द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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यहोशू 1:1-2 कहता है "परमेश्वर के दास मूसा की मृत्यु के बाद, परमेश्वर ने नून के पुत्र और मूसा के सेवक यहोशू से कहा, “मेरा दास मूसा अब नहीं रहा। इसलिए अब उठ और यरदन पार कर"। मूसा के बाद स्वयं परमेश्वर ने ही यहोशू को ऊंचा उठाया और उसे अगुवे के रूप में नियुक्त किया। अगर परमेश्वर ने स्वयं हमें उस पद पर नियुक्त न किया हो, तो अगुवाई का काम प्रभावी रूप से नहीं हो सकता। प्रभु ने यहोशू से कहा कि जिस-जिस स्थान पर उसके पाँव पड़ेंगे, वह उसे दे दिया जाएगा (वचन 3), और यह कि उसके जीवन भर कोई मनुष्य उसके सामने टिकने न पाएगा (वचन 5)। यह रोमियों 6:14 में हमें दी गई प्रतिज्ञा का प्रतीकात्मक स्वरूप है, "तुम पर पाप प्रभुता न करने पाएगा क्योंकि तुम अनुग्रह के अधीन हो"। बीते समय में कनान की भूमि पर बहुत से राक्षसों ने राज्य किया था, लेकिन वे सब हराए जाने वाले थे। कोई भी पाप (चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो) हमें हरा नहीं सकता। परमेश्वर की हमारे लिए यही इच्छा है। लेकिन यह जरूरी था कि पहले यहोशू उस जगह पर वास्तविक रूप में अपना पाँव रखें, और उसे प्रभु के नाम में अपने अधिकार में लेने का दावा करें। सिर्फ तभी वह जगह उसकी हो सकती थी। हमारे साथ भी ऐसा ही है। हमें भी विश्वास से अपनी विरासत पर अपना दावा करना होता है। अगर हम परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को अपना मानकर पकड़े नहीं रहते, तो वह हमारे जीवन में कभी पूरी नहीं होंगी।

पौलुस ने यीशु के नाम में सुसमाचार में अपने अधिकार का दावा किया, जिसके परिणाम-स्वरुप उसने एक महिमामय जीवन में प्रवेश किया। 2 कुरिन्थियों 2:14 में वह कहता है, "परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो मसीह में सदा हम को जय के उत्सव में लिए फिरता है” "सदा जय में" पौलुस का विजय-गान था - और यही गीत हमारा भी विजय-गान हो सकता है। लेकिन अधिकांश मसीही इस जयवंत जीवन में कभी प्रवेश नहीं कर पाते। मिस्र में से 6,00,000 इस्राएली निकल कर आए थे, लेकिन उनमें से सिर्फ दो - यहोशू और कालेब - ही कनान में प्रवेश कर सके। आज भी, एक जयवंत जीवन में, मसीहियों के प्रवेश कर पाने का लगभग यही अनुपात है (6,00,000 में से 2)। यहोशू और कालेब ने कनान में इसलिए प्रवेश किया क्योंकि उनका यह मनोभाव था: “अगर परमेश्वर ने हमें इस भूमि पर अधिकार करने के लिए कहा है, तो हम यह कर सकते हैं", यह विश्वास है। विश्वास सिर्फ परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को देखता है, सामने खड़ी समस्याओं को नहीं। दूसरे इस्राएलिओं ने कहा, "यह संभव नहीं है। वह राक्षस बहुत बड़े और शक्तिशाली है।" आज मसीही लोग भी यही महसूस करते हैं कि क्रोध और आंखों की लालसाओं पर जय पाना असंभव है, क्योंकि यह लालसाएँ बहुत शक्तिशाली हैं और इन्होंने वर्षों से उन पर राज किया है। ऐसे विश्वासी अपने पूरे जीवन भर पराजित रहते हैं और (आत्मिक रीति से कहे तो) जंगल में ही नाश हो जाते हैं।

