द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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1 शमूएल 30 अध्याय में हम कुछ दिलचस्प बातें देखते है। यहाँ हम दाऊद को एक संकट में पड़ा हुआ पाते हैं। जब वह और उसके लोग युद्ध के लिए गए हुए थे तो जहाँ उनके परिवार थे, वहाँ अमालेकियों ने हमला किया और उनके डेरे को उजाड़ कर उनके परिवारों को बंधुआ बनाकर ले गए। स्थिति इतनी ख़राब थी कि सभी लोग रोने लगे और अपनी समस्याओं के लिए दाऊद को दोषी ठहराने लगे। वे पथराव करके उसे मार डालना चाहते थे (1 शमूएल 30:6)। फिर हम यह सुंदर वचन पढ़ते हैं, “लेकिन दाऊद ने स्वयं को प्रभु में प्रोत्साहित (स्वयं को मज़बूत) किया। (1 शमूएल 30:6)। जब हमारे मित्र भी हमारे विरोधी बन जाए, तब हमारे लिए यह कैसा अनुकरणीय उदाहरण है।

दाऊद ने प्रभु की खोज की और प्रभु ने उसको अमालेकियों का पीछा करने के लिए कहा और उसे आश्वासन दिया कि वह सब कुछ वापिस प्राप्त कर सकेगा। (1 शमूएल 30:8)। लेकिन दाऊद यह नहीं जानता था कि वह अमालेकियों को ढूँढने के लिए किस दिशा में जाए। यह देखना अद्भुत है कि किस प्रकार परमेश्वर ने उसे उनकी दिशा में अगुवाई की। यह एक मरते हुए अनजान व्यक्ति के साथ सहज रूप में किए गए एक भलाई के काम द्वारा हुआ। दाऊद और उसके साथियों ने एक मिस्री को जंगल में अधमरी दशा में पड़े हुए देखा। उन्होंने उसकी देखभाल की और उसे खाने व पीने के लिए कुछ दिया। जब उसे कुछ बल मिला, तब उन्हें यह समझ आया कि क्योंकि वह बीमार हो गया था, इसलिए उसके साथी अमालेकियों ने उसे रेगिस्तान में मरने के लिए छोड़ दिया था (1 शमूएल 30:11-13)। और उसी ने दाऊद को अमालेकियों के पास पहुँचाया। यह हमें सिखाता है कि जब हम अजनबियों के प्रति दयालु होते हैं तो परमेश्वर हमें कैसे प्रतिफल देता हैं। इस तरह, दाऊद ने अमालेकियों को ढूँढ निकाला और उन्हें हराया। तब तीन बार यह लिखा हुआ मिलता है – जो कुछ अमालेकी लूट ले गए थे, “दाऊद ने वह सब कुछ छुड़ा लिया” (1 शमूएल 30: 18-20) यह यीशु की एक सुंदर तस्वीर है जो यह दिखाता है कि किस प्रकार उसने वह सब छुड़ा लिया जो शैतान ने हमसे चुराया था!

जब लड़ाई ख़त्म हो गई और दाऊद शिविर में लौटा, तब उसके 200 लोग ऐसे थे जो बहुत ही ज़्यादा थकान की वजह से लड़ाई करने न जा सके थे और दाऊद के सामान की देखभाल करने के लिए पीछे रुक गए थे। दाऊद के साथ गए कुछ निकम्मे लोगों ने कहा कि इन लोगों को जो लड़ाई में नहीं गए थे, लूट का कोई भाग नहीं दिया जाएगा। लेकिन हम यहाँ दाऊद के हृदय की उदारता को देखते हैं। दाऊद ने यह उत्तर दिया कि जो लोग सामान की देखभाल करने के लिए पीछे रहें, वे युद्ध की लूट में युद्ध करने गए लोगों के साथ बराबर के हिस्सेदार होंगे। और उस दिन से यह इस्राएल में एक क़ानून बन गया।

जिन कठिनाइयों व परीक्षाओं में से दाऊद गुज़रा (13 सालों से भी ज़्यादा लंबा समय), उनके द्वारा ही यह संभव हुआ कि दाऊद परमेश्वर का एक जन और एक सफल राजा बन सका था। कई वर्षों बाद वह यह लिखता है: “क्योंकि हे परमेश्वर तूने मुझे परखा है। तूने मुझे ऐसा ताया है जैसे चाँदी को ताया जाता है। तूने मुझे जालों में फँसने की अनुमति दी, तूने मेरी कमर पर भारी बोझ रखने और घुड़सवारों को मेरे सिर पर चलने की अनुमति दी। तू मुझे आग और जल में से लेकर चला, अंततः तू मुझे आत्मिक भरपूरी और अभिषेक के स्थान पर ले आया है जहाँ बहुत से लोगों को आशीष देने के लिए मेरा प्याला उमड़ रहा है। प्रभु की स्तुति हो (भजन 66: 10-13)