द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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निर्गमन 25:8 में हम देखते है कि पहली बार परमेश्वर अपनी इच्छा को प्रकट कर रहा है कि, वह मनुष्यों के साथ वास करना चाहता है। परमेश्वर कहता है “वे मेरे लिए एक पवित्र स्थान का निर्माण करें कि मैं उनके मध्य निवास करूँ”। यह बात तम्बू के संबंध में कही गई थी जहां परमेश्वर की अग्नि आकर ठहरी थी जो परमेश्वर की महिमा थी जिसने इस्राएलियों को विश्व के अन्य सभी जातियों से अलग रखा था। उस पवित्र स्थान का सबसे महत्वपूर्ण भाग था - परमेश्वर की महिमा जो उस पर ठहरी थी और जो इस बात को दर्शाती है कि परमेश्वर की उपस्थिती उनके मध्य थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप अपने घर को परमेश्वर के लिए एक पवित्रस्थान बनाए, परंतु ऐसा स्थान नहीं जहां हम एक दूसरे को प्रसन्न करने का प्रयत्न करे, हालांकि आपको एक दूसरे को खुश रखना चाहिए, और ऐसी जगह भी नहीं जहां आप अन्य लोगों के लिए आशीष का कारण बनो, हालाँकि आपका घर अन्य लोगो के लिए आशीष का कारण होना चाहिए, लेकिन मुख्य रूप से एक ऐसी जगह जहां परमेश्वर अपनी उपस्थिति को प्रगट कर सके, और यीशु मसीह वहाँ स्वयं आराम महसूस कर सके। परमेश्वर कहता है कि “वे मेरे लिए एक घर बनाए जहां मैं वास कर सकूँ”। एक मसीही घर भी ऐसी जगह होनी चाहिए जहां यीशु मसीह पूर्ण सहजता महसूस कर सके। इसका मतलब यह है कि वह आपके घर की सभी बातों से खुश है। वह आपके द्वारा पढे गए किताबों से, पत्रिकाओं से, पति और पत्नी के आपस में बात करने के ढंग से, आप के द्वारा बात किए गए विषयो से, टीवी पर देखे जाने वाले कार्यक्रमों से, और अन्य सभी बातो से खुश है। सबसे अद्भुत जीवन वह है जिसमें यीशु मसीह आपके जीवन का केंद्र हो और आपके घर में सब कुछ इस बात पर निर्भर है कि क्या यीशु मसीह उससे आनंदित है या नहीं जिस ढंग से आप अपना समय बिताते है, पैसा खर्च करते है और अन्य जो कुछ भी आप करते है। यदि आप इस प्रकार अपना जीवन बिताते है, तो आपके जीवन के अंत में या यीशु मसीह के पुनःआगमन पर जब आप परमेश्वर के सामने खड़े होंगे तब वो कहेगा ‘बहुत खूब’। यह महत्वपूर्ण नहीं कि आपका घर राजमहल है या झोपड़ी, बाहरी रूप महत्वपूर्ण नहीं है। परमेश्वर आपके हृदय को देखता है। इसलिए ध्यान दे की हमारे हृदय एकसाथ मिलकर परमेश्वर के लिए पवित्र स्थान बने जहां परमेश्वर वास कर सके।

परमेश्वर कहाँ वास करता है?

1. एक घर जहां शांति हो:
सर्वप्रथम परमेश्वर उस घर में वास करता है जहां शांति होती है। जब यीशु मसीह ने अपने शिष्यो को विभिन्न जगह में सुसमाचार बांटने के लिए भेजा, तब उसने उनसे लुका रचित सुसमाचार 10 : 5 - 7 में यह कहा कि ऐसे घर को खोजो जहां शांति हो। और जब उन्हें ऐसा घर मिल जाए तो उन्हे वही ठहरना था और कोई दूसरा घर ढूँढना नहीं था। यीशु ने ऐसा क्यों कहा? क्योंकि यीशु मसीह जानते थे कि शिष्यो को ऐसे घर बहुत कम ही मिलेंगे जहां शांति हों। परमेश्वर ऐसे घर में वास करता है जहां कोई झगड़ा न हो। पति और पत्नी अक्सर किस विषय को लेकर झगड़ते है? अधिकतर किसी भौतिक विषय पर, जब कोई सांसारिक विषय में कुछ गड़बड़ी हो जाती है। इस संसार में गलत तो होता ही रहेगा। लेकिन जब कुछ गलत हो जाए तो यह याद रखना कि सबसे गंभीर बात केवल पाप ही है। बाकी सब विषय गंभीर या महत्वपूर्ण नहीं है। यदि आप में कभी भी कोई कड़वाहट आती है और सांसारिक विषयो के कारण आप एक दूसरे से बात नहीं करते हो तो यह परमेश्वर के हृदय को चोट पहुंचाएगा। पाप से घृणा करे, क्योंकि वही एकमात्र ऐसी बात है जो आपके विवाह को नाश कर सकती है। याद रखें कि आपका घर परमेश्वर के लिए एक पवित्र स्थान बने। यदि आपके घर मे ऐसा कुछ आ जाए जो आपके घर की शांति को भंग करे, तब आपका घर एक पवित्र स्थान नहीं ठहरेगा। अपने सारे कामो में हम कहे कि “प्रभु जी हमें इस बात की चिंता नहीं है कि लोग हमसे खुश है या नहीं। क्या आप खुश? क्या हमारे जीवनो में, हमारे विचारों में या हमारे एक दूसरे के प्रति हमारे आचरणों में कोई ऐसी बात है जिससे आप नाखुश है? हम चाहते है कि आप हमारे घर में आनंदित रहे। हम अपने जीवन में सभी कार्य को इस प्रश्न से जाँचना चाहते है कि क्या यह परमेश्वर को प्रसन्न करेगा?” उस बात को स्मरण करे जो परमेश्वर द्वारा स्थापित प्रथम घर में घटित हुई थी। शैतान कोने में इंतजार कर रहा था कि वह आदम और हव्वा के बीच में आ जाए। और वह सफल भी हुआ। वह अय्यूब और उसकी पत्नी के बीच आने में सफल हुआ, और वह इसहाक और रिबका के बीच में भी आने में सफल हुआ। यह परमेश्वर की इच्छा कदापि नहीं कि शैतान पति और पत्नी के बीच आए। और ऐसा आपके जीवन में कभी न होने पाए। परमेश्वर हमारे घर से हमेशा प्रसन्न रहे और हमें सदा शांति प्रदान करता रहे।

2. जहां पति और पत्नी टूटे मन के हो:
दूसरी बात जो मैं आपको बताना चाहता हूँ वह यशायाह 57 : 15 से है, “परमेश्वर ऊंचे और पवित्र स्थान में वास करता है और उन में जो आत्मा में नम्र और दिन है।” परमेश्वर नम्र और टूटे हुए मन में वास करता है। एक टूटा हुआ व्यक्ति वह होता है जो दूसरों से अधिक अपनी कमी और असफ़लता को पहचानता हो। संसार ऐसे लोगो से भरा है जिन्हें दूसरों की कमियों का ज्ञान है। किसी भी सामान्य घर में अधिकतर चर्चा असफल परिवारों और लोगो के विषय में होती है। हम जल्द ही दूसरों की कमियों को ढूंढ लेते है। लेकिन अक्सर हम उनमें भलाई को नहीं पहचान पाते। हमें किसी पर भी पत्थर फेंकने का कोई हक नहीं है, क्योंकि हम स्वयं पापी है। हम परमेश्वर के अनुग्रह से उद्धार पाए हुए है। उम्मीद है कि हम ऐसे लोग हो जो एक ही पाप को दोहराना नहीं चाहते, खासकर दूसरों की बुराई करना। हम सब स्नानघर के शीशे और गाड़ी के शीशे में अंतर समझते है। स्नानघर के शीशे में हम अपना चेहरा देखते है। गाड़ी के शीशे में हम अन्य किसी के चेहरे को देखते है। याक़ूब 1 : 23 – 25 में लिखा है कि परमेश्वर का वचन एक दर्पण के समान है। लेकिन क्या यह स्नानघर का दर्पण है या गाड़ी का? उसमें आप किसका चेहरा देखते हो? क्या आप उसमें दूसरों को प्रचार करने के लिए वचन देखते हो? या ऐसा कुछ देखते हो जिसका अनुकरण आप ने नहीं किया है? इब्रानियों 10 : 7 में लिखा है, “पुस्तक में मेरे विषय में लिखा गया है”।

3 जहां पति और पत्नी पवित्र है:
परमेश्वर उस घर में वास करता है जहां पति और पत्नी प्रतिदिन पवित्रता में चलते है। यहेजकेल 43 : 12 में लिखा है, “इस भवन का नियम यह है कि सम्पूर्ण क्षेत्र अति पवित्र होगा”। तम्बू के तीन भाग थे – बाहरी आँगन, पवित्र स्थान और परम पवित्र स्थान। इन तीनों में से परम पवित्र स्थान ही सबसे छोटा क्षेत्र था। लेकिन हम पढ़ते है कि नई वाचा में बाहरी आँगन और पवित्र स्थान नहीं रहेगा। पूरा क्षेत्र ही परम पवित्र स्थान होगा। इसका मतलब यह है कि परमेश्वर की महिमा नई वाचा में केवल एक कोने में नहीं ठहरेगी, जैसे तम्बू में थी, लेकिन पूरे विस्तार में रहेगी। इसका मतलब यह है कि हमारे जीवन में हर क्षण हम पवित्र रहेंगे, केवल रविवार को नहीं परंतु प्रतिदिन। हम केवल बाईबल पढ़ते समय ही नहीं परंतु हर काम करते समय पवित्र रहेंगे। हमारे जीवन और घर का हर कोना कोना पवित्र होगा। पवित्रता का संबंध कुछ धार्मिक रीतिरिवाजो का पालन करने से नहीं है परंतु हर उस चीज से दूर रहना है जो परमेश्वर को अप्रसन्न करता है – उस प्रकाश के अनुसार जो हमें प्राप्त है।