यीशु का जीवन पूर्ण विश्राम का जीवन था। उसके पास अपने पिता की सभी इच्छाएँ पूरी करने के लिए प्रतिदिन 24 घंटों में पर्याप्त समय था। लेकिन यीशु ने वही करने का फैसला किया होता जो उसे अच्छा लगता, तो दिन के 24 घंटे पर्याप्त नहीं होते और अधिकांश दिन वह अशांति में ही समाप्त होता।
यरूशलेम में मंदिर के सुंदर फाटक के बाहर, यीशु अक्सर एक लंगड़े व्यक्ति को भिक्षा मांगते हुए देखता था। परन्तु यीशु ने उसे चंगा नहीं किया, क्योंकि ऐसा करने के लिए उसे अपने पिता से कोई मार्गदर्शन नहीं मिला था। बाद में, उसके स्वर्ग में उठा लिए जाने के बाद, पतरस और युहन्ना ने उस व्यक्ति को चंगा किया - पिता के सही समय में - और इसके परिणामस्वरूप कई लोग प्रभु की ओर मुड़ गए (प्रेरितों 3:1-4:4)। उस व्यक्ति को ठीक करने का पिता का समय वही था, उसके पहले नहीं। यदि यीशु ने उस व्यक्ति को पहले ही ठीक कर दिया होता तो उसने पिता की इच्छा में बाधा डाली होती। वह जानता था कि पिता का समय उत्तम था, और इसलिए वह कभी भी कुछ भी करने के लिए अधीर नहीं होता था।
यीशु अपने सामने आने वाली हर रुकावट पर आनन्दित हो सकता था, क्योंकि उसने इस तथ्य को स्वीकार किया था कि स्वर्ग में एक सर्व-शक्तिमान पिता उसके दैनिक कार्यक्रम की योजना बना रहा था। और इसलिए यीशु रुकावटों से कभी नाराज़ नहीं होता था। यीशु का जीवन हमारे आंतरिक जीवन को भी पूर्ण विश्राम में लाएगा। इसका मतलब यह नहीं है कि हम कुछ नहीं करेंगे, बल्कि हम केवल वही करेंगे जो हमारे जीवन के लिए पिता की योजना में है। तब हम अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम की अपेक्षा पिता की इच्छा पूरी करने के लिए अधिक उत्सुक होंगे।
मसीही जो प्राण/शरीर में जीवन जीते हैं और हमेशा 'अपने काम' करने पर ही जोर देते हैं, वे अक्सर चिड़चिड़े और बेचैन रहते हैं। उनमें से कुछ को आख़िरकार घबराहट या शारीरिक कमजोरी का सामना करना पड़ता है। मार्था यीशु और उसके शिष्यों की सेवा करने में कोई पाप नहीं कर रही थी। फिर भी वह मरियम के प्रति बेचैन और आलोचनात्मक थी। यह शारीरिक सेवा का स्पष्ट चित्र है। एक शारीरिक मसीही बेचैन और चिड़चिड़ा होता है। वह अपने "कर्मों" से नहीं रुका है, और परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश नहीं किया है (इब्रानियों 4:10)। उसके इरादे अच्छे हैं, लेकिन उसे इस बात का एहसास नहीं है कि उसके अपने काम चाहे कितने भी अच्छे क्यों न हों, रूपांतरण के बाद भी, परमेश्वर की नज़र में अभी भी "गंदे चिथड़े" हैं (यशायाह 64:6)।
जो लोग मार्था की तरह 'सेवा' करते हैं, वे चाहे कितने ही सच्चे क्यों न हों, वास्तव में वे केवल अपनी ही सेवा कर रहे हैं। उन्हें प्रभु का सेवक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि सेवा करने से पहले एक सेवक यह सुनने की प्रतीक्षा करता है कि उसका स्वामी उससे क्या करने को कहता है। यीशु के लिए मानसिक संतुलन खोना असंभव था, क्योंकि वह अपने आंतरिक मनुष्यत्व में पूर्ण विश्राम में था। वह हमसे कहता है,
मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मेरे उदाहरण से सीखो, और तुम भी अपनी आत्मा में विश्राम पाओगे (मत्ती 11:29)।
यह यीशु की महिमा है कि परमेश्वर की आत्मा हमें वचन में दिखाती है और वह हमें प्रदान करना और हमारे माध्यम से प्रकट करना चाहता है।
प्रभु हमारा चरवाहा है और वह अपनी भेड़ों को विश्राम के चरागाहों में ले जाता है। भेड़ें अपने स्वयं के कार्यक्रम की योजना नहीं बनाती हैं या यह तय नहीं करती हैं कि उन्हें आगे किस चरागाह में जाना है। वे बस अपने चरवाहे का अनुसरण करते हैं। लेकिन चरवाहे का इस तरह अनुसरण करने के लिए व्यक्ति को आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता से खाली होना होगा। यीशु ने नम्रतापूर्वक अपने पिता का अनुसरण किया। लेकिन एक शारीरिक मसीही भेड़ बनना नहीं चाहते, और इसलिए अपनी बुद्धि से भटक जाते हैं। हमारी बुद्धि ईश्वर का एक अद्भुत और सबसे उपयोगी उपहार है, लेकिन अगर इसे हमारे जीवन में सर्वोच्च स्थान दिया जाए तो यह सभी उपहारों में से सबसे खतरनाक बन सकती है।
प्रभु ने अपने शिष्यों को प्रार्थना करना सिखाया, "हे पिता, तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे ही पृथ्वी पर भी पूरी हो।" स्वर्ग में परमेश्वर की इच्छा कैसे पूरी होती है? वहां स्वर्गदुत 'परमेश्वर के लिए कुछ' करने की कोशिश में इधर-उधर नहीं भागते है। यदि उन्होंने ऐसा किया तो स्वर्ग में गड़बड़ी हो जाएगी। वे करते क्या हैं? वे परमेश्वर की उपस्थिति में यह सुनने के लिए प्रतीक्षा करते हैं कि वह क्या आदेश देता है, और फिर वही करते हैं जो उन्हें व्यक्तिगत रूप से करने के लिए कहा जाता है। स्वर्गदूत जिब्राईल के जकारियास से कहे गए शब्दों को सुनें, " मैं जिब्राईल हूं, जो परमेश्वर के साम्हने खड़ा रहता हूं; और मैं तुझ से बातें करने और तुझे यह सुसमाचार सुनाने को भेजा गया हूं। (लूका 1:19)। प्रभु यीशु ने भी यही स्थिति लिया - अपने पिता की उपस्थिति में प्रतीक्षा करना, उसकी आवाज़ सुनना और उसकी इच्छा पूरी करना।
एक शारीरिक मसीही कड़ी मेहनत कर सकते हैं और बहुत त्याग कर सकते हैं, लेकिन अनंत काल की स्पष्ट रोशनी से पता चलेगा कि "उन्होंने पूरी रात कड़ी मेहनत की और कुछ भी हासिल नहीं किया।" परन्तु जो लोग प्रति दिन अपना क्रूस उठाते थे (अपने प्राण का त्याग करके उसे मृत्यु की समानता में लाते थे) और प्रभु की आज्ञा मानते थे, उस दिन उनके जाल मछलियों से भरे होंगे (यूहन्ना 21:1-6)।
यीशु ने कहा, "जो कोई भी उस काम से विचलित हो जाता है जो मैंने उसके लिए योजना बनाई है, वह परमेश्वर के राज्य के लिए उपयुक्त नहीं है" (लूका 9:62 – टीएलबी अनुवाद)।