द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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“मैंने उनके बीच ऐसे एक मनुष्य की खोज की जो शहरपनाह की मरम्मत कर सके और देश के लिए दरार में मेरे सामने खड़ा हो सके... लेकिन मुझे ऐसा कोई मनुष्य न मिला” (यहेजकेल 22:30)। जगत, इस्राएल और कलीसिया के इतिहास में, हम ऐसे कई सारे उदाहरण देखते है कि जिनमे परमेश्वर अक्सर अपने उद्देश्यो को पूरा करने के लिए कैसे एक खास परिस्थिति में महज एक व्यक्ति पर निर्भर रहा है। लेकिन परमेश्वर के साथ एक व्यक्ति हमेशा एक बहुमत है।

नूह
नूह के समय में, जब सारा जगत परमेश्वर के खिलाफ दुष्टता और विद्रोह से भरा हुआ था और हालांकि पृथ्वी पर परमेश्वर का भय मानने वाले 8 लोग थे, फिर भी परमेश्वर का उद्देश्य पूरी तरह से एक ही मनुष्य – नूह की विश्वास योग्यता पर निर्भर था। उस समय, नूह ही एक मात्र ऐसा व्यक्ति था जिस पर परमेश्वर की कृपा दृष्टि हुई (उत्पत्ति 6:8)। अगर वह एक मनुष्य परमेश्वर के प्रति विश्वासघाती हो जाता, तो पूरी मानव-जाति का नाश हो जाता और हममें से कोई भी आज जीवित न होता। हम अवश्य ही परमेश्वर को धन्यवाद दे सकते है कि नूह विश्वास योग्य रहा था। यीशु ने कहा था कि अंत के दिन नूह के दिनों की तरह होंगे। नूह के दिनों की लैंगिक विकृति और हिंसा ही अंत के दिनो की विशिष्टता होगी। हम इसी समय में जी रहे है। इसलिए, परमेश्वर को आज नूह जैसे लोगों की जरूरत है जिसने कोई समझौता नहीं किया था।

एलिय्याह
इस्राएल के इतिहास में से हम एक और उदाहरण देखते है कि जब अहाब ने सब से बाल की पुजा करवाई थी। उस समय इस्राएल में ऐसे 7000 पुरुष थे जिन्होंने बाल के आगे घुटने नहीं टिकाए थे (1 राजा 19:18)। निश्चय ही वह एक साहसी और प्रशंसनीय निर्णय था फिर भी उनकी साक्षी नकारात्मक ही थी: वे मूर्तियों की पूजा नहीं कर रहे थे। आज अनेक विश्वासियों की भी ऐसी ही नकारात्मक साक्षी है – वे सिगरेट नहीं पीते, वे जुआ नहीं खेलते इत्यादि। लेकिन उस समय इस्राएल में अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए परमेश्वर इन 7000 लोगों में से एक को भी इस्तेमाल नहीं कर सका था। उसके लिए परमेश्वर को एक एलिय्याह की जरूरत थी। अहाब को इन 7000 “विश्वासियों” का कोई डर नहीं था। लेकिन वह एलिय्याह से डरता था। यह 7000 लोग अवश्य ही परमेश्वर से प्रार्थना करते होंगे, लेकिन उनकी प्रार्थना स्वर्ग से आग नहीं ला सकती थी। यह काम एलिय्याह की प्रार्थना द्वारा हुआ था। परमेश्वर के सम्मुख सब विश्वासियों की प्रार्थनाओं का प्रभाव एक जैसा नहीं होता। एलिय्याह की प्रार्थना के बारे में बाइबल यह कहती है “धर्मी जन की प्रभावशाली प्रार्थना से बहुत कुछ हो सकता है” (याक़ूब 5:16,17)। एक व्यक्ति ने अकेले ही पूरे देश को प्रभु की तरफ मोड़ा, दुष्टता की सारी शक्तियों को हराया, और बाल के सारे नबियों को मार डाला। आज भी यह एक विश्वासयोग्य व्यक्ति ही है, जिसके माध्यम से परमेश्वर अपने उद्देश्य को पूरा करता है न कि एक भीड़ द्वारा।

