द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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हम कलीसिया के इतिहास में एक महान पाठ को पाते हैं। जब भी परमेश्वर अपने लोगों के लिए कुछ करना चाहता है, तो इसकी शुरुआत वह हमेशा एक मनुष्य से करता है। इस्राएलियों को छुटकारा दिलाने से पहले उसे एक योग्य व्यक्ति की ज़रूरत थी। उस मनुष्य के प्रशिक्षण में 80 साल लगे – और वह सिर्फ़ शैक्षणिक प्रशिक्षण नहीं था। मूसा को मिस्रीयों की सर्वश्रेष्ठ विद्या की शिक्षा दी गई थी, लेकिन इससे उसे परमेश्वर का काम करने की योग्यता प्राप्त नहीं हुई। प्रेरितों के काम 7 : 22 में स्तिफ़नुस ने कहा कि मूसा बातों और कामों - दोनों में सामर्थी था। 40 वर्ष की उम्र में वह एक शक्तिशाली पुरुष और एक कुशल वक्ता था। वह एक सामर्थी सेनापति और धनवान व्यक्ति था, और जो शिक्षा विश्व के सबसे विकसित देश में मिल सकती है, उसने उसमें प्रशिक्षण प्राप्त किया था – उस युग में मिस्त्र संसार की एकमात्र महाशक्ति थी। लेकिन इतना सब होने पर भी वह परमेश्वर की सेवा करने के योग्य नहीं था। स्तिफ़नुस कहता है कि मूसा ने सोचा कि इस्राएली यह पहचानेंगे कि उन्हें छुटकारा दिलाने के लिए परमेश्वर ने उसे चुना था। लेकिन उन्होंने उसे अपने अगुवे के रूप में स्वीकार नहीं किया। उसकी सारी सांसारिक ख्याति और योग्यता उसे उस काम के लिए तैयार न कर सके जो परमेश्वर ने उसके लिए रखा था।

आज बहुत से मसीही यह सोचते हैं कि क्योंकि उनके पास बाइबल का ज्ञान, संगीत की योग्यता और बहुत धन है इसलिए वे परमेश्वर की सेवा कर सकते हैं। लेकिन वे ग़लत सोचते हैं। उन्हें मूसा के जीवन से यह पाठ सीखने की ज़रूरत है: संसार द्वारा 40 साल तक दिया गया उसका सर्वश्रेष्ठ भी, मूसा को परमेश्वर की सेवा के योग्य न बना सका था।

मूसा को अपनी सेवा के योग्य बनाने के लिए, परमेश्वर को उसे महल के वातावरण से पूरी तरह अलग, अगले 40 साल तक जंगल में से लेकर गुज़रना पड़ा ताकि वह उसे तैयार कर सके। यह ज़रूरी था कि मानवीय शक्ति पर से उसका भरोसा पूरी तरह ख़त्म हो जाए। और परमेश्वर ने यह काम उसे 40 साल की लंबी अवधि तक भेड़ों को चराने, उसके ससुर के साथ रहने और उसका सेवक बनने द्वारा पूरा किया। अपने ससुर के साथ एक साल भी रहना एक पुरुष के लिए काफ़ी अपमानजनक होता है! मैं जानता हूँ कि भारत में बहुत सी विवाहित स्त्रियाँ अपने ससुर के घर में अपना पूरा जीवन गुज़ार देती है। लेकिन जब एक पुरुष को अपने ससुर के घर में रहना और उसके लिए काम भी करना पड़ता है, तो यह अनुभव उसे बहुत दीन बनाने वाला होता है। लेकिन परमेश्वर ने मूसा को इसी तरह तोड़ा था। परमेश्वर ने याकूब को भी इसी तरह तोड़ा था। उसे भी अपने ससुर के साथ 20 साल तक रहना पड़ा था। परमेश्वर अपने बच्चों को तोड़ने के लिए उनके सास और ससुर को इस्तेमाल करता है। जो पाठ मिस्र के विश्व-विद्यालय मूसा को नहीं सिखा सके थे वह उसने जंगल में भेड़ों की रखवाली करने और अपने ससुर के लिए काम करने द्वारा सिखा। 40 साल का यह समय काल पूरा होने पर, वह मूसा जो बोलने में बहुत कुशल था, और जो यह समझ रहा था कि वह इस्राएल का छुड़ाने वाला है, अब कहता है, “हे प्रभु, मैं अयोग्य हूँ और बोलने में कुशल नहीं हूँ। अपने लोगों की अगुवाई के लिए तू किसी और को भेज दे”। तब परमेश्वर ने कहा, “अब तू तैयार हो गया है। अब मैं तुझे फ़िरौन के पास भेजूंगा" (निर्गमन 4:10-17)

