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अपने जीवन के लिए परमेश्वर की सिद्ध योजना को पूरा करने से बढ़कर आप पृथ्वी पर और कुछ हासिल नहीं कर सकते। मेरी प्रार्थना है कि आपके जीवन और परिश्रम के द्वारा पृथ्वी के किसी हिस्से में एक दिन परमेश्वर अपनी कलीसिया के निर्माण के लिए आपको एक उपयोगी पात्र की तरह उसके हाथों में इस्तेमाल कर सके। आपकी पढ़ाई-लिखाई सिर्फ आपकी रोज़ी-रोटी कमाने के लिए है कि अपनी पृथ्वी की ज़रूरतों के लिए आपको किसी पर निर्भर न रहना पड़े। लेकिन आपकी बुलाहट परमेश्वर के लिए जीने की है। इसलिए अपने व्यवसाय को अपनी मूर्ति न बना लेना।

परमेश्वर ने आपके पार्थिव जीवन की हरेक छोटी से छोटी बात को पहले से ही तय कर दिया है। इसमें आपकी पढ़ाई-लिखाई भी शामिल है - आप किस स्कूल या कॉलेज में जाएंगे, और यह भी वहाँ आप कौन से विषय लेंगे! इन सब मामलों में वह अपनी सर्वसत्ता में राज करता है, और यह सुनिश्चित करता है कि अंततः आप एक सही व्यवसाय में पहुँचाए जाएं। इसलिए, किसी ऐसी स्थिति में, जिसमें आपकी पूरी कोशिश के बाद भी आपको अपने अपेक्षित या मन-पसन्द विषयों/कोलेज में प्रवेश न मिले, तो सिर्फ प्रभु की स्तुति करें। वर्षों बाद आपको यह समझ आएगा कि उस समय परमेश्वर आप पर नज़र लगाए हुए था, और आपके जीवन की सारी बातों को एक विस्तृत रूप में सुनिश्चित कर रहा था (हालांकि आप इससे अनजान थे), और बाद में सब बातों ने मिलकर आपके लिए परमेश्वर के सर्वश्रेष्ठ को ही हासिल किया (रोमियों 8:28 )। परमेश्वर के इस वचन पर विश्वास में जीवन बिताएं।

आपके लिए परमेश्वर का मुख्य उद्देश्य यह है कि इस पृथ्वी पर आप यीशु का जीवन प्रकट करने द्वारा उसके साक्षी हों। इसलिए अपनी महत्वकांक्षाओं को कभी पार्थिव न बनने दें। जीवन को गंभीरता से लें। परमेश्वर की सिद्ध इच्छा की खोज में रहें। अपना जीवन इस तरह बिताएं कि जब न्याय के दिन आप प्रभु के सामने खड़े हों तो आपको अपने जीने के तरीके पर कोई अफसोस न हो। उस दिन आपकी शैक्षणिक जी.पी.ए. (ग्रेड पॉइन्ट ऐवरेज - [ औसत अंक तालिका]) नहीं बल्कि परमेश्वर की स्तुति और स्वीकृति (गॉड्ज़ प्रेज़ एण्ड ऐप्रूवल [ जी.पी.ए.]) ही काम आएगी (1 कुरि. 4:5 )। तब आपने इसमें जो अंक प्राप्त किए होंगे, सिर्फ वही महत्वपूर्ण होंगे।

परमेश्वर ऐसे अद्भुत तरीके से हमारे जीवनों की योजना बनाता है। मैंने अपने जीवन में बार-बार यह जाना है, और इस वजह से ही मेरी यह इच्छा होती है कि आने वाले दिनों में मैं ज़्यादा समर्पित हृदय से अपने जीवन को प्रभु की सेवा के लिए देता रहूँ कि "मैं घात किए गए मेमने की पीड़ाओं का प्रतिफल बटोरता रहूँ" यह 18वीं शताब्दी में मोरेवी (अब चेकोस्लेवेकिया) के मसीहियों का आदर्श-वाक्य था जिनका अगुवा काउन्ट ज़िन्ज़ेन्डॉर्फ था।

आपके जीवन के लिए परमेश्वर के पास जो सिद्ध योजना है, वह पार्थिव योग्यताओं की कमी के कारण बाधित नहीं हो सकती है। इसकी पूर्ति केवल आपके विश्वास और नम्र स्वभाव पर निर्भर करती है। तो आपके पास हमेशा वे गुण हों।

हम में से कोई भी मूर्खतापूर्ण गलतियाँ किए बिना अपना जीवन जीने में कामयाब नहीं हुआ है। लेकिन मैं अपने स्वयं के जीवन से गवाही दे सकता हूं कि परमेश्वर ने हमारे द्वारा किए गए कई मूर्खतापूर्ण कामों को नजरअंदाज कर दिया है, जब हम अपने पाप को स्वीकार करने के लिए पर्याप्त विनम्र हैं, दूसरों को दोष नहीं देते हैं, और विश्वास में कहते हैं, "परमेश्वर, मैंने जो किया है, उसके बावजूद मैं तेरी दया पर भरोसा रखता हूँ कि तु मेरे जीवन के लिए अपनी योजना को पूरा करेगा”। बहुत से विश्वासी कभी भी प्रभु को ये शब्द नहीं कहते क्योंकि वे अपनी असफलताओं से बहुत निराश होते हैं, और परमेश्वर की दया पर भरोसा नहीं करते हैं। इस प्रकार वे अपनी विफलताओं को परमेश्वर की प्रभुसत्ता और दया से बढ़ाकर उसका अनादर करते हैं। आपको परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए और उसकी महान दया की महिमा करनी चाहिए। तब यह आपके साथ वास्तव में भला होगा और प्रत्येक वर्ष पिछले वर्ष से बेहतर होगा।