द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   जवानी Struggling चेले
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हमारी आत्मिक शिक्षा के एक भाग के रूप में, प्रभु हमें कठिन अनुभवों में से लेकर चलता है। जैसे, वह दूसरे लोगों को हमारे विश्वास का मज़ाक़ उड़ाने की अनुमति दे सकता है। हमारा ठट्ठा उड़ाने वाले ज़्यादातर लोगों में "हीन भावना" होती है, और वे हमसे ईर्ष्या करते हैं। इसलिए हमें उन पर दया करनी चाहिए। लेकिन उनका ठट्ठा हममें यह भलाई पैदा करता है कि वह हमें मनुष्यों के मत से और ज़्यादा मुक्त कर देता है। अब जब मैं अपने जीवन में पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो मुझे यह नज़र आता है कि (एक नवयुवक के रूप में) नौसेना के जहाज़ों में मेरे सहकर्मियों द्वारा मेरे विश्वास का ठट्ठा उड़ाया जाना, बाद में मुझे बहुत काम आया; उसने मुझे मनुष्यों को प्रसन्न करने की इच्छा से मुक्त होने में बड़ी मदद की थी। और इस तरह प्रभु ने मुझे मेरी सेवकाई के लिए तैयार किया।

मैं प्रभु की उस कृपा का आभारी हूँ जो एक परिवार के रूप में हमारे सामने आई हरेक परीक्षा में से गुज़र जाने के लिए उसने हमें दी है। शैतान ने बहुत लोगों को हमें सताने के लिए उकसाया, क्योंकि वे हमसे ईर्ष्या करते थे। लेकिन शैतान पर जय पाने के लिए हमें परमेश्वर से अनुग्रह मिला, और हमें नुकसान पहुँचाने वाले सभी लोगों के प्रति हम एक अच्छा मनोभाव बनाए रख सके हालांकि उनमें से एक भी असल में हमें कोई नुकसान नहीं पहुँचा सका था। जो कुछ भी लोगों ने हमारे साथ किया, उसने हमारी भलाई के लिए ही काम किया, जैसा कि रोमियों 8:28 में प्रतिज्ञा की गई है।

यह याद रखें कि लोग हमारे बारे में जितनी भी बुरी बातें बोलते हैं, वे बातें हमें बुरा नहीं बना सकतीं, और वे हमारे बारे में जितनी भी अच्छी बातें बोलते हैं, वे हमें अच्छा नहीं बना सकतीं। हम क्या होंगे, यह फैसला हम खुद करते हैं - और यह हमारे प्रतिदिन अपना क्रूस उठाने, यीशु के पीछे चलने, और चाहे कोई हमारे बारे में कुछ भी बोले या हमारे साथ कुछ भी करे, उसमें उनके प्रति मसीह-समान व्यवहार करने पर निर्भर होता है।

हमारी पिछली नाकामियाँ भी चाहे वे कितनी भी गंभीर और बड़ी क्यों न हो हमारे जीवनों के लिए परमेश्वर के उद्देश्यों के पूरा होने में कोई रुकावट नहीं बन सकतीं यदि हम यह निर्धारित करते हैं कि हम भविष्य में और भी अधिक पूरे दिल से अपने अतीत को सुधारेंगे।

मेरा नया जन्म होने के बाद मैंने प्रभु को बहुत सी बातों में निराश किया था। लेकिन 1975 में, जब मैं लगभग 36 साल का था और हमने एक कलीसिया के रूप में अपने घर में मिलना शुरू कर दिया था, तब मैंने उन लोगों से भी ज़्यादा सच्चे हृदय से प्रभु को समर्पित होने का संकल्प किया जिन्होंने मेरी तरह प्रभु को निराश नहीं किया था। और आज इतने सालों के बाद, मैं यह कह सकता हूँ कि परमेश्वर ने मुझे साल-दर-साल ज़्यादा और ज़्यादा अनुग्रह देकर मेरे उस फैसले का आदर किया है। इसलिए मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव से यह कह सकता हूँ कि परमेश्वर ऐसे लोगों को ही नहीं चुनता जिन्होंने कभी कोई गलती न की हो, या जो कभी लड़खड़ाए और गिरे न हों। असल में, वह उन्हें ही ज़्यादा इस्तेमाल करता है जो ज़्यादा नाकाम हुए होते हैं। यही वह बात है जिसने मुझे हमारी कलीसिया में आने वाले सबसे बुरे पापियों के लिए भी बड़ी आशा दी है।

जब शुनैमी स्त्री से एलीशा ने यह पूछा कि क्या वह और उसका बच्चा कुशल से थे, तो उसने कहा, "हाँ, सब कुशल है," हालांकि उसका बच्चा कुछ ही समय पहले मरा था (2 राजा 4:8,26)। वह ऐसा बोल सकी, यह एक अद्भुत विश्वास था। परमेश्वर ने उसके पुत्र को मृतकों में से जीवित करने द्वारा उसके विश्वास का आदर किया। परमेश्वर ऐसे लोगों के लिए अनोखे काम करता है जो उसमें भरोसा रखते हैं। ऐसे लोग किसी भी स्थिति में लज्जित न होंगे। जब आप स्वयं को किसी मुश्किल हालात में फँसा हुआ पाएं, या जब आप परमेश्वर को बुरी तरह निराश कर दें (कभी ऐसा भी हो सकता है), तब ऐसा हो कि आप हमेशा परमेश्वर में ऐसे विश्वास में बने रह सकें।

यह याद रखें कि प्रभु किसी भी "मरे हुए" हालात में से एक जी-उठने वाली बात पैदा कर सकता है। आपको सिर्फ उसके साथ ईमानदार होने की ज़रूरत है (आपको किसी मनुष्य के आगे अपने पापों का अंगीकार करने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन परमेश्वर के सम्मुख आपको पूरी तरह ईमानदार रहना होगा )।