द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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न्यायियों की पुस्तक के 3-16 अध्यायों में हम 13 न्यायियों के विषय में पढ़ते है जिन्हें परमेश्वर ने खड़ा किया था। चौदहवा न्यायी शमूएल था जिसके विषय में 1 शमूएल में हम पढ़ते है। इन 13 न्यायियों में से अधिकतर न्यायियों के नाम जाने माने नहीं थे।

पहला न्यायी जिसे परमेश्वर ने खड़ा किया वह ओत्नीएल था। वह कालेब का भतिजा तथा जमाई था (न्यायियों 3:9)। वचन में कहा गया है, ''उसमें यहोवा का आत्मा समाया, और वह इस्राएलियों का न्यायी बन गया'' (न्यायियों 3:10)। इस बात को हम न्यायियों के पुस्तक में हर बार पाते है। प्रभु की आत्मा गिदोन पर आयी तथा शिमशोन पर आयी ताकि उन्हें सुसज्जीत कर उनके द्वारा परमेश्वर के लोगों का नेतृत्व हो (न्यायियों 6:34; 14:6)। पवित्र आत्मा के अभिषेक के कारण वे इस्राएल का राज्य चला पाए। केवल अभिषेक द्वारा ही हम आज परमेश्वर के लोगों का मार्गदर्शन कर सकते है और नेतृत्व कर सकते है।

हमारा नया जन्म हुआ हो। नये जन्म के समय हममे पवित्र आत्मा का कार्य शुरू होता है। परन्तु, पवित्र आत्मा से भर जाना या हममें पवित्र आत्मा समाया जाना या परमेश्वर की सेवकाई के लिये हम पवित्र आत्मा की सामर्थ से भर जाना एक अलग बात है। कुछ सभाओं में हम भावनाओं से उत्तेजीत होते है। परन्तु, हम उन भावनाओं पर निर्भर न रहे। अनन्य भाषा पर हम निर्भर न रहे। अनन्य भाषा बोलना और उसी समय पवित्र आत्मा से न भरना संभव है। जब तक हमें पवित्र आत्मा की सामर्थ प्राप्त नहीं होती तब तक हम संतुष्ट न हो। बगैर पवित्र आत्मा की सामर्थ के हम परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते। यीशु मसीह इस पृथ्वी पर तीस वर्ष तकपरिपूर्ण जीवन जीया। उसका जन्म पवित्र आत्मा द्वारा हुआ और वह तीस वर्ष तक आज्ञाकारी रहा। फिर भी पिता की सेवकाई करने से पूर्व पवित्र आत्मा द्वारा अभिषेक होना उसके लिये भी आवश्यक था। यर्देन नदी में जब उसने प्रार्थना थी तब परमेश्वर का आत्मा उसपर उतरा। हम यीशु मसीह का अनुकरण करे। अभिषेक के बदले अपने ज्ञान और दानों से काम नहीं चलेगा और हमे इस अभिषेक में निरन्तर रहना होगा। शिमशोन के उदाहरण से हमें एक सीख मिलती है कि उसने अभिषेक प्राप्त किया परन्तु बाद में अभिषेक खो दिया।

ओत्नीएल ने 40 वर्ष तक इस्राएल का राज्य संभाला। इन 40 वर्षों में इस्राएल में शान्ति बनी रही (न्यायियों 3:11)। परन्तु, जब ओत्नीएल की मृत्यु हुई उसके बाद इस्राएल ने परमेश्वर की दृष्टि में पाप करना शुरू कर दिया। जब इस्राएल ने दुष्टता की तब परमेश्वर ने मोआब के राजा को अनुमति दी कि इस्राएल को 18 वर्षों तक दास्यता में रखे (न्यायियों 3:14)।