याकूब और मूसा के जीवन से हम क्या सीखते हैं? बस यही: जब आप सोचते हैं कि आप तैयार है, तब आप तैयार नहीं है। जब आप यह सोचते हैं कि आप योग्य है, आप शक्तिशाली है, आपके पास ज्ञान है, आप बोल सकते हैं, गा सकते हैं, संगीत के वाद्य बजा सकते हैं, और परमेश्वर के लिए अद्भुत काम कर सकते हैं, तब परमेश्वर कहता है, “तू अभी अयोग्य है। मुझे तब तक इंतज़ार करना पड़ेगा जब तक तू टूट नहीं जाता”। याकूब के साथ इस प्रक्रिया को पूरा होने में 20 साल लगे, मूसा के साथ 40 साल लगे, पतरस के साथ 3 साल लगे, और पौलुस के साथ भी लगभग 3 साल लगे। हमारे साथ कितना समय लगेगा? यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम परमेश्वर के सामर्थी हाथ के नीचे दीन होना सीखने में कितना समय लगाते हैं। इसमें हमारे लिए एक संदेश और एक चेतावनी है। परमेश्वर के पास आपके जीवन के लिए एक योजना हो सकती है। लेकिन जब तक आप टूटेंगे नहीं वह योजना कभी पूरी नहीं होगी। परमेश्वर ने आपके अंदर जो 10 साल में करना चाहा है उसमें 40 साल लग सकते हैं। इसलिए, परमेश्वर के सामर्थी हाथ के नीचे तुरंत ही दीन हो जाना अच्छा है - यह उन हालातों को दर्शाता है जो परमेश्वर हमारे जीवन में भेजता है।

विलापगीत 3:27 कहता है: “मनुष्य के लिए यह भला है कि वह अपनी जवानी में जुआ उठाए (दीन हो और तोड़ा जाए)”। जब आप जवान है, तभी परमेश्वर को यह अनुमति दें कि वह आपको तोड़ सके। उन परिस्थितियों का विरोध न करें जिन्हें परमेश्वर आपके जीवन में होने की अनुमति देता है, क्योंकि इससे सिर्फ़ परमेश्वर की योजना में विलम्ब ही होगा। आपका बाइबल का सारा ज्ञान, आपकी संगीत की प्रतिभा और आपका सारा धन भी आपको परमेश्वर की सेवा के योग्य नहीं बना सकते। टूटापन होना अनिवार्य है। यदि आप यरूशलेम, अर्थात सच्ची कलीसिया का निर्माण करना चाहते हैं, तो आपको टूटना होगा। आपको परमेश्वर द्वारा परिस्थितियों और लोगों के माध्यम से नम्र होना होगा। यदि आप उन परिस्थितियों में विद्रोह नहीं करते हैं, तो परमेश्वर आप में एक त्वरित कार्य कर सकता हैं।

निर्गमन 17 में हम पढ़ते हैं कि जब चट्टान को मारा गया, तब उसमें से जल धाराएँ बह निकली। अगर चट्टान को मारा नहीं जाएगा, तो पानी नहीं निकलेगा। जब उस स्त्री ने संगमरमर के पात्र को यीशु के चरणों में लाकर तोड़ा, तब जटामांसी की सुगंध सारे घर में फैल गई। जब तक वह पात्र तोड़ा नहीं गया था, तब तक कोई भी उस सुगंध को नहीं सुंघ सका। जब यीशु ने रोटी लेकर उसे आशीष दी, तब कुछ नहीं हुआ। लेकिन जैसे ही उसने उसे तोड़ा, तो पाँच हज़ार लोग खाकर तृप्त हुए। इन सभी उदाहरणों से हमें क्या संदेश मिलता है? यही कि टूटापन आशीष का स्रोत है! अणु (एटम) के टूटने से कैसी शक्ति प्रवाहित होती है! वह एक पूरे शहर को बिजली दे सकता है। कल्पना करें कि छोटे से अणु के टूटने पर कैसी शक्ति निकलती है – जो इतना छोटा होता है कि सूक्ष्मदर्शी यंत्र से भी नज़र नहीं आता। बाइबल और प्रकृति में से यही संदेश मिलता है: परमेश्वर की सामर्थ टूटेपन में से निकलती है। काश, ऐसा हो कि यह संदेश आपके जीवन को जकड़ लें।