द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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आइए हम प्रेरित पौलुस के जीवन से पवित्र आत्मा से परिपूर्ण जीवन के सम्बंध में 4 विशेषताओं को देखें।

1. सिद्ध संतुष्टि : सर्वप्रथम, आत्मा से भरपूर जीवन पूर्ण संतोष का जीवन है। फ़िलिप्पियों 4:11 में पौलुस ने कहा, “मैंने यह सिखा है कि जिस दशा में हूँ, उसी में संतोष करूँ”। इस प्रकार का संतोष अपने साथ आनंद और शांति की भरपूरी भी लेकर आता है। इसलिए इसी अध्याय के 4 और 7 वचन में पौलुस ने आनंद और शांति का उल्लेख किया है। हम परमेश्वर की स्तुति तभी कर सकते हैं जब हम उसके द्वारा हमारे साथ किये गए सभी व्यवहारों से पूरी तरह संतुष्ट हो। यदि हम एक ऐसे परमेश्वर में विश्वास करते हैं जो सर्व शक्तिमान है और इसलिए जो सारी बातें हमारे जीवन में होती है वह उसे हमारी भलाई में बदलता है (रोमियों 8:28) तब हम सभी परिस्थितियों में वास्तव में संतुष्ट हो सकते हैं। तब हम हबक्कूक की तरह प्रभु की प्रशंसा कर सकते हैं, तब भी जब हमारे बगीचे के पेड़ फल नहीं देते हैं, जब हमारे झुंड में पशुओं की मृत्यु हो जाती है और जब हमें भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है - या किसी भी परिस्थिति में (हबक्कूक 3:17,18)इफिसियों 5:18-20 दर्शाता है कि परमेश्वर की स्तुति करना, पवित्र आत्मा की भरपूरी का परिणाम है। प्रेरित पौलुस आनंदित हो सका जब वह बन्दीगृह में क़ैद कर दिया गया था और उसके पैर काठ में ठोके गए थे (प्रेरितों के काम 16:25)। जब कुड़कुड़ाहट एक मसीही में पाई जाती है, तब यह इस बात का संकेत है कि वह उन इस्राएलियों की तरह है जो जंगल में परमेश्वर के खिलाफ कुड़कुड़ाए और अभी तक उस प्रतिज्ञा के देश के विजय में उन्होंने प्रवेश नहीं किया है।

2. पवित्रता में वृद्धि: दूसरा, आत्मा से भरपूर जीवन पवित्रता में वृद्धि का जीवन है। जैसे-जैसे मनुष्य का अपना जीवन पवित्रता में बढ़ता है, वैसे-वैसे परमेश्वर की पूर्ण पवित्रता के प्रति उसकी चेतना बढ़ती जाती है। ये दोनो ही साथ साथ जाते है। वास्तव में, परमेश्वर की पवित्रता के प्रति बढ़ती चेतना ही इस बात की परीक्षा है कि क्या वह व्यक्ति वास्तव में अपने जीवन में पवित्रता में बढ़ रहा है या नहीं। अपने रूपांतरण के पच्चीस साल बाद, पौलुस कहता है, "मैं प्रेरितों में सबसे छोटा हूँ" (1 कुरिन्थियों15: 9)। पांच साल बाद, वह कहता हैं, "मैं सब पवित्र लोगों में से छोटे से भी छोटा हूं" (इफिसियों 3: 8)। फिर एक साल बाद वह कहता है, "मैं (ध्यान दीजिए, यह" मैं नहीं था "लेकिन" मैं हूं ") पापियों का प्रमुख हूँ" (1 तीमुथियुस 1:15)। क्या आप उन बयानों में पवित्रता में उसकी प्रगति को देखते हैं? जितना करीब पौलुस परमेश्वर के साथ चला, उतना ही वह अपने शरीर के भ्रष्टाचार और दुष्टता के प्रति जागरूक था। उसने इस बात को जाना कि उसके शरीर में कोई भी अच्छी वस्तु वास नहीं करती (रोमियो 7:18)। आत्मा से भरा एक व्यक्ति दूसरों को केवल यह दिखावा करने की कोशिश नहीं करता है कि वह पवित्रता में बढ़ रहा है, बल्कि वास्तव में पवित्रता में बढ़ता जाएगा। वह उन अनुभवों की गवाही नहीं देगा जो कथित तौर पर उसे पवित्र बनाते थे, या अपनी पवित्रता के ज्ञान को अन्य लोगों को समझाने की कोशिश नहीं करेगा। उसके जीवन में ऐसी पवित्रता होगी कि दूसरे लोग उनके पास अपने आप से आएंगे और उससे उसके जीवन का रहस्य पूछेंगे। उसके पास वही होगा जो जे.बी. फ़िलिप्स अनुवाद में लिखा है, "पवित्रता जो भ्रम नहीं है" (इफिसियों 4: 24)

