द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   मूलभूत सत्य
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1. पाखंड: एक पाखंडी होना दूसरों के सामने यह दिखावा करना है कि हम वास्तविकता से ज्यादा पवित्र है। यह ठीक वैसा ही है जैसा झूठा होना या झूठ बोलना। यीशु ने मत्ती 23: 13-29 में सात बार पाखंडियों पर श्राप घोषित किया। यीशु ने फरीसियों से कहा कि उनका भीतरी जीवन पूरी रीति से "आत्म केन्द्रित" था (मत्ती 23:25) - जिसका अर्थ है कि वे केवल स्वयं को प्रसन्न करने के लिए ही जीवन जीते थे। इसके बावजूद भी वे दूसरों के सामने पवित्र होने की छाप छोड़ते थे, सिर्फ इसलिए की वे शास्त्रों को भलीभांति जानते थे, उपवास और प्रार्थना किया करते थे और अपनी आय का दशमांश दिया करते थे। वे बाहरी रूप से बहुत धार्मिक दिखाई देते थे। उन्होंने लोगों के बीच में लंबी प्रार्थनाए की, परंतु आज के बहुत से लोगों के समान वे गुप्त में लंबी प्रार्थना नहीं करते थे। यह पाखंड है यदि हम केवल रविवार की सुबह परमेश्वर की आराधना करे और हर समय अपने हृदय में आराधना की आत्मा न रखे।

2. आत्मिक घमंड: आत्मिक घमंड का पाप, पवित्रता की खोज करेनेवाले लोगों के बीच पाया जानेवाला सबसे सामान्य पाप है। हम सब स्व-धार्मिक फरीसी के दृष्टांत को जानते हैं जिसने दूसरों को उसकी प्रार्थना में भी तुच्छ जाना (लुका 18: 9-14)! इस बात की अधिक संभावना है कि विश्वासियों द्वारा सार्वजनिक रूप से की जाने वाली सभी प्रार्थनाओं में से 90% प्रार्थनाएँ मुख्य रूप से जो लोग उन्हे सुन रहे है उन्हे प्रभावित करने के लिए होती है और यह परमेश्वर से प्रार्थना कदापि नहीं होती। हो सकता है इस दृष्टांत में फरीसी अपने बाहरी जीवन में अन्य पापियों की तरह बुरा नहीं होगा। परंतु यीशु ने उस घमंड से घृणा की जिससे उसने अपनी आत्मिक गतिविधियों के विषय में सोचा और दूसरों को तुच्छ जाना। यह आत्मिक घमंड है जो विश्वासियों को लगातार अन्य विश्वासियों का न्याय करवाता है। यीशु ने सिखाया कि स्वर्ग में सबसे बड़ा व्यक्ति सबसे नम्र होगा (मत्ती 18: 4)। सबसे बड़ा गुण जो स्वर्ग में पाया जाता है वह नम्रता है।

3. अशुद्धता: अशुद्धता हमारे हृदय में मुख्यतः हमारी आंखों और हमारे कानों के द्वारा प्रवेश करती है। यह अशुद्धता तब हमारे हृदय से निकलती है और हमारे शरीर के विभिन्न अंगो के माध्यम से स्वयं को प्रकट करती है - मुख्य रूप से हमारी जीभ और हमारी आंखों के माध्यम से। जो भी शुद्ध होना चाहता है, उसे विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए कि वह क्या देखता है और वह क्या सुनता है। यीशु ने अशुद्धता से इतनी घृणा की कि उसने अपने शिष्यों से कहा कि उन्हें अपनी दाहिनी आंख को बाहर निकालने और दाहिने हाथ को काट देने के लिए इच्छुक होना चाहिए बजाय इसके कि इन अंगो के द्वारा पाप करे। (मत्ती 5: 27-29)। डॉक्टर कब दाहिने हाथ को काटने या ऑपरेशन द्वारा आंख को हटाने की सलाह देते हैं? केवल तभी जब चीजें इतनी बदतर हो जाती कि यदि इन अंगों को काट कर नहीं हटाया जाए, तो पूरा शरीर मर जाएगा। पाप के संबंध में भी हमें यह समझने की जरूरत है। पाप इतना गंभीर है कि यह हमारे जीवन को नाश कर सकता है।

