उन हालातों को जानता था जिनमें फँसकर उसका जीवन ऐसा बन गया था। शायद वह सब उसने अपनी इच्छा से नहीं किया था। किसी पुरुष ने उसे झूठे वादों में फँसा कर फिर उसे धोखा दे दिया होगा। उसके बाद, पुरुष उसे बार-बार इस्तेमाल करके धोखा देते रहे होंगे। उसे इस तरह के जीवन से घृणा हो गई थी। लेकिन वह गुज़र-बसर कैसे कर सकती थी? उसके जीवन का शायद एक दिन भी आँसू बहाए बिना न गुज़रता होगा। लेकिन उसे कौन समझेगा? उसकी मदद कौन करेगा? हाँ, यीशु दोनों ही करेगा। वह उसे समझेगा भी और उसकी मदद भी करेगा।

आज मुझे ऐसी बहुत स्त्रियों के बारे में पता है जिन्हें यीशु के साहसी सेवक ऐसे जीवन में से छुड़ाते हैं, और जो वेश्यावृत्ति का धंधा चलाने वाले अनेक अपराधी गिरोहों का शिकार बनने का ख़तरा उठाते हैं। वेश्यावृत्ति के अड्डों में फँसी उन रोती हुई स्त्रियों ने एक सामान्य जीवन जीने की सारी आशा ही छोड़ दी होती है। उनमें से कुछ ऐसी हेाती हैं जिनका देह-व्यापार करने वालों ने बचपन में ही अपहरण कर लिया होता है। वे यह भी नहीं जानतीं कि उनके माता-पिता कौन हैं और वे कहाँ की हैं। इन स्त्रियों में से अनेक मादक-द्रव्यों का सेवन करने वाली बन जाती हैं और उन्हें अपने नशे की ज़रूरत पूरी करने के लिए वेश्यावृत्ति द्वारा पैसा कमाना पड़ता है। फिर दूसरी ऐसी स्त्रियाँ हैं जो एच-आई-वी रोगी हैं और एक धीमी मौत मर रही हैं। यीशु इन रोती हुई स्त्रियों से हमदर्दी रखता है और उन्हें छुटकारा देना चाहता है। वह आज भी, आपको और मुझे इस सेवकाई में इस्तेमाल करना चाहता है।

उस स्त्री ने (जिसका उल्लेख यूहन्ना 8 में है), यह सोच भी नहीं सकती थी कि अब वह एक दिन के लिए भी जि़न्दा रह सकेगी। उस पर दोष लगाने वालों के सामने खड़े-खड़े भी वह रो रही होगी और इस डर से काँप रही हेागी कि कब पहला पत्थर आकर उसे घायल करेगा। उसने यीशु के मुख पर संवेदना को देखा होगा और याचना से भरी उसकी आँखों में यह आशा होगी कि वह उसकी बात को समझेगा। और उसने समझा था। उसने उसे क्षमा कर दिया और उसे एक नया जीवन देने द्वारा उसकी शिष्या बनने और समाज के लिए उपयोगी होने का मौक़ा दिया। आप चाहे कितनी भी नीचे क्यों न गिर गई हों, वह आपके लिए भी यही कर सकता है। आपके लिए आज उसके शब्द यही हैंः मैं तुझे दोषी नहीं ठहराता। जा, अब पाप मत करना।

पुरानी वाचा में भी, हम एक और वेश्या के बारे में पढ़ते हैं जिसने परमेश्वर की कृपा पाई थी। उसका नाम राहाब था और वह उसके बच्चों के साथ यरीहो नाम के नगर में रहती थी। उसकी नैतिक निष्फलताओं के बावजूद उसका परमेश्वर में भरोसा था। वह भी उसके जीवन पर बहुत रोती होगी और अपने बच्चों की ख़ातिर एक अच्छी स्त्री बनना चाहती होगी। परमेश्वर ने उसकी अभिलाषा को देखा था और इसलिए उसने इस्राएली जासूसों को उसके घर तक पहुँचाया था। उसने उनकी मदद की थी इसलिए पूरे यरीहो नाश होने पर भी उसकी जान बच गई थी। उसने सलमोन नाम के एक इस्राएली से विवाह भी कर लिया था और वह स्वयं यीशु की वंशावली का हिस्सा बन गई थी! उसका नाम अब अब्राहम, मूसा और यहोशू जैसे लोगों के साथ "विश्वास के नायकों" (इब्रा. 11) में शामिल हो गया है! क्या यह एक अद्भुत बात नहीं है! उस पीढ़ी के जिन दो लोगों का नाम इब्रानियों 11 की उस सूची में मिलता है, वह यहोशू और राहाब हैं! परमेश्वर के तरीक़े वास्तव में बड़े अद्भुत हैं। हे मेरी भटकी हुई बहन, परमेश्वर आपके लिए भी ऐसा ही कर सकता है।

