द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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लैव्यव्यवस्था एक ऐसी किताब है जो परमेश्वर की पवित्रता के बारे में बात करती है। यह वह किताब है जिसके प्रत्येक भाग में पवित्रता एक मुख्य विषय के रूप में है। पवित्रता एक ऐसा शब्द है जिससे बहुत से विश्वासी डरते है। लेकिन हमें साहसपूर्वक परमेश्वर के वचन के मानकों (स्टैंडर्ड) का प्रचार करना चाहिए – क्योंकि वे सभी वास्तविक और प्राप्त करने योग्य है। पवित्रता परमेश्वर का स्वभाव है। जो आत्मा परमेश्वर हमें देता है वह पवित्र आत्मा है। जब यशायाह को परमेश्वर का दर्शन हुआ, तो उसने परमेश्वर को उसकी (परमेश्वर की) पवित्रता में देखा और खुद को एक अशुद्ध व्यक्ति के रूप में देखा।

पवित्रता एक स्वास्थ्य की तरह है। आप में से कितने पूरी तरह से स्वस्थ बने रहने के संदेश सुनने से डरते है? क्या हम अच्छे स्वास्थ्य से डरते है? नहीं। तो हमें अपनी आत्मा में सही स्वास्थ्य से क्यों डरना चाहिए – जो हमारे शरीर के स्वास्थ्य से अधिक महत्वपूर्ण है? पाप एक बीमारी की तरह है। हम इसे लैव्यव्यवस्था में देखते है। परमेश्वर पवित्रता और स्वास्थ्य से संबंधित नियम यहाँ देते है। दोनों एक समान है – एक आत्मा के लिए है और एक शरीर के लिए है। शरीर के लिए पवित्रता वह है जिसे हम स्वास्थ्य कहते है। आत्मा और प्राण के लिए स्वास्थ्य वह है जिसे हम पवित्रता कहते है।

“जैसे हम अपने शरीर में सभी बीमारियों से पूरी तरह मुक्त होना चाहते है, ठीक उसी तरह हमें अपने सभी पापों से मुक्त होना चाहिए जो हमें अशुद्ध करते हैं”

तो हमें पवित्रता के इस डर से छुटकारा पाने की जरूरत है। और हमें उस स्थान पर आना चाहिए जहां हम पूर्ण स्वास्थ्य की इच्छा से अधिक पूर्ण पवित्रता चाहते हैं। जैसे हम हमारी शरीर की सारी बीमारियों से चंगे होना चाहते है, वैसे ही हमें उन सारे पापों से जो हमें अशुद्ध करते है, शुद्ध होने की इच्छा होनी चाहिए। जिस प्रकार हम बीमारी को सहन नहीं करते, ठीक उसी तरह हमें पाप को भी सहन नहीं करना हैं। गंदे विचारों को सहन करना ये एक क्षय (टीबी) या कुष्ट रोग को सहन करने समान है। क्रोध करते समय यह कहकर खुद को सही साबित करेने की कोशिश करना कि “यह मेरी कमजोरी है या मेरा स्वभाव है” और इस प्रकार इसे हमारे जीवन में अनुमति देना, हमारे शरीर में एड्स या सीफिलीस के लिए जगह बनाने जैसा है। पाप और बीमारी एक समान है।

उदाहरण के लिए, लैव्यव्यवस्था में, परमेश्वर इस्राएलियों से कुष्ट रोग और इसी तरह के त्वचा रोग वाले व्यक्ति से व्यवहार के बारे में कहता है। यह इस पुस्तक में पाप का एक प्रकार है और यहां दि गई व्यवस्था पाप से निपटने के तरीके से संबंधित हैं। ‘पवित्रता’ और ‘पवित्र’ शब्द इस पुस्तक में लगभग 100 बार प्रकट होते है, इस बात का ज़ोर देते हुए कि यह इस पुस्तक का मुख्य विषय है। 27 अध्यायों की एक पुस्तक जहां पवित्रता का उल्लेख 100 बार किया गया हो वह निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण पुस्तक होनी चाहिए।

लैव्यव्यवस्था में कई अध्याय पवित्रता और स्वास्थ्य के नियमो से निपटते हैं। यह सभी व्यक्ति के जीवन के सबसे छोटे विवरणो में परमेश्वर की गहरी दिलचस्पी को दिखाता हैं। हम कल्पना कर सकते है कि परमेश्वर हमारे जीवन के छोटे विवरणों में रुचि नहीं रखता है लेकिन मुझे लैव्यव्यवस्था पुस्तक में मिलता है कि परमेश्वर हर छोटी जानकारी में रुचि रखता हैं। इस्राएलियों को यहां बताया गया था कि अगर एक छिपकली खाना पकाने के बर्तन में गिर जाती है तो क्या करना है। मिट्टी के बर्तन जिसमें छिपकली गिर गई, उसे तोड़ दिया जना चाहिए और उसमें कोई भी भोजन नहीं खाया जाना चाहिए, क्योंकि इससे रोग-संचार हो सकता है और मृत्यु भी हो सकती है। (लैव्यव्यवस्था 11:33)। परमेश्वर ने उन्हें स्नान करने के निर्देश भी दिए, जब वे किसी तरह से अशुद्ध हो जाए – उन्हें बहते हुए पानी में स्नान करना था (लैव्यव्यवस्था 15:13)। उन्हें कपड़े धोने के लिए भी कहा जब वे अशुद्ध हो जाए (लैव्यव्यवस्था 15:5,7,11 और अध्याय 17 भी)। ये देखभाल के केवल दो उदाहरण है जो कि परमेश्वर अपने लोगो के लिए करता है। क्या आपने कभी कल्पना की थी कि परमेश्वर आपके द्वारा खाए जाने वाले भोजन और आपकी स्वच्छत्ता में इतनी दिलचस्पी ले सकता है – आपकी नहाने की आदतों में और कपड़ों को नियमित रूप से धोने में; मैं ऐसी चीजों को पढ़ने के लिए उत्साहित हूँ। किसने कहा कि लैव्यव्यवस्था की पुस्तक उबाऊ थी?

