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हमारे अग्रदूत के रूप में यीशु ने (जो हमसे पहले उसी दौड़ में दौडा है), हमारे लिए वह मार्ग खोल दिया जिसके द्वारा अब हम पिता की उपस्थिति में प्रवेश कर सकते हैं और हर समय वहीं रह सकते हैं। इस मार्ग को "नया और जीवित मार्ग" कहा गया है (इब्रानियों 10:20)। पौलुस ने इसे "यीशु की मृत्यु को सदा अपनी देह में लेकर फिरना" कहा है (2 कुरिन्थियों 4:10)। एक बार उसने अपनी व्यक्तिगत साक्षी के रूप में कहा कि वह मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया है और अब वह स्वयं जीवित नहीं है। अब मसीह उसमें जीवित था क्योंकि वह स्वयं कलवरी पर मर चुका था (गलातियों 2:20)। उसके अद्भुत जीवन और परमेश्वर के लिए उसकी उपयोगिता का यही रहस्य था।

यीशु हमेशा क्रूस के रास्ते पर चलता रहा था- अपनी खुदी में मरने का रास्ता। उसने अपने आपको एक बार भी कभी प्रसन्न नहीं किया (रोमियों 15:3)। अपने आपको प्रसन्न करना सारे पाप का मूल है। स्वयं का इनकार करना ही पवित्रता का सार है। यीशु ने कहा कि कोई उसके पीछे नहीं आ सकता जब तक कि वह प्रतिदिन अपनी खुदी से इनकार न करे और प्रतिदिन अपने आप में न मरे (लूका 9:23)। यह स्पष्ट है।

अगर हम प्रतिदिन अपनी खुदी से इनकार न करें तो यीशु के पीछे चलना असम्भव है। हम मसीह के लहू से धुले हुए हो सकते है, पवित्र-आत्मा पाए हुए हो सकते है और अपने अन्दर परमेश्वर के वचन का गहरा ज्ञान रख सकते है। लेकिन अगर हम प्रतिदिन अपनी खुदी में नहीं मरेंगे, तो हम प्रभु यीशु के पीछे नहीं चल सकते। यह एक निश्चित बात है।

एक बार यीशु ने उन लोगों की बात की जो एक पुराने वस्त्र में नए कपड़े का पैबन्द लगाना चाहते थे। उसने कहा कि ऐसा करने से वह पुराना वस्त्र फट जाएगा (मत्ती 9:16)। यह ज़रूरी था कि उस पुराने वस्त्र को फेंक कर एक बिलकुल नया वस्त्र ले लिया जाए। एक अन्य दृष्टान्त में उसने कहा कि बुरे फल को काट देने से कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि अगर हमें अच्छा फल चाहिए, तो पेड़ का ही अच्छा होना जरूरी है(मत्ती 7:17-19)

इन सभी दृष्टान्तों का एक ही मूल पाठ है : पुराना मनुष्य सुधर नहीं सकता। उसे परमेश्वर द्वारा क्रूस पर चढ़ा दिया गया है (रोमियों 6:6)। अब हमें परमेश्वर द्वारा किए गए उसके न्याय के साथ सहमत होना पड़ेगा, और उसे उतार कर नए मनुष्य को पहन लेना होगा।

क्रूस का मार्ग आत्मिक उन्नति का मार्ग है। अगर आप क्रोध, झुंझलाहट, अधीरता, वासनामय विचारधारा, बेईमानी, ईर्ष्या, द्वेष, कड़वाहट, धन के प्रेम, आदि पापों पर जय नहीं पा रहे हैं, तो उसका उत्तर इसमें है: आपने क्रूस के रास्ते का इनकार किया हैं।

एक मरा हुआ व्यक्ति अपने अधिकार पाने के लिए खड़ा नहीं होता। वह पलट कर झगड़ा नहीं करता। उसे अपनी लोकप्रियता की कोई चिंता नहीं होती। वह बदला नहीं लेगा। वह किसी से घृणा नहीं कर सकता और न ही उसमें किसी के प्रति कड़वाहट भरी होगी। अपनी खुदी के लिए मर जाने का यही अर्थ है। अगर हमें आत्मिक उन्नति करनी है, तो परमेश्वर द्वारा किए गए हमारी आत्मिक उन्नति के बाकी सारे इंतज़ामों की तरह हमें क्रूस के इस रास्ते की भी प्रतिदिन ज़रूरत है।