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अगर आप पहले परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज करेंगे, और सिर्फ परमेश्वर को ही प्रसन्न करना चाहेंगे, तो आपके जीवनों में परमेश्वर की इच्छा के पूरा होने को कोई नहीं रोक सकता क्योंकि पृथ्वी का सारा अधिकार हमारे प्रभु के हाथ में है। यीशु ने पिलातुस के सम्मुख दो महत्वपूर्ण बातें बोली थीं:

1. “मेरा राज्य इस संसार का नहीं है, इसलिए मैं पृथ्वी की बातों के लिए युद्ध नहीं करता" (यूहन्ना 18:36)।
2. "तेरा मुझ पर कोई अधिकार न होता, अगर वह तुझे मेरे पिता द्वारा न दिया गया होता" (यूहन्ना 19:11)।

जब पौलुस ने तीमुथियुस को प्रभु के लिए एक अच्छा साक्षी होने के लिए कहा, तब उसने तीमुथियुस को यह दोहरा अंगीकार याद दिलाया था (1 तीमु. 6:13,14)।

जब मेरा मुश्किल हालातों और मुश्किल लोगों से सामना हुआ है, तब ऐसे समयों में मैंने परमेश्वर, शैतान और मनुष्यों के सम्मुख यही अंगीकार किया है।

अगर आपके जीवन में कोई मूर्ति न होगी, तो आप हमेशा विश्राम पा सकते हैं। अच्छी नौकरियाँ, घर और पार्थिव सुख-सुविधाएं विश्वासियों के लिए मूर्तियाँ बन गई हैं। यह लकड़ी या पत्थर की मूर्ति की आराधना करने जैसा ही है! लेकिन अनेक मसीहियों को यह बात समझ नहीं आती। जो आत्मिक आशिषे परमेश्वर देता है (जैसे एक सेवकाई), वह भी एक मूर्ति बन सकती है, जैसे अब्राहम के लिए इसहाक बन गया था। जब सिर्फ परमेश्वर ही हमारे लिए सब कुछ होगा, सिर्फ तभी हम अपने हृदय से यह कह सकेंगे, "प्रभु, स्वर्ग में मेरा और कौन है? और तेरे अलावा मैं इस पृथ्वी पर और कुछ नहीं चाहता" (भजन 73:25), और तभी हम यह कह सकेंगे कि हम मूर्तिपूजा से इस तरह मुक्त हो गए हैं कि अब हम सिर्फ प्रभु की आराधना करें। मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप सभी हरेक मूर्ति से मुक्त होकर सिर्फ प्रभु की आराधना करने वाले बन सकेंगे।

- वह मनुष्यों में कभी न हो - कहीं ऐसा न हो कि यिर्मयाह 17:5,6 में उल्लेखित श्राप हम पर आ पड़ेः “प्रभु यह कहता है, 'श्रापित है वह मनुष्य जो मनुष्य पर भरोसा करता है और उसे अपना सहारा बनाता है, और उसका हृदय परमेश्वर के विरुद्ध हो जाता है। वह मरुभूमि में उगी झाड़ी के समान होगा, और कभी सम्पन्नता न देखने पाएगा। वह जंगल में पथरीली, खारी और उजाड़ भूमि में बसेगा।'"

हमारी असली सम्पत्ति हमारा धन या ज़मीन-जायदाद नहीं है, बल्कि प्रभु का वह ज्ञान है जो नाकामियों और गहरी परीक्षाओं में से आता है। यिर्मयाह 9:23,24 (लिविंग बाइबल) कहता है: "प्रभु कहता है, 'बुद्धिमान व्यक्ति अपनी बुद्धि पर खुश न हो, न ही बलवान अपने बल पर, और न ही धनवान उसके धन पर। वे सिर्फ इस एक ही बात पर गर्व करें: कि वे वास्तव में मुझे जानते हैं, और यह समझते हैं कि मैं ही वह प्रभु हूँ जिसका प्रेम अटल है, और मैं ऐसा ही बने रहना पसन्द करता हूँ।" अंततः सिर्फ यही वह बात है जो मूल्यवान बनी रहेगी। इसकी तुलना में संसार की हरेक उपलब्धि कूड़ा-करकट है। हम इस सत्य को जितनी जल्दी जान लेंगे, हम उतने ही ज़्यादा बुद्धिमान बन जाएंगे।