द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   Struggling आदमी
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मत्ती 6:13 में, यीशु ने हमें प्रार्थना करने के लिए सिखाया....... "हमें परीक्षा में न ला, परन्तु बुराई से बचा"। सच्ची पवित्रता एक युद्ध का परिणाम है। यह उन बंहदार कुरसी पर बैठे मसीहियों के लिए नहीं है जो आराम से वापस बैठना या ‘फूलों के विश्रामदायक बिस्तर पर आसमान तक पहुंचाए जाना चाहते हैं ’। हम पवित्र तब ही हो सकते हैं जब हम शैतान और अपनी अभिलाषाओं के विरोद्ध लड़ाई लड़ने लगे। इस कारण हम यह प्रश्न पूछ सकते हैं, "यदि शैतान हमारी पवित्रता के लिए इस तरह का एक बाधा है, तो क्यों परमेश्वर उसे नष्ट नहीं कर देते?" इसका यह उत्तर है कि शैतान, एक अर्थ में, हमारे आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक है, जिस प्रकार एक भट्ठी की आवश्यकता सोने को शुद्ध करने के लिए होती है। जब हमारी मांसपेशियों प्रतिरोध के अधीनता में लिए जाते है, ऐसी स्थिति में ही वे मजबूत हो सकते हैं। अन्यथा, हम वसा और पिलपिला रहेंगे। आध्यात्मिक क्षेत्र में भी वास्तव में यह ऐसा ही है। हमें प्रतिरोध की आवश्यकता है, अगर हम आध्यात्मिक रूप में बलवन्त होना चाहते हैं। और यही कारण है कि परमेश्वर हमें लुभाने के लिए शैतान को अनुमति देते है।

आदम मासूम था - लेकिन मासूमियत पवित्रता नहीं होती है। आदम जीवन भर मासूम ही बना रहता और कभी पवित्र नहीं हो पाता अगर उसका परीक्षण नहीं किया गया होता। मासूमियत, तटस्थता की एक अवस्था है और तटस्थता से सकारात्मक पवित्र बनने के लिए, आदम को एक विकल्प का प्रयोग करना पड़ा। उसे प्रलोभन को ' नहीं ' और परमेश्वर को ' हाँ ' बोलना था। तब ही वह पवित्र बन सकता था। और इसलिए उसे परीक्षा में जाना पङा। दुर्भाग्यता से, उसने परमेश्वर को 'नहीं' कहां और इस प्रकार वह एक पापी बन गया।

यीशु की भी कई बातों में हमारे समान परीक्षा हुई (इब्रा. 4:15)। लेकिन उनमें और आदम में यह अंतर था कि हमेशा उन्होनें परमेश्वर को 'हाँ' कहा। एक सिद्ध व्यक्ति बनने के लिए, उस प्रकार के व्यक्ति बनने के लिए जैसा परमेश्वर सभी पुरुषों के लिए चाहते थे, यीशु को आज्ञाकारिता सीखने के लिए इन कष्टों को सहना पड़ा। उनको प्रलोभन का सामना करना पड़ा और उन्होनें विजय पाया, और इस तरह से, "वे परिपूर्ण बने" (इब्रा. 5: 8,9)। यही कारण था कि यीशु ने अपने चेलों के लिए प्रार्थना की कि, “हे पिता,…. मैं यह बिनती नहीं करता, कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख (यूहन्ना 17:15)। यीशु जानते थे कि उनके चेले कभी पवित्र नहीं बन पाते यदि इस दुनिया के दबाव, परीक्षणों और प्रलोभन से वे दूर किए जाते। हमें प्रलोभन और पाप के बीच के भेद को जानना चाहिए। यदि हमारे द्वारा अचानक कुछ देखने से हम प्रलोभित होते है, वह पाप नहीं है। लेकिन यदि हम उसी चीज़ को देखते है जो हमें प्रलोभित करता हैं, या उसके बारे में सोचते है, तब हम पाप करते है। हम परीक्षा में लिए जाने से बच नहीं सकते। लेकिन हम निश्चित रूप से अपनी आँखों को और मन को ऐसी चीज़ो से दूर रख सकते है जो हमें प्रलोभित करती है। हम जिस तरह से अपनी इच्छा का उपयोग करते है, उसी बात पर, हमारा पवित्र और पापी होना, निर्धारित हैं।

परमेश्वर हमें इस बात के लिए दोषी नहीं ठहराते कि हम प्रलोभित हुएं। लेकिन यह बात निश्चित है कि वे हमें प्रलोभन का विरोध करना चाहता है। किसी ने ऐसा कहा है, "मैं पक्षियों को अपने सिर के ऊपर उड़ने से नहीं रोक सकता, लेकिन मैं उन्हें मेरे बालों में घोंसला बनाने से रोक सकता हूँ।" आप प्रलोभन को अपने तरफ आने से नहीं रोक सकते, लेकिन आप उसे अपने मन में बसने से रोक सकते है! परमेश्वर का वचन हमें यह नहीं सिखाती कि अपने बल को दिखाने के लिए हमें जितना संभव हो उतने परीक्षाओं का सामना करना चाहिए। नहीं। हमें प्रलोभन से दूर भागना हैं। पौलुस तीमुथियुस को कहते है कि लुभाने वाले चीज़ो से भाग (2 तीमुथियुस 2:22)। हमें पैसों के प्यार से भागना चाहिए, अगुणित महिलाओं से और कुछ भी ऐसे चीज़ो से, जो हमें परमेश्वर से दूर ले जाती है।

