द्वारा लिखित :   जैक पूनन
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आशा

"आशा" एक नई वाचा का शब्द है, "अनुग्रह", "कोमलता", "मन में दीनता""जय पाना" आदि की तरह। बहुत ही कम विश्वासी है जिन्होंने आशा के बारे में अधिक सोच-विचार किया होगा। लेकिन शब्दानुक्रमणिका में अध्ययन करने के लिए यह एक अच्छा शब्द है।

रोमियो 5:2-4 हमें बताता है कि हम परमेश्वर की महिमा की आशा में आनंदित होते हैं। हम क्लेशों में आनन्द मनाते हैं क्योंकि अगर हम उन क्लेशों को धैर्य से सहते हैं तो हमें खरा चरित्र मिलेगा, और उससे आशा उत्पन्न होती है। इसका अर्थ है कि क्योंकि हमने अपने पिछले जीवन में यह देखा है कि परमेश्वर ने हमें कैसे बदला है, अब हमें आशा है कि आने वाले दिनों में हममें यह काम परमेश्वर द्वारा पूरा कर दिया जाएगा।

परमेश्वर हमें भविष्य के लिए आशा से भर देना चाहता है। अपने आसपास के लोगों की तरह हमें अपने भविष्य का सामना घबराहट या उदासी से नहीं करना है। हम बड़ी आशा के साथ आगे देखते हैं, क्योंकि हम यह विश्वास करते हैं कि जिसने हममें एक अच्छा काम शुरू किया है, वही उसे पूरा भी करेगा (फिलि. 1:6)। यकीनन निराशा और उदासीन होने का निश्चित इलाज आशा है।

हमें अपनी आशा के अंगीकार को दृढ़ता से थामे रहना है (इब्रानियों 10:23)। दूसरे शब्दों में, अगर हम अभी हारे हुए हैं, तब भी हमें अपने मुंह से यह अंगीकार करने का साहस होना चाहिए कि परमेश्वर हमें जयवंत करेगा और जो प्रतिज्ञा उसने की है उसे हममें पूरा करेगा। हमें आशा में आनंदित होना चाहिए। विश्वासियों के लिए यह एक सामान्य बात है कि वे परमेश्वर को उन बातों के लिए धन्यवाद दें जो वह उनके जीवन में कर चुका है। लेकिन हमें उन बातों की आशा में भी आनंदित होना चाहिए जो परमेश्वर हमारे लिए करने वाला है।

"जो कुछ वह करेगा, उसमें वह सफल होगा" भजन 1:3 की प्रतिज्ञा है। हमारे जीवनों के लिए परमेश्वर की यही इच्छा है, और हमें मसीह में अपने जन्माधिकार के रूप में इस पर दावा करना चाहिए।

आनन्द

उमड़ने वाला आनन्द एक मार्ग है जिसके द्वारा हम यह जान सकते हैं कि हम परमेश्वर की उपस्थिति में अपना जीवन बिता रहे हैं - क्योंकि “उसकी उपस्थिति में आनन्द की भरपुरी है” (भजन 16:11)। और इसी से हम यह भी जान लेते हैं कि परमेश्वर का राज्य यकीनन हमारे हृदय में आ चुका है – “क्योंकि परमेश्वर का राज्य वह धार्मिकता, शांति और आनन्द है जो पवित्र आत्मा में है” (रोमियो 14:17)। यह आनन्द तभी हमारा हो सकता है जब हम पाप से घृणा और धार्मिकता से प्रेम करेंगे - क्योंकि सिर्फ उन्हीं लोगों का हर्ष के तेल से अभिषेक किया जाता है जो "धार्मिकता से प्रेम और अधर्म से बैर रखते हैं" (इब्रानियों 1:9)। प्रभु का आनन्द हमेशा आपका सामर्थ्य बना रहे (नहेम्याह 8:10)। आनन्द, प्रलोभनों/परीक्षाओं के खिलाफ आपकी लड़ाई को, बहुत आसान बना देगा।

याकूब कहता है कि जिन परीक्षाओं का हमें सामना करना पड़ता है, हमें उनमें भी इन दो कारणों से आनन्द मनाना चाहिए (याकूब 1:1-4): (1) क्योंकि इससे हमारा विश्वास परखा जाता है कि वह असली है या नहीं (यह हमारे सोने को परखने जैसी बात है कि वह खरा है या खोटा है - कि हम खुद को मुर्ख न बनाए की हम धनवान है जबकि हम असल में निर्धन है। (2) धीरज बढ़कर सिद्ध हो जाता है - और फिर हम सिद्ध और पूर्ण हो जाते हैं और हममें किसी बात की कमी नहीं रहती।

यह आश्चर्यजनक है कि हमारे परीक्षाओं से क्या परिणाम सामने आ सकते हैं - अगर हम उनमे आनन्द मनाए तो। विश्वासियों के बीच बहुत सारे व्यर्थ गवाए हुए कष्ट/पीड़ाएँ हैं। उन्हें अपनी पीड़ा से कोई धन नहीं मिलता, क्योंकि वे उसमें आनन्द मनाने की बजाए शिकायतें करते हैं और कुड़कुड़ाते हैं।