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1. वह यीशु का दास था: हम प्रकाशितवाक्य 1:1 में पढ़ते हैं - यीशु मसीह का प्रकाशन, जिसे परमेश्वर ने इसलिए दिया कि अपने दासों को वे बातें दिखाए जो शीघ्र होने वाली हैं। उसने अपना स्वर्गदूत भेजकर इन्हें अपने दास यूहन्ना को बताया (चिन्हित किया)। यह प्रकाशन मसीह के दासों को दिया गया था। यह सबके लिए नहीं है। यह सिर्फ उनके लिए है जो अपनी इच्छा से प्रभु के दास हैं। एक वेतन पाने वाले सेवक और एक दास (बंधुवा मज़दूर) में फर्क होता है। एक सेवक वेतन के लिए काम करता है। लेकिन एक दास एक गुलाम होता है जो अपने स्वामी की सम्पत्ति होता है और जिसके अपने कोई अधिकार नहीं होते। तो प्रभु के दास कौन हैं? वे जिन्होंने खुशी से अपनी सभी योजनाएं व महत्वकांक्षाएं और अपने सभी अधिकार त्याग दिए हैं और जो अब अपने जीवनों के सभी क्षेत्रों में सिर्फ परमेश्वर की इच्छा पूरी करना चाहते हैं। सिर्फ ऐसे विश्वासी ही सच्चे दास होते हैं। प्रभु के बहुत से दास हैं, लेकिन बहुत कम इच्छुक दास हैं। परमेश्वर के वचन को केवल उसके दासों द्वारा ही सही रीति से समझा जा सकता है। दूसरे लोग एक बौद्धिक रूप में उसका अध्ययन कर सकते हैं, वैसे ही जैसे कोई एक पाठ्य पुस्तक का अध्ययन करता है। लेकिन वे उसमें रखी आत्मिक वास्तविकताओं को कभी न समझ पाएंगे। यीशु ने यूहन्ना 7:17 में इस बात को बिलकुल स्पष्ट कर दिया कि एक व्यक्ति सिर्फ परमेश्वर की इच्छा के प्रति आज्ञाकारी होने द्वारा ही सत्य को जान सकता है।

2. वह अंत तक एक भाई के रूप में रहा: हम प्रकाशितवाक्य 1:9 में पढ़ते हैं, मैं यूहन्ना जो तुम्हारा भाई और यीशु के कारण क्लेश, राज्य और धीरज में तुम्हारा सहभागी हूँ, परमेश्वर के वचन और यीशु की गवाही के कारण पतमुस नामक द्वीप में था। हम यहाँ देखते हैं कि यूहन्ना अपने आपको "तुम्हारा भाई" कहता है। उस समय यूहन्ना बारहों में से एकमात्र जीवित प्रेरित था जिसे यीशु ने चुना था। जब प्रभु ने पतमुस द्वीप पर उसे यह प्रकाशन दिया, उस समय वह लगभग 95 वर्ष का था और उसे परमेश्वर के साथ-साथ चलने का 65 साल का अनुभव हो चुका था। लेकिन वह फिर भी एक साधारण भाई ही था। वह पोप यूहन्ना या रैवरैन्ड यूहन्ना नहीं बन गया था। वह पास्टर यूहन्ना भी नहीं था! वह एक सामान्य भाई था! यीशु ने अपने शिष्यों को यह सिखाया था कि वे हरेक शीर्षक या पद से बचे रहें और सिर्फ भाई ही कहलाएं (मत्ती 23:8-11)। और आज के कई लोगों के विपरीत, प्रेरितों ने सचमुच उसकी आज्ञा का पालन अक्षरशः किया। हमारा सिर्फ़ एक ही सिर और एक ही अगुवा है अर्थात् मसीह। हमारी सेवकाई या कलीसिया में हमारा अनुभव चाहे कुछ भी हो, लेकिन हम सब आपस में सिर्फ भाई ही हैं।

