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परमेश्वर ने उस दिन (अगस्त 1993) मेरा जीवन बचाया जब मैं अपनी मोपेड पर से रेल की पटरी पर फेंक दिया गया था। रेल का फाटक बंद करने वाला व्यक्ति नया था और उसने मेरे पार करने से पहले ही दूसरी तरफ का फाटक गिरा दिया था जो मेरी छाती पर लगा और मैं रेल की पटरी पर जा गिरा था। मैं कुछ देर तक बेहोश भी रहा था- मुझे नहीं मालूम कितनी देर तक। किसी ने ट्रेन आने से पहले ही मुझे उठा लिया था। अब मैं ऐसा महसूस करता हूँ मानो मैं मर कर ज़िन्दा हुआ हूँ (क्योंकि मेरा वह गिरना घातक हो सकता था)।

वह घटना मुझे फिर से यह याद दिलाने के लिए थी कि मेरे जीवन के बाकी दिन मेरे नहीं परमेश्वर के हैं। मैं अपना समय, ऊर्जा या धन जैसे चाहूँ वैसे ख़र्च नहीं कर सकता। मैं जो चाहूँ वह नहीं पढ़ सकता। मैं जो चाहूँ वह बोल नहीं सकता। सब कुछ इससे तय होगा कि परमेश्वर की महिमा किन बातों में होती है। ऐसा जीवन जीना मुश्किल नहीं होता (शैतान हमें इसी धोखे में रखना चाहता है), बल्कि एक व्यक्ति के लिए यह सबसे महिमामय जीवन होता है - क्योंकि हमारा प्रभु भी ऐसे ही रहा था। आपको भी सड़कों पर ऐसे अनुभव हुए होंगे जिसमें आपकी जान जाने का ख़तरा था। लेकिन परमेश्वर के दूतों ने आपको बचाया था। इसलिए आप भी मेरी ही तरह परमेश्वर के कर्जदार हैं। हमारे जीवन बचाने के लिए परमेश्वर की स्तुति हो। हम अपने जीवन अब ऐसे बिताएं मानो हम मृतकों में से जीवित किए गए हैं।

मेरा जो हाथ और कंधा उस दुर्घटना में घायल हुए थे, वे तीन सप्ताह के अन्दर ही 95% अपनी सामान्य दशा में आ गए थे। वह एक चमत्कार था जिसके लिए मैं परमेश्वर को धन्यवाद देना चाहता हूँ। उन तीन सप्ताहों में जो बातें मैंने सीखीं, उनमें से एक यह थी जीवन की सामान्य बातों को - जैसे प्रभु की स्तुति करने के लिए अपना हाथ उठाने को भी, जो उन 3 सप्ताहों में मैं नहीं कर सका था - मुझे एक साधारण बात नहीं समझना है। मेरे 54 सालों में पहली बार, मैंने अपने दोनों हाथ उठाकर परमेश्वर की स्तुति करने के लिए उसे धन्यवाद दिया। उससे पहले मैं इस मुद्रा को एक साधारण बात समझता रहा था। तब मैं अपनी देह के दूसरे अंगों जैसे मेरी आँखों, कानों और जीभ, आदि के इस्तेमाल के लिए भी आभारी हुआ।

हमें हरेक बात के लिए परमेश्वर का आभार व्यक्त करना सीखना चाहिए। मछली के पेट के अन्दर से योना की प्रार्थना में से बहुत कुछ सीखा जा सकता है (योना 2 )। वह हालांकि एक तंग जगह थी, जिसमें मछली के पेट के द्रव्य उस पर गिर रहे होंगे, फिर भी योना ने उस हालत में होने के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया। और जब उसने परमेश्वर को धन्यवाद दिया, तब परमेश्वर ने मछली को उसे सूखी भूमि पर उगल देने की आज्ञा दी (योना 2:9,10 ध्यान से पढ़ें)।

इसलिए कभी अपने घर या भोजन या हालातों के बारे में शिकायत न करें। उनके लिए धन्यवादी रहें। अनेक बच्चे तब तक अपने माता-पिता और घर के लिए धन्यवाद नहीं देते जब तक वे बाहर के संसार में निकल कर यह नहीं देख लेते कि जीवन कितना कठिन होता है। धन्यावाद से भरी एक आत्मा आपको बहुत से बंदीगृहों में से मुक्त करा सकती है वैसे ही जैसे योना को मुक्ति मिली थी।