द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   चेले आत्मा भरा जीवन
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जैसे हम एक नया साल शुरू करते हैं, तो इस साल हमारे आत्मिक जीवन में जो प्राथमिकताएँ होनी चाहिए, उनके बारे में गंभीरता से सोचना अच्छा है। यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं। उन पर गंभीरता से विचार करें - और प्रार्थना करें कि वे सभी आपके जीवन में पूर्ण हों। प्रभु आपकी सहायता करें।

1 एक नई शुरुआत करें: लूका 15 में, उड़ाऊ पुत्र की कहानी में, हम पढ़ते हैं कि पिता ने उसके पुत्र के लिए सबसे अच्छा वस्त्र निकाला जिसने उसे इतनी बुरी तरह विफल कर दिया था। यह सुसमाचार का संदेश है: परमेश्वर अपना सर्वश्रेष्ठ उन्हें भी देता है जो असफल हो गए हैं। वे भी एक नई शुरुआत कर सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर कभी किसी पर हार नहीं मानता। यह उन लोगों के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन है जो अतीत में असफल रहे हैं। आपकी जो भी ग़लतियाँ या असफलताएं रही हों, आप अब परमेश्वर के साथ एक नई शुरुआत कर सकते हैं, जैसे ही आप एक नया साल शुरू करते हैं।

2 अनुशासित रहें: 2 तीमुथियुस 1:7 में पौलुस कहता है, "परमेश्वर ने हमें सामर्थ्य, प्रेम और संयम का आत्मा दिया है" । परमेश्वर का आत्मा हमें सामर्थ्य, दूसरों के लिए प्रेम और स्वयं को अनुशासित करने में सक्षम बनाता है। आपको पवित्र आत्मा का चाहे जो भी अनुभव रहा हो, लेकिन अगर आप पवित्र आत्मा को स्वयं को अनुशासित करने की अनुमति नहीं देंगे - आपके समय और आपके धन को एक अनुशासित रूप में खर्च करने और आपकी बातचीत को अनुशासित करने में - तो जो परमेश्वर आपको बनाना चाहता है, वह आप कभी न बन सकेंगे। कलीसिया के इतिहास में, ऐसे पुरुष व स्त्रियाँ ही परमेश्वर के सबसे महान सेवक हुए है जिन्होंने पवित्र-आत्मा को यह अनुमति दी कि वह उनके जीवन को अनुशासित करे। वे उनकी सोने की आदतों में, खाने-पीने की आदतों में, प्रार्थना में और पवित्र-शास्त्र के अध्ययन में अनुशासित किए गए। उन्हें अपनी सारी सांसारिक इच्छाओं से ऊपर परमेश्वर को रखने के लिए अनुशासित किया गया। अनेक मसीही उनके जीवन में पवित्र-आत्मा का बपतिस्मा पाकर संतुष्ट हो जाते हैं और वे यह मान लेते हैं कि उसके बाद उनके जीवन में सब कुछ आराम से चलता जाएगा। अगर आपको इस साल अपने जीवन के लिए परमेश्वर की इच्छा पूरी करनी है, तो आपको अनुशासित भी होने की जरूरत है।