4. मानव आवश्यकता की उपेक्षा: यीशु क्रोधित हुआ जब आराधनालय के अगुवे नहीं चाहते थे कि वह एक व्यक्ति को चंगा करे सिर्फ इसलिए क्योंकि वह सब्त का दिन था, "वह मानव आवश्यकता के प्रति उनकी उपेक्षा (लापरवाही) से गहराई से विचलित हुआ" (मरकुस 3: 5 – टी.एल.बी.)। हमें सभी मनुष्यों के साथ, विशेष रूप से परमेश्वर के संतानों के साथ भलाई करने की आज्ञा दी गई है (गलतियों 6:10)। यीशु ने सिखाया कि जिन्होंने अपने भाइयों के जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के अभाव को पूरा करने के लिए कोई भी सहायता नहीं की, वे अंतिम दिन में उसकी उपस्थिती में से बाहर निकाल दिए जाएंगे (मत्ती 25: 41-46)। हमारे पास शायद बीमार विश्वासियों को चंगा करने के लिए चंगाई का वरदान नहीं होगा। लेकिन हम सभी निश्चित रूप से उन लोगों से मुलाक़ात कर सकते हैं जो बीमार हैं और उन्हें प्रोत्साहित कर सकते हैं। केवल यही सब परमेश्वर हमसे चाहता है। धनवान व्यक्ति नरक में इसलिए गया क्योंकि उसने अपने भाई लाजर की देखभाल नहीं की, जो एक संगी यहूदी और अब्राहाम की संतान था। अच्छे सामरी के दृष्टांत में याजक और लेवी, यीशु द्वारा पाखंडियों के रूप में उजागर किए गए क्योंकि उन्होंने अपने संगी भाई-यहूदी पर तरस नहीं दिखाया जो सड़क के किनारे घायल पड़ा था।

5. अविश्वास: बाइबिल एक अविश्वासी हृदय को एक दुष्ट हृदय के रूप में बताती है (इब्रानियों 3:12)। यीशु ने अपने शिष्यों को अविश्वास के लिए सात बार डांटा। (मत्ती 6:30; 8:26; 14:31; 16: 8; 17: 17-20; मरकुस 16:14; लूका 24:25)। ऐसा लगता है कि उसने कभी भी अपने शिष्यों को किसी और चीज़ के लिए नहीं डांटा!! अविश्वास परमेश्वर का अपमान है क्योंकि वो यह दर्शाता है कि जितना एक दुष्ट पिता धरती पर अपने बच्चो की चिंता करता है और अपने बच्चो की जरूरतों को पूरा करता है, उतना परमेश्वर अपने बच्चो की चिंता नहीं करता या उनकी आवश्यकता पूरी नहीं कर सकता। डिप्रेसन, खराब मनोभाव और निराशा पर विजय केवल तभी पाई जा सकती है जब हम स्वर्ग में उपस्थित एक प्रेमी पिता और उसके वचन में दिये गए अद्भुत वायदों पर विश्वास करते है। दो बार हम यीशु के आश्चर्यचकित होने के बारे में पढ़ते है - एक बार जब उसने विश्वास देखा और एक बार जब उसने अविश्वास देखा!! (मत्ती 8:10; मरकुस 6: 6)। जब भी यीशु ने लोगों में विश्वास देखा तो वह उत्साहित हुआ और वह निराश हुआ जब उसने लोगों को स्वर्ग में विराजमान एक प्रेमी पिता पर भरोसा करने के लिए अनिच्छुक पाया।