इस पुस्तक में यौन शुद्धता और कई अन्य रोचक विषयों पर भी शिक्षण है। लैव्यव्यवस्था 10: 8-11 में, परमेश्वर ने हारून से कहा, “जब तू या तेरे पुत्र मिलापवाले तम्बू में आए तब तब तुम में से कोई न तो दाखमधु पीए हो न और किसी भी प्रकार की मदिरा, कहीं ऐसा न हो कि तुम मर जाओ; तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में यह विधि प्रचलित रहें। जिससे तुम पवित्र और अपवित्र में, और शुद्ध और अशुद्ध में अंतर कर सको। और इस्राएलियों को उन सब विधियों को सीखा सको जिसे यहोवा ने मूसा के द्वारा उनको बता दी है”। परमेश्वर अगुवो को यह बता रहा था कि उन्हें अपने शरीर को प्रदूषित करने वाले किसी भी चीज का उपभोग नहीं करना चाहिए। अगुवो के रूप में, उन्हें अपने आचरण में अनुकरणीय होना था।

लैव्यव्यवस्था 11 में परमेश्वर ने उन्हें उन जानवरों के बारे में बताया जो स्वच्छ थे और जो अशुद्ध थे, वे जानवरों का प्रकार जो खा सकते थे, और जानवरों के प्रकार को उन्हें नहीं खाना चाहिए। इस वचन से मैं जो सीखता हूँ वह यह है कि स्वर्ग में परमेश्वर भी हमारी खाने की आदतों में रुचि रखता हैं – कि हमारे पास स्वस्थ भोजन की आदतें हो। बाइबल 1 कुरुन्थियों 10:31 में कहता है, “इसलिए तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए करो”। खाने पीने के बारे में लैव्यव्यवस्था में आवश्यक संदेश यह है: “अपने शरीर के लिए जो भी अच्छा न हो ऐसा कुछ भी न खाएं या पिए”। मुझे यकीन है कि परमेश्वर को अपने बच्चों को जंक फूड (अस्वास्थ्यकारक खाद्य) के बारे में बहुत कुछ कहना होगा जो आज बहुत से खाते और पीते है।

उदाहरण के लिए, स्वच्छता के नियम भी हैं, लैव्यव्यवस्था 11:33, 34 में: “और यदि मिट्टी का कोई पात्र हो जिसमें इस जन्तुओं में से कोई पड़े, तो उस पात्र में जो कुछ हो वह अशुद्ध ठहरे, और उस पात्र को तुम तोड़ डालना। उसमे जो खाने के योग्य भोजन हो, जिसमें पानी का छुआव हो वह सब अशुद्ध ठहरे, फिर यदि ऐसे पात्र में पीने के लिए कुछ हो तो वह भी अशुद्ध ठहरे”। वह यहां इस्राएलियों को स्वच्छता की आदतें और स्वच्छ जीवनशैली रखने के लिए कह रहा है। हम स्वास्थ्य के नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं और फिर जब हम बीमार होते हैं तब प्रार्थना करते हैं, "परमेश्वर, कृपया मुझे ठीक करो”। यह मूर्खता है। यदि आप परमेश्वर द्वारा बनाए गए स्वच्छता के नियमों का उल्लंघन करते हैं, और तब आपकी बीमारी के लिए आप दोषी है और अन्य कोई नहीं। परमेश्वर ने निर्गमन 15:26 में कहा “यदि तुम मेरी सब विधियों को मानोगे, तब मैं तुम्हारा चंगा करनेवाला बनूँगा”। परमेश्वर हमें चंगाई के मुकाबले स्वास्थ्य का उपहार देना चाहता हैं! लेकिन हमें अपने शरीर के लिए उसके नियमों का पालन करना होगा। लैव्यव्यवस्था 11:44 में, हम पढ़ते हैं, “क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ; इस कारण अपने को शुद्ध करके पवित्र बने रहो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ”। यह लैव्यव्यवस्था की पुस्तक का मुख्य विषय है - और यह वचन पुस्तक के ठीक बीच में है।

पतरस इसे 1 पतरस 1:16 में लिखता है, “पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ”।

पवित्रता और स्वच्छता लैव्यव्यवस्था के मुख्य विषयों में से दो हैं।