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अगर हम अपने मसीही जीवन का एक रेखाचित्र बनाएं तो उसमें बहुत से उतार चढ़ाव होंगे। और सभी का यही अनुभव होता है। लेकिन जैसे-जैसे साल गुज़रते जाते हैं, हमारी सामान्य दिशा ऊपर की तरफ जाने वाली होनी चाहिए। हम धीरे-धीरे ऊपर की तरफ आगे बढ़ते हैं, और हमारे रास्ते के बीच में उतार-चढ़ाव और समतल स्थान आते रहते हैं। फिर हमारे गिरने की जगहें कम और समतल जगहें ज़्यादा आने लगती हैं। यह ज़रूरी नहीं है कि हमारा ऊपर की तरफ बढ़ना एकाएक और सटीक रूप में होगा हालांकि कभी-कभी ऐसा हो सकता है। लेकिन आम तौर पर हमारा ऊपर चढ़ना धीरे-धीरे ही होगा। लेकिन ऐसे लोग जिनका जय पाने में कोई विश्वास नहीं है और जो उसकी खोज में भी नहीं रहते, उनका रेखाचित्र उन्हें नीचे की तरफ जाता हुआ ही दर्शाएगा क्योंकि वे परमेश्वर का भय नहीं मानते और न ही उसकी प्रतिज्ञाओं पर भरोसा करते हैं। लेकिन हम परमेश्वर में अपने बढ़ने को किसी भी रेखाचित्र द्वारा सही तरह प्रदर्शित नहीं कर सकते। हरेक रेखाचित्र में किसी-न-किसी जगह कमी रह जाएगी।

पाप को गंभीरता से ले और हरेक नाकामी के लिए शोक करें। इस तरह आप यह जानेंगे कि आप वास्तव में परमेश्वर का भय मानते हैं। जैसा कि आपने अक्सर मुझे यह कहते हुए सुना है कि हमारा पाप में गिरना इतना गंभीर मामला नहीं है जितना कि पाप में गिरने के बाद हमारा शोकित न होना है। अगर मैंने आपको यह सिखा दिया है कि आपको पाप में गिरने (या परमेश्वर को किसी भी तरह शोकित करने) के फौरन बाद उससे मन फिराना और उस पर शोकित होना है, तो आपके प्रति मैंने अपने कतर्व्य को पूरा कर दिया है।

वह विधवा जो उसकी ज़रूरत के समय एलीशा के पास आई थी (2 राजा 4), उससे यह कहा गया था कि वह उसके पड़ौसियों के पास से बर्तन माँग लाए और और उसकी तेल की छोटी कुप्पी में से उनमें तेल उण्डेल कर उन्हें भर दे। इस तरह वह उसका कर्ज चुका सकती थी। उसने वैसा ही किया। अंततः उसके पुत्रों ने कहा, "अब कोई ख़ाली पात्र नहीं बचा है।"फिर हम यह शब्द पढ़ते हैं: "फिर तेल का बहना रुक गया।"

यहाँ तेल पवित्र आत्मा का चित्र है। और जो लोग पवित्र आत्मा के बपतिस्मे (भरे जाने) का अनुभव पाते हैं, उनमें से बहुत से लोगों के साथ बिलकुल ऐसा ही होता है। शुरू में वे वास्तव में भरे जाते हैं। लेकिन फिर उनमें से अनेक के जीवनों में ऐसा समय आता है जब उनमें उनकी ज़रूरत का कोई अहसास नहीं रह जाता (भरे जाने के लिए कोई पात्र नहीं होता)। तब उनके जीवनों में से पवित्र आत्मा का प्रवाह बंद हो जाता है। खाली पात्र हमारे जीवनों के उन हिस्सों का प्रतीक हो सकते हैं जिनमें हम मसीह समान नहीं हैं। हममें से सभी के जीवनों में ऐसे बहुत से क्षेत्र होते हैं जिन्हें सिर्फ थोड़ा सा नहीं बल्कि मुँह तक भरे जाने की जरूरत होती है।

कुछ क्षेत्रों में जहाँ आपने पाप पर थोड़ी जय हासिल कर ली है, वहाँ पात्र सिर्फ थोड़ा सा भरा है क्योंकि मसीह समान होना (या ईश्वरीय स्वभाव में सहभागी होना) पाप पर जय पाने से बहुत बढ़कर है। उदाहरण के तौर पर, एक व्यक्ति के प्रति कड़वाहट न होने और उसे प्रेम करने के बीच में बहुत फर्क होता है। पहली बात एक नकारात्मक बात है (पाप से न हारना)। दूसरी बात सकारात्मक है (ईश्वरीय स्वभाव होना)। इसी तरह क्रोधित न होने और आशिष देने वाले अच्छे शब्द बोलने के बीच में भी बड़ा फर्क होता है। इसी तरह और भी बहुत से क्षेत्र हैं। अगर हम इस बात से संतुष्ट हो गए हैं कि हमने कुछ क्षेत्रों में पाप पर जय पा ली है, तो हमें ऐसा आत्म संतोष हो सकता है कि "अब कोई खाली पात्र नहीं बचा है।" और तब तेल का प्रवाह रुक जाता है - और हम भटकने लगते हैं।

हमें स्वयं निरंतर एक मन-फिराव का जीवन जीना चाहिए, और कभी दूसरों का न्याय नहीं करना चाहिए। हमारा काम सिर्फ यह देखना है कि हमारे पास हमेशा ऐसे ख़ाली पात्र मौजूद हों जिन्हें भरे जाने की जरूरत है। सिर्फ इस तरह ही हम (उस विधवा की तरह) अपना कर्ज़ चुका सकते हैं। हमारे कर्ज के बारे में रोमियों 13:8 में बताया गया है “आप पर सभी लोगों के प्रेम का कर्ज है।" इस तरह ही हम दूसरों के लिए एक आशिष बन सकते हैं। हरेक हालात इस तरह सृजे हुए हैं कि वे हमारी खुदी के किसी-न-किसी क्षेत्र से हमें बचा सकें और हमें दूसरों के लिए एक आशिष बना सकें। अगर पहले हमारे खाली पात्र भरे न जाएंगे, तो दूसरे हमारे द्वारा आशिष नहीं पा सकेंगे।