प्रभु ने यहोशू को आश्वस्त किया, "मैं तेरे संग रहूंगा।" इस कारण यहोशू के सामने कोई मनुष्य ठहर न पाया। हम किसी सिद्धांत पर विश्वास करने या कोई अनुभव प्राप्त करने द्वारा पाप पर विजय नहीं पाते। नहीं। यह हमारे साथ पवित्र-आत्मा द्वारा लगातार बनी रहने वाली प्रभु की उपस्थिति ही है जो हमें विजय पाने में सक्षम कर सकती है। परमेश्वर आज मसीही जगत में ऐसे अगुवे ढूंढ रहा है जिनका वह समर्थन और पुष्टि कर सके, क्योंकि उनके ह्रदय शुद्ध है। प्रभु ने यहोशू से कहा, "हियाव बाँध और दृढ़ हो क्योंकि इन लोगों को तू ही इस देश पर अधिकार दिलाएगा जिस पर इनके शत्रुओं ने एक लंबे समय से राज किया है" (वचन 6)। हमें किसी भी पाप से भयभीत नहीं होना है। हमें बाहर निकलकर परमेश्वर के लोगों को उनके शरीरों में पाप पर जय पाने वाला बनाना है - वे शरीर जिन पर वर्षों से पाप ने राज किया है। उन्हें सिर्फ विश्वास में लाना और दो बपतिस्माओं में पहुंचा देना काफी नहीं है - द्वार के अलंगों पर लहू लगा देना, लाल समुद्र पार कर लेना, और बादल के खंभे द्वारा घेर लिया जाना। यह तो सिर्फ शुरुआत है। यह सिर्फ बच्चों को दिया जाने वाला पहला पाठ है। क्या हमारे बच्चों की पहली कक्षा पास कर लेने के बाद हम उनकी पढ़ाई बंद कर देते हैं? नहीं। लेकिन मसीही जगत में आज यही हो रहा है।

बादल का खम्भा - जो पवित्र आत्मा का बपतिस्मा है - प्रतिज्ञा की भूमि में उनकी अगुवाई करने आया था। उन्हें 2 साल में ही अंदर प्रवेश कर लेना चाहिए था, लेकिन वे 40 साल तक प्रवेश न कर सके, क्योंकि उनके अगुवे अविश्वासी थे। "विश्वास सुनने से आता है" (रोमियों 10:17) अगर विश्वासियों को कलीसिया की सभाओं में इन सत्यों को नहीं सिखाया जाएगा, तो वे कैसे विश्वास करेंगे? और फिर वे पाप पर जय कैसे पाएंगे?

प्रभु ने यहोशू से कहा, "तू सिर्फ हियाव बाँधकर और बहुत दृढ़ होकर जो कुछ परमेश्वर के वचन में लिखा है उसका पालन करने के लिए सावधान रह। उससे न दाएं मुड़ना न बाएं" (1:7)। अगर परमेश्वर का वचन कहता है, "पाप तुम पर प्रभुता न करने पाएगा" (रोमियों 6:14), तो इस पर विश्वास करें और इसका अंगीकार करें। न दाएं मुड़े और न बाएं। इसका अर्थ है: इस प्रतिज्ञा की चौड़ाई को कम न करे। ऐसा न हो कि इसे कम करते हुए इसमें सिर्फ कुछ पाप ही शामिल किए जाएं। इसके साथ ही इसके अर्थ को उस से बढ़कर भी न बना दे जो इसमें नहीं है। यह न कहे कि हम इस पृथ्वी पर जैसे मसीह सिद्ध था, वैसे ही सिद्ध हो सकते हैं। हम इस पृथ्वी पर रहते हुए निष्पाप रूप में सिद्ध नहीं हो सकते। यह प्रतिज्ञा यह नहीं कहती। यह सिर्फ जिसे हम पाप के रूप में जानते हैं (सचेत स्तर पर होने वाले पाप) उस पर जय पाने के विषय में कह रही है। हम सिर्फ मसीह के आने पर ही पूरी तरह उसके जैसे बन सकेंगे। 1 यूहन्ना 3:2 इस विषय में बिल्कुल स्पष्ट है। इसलिए हम पवित्र शास्त्र के आगे न जाए और जिसकी प्रतिज्ञा पवित्र शास्त्र करता है हम उससे कम पर विश्वास न करें।