WFTW Body: 

परमेश्वर घमण्डी का विरोध करता है लेकिन दीन पर कृपा करता है। अगर हम परमेश्वर के सामर्थी हाथ के नीचे स्वयं को दीन करेंगे, तो वह उचित समय पर हमें उन्नत करेगा (1 पतरस 5:5,6)।

उन्नत होने का अर्थ यह नहीं है कि हम इस संसार में महान् व्यक्ति बन जाते हैं या हम मसीही जगत में मनुष्यों से आदर पाते हैं। यह आत्मिक रूप में उन्नत होने की बात है जिसमें हमारे जीवन में परमेश्वर की इच्छा और सेवा पूरी करने के लिए हमें आत्मिक अधिकार दिया जाता है। लेकिन इस तरह से उन्नत होना हमारे नम्र व दीन होने पर निर्भर होगा।

हम जानते हैं कि यह जगत ऐसे लोगों से भरा पड़ा है जो अपने आपको दूसरों की नज़रों में ऊँचा और ऊँचा उठाना चाहते हैं। हरेक राजनेता और व्यापारी अपने आपको ऊँचा उठाना चाहता है। दुर्भाग्यवश, जो अपने आपको मसीह के सेवक कहते हैं, वे भी अपने आपको ऊँचा और ऊँचा उठाना चाहते हैं। वे अपने नाम के आगे 'रैव्ह० डॉक्टर' जैसी भव्य उपाधियाँ, और अपनी संस्थाओं में 'चेयरमैन' जैसी पदवियाँ चाहते हैं। यह अफसोस की बात है कि आज मसीही जगत और संसार के किसी व्यापारिक संगठन में कोई फर्क नहीं है!

युवा विश्वासी अपने अगुवों को फिल्मी सितारों की तरह सार्वजनिक सभाओं में बड़े-बड़े मंचों पर प्रकाश-पुञ्जों के बीच खड़े हुए, महँगे होटलों और घरों में रहते हुए, और महँगी कारों में घूमते हुए देखते हैं। परमेश्वर के मार्गों के बारे में ज़्यादा कुछ न जानते हुए, वे ऐसे अगुवों के प्रशंसक बन जाते हैं और उस दिन की बाट जोहने लगते हैं जब वे भी उन्हीं की तरह उन ऊँचाइयों पर पहुँच पाएंगे! वे सोचते हैं कि इस तरह से आशिषित होने के लिए ये प्रचारक बहुत वर्षों तक परमेश्वर के प्रति बहुत विश्वासयोग्य रहे होंगे ! और वे कल्पना करते हैं कि विश्वासयोग्य रहकर, वे भी एक दिन ऐसे मंचों पर सुर्खियों में खड़े होंगे!

जब युवा लोग प्रचारकों को उपहार के रूप में बहुत सा धन कमाते हुए देखते हैं, तो वे उस दिन का इंतज़ार करने लगते हैं जब वे भी उनकी तरह धनवान हो सकेंगे। इन युवाओं का आदर्श यीशु मसीह नहीं बल्कि ये धनवान फिल्मी सितारों जैसे प्रचारक हैं। आज मसीही जगत की यह एक दुःखद घटना है।

अपने युवाओं के सामने हमें अपने जीवन प्रदर्शित करने हैं और अपने शब्दों के द्वारा उन्हें यह सिखाना है कि अगर हम यीशु के पीछे चलते हैं तो हम धनवान या प्रसिद्ध नहीं लेकिन ईश्वरीय बनते हैं।

और इसके साथ ही हमें गलत समझा जाएगा, अपमानित किया जाएगा, और सताया जाएगा! लेकिन हम उन्हें प्रेम कर सकेंगे जो हमसे घृणा करते हैं, और उन्हें आशिष दे सकेंगे जो हमें श्राप देते हैं। अगली पीढ़ी के सामने हमें यह दिखाने की ज़रूरत है। अगर हम यह नहीं करेंगे, तो वे 'किसी अन्य यीशु' के पीछे चल देंगे जो आज वे इन शारीरिक प्रचारकों में देखते हैं।