प्रलोभन के प्रति हमारा दृष्टिकोण ऐसी होनी चाहिए, "मुझे अपने आप को जहाँ तक संभव हो इससे दूर रखना हैं"। हमें छोटे बच्चों के समान नहीं होना चाहिए जो यह पता लगाने का प्रयास करते है कि बिना गिरके, वे चट्टान के कितने पास तक जा सकते है या कैसे ट्रेन के द्वारा न टकराकर, वे रेलवे प्लेटफार्म के कितने किनारे तक खङे हो सकते है। यह सलाह कोई भी समझदार माता-पिता अपने बच्चे को नहीं देंगे। हम अपने बच्चों को इस प्रकार के खतरों से दूर रहने के लिए कहते है। परमेश्वर भी हमें यही बताते है।

इस याचिका का वास्तविक अर्थ यह है, "पिताजी, ऐसे प्रलोभनों का सामना करने का मुझे अनुमति न दे, जो मेरे लिए बहुत बलवन्त है”। यह चीख उस व्यक्ति का है जो यह जानता है कि उसका शरीर दुर्बल है और जो यह जानता है कि वह आसानी से गिर सकता है। इस प्रार्थना से होकर,"हमें परीक्षा में न ला (जो हमारे लिए बहुत बलवन्त है)" एक याचिका है "परन्तु बुराई से बचा"। यह शब्द ‘बचा’ का यह संक्षिप्त व्याख्या हो सकता है, " हमें अपने ओर आकर्षित कीजिए।" तो प्रार्थना यह है " हमें बुराई से अपने ओर आकर्षित कीजिए "। परमेश्वर और बुराई दो अलग अलग दिशाओं में खींच रहे हैं। क्या हम यह कह रहे हैं, "पिताजी, मैं अपने शरीर में बुराई के प्रति इस खींच को महसूस कर रहा हूं। लेकिन मुझे वहां जाने न दीजिए। मैं उसकी सहमती नहीं करना चाहता। कृपया मुझे अपने मार्ग पर खींचें। परमेश्वर के प्रति इस लालसा और भूख का, पाप पर विजय का जीवन पाने के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है।

रोमियों 6:14 की प्रतिज्ञा - "और तुम पर पाप की प्रभुता न होगी" का कई मसीहियों के जीवन में पूरा नहीं होने का एक कारण यह है कि नीचे उनके हृदय के गहराई में, पाप से मुक्ति पाने के लिए पर्याप्त भूख उनमें नहीं है। वे इस प्रकार नहीं रोते, "हे परमेश्वर, किसी भी कीमत पर मुझे पाप से मुक्ति दिलाइए।" वे इसके लिए प्यासे नहीं हैं। वे रोते यदि वे गंभीर रूप से बीमार होते। लेकिन उन्हें ऐसा नहीं लगता कि पाप बीमार के समान बुरा है! इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि वे हारे ही रहते है। निर्गमन के 2:23,24,25 में कहा गया है…….इस्राएली कठिन सेवा के कारण लम्बी लम्बी सांस ले कर आहें भरने लगे, और पुकार उठे और उनकी दोहाई जो कठिन सेवा के कारण हुई वह परमेश्वर तक पहुंची। और परमेश्वर ने उनका कराहना सुनकर…… उन पर चित्त लगाया। तब ही परमेश्वर के नज़रे हम पर भी पङेंगें जब हम अपनी उद्धार के लिए, हताशा के साथ रोने लगे। परमेश्वर कहते है, “ तुम मुझे ढूंढ़ोगे और पाओगे भी; क्योंकि तुम अपने सम्पूर्ण मन से मेरे पास आओगे” (यिर्मयाह 29:13)।

यह पवित्र शास्त्र में एक सिद्धांत है कि परमेश्वर से किसी भी कीमती वस्तु पाने के लिए, हम में उसके प्रति भूख और प्यास रहना चाहिए। केवल तभी हम उसे पर्याप्त रूप से सराहना सीख पाएंगे। और परमेश्वर भी इंतजार करते है जब तक हम भूखे और प्यासे न हो; और फिर परमेश्वर वह देते है, जिसकी हमें वास्तव में लंबे समय से आसं थी।

मसीही जीवन शैतान के विरुद्ध एक लड़ाई है। और इस युद्ध में, शैतान के पास एक एजेंट ठीक हमारे भीतर है - हमारा शरीर। क्योंकि हमारा शरीर हमारे शत्रु के पक्ष में है, यह हर एक संभव प्रयास करेगा कि हमें शैतान से लड़ने में प्रभावी होने से रोक सके। इसे कभी न भूलना। यही कारण है कि हम में यह आंस होनी चाहिए कि अपने मांस से हम कुल उद्धार पाए, जिससे हम शैतान पर अधिकार पा सके।

कई विश्वासी ऐसा प्रार्थना करते हैं, "हे परमेश्वर, मुझे सभी बुराई से बचा जो शैतान और अन्य लोग मुझपर करने का प्रयास करते है। लेकिन पूरा समय वे अपने मांस (शत्रु का एजेंट) को वह सब चीज़ खिलाते जाते है, जो कुछ वह चाहता है। तब परमेश्वर उन्हें उन सब बुराईयों से नहीं बचा सकता। हम सबसे पहले हमारे सांसारिक अभिलाषाओं से मुक्ति पाने का आंस रखे। तब शैतान पर अधिकार पाना एक सरल बात हो जाएगी । तब हमें पता चलेगा कि पुरुषों से या दुष्टात्माओं से कोई भी बुराई हमें छू नहीं सकेगा।