द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   आदमी
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प्रकाशितवाक्य 14:1 में ऐसा लिखा गया है: “फिर मैं ने दृष्टि की, और देखो, वह मेम्ना सिय्योन पहाड़ पर खड़ा है, और उसके साथ एक लाख चौवालीस हजार जन हैं, जिन के माथे पर उसका और उसके पिता का नाम लिखा हुआ है”।

यहाँ हम जो देख रहें हैं वह प्रकाशितवाक्य के 13 अध्याय में लिखी हुई बातों से बिल्कुल विपरीत है। वहाँ हम देखते हैं कि मसीह का विरोधी, लोगों को उसे स्वीकार करने के लिए (माथे पर) सार्वजनिक रूप से या गुप्त रीति से (दाईं हथेली में) प्रस्तुत करने के लिए उन्हें विकल्प प्रदान करता है। लेकिन यहां हम देखते हैं कि प्रभु यीशु मसीह ने अपने चेलों को ऐसी कोई भी विकल्प प्रदान नहीं किया। उनके हर शिष्य को उन्हें सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना है। उस चिह्न को उनके माथे पर ही होना चाहिए।

हमें इस लिए नहीं बुलाया गया है कि हम मसीह के गुप्त अनुयायी बने। यीशु ने कहा, “जो कोई मनुष्यों के साम्हने मुझे मान लेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के साम्हने मान लूंगा। पर जो कोई मनुष्यों के साम्हने मेरा इन्कार करेगा उस से मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के साम्हने इन्कार करूंगा।…….. जो कोई इस व्यभिचारी और पापी जाति के बीच मुझ से और मेरी बातों से लजाएगा, मनुष्य का पुत्र भी जब वह पवित्र दूतों के साथ अपने पिता की महिमा सहित आएगा, तब उस से भी लजाएगा (मत्ती 10:32,33; मरकुस 8:38) ।

यदि आप कार्यालय में काम करते हैं, तो प्रभु का चिह्न आपके माथे पर होना चाहिए। दूसरे शब्दों में, आपके कार्यालय में हर किसी को यह पता होना चाहिए कि आप प्रभु यीशु मसीह के शिष्य हैं। आपके हाथों पर छिपी चिह्न के रूप में ऐसी कोई चीज़ नहीं है‚ जिसके विषय में आपके काम के जगह में कोई भी नहीं जानता हों। यीशु मसीह के एक सच्चे अनुयायी के माथे पर अवश्य वह चिह्न होगा। उनके सहयोगी उसे मसीह के शिष्य के रूप में जानेंगे!

यह शर्म की बात है कि कई "विश्वासी" यीशु मसीह के अनुयायी के रूप में जाना जाने के लिए शर्मिंदा हो रहे हैं। मैंने देखा है कि गैर मसीही खुले तौर पर अपने माथे पर धार्मिक चिह्न पहनकर - निर्लज्जित अपने धर्म का प्रचार करते है! लेकिन मसीही तो अक्सर शर्मिंदा होते है यह प्रकट करने के लिए कि वे किसका पालन कर रहे है - शायद इस कारण से कि उन्हें डर है कि कार्यालय में उनकी पदोन्नति के अवसर इससे प्रभावित हो सकते है।

इस तरह के मसीही समझौता करने वाले लोग है और सांसारिक सम्मान के प्रेमी, और यीशु मसीह के निडर गवाह नहीं हैं। वे निश्चित रूप से उनमें से एक नहीं होंगे जो सिय्योन पर्वत पर मेमने के साथ खड़े रहेंगे, क्योंकि वे 144,000 ऐसे शिष्य है जो बिना शर्म के साहसपूर्वक यह स्वीकार करते है कि वे यीशु मसीह का पालन करते है। वे अपने रिश्तेदारों के बीच में समझौता नहीं करते, न ही अपने कार्यालय में, या अपने पड़ोस में। जब कभी आप एक गैर-मसीही को अपने माथे पर अपने धार्मिक चिह्न को पहने देखते हैं, वह आपके लिए एक चुनौती रहे। यदि उसको अपने देवता की पूजा का प्रचार करने से शर्म नहीं है, तो आपको क्यों यीशु मसीह की पूजा के प्रचार से शर्म आती है?

यहां 144,000 लोग वे नहीं हैं जिन्हें हम नें अध्याय 7 में पहले देखा था। वे केवल इस्त्राएल के जनजातियों में से थे - और इस्त्राएल की जनजातियां निश्चित रूप से मेमने का पालन नहीं करती और न ही विश्वास करते है कि यीशु मसीह मसीहा है। यह पूरी तरह से एक और समूह है। ये वे है जो प्रकाशितवाक्य 2 और 3 में "विजयी" कहलाए गए है।

एक 'नाम' पुराने नियम में चरित्र का प्रतिनिधित्व करता था। इस कारण से "मेमने का और पिता का नाम" इन 144,000 के माथे पर रहना इंगित करता है कि उनका जीवन मेमने के और पिता के प्रकृति को प्रतिबिंबित करता हैं।

अपने आप से पूछने के लिए एक अच्छा सवाल यह है कि जो हमारी ओर बुराई कर रहे हैं उनके प्रति हमारे दृष्टिकोण में क्या हम मेमने की प्रकृति को प्रतिबिंबित करते है जिन्होंने अपने मुंह को बंद रखा जब वे कतरनी के लिए जा रहे थे, जो चुप थे जब वह बलि चढ़ाए जा रहे थे और जिन्होंने पिता को उपना सब कुछ प्रतिबद्ध किया जब उनके साथ अन्याय का व्यवहार हो रहा था और उनके अधिकार और उनकी प्रतिष्ठा छीनी जा रही थी? क्या हम अपने पिता के प्रकृति को प्रतिबिंबित करते हैं जो पापियों के साथ सहनशील है और जो पछताए हुए भ्रष्टों का स्वागत करते है (लूका 15:11-24)।

कुछ पूछ सकते हैं, , "क्या आप कहना चाहते हैं कि इस तरह के केवल एक छोटी संख्या ही विजयी रहेगी?" लेकिन आपने अपने जीवन में कितने ऐसे विश्वासियों को देखा है जो कभी गुस्सा नहीं करते और जो उत्तेजना के समय चुप रहना सीख चुके है ? यह निश्चित रूप से एक छोटी संख्या है। वह स्वभाव जिसे इन 144,000 ने पृथ्वी पर अंदर की ओर अधिग्रहण कर दिया था अब उनके चेहरे पर उनके व्यक्तित्व के माध्यम से यह चमकना शुरू कर देता है - " पिता की प्रकृति" । हम में से हर एक के लिए परमेश्वर की इच्छा है कि हम बढ़के परिपक्व हो और अन्य लोगों के प्रति उनके समान हो। इस अंत को देखकर ही वे हमें सिखलाते है।

जब हम मसीही जीवन शुरू करते है हम सभी बच्चे हैं। यदि हम बढ़ते हैं, हम धीरे-धीरे युवा पुरुषों के समान हो जाते हैं। और यदि हम इस विकास में बढ़ते जाए, हम पितरों की तरह हो जाएंगा ( 1 यूहन्ना 2:12-14) पिता दूसरों की सेवा के लिए खुद का इनकार करते है, पिता जो दूसरों का नेतृत्व करके उन्हें परिपक्वता में ले जाने की आंस रखते है।

यह हमारा मनोभाव होना चाहिए - कि मेमने की और पिता की प्रकृति, पूर्ण रूप से हमारा हो जाए कि यह हमारे व्यक्तित्व के माध्यम से परिलक्षित होने लगे।