एलीशा
एलिय्याह के समय में 50 “नबियों के पुत्र” (बाइबल कॉलेज के छात्र) थे जो सभी एक दिन इस्राएल में नबी होने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन परमेश्वर का आत्मा उस सब को अनदेखा करते हुए एलीशा पर उतरा, जो “नबी का पुत्र” नहीं था (2 राजा 2:7,15)। एलीशा की पहचान इस्राएल में सिर्फ “एलिय्याह के हाथों पर पानी डालनेवाला” एक सेवक के रूप में थी (2 राजा 3:11)। जब अराम के राजा की सेना ने इस्राएल पर हमला किया, तब इन 50 बाइबल के विद्वानो मे से कोई इस्राएल को नहीं बचा सका था - क्योंकि उन्होने अपने बाइबल कॉलेज मे मूसा की व्यवस्था तो पढ़ी थी फिर भी वे परमेश्वर को नहीं जानते थे। इस्राएल में सिर्फ एलीशा ही ऐसा एक व्यक्ति था जो परमेश्वर के साथ जुड़ा हुआ था और जो देश को इस बात में सचेत कर सकता था कि शत्रु वास्तव में कहाँ से हमला करनेवाला था। आज भी एक नबी का मुख्य कार्य यही होता है: परमेश्वर के लोगों को पहले से यह चेतावनी देना कि शैतान उन पर कहाँ से हमला करनेवाला है। 50 प्रचारको (“नबियों के पुत्र”) से अधिक आज एलीशा जैसा एक नबी, कलीसिया मे परमेश्वर के लोगो को आत्मिक संकट से बचा सकता हैं। अगर एक व्यक्ति पवित्र आत्मा की आवाज को नहीं सुन सकता, तो उसका बाइबल का ज्ञान व्यर्थ है। सिर्फ एक ऐसा व्यक्ति ही, एक कलीसिया को शैतान की युक्तियों और हमलो से बचा सकता है, जो परमेश्वर की आवाज को सुन सकता है। पुरानी वाचा के नबियों को “दृष्टा” भी कहा जाता था (“वे जो परमेश्वर द्वारा दी गई दृष्टि से भविष्य देख सकते थे – 1 शमुएल 9:9)। वे जानते थे कि शत्रु कहाँ पर हमला करेगा और वे पहले ही से किसी रणनीति के अपनाने के खतरे को देख सकते थे। आज कलीसिया को ऐसे दृष्टाओ की बहुत जरूरत है।

दानिय्येल
जब परमेश्वर इस्राएल को मिस्र मे से कनान में लाना चाहता था तो उसे एक पुरुष की जरूरत थी, तब उसे मूसा मिला था। और जब वह यहूदियों को बेबीलोन मे से यरूशलेम में लाना चाहता था, तो उसे एक और पुरुष की जरूरत पड़ी थी। तब उसे दानिय्येल मिला। दानिय्येल अपनी किशोरावस्था से ही विश्वासयोग्य रहा था, और उसने हर परीक्षा मे सर्व श्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। बेबीलोन में एक किशोर के रूप में उसने दृढ़ता से परमेश्वर के पक्ष मे खड़े होने का फैसला किया था। उसने अपने “हृदय में यह निर्णय लिया था कि वह अपने आप को अशुद्ध नहीं करेगा” (दानिय्येल 1:8) – यह एक ऐसा पद है जो हर एक जवान को याद रखना चाहिए। जबकि बाकी सभी युवा यहूदी राजा से डर कर उसकी मेज मे से खाने के लिए तैयार हो गए थे (ऐसा खाना जिसे परमेश्वर ने लैव्यव्यवस्था में प्रतिबंधित किया था, लेकिन सिर्फ दानिय्येल ने ही उसे खाने से इंकार किया था। उस दिन उस मेज पर तीन अन्य ऐसे युवक भी थे जिन्होंने दानिय्येल को दृढ़ता से निर्णय लेते देखा था और उन्होने भी साथ देने का फैसला किया। फिर दानिय्येल और वे तीनों पुरुष बेबीलोन में परमेश्वर के लिए एक शक्तिशाली प्रभाव बने। 70 साल के बाद, जब दानिय्येल लगभग 90 वर्ष का था, तब उसने प्रार्थना की जिसकी वजह से यहूदियों का बेबीलोन से यरूशलेम लौटने का आंदोलन शुरू हुआ। आज भी परमेश्वर के लोगों का आत्मिक बेबीलोन (झूठी कलीसिया) से आत्मिक यरुशलेम (मसीह के देह) की तरफ बढ्ने का आंदोलन चल रहा है। पर इस आंदोलन के लिए भी परमेश्वर को पुरुषों की जरूरत है। आज ऐसे बहुत लोग है जो दानिय्येल के तीन मित्रो हनन्याह, मीशाएल और अजर्याह की तरह है (दानिय्येल 1:11)। वे परमेश्वर के लिए खड़े होना चाहते है, लेकिन उनमे अपने आप से ऐसा करने का साहस नहीं होता। वह उनकी अगुवाई के लिए एक दानिय्येल का इंतजार करते है। इसलिए परमेश्वर फिर से दानिय्येलों को ढूंढ रहा है।

परमेश्वर हर एक पीढ़ी में अपने नाम के लिए एक शुद्ध साक्षी चाहता है। और वह हमारी पीढ़ी मे भी अपने आप को साक्षी बिना नहीं छोड़ेगा। क्या आप इस पीढ़ी में परमेश्वर के लिए पूरी तरह उपलब्ध रहने की कीमत चुकाने के लिए तैयार होंगे?