अपने आपको परमेश्वर के सामर्थी हाथ के नीचे दीन करने का अर्थ यही है कि परमेश्वर हमारे जीवन में चाहे जैसे भी हालात तैयार होने दे, हम आनन्द-पूर्वक उन्हें स्वीकार कर लें। हम उन हालातों को हमें नम्र व दीन करने देते हैं, कि हम 'छोटे' होते जाएं और वह 'बड़ा' होता जाए। जब हम लोगों की नज़र में छोटे होते जाते हैं तो वे हम पर निर्भर होकर नहीं जीते बल्कि प्रभु पर निर्भर हो जाते हैं।

हममें यह लालसा होनी चाहिए कि हममें मसीह बढ़े और हम घटे परमेश्वर हमें घटाने के लिए बहुत से हालातों में से गुज़ारता है कि फिर मसीह हम में बढ़ सके। अगर उन हालातों में हम अपने आपको नम्र व दीन करेंगे तो परमेश्वर का ठहराया हुआ उद्देश्य हममें पूरा होगा।

अपने आपको नम्र व दीन करने का अर्थ है उन सबसे क्षमा माँगना जिनके साथ हमने गलत किया है। प्रभु के सेवक होते हुए, हमें सब लोगों के सेवक होना है और उनके सामने झुकने के लिए तैयार रहना है कि फिर हम उन्हें आशिष दे सकें। जब हम गलती करें, तो उसे स्वीकार कर लेने में हमें देर नहीं करनी चाहिए और जहाँ ज़रूरी हो वहीं क्षमा माँग लेनी चाहिए। सिर्फ एक परमेश्वर ही है जो कभी कोई गलती नहीं करता।

मैंने प्रभु से कहा है कि मैं सूर्य के नीचे हरेक व्यक्ति से क्षमा माँगने के लिए तैयार हूँ- बच्चों, सेवकों, भिखारियों, सब से - और यह कि इस मामले में अपने सम्मान और प्रतिष्ठा को बीच में नहीं लाऊँगा। और मैंने ऐसा किया है- और परमेश्वर ने मुझे आशिष दी है।

यहाँ हममें से बहुत से ऐसे लोग हैं जो विवाहित हैं। आप सभी जानते हैं कि आप कितनी आसानी से अनजाने में ही अपनी पत्नियों को चोट पहुँचा देते हैं। यह हो सकता है कि आपने एक अच्छे इरादे से कुछ कहा हो, लेकिन आपकी पत्नी ने उसे गलत समझा हो। इस बात का उलटा भी हो सकता है- जब आपने अपनी पत्नी की बात में से कुछ गलत समझा हो। ऐसे मामलों में आपको क्या करना चाहिए? मैं सिर्फ इतना ही कहूंगा: आपके घर में एक क्षमा-याचना द्वारा जितनी जल्दी शांति बहाल हो सकती है उतनी आपके इरादे के बारे में सफाई देने या यह जाँच-परख करने से नहीं हो सकती कि गलती किसने की थी!

मान लें कि आप एक ऐसी परिस्थिति में फँसे हैं जिसमें आपके सहकर्मी आपको गलत समझ लेते हैं। उन्हें सफाई देने से कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि वे आपकी बात सुनने को तैयार नहीं होंगे। ऐसे मामले में, जबकि आप पूरी तरह निर्दोष हैं, आपको क्या करना चाहिए? क्या आपको अपनी ही नज़र में दया का पात्र बन जाना चाहिए? हर्गिज़ नहीं। बस इतना सुनिश्चित करें कि परमेश्वर के सामने और मनुष्यों के सामने आपका विवेक शुद्ध है और फिर सब परमेश्वर को सौंप दें। आपको सिर्फ इतना ही करना है। मैंने बहुत वर्षों तक यही किया है और मुझे बहुत आशिष मिली है। ऐसा ही करने की सलाह मैं आपको भी दूँगा।