3 आग को जलते रहने दे: तीमुथियुस के पास विश्वास और आत्मिक वरदान थे और फिर भी पौलुस ने उसे यह याद दिलाया, “मैं तुझे स्मरण दिलाता हूँ कि परमेश्वर के उस वरदान को प्रज्वलित कर दे जो मेरे हाथ रखने द्वारा तुझे प्राप्त हुआ था (2 तीमुथियुस 1:6)।" पवित्र आत्मा भीरुता (डर) का आत्मा नहीं है। पौलुस ने उसे उत्साहित करते हुए कहा कि वह उस आग को बुझने से बचाए रखने के लिए उसे कुरेद कर फिर से प्रज्वलित करता रहे। इससे हम सीखते हैं कि हालांकि यीशु हमें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देता है (मत्ती 3:11), फिर भी उस आग को हमेशा प्रज्वलित रखने के लिए हमें कुछ करना पड़ता है। परमेश्वर आग लगाता है। हमारा काम उसमें ईंधन डालते रहना है - एक ऐसा जीवन जो पूरी तरह से हर समय परमेश्वर की इच्छा के लिए समर्पित हो। यह न सोच लें कि परमेश्वर ने क्योंकि आपका एक बार अभिषेक किया था इसलिए अब आप आराम से यह कह सकते हैं, "एक बार अभिषिक्त, हमेशा के लिए अभिषिक्ता"। यह इतनी ही बड़ी भूल करना है जैसे यह कहना, “एक बार उद्धार, हमेशा के लिए उद्धार”। मैने ऐसे लोग देखे हैं जिनका वास्तव में परमेश्वर ने अभिषेक किया था, लेकिन एक साल बाद वे आत्मिक तौर पर मरे हुए थे। आग बुझ गई। सांसारिक दिलचस्पियों और घमण्ड ने आकर आग को बुझा दिया। अब वे धन और एक सुख-सुविधा भरे जीवन के पीछे भाग रहे है और उनके अन्दर से परमेश्वर की आग बुझ गई है। यह एक दुःखद बात है और परमेश्वर के राज्य के लिए बड़ी हानि है। इसलिए पौलुस ने तीमुथियुस से कहा, “जो आग तुझ पर उतरी थी, उसे दहकने दे, उसे जलाए रख। अब यह तुझ पर निर्भर है। अगर तू उसे जलाए न रखेगा तो वह बुझ जाएगी। उसे अच्छे विवेक द्वारा, परमेश्वर के वचन के अध्ययन द्वारा, लगातार स्वयं को नम्र व दीन करने द्वारा, पूरे हृदय से परमेश्वर को खोजने द्वारा, धन के प्रेम से दूर रहने द्वारा, दूसरे लोगों से वाद-विवाद न करने द्वारा, और उसे बुझा सकने वाली ऐसी हरेक बात से दूर रहने द्वारा उस आग को जलाए रख।'

4 स्थिर/लगातार आत्मिक प्रगति करें: इब्रानियों 6:1-3 में, हमें परिपक्वता की ओर बढ़ते रहने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। परिपक्वता में बढ़ने की तुलना एक पहाड़ पर चढ़ने से करें (जो लगभग 10,000 मीटर ऊँचा है)। यीशु पहले ही उसके शिखर पर पहुँच चुका है। जब हमारा नया जन्म होता है तो हम उस पहाड़ के नीचे से शुरुआत करते हैं। हमारा लक्ष्य यीशु के पीछे पीछे शिखर तक जाना है, चाहे इसमें कितना भी समय क्यों न लगे। अगर हमने सिर्फ़ 100 मीटर की ऊँचाई भी हासिल कर ली होगी, तो हम अपने भाइयों व बहनों से यह कह सकेंगे, “मेरे पीछे चलो जैसे मैं यीशु के पीछे चल रहा हूँ” (1 कुरिन्थियों 11:1)। आत्मिकता कोई ऐसी चीज नहीं है जो परमेश्वर के साथ एक मुलाकात से आती है। यह स्वयं के प्रति मरने का मार्ग चुनने और परमेश्वर की इच्छा को लगातार दिन-ब-दिन, सप्ताह-दर-सप्ताह और साल-दर-साल करने का परिणाम है। यह उसकी स्व:इच्छा का लगातार इनकार था जिसने यीशु को एक आत्मिक व्यक्ति बनाया। और यह हमारी स्व:इच्छा का निरंतर इनकार है जो हमें आत्मिक बनाएगा। 1 तीमुथियुस 4:15 में, पौलुस तीमुथियुस से आग्रह करता है कि, “इन बातों के लिए प्रयत्नशील रह”। एक व्यापारी पैसा कमाने और अपना काम धंधा ज़माने के लिए बहुत मेहनत करता है। अगर आप मसीही जीवन के प्रति गंभीर होंगे, तो आप भी पवित्र शास्त्र का अध्ययन करने, पवित्र आत्मा के दान वरदान पाने और अपने जीवन में से हरेक अशुद्धता को दूर करने के लिए बड़ा प्रयत्न करेंगे। इस पद के एक अनुवाद में लिखा है: “इन बातों में डूबे रहो”। जब आप इन बातों में डूबे रहेंगे, तो आपकी प्रगति सबको नज़र आएगी। यीशु मसीह और उसके वचन में इस कदर लीन हो जाइए कि इस संसार के प्रलोभन हमें आकर्षित न करें। और हम उन बहुत सी चीजों का पीछा नहीं करेंगे जिनका सांसारिक लोग पीछा करते हैं। यदि आप इस तरह "डूबा हुआ" जीवन जीते हैं, तो आप लगातार उन्नति करेंगे। हर साल आप एक बेहतर मसीही और प्रभु के अधिक प्रभावी सेवक होंगे।