न्यायियों की पुस्तक में हम इस प्रकार के सात चक्रों को देखते है - इस्राएलियों ने पाप किया, वे पथभ्रष्ट हुए, फिर परमेश्वर ने उन्हें दंड दिया और उनको मुक्त करने के लिये न्यायियों को खड़ा किया। आज कई विश्वासी लोग इस प्रकार के चक्र में जीवन जीते रहते है - वे पथभ्रष्ट होते है, पश्चाताप करते है, मुक्ति पाते है, फिरसे पथभ्रष्ट होते है और यह चक्र शुरू रखते...। समाप्त न होनेवाला यह चक्र उनके जीवन में चलता रहता है। वे सभाओं में जाते है, उत्तेजित होते है और अपना जीवन समर्पित करते है। बेदारी की सभा समाप्त होने पर फिर से पथभ्रष्ट होना शुरू हो जाता है। फिर एक दिन अभिषिक्त प्रचारक आता है, सभा में प्रचार करता है और यह लोग दोबारा उत्तेजीत हो उठते है।

क्या परमेश्वर की इच्छा है कि हम इस तरह के चक्र में घूमते रहे? कदापि नही! आज पवित्र आत्मा सदा हमारे साथ है। उन दिनों किसी एक अगुवे पर पवित्र आत्मा का अभिषेक होता था और अन्य सभी लोग उस एक अगुवे पर निर्भर होते थे। परन्तु आज हम सभी पवित्र आत्मा को पा सकते है। हमें किसी पुरुष पर निर्भर होने की जरूरत नहीं। हमारे दिलों में पवित्र आत्मा की आग सदा के लिये जल सकती है।

18 वर्षों तक मोआबी लोगों की सेवा करने के बाद इस्राएलीयोंने परमेश्वर से रोकर प्रार्थना की (न्यायियों 3:15)। फिर परमेश्वर ने एक मुक्तीदाता को खड़ा किया - एहूद को। वह इस्राएल का दूसरा न्यायी था। मैं सोचता हूं कि इस्राएली लोगों ने 18 वर्ष क्यों व्यर्थ गंवाएँ? दास्यता के पहले महिने में ही उन्होंने रोकर परमेश्वर से प्रार्थना क्यों नहीं की? आज लोग 18 वर्षों तक या उससे भी बढ़कर 40 वर्षों तक पाप के गुलाम क्यों होते है? पाप में इतने वर्षों तक जीवन जीने के बाद वे पाप पर विजय पाने की सोचते है। पता नहीं वे क्यों ऐसा करते है। परन्तु ऐसा पूरे संसार में हो रहा है।

एहूद ने मोआबी लोगों पर विजय पायी और 80 वर्षों तक इस्राएल में शान्ति बनी रही (न्यायियों 3:30)। परन्तु इस्राएली लोग फिर से पथभ्रष्ट हुए और परमेश्वर ने शमगर को खड़ा किया। उसने बैल के ज़बड़े से 600 पलिष्टियों को मार गिराया था। यह कार्य उसने आत्मा के अभिषेकद्वारा ही किया था, जैसा शिमशोन ने किया।

फिर से इस्राएली लोगों ने परमेश्वर की दृष्टि में बुरा किया, तब परमेश्वर ने उन्हें याबीन राजा के हाथ में दे दिया। कनान के याबीन राजा ने उन्हें खरीद लिया। वास्तव में देखा जाये तो इस्राएली लोगों ने कनानी लोगों को बाहर खदेड़ देना था। परन्तु, अब कनान के लोग इस्राएल पर राज्य कर रहे थे। विश्वासियों ने पाप पर विजय पाना आवश्यक है; परन्तु हम देखते हैं कि पाप उनपर राज्य करता है। याबीन के पास लोहे के 900 रथ थे और उसने इस्राएली लोगों का बीस वर्ष तक शोषण किया। वे फिर से परमेश्वर के पास याचना करने लगे और परमेश्वर ने दबोरा नामक न्यायी को उनके लिये खड़ा किया (न्यायियों 4:3,4)।