द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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यीशु ने सिर्फ़ दो बार ही कलीसिया के बारे में बात की थी – मत्ती 16:18 और 18:17-20 में। और इन दोनों अवसरों पर उसने शैतान के कलीसिया के विरुद्ध लड़ने की बात कही। पहले संदर्भ में, यीशु ने कहा कि शैतान कलीसिया पर आत्मिक मृत्यु की शक्तियों – दुष्टआत्माओं द्वारा प्रत्यक्ष हमला करता है। दूसरी बार, उसने कहा कि शैतान ऐसे एक भाई द्वारा अप्रत्यक्ष रूप में कलीसिया को भ्रष्ट करता है जिसे उसने भरमाया व अपने क़ब्ज़े में कर लिया है, और जो अनजाने ही उसका एजेंट (प्रतिनिधि) बन गया है। लेकिन शैतान चाहे जो भी तरीक़ा अपनाए, प्रभु ने हमें यह अधिकार दिया है कि हम उसके शैतानी काम को बांधें और उसके द्वारा बंदी बनाए गए लोगों को मुक्त करें (मत्ती 16:19, 18:18, 2 तीमु 2:26)। हमें पूरे साहस के साथ इस अधिकार को कलीसिया में इस्तेमाल करना चाहिए।

यीशु ने कहा कि जो कलीसिया वह बनाएगा, उसकी पहचान की एक ख़ास निशानी होगी: वह अधोलोक के फाटकों (आत्मिक मृत्यु की शक्तियों) पर प्रबल होगी। दूसरी ओर, अगर कलीसिया पर ही आत्मिक मृत्यु की शक्तियां प्रबल होने लगे – अर्थात ईर्ष्या, या झगड़ा, या प्रतियोगिता की आत्मा, या आदर-सम्मान पाने की लालसा, या अनैतिकता, या धन का प्रेम, या सांसारिकता, या कड़वाहट, या गर्व, या अहंकार, या फरीसिवाद, आदि। तब हम यक़ीन के साथ यह कह सकते हैं कि यह वह कलीसिया नहीं है जिसका निर्माण यीशु कर रहा है।

शैतान लगातार कलीसिया को नाश करना चाहता है। और अक्सर, यह काम वह कलीसिया में अपने प्रतिनिधियों को भेजने द्वारा करता है। यहूदा ऐसे लोगों के बारे में बात करता है जो “चुपके से कलीसिया में घुस आए हैं” (यहूदा 4)। उन गिबोनियों की तरह जिन्होंने यहोशू को धोखा दिया था (यहोशू 9), ऐसे बहुत से लोग है जिन्होंने प्राचीनों को धोखा दिया है और शिष्य होने का दिखावा करते हुए चुपके से कलीसिया में घुस आए हैं। लेकिन ये लोग प्राचीनों को धोखा देने में कैसे सफल हो सके? इसकी वजह शायद यह रही होगी कि प्राचीन या तो इनके धन द्वारा ख़रीदे गए थे, या वे इनके सांसारिक पद-प्रतिष्ठा से प्रभावित हुए थे। सभी बेबीलोनी धर्म मतों में, सांसारिक पद-प्रतिष्ठा और धन संपत्ति वाले लोग ही प्राचीन न होने पर भी उनकी मंडली के फैसलों को प्रभावित करते हैं। लेकिन हमारे बीच में ऐसा नहीं होना चाहिए। लेकिन अगर हम सचेत नहीं होंगे, तो गिबोनी कलीसिया में भी घुस आएंगे।

हम प्रभु की स्तुति करते हैं कि ऐसे शैतानी हमलों से हमें बचाए रखने के लिए वह हमारी निरंतर देखभाल करता रहता है। “अगर प्रभु ही नगर की रक्षा न करें, तो पहरेदार का जागना व्यर्थ है” (भजन 127:1)। जहाँ सब भाई आपस में एक होकर रहते हो, प्रभु सिर्फ़ वहाँ अपनी आशीष भेज सकता है (भजन 133:1,3) – और सिर्फ़ एकता से भरपूर कलीसिया ही अधोलोक के फाटकों पर प्रबल हो सकती है। इसलिए हमें उस एकता में बनाए रखने के लिए पवित्र आत्मा हमारे बीच में सामर्थ के साथ काम करता है।