हम नाइन नगर में भी एक रोती हुई विधवा पाते हैं। उसका एकलौता जवान बेटा, जो उसके बुढ़ापे का एकमात्र सहारा था, अचानक ही मर गया था। वह स्त्री बिलख-बिलख कर रो रही थी। उसके अपने पुत्र के मुख को बस एक आख़िरी बार और देखने के आग्रह ने उसके दफनाने के समय को भी काफी लम्बा कर दिया था। उसने बड़ी मुश्किल से विलाप करने वालों को उसके शव को घर से उठाकर ले जाने की अनुमति दी थी और अब वह रोती हुई उसकी पीछे-पीछे चली जा रही थी। वह सोच रही होगी कि उसके पुत्र को दफनाने के बाद, अब उसे वह निराशा से भरी रात अपने घर में अकेले ही रोते हुए बितानी पड़ेगी। लेकिन उसे क्या मालूम था कि उसके स्वर्गीय पिता ने उसके लिए कैसा आनन्द रखा हुआ था। उसी समय यीशु ने नाइन में से गुज़रने की योजना बनाई। वह कभी देर नहीं करता। और उसने वह शव-यात्रा रुकवाया, और उस युवक को जीवित करके उसे उसकी माँ को दे दिया। परमेश्वर को आपकी चिंता है, इसलिए, हे प्यारी असहाय विधवा बहन, वह आपके दुःख के समय में भी इसी तरह आएगा।

सभी विधवा बहनों के लिए परमेश्वर के हृदय में ख़ास जगह है। अक्सर पृथ्वी पर उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता। वे असहाय होती हैं और बहुत लोग उनका शोषण भी करते हैं। लेकिन परमेश्वर विधवाओं और अनाथों का परमेश्वर है, और वह कहता है, "अपने अनाथों केा छोड़ जाओ और मैं उन्हें जीवित रखूँगा, और तुम्हारी विधवाएं मुझ पर भरोसा रखें" (यिर्म. 49:11)। तो प्यारी विधवा बहन, निर्भय होकर अपने ईश्वरीय पति और स्वर्गीय पिता के पास जाएं, और अपना अधिकार हासिल करें।

पुरानी वाचा में भी हम एक स्त्री के बारे में पढ़ते हैं जिसका पुत्र मर गया था (2 राजा अध्याय 4)। वह परमेश्वर के नबी एलीशा को ढूंढती हुई गई क्योंकि वह जानती थी कि सिर्फ वही उसकी मदद कर सकता है। उसके लम्बे सफर के दौरान कोई यह न जान सका कि वह भीतर-ही-भीतर रो रही थी। और जब वह एलीशा को मिली तो उसने उसके साथ विश्वास की भाषा बोली, और अपने मरे हुए बच्चे के बारे में कहा, "वह कुशल है" (2 राजा 4:26)। इसलिए इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि उसे उसका पुत्र मृतकों में से सकुशल मिल गया! परमेश्वर ऐसे विश्वास का आदर करता है।