5 जयवंत बने: इब्रानियों 12:1-3 में, हमें उस दौड़ में धीरज के साथ दौड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जो हमारे सामने है, अपनी आँखें यीशु पर लगाते हुए जो हमारे विश्वास का कर्ता और सिद्ध करने वाला है। हम उसकी ओर देखते हुए इस दौड़ को दौड़ते हैं। हम निश्चल/स्थिर नहीं खड़े रहते। विश्वास की दौड़ ऐसी है जिसमें आप एक जगह खड़े नहीं रह सकते। समय थोड़ा है, इसलिए आपको दौड़ना है। अगर आप गिर जाएं, तो उठ कर फिर दौड़ें। ऐसे बहुत से दौड़ने वाले (धावक) हैं जो दौड़ के बीच में गिरे, लेकिन उठ कर फिर दौड़े और प्रथम आए । इसलिए प्रभु के संग-संग चलने में अगर आप कभी गिर जाएं तो निराश न हो जाएं। वहीं पड़े न रहें। उठें, अपने पाप का अंगीकार करें, और अपनी दौड़ को जारी रखें। यीशु की ओर देखें जिसने क्रूस को सहा और अपने जीवन के अंत तक दौड़ता रहा। जब बहुत से शत्रु आपका विरोध करें, तो यीशु पर अपना ध्यान लगाए रहें जिसका विरोध करने वाले बहुत से शत्रु थे (इब्रानियों 12:3)। पाप के ख़िलाफ संघर्ष करते हुए आप अभी तक उस बिन्दु पर नहीं पहुँचे हैं जहाँ आपने उसकी तरह लहू बहाया हो (इब्रानियों 12:4)। यहाँ हम देखते हैं कि यीशु ने पाप से संघर्ष किया था। दूसरे शब्दों में, पाप के प्रति उसका मनोभाव यह था, "मैं पाप करने की बजाय अपना लहू बहा देना ज़्यादा उत्तम समझूँगा" अगर आपका भी यही मनोभाव होगा - कि आप पाप करने की बजाय मर जाना ज्यादा उत्तम समझेंगे, तो आप जय पाने वाले होंगे। जब आप झूठ बोलने के लिए प्रलोभित हों, और आप तब यह कहें कि, "मैं झूठ बोलने की बजाय मर जाना ज़्यादा उत्तम समझूँगा," तो आप जय पाने वाले होंगे। जब आप ज़्यादा धन कमाने के लिए थोड़ी बेईमानी करने के लिए प्रलोभित हों, और आप यह कहें कि, "मैं मामूली सी भी बेईमानी करने की बजाय मर जाना ज़्यादा उत्तम समझूँगा," तो आप जयवंत होंगे। जब आप किसी स्त्री को देखकर प्रलोभित हों, और आप यह कहें कि, “मैं वासनापूर्ण लालसा करने की बजाय मर जाना ज़्यादा उत्तम समझूँगा," तब आप जय पाएंगे। यह एक जयवंत जीवन जीने का रहस्य है।

6 परमेश्वर के प्रेम में सुरक्षित रहें: सपन्याह 3:17 में "वह अपने प्रेम में विश्राम करेगा" शब्दों का अनुवाद इस प्रकार किया गया है: "वह चुपचाप आपके लिए प्रेम में योजना बना रहा है"। क्या आप महसूस करते हैं कि हर एक चीज जिसे परमेश्वर आपके जीवन में प्रवेश करने की अनुमति देता है, वह एक ऐसे हृदय से आता है जो आपके लिए प्रेम में योजना बना रहा है? आपके जीवन में आने वाली हर परीक्षा और समस्या की योजना आपके सर्वोत्तम भलाई के लिए बनाई गई है। यदि आप रोमियों 8:28 पर विश्वास करते हैं, तो आप जीवन भर लोगों या परिस्थितियों से फिर कभी नहीं डरेंगे। आप इस डर में नहीं जीएंगे कि कहीं आप के साथ दुर्घटना न हो जाए, या कैंसर से आपकी मृत्यु न हो जाए, या मसीही-विरोधी कट्टरपंथियों से या किसी अन्य भय से आपको नुकसान न पहुंचे - क्योंकि आपका स्वर्गीय पिता सब कुछ और सभी को नियंत्रित करता है।

हम चाहते हैं कि यह वर्ष आपका वास्तव में एक आत्मिक उन्नति का आशीषित वर्ष हो।