द्वारा लिखित :   जैक पूनन श्रेणियाँ :   कलीसिया
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नम्रता: हम इफिसियों 4:1-2 में पढ़ते है “इसलिए मैं जो प्रभु में बंदी हूँ तुम से बिनती करता हूँ कि जिस बुलाहट से तुम बुलाए गए थे, उसके योग्य चाल चलो, अर्थात सारी दीनता और नम्रता सहित और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे की सह लो”। मैंने अक्सर कहा है कि मसीही जीवन के तीन रहस्य है, नम्रता, नम्रता और नम्रता। यही वह जगह है जहां सबकुछ शुरू होता है। यीशु ने खुद को नम्र किया और मत्ती 11:29 में कहा “मेरा जूआ अपने उपर उठा लो, और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ”। केवल दो चींजें जिन्हे यीशु ने अपने खुद के जीवन से सीखने के लिए कहा वे नम्रता और दीनता थी। क्यों? क्योंकि आदम के संतान के रूप में, हम सभी घमंडी और कठोर है। यदि आप पृथ्वी पर स्वर्गीय जीवन का प्रदर्शन करना चाहते है, तो इसे सुसमाचार प्रचार, बाइबल शिक्षण, या सामाजिक कार्य द्वारा प्राथमिक रूप से प्रदर्शित नहीं किया जा सकता। यह सबसे पहले नम्रता और दीनता के स्वभाव से प्रदर्शित किया जा सकता है ।

जब परमेश्वर ने मूसा को वाचा का तम्बू बनाने का नमूना दिया, तो वह सन्दुक के साथ शुरू किया। किसी भी निर्माण की योजना बनाते समय, मनुष्य इमारत के बाहरी बाजुओं से शुरू करता है। लेकिन परमेश्वर ने भीतरी वेदी से शुरुआत की। आदमी प्याले के बाहर साफ करने की कोशिश करता है। लेकिन परमेश्वर पहले भीतर साफ करने की कोशिश करता है। वह अंदर से शुरू करते हुए फिर बाहर की तरफ जाता है। अपनी मानवीय सोच और द्राष्टिकोण मैं आप बाहर के बारे में अधिक चिंतित होंगे जिसे मनुष्य देख सकते है । यदि आप अधिक दिव्य है, तो आप अंदर के बारे में चिंतित होंगे जो की केवल परमेश्वर देख सकता है । आप लोगों की संख्या के मुकाबले अपनी कलिसिया में लोगो की गुणवत्ता के बारे में अधिक चिंतित होंगे । संख्या लोगो को प्रभावित करती है । परमेश्वर लोगों की गुणवत्ता को देखता है ।

परमेश्वर नम्रता, दीनता और धीरज की तलाश में है । इफिसियों 4:2 “सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे की सह लो” । कलिसिया में कोई भी सिद्ध नहीं है । गलतियाँ सबसे होती है । हमें कलिसिया में एक दूसरे की गलतियों को सहना होगा । क्योंकि हम एक दूसरे से प्रेम करते है इसलिए हमें एक दूसरे की गलतियों को सह लेना है । “यदि आप गलती करते है तो मैं उसे ढाँप लूँगा । यदि आप कुछ अधूरा छोड़ देते है, तो मैं इसे पूरा करूंगा” । इसी तरह मसीह की देह को कार्य करना है ।