लूका अध्याय 13 में हम एक अपाहिज स्त्री के बारे में पढ़ते हैं। यह स्त्री 18 वर्ष से एक ऐसी विचित्र बीमारी से पीड़ित थी जिसकी वजह से वह कमर से नीचे की तरफ झुकी हुई थी और इसलिए वह सीधी होकर नहीं चल पाती थी। लेकिन वह अपनी पीड़ा और अक्षमता को अनदेखा करके प्रति सप्ताह विश्वासयोग्ता के साथ सभा में जाती थी। यह अच्छा था कि इस सब्त के दिन भी वह सभागृह में थी, क्योंकि परमेश्वर ने उसकी चंगाई के लिए यही दिन ठहराया था। उसे शैतान ने बहुत सालों से बाँध कर रखा हुआ था। उसकी आशाहीन दशा में वह एक पशु के समान चलने पर मजबूर थी। जो शैतान का शिकार हो जाते हैं, वह उनका यही हाल करता है (लूका 13:11-13)। उन 18 सालों में वह रोती हुई सड़कों पर से गुज़रती होगी, और उसका मज़ाक उड़ाने वाले बच्चों के ताने सुनती होगी। वह ऊपर उठकर नहीं देख सकती थी। लेकिन उसका हृदय उसके परमेश्वर की तरफ छुटकारा पाने के लिए उठा रहता होगा। लोगों की नज़र में वह एक दया का पात्र बन गई होगी। लेकिन यह बात भी एक स्त्री को रुलाने वाली बात बन सकती है। शायद कुछ बच्चे उसके बिगड़े हुए झुर्रीदार स्वरूप से डरते भी होंगे। उसने अनेक रातों को रोते हुए परमेश्वर को पुकारा होगा कि वह उसे शैतान की दुष्टता से भरे उसके श्राप से उसे मुक्ति दे। फिर यीशु ने आकर उसे मुक्त कर दिया। यीशु ने उसे आराधनालय में देखा और उसे अपने पास बुलाकर उसकी मुक्ति के ये अनोखे शब्द उससे कहे, "हे नारी, तू अपने रोग से मुक्त हो गई है।" अब वह सीधी खड़ी होकर "ऊपर स्वर्ग की ओर देखकर अपने स्वर्गीय पिता को धन्यवाद दे सकती थी जिसने उसे मुक्त किया था।"

20 शताब्दियों में से गुज़रते हुए, ये शब्द अब आपके पास पहुँचे है, "हे नारी, तू मुक्त हो गई है" (लूका 13:12)।

प्यारी बहन, क्या आप इस शब्द को व्यक्तिगत तौर पर प्रभु की तरफ से आपके लिए आए वचन के रूप में ग्रहण नहीं करेंगी? अब आप परमेश्वर की महिमा करने के लिए ऐसे हरेक बंधन, हरेक पाप, विषाद, बुरे मनोभाव, ईर्ष्या, अहंकार व ऐसी हरेक बात से मुक्त हो गई हैं जिन्हें शैतान ने बीते युगों में स्त्रियों को सताने के लिए तैयार कर रखे हैं। अब आप परम्पराओं के बंधनों से, अपने बुरे गुस्से से, अपनी कड़वाहट से, अपनी बेलगाम ज़बान से, अपनी कड़वाहट से, अपनी क्षमा-न-कर-पाने की प्रवृत्ति से, आपके विद्वेषों से, और हरेक शैतानी शक्ति से जिसने इतने लम्बे समय से आपको बांध कर रखा हुआ है। अब सीधी खड़ी होकर परमेश्वर की महिमा करें।

उसकी सेवा करें। अब आपको अपने गौरव को एक नीची नज़र से देखते हुए नहीं चलना है। चाहे दूसरे आपको तुच्छ समझें और आपका मूल्य न जानें, फिर भी आप परमेश्वर के लिए मूल्यवान हैं। आज से परमेश्वर का हाथ आपके जीवन के ऊपर है।

"परमेश्वर का पुत्र शैतान की लगाई हुई हरेक गाँठ को खोलने के लिए आया है" (1 यूहन्ना 3:8 - भावानुवाद)।

"अगर पुत्र तुम्हें मुक्त करेगा, तो तुम वास्तव में मुक्त हो जाओगे" (यूहन्ना 8:36)।

यीशु ने उस स्त्री को अब्राहम की पुत्री कहा था। हम भी अब्राहम की पुत्रियाँ हैं। 1 पतरस 3:6 के अनुसार, हम विश्वास करने वाली उस सारा की बेटियाँ हैं, जिसे हमारे लिए इस वचन में एक उदाहरण के रूप में दिया गया है। जिस बच्चे की उससे प्रतिज्ञा की गई थी, वह उसे एक अद्भुत रीति से मिला था। वह भी उसका विवाह हो जाने के बाद, एक बाँझ स्त्री के रूप में बहुत सालों रोती रही होगी। उसने प्रतिज्ञा किए हुए पुत्र का बहुत इंतज़ार किया था, और बहुत बार वह उसकी आशा छोड़ देने की परीक्षा में पड़ी होगी। उन दिनों एक स्त्री का बांझ होना एक बड़ी लज्जा की बात होती थी (जैसा कि आज भी भारत के अनेक भागों में है)। गर्व से भरी अनेक माताओं ने सारा को चिढ़ाया होगा और उसने दूसरों की बहुत सी टीका-टिप्पणियाँ सुनी होंगी। वह अपने तम्बू में जाकर परमेश्वर के सामने रोती होगी। और उसने उसके आँसुओं को देखा और उसे जवाब दिया। इसलिए आँसुओं के साथ प्रार्थना करना न छोड़ें। कभी अपना विश्वास न खोने दें। हे विश्वास करने वाली नारी, परमेश्वर शीघ्र ही आपकी प्रार्थना का जवाब देगा।

