द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   घर कलीसिया
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हमारी बुलाहट प्रभु द्वारा आशिषित किए जाने की बुलाहट है, कि फिर हम पृथ्वी पर जिस किसी परिवार (या व्यक्ति) से मिलें, हम उसके लिए एक आशिष बन सकें। गलातियों 3: 13,14 कहता है कि मसीह सूली पर हमारे लिए एक श्राप बना जिससे कि पवित्र आत्मा के दान द्वारा अब्राहम की आशिष हमारी आशिष बन सके। यह आशिष उत्पत्ति 12:23 में मिलती है जहाँ परमेश्वर ने अब्राहम से कहा था, "मैं तुझे आशिष दूँगा और पृथ्वी के सारे घराने तुझे में आशिष पाएंगे।" इस वजह से ही हम परमेश्वर से हमें लगातार उसके पवित्र आत्मा से भरने के लिए कहते हैं।

यह आपकी विरासत है। इसलिए इस पर अपना दावा करें और हमेशा इसमें बने रहें। अपने मन- फिराव और पापों के अंगीकार द्वारा अपने विवेक को हर समय शुद्ध रखें कि आशिषों के बहाव का रास्ता न रुक जाए।

सबसे पहले, परमेश्वर आपके द्वारा किए जाने वाले हरेक काम को आशिष देना चाहता है - आत्मिक, भौतिक, दैहिक, शैक्षणिक, व्यावसायिक, और बाकी हरेक बात परमेश्वर की प्रतिज्ञा ये है कि “आप जो भी करेंगे, उसमें सफल होंगे" (भज. 1:3)। “तू अपने मार्ग को सफल बना सकेगा, और सफलता प्राप्त कर सकेगा " (यहोशू 1: 8 )। नई वाचा के इस युग में, परमेश्वर आपको आशिष देकर बढ़ाना चाहता है, और आपको सफल करना चाहता है, पहले आपके आत्मिक जीवन में, और फिर भौतिक वस्तुओं में भी जो पुरानी वाचा की तरह नहीं है जिसमें वे सिर्फ भौतिक वस्तुओं की ही आशिष पाते थे।

दूसरी बात, कि परमेश्वर आपके जीवन के द्वारा दूसरों को आशिष देना चाहता है। उन्हें आपके अन्दर से परमेश्वर के जीवन का कुछ स्वाद मिलना चाहिए। इसका परिणाम यह होगा कि आप कुछ लोगों के लिए तो “जीवन की सुगन्ध " होंगे, और (जो परमेश्वर को अस्वीकार करते हैं, ऐसे लोगों के लिए) "मृत्यु की दुर्गन्ध होंगे" (2 कुरि. 2:16)।

इन सब बातों के पूरा होने के लिए, यह ज़रूरी है कि आपके अन्दर लगातार पवित्र आत्मा से भरे जाने की बड़ी उत्सुकता होनी चाहिए।

हमारा पार्थिव काम तो सिर्फ हमारी रोज़ी-रोटी कमाने का साधन है, जिससे कि हम आर्थिक रूप में किसी पर निर्भर हुए बिना प्रभु की सेवा कर सकें। लेकिन हमारे छोटे से इस जीवनकाल में, हमारी यह अभिलाषा हो कि हम पृथ्वी पर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के लिए एक आशिष बन सकें।

भारत के बड़े नाम वाले प्रचारक ज़्यादातर बड़े शहरों में ही प्रचार करते हैं। वे कभी गाँवों के मामूली, गरीब (और अनपढ़) लोगों के साथ अपना समय नहीं बिताते। इसलिए मुझे खुशी है कि परमेश्वर ने हमें भारत के गाँवों में ग़रीब लोगों की सेवा करने का विशेषाधिकार और सम्मान दिया है। मैं वहाँ एक जय पाने वाले जीवन का प्रचार करता हूँ और प्रभु वहाँ कलीसियाएं स्थापित करता है। और मेरी पत्नी वहाँ गरीब स्त्रियों और बच्चों के लिए स्वास्थ्य सेवा-केन्द्र आयोजित करती हैं। हम दोनों ही इन लोगों की सेवा द्वारा बहुत आशिष पाते हैं।

हमें यह देखकर बहुत हैरानी होती है परमेश्वर हमारे टेप और साहित्य को कहाँ-कहाँ ले गया है। वे हरेक महाद्वीप में गए हैं- पृथ्वी के छोर तक (प्रे. 1:8)। अनेक प्रचारक भी उनकी कलीसियाओं में दिए जा रहे संदेशों में हमारी पुस्तकों और टेप की सामग्री इस्तेमाल करते हैं। इस तरह, वचन और आगे बढ़ रहा है, ऐसी कलीसियाओं में जहाँ मैं स्वयं कभी नहीं जा सकता। प्रभु की स्तुति हो। हमने लोगों को हमारी सारी सामग्री सेंतमेंत इस्तेमाल करने के लिए उत्साहित किया है, वे उससे धन अर्जित न करें बल्कि उसके अनुसार अपना जीवन बिताएं।

पवित्र आत्मा के निरंतर अभिषेक और नबूवत के दान ("सुनने वाले की ज़रूरत के अनुसार वचन बोलने की योग्यता") के लिए प्रभु के खोजी बने रहें। यह न सोचें कि नबूवत का दान माँगना कोई अहंकार की बात है। शैतान लोगों को ऐसे ही मूर्ख बनाता है। पवित्र आत्मा हरेक विश्वासी से आग्रह करता है कि वह यह दान पाने की धुन में रहे (1 कुरि. 14:1)। इसलिए इस दान की खोज में रहें। अगर आप परमेश्वर से वह नहीं माँगेंगे जिसकी आपको किसी क्षेत्र में ज़रूरत है, तो वह आपको नहीं मिलेगी। आपको साहस से माँगने वाला होना चाहिए - भौतिक ज़रूरतों के लिए, समझदारी के लिए, काम में किसी समस्या के हल के लिए, या एक सामान्य रूप में किसी भी समस्या के लिए। परमेश्वर हमारा समस्याओं से इसीलिए सामना होने देता है कि हम उसके पास आएं और हमारी समस्या हल हो सके। हमारा जीवन कितना नीरस होता अगर हमारा सामना ऐसे किसी तूफान से न होता जिसे यीशु शान्त कर देता है! इसलिए, माँगें - और माँगते रहें कि आपका आनन्द पूरा हो जाए।