एकता: हम इफिसियों 4:3 में पढ़ते है “और मेल के बंधन में आत्मा की एकता रखने का यत्न करो” । पौलुस के कई पत्रो में एकता एक महान विषय है । और यही वह बोझ है जो परमेश्वर के पास भी उसकी कलिसिया के लिए है । जब एक मानव शरीर मर जाता है, तो वह विघटित हो जाता है । हमारा शरीर धूल से बना है, और यह धूल के टुकड़े एक साथ रखे जाते है क्योंकि इस शरीर में जीवन है । जिस क्षण जीवन खत्म हो जाता है, विघटन शुरू हो जाता है, और थोड़ी देर के बाद, हम पाते है की पूरा शरीर धूल बन गया है । ठीक ऐसा ही विश्वासियों की संगति में होता है । जब एक कलिसिया में विश्वासी एकता में नहीं बने रहते, तो हम यह सुनिश्चित कर सकते है की मृत्यु पहले से ही आ गई है । जब एक पति और पत्नी बिना एकता के होते है, तो आप जानते है की मृत्यु पहले से ही प्रवेश कर चुकी है, भले ही वे एक दूसरे को तलाक न दे । विवाह के एक दिन बाद ही गलतफहमी, तनाव, झगड़े आदि के कारण विभाजन शुरू हो सकता है । और ऐसा एक कलिसिया में भी हो सकता है । एक कलिसिया आमतौर पर कुछ उत्साही भाइयो के साथ शुरू होती है, जो परमेश्वर के लिए शुद्ध काम करने के लिए बड़े उत्साह के एक साथ आते है । बहुत जल्दी विभाजन आता है और मृत्यु प्रवेश करती है । हमें विवाह और कलिसिया दोनों की एकता को बचाने के लिए लगातार लड़ाई लडनी है ।

मानव शरीर के बारे में अद्भुत बात यह है की धूल के सभी छोटे टुकड़े जो की बने होते है, सभी एक साथ इतने करीब एकजुट होते है की कोई नहीं देख सकता कि वे कहा शामिल हो गए है । यदि शरीर घायल हो गया है, तो त्वचा को बंध करने के लिए तुरंत कुछ प्रकियाए शुरू हो जाती है । शरीर को अपनी त्वचा के किसी भी हिस्से में अंतर और घाव खुला रहने देने के लिए पसंद नहीं । यह त्वचा के अलग-अलग हिस्सो को एकजुट करने के लिए तत्काल काम करना शुरू कर देता है । ऐसा ही होता है जब एक हड्डी टूट जाती है । शरीर तुरंत इसे एकजुट करने के लिए काम करना शुरू कर देता है । पृथ्वी पर कोई भी व्यक्ति दो हड्डियों को एक नहीं कर सकता । एक डॉक्टर केवल एक दूसरे के बगल में हड्डी के टूटे हुए हिस्सो को रख सकता है । यह शरीर ही है जो उन दोनों भागो को एक साथ जोड़ता है । मानव शरीर हमेशा एकता कि ओर काम करता है । इसी तरह मसीह की देह को भी कार्य करना चाहिए । जब एक कलिसिया इस तरह काम नहीं करती है, यह मसीह की देह का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा है ।

परमेश्वर पवित्र व्यक्तियों का एक गुच्छा नहीं बना रहा है । वह एक देह का निर्माण कर रहा है । पौलुस इफिसियों 4:1-3 में यही बात कर रहा है । वह हमें “आत्मा की इस एकता को संरक्षित करने का आग्रह करता है क्योकि एक ही देह है” । हम कब कह सकते है की स्थानीय देह में एकता है? “शांति के बंधन से” (ईफ़ीसी 4:3) । “आत्मा का मन शांति है” (रोमियों 8: 6) । जब आप एक भाई या बहन के बारे में सोचते है, और आपके विचार उनके लिए शांति और विश्राम के होते है, तब आप जानते है कि आपके और उस व्यक्ति के बीच एकता है । लेकिन अगर आप उस व्यक्ति के बारे में सोचते समय थोड़ा क्रोधित महसूस करते है, तो आप सुनिश्चित हो सकते है कि आप उस व्यक्ति से साथ एकजुट नहीं है । आप उसे बहुत ही उत्साहित, “प्रभु कि स्तुति हो” के साथ नमस्कार कर सकते है, लेकिन यह पाखंड है । शांति एक परख है । इसीलिए आत्मा कि एकता शांति के बंधन में संरक्षित की जानी चाहिए ।