प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में दिए गए 7 स्वर्ग के दृश्यों की झांकियों में, हम स्वर्ग के वासियों को एक ऊँचे स्वर से परमेश्वर की स्तुति निरंतर करते हुए सुनते हैं – कभी बादलों की गर्जना जैसी ऊँची आवाज़ में और कभी महाजलनाद की तरह। यह स्वर्ग का वातावरण है – कोई अपेक्षा या शिकायत बिना, लगातार स्तुति का वातावरण। और यही वह वातावरण है जो पवित्र आत्मा हमारे ह्रदयों में, हमारे घरों में और हमारी कलीसियाओं में लाना चाहता है। इस तरह से ही शैतान इन सभी जगहों से निकाला जाएगा।

शैतान ने मसीहियों के एक बड़े बहुमत को उसके ख़िलाफ़ होने वाले आत्मिक युद्ध में प्रभावहीन और लकवाग्रस्त कर दिया है क्योंकि शैतान ने उन्हें उनके भाइयों व बहनों के ख़िलाफ़, उनके संबंधियों और पड़ोसियों के ख़िलाफ़, उनके हालातों के ख़िलाफ़ और स्वयं परमेश्वर के ख़िलाफ़ भी कुड़कुड़ाने और शिकायत करने वाली आत्मा से ग्रसित कर दिया है।

प्रकाशितवाक्य 12:8 में एक अदभूत वचन लिखा है कि शैतान और उसके दूतों को स्वर्ग में कोई स्थान नहीं मिला। हमारे जीवन में, हमारे ह्रदयों में, हमारे घरों में, और हमारी कलीसियाओं में भी ऐसा ही होना चाहिए। शैतान और उसके दूतों को इन सभी स्थानों में कोई जगह नहीं मिलनी चाहिए।

हम शैतान पर तभी जय पाते हैं, जब हम इस उपदेश का पालन करते हैं: “मसीह की शान्ति तुम्हारे ह्रदयों में राज़ करे जिसके लिए तुम वास्तव में एक देह होने के लिए बुलाए गए हो; और धन्यवादी बने रहो” (कुलुस्सियों 3:15)“सब मनुष्यों के लिए धन्यवाद अर्पित किया जाए” (1 तीमुथियुस 2:1)“सदैव सब बातों के लिए हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से परमेश्वर पिता को धन्यवाद दो” (इफिसियों 5:20)। हमें सबसे पहले उन सब लोगों के लिए धन्यवाद देने के लिए उत्साहित किया गया है जिन्हें परमेश्वर ने मसीह की देह में बुलाया है। अगर यह चुनाव हम पर छोड़ दिया जाता, तो हम ऐसे बहुत से लोगों को नहीं बुलाते जिन्हें परमेश्वर ने बुलाया है – ख़ास तौर पर उन्हें जो हमारे समूह के न होकर किसी दूसरे समूह के हैं! लेकिन परमेश्वर की बुद्धि क्योंकि हम से ऊँची है, वैसे ही जितना आकाश पृथ्वी के ऊपर ऊँचा है, तो यह स्पष्ट है कि उनके बारे में परमेश्वर के विचार हमारे विचारों से अलग है। और अगर हम समझदार है, तो हम अपने विचार परमेश्वर की सोच के साथ एक कर लेंगे। एक बार जब हम मसीह की देह में अपने भाईयों व बहनों के लिए धन्यवाद देने वाले हो जाएंगे, तो हम सब मनुष्यों और हमारे सारे हालातों के लिए भी धन्यवाद देने वाले हो जाएंगे। हम जानते हैं कि हमारा स्वर्गीय पिता सभी मनुष्यों और सभी हालातों को उसके नियंत्रण में रखता है और उसकी उन पर पूरी प्रभुसत्ता है। अगर हमारा वास्तव में इस बात पर विश्वास होगा, तो हम अवश्य ही हर समय परमेश्वर की स्तुति करने वाले होंगे और इस तरह हम यह साबित कर देंगे कि हमारा राज्य इस संसार का नहीं बल्कि स्वर्ग का है। और इस तरह शैतान हम पर अपनी शक्ति को खो देगा। सिर्फ़ तभी ऐसा होगा कि हम उसके ख़िलाफ़ एक प्रभावी युद्ध कर सकेंगे।