द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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हम जैसे-जैसे अंत समय की तरफ़ बढ़ते है, वैसे-वैसे कलीसिया में पवित्र-आत्मा का काम बढ़ता जाएगा। संसार में भरमाने वाली आत्माएँ भी ज़्यादा से ज़्यादा कार्यशील होती जाएंगी। इसलिए, अगर हमें धोखा खाने से बचना है, तो हमको नीचे लिखी बातों पर नज़र रखनी होगी:

1) भावनाओं को उत्तेजित करने वाली नक़ली बातें 2) अतिवाद (सब बातों को बढ़ा-चढ़ाकर करना) 3) फरीसीवाद 4) झूठे मसीही पंथ का स्वभाव

शत्रु हमेशा वहीं काम करता है जहां पवित्र-आत्मा काम करता है। इसलिए जो कुछ भी आप देखते और सुनते हैं, उसे निगले नहीं। सब बातों को परखे। यह हो सकता है कि पवित्र-आत्मा का काम शोर और भावनात्मक उत्तेजना के साथ हो – और इससे कुछ लोगों को मानवीय बाधाओं और मनुष्य के भय से मुक्त होने में मदद मिल जाती है। हम अपनी भावनाओं के मूल्य को कम करके नहीं आंकते, क्योंकि वे हमारे व्यक्तित्व का परमेश्वर प्रदत्त हिस्सा है। लेकिन इसके साथ ही, हमें उनका मूल्यांकन बढ़ा-चढ़ाकर भी नहीं करना है क्योंकि परमेश्वर भावनाओं को नहीं बल्कि ह्रदयों को देखता है। ऊँचे स्वर में प्रार्थना करना अच्छा है क्योंकि तब आपके आस पास के लोगों द्वारा आपका ध्यान भंग नहीं होगा। यह प्रार्थना करते समय अपनी आँखों को बंद कर लेने जैसा ही है ताकि हमारे आस पास के लोग हमारा ध्यान भंग न कर सके और हम प्रार्थना पर ज़्यादा ध्यान दे सकें। ऐसी बातों से आपकी प्रार्थना ज़्यादा आत्मिक नहीं हो जाएगी, लेकिन ये आपके आस पास के वातावरण से मुक्त होने में आपकी मदद ज़रूर कर सकती है। पवित्र-आत्मा की सामर्थ्य चिल्लाने के द्वारा नहीं बल्कि एक पवित्र जीवन द्वारा, कलीसिया में एक सामर्थी सेवकाई द्वारा और अपने काम की जगह में बिना लज्जित हुए प्रभु की साक्षी प्रकट करने द्वारा होती है।

मानवीय जीव में ज़बरदस्त शक्ति होती है (बौद्धिक शक्ति, भावनात्मक शक्ति और इच्छा शक्ति)। और बहुत से लोग इनका दुरुपयोग करते हैं (जैसे योग क्रिया में) और उसे आत्मा की शक्ति मान लेते हैं। आप ऐसी सामर्थ से धोखा न खाएं। पवित्र-आत्मा हमेशा यीशु को महिमान्वित करेगा – मनुष्यों या अनुभवो को नहीं। इसलिए यह एक निश्चित तरीका है जिससे आप असली और नक़ली को परख सकते हैं।

अनुशासन

“परमेश्वर ने हमें भय का नहीं बल्कि सामर्थ, प्रेम और संयम का आत्मा दिया है” 2 तीमुथियुस 1:7। पवित्र आत्मा आपके जीवन में से सारे भय और संकोच को दूर करते हुए उसकी जगह सामर्थ, प्रेम और अनुशासन ले आएगा। अनुशासन के बिना वास्तव में कोई भी आत्मिक बन नहीं सकता। संयम पवित्र आत्मा का फल है (गलातियों 5:23)। एक अनुशासनहीन जीवन एक रिसाव वाले बर्तन की तरह होता है। उसे चाहे जितनी बार भर दिया जाए, वह फिर से ख़ाली हो जाएगा। उसे बार बार भरना पड़ता है। ऐसे तीन क्षेत्र है जिसमें आपको अवश्य ही अधिक से अधिक अनुशासित होने की खोज में रहना होगा: 1) अपनी देह 2) अपने समय और 3) अपने धन के इस्तेमाल में

रोमियों 8:13 कहता है कि हमें आत्मा द्वारा शरीर के कामों को नष्ट करते रहना है। ये हृदय के काम नहीं है क्योंकि हृदय से होने वाले काम जानबूझकर किए जाने वाले पाप होते हैं। ये ऐसे काम है जो देह में से होते हैं क्योंकि हम देह को अनुशासनहीन हो जाने की अनुमति दे देते हैं – उदाहरण स्वरूप ज़्यादा खाना, ज़्यादा सोना, आलसी होना या बातूनी होना, आदि। पवित्र-आत्मा ख़ास तौर पर हमारी जीभ को वश में रखने में हमारी मदद करना चाहता है।

इफिसियों 5:16 हमारे समय का सदुपयोग करने के लिए कहता है। ऐसा बहुत सा समय होता है जो बर्बाद हो जाता है, लेकिन अगर आप अनुशासित होंगे तो उस समय को बचाकर पवित्र शास्त्रों के अध्ययन में ख़र्च कर सकेंगे। मेरा कहने का अर्थ यह नहीं है कि आपको आराम, खेलकूद आदि नहीं करना है। आपको सन्यासी नहीं बन जाना है, क्योंकि संन्यास आपको गुलामी में पहुँचा देगा। लेकिन यह देखें कि जैसे चेलों ने बची हुई रोटी के टुकड़े इकट्ठे किए थे, वैसे ही आप अपने समय के “बचे हुए टुकड़े इकट्ठे” कर ले ताकि “कुछ भी बर्बाद न हो” (यूहन्ना 6:12)। अपने समय का अधिकतम लाभ उठाने के विषय में अनुशासित रहे, लेकिन इसके बारे में कट्टर न बनें!! सब धीरज से करें।

लुका 16:11 में, यीशु ने कहा कि परमेश्वर ऐसे लोगों को सच्चा आत्मिक धन नहीं देगा जो धन के मामले में अविश्वासयोग्य होते हैं। धन के मामले में धर्मी होना पहला क़दम है – बेईमानी न करें, सारा कर्ज़ चुकाए आदि। अगला क़दम विश्वासयोग्य होना है – धन की बर्बादी, वैभवी जीवनशैली, भोग विलासिता की व्यर्थ वस्तुओं और फ़िज़ूल ख़र्च करने से दूर रहे। यह याद रखें कि अपने मसीही जीवन में सिर्फ़ वही लोग परमेश्वर का सर्वश्रेष्ठ पाते हैं जो पवित्र-आत्मा को उनके जीवनों को अनुशासित करने की अनुमति देते है।