3. वह आत्मा में था: प्रकाशितवाक्य 1:9,10 में हम देखते हैं कि यूहन्ना "आत्मा में" था और इसीलिए उसने प्रभु की वाणी सुनी। हम उस आवाज को भी सुन सकते हैं - अगर हम आत्मा में हैं। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि हमारा मन कहां लगा हुआ है। यदि हमारा मन पृथ्वी की बातों पर लगा रहेगा, तो जो आवाज़ हम सुनेंगे, वे पार्थिव वस्तुओं के विषय में होगी।

4. वह एक नम्र भाई था: प्रकाशितवाक्य 1: 17 में हम देखते हैं कि यूहन्ना जो अंतिम भोज के समय यीशु की छाती पर सिर रखे हुए था, अब एक मृतक की तरह उसके चरणों में गिर पड़ता है। यूहन्ना 65 साल से परमेश्वर के संग-संग चल रहा था। निस्संदेह उस समय वह पृथ्वी पर सबसे ईश्वरीय व्यक्ति होगा। फिर भी प्रभु की उपस्थिति में वह सीधा खड़ा न रह सका था। जो प्रभु को सबसे ज्यादा जानते हैं, वे उसका सबसे ज्यादा भय मानते हैं। जो परमेश्वर को सबसे कम जानते हैं, वे उसके साथ एक सस्ता परिचय होने का दिखावा करते हैं। स्वर्ग के साराप प्रभु के सामने अपना मुख ढाँपे रहते हैं (यशा. 6:23)। अय्यूब और यशायाह ने जब परमेश्वर की महिमा को देखा तो उन्होंने अपनी पापमय दशा पर विलाप किया (अय्यूब 42:56; यशा 6:5)। लेकिन "जहाँ स्वर्गदूत भी पाँव रखने से डरते हैं, वहाँ घुसने में मूर्ख बड़ी जल्दबाज़ी करते हैं!" शारीरिक विश्वासी ऐसी भूल करते हैं। हम प्रभु को जितना ज्यादा जानेंगे, हम उतना ही विस्मित होते हुए उसकी आराधना करने के लिए उसके चरणों में गिरेंगे, और अपने मुख धूल में छुपाए रहेंगे। जब हम प्रभु की महिमा को लगातार देखते रहते हैं, सिर्फ तभी हम हमारे भीतर मसीह के विपरीत स्वभाव देखेंगे। सिर्फ तभी ऐसा होगा कि हम दूसरों पर दोष लगाना छोड़ कर अपना न्याय करना शुरु कर देंगे और सिर्फ तभी हम उसके उस स्पर्श का अनुभव पाएंगे जो यूहन्ना ने पतमुस में पाया था।

5. वह क्लेश से गुज़रा: प्रकाशितवाक्य 1: 9 में यूहन्ना ने अपने बारे में यह भी कहा कि वह "उस क्लेश में भी सहभागी है जो मसीह में है।" यीशु के प्रति पूरे हृदय से समर्पित हरेक शिष्य को, जब तक वह इस संसार में है, "उस क्लेश में जो यीशु में है" सहभागी होने के लिए तैयार रहना होगा। जब यूहन्ना के सामने से यह पर्दा हटाया गया, उस समय वह चैन-आराम में नहीं था। उसने यह प्रकाशन पतमुस द्वीप में क्लेश का अनुभव करते हुए पाया था, क्योंकि वह “परमेश्वर के वचन और यीशु की साक्षी के प्रति विश्वासयोग्य" रहा था (प्रकाशितवाक्य 1: 9)। अंतिम दिनों में मसीह-विरोधी के हाथों महाक्लेश सहने वाले संतों को लिखने की योग्यता पाने से पहले, यह ज़रूरी था कि वह स्वयं उस क्लेश को सहता। क्लेशों का सामना कर रहे लोगों के बीच एक सेवकाई सौंपने से पहले, परमेश्वर हमें परीक्षाओं और पीड़ाओं में से लेकर चलता है।