यह उचित ही है कि मैं अपनी बात रोती हुई उस पापी स्त्री की सुन्दर कहानी के साथ पूरी करूँ जो संगमरमर के एक पात्र में जटामासी का बड़ा मूल्यवान इत्र लेकर आई थी, उसने उसे तोड़ा था, यीशु के ऊपर उण्डेला था, और धूल से भरे उसके पाँवों को अपने आँसुओं से भिगो कर उन्हें बालों से पोंछा था। (वे थकान से भरे पाँव मेरे और आपके लिए भी फिलिस्तीन की धूल से भरी सड़कों पर आपके और मेरे लिए भी चले हैं।) यीशु ने उसके आँसुओं को देखा, उसके पश्चाताप् को देखा, उसके पापमय जीवन को त्याग देने की उसकी अभिलाषा को देखा, और परमेश्वर द्वारा स्वीकार किए जाने की उसकी लालसा को देखा। उसने उसके आँसुओं के पीछे छुपे सारे कारणों को भी देखा। वहाँ मेज़ पर धार्मिक अगुवों ने उसे सिर्फ एक पापी के रूप में देखा। वे उसका बाहरी रूप देख रहे थे। यीशु ने वह देखा जो उसके हृदय में था। उसके बहुत से पाप क्षमा किए गए थे, इसलिए उसने बहुत प्रेम किया था। संगमरमर का वह पात्र (जिसे ख़रीदने में उसने अपनी जीवन-भर की कमाई ख़र्च कर दी होगी), उसके प्रेम का प्रतीक था। उसने अपने प्रेम की सुगन्ध को न सिर्फ उस दिन उस घर में भर दिया था, बल्कि अपनी कहानी के द्वारा 20 शताब्दियों तक दूसरी कितनी स्त्रियों के हृदय में भर दिया था।

यीशु ने उसे क्षमा, उद्धार और शांति दी। और फिर उसने भोज में बैठे सभी मेहमानों को एक ऐसे देनदार स्वामी का दृष्टान्त सुनाया जिसने उसके दो कज़र्दारों का क़र्ज माफ कर दिया था - एक जो उसका एक छोटी रक़म का कज़र्दार था और दूसरा जो एक बहुत बड़ी रक़म का कज़र्दार था। फिर यीशु ने पूछा, "उन दोनों में से कौन उस देनदार से ज़्यादा प्रेम करेगा?" और फिर उस पापी स्त्री की तरफ इशारा करते हुए उसने कहा था कि उस स्त्री ने उससे सबसे बढ़कर प्रेम किया था क्योंकि "उसके बहुत पाप क्षमा हुए थे।"

यीशु ने दूसरे लोगों को स्वर्ग के राज्य के अनेक अद्भुत सत्य सिखाने के लिए पापी और पीड़ित स्त्रियों को इस्तेमाल किया था। वह आज हमारे देश भारत में स्त्रियों की दशा को समझता है, और वह हमें ऊँचा उठाने के लिए आया है, और हमें आशा और यह जानकारी देने आया है कि हम परमेश्वर की नज़र में बहुत मूल्यवान हैं। जो भी उसके पास आता है, उसे वह कभी अस्वीकार नहीं करता। जब वह पृथ्वी पर था, तो अपनी ज़रूरत में जो भी स्त्री उसके पास आई, उसने उसकी मदद की, और वह आज भी वैसा ही है।

हे मेरी सह-नारी, हम सभी को बहुत सी बातों में क्षमा मिली है। इस वजह से ही हमें प्रभु से बहुत प्रेम करने की ज़रूरत है। अब वह अपने अद्भुत सत्यों को हमारे आसपास रहने वालों पर प्रकट करने के लिए हमें इस्तेमाल करना चाहता है।

इसलिए, हे सिय्योन की (भारतीय) पुत्री, जाग उठ और अपना बल धारण कर। अपने शोभायमान वस्त्र पहन ले। धूल में से उठ खड़ी हो। अपनी गर्दन पर से गुलामी का जुआ तोड़ दे। तेरा प्रकाश ज्योतिर्मय हो, क्योंकि प्रभु की महिमा तुझ पर उदय हुई है" (यशा. 52:1,2; 60:1 - लिविंग)।