बाबुल (झूठी कलीसिया) को प्रकाशितवाक्य में ग्यारह बार ''बड़ा नगर'' कहा गया है। यरूशलेम (यीशु मसीह की दुल्हन) को पवित्र नगरी कहा गया है (प्रकाशितवाक्य 12-21)।
हमारी कलीसिया यदि संसार के दृष्टि में बड़ा होना चाहती है तो हम बाबुल की ओर बहते जा रहे है। यीशु ने कहा है कि जो मनुष्यों की दृष्टि में महान है, वह परमेश्वर के निकट घृणित है (लूका 16:15)। इस कारण हम नियमीत रूप से स्वयं का परिक्षण करें कि हमारे कलीसिया में जो कुछ होता है, चाहे वह वचन का प्रचार हो या संगीत हो, वह मनुष्य को प्रभावीत करने के लिये न हो। मनुष्य की दृष्टि में संख्या को अधिक महत्व दिया जाता है। यदि हम अन्य लोगों को कलीसिया के विकास के विषय में बताते समय लोगों की संख्या को अधिक महत्व देते है तो हममें बाबुल के गुण है। इसका मतलब यह नहीं कि परमेश्वर नहीं चाहता कि कलीसिया में लोगों की संख्या बढ़े. परमेश्वर चाहता है कि कलीसिया में लागेों की संख्या बढ़े. परन्तु हम समझ लें कि हम परमेश्वर की भेड़ों में से एक है और अन्य लागे परमेश्वर की भेड़ों हैं। लोगों की संख्या की बढ़ोतरी यह नहीं दर्शाती कि हमारी कलीसिया पर परमेश्वर की आशीष है। झूठी शिक्षा देनेवाली कलीसियाएं तथा गरै मसीही धामिर्क सगं ठना भी बदती जा रही है. उनकी सख्ं या सच्चे मसीही गटों से भी अधिक प्रभवी होती है।
यरूशलेम की कलीसिया का विकास उसकी पवित्रता को सामने रखकर नापा गया। इस नाप में औरों के प्रति प्रेम का भी समावेश था। यीशु ने कहा कि जीवन का मार्ग सकरा है। थोड़े ही लोगों को वह मिलता है। जो लोग सकरे मार्ग के विषय में प्रचार करते है उनकी कलीसिया में कम लोग आते है (मत्ती 7:13,14)। यदि हम द्वार तथा मार्ग को अधिक चौड़ा बनाए तो सहजता से लोगों की संख्या बढ़ जाएगी। आज कई कलीसियाएं ऐसा कर रही है तथा गलत राह पर चल रही है। यीशु ने सकरे मार्ग तथा सकरे द्वार के विषय में शिक्षा दी है (मत्ती 5-7)। इस कारण इन अध्यायों में सकरे मार्ग तथा द्वार की नीव है।
1 कुरिन्थियों 3:13 में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि आखरी दिन प्रभु अपने काम की गुणवत्ता को महत्व देगा, न की संख्या को। जो व्यक्ति स्वयं के जीवन का परिक्षण करते रहता है वह गुणवत्ता युक्त सेवकाई कर पाता है। वह ''प्रचण्ड तथा न बुझनेवाली आग में रहता है'' (यशायाह 33:14)। हमारे चारों ओर जो संघटन आए है उनसे हमारी कलीसिया भिन्न हो। जिस दिन यह कलीसिया भिन्न नहीं रहेगी उस दिन कलीसिया भी उन मृत कलीसियाँओं जैसी हो जाएगी।
पुराने नियम में बाहरी आचरण को अधिक महत्व दिया है। क्योंकि मनुष्य का हृदय कठोर था (मत्ती 19:8)। नियमशास्त्र बाहरी शुद्धता को महत्व देता है; परन्तु नई वाचा अंदरूनी शुद्धता को महत्व देती है (मत्ती 23:25,26)। वचन 26 में यीशु ने कहा है कि प्याले का अंदरूनी भाग शुद्ध होने पर बाहरी भाग अपने आप शुद्ध हो जाएगा, फिर बाहर से शुद्ध करने की आवश्यकता नहीं रहेगी। यह बात हमें मत्ती 5:21-30 में स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। यदि हम हमारे दिल में से क्रोध को हटाकर दिल शुद्ध कर देंगे तो हमारे द्वारा खून होने का बाहरी धोखा नहीं रहेगा। उसी प्रकार यदि हम हमारे दिल में से गंदे विचारों को निकालकर दिल शुद्ध कर देंगे तो बाहरी व्यभिचार का धोखा नहीं रहेगा। प्याले को अंदर से शुद्ध करें तब प्याला बाहरसे भी शुद्ध हो जाएगा।
आज कलीसिया बाहरी आचरण को अधिक महत्व देती है। उदाहरण की तौर पर - सिनेमा न देखना, धुम्रपान न करना, जुआं न खेलना, गहने न पहनना... आदि। ऐसी कलीसिया को हम पुराने वाचा की कलीसिया कह सकते है। यदि हमें बाहरी बूरी बातों से छूटकारा पाना है तो हमें उनकी ओर देखने की आवश्यकता नहीं। परन्तु हम हमारे दिल की संसारिक, आंतरिक मनोवृत्ती को शुद्ध कर लें जो बाह्यरूपी बूरी बातों को जन्म देती है।
जब तक हम आत्मपरिक्षण नहीं करेंगे तब तक हम भितर से शुद्ध नहीं हो पाएंगे। जब तक हम नियमीत रूप से भितरी शुद्धता के विषय में प्रचार नहीं करेंगे तब तक हम कलीसिया का विकास नहीं कर पाएंगे। बाइबल कहती है कि हम कलीसिया में प्रतिदिन एक दूसरे को बोध करे ताकि पाप द्वारा हमारा हृदय कठोर न हो (इब्रानियों 3:13; 10:25)। कई कलीसियाओं में इस विषय पर प्रचार करने को महत्व नहीं दिया जाता। वे पवित्रता के विषय में कुछ विशेष अवसर पर ही प्रचार करते है। वे प्रतिदिन पवित्रता तथा शुद्धीकरण के विषय में प्रचार नहीं करते। इस कारण उनमें ऐसे फरिसी पैदा होते हैं जो बाहर से शुद्ध दिखते है। यहां पर यीशु मसीह की दुल्हन अलग हो।