3. एक क्रुसित किया हुआ जीवन: तीसरा, आत्मा से भरा जीवन एक क्रुसित जीवन है। पौलुस ने कहा, “मैं मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया हूं” (गलातियों 2:20)। क्रूस का मार्ग आत्मा की परिपूर्णता का मार्ग है। पवित्र आत्मा हमेशा हमारी उसी तरह अगुवाई करेगा जैसे उसने यीशु की क्रूस तक अगुवाई की। आत्मा और क्रूस अविभाज्य हैं। क्रूस निर्बलता, शर्म और मृत्यु का प्रतीक है। प्रेरित पौलुस ने अपने जीवन में भय, दुःख, तकलीफें और आँसू देखे (देखें 2 कुरिन्थियों: 1: 8; 4:8; 6:10; 7:5)। उसे मूर्ख और कट्टरपंथी माना गया। उसके साथ अक्सर दूसरों के द्वारा गंदगी और कचरे की तरह व्यवहार किया गया (1 कुरिन्थियों 4:13)। यह सब आत्मा की पूर्णता के साथ असंगत नहीं है। इसके विपरीत, पवित्र आत्मा से भरा हुआ व्यक्ति यह पाएगा कि परमेश्वर उसकी आगे और आगे अपमान और स्वयं की मृत्यु के मार्ग की ओर अगुवाई कर रहा है।

4. निरंतर वृद्धि: चौथा, पवित्र आत्मा से भरा जीवन एक ऐसा जीवन है जो निरंतर पूर्णता की अधिक से अधिक मात्रा में बढ़ता जाता है। पौलुस के रूपांतरण के लगभग तीस साल बाद जैसे वह अपने जीवन के अंत की ओर बढ़ रहा था तब पौलुस ने कहा, "मैं निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं” (फिलिप्पियों 3:14)। उसने यह अभी प्राप्त नहीं किया था। वह अभी भी अधिक से अधिक पवित्र आत्मा की भरपूरी की खोज कर रहा था और इसलिए अपनी आत्मिक मांसपेशियों को इस लक्ष्य की ओर खिंच रहा था। फिलिप्पियों 3:12 में पौलुस कहता है,"मैं सिद्ध नहीं हूं”। लेकिन वचन 15 में, वह ठीक इसके विपरीत कहता है: "सो हम में से जितने सिद्ध हैं, यही विचार रखें"। यह आत्मा से भरे जीवन का विरोधाभास है – सिद्ध और फिर भी सिद्ध नहीं; दूसरे शब्दों में, सम्पूर्ण और फिर भी पूर्णता की अधिक से अधिक मात्रा को प्राप्त करना चाहते हैं। आत्मा से भरा जीवन ठहरा हुआ (स्थिर) नहीं होता। यहाँ पूर्णता की मात्रा में अधिक से अधिक वृद्धि है। बाइबल कहती है कि पवित्र आत्मा हमें अंश अंश करके तेजस्वी रूप में बदलता जाता है (2 कुरिन्थियों 3:18) - या, दूसरे शब्दों में, पूर्णता की एक मात्रा से दूसरी मात्रा तक। एक कप पानी से भरा हो सकता है, एक बाल्टी भी, तो एक टैंक भी और एक नदी भी भरी हो सकती है। लेकिन एक नदी की और कप की पूर्णता के बीच एक बड़ा अंतर है।

पवित्र आत्मा लगातार हमारी क्षमता को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है ताकि वह हमें एक बड़ी मात्रा में भर सके। यह वह जगह है जहां क्रूस आता है। अगर हम क्रूस के मार्ग से बचते हैं तो हमारे जीवन में कोई वृद्धि नहीं हो सकती। यदि हम अपने जीवन में लगातार क्रूस को स्वीकार करते हैं, तो हम पाएंगे कि हमारा कप बाल्टी बन रहा है, हमारी बाल्टी एक टैंक बन रही है, हमारा टैंक एक नदी बन रहा है और नदी कई नदियाँ बन रही है। प्रत्येक चरण में, जैसे ही हमारी क्षमता बढ़ती है, हमें फिर से भरना होगा। इस प्रकार हम में प्रभु यीशु की प्रतिज्ञा पूरी होगी, "जो मुझ पर विश्वास करेगा, उसके ह्रृदय में से जीवन के जल की नदियां बह निकलेंगी (वह पवित्र आत्मा के विषय में कह रहा था)” यूहन्